मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।

Obesity Treatment

HEALTHY DIET


HEALTHY DIET का सीधा संबंध आपके स्‍वास्‍थ्‍य से है, जैसा खानपान वैसा स्‍वास्‍थ्‍य। संतुलित व पौष्टिक आहार का सेवन कर कई गंभीर बीमारियों को दूर रखा जा सकता है।    Plant Based Diet: मधुमेह, जिसे आमतौर पर DIABETES के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गंभीर स्थिति है, जो कि शरीर के पर्याप्त INSULIN का उत्पादन करने में असमर्थ होने या फिर शरीर द्वारा BLOOD SUGAR के उतार-चढ़ाव के कारण शरीर द्वारा उत्पादित INSULIN  सही ढंग से काम नहीं करता है। इसीलिए, इसे स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा एक 'SLOW KILLER' या 'SILENT KILLER' के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, DIABETES के लिए खानपान में कुछ बदलाव और नियमित व्यायाम के अलावा, LIFESTYLE में कुछ बदलावों से BLOOD SUGAR को CONTROL रखा जा सकता है।  कुछ अध्‍ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि बहुत सारे PLANT BASED DIET शरीर में BLOOD SUGAR को कम करने में मदद कर सकते हैं, जिससे DIABETES को कंट्रोल में रखकर अन्‍य जटिलताओं से बचा जा सकता है।     अध्ययनों के परिणामस्वरूप PLANT BASED DIET और BLOOD SUGAR को नियंत्रित करने के बीच एक गहरा संबंध है। ऐसे लोग जो कि PLANT BASED DIET का सेवन करते हैं उनमें SEMI VEGETARIAN लोगों के मुकाबले HIGH BLOOD SUGAR या DIABETES का खतरा कम होता है। इसके अलावा,PLANT BASED DIET से लोगों को BMI (BODY MASS INDEX) बनाए रखने में मदद मिलती है, जो मधुमेह को रोकने और प्रबंधन में एक प्रमुख निर्णायक कारक के रूप में कार्य करता है।     BLOOD SUGAR के लिए PLANT BASED DIET :-


PLANT BASED DIET न केवल DIABETES के रोगियों में BLOOD SUGAR CONTROL करने में मददगार है, बल्कि यह अन्‍य लोगों के लिए भी फायदेमंद है। आम तौर पर, PLANT BASED DIET में फलियां, साबुत अनाज, सब्जियां, फल, नट्स और बीज शामिल होते हैं। BLOOD SUGAR के लिए PLANT BASED DIET में हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे लेट्यूस, पालक, ग्रीन सॉरेल, ऐमारैंथ (राजगिरा), मेथी और गैर- स्‍टार्च वाली सब्जियाँ जैसे करेला, लौकी, गोभी, फूलगोभी, ककड़ी, प्याज, भिंडी, टमाटर, मशरूम शामिल हैं।      फलों में सेब, ब्लूबेरी, चेरी, जामुन, नाशपाती और अमरूद जैसे फल भी DIABETES के लिए फायदेमंद हैं। पुदीना, तुलसी और धनिया और मसाले जैसे दालचीनी, हल्दी और इलायची जैसी जड़ी-बूटियाँ भी DIABETES को CONTROL करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा,  फलियां INSULIN प्रतिरोध को कम करने, वजन घटाने और METABOLIC SYNDROME के खिलाफ सुरक्षा में मददगार हैं।  खाली पेट:-    सुबह खाली पेट आप नींबू और नमक के साथ पोषक तत्वों से भरपूर हरी स्मूदी पिएं। इससे शरीर के DETOXIFICATION, खून में SUGAR LEVEL को नियंत्रित करना, BLOOD PRESSURE, BAD CHOLESTEROL को कम करने जैसे कई फायदे हैं, जिससे METABOLIC ACIDOSIS को कम करने में मदद मिलती है। सुबह का नाश्ता:-


PLANT BASED DIET में आप सुबह के नाश्ते में अनाज से बचें। दाल जैसा नाश्ता करें इससे STOMACH पर CARBOHYDRATES के भार को कम करने में मदद मिलती है, जिससे BLOOD SUGAR LEVEL को CONTROL करने में मदद मिलती है। जैसे आप चाहें, तो स्‍प्राउट्स, मूंग दाल डोसा / इडली, बेसन चीला या मिक्स दाल आदि का सेवन कर सकते हैं।  दोपहर और रात का खाना :-    दोपहर व रात के खाने में अनाज, पकी हुई सब्जी, दाल और कच्चा सलाद खा सकते हैं। इससे लगभग 65% से 70% CARBOHYDRATES, 10-15% PROTEIN, 20-25% FAT और र्प्‍याप्‍त मात्रा में SOLUBLE AND INSOLUBLE FIBRE मिलता है।  प्रति दिन खाना पकाने के तेल के चार से पांच चम्मच शामिल करने की सलाह दी जाती है। आपका शुभचिंतक HAKEEM MD ABU RIZWAN Specialist in LIFESTYLE DISEASES UNANI PHYSICIAN

Last updated date 30/09/2020

अंग्रेज़ो से आज़ादी, अंग्रेज़ी दवाओं की ग़ुलामी

 "1947 से पहले हम अंग्रेज़ों के ग़ुलाम थे,और आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी दवा के ग़ुलाम हो कर रह गये।" ये अतिशीयोक्ति नहीं होगा अगर मैं कहूं कि अंग्रेज़ी दवा ही नहीं,बल्कि किसी भी क़िस्म की दवा (ऐलोपैथ, आयू- र्वेद,यूनानी,होमियोपैथ) के ग़ुलाम मत बनिए।अपने डाक्टर खुद बनिए,न कि बीमार होकर खुद को डाक्टर हकीम या वैध के हवाले कर दीजिए।आपकी ज़िन्दगी एक 4 WHEELER CAR की तरह है।जैसे मान लीजिए कि कार की DRIVING SEAT पर आप खुद बैठे हों, STEARING संभाले हों, आपके बग़ल वाली सीट पर आपका दूसरा दोस्त BREAK लगाता हो, पीछे वाली सीट पर आपका तीसरा दोस्त GEAR संभालता हो, और पिछली सीट पर ही बैठा आपका चौथा दोस्त ACCELERATER संभाल रहा होता है।अंदाज़ा लगाईए, क्या आपकी कार सड़क पर दौड़ पाएगी? ठीक यही होता है जब आप बीमार पड़ते हैं और आप HOSPITAL, DOCTOR, PATH-LAB, MEDICINES के चक्रव्यूह में फंसते हैं और फंसते ही चले जाते हैं। आप समझते हैं कि आपकी ज़िन्दगी की गाड़ी चल रही ही है।बस चल रही है।लेकिन चला कौन रहा है,कभी ग़ौर किया आपने...! और वो भी ऐसे हाथों में अपनी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी की सारी पूंजी सौंप दी हो, जिसे यही नहीं मालूम कि," किसी भी बीमारी का कारण क्या है?


नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|


NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS). * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 30/09/2020

ALLOPATHIC MEDICINESसे दूरी बनाएं

डाबिटीज़ को दूर भगायें,कभी भी न हो हाई बीपी से सामना,कोलेस्टरोल से भयभीत न होना कभी,ये तो हमारी जिन्दगी है|चिकनगुनिया, डेन्गू,कोई भी 'फ्लू' कभी जानलेवा होता ही नहीं,बल्कि जानलेने वाला तो उस वायरल डीजीज के ईलाज में ईस्तेमाल की जानेवाली 'टैमीफ्लू' वगैरह जैसी दवायें हैं | SCIENTIST और रीसर्चर्स का तो इतना तक कहना है कि सर्दी जुकाम या कामन कोल्ड से अगर लोग मर सकते हैँ(वही लोग जिनकी ईम्यूनिटी यानि 'रोग प्रतिरोधक छमता' गौण हो जाती है|)तो किसी भी वाययल डीजीज़ जैसे - चिकनगुनिया,डेन्गू,फ्लू,एच 1 एन 1,एच आई वी एड्स,ईत्यादि से भी किसी की मृत्यु हो सकती है| ये सब तो आज के दौर के मेडीकल साईन्स का सबसे बड़ा फ्राड मात्र है:'एक भय का 'व्यापार' मात्र यानि'डीजीज़ मोन्जरिंग' है,जे लगातार एक 'सिस्टम' के तहत चलाया जा रहा है|जिसमें 'मेडीकल कम्पनिय़ाँ' ही हैं,जिनको अपना कारोबार चलाना है,और अपने मुनाफे भर से मतलब है,न कि हमारी सेहत से|ये डाक्टर साहिबान जो ऊँची۔ऊँची डिग्रियां लेकर ॐची۔ॐची फीस मरीज़ों से वसूलते नजर आते हैँ,ऐसा प्रतीत होता है मानो 'फार्मासियूटीकल्स कम्पनीज़' के रजिस्टर्ड 'एजेन्ट' या 'मेडीएटर' की तरह काम करने वाले हैँ,उनको सिर्फ और सिर्फ हमारी 'बीमारी' की चिन्ता रहती है न कि हमारी 'सेहत' की|क्यूंकी ऐसी ही व्यवस्था है कि उनसे ईलाज करवाना शुरु कर दिया एकबार तो फिर आप उनके परमानेन्ट कस्टमर बन गये|फिर क्या जीवन भर 'कष्ट से मरते रहिए|' विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7अप्रैलको 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है|जानिए क्या है हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं और आमजन के सेहत की स्थिति......... * पाँच लाख डाक्टर्स की कमी है देश में|10,189 लोगों पर 'एक सरकारी डाक्टर' है|विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक के मुताबिक 'एक हजार लोगों पर एक डाक्टर' होना चाहिए| * महज़ 56 हजार छात्र हर साल 462 मेडिकल कालेजों से ग्रेजुएट होते हैं,जबकि देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.6 करोड़ बढ़ रही है|


* 90,343 लोगों के बीच एक सरकारी अस्पताल है देश में|12 किलोमीटर औसतन दूरी आम भारतीय को तय करनी पड़ती है मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं केलिए| * 13 राज्यों के 64 ज़िलों में क़रीब 27 करोड़ लोगों केलिए एक भी ब्लड बैंक नहीं है| * 68.3 वर्ष है भारत में जीवन प्रत्याशा की दर|पुरुषों की औसत आयु 66.9 वर्ष तथा महिलाओं की 69.9 वर्ष हे| * एक हजार बच्चों में 41 बच्चों की मृत्यु जन्म के एक साल के भीतर हो जाती है * प्रति 10,000 में से 174 मातृ मृत्यु दर|मतलब हर घंटे में 5 महिलाओं की प्रसव के दौरान होनेवाली जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है| * भारत में सबसे ज्यादा मौतें हृदय से संबंधित बीमारी की वजह से होती हैं|2005 से 2016 के बीच इन मौतों में 53% की बढोतरी हुई है|


* 25 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु अकेले प्रदुषण से हो जाती हैं। नोट:- * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं।

Last updated date 30/09/2020

WHITE TRUTH OF MILK

1:- White Truth of Obesity “The largest study of its kind analyzed more than 12,000 children aged 9 to 14. It found that the more milk they drank, the heavier they were.”-Archives of Pediatrics and Adolescent Medicine (2005) 2:- White Truth of Breast Cancer “A study from the Harvard Medical School on Breast Cancer risk and diet among 90,000 pre-menopausal women showed a cancer link to Whole Milk and Milk Products.” – The Journal of the National Cancer Institute (2003) 3:- White Truth of  Women Consuming Highest Amount of Milk “Denmark, Sweden and Switzerland have highest rate of ovarian cancer. Their per capita milk consumption is also among the highest in the world.” -American Journal of Epidemiology (1989) 4:- White Truth by Hippocrates (460-315 B.C.E) “Cow’s milk could cause skin rashes and gastric problems.”- Pediatric Allergy (1951) 5:- White Truth by FDA Food and Drug Administration in its ‘Eating for Healthy Heart’ brochure stated that, “some fats are more likely to cause heart diseases; these fats are usually found in food from animals such as meat, milk, cheese and butter.” – Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6:- White Truth of Heart Disease “A study involving 7 countries showed that, as the milk supply grew, so did the incidence of deaths from heart diseases.”   International Journal of Cardiology (1994) 7:- White Truth of Countries with Lowest Milk Consumption “Societies with low calcium diet and only fraction of ­­­­­dairy consumption have less risk and prevalence of bone fractures. Dairy products are not dietary staples in China, Japan, Vietnam and Thailand. Yet, the residents of these countries have the lowest rate of bone fractures.”- American Journal of Clinical Nutrition (2001) 8:- White Truth of Insulin Dependent Diabetes (Type I) “The more the cow’s milk is consumed particularly by the children; higher is the incidence of Diabetes Type I. For Example, Finland has one of the highest intake of dairy products in the world. Interestingly, the country also has the world’s highest rate of insulin dependent diabetes affecting 40 out of every 1000 children.”–American Journal of Clinical Nutrition (1990) 9:- White Truth of Autism “Autistic children frequently have very high levels of opiate peptides in both blood and urine.”-American Journal of Clinical Nutrition (1990) 10:- White Truth of Infant Colitis “It was seen that allergic reaction to food was the cause of colitis in infants under the age of 2. Cow’s milk was the most common culprit. After it was excluded from the diet, the infants recovered completely.” – Archives of Diseases in Childhood (1984)


11:- White Truth of our Ancestors “After examining the bones of our ancestors who lived in a pre-milk era, we found robust fracture resistant bones.”- Department of Evolutionary Biology, Colorado State University (2002) 12:- White Truth of Bone Health “No conclusive evidence exists that cow’s milk builds strong bones in humans, on the contrary; the data shows it promotes bone fracture.”- Pediatrics (2005) 13:- White Truth by British Advertising Standards Authority “In October 2005, the British Advertising Standards Authority forced Nestle Health Nutrition to withdraw its advertisements in the United Kingdom, stating that milk was “Essential for healthy bones.” - UK Advertising Standards Authority (13th Oct, 2005) 14:- White Truth by US Government appointed Scientific Panel Report “Milk cannot be considered as a sports drink, does not specifically prevent osteoporosis, and might play a role in heart disease and cancer.”-  Family Practice News (5th Dec, 2001) 15:- White Truth by Swiss Federal Health Ministry “Milk industry has failed to provide medical proofs that claim that, milk has preventive effects against osteoporosis.” -Spring, Physicians Committee for Responsible Medicine (2001) 16:- White Truth by Biggest Ever Study on Milk “Harvard University study on seventy eight thousand women revealed that, those who drink milk the most, were actually at greater risk of bone fracture than those who drink little or no milk.”-12 year prospective study-American Journal of Public Health (1997) 17:- White Truth of Infertility “A consistent correlation is seen between the consumption of cow’s milk and infertility in women. Researchers have specifically found that the countries where the most milk products are being consumed have high prevalence of infertility, with earlier occurance in life.”- American Journal of Epidemiology (2005) 18:- White Truth of Slaughter of Dairy Cows “Mastitis or the infection of cow’s udder is the primary reason for pre-mature slaughter of dairy cows, and 2nd most common cause of death.” -USDA (Aug, 2004) 19:- White Truth of Bone Health “Analysis of 50 studies, on which US Dairy intake recommendation is based; shows no relationship between dairy or dietary calcium intake and measure of bone health.” - Cornell University, Pediatrics (2005)


20:- White Truth of Milk Propaganda “The Dairy Industry lobbied for an increased recommendation of three to four servings of milk per day, so, in 2005 the US Health and Human Services raised the recommendation by 50% to 3 servings a day.”-Wall Street Journal (30th Aug, 2004) 21:- White Truth of Calcium Supplements “Calcium is one of the numerous nutrients essential for bone health. An abundance of dietary or supplemental calcium in itself has not shown to assure greater bone density or protection from bone fracture.”-Bone (1990) 22:- White Truth of Diabetes Type I “Major cause of Diabetes Type I and bone disease among teenagers is daily dairy intake.”– Journal of the American Academy of Dermatology (2007) 23:- White Truth of Migraine “A double blinded controlled trial of Oligoantigenic Diet Treatment concluded that, migraine is a result of food allergy majorly by daily dairy intake.”  Lancet (5th July, 1980) 24:- White Truth of Allergy among Children “Cow’s milk and the products made from it, are one of the most common food allergens. This is particularly true for children.”  -Nutrition Review (1984) 25:- White Truth of Prostate Cancer “ The association between dairy products and prostate cancer is one of the most consistent dietary predictors for prostate cancer.”-  Epidemiology Reviews (2001) 26:- White Truth of Parkinson’s Disease “Harvard School of Public Health Researchers found that, men who consumed lactose, calcium and vitamin-D from dairy, along with dairy protein, had 50% to 80% higher risk of developing Parkinson’s disease, than men who consumed least amount of these nutrients.”-Annals of Neurology (2003) 27:- White Truth of Pregnancy “The risk of juvenile diabetes, ear infection, skin rashes, colic and iron deficiency may all be reduced by the avoidance of cow’s milk based formula and other dairy products during pregnancy.”-  Pediatric Research (1993) 28:- White Truth of ‘2 Glasses of Milk per day’ “In comparison to men who drink no milk, than men who consumed more than 2 glasses per day, the latter had twice the incidence of Parkinson’s disease.” -Neurology (2005) 29:- White Truth of Menstrual Cramps World renowned gynecologist and best-selling author Dr. Christiane Northop cautions that, “In addition to menstrual cramps, cow’s milk consumption has been associated with recurrent vaginitis, fibroids and increased pain from endometriosis.” – Women’s Body, Women Wisdom (1994) 30:- White Truth of Brain Disorder “Dangerously high levels of aluminum were  found in cow’s milk sample and infant formula.” -Journal of Pediatric Gastro-Enterology and Nutrition (1999) “Aluminum poisoning has been associated with memory loss, dementia, Parkinson’s disease and Alzheimer’s disease.”   Brain Research (2002) 31:- One Spoon of Pus in Every Glass of Milk – A White Truth “It’s legal to have not more than 7,50,000 pus (cells) per milliliter of milk.”– Journal of Dairy Science (2001) 32:- White Truth of Sudden Deaths in Infants “Vaccination and cow’s milk are the primary cause of Sudden Infant Death Syndrome (SIDS)”.- New Zealand Medical Journal (1991) 33:- White Truth of Infant Asthma “A significant number of infants with asthma also tested positive for allergy to cow’s milk. Infants six months old or younger, experienced relief from symptoms once cow’s milk was eliminated from their diets.”. Annals of Allergy (1975) 34:- White Truth of Dioxins and Liver/Nervous System Damage “Dairy products alone account for 30% of dioxin exposure in adults and 50% exposure in children.”  Green Guide (July/August 2004) “Dioxins have been shown to result in nervous system and liver damage.”  Dioxin Action Summit (2000) 35:- White Truth of Intestinal Bleeding “The gastro-intestinal blood loss caused by cow’s milk is quite common in infants.” - Journal of Pediatrics (1974) 36:- White Truth of Calcium Supplements “Calcium supplements may compromise the immune system. As Magnesium plays an important role in the development and proper functioning of the immune cells, excess of calcium displaces magnesium ions, and in doing so impair the function of key immune factors such as white blood cells.” Journal of American Dietetics Association (1996) 37:- White Truth of Iron Deficiency “Iron retention decreased by 45% in post-menopausal women, who were given 500 mg of supplemental –  American Journal of Clinical Nutrition (1991) 38:- White Truth of  Bone Loss “Women who derived most dietary protein from animal sources, had 3 times higher chances of bone loss and 3.7 times higher chances of hip fracture, compared to the women who obtained most of their protein from vegetable sources.”   American Journal of Clinical Nutrition (2001) 39:- White Truth of Refined Sugar “Refined sugar interferes with the calcium absorption, thereby increasing the risk of osteoporosis.”– Journal of Nutrition (1987) 40:- White Truth of Cruelty on Cows “In a modern/industrial dairy farm, milk is extracted three times a day by electronic milking machine. Stray voltage from the machine occasionally shocks the cows in the process, causing fear, panic and sometimes even death. Dairy farm loses several hundreds of cows each year to stray electric voltage.”–  The Washington Post (9th Aug, 1987) 41:- White Truth of Animal Cruelty “Dairy farmers dock cow’s tail (cut the tail off without anesthesia by using a pair of super hot scissors) because they believe that a full length tail may become soiled in excrement and urine when the animal lies down on its filthy floor and could infect the cow’s udder possibly leading to mastitis.”-Journal of Dairy Science (2001) 42:- White Truth of Food Pyramid “USDA and Department of Health and Human Service (HHS) have published “The Food Pyramid” for the rest of the world. The food pyramid can be looked at with suspicion because of 2 reasons: 1. Six of 11 advisory board members had financial ties with the dairy industry! ” 2. The primary objective of USDA is not to encourage healthful eating, but, rather to promote American agricultural/dairy products.    –   New York Times (7 th Sept, 2004)       43:- White Truth of Calcium Absorption “Humans can absorb greater percentage (63%) of calcium from vegetables than that from cow’s milk (32%).”–  American Journal of Clinical Nutrition (1994) 44:-;White Truth of Milk Contamination “Frequent contamination is found in a glass of milk because of cow’s exposure to hormones, antibiotics and other drugs. Some of these have been linked to blood diseases, cancer and deaths in humans.” -FDA Notice, Associated Press (4th March, 2003) 45:- White Truth of Cow’s Milk Protein “Cow’s milk contains at least 30 proteins that can elicit an allergic response. The most common include casein, β-lactaglobulin (BLG), α-lactalbumin (ALA), bovine γ-globulin (BGG), and bovine serum albumin (BSA).” –  Annals of Allergy (1984) 46:- White Truth of Milk Allergy “Milk allergy symptoms include skin rashes, hives, swelling, wheezing, congestion, diarrhea, constipation, earache, headache, skin discoloration, joint swelling, asthma, ulcerative colitis, colic, chronic fatigue, intestinal bleeding and death.”–  Allergy (1996) 47:- White Truth of Reversing Heart Diseases “WHO funded research trial, “The MONIKA Project” reported that, “changes in milk consumption, up or down, accurately predicted changes in coronary deaths four to seven years later.”– Lancet (1999) 48:- White Truth of Atherosclerosis “Bovine Xanthine Oxidase, an enzyme present in milk, can be absorbed through human gut and enter the blood stream, where it may promote the growth of atherosclerotic (artery-clogging) lesions.” – Clinical Research (1976) 49:- White Truth of Countries with Highest Milk Consumption “The world’s highest consumers of cow’s-milk, dairy products and calcium-Australia, New Zealand, North America and Western Europe, also have the highest risk of bone fractures.”-American Journal of Clinical Nutrition (2003) 50:- White Truth of Nutritional Education among Doctors “70% of all the chronic diseases are rooted in the dietary choices we make, yet, in at least 5 years of medical education most physicians receive only 2  hours (at best) of nutritional education.”   -The Surgeon General’s Report on Nutrition and Health DHHS (PHS) Publication (21st  July, 1999) 51:- White Truth of National Nutrition Policy “Our national nutritional policies and the literature, as is taught in the school are highly influenced by the profit minded dairy industry; as is clearly evident from the report published."– Nutrition and Health News Bureau (17th Jan, 2002) 52:- White Truth of Constipation “Many studies have established the relationship between consumption of cow’s milk and constipation, and remarkable improvement when the offending milk is removed from the diet.”– New England Journal of Medicine (1998) 53:- White Truth of Multiple Sclerosis “In the survey of 27 countries it was found that, as a population’s intake of cow’s milk went up; so did the prevalence of multiple sclerosis.”– Neuro-Epidemiology (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

Last updated date 28/09/2020

"यूनानी चिकित्सक - तिब्बी ख़िदमतगार या ग़द्दार....!

हम यूनानी चिकित्सक-"तिब्बी ख़िदमतगार या ग़द्दार", यूनानी चिकित्सा पद्धति और पब्लिक को धोका दे रहे हैं। "मैं तो कहता हूं कि जहां पर ऐलोपैथिक डॉक्टर अपने हाथ खड़े कर देते हैं वहां से मेरा काम शुरू होता है।" 12 फरवरी 2020,स्थान कंस्टीट्यूशन क्लब दिल्ली। मौक़ा था-"आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस" के बैनर तले "यूनानी डे" का। मुझे भी शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,मैं भी आमंत्रित था। सैंकड़ों SO CALLED डॉक्टरों (BUMS डिग्री धारक हकीम) का जमघट था। गणमान्य अदाधिकारियों वो सरकारी पदाधिकारियों ने भी शिरकत की। लोगों ने अपने अपने विचार भी रखें, मुझे भी मौक़ा मिला, मैं ने भी अपने विचार रखे। इस 'यूनानी डे" के मौक़े पर एक मैगज़ीन भी तक़सीम की गई। बड़ी हैरानी हुई,और ताज्जुब हुआ ये देखकर कि "आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस" के पदाधिकारियों के नाम और हिंदुस्तान के सभी राज्यों के पदाधिकारियों के नाम दर्ज थे, लेकिन उनके अधिकांश नाम से पहले "डॉक्टर" ही थे, जबकि सब के सब हकीम थे,BUMS डिग्री धारक थे। बहरहाल! ये सब देख कर दिल कचोट रहा था कि हम कहां जा रहे हैं। पेश है मेरे दिल की आवाज़,आप भी महसूस कर सकते हैं:- BUMS - BACHELOR OF UNANI MEDICINE AND SURGERY. BAMS - BACHELOR OF AYURVEDIC MEDICINE AND SURGERY. BHMS - BACHELOR OF HOMEOPATHIC MEDICINE AND SURGERY. MBBS - BACHELOR OF MEDICINE AND BACHELOR OF SURGERY.


ऊपर मैं ने चार प्रचलित पैथियों के SHORT FORM और FULL FORM लिखे हैं। ख़ूब ध्यान से देखिए और जी भर कर दिल थाम कर देखिए कि कहीं कोई ग़लत तो नहीं है। ऊपर से ही शुरू करते हैं। ऊपर की तीनों डिग्रियों के FULL FORM बिल्कुल दुरुस्त हैं, और ऐलोपैथिक डिग्री MBBS के FULL FORM पर ग़ौर कीजिए,क्या लगता है आपको कि ये दुरुस्त और सही है? नहीं ना। MBBS का सही और दुरुस्त FULL FORM तो इस तरह होना चाहिए था - " MEDICINE OF BACHELOR AND BACHELOR OF SURGERY", या जो अभी हम लोगों को उसका FULL FORM बताया जाता है वो इस तरह- "BACHELOR OF MEDICINE AND BACHELOR OF SURGERY" है। तो इसका मतलब यह है कि इसका FULL FORM इस तरह होना चाहिए-"BMBS". यही सत्य है और यही इसकी "औक़ात" है। ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति की बुनियाद ही झूठ और फरेब पर टिकी है। अब आईए एक और डिग्री को परखिए- "MD". इसका FULL FORM बताया जाता है- " DOCTOR OF MEDICINE". जबकि सही तो इस तरह होना चाहिए था - "MARKETING OF DRUG"(MD) क्या ख़्याल है आपलोगों का? अब मैं सीधे सीधे मुद्दे पर आता हूं।ये मुद्दा बड़ा जटिल है, कड़वा सच भी है। जिस पैथी की बुनियाद ही ग़लत, झूठ और फरेब पर टिकी है, उससे कोई बीमारी ठीक होती है या नहीं, ये बताने की क़तई ज़रुरत नहीं है। इस ऐलोपैथिक पद्धति ने शुरूआत से ही सिर्फ और सिर्फ "दर्द ही दर्द" बांटे हैं। लेकिन हमारे यूनानी चिकित्सा पद्धति के BUMS डिग्री धारकों को क्या हो गया है कि वो अपने नाम के आगे "DOCTOR" लगाने और ऐलोपैथिक दवाओं से खुलेआम इलाज करने में "बेशर्मी और ढिठाई की सारी हदें पार कर गये हैं।" माफ करना BUMS डिग्री धारको....एक बात अच्छी तरह से अपने ज़ेहन व दिल में बठा लें, आपको जो "हिक्मत" की शक्ल में सलाहियत हासिल है ना, उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती है। हिक्मत अल्लाह तआला की जानिब से आपको मिली थी, लेकिन लुटा दी हमने जो असलाफ से मीरास पाई थी, सुरैया से ज़मीं पर आसमां ने हमको दे मारा।


हिक्मत की डिग्री लेकर हकीम बन पाए और न ही डॉक्टर। पेंडुलम की तरह पब्लिक के बीच झूलते हुए अपने वजूद की तलाश में सरेगरदां हैं। " न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम।" "हकीम" के पेट से "डॉक्टर" वजूद में आया है। BUMS वालो ,ये समझ लो कि तेरे सामने उन "ऐलोपैथिक डॉक्टरों" की तो सर उठाने की कभी हिम्मत भी न हो पाए।आप जो एक "हकीम" होकर ऐलोपैथिक प्रैक्टिस करते हैं,वो ऐलोपैथिक डॉक्टर्स आपको कितनी नफरत भरी निगाह से देखते हैं, पब्लिक आपके बारे में क्या सोचती है,कभी तन्हाई में सोचना मेरे प्यारे भैया। आपको BUMS डिग्री देकर अल्ल्लाह ने अपने हिस्से में से थोड़ी "हिक्मत" तो दे दी मगर आपने उसकी अहमियत को नहीं समझा, उसकी क़द्र भी नहीं की आपने।आप अपने नाम के आगे "DR" लिखकर ख़ुश तो हो सकते हैं लेकिन उस सबसे बड़े "हकीम" ने जो आपको इनायत किया,उस पर क्या गुज़रती होगी जिसने आपको "हिक्मत" से नवाज़ा, अंधेरे में सोचिएगा ज़रुर। आप ख़ुद को "डॉक्टर" कहेंगे तो डॉक्टरी ही करेंगे, "हकीम" कहलाएंगे तो दिमाग़ में हिक्मत ही आएगी।आप शेर थे लेकिन गीदड़ बन बैठे। नोट:- मैं ने अथक परिश्रम और रिसर्च के बाद केवल एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX" है। केवल इसी एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं ( जिसके लिए डॉक्टर्स जीवन भर ऐलोपैथिक दवा खाने को बता दिया करते हैं), अंग्रेज़ी दवाओं से हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है और बीमारियों से हमेशा के लिए निजात मिल जाती है। असंख्य मरीजों ने आज़माया,शिफा पाई और अब बिल्कुल सेहतमंद हैं, कोई भी दवा का सेवन नहीं करते। उन्होंने अपना FEEDBACK दिया भी है जिसे मेरे YOUTUBE CHANNEL पर आप ख़ुद ही देख सकते हैं। मेरा YOUTUBE CHANNEL का नाम -"HAKEEM MD ABU RIZWAN" है। इस दवा के बारे में किसी भी प्रकार की मुकम्मल जानकारी मुझसे ले सकते हैं। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

Last updated date 28/09/2020

"एक्सपायरी डेट" की कहानी

क्या दवाइयां एक्सपायर हो जाने के बाद भी इस्तेमाल की जा सकती हैं? 1979 में अमेरिकी FDA (FOOD AND DRUG ASSOCIATION) ने सभी दवा कंपनियों को निर्देश जारी किया कि "वो सभी दवाओं पर EXPIRY DATE अवश्य डालें।" लेकिन, इस EXPIRY DATE का ये मतलब भी नहीं है कि "BRUFEN" की गोलियों की शीशी अपनी EXPIRY DATE के बाद एक दूध के कार्टून की तरह ख़राब और स्वास्थ के लिए हानिकारक हो जाती है।जी हां, जो तिथि हम दवा की शीशी के ऊपर कंपनी की ओर से मुद्रित देखते हैं, उसका मतलब दवा का ख़राब हो जाना बिल्कुल भी नहीं होता,बल्कि कंपनी "उस मुद्रित तिथि" तक दवा के असरदार और सही होने की ज़िम्मेदार होती हैं। सही मायने में एक दवा कितनी देर तक असरदार और इस्तेमाल के क़ाबिल हैं, इसके बारे में अलग अलग राय हो सकती हैं। कुछ दवाएं जैसे, कि INSULIN, NITROGLYCERIN और ANTIBODIES, जिनमें शामिल COMPONENTS समय के साथ साथ बेअसर या कम फायदेमंद हो जाती हैं।उसी तरह बहुत सी दवाओं की ताक़त काफी लंबे समय तक बरक़रार रहती हैं,जो कि न केवल उपयोग करने के लिहाज से ही, बल्कि पूरी असरदार भी होती हैं। क्योंकि किसी को भी ये पता नहीं होता, और दवा के ऊपर EXPIRY DATE देखकर और सुनकर ही हमलोग भ्रमर में पड़ जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं। इसलिए अमेरिका में ज़हर कंट्रोल करने वाली क़ानूनी संस्था को प्रतिदिन ऐसी अनगिनत फोन काल आती हैं जिनमें लोग ये बताते हैं कि उन्होंने एक्सपायर दवा खा ली है और अब उन्हें मेडिकल सहायता की आवश्यकता है। कैलिफोर्निया प्वायज़न कंट्रोल सेंटर के डायरेक्टर ली सेंट्रिल ने आगे बताया कि उसने किसी एक्सपायर्ड दवा की वजह से किसी इन्सान में कोई जानलेवा लक्षण बिल्कुल नहीं देखते।बस,समय गुज़रने के साथ दवाओं के असरदार होने में कमी हो जाती है जिसपर अलग से ढेरों रिसर्च की गई है। कुछ वर्षों पहले "ली सेंटर रील" को दवाओं के एक पुराने भंडार को चेक करने का अवसर मिला,जो कि एक फार्मेसी के पीछे स्टोर में मौजूद थीं। उनमें एलर्जी और दर्द निवारक दवा के अलावा अन्य दूसरी दवाएं और गोलियां मौजूद थीं। डायरेक्टर ने बताया कि उन दवाओं में से कुछ को चालीस साल गुजरने के बाद भी असरकारक पाया गया और ये रिसर्च स्टडी "JAMA INTERNAL MEDICINE" में 2012 में प्रकाशित की गई थी।सेंटरील ने एक अन्य रिसर्च स्टडी 2017 में प्रकाशित करवाई, जिसमें EPIPEN जैसी महंगे AUTO INJECTIONS जिनका इस्तेमाल जानलेवा एलर्जीज़ के इमरजेंसी इलाज में किया जाता है, अपनी अंतिम तिथि पूरी हो जाने के चार साल की अवधि के बाद भी चौरासी प्रतिशत प्रभावी पाए गए। इसीलिए विशेषज्ञों की राय है कि कुछ भी मौजूद न होने से जान बचाने के लिए एक एक्सपायर्ड दवा भी उस समय काम कर जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो दवा बनाने वाली कंपनियों के पास काफी रक़म मौजूद होती है कि वह दवाओं पर रिसर्च कर सकते हैं। लेकिन सचमुच में ऐसा करने का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और जब हमलोग किसी दवा पर एक्सपायरी डेट पढ़ लेते हैं तो हम उसे फेंक कर नयी दवा ख़रीद लाते हैं। अमेरिका में फेडेरल गवर्नमेंट को इन दवाओं पर रिसर्च करने का लाभ तो अवश्य ही है और वो करते भी हैं। और अमेरिका में दवाओं का बहुत बड़ा भण्डारण संभावित एमरजेंसी जैसे हालात यानी कि आतंकी हमले या किसी महामारी के फैलने के दौरान इस्तेमाल हो सकता है। 1986 में फेडेरल गवर्नमेंट और अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने अपने इस भण्डारण में कमी करने के लिए दवाओं की तय तिथि में कमी करने के साथ साथ अपने स्टाक में भी कमी की। दोबारा उसी प्रोग्राम के तहत 2006 में एक सौ बाईस विभिन्न औषधियों को जांचने के बाद सही अवस्था में महफूज़ करके उनकी एक्सपायरी डेट में अगले चार साल की बढ़ौतरी कर दी गई। इस प्रोग्राम के कारण अमेरिकी संस्थाओं ने 2.1 बीलियन डालर ,जो कि उन दवाओं की दोबारा तैयारी में लगते, अमेरिकी संस्थाओं के अथक परिश्रम और प्रयास से उस मोटी रक़म को अकारण लगने से बचा लिया गया।इस सबके बावजूद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जानते बूझते तय मानक तिथि के बाद वाली दवाईयां लेने से सख़्ती से मना करते हैं। उनके अनुसार, कुछ दवाओं में तय तिथि समाप्त हो जाने के बाद बैक्टीरिया पैदा होने और बढ़ने का ख़तरा होने के अलावा कुछ दवाईयां एलर्जी रिएक्शन को रोकने में न केवल नाकाम रहती हैं बल्कि,बीमार भी कर सकती हैं। और इसी तरह ऐसी दवाईयां लेने वाला स्वास्थ से संबंधित संभावित ख़तरों से दोचार हो सकता है। इसलिए ऐसी दवाईयों और उनसे संबंधित प्रश्न के साथ बेहतर यही है कि किसी विशेषज्ञ चिकित्सक या किसी सर्टिफाइड फार्मासिस्ट से संपर्क किया जाए। अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था लोगों को ऐसी दवाईयां जिनकी तय तिथि समाप्त हो चुकी हो, "NATIONAL DRUG TAKE BACK" नामक संस्था( जिसे AMERICAN DRUG ENFORCEMENT DEPARTMENT कंट्रोल करती है)के सुपुर्द कर देने का हुक्म दे रखी है, ताकि उनका सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सके, और जनता को परेशानी से बचाया जा सके। व्हाइट हाउस की ओर से ये दावा है कि पिछले साल इस संबंध में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 3.7 मिलीयन पाउण्ड की दवाईयां जो कि अपनी अंतिम तिथि गुजरने के बाद भी अनुपयोगी थीं,उनको सुरक्षित किया गया ताकि बाद में उसपर रिसर्च करके उनको प्रयोग के लायक़ बनाया जा सके। जबतक ट्रम्प सरकार इस अकूत साधन से लाभ उठाते हैं,न जाने कितने ही देश अपनी लापरवाही और ऐसे किसी सिस्टम के न होने के कारण संसाधन और बजट को बर्बाद करते रहेंगे, जिनमें प्रगतिशील देश सबसे आगे रहेंगे। और ख़ासतौर से भारत में दवाईयां दिन-प्रतिदिन महंगी होती रहेंगी। ज़रूरत इस बात की है कि ऐसी दवाईयों को सुलभ तरीक़े से सरकारी स्तर पर रिसर्च के बाद उपयोग करने के लायक़ बनाकर न केवल देश में दवाओं की भारी कमी को दूर किया जा सकता है, बल्कि ड्रग माफिया/तस्कर से भी छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन, अफसोस की बात है कि सरकार इस तरह के काम के बजाय ऐसी सोच से भी लाखों कोस दूर है।


नोट:- अगर आप बरसों से मोटापा, कैंसर, डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट प्राब्लम, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिस आर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं, और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है। केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। * अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है। * डायबिटीज की अंग्रेजी दवाओं का ही नतीजा है कि 20%-30% लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं,50% लोगों का किडनी फेल हो रहा है और 15%-20% लोगों का लोवर लिम्ब (दोनों पैर) काटने की नौबत आ रही है। * बी पी लो करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लक़वा तक पहुंच रहा है। * कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है। फैसला आपको ही करना है, और आज ही।


नोट:- मैं ने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इसी एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 28/09/2020

लाइफस्टाइल और वायरल डीज़ीज़

ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU.......! आगे बढ़ने और पढ़ने से पहले आजकल के बर्निंग टापिक "कोरोनावायरस" को ज़रूर सामने रखियेगा, कि किस तरह से डब्लू एच ओ, फार्मा कंपनियां, दुनिया भर की सरकारें (जो वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की ग़ुलाम हैं), सभी ऐलोपैथिक डॉक्टर्स, सरकारी व निजी अस्पतालों में इस कोरोनावायरस के ईलाज के नाम पर लाखों रुपए किस तरह वसूली की जा रही हैं। ये वायरल डीज़ीज़ केवल एक इन्फलुएंज़ा वायरस ही (ईन्फ्लुएंज़ा लाइक इलनेस) है जिसका इलाज हमारे यूनानी चिकित्सा पद्धति में मात्र तीन से पांच दिनों में घर में ही केवल चंद सौ रुपए में मुमकिन है।    मैंने कई बरसों तक लगातार शोध करके एक ऐसी यूनानी दवा बनाई है जिसको अधिकांश लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे:- डायबिटीज़, हाई बीपी, कोलैस्ट्रौल, थायराइड, लीवर व ऐब्डोमिनल प्राब्लम, किडनी के विभिन्न रोग, हृदय संबंधी रोग (ब्लाकेज), माइग्रेन वगैरह में कम से कम चार महीने, कुछ रोगों में छः महीने जैसे: आस्थमा, सियाटिका, हड्डियों व जोड़ों का दर्द , और कुछ रोगों जैसे कैंसर, एच आई वी एड्स, ट्यूमर, सोरियासिस वग़ैरह में नौ महीने से एक साल तक लगातार सेवन करने से सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। ऊपर वर्णित तमाम बिमारियां ऐसी हैं जिसका ऐलोपैथिक डॉक्टर और दवा से ईलाज ही नहीं है, बल्कि ऐलोपैथिक डॉक्टर आपकी उन बिमारियों को बढ़ाने का काम ही करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो डॉक्टर आपकी बीमारी को हर हाल में बचाकर और बढ़ाकर रखना चाहता है, ताकि आप उनके परमानेंट कस्टमर बने रहें और उनकी दुकानदारी चलती रहे।उसे आपके सेहतमंद होने की चिंता है ही नही और एक दिन ऐसी नौबत आ जाती है कि आप बिल्कुल "कंगाल" हो जाते हैं या "काल के गाल" में समा जाते हैं। "जहां डॉक्टर का काम ख़त्म हो जाता है वहां से मेरा काम शुरू होता है।" यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को बताए गए तरीक़े और समय तक लगातार सेवन करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। सैंकड़ों साल का इतिहास उठा कर देखेंगे तो पाएंगे कि आजतक ऐलोपैथिक दवाओं से कोई भी बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक नहीं हुई है।यह एक कड़वी सच्चाई है कि मेडिकल साइंस, अंग्रेज़ी दवाओं और डॉक्टरों ने अबतक लोगों को केवल "दर्द बांटे हैं और दर्द से लड़ते-लड़ते कंगाल बनाना सिखाया है, जिसे आप ज़रूर मानेंगे। ऊपर में कुछ ख़ास बिमारियों के जो नाम मैंने गिनाए हैं वो ऐसी बिमारियां बिल्कुल नहीं हैं कि ठीक न हो, बल्कि ऐलोपैथिक डॉक्टरों और फार्मास्युटिकल कंपनियों की मिलीभगत से आपको लगातार बीमार बनाए रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं, और आपको पता भी नहीं चलता। आपको सच्चाई का पता चलता है तबतक काफी देर हो चुकी होती है।या तो आप कंगाल हो गये या स्वर्ग सिधार गए। यानी डॉक्टर आपको दो ही राह दिखाते हैं। इसलिए मैं आपको सलाह देना चाहुंगा कि अंग्रेजी दवाइयों का शत् प्रतिशत परित्याग करें। और यूनानी दवा का सेवन करके स्वस्थ जीवन जीने की कोशिश करें। "1947 से पहले हमलोग अंग्रेजों के ग़ुलाम थे, और आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी दवाओं के ग़ुलाम हो गये हैं।" किसी भी बीमारी का इलाज अंग्रेज़ी दवा से है ही नहीं, क्योंकि वो केमिकल है,नीली छतरी वाले ने हमारा शरीर नेचुरल चीज़ों से बनाया है, जिसमें कोई रोग उत्पन्न हो जाए तो नेचुरल विधि से ही ठीक हो सकता है। और यही सबसे बड़ी सच्चाई है।    मैंने जो दवा तैयार की है वो यूनानी पद्धति व यूनानी जड़ी-बूटियों से निर्मित है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। आप को ये जानकर हैरानी होगी कि ये खाने की दवा नहीं है बल्कि इस पावडर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीना पड़ता है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। HAKEEM MD ABU RIZWAN            BUMS,hons.(BU)



Last updated date 28/09/2020

लाइफस्टाइल डीज़ीज़ और ईलाज

अस्सलाम अलैकुम _ _ _ _ ! (नोट:- मेरे इस पोस्ट को ध्यान से पढ़कर ठंढे दिल से शांतिपूर्वक मनन कर के अपनी स्वास्थ्य के ऊपर विचार कर सकते है| ये आपको सोचना है कि क्या आप भी निरोग जीवन जी सकते है?) "PLEASE SHARE THIS POST to reach more and more people's, friends, relatives and others who is suffering from DIABETESE, HIGH BP, HEART PROBLEM, KIDNEY FAILURE, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAIN, MENTAL, PARKINSONS, ALZHIMER, DISEASES, PILES, CHOLESTEROL, THYROID, OBESITY, PSORIASIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS, SINUSITIS" etc. which is 100% "REVERSE" forever within few month's from only one Medicine ie. "HEALTH IN BOX ™" a unique UNANI MEDICINE made by myself. हमारे यहाँ ताज़ा यूनानी जड़ी-बूटियों से तैयार दवाओं से पुराने जटिल, असाध्य और हर उस बीमारी का मुकम्मल ईलाज किया जाता है जिसके बारे में आपको कह दिया गया कि *लाईलाज* है, या *जीवन-भर* दवा का सेवन करना ही पड़ेगा, जैसे :- 1- ब्लड शूगर या डायबिटीज 2- किडनी फेल्योर, किडनी पथरी, डायलिसिस, पेशाब की कमी या ज़्यादती व जलन, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढ़ना या घटना| 3- गाल ब्लैडर की पथरी 4- दिल से सम्बन्धित रोग, उच्च रक्त चाप, हाथ-पैर में कपकपी, झिनझिनी, जलन| 5- लीवर की खराबी, गैस्ट्रिक, बवासीर| 6- चर्म रोग जैसे सोरियासिस, दाद, एक्जीमा, सफेद दाग| 7- स्त्री-गुप्त जैसे रोग जैसे बाण्झपन, मासिकधर्म गड़बडी, लिकोरिया, फाईब्राइड, ओवैरियन सिस्ट(PCOD / PCOS)| 8- पुरुष-गुप्त रोग जैसे मर्दाना कमजोरी, धात आना, वीर्य का पतलापन| 9- हड्डी व जोड़ रोग, गठिया-वात् और 10- मानसिक रोग| DEAR DIABETESE (ब्लड शूगर) PATIENTS ध्यान से पढ़ लँ और जरुर सम्पर्क करे :- आप सभी ब्लड शूगर मरीजो केलिए अच्छी खबर है| अगर आप डायबिटीज़ रोग से ग्रस्त है, त्रस्त है, जिन्दगी से आजिज़ आ चुके है तो अब आपको चिन्ता की कोई बात नहीं| क्योंकि, अगर आपको अंग्रेज़ी दवा से फ़ायदा न मिल रहा है तो कोई बात नहीं, और सच मानिए ऐलोपैथ दवा से उलटा असर होता ही है, यानि मर्ज़ बढ़ता गया जूं-जूं दवा की| ब्लड शूगर चाहे जितना भी पुराना हो, आपको केवल मेरा *डाइट प्लान* और एक ही *यूनानी दवा* (HEALTH IN BOX) का सेवन करना पड़ेगा| शत प्रतिशत् परिणाम अवश्य मिलेगा, पहले ही सप्ताह में परिणाम मिलेगा| 1_3 वर्ष के डायबिटीक मरिज को तो तीसरे-चौथे दिन ही परिणाम मिलेगा| वो अंग्रेज़ी दवा छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे| 10 वर्ष के भुग्तभोगी तीसरे सप्ताह में अपने परिणाम अवश्य देख पायेंगे| मेरी खुद की बनाई दवा और कुछ *डाइट प्लान* का अनुसरण करके, सख्ती से अमल करके आप न केवल डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारी से हमेशा केलिए छुटकारा पाईएगा, बल्कि कई दूसरी जटिल बीमारियों जैसे - हड्डो व जोड़ रोग, किडनी फेल्योर, डायलिसीस, दिल की बीमारी, कोलेस्ट्रौल, थाईराइड और इन जैसी बीमारियो से हमेशा हमेशा केलिए छुटकारा पा सकते है| एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात नोट कर लिजीए :- *आज़दी से पहले हमलोग अंग्रेज़ी हुकूमत के गुलाम थे, और आज़ाद हुए तो *अंग्रेज़ी दवा* के गुलाम बन कर रह गये|* इसलिए आपसे अनुरोध है कि ऊपर लिखी बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते है तो अवश्य सम्पर्क करें और *दवा रहित जीवन* की ख़ुशहाल पारी की शुरुआत करें| अब से अंग्रेजी दवा का इस्तेमाल मत करना बल्की हमेशा यूनानी दवा का ही इस्तेमाल किया करें| क्योंकि इसी यूनानी दवा में हर बीमारी का मुकम्मल ईलाज मौजूद है| यूनानी दवा का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है| अगर फ़ायदा न हो तो नुक़सान भी बिल्कल नहीं होगा| कैसी भी बीमारी क्यों न हो, बड़ी से बड़ी बीमारी, जटिल व पेचीदा, पुरानी से पुरानी बिमारी। यानी हर किस्म की बीमारी केलिए ये यूनानी दवा बेहद कारगर होते है| इसलिये याद रखिए, कि किसी भी ऐसी बीमारी में आप अगर मुब्तला हो गये हों जिसको ऐलोपैथ वाले उसके लाईलाज या कभी भी ठीक न होने का ठप्पा लगा दिया हो तो आप से नम्र निवेदन है कि बिल्कल निराश न हों| आप उन ऐलोपैथ वालों की सारी बातों को एक बुरे सपने की तरह भूल जाईए| चुपचाप एक समझदार ईन्सान की तरह, एक बेहतरीन और क़ाबिल, डिग्रीधारी हकीम( जिसकी डिग्री देखिये कि *बी यू एम एस* ही हो|) से मिलिए। एकबार जाकर उससे मिलिये, और अपनी व्यथा, दु:ख और सारी तकलीफ़ उसे बताईए| वहाँ वो आपका बेहतर ईलाज करेंगे| एक बात जो आपको अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि आप उस हकीम के पास तब पहुचे हैं जब आपकी बीमारी या तो काफी पुरानी हो चुकी है या जटिल सूरत ईख़्तियार कर चुकी है, तो इस परिस्थिति में हकीम साहब का उपचार काफी लम्बा चलने वाला है| यूनानी पैथी में जब कोई हकीम आपका ईलाज करता है तो वो सारी दवाये खुद से बनाकर देगा| अगर ऐसा नहीं हो तो आप अवश्य ही किसी *झोलाछाप हकीम* के पास चले गये हो| आजकल लोग ब्राण्ड ढूंढते है| यही यूनानी दवा निर्माताओ की असीम कृपा से हमारे आसपास कुकुरमुत्ते और कीड़े मकोड़ों जैसे *झोलाछाप हकीम* हकीम पैदा हो गये| जिसके कारण इस पैथी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है|क्योंकि ये जाहिल झोलाछाप जो ख़ुद को विशेष माहिर हकीम मानते हुए लोगों को अपनी लच्छेदार और ख़ुशामदाना बातों से अपने जाल में फांसते और रोग ठीक करने की गारण्टी देकर मनमाना मोटी रकम ये कहकर लेते है कि वो खुद से सभी दवा बनाकर देंगे| और फिर किसी यूनानी कम्पनी की दवा लाकर पैकिंग बदलकर आपको थमा देते है| आप किसी भी हकीम के पास चले जाएँ वो आपको जवारिश या माजून या इतरीफ़ल ही बना कर देगा ।बेचारा मरीज़ मरता क्या न करे उसको बड़े ही अक़ीदे और भारोसे के साथ खाना शुरू करता है। 1 2 3 4 माह खाने के बावजुद बीमारी ठीक नहीं हो पाती, जानते हैं क्यों ? मैं बाताता हूँ आपको। किसी भी जवारिश, माजून या इतरीफ़ल बनाने के लिए कई तरह की दवाओं को मिलाकर पहले उसका powder बानाया जाता है , फिर उसमें 3 गुना क़वाम (जो गुड़ , चीनी या मिश्री का होता है ) मिलाया जाता है ।इस तरह अगर 100 ग्राम दवा का माजून , जवारिश या इतरीफ़ल 400 ग्राम बनकर तैयार होता है ।यहीं पर ये हकीम या UNANI दवा कंपनी बेवकूफ बनाने का खेल खेलते हैं। अब देखिये, कैसे बेवकूफ बनते हैं आपलोग ! दवा जो आपको चाहिए वो तो 100 ग्राम चुरण ही है, ज़िसका खुराक मेरे हिसाब से 5-5 ग्राम ( यानि 1 दिन में 10 ग्राम ) 10 दिन का ही है। लेकिन इसी 10 दिन की दवा को माजून जवारिश या इतरीफ़ल बनाकार 40 दिनो का किया गया। मतलब ये कि 10 दिन की दवा आप 40 दिन में खा रहे हैं ।ऐसे में आपको असल ख़ुराक का चौथाई हिस्सा दिया जा रहा है ।इस तरह तो बीमारी कभी भी ठीक नहीं होनेवाली है ।जैसे कि आपकी खुराक 10 रोटी की हो और 2 रोटी ही खाने को दिया जाए । हकीम जालीनुस ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में सिर्फ एक जवारिश "जवारिश जालीनुस" बना पाया । लेकिन आज के हमारे क़ाबिल हकीम हज़रात सैंकड़ों माजून जवारिश वगैरह बना कर रख छोड़े हैं और UNANI कंपनी वाले उन नुसखों को लेकर अजब ग़ज़ब दावे वाली लेवल लगा कर बाजार में बेच रहे हैं। अजीब बात ये है कि दवाओं का मिज़ाज का कोई लिहाज किये बिना ये दवायें हर तरह के मर्ज में हर किसी को इस्तेमाल कराये जाते हैं। जबकी इंसानी मिज़ाज 4 तरह के होते हैं, और दवाओं के मिज़ाज भी 4 ही तरह के होते हैं ।अब अगर गर्म मिज़ाज आदमी को गर्म तासीर वाली दवा ( जो किसी ब्रांड का भी है ) दी जाए तो क्या फ़ायेदा करेगा ? आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कोई भी हकीम ऐसा नहीं मिलता जो ख़ुद से दवा बनाते हो ।यही वजह है की आजकल झोलाछाप हाकीमों की चांदी हो गयी है। और बेचारे भोले-भाले मरीज़ ठगी का शिकार हो रहे हैं ।ऊपर से सभी दवा कंपनी वाले अपने product की पुस्तिका भी देते हैं जिसमे लच्छेदार भाषा में अजब ग़ज़ब बातें दवाओं के बारे में बाताये जाते हैं ।भ्रामक और भड़कीले भाषा का ऐसा प्रयोग होता है कि पूछिये मत।उसे पढ़कर झोलाछाप खुद को माहिर हकीम समझते हैं।और अपनी इन्हीं आधी-अधुरी जानकारी के बल बूते भोली-भाली जनता को लूटने का धन्धा शुरू करके अपनी जेब गर्म करके मालामाल बनते हैं। और इस UNANI चिकित्सा पद्धति को बादनाम करने पर आमादा रहते है| आपका शुमचिन्तक HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 28/09/2020

"لائف سٹائل ڈیزیزیز اور علاج...!"

"آپکو کوٸی بھی لاعلاج بیماری یا دیگر مھلک امراض یا پرانی تکلیف و پریشانی رھتی ھو تو ضرور از ضرور رابطہ کریں۔" "پوسٹ کو سنجیدگی کے ساتھ پڑھیں,پھر آپکو مجھ سے کچھ بھی پوچھ تاچھ کرنے یا تحقیق کرنے کی ضرورت ھی نھیں پڑیگی۔اور نیچے درج پتے پر پہنچ کر اپنا مکمل علاج کرالیں اور پھر خوشحال اور صحتمند زندگی کا لطف اٹھاتے رھیں۔" نیچے لکھی چند بیماریاں جس کو ھم لوگ "LIFESTYLE DISEASE" کے نام سے جانتے ھیں. اسطرح کی سارے امراض کا مکمل علاج %100 ممکن ھے,وہ بھی صرف اور صرف ایک ھی ”یونانی دوا“ سے۔کیونکہ ساری بیماریاں”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے درمیان گڑبڑ کیوجہ سے ھی وجود میں آتی ھیں، مگر جسم کے مختلف اعضاّ کی مناسبت سے اسکا نام دے دیا جاتا ھے۔لیکن سارے امراض ”DIABETESE“ کی بدلی ھوٸی شکل ھی ھے۔ ”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے بیچ میں جب تک تال میل صحیح ھے تب تک ھم صحتمند رہ پاتے ھیں۔یھی ایک سب سے بڑی سچاٸی ھے جسے سینکڑوں سالوں سے ھملوگوں سے چھپاٸی گٸی ھے ان بڑی بڑی ”PHARMACEUTICALS COMPANIES“ کی جانب سے۔تاکہ وہ اپنا بزنس چلا بڑھا سکیں۔ھم لوگوں کو ڈرایا گیا ھے ھمیشہ سے جسے ”DISEASE MONGERING“ یعنی ”خوف کا کاروبار“ کہتے ھیں،اور اسکا فاٸدہ ھم سب کو الو بناکر اُنکے ذریعہ اٹھایا جاتا رھا ھے۔ DIABETESE,HIGH BP, CHOLESTEROL, THYROID, ANY TYPES OF VIRAL DISEASESES:- "DENGUE, H1N1, SWINE FLUE, CHIKANGUNIA, HIV-AIDS" وغیرہ امراض کی ساری سچاٸی اور حقیقت اب دنیا کے سامنے آ چکی ھےجس کو ھملوگ ”LIFESTYLE DISEASE“ کے نام سے جانتے ھیں۔اور اپنی اس بات کو کسی بھی منچ پر سب کے سامنےثابت کر سکتا ھوں کہ تمام امراض پوری طرح سے ھمیشہ کیلٸے ”REVERSE“ ھو جاتی ھیں جس کیلٸے زندگی بھر "ALLOPATHIC MEDICINES" کھلایا جاتا ھے،یعنی تاحیات مریض بناکر رکھا جاتا ھے۔ضرورت ھے صرف اور صرف عوام، جنتا، سماج، سوساٸٹی کے جاگنے- جگانے کی۔ آگے آٸیے! اس عوامی اور سماجی بیداری مھم کا حصہ بنٸے جسے "DISEASE FREE SOCIETY CAMPAIGN" کا نام دیا گیا ھے۔ تمام امراض ایک متعین اوقات مں بالکل REVERSE ھو جاتی ھیں۔ ::::::::::::::::::::::::::::::::: 3-4 MONTHS -DIABETES HIGH B P,HIGH CHOLESTEROL,INTESTINAL DISORDER,THYROID. 4-6 MONTH - ARTHRITIS,KIDNEY DYSFUNCTION, OBESITY (5 kg/ month), LIVER DISORDER,HEART DISEASES. 6 MONTHS - ASTHMA 9 MONTHS - SKIN DISORDER, ADVANCE STAGE OF CANCER. ::::::::::::::::::::::::::::::::: DEAR FRIEND ! جو واحد "UNANI MEDICINE“ میں دیتا ھوں ، اور جو باتیں بتاتا ھوں ، وہ ساری دواٶں سے بالکل الگ ھے۔الگ اس معنیٰ میں کہ تمام امراض کیلٸے یہی "ایک دوا" کافی ھے۔ اسکو ایک مقررہ وقت تک ھی استعمال کرنا پڑتا ھے۔اسکی شروعات کے دن سے ھی ھر قسم کی دواٶں کو کنارے رکھ دینا پڑتا ھے۔ لوگوں کو بالکل عجوبہ سا لگتا ھے، کیونکہ ”ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC“ والوں نے اتنا زیادہ پراپیگنڈہ پھیلایا ھوا ھے، اور ”UNANI MEDICINES“ کے بارے میں لوگوں کے ذہن و دل میں ایسی ایسی غلط فہمیاں ڈال دی گٸیں ھیں کہ واقعی عجوبہ ھی لگتا ھے۔اسی لئے لوگوں کی ساری غلط فہمیاں دور کرنے اور ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کی حقیقت سامنے رکھنے، بتانےاور ان کی سازشوں کا بھانڈہ پھوڑنے میں 3-4 گھنٹے لگ جاتے ھیں۔سارا کچا چٹھہ کھول کر جب تک نہیں بتایا جاٸے تو کسی ایک کو بھی یقین نہیں ھوتا۔ ”DIABETESE“ اور دیگر سبھی قسم کی امراض یعنی”LIFESTYLE DISEASES“ کی”ALLOPATHIC MEDICINES“ پہلے دن سے ہی چھوٹ جاتی ھے، اور پھر ھیشہ کیلٸے۔مستقبل میں پھر کبھی اس کی ضرورت بھی نہیں پڑیگی۔ ان شاء اللہ۔ آج تک لوگوں کو ”PHARMACEUTICAL COMPANIES,ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC HOMEOPATHIC“ والے تو صرف عوام الناس کو بیوقوف ھی بناتی آ رھی ھیں۔ یہ لوگ ان کمپنیوں کے ایجنٹ کے طور پر کام کرتے ھیں جسکے بدلے میں خطیر رقم بطور کمیشن اور انعام ملتا ھے۔مگر اب بس! ”DIABETESE“ یا کسی بھی ”LIFESTYLE DISEASES“ کے ھونے کے اسباب کو نظر انداز کیا جاتا رھا ھےتاکہ یہ، اور اس طرح کی تمام بیماریوں میں زندگی بھر ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کھلاتے رھیں اور ”PERMANENT CUSTOMER“ بنا کر لوٹتے رھیں۔ میں جو صرف "ایک ھی دوا" ھر امراض کے لٸے دیتا ھوں, اسکو استعمال کرتے ھی پہلے روز سے ھی اپنا اثر دکھانے لگتی ھے۔ ”ALLOPATHIC,UNANI,AYURVEDIC اور HOMEOPATHIC MEDICINES“ چھوڑنا پڑتا ھے ھمیشہ کے لٸے۔تین ماہ بعد میری ”UNANI MEDICINES“ بھی بند ھو جاتی ھے، ان شاء اللہ۔ نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔ * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔ * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250 گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی صبح شام استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف 3000/- روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔ * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔ ............................ HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 28/09/2020

"دودھ کا سفید سچ"

1: - موٹاپا کا سفید سچ "اس نوعیت کے سب سے بڑے مطالعے میں 9 سے 14 سال کی عمر میں 12،000 سے زائد بچوں کا تجزیہ کیا گیا۔ اس سے معلوم ہوا ہے کہ وہ جتنا زیادہ دودھ پیتا ہے ، اتنا ہی بھاری ہوتا ہے۔" - آرکائیوز آف پیڈیاٹریکس اینڈ ایڈولیسنٹ میڈیسن (2005) 2: - چھاتی کے کینسر کا سفید سچ۔ "ہارورڈ میڈیکل اسکول کے چھاتی کے کینسر کے خطرے اور غذا کے بارے میں 90،000 قبل مینوپاوزل خواتین میں شامل ایک مطالعہ میں پوری دودھ اور دودھ کی بنی اشیاء سے کینسر کا تعلق دکھایا گیا ہے۔".   - جرنل آف نیشنل کینسر انسٹی ٹیوٹ (2003) 3: - دودھ کی سب سے زیادہ مقدار میں خواتین کا سفید سچ ڈنمارک ، سویڈن اور سوئٹزرلینڈ میں رحم کے کینسر کی شرح سب سے زیادہ ہے۔ ان کے فی کس دودھ کی کھپت بھی دنیا میں سب سے زیادہ ہے۔ امریکن جرنل آف ایپیڈیمولوجی (1989) 4: - سفید سچ بذریعہ ہپپوکریٹس (460-315 B.C.E) "گائے کا دودھ جلد کی خارشوں اور گیسٹرک کی پریشانیوں کا سبب بن سکتا ہے۔" ۔ پیڈیاٹرک الرجی (1951) 5: - سفید سچائی از ایف ڈی اے۔ فوڈ اینڈ ڈرگ ایڈمنسٹریشن نے اپنے ’صحت مند دل کے لئے کھائیے‘ بروشر میں بتایا ہے کہ ، "کچھ چربی دل کے امراض کا زیادہ امکان رکھتے ہیں۔ یہ چربی عام طور پر جانوروں جیسے گوشت ، دودھ ، پنیر اور مکھن کے کھانے میں پائی جاتی ہیں۔" - Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6: - دل کی بیماری کا سفید سچ۔ "7 ممالک سے متعلق ایک تحقیق میں بتایا گیا کہ جیسے جیسے دودھ کی فراہمی میں اضافہ ہوتا گیا ، ویسے ویسے دل کی بیماریوں سے اموات کے واقعات میں بھی اضافہ ہوا۔" انٹرنیشنل جرنل آف کارڈیالوجی (1994) 7: - دودھ سب سے کم استعمال کرنے والے ممالک کا۔ سفید سچ "کم کیلشیئم غذا والے معاشروں اور ڈیری کی کھپت کے صرف تھوڑے حصے میں ہڈیوں کے ٹوٹنے کا خطرہ کم ہوتا ہے۔ چین ، جاپان ، ویتنام اور تھائی لینڈ میں ڈیری مصنوعات غذائی اجزا نہیں ہیں۔ پھر بھی ، ان ممالک کے باشندوں کی ہڈیوں کے ٹوٹنے کی شرح سب سے کم ہے۔ "- امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (2001) 8: - انسولین منحصر ذیابیطس کا سفید سچ (قسم اول) "خاص طور پر بچوں کے ذریعہ گائے کا دودھ زیادہ سے زیادہ کھایا جاتا ہے۔ ذیابیطس کی قسم I کے واقعات زیادہ ہیں۔ مثال کے طور پر ، فن لینڈ میں دنیا میں دودھ کی مصنوعات میں سب سے زیادہ مقدار پائی جاتی ہے۔ دلچسپ بات یہ ہے کہ اس ملک میں انسولین پر منحصر ذیابیطس کی بھی دنیا میں سب سے زیادہ شرح ہے جو ہر 1000 بچوں میں سے 40 پر اثر انداز ہوتی ہے۔ "- امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1990) 9: - آٹزم کا سفید سچ۔ "آٹسٹک بچوں میں خون اور پیشاب دونوں میں کثرت سے افیم پیپٹائڈ ہوتے ہیں۔" - امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1990) 10: - بچوں کے کولائٹس کا سفید سچ۔ "یہ دیکھا گیا تھا کہ کھانے سے الرجک ردعمل 2 سال سے کم عمر کے بچوں میں کولائٹس کا سبب تھا۔ گائے کا دودھ سب سے عام مجرم تھا۔ اسے کھانے سے باہر رکھنے کے بعد ، شیر خوار بچے بالکل صحت یاب ہو گئے۔" - بچپن میں امراض کے محفوظ شدہ دستاویزات (1984) 11: - ہمارے اجداد کا سفید سچ "دودھ سے پہلے والے دور میں رہنے والے ہمارے آباواجداد کی ہڈیوں کا جائزہ لینے کے بعد ، ہمیں مضبوط فریکچر مزاحم ہڈیاں ملی ہیں۔" - ارتقاء حیاتیات ، کولوراڈو اسٹیٹ یونیورسٹی (2002) 12: - ہڈی صحت کا سفید سچ "اس کے کوئی حتمی ثبوت موجود نہیں ہیں کہ گائے کا دودھ انسانوں میں مضبوط ہڈیاں بناتا ہے ، اس کے برعکس؛ اعداد و شمار سے پتہ چلتا ہے کہ اس سے ہڈیوں کے ٹوٹنے کو فروغ ملتا ہے۔" - پیڈیاٹرکس (2005) 13: - برطانوی اشتہاری معیارات اتھارٹی کے ذریعہ سفید سچ "اکتوبر 2005 میں ، برطانوی اشتہاری معیارات اتھارٹی نے نیسلے ہیلتھ نیوٹریشن کو برطانیہ میں اپنے اشتہارات واپس لینے پر مجبور کیا ، جس میں کہا گیا تھا کہ دودھ" صحت مند ہڈیوں کے لئے ضروری ہے۔ " - یوکے ایڈورٹائزنگ اسٹینڈرڈ اتھارٹی (13 اکتوبر ، 2005) 14: - امریکی حکومت کی طرف سے سفید سچ نے سائنسی پینل کی رپورٹ مقرر کی "دودھ کو اسپورٹس ڈرنک کے طور پر نہیں سمجھا جاسکتا ، خاص طور پر آسٹیوپوروسس کی روک تھام نہیں کرتا ہے ، اور یہ امراض قلب اور کینسر میں بھی کردار ادا کرسکتا ہے۔" فیملی پریکٹس نیوز (5 دسمبر ، 2001) 15: - سوئس وفاقی وزارت صحت کی طرف سے سفید سچ "دودھ کی صنعت میڈیکل ثبوت فراہم کرنے میں ناکام رہی ہے جس میں یہ دعویٰ کیا جاتا ہے کہ ، دودھ میں آسٹیوپوروسس کے خلاف روک تھام کے اثرات ہیں۔" اسپرنگ ، ڈاکٹروں کی ذمہ داری کے لئے کمیٹی (2001) 16: - دودھ کے بارے میں سفید سچائی سب سے بڑا کبھی کا مطالعہ "ہارورڈ یونیورسٹی میں پچھتر ہزار خواتین پر کی جانے والی تحقیق سے یہ بات سامنے آئی ہے کہ دودھ پینے والوں میں سب سے زیادہ ہڈیوں کے فریکچر ہونے کا خطرہ ان لوگوں کے مقابلے میں ہوتا ہے جو بہت کم پیتے ہیں یا دودھ نہیں پیتے ہیں۔" - 12 سالہ امکانی مطالعہ امریکی جرنل آف پبلک ہیلتھ (1997) ) 17: - بانجھ پن کا سفید سچ "گائے کے دودھ کے استعمال اور خواتین میں بانجھ پن کے مابین ایک مستقل ارتباط پایا جاتا ہے۔ محققین کو خاص طور پر پتہ چلا ہے کہ جن ممالک میں سب سے زیادہ دودھ کی مصنوعات استعمال کی جارہی ہیں ان میں بانجھ پن کی شرح بہت زیادہ ہے ، اور زندگی میں پہلے کی صورتحال کے ساتھ ہی۔ " امریکن جرنل آف ایپیڈیمولوجی (2005) 18: - ڈیری گائے کے ذبح کا سفید سچ "ماسٹائٹس یا گائے کے آوزار کا انفیکشن ڈیری گائے کے پہلے سے پختہ ذبح کی بنیادی وجہ ہے ، اور موت کا دوسرا عام سبب ہے۔" -یو ایس ڈی اے (اگست ، 2004) 19: - ہڈی صحت کا سفید سچ "50 مطالعات کا تجزیہ ، جس پر امریکی ڈیری انٹیک کی سفارش پر مبنی ہے۔ ڈیری یا غذائی کیلشیم کی مقدار اور ہڈیوں کی صحت کے پیمائش کے مابین کوئی تعلق نہیں دکھاتا ہے۔" - کارنیل یونیورسٹی ، پیڈیاٹریکس (2005) 20: - دودھ پروپیگنڈا کا سفید سچ "ڈیری انڈسٹری نے دودھ کی روزانہ تین سے چار پیش کرنے کی سفارش پر لبیک کہا ، لہذا ، 2005 میں امریکی صحت اور انسانی خدمات نے ایک دن میں 50 فیصد سے 3 سرونگ (SERVING)تک سفارش کی تھی۔ وال وال اسٹریٹ جرنل (30 اگست ، 2004) 21: - کیلشیم سپلیمنٹس کا سفید سچ “کیلشیم ہڈیوں کی صحت کے لئے ضروری متعدد غذائی اجزاء میں سے ایک ہے۔ خود میں غذائیت یا اضافی کیلشیم کی کثرت نے ہڈیوں کی کثافت یا ہڈیوں کے ٹوٹنے سے حفاظت کی یقین دہانی نہیں کی ہے۔ "- ہڈی (1990) 22: - ذیابیطس کی قسم I کا سفید سچ "نوعمروں میں ذیابیطس کی قسم I اور ہڈیوں کی بیماری کی بڑی وجہ روزانہ دودھ کی مقدار ہوتی ہے۔" - جرنل آف دی امریکن اکیڈمی آف ڈرمیٹولوجی (2007) 23: - مائگرین کا سفید سچ "اولیگوانٹیجینک ڈائیٹ ٹریٹمنٹ کے دوہرے اندھے کنٹرول شدہ مقدمے کی سماعت سے یہ نتیجہ اخذ کیا گیا ہے کہ ، روزانہ ڈیری کی مقدار میں کھانے سے الرجی کا نتیجہ فوڈ الرجی کا ہے۔" لانسیٹ (5 جولائی ، 1980) 24: - بچوں میں الرجی کا سفید سچ "گائے کا دودھ اور اس سے تیار کردہ مصنوعات ، فوڈ الرجیوں میں سے ایک سب سے عام چیز ہے۔ خاص طور پر بچوں کے لئے یہ سچ ہے-" غذائیت کا جائزہ (1984) 25: - پروسٹیٹ کینسر کا سفید سچ "ڈیری پروڈکٹ اور پروسٹیٹ کینسر کے مابین ایسوسی ایشن پروسٹیٹ کینسر کے لئے مستقل غذائی پیش گوئوں میں سے ایک ہے۔" - وبائی امراضیات جائزہ (2001) 26: - پارکنسنز کی بیماری کا سفید سچ "ہارورڈ اسکول آف پبلک ہیلتھ محققین نے پایا ہے کہ ، ڈیری پروٹین کے ساتھ ساتھ ، جو لوگ ڈیری سے لییکٹوز ، کیلشیم اور وٹامن ڈی پیتے تھے ، ان میں مردوں کی نسبت پارکنسن کا مرض بڑھنے کا خطرہ 50 فیصد سے 80 فیصد زیادہ ہوتا ہے ، جنھوں نے ان غذائی اجزاء کی کم مقدار استعمال کی۔ " . "- اعصابی علوم (2003) 27: - حمل کا سفید سچ "حمل کے دوران گائے کے دودھ پر مبنی فارمولا اور دودھ کی دیگر مصنوعات سے بچنے سے بچوں میں ذیابیطس ، کان میں انفیکشن ، جلد کی جلدی ، کولک اور آئرن کی کمی کا خطرہ کم ہوسکتا ہے۔"۔ پیڈیاٹرک ریسرچ (1993) 28: - ‘روزانہ 2 گلاس دودھ’ کا سفید سچ "ان مردوں کے مقابلے میں جو دودھ نہیں پیتا ، ان مردوں کے مقابلے میں جو روزانہ 2 گلاس سے زیادہ کھاتے ہیں ، مؤخر الذکر کو پارکنسن کی بیماری کے دوبار واقعات ہوتے ہیں۔" نیورولوجی (2005) 29: - حیض کے درد کا سفید سچ عالمی شہرت یافتہ ماہر امراض چشم اور بیچنے والے مصنف ڈاکٹر کرسٹیئین نارتوپ نے متنبہ کیا ہے کہ ، "ماہواری کے درد کے علاوہ ، گائے کے دودھ کا استعمال بار بار اندام نہانی ، فائبرائڈس اور اینڈومیٹریوسیس کے درد میں اضافہ سے ہوتا ہے۔" - خواتین کا جسم ، خواتین کی حکمت (1994) 30: - دماغ کی خرابی کا سفید سچ "گائے کے دودھ کے نمونے اور نوزائیدہ فارمولے میں خطرناک طور پر اعلی سطح کی ایلومینیم پائی گئی ہے۔" جرنل آف پیڈیاٹرک گیسٹررو - انٹریولوجی اینڈ نیوٹریشن (1999) "ایلومینیم کا زہریلا میموری کی کمی ، ڈیمینشیا ، پارکنسنز کی بیماری اور الزائمر کی بیماری سے وابستہ ہے۔". دماغی تحقیق (2002) 31: - دودھ کے ہر گلاس میں ایک چمچ پیپ (PUS ) کا سفید سچ "یہ جائز ہے کہ فی لیٹر دودھ میں 7،50،000 پس سیلس (خلیات) سے زیادہ نہ ہو۔" - ڈیری سائنس جرنل (2001) 32: - بچوں میں اچانک اموات کا سفید سچ "ویکسینیشن اور گائے کا دودھ اچانک انفینٹ ڈیتھ سنڈروم (SIDS) کی بنیادی وجہ ہے۔" ۔- نیوزی لینڈ میڈیکل جرنل (1991) 33: - نوزائیدہ دمہ کا سفید سچ "دمہ کے شکار بچوں کی ایک قابل ذکر تعداد نے گائے کے دودھ سے ہونے والی الرجی کے لئے بھی مثبت جانچ کی۔ چھ ماہ یا اس سے کم عمر کے شیر خوار ، گائے کا دودھ انکے کھانے سے ختم ہونے کے بعد علامات سے راحت محسوس کرتے ہیں۔"   الرجی کے اینالس (1975) 34: - ڈائی آکسنز اور جگر / اعصابی نظام کے نقصان کا سفید سچ "صرف دودھ کی مصنوعات ہی بالغوں میں 30 فیصد ڈائی آکسین اور بچوں میں 50 فیصد نمائش کرتی ہیں۔" گرین گائیڈ (جولائی / اگست 2004) اعصابی نظام اور جگر کو نقصان پہنچانے کے نتیجے میں ڈائی آکسنز دکھائے گئے ہیں۔ ڈائی آکسن ایکشن سمٹ (2000) 35: - آنتوں سے خون بہنے کا سفید سچ "گائے کے دودھ کی وجہ سے معدے میں آنتوں میں خون کی کمی شیر خوار بچوں میں بہت عام ہے۔" - پیڈیاٹرکس کا جرنل (1974) 36: - کیلشیم سپلیمنٹس کا سفید سچ “کیلشیم سپلیمنٹس مدافعتی نظام میں سمجھوتہ کرسکتے ہیں۔ چونکہ میگنیشیم مدافعتی خلیوں کی نشوونما اور مناسب کام میں اہم کردار ادا کرتا ہے ، لہذا کیلشیم کی زیادتی سے میگنیشیم آئنوں کو بے گھر کردیا جاتا ہے ، اور ایسا کرنے سے سفید خون کے خلیات جیسے اہم مدافعتی عوامل کی افعال کو نقصان پہنچتا ہے۔" جرنل آف امریکن ڈائیٹیکس ایسوسی ایشن (1996) 37: - لوہے کی کمی کا سفید سچ "رجعت کے بعد کی خواتین میں آئرن کی برقراری میں ٪45 کی کمی واقع ہوئی ہے ، جنھیں 500 ملی گرام تک ملی ۔" - امریکی جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1991) 38: - ہڈی کے نقصان کا سفید سچ "وہ خواتین جنہوں نے جانوروں کے ذرائع سے زیادہ تر غذائی پروٹین لیا ، ان میں ہڈیوں کے گرنے کے 3 گنا زیادہ امکان اور ہپ فریکچر کے 3.7 گنا زیادہ امکانات ہیں ، ان خواتین کے مقابلے میں جنہوں نے سب سے زیادہ پروٹین سبزیوں کے ذرائع سے حاصل کی ہیں۔" امریکی جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (2001) 39: - بہتر چینی کی سفید سچ "بہتر چینی کیلشیم جذب میں مداخلت کرتی ہے ، اور اس طرح آسٹیوپوروسس کا خطرہ بڑھ جاتا ہے۔" - جرنل آف نیوٹریشن (1987) 40: - گائے پر ظلم کا سفید سچ ایک جدید / صنعتی ڈیری فارم میں ، الیکٹرانک دودھ ڈالنے والی مشین کے ذریعہ دن میں تین بار دودھ نکالا جاتا ہے۔ مشین کی طرف سے آوارہ وولٹیج کبھی کبھار گائے کو اس عمل میں ہلکا دیتی ہے جس سے خوف ، گھبراہٹ اور بعض اوقات موت بھی واقع ہوجاتی ہے۔ ڈیری فارم ہر سال سیکڑوں گائوں کو بجلی کے وولٹیج سے بھٹکنے کے لئے کھو دیتا ہے۔ " - واشنگٹن پوسٹ (9 اگست ، 1987) 41: - جانوروں پر ظلم کا سفید سچ "دودھ کے کاشت کار گائے کی دم کو گود میں رکھتے ہیں (بے ہوشی کے بغیر دم کا جوڑا سپر گرم کینچی کا جوڑا استعمال کریں) کیونکہ انہیں یقین ہے کہ جب جانور اس کی گندی منزل پر لیٹ جاتا ہے تو اس کی لمبائی کی دم خارج اور پیشاب میں گندی ہوجاتی ہے۔ گائے کا چھوٹا بچہ ممکنہ طور پر ماسٹائٹس کا باعث بنتا ہے۔ " - ڈیری سائنس جرنل (2001) 42: - خوراک کا اہرام کا سفید سچ "یو ایس ڈی اے اور محکمہ صحت اور انسانی خدمات (ایچ ایچ ایس) نے باقی دنیا کے لئے" دی فوڈ اہرام "شائع کیا ہے۔ فوڈ پرامڈ کو 2 وجوہات کی بناء پر شبہات کی نگاہ سے دیکھا جاسکتا ہے: 1. مشاورتی بورڈ کے 11 ممبروں میں سے 6 کو ڈیری انڈسٹری کے ساتھ مالی تعلقات تھے! ”2. یو ایس ڈی اے کا بنیادی مقصد صحت مند کھانے کی ترغیب دینا نہیں ، بلکہ امریکی زرعی / دودھ کی مصنوعات کو فروغ دینا ہے۔" - نیو یارک ٹائمز (7 ستمبر ، 2004) 43: - کیلشیم جذب کا سفید سچ "انسان گائے کے دودھ سے (32٪) سبزیوں سے زیادہ فیصد (٪63) کیلشیم جذب کرسکتے ہیں۔" - امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1999) 44: - دودھ کی آلودگی کا سفید سچ گائے کے ہارمونز ، اینٹی بائیوٹکس اور دیگر منشیات کی نمائش کی وجہ سے ایک گلاس دودھ میں بار بار آلودگی پائی جاتی ہے۔ ان میں سے کچھ خون کی بیماریوں ، کینسر اور انسانوں میں اموات سے منسلک ہیں۔" -ایف ڈی اے نوٹس ، ایسوسی ایٹڈ پریس (4 مارچ ، 2003) 45: - گائے کے دودھ پروٹین کا سفید سچ "گائے کے دودھ میں کم از کم 30 پروٹین ہوتے ہیں جو الرجک ردعمل کا اظہار کرسکتے ہیں۔ سب سے عام میں کیسین ، la-لیکٹاگلوبلین (BLG) ، la-lactalbodyin (ALA) ، بوائین- گلوبلین (BGG) ، اور بوائین سیرم البومین (BSA) شامل ہیں۔" - الرجی کے اینالسس (1984) 46: - دودھ کی الرجی کا سفید سچ "دودھ سے متعلق الرجی کی علامات میں جلد کی جلدی ، چھتے ، سوجن ، گھرگھراہٹ ، بھیڑ ، اسہال ، قبض ، کان میں درد ، سر درد ، جلد کی رکاوٹ ، مشترکہ سوجن ، دمہ ، السرسی کولائٹس ، درد ، دائمی تھکاوٹ ، آنتوں میں خون بہنا اور موت شامل ہیں۔" - الرجی (1996) ) 47: - دل کی بیماریوں کو تبدیل کرنے کا سفید سچ۔ "ڈبلیو ایچ او نے تحقیقات کے مقدمے کی مالی اعانت فراہم کی ،" منیکا پروجیکٹ "نے بتایا کہ ،" دودھ کی کھپت میں ، اوپر یا نیچے ، چار سے سات سال بعد ، کورونری اموات میں درست تبدیلی کی پیش گوئی کی گئی ہے۔ "- لانسیٹ (1999) 48: - ایتھروسکلروسیس کا سفید سچ۔ "بوائن زانتائن آکسیڈیس ، دودھ میں موجود ایک انزائم ، انسانی آنتوں کے ذریعے جذب ہوکر خون کے بہاؤ میں داخل ہوسکتی ہے ، جہاں یہ ایٹروسکلروٹک (دمنی سے رکاوٹ) کے گھاووں کی نشوونما کو فروغ دے سکتا ہے۔" - کلینیکل ریسرچ (1976) 49: - دودھ کا سب سے زیادہ استعمال کرنے والے ممالک کا سفید سچ "دنیا میں گائے کے دودھ ، دودھ کی مصنوعات اور کیلشیم آسٹریلیا ، نیوزی لینڈ ، شمالی امریکہ اور مغربی یورپ کے سب سے زیادہ صارفین کو بھی ہڈیوں کے ٹوٹنے کا سب سے زیادہ خطرہ ہے۔" امریکی جریدہ برائے کلینیکل غذائیت (2003) 50:-ڈاکٹروں کے درمیان غذائیت کی تعلیم کا سفید سچ "تمام دائمی بیماریوں میں سے 70 root کی جڑیں ہمارے ذریعہ کی جانے والی غذا کے انتخاب میں ہوتی ہیں ، اس کے باوجود ، طبی تعلیم کے کم از کم 5 سالوں میں زیادہ تر معالج صرف 2 گھنٹے (بہترین میں) غذائیت کی تعلیم حاصل کرتے ہیں۔"۔ غذائیت اور صحت ڈی ایچ ایچ ایس (پی ایچ ایس) اشاعت (21 جولائی ، 1999) کے بارے میں سرجن جنرل کی رپورٹ 51: - قومی تغذیہ پالیسی کا سفید سچ "ہماری قومی غذائی پالیسیاں اور ادب ، جیسا کہ اسکول میں پڑھایا جاتا ہے ، منافع خور دودھ کی صنعت سے بہت متاثر ہوتے ہیں۔ جیسا کہ شائع ہونے والی رپورٹ سے واضح ہے۔ " غذائیت اور صحت نیوز بیورو (17 جنوری ، 2002) 52: - قبض کا سفید سچ "بہت سارے مطالعات نے گائے کے دودھ کی کھپت اور قبض کے درمیان رشتہ قائم کیا ہے ، اور جب ناقص دودھ کو غذا سے ہٹا دیا جاتا ہے تو قابل ذکر بہتری آتی ہے۔" - نیو انگلینڈ جرنل آف میڈیسن (1998) 53: - ایک سے زیادہ سکلیروسیس کا سفید سچ "27 ممالک کے سروے میں یہ بات سامنے آئی ہے کہ جیسے ہی آبادی میں گائے کے دودھ کی مقدار میں اضافہ ہوتا ہے۔ اسی طرح ایک سے زیادہ سکلیروسیس کا پھیلاؤ بھی ہوا۔ " - نیورو - ایپیڈیمولوجی (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons (BU) UNANI PHYSICIAN



Last updated date 28/09/2020

"दूध का सफेद सच"

सावधान, होशियार!.........! अब होशियार हो जाइए और दूध पीना बंद कीजिए, ख़ासकर बच्चों को दूध का सेवन कराने से मना कीजिए। जिस दूध को हमलोग अमृत समझकर लगातार सेवन करते आ रहे हैं वो कितना ज़हरीला है, ये जानने के लिए मैं ने विभिन्न देशों के रिसर्च को आपके सामने पेश करने की कोशिश की है। कृपया ध्यान से पढ़ें:- 1: - मोटापा का सफेद सच "अपनी तरह के सबसे बड़े अध्ययन में 9 से 14. आयु वर्ग के 12,000 से अधिक बच्चों का विश्लेषण किया गया। यह पाया गया कि जितना अधिक दूध वे पीते थे, वे उतने ही अधिक मोटे थे।" ( बाल चिकित्सा और किशोर चिकित्सा के अभिलेखागार (2005) 2: - स्तन कैंसर का सफेद सच "90,000 पूर्व-रजोनिवृत्त महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम और आहार पर हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन ने पूरे दूध और दूध उत्पादों के लिए एक कैंसर लिंक दिखाया।"   (द जर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (2003) 3: - दूध का अधिक मात्रा में सेवन करने वाली महिलाओं का सफेद सच “डेनमार्क, स्वीडन और स्विट्जरलैंड में डिम्बग्रंथि के कैंसर की दर सबसे अधिक है। उनकी प्रति व्यक्ति दूध की खपत भी दुनिया में सबसे अधिक है। ” -अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी (1989) 4: - हिप्पोक्रेट्स द्वारा सफेद सच (460-315 ई.पू.) "गाय के दूध से त्वचा पर चकत्ते और गैस्ट्रिक की समस्या हो सकती है।" - बाल चिकित्सा एलर्जी (1951) 5: - FDA द्वारा व्हाइट ट्रुथ फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अपने ईटिंग फॉर हेल्दी हार्ट ’ब्रोशर में कहा है कि,“ कुछ वसा दिल की बीमारियों का कारण बनते हैं; ये वसा आमतौर पर जानवरों के मांस, दूध, पनीर और मक्खन जैसे भोजन में पाए जाते हैं। " - Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6: - हृदय रोग का सफेद सच "7 देशों से जुड़े एक अध्ययन से पता चला है कि जैसे-जैसे दूध की आपूर्ति बढ़ती गई, वैसे-वैसे दिल की बीमारियों से मौतें भी होती गईं।" कार्डियोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल (1994) 7: - सबसे कम दूध की खपत वाले देशों का सफेद सच “कम कैल्शियम वाले आहार और डेयरी उपभोग के केवल कुछ अंशों में अस्थि भंग होने का जोखिम कम होता है। डेयरी उत्पाद चीन, जापान, वियतनाम और थाईलैंड में आहार के स्टेपल नहीं हैं। फिर भी, इन देशों के निवासियों में अस्थि भंग की दर सबसे कम है। "- अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2001) 8: - इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज का सफेद सच (टाइप I) “विशेषकर बच्चों द्वारा गाय के दूध का अधिक सेवन किया जाता है; डायबिटीज टाइप I की घटनाएं अधिक हैं। उदाहरण के लिए, फिनलैंड में दुनिया में डेयरी उत्पादों का सबसे अधिक सेवन है। दिलचस्प बात यह है कि देश में दुनिया में हर 1000 बच्चों में से 40 को प्रभावित करने वाले इंसुलिन पर निर्भर मधुमेह की उच्चतम दर भी है। ” - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1990) 9: - आत्मकेंद्रित का सफेद सच "ऑटिस्टिक बच्चों में अक्सर रक्त और मूत्र दोनों में अफीम पेप्टाइड्स का स्तर बहुत अधिक होता है।" - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1990) 10: - शिशु कोलाइटिस का सफेद सच "यह देखा गया कि भोजन के लिए एलर्जी की प्रतिक्रिया 2 वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में कोलाइटिस का कारण थी। गाय का दूध सबसे आम अपराधी था। आहार से बाहर किए जाने के बाद, शिशु पूरी तरह से ठीक हो गए। " - अभिलेखागार बचपन में रोग (1984) 11: - हमारे पूर्वजों का श्वेत सत्य "हमारे पूर्वजों की हड्डियों की जांच करने के बाद, जो दूध से पहले के युग में रहते थे, हमें मजबूत फ्रैक्चर प्रतिरोधी हड्डियां मिलीं।" - विकासवादी जीवविज्ञान विभाग, कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (2002) 12: - अस्थि स्वास्थ्य का सफेद सच “कोई निर्णायक सबूत मौजूद नहीं है कि गाय का दूध मनुष्यों में मजबूत हड्डियों का निर्माण करता है, इसके विपरीत; डेटा से पता चलता है कि यह हड्डी फ्रैक्चर को बढ़ावा देता है। ” - बाल रोग (2005) 13: - ब्रिटिश विज्ञापन मानक प्राधिकरण द्वारा श्वेत सत्य "अक्टूबर 2005 में, ब्रिटिश विज्ञापन मानक प्राधिकरण ने नेस्ले हेल्थ न्यूट्रिशन को यूनाइटेड किंगडम में अपने विज्ञापनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया, जिसमें कहा गया था कि दूध" स्वस्थ हड्डियों के लिए आवश्यक है। " - यूके विज्ञापन मानक प्राधिकरण (13 अक्टूबर, 2005) 14: - अमेरिकी सरकार द्वारा व्हाइट ट्रुथ ने वैज्ञानिक पैनल रिपोर्ट नियुक्त की "दूध को एक स्पोर्ट्स ड्रिंक के रूप में नहीं माना जा सकता है, विशेष रूप से ऑस्टियोपोरोसिस को नहीं रोकता है, और हृदय रोग और कैंसर में भूमिका निभा सकता है।" - फैमिली प्रैक्टिस न्यूज़ (5 दिसंबर, 2001) 15: - स्विस फेडरल हेल्थ मिनिस्ट्री द्वारा व्हाइट ट्रुथ "दूध उद्योग चिकित्सा प्रमाण देने में विफल रहा है जो दावा करता है कि, दूध का ऑस्टियोपोरोसिस के खिलाफ निवारक प्रभाव है।" -सप्रिंग, फिजिशियन कमेटी फॉर रिस्पॉन्सिबल मेडिसिन (2001) 16: - दूध पर सबसे बड़ा सफेद अध्ययन द्वारा सफेद सच "सत्तर आठ हजार महिलाओं पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययन से पता चला है कि, जो लोग सबसे अधिक दूध पीते हैं, वास्तव में उन लोगों की तुलना में हड्डी फ्रैक्चर का अधिक खतरा होता है, जो बहुत कम या कोई दूध नहीं पीते हैं।" - 12 साल के संभावित अध्ययन-अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ (1997) ) 17: - बांझपन का सफेद सच “गाय के दूध की खपत और महिलाओं में बांझपन के बीच एक सुसंगत सहसंबंध देखा जाता है। शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से पाया है कि जिन देशों में सबसे अधिक दूध उत्पादों का सेवन किया जा रहा है, उनमें बांझपन की व्यापकता होती है, जो जीवन में पहले की संभावना है। " - अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी (2005) 18: - डेयरी गायों के वध का सफेद सच "मास्टिटिस या गाय के ऊदबिलाव का संक्रमण डेयरी गायों के पूर्व-वध का प्राथमिक कारण है, और मृत्यु का दूसरा सबसे आम कारण है।" -यूएसडीए (अगस्त, 2004) 19: - अस्थि स्वास्थ्य का सफेद सच “50 अध्ययनों का विश्लेषण, जिस पर अमेरिकी डेयरी सेवन की सिफारिश आधारित है; डेयरी या आहार कैल्शियम के सेवन और हड्डी के स्वास्थ्य को मापने के बीच कोई संबंध नहीं दिखाता है। - कॉर्नेल विश्वविद्यालय, बाल रोग (2005) 20: - दूध प्रचार का सफेद सच "डेयरी उद्योग ने प्रति दिन तीन से चार सर्विंग्स की बढ़ी हुई सिफारिश की पैरवी की, इसलिए 2005 में अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा ने एक दिन में 50% से 3 सर्विंग की सिफारिश की।" -वेल स्ट्रीट जर्नल (30 अगस्त, 2004) 21: - कैल्शियम सप्लीमेंट्स का सफेद सच “कैल्शियम हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कई पोषक तत्वों में से एक है। अपने आप में आहार या पूरक कैल्शियम की एक बहुतायत हड्डी अस्थिभंग से अधिक हड्डियों के घनत्व या सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए नहीं दिखाया गया है। "- हड्डी (1990)) 22: - डायबिटीज टाइप I का सफ़ेद सच "मधुमेह के प्रमुख कारण I और किशोरों में हड्डियों की बीमारी दैनिक डेयरी सेवन है।" - जर्नल ऑफ़ द अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ डर्मेट (2007) 23: - माइग्रेन का सफेद सच "ओलिगोएन्जेनजेनिक डाइट ट्रीटमेंट के एक डबल ब्लाइंड नियंत्रित परीक्षण ने निष्कर्ष निकाला कि, माइग्रेन दैनिक डेयरी सेवन द्वारा प्रमुख रूप से खाद्य एलर्जी का परिणाम है।" लांसेट (5 जुलाई, 1980) 24: - बच्चों के बीच एलर्जी का सफेद सच “गाय का दूध और उससे बने उत्पाद, सबसे आम खाद्य एलर्जी में से एक हैं। यह बच्चों के लिए विशेष रूप से सच है। ” - न्यूट्रिशन रिव्यू (1984) 25: - प्रोस्टेट कैंसर का सफेद सच "डेयरी उत्पादों और प्रोस्टेट कैंसर के बीच संबंध प्रोस्टेट कैंसर के लिए सबसे सुसंगत आहार भविष्यवाणियों में से एक है।" - महामारी विज्ञान समीक्षा (2001) 26: - पार्किंसंस रोग का सफेद सच "हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ रिसर्चर्स ने पाया कि जिन पुरुषों ने डेयरी प्रोटीन के साथ-साथ डेयरी से लैक्टोज, कैल्शियम और विटामिन-डी का सेवन किया, उनमें पार्किंसंस रोग के विकास का 50% से 80% अधिक जोखिम था, उन पुरुषों की तुलना में जिन्होंने इन पोषक तत्वों का कम से कम मात्रा में सेवन किया था। "- एन्यूरल ऑफ़ न्यूरोलॉजी (2003) 27: - गर्भावस्था का सफेद सच "गर्भावस्था के दौरान गाय के दूध आधारित सूत्र और अन्य डेयरी उत्पादों के सेवन से किशोर मधुमेह, कान के संक्रमण, त्वचा पर चकत्ते, शूल और लोहे की कमी के जोखिम को कम किया जा सकता है।" - बाल चिकित्सा अनुसंधान (1993) 28: - प्रति दिन Glass 2 गिलास दूध का सफेद सच "उन पुरुषों की तुलना में जो बिना दूध पीते हैं, उन पुरुषों की तुलना में, जो प्रति दिन 2 गिलास से अधिक का सेवन करते हैं, बाद में पार्किंसंस रोग की घटना दोगुनी थी।" -नियूरोलॉजी (2005) 29: - मासिक धर्म ऐंठन का सफेद सच विश्व प्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ और सबसे ज्यादा बिकने वाले लेखक डॉ। क्रिस्टियन नॉर्थोप का कहना है कि, "मासिक धर्म में ऐंठन के अलावा, गाय के दूध की खपत आवर्तक योनिशोथ, फाइब्रॉएड और एंडोमेट्रियोसिस से बढ़े हुए दर्द के साथ जुड़ी हुई है।" - महिला शरीर, महिला बुद्धि (1994) 30: - मस्तिष्क विकार का सफेद सच "गाय के दूध के नमूने और शिशु फार्मूला में एल्यूमीनियम के खतरनाक उच्च स्तर पाए गए।" -जूरनल ऑफ पीडियाट्रिक गैस्ट्रो-एंटरोलॉजी एंड न्यूट्रिशन (1999) "एल्युमीनियम विषाक्तता स्मृति हानि, मनोभ्रंश, पार्किंसंस रोग और अल्जाइमर रोग से जुड़ी हुई है।" ब्रेन रिसर्च (2002) 31: - दूध के हर गिलास में एक चम्मच मवाद - एक सफ़ेद सच "दूध की प्रति मिलीलीटर 7,50,000 से अधिक मवाद (कोशिकाएं) होना कानूनी नहीं है।" - जर्नल ऑफ़ डेयरी साइंस (2001) 32: - शिशुओं में अचानक मौत का सफेद सच "टीकाकरण और गाय का दूध अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का प्राथमिक कारण है।" - न्यूजीलैंड मेडिकल जर्नल (1991) 33: - शिशु अस्थमा का सफेद सच “गाय के दूध से एलर्जी के लिए अस्थमा के साथ शिशुओं की एक महत्वपूर्ण संख्या भी सकारात्मक है। छह महीने या उससे कम उम्र के शिशुओं को, गाय के दूध को उनके आहार से खत्म करने के बाद लक्षणों से राहत मिलती है। ” एनल्स ऑफ एलर्जी (1975) 34: - डाइऑक्सिन और लिवर / तंत्रिका तंत्र की क्षति का सफेद सच "अकेले डेयरी उत्पाद वयस्कों में डायोक्सिन के 30% और बच्चों में 50% जोखिम के लिए जिम्मेदार हैं।" ग्रीन गाइड (जुलाई / अगस्त 2004) "डाइऑक्सिन को तंत्रिका तंत्र और यकृत की क्षति के परिणामस्वरूप दिखाया गया है।" डाइऑक्सिन एक्शन समिट (2000) 35: - आंतों में रक्तस्राव का सफेद सच "शिशुओं में गाय के दूध से होने वाला गैस्ट्रो-इन्टेस्टिनल ब्लड लॉस काफी आम है।" - जर्नल ऑफ़ पीडियाट्रिक्स (1974) 36: - कैल्शियम सप्लीमेंट्स का सफेद सच “कैल्शियम की खुराक प्रतिरक्षा प्रणाली से समझौता कर सकती है। चूंकि मैग्नीशियम प्रतिरक्षा कोशिकाओं के विकास और समुचित कार्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कैल्शियम की अधिकता मैग्नीशियम आयनों को विस्थापित करती है, और ऐसा करने में महत्वपूर्ण प्रतिरक्षा कारकों जैसे सफेद रक्त कोशिकाओं के कार्य को बाधित करता है। " जर्नल ऑफ़ अमेरिकन डाइटेटिक्स एसोसिएशन (1996) 37: - आयरन की कमी का सफेद सच "रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाओं में लोहे की अवधारण में 45% की कमी आई, जिन्हें 500 मिलीग्राम पूरक दिया गया - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1991) 38: - अस्थि हानि का श्वेत सत्य "जो महिलाएं पशु स्रोतों से सबसे अधिक आहार प्रोटीन प्राप्त करती हैं, उन महिलाओं की तुलना में 3 गुना अधिक और हिप फ्रैक्चर की 3.7 गुना अधिक संभावना होती है, उन महिलाओं की तुलना में जो सब्जी स्रोतों से अपने अधिकांश प्रोटीन प्राप्त करती हैं।" अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2001) 39: - परिष्कृत चीनी का सफेद सच "परिष्कृत चीनी कैल्शियम अवशोषण में हस्तक्षेप करती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।" - जर्नल ऑफ़ न्यूट्रिशन (1987) 40: - गायों पर क्रूरता का सफेद सच “एक आधुनिक / औद्योगिक डेयरी फार्म में, इलेक्ट्रॉनिक दूध देने वाली मशीन द्वारा दिन में तीन बार दूध निकाला जाता है। मशीन से आवारा वोल्टेज कभी-कभी गायों को इस प्रक्रिया में झटका देता है, जिससे डर, घबराहट और कभी-कभी मौत भी हो जाती है। डेयरी फार्म हर साल कई सैकड़ों गायों को बिजली के वोल्टेज से भटका देता है। "- वाशिंगटन पोस्ट (9 अगस्त, 1987) 41: - पशु क्रूरता का सफेद सच "डेयरी किसानों ने गाय की पूंछ को काट दिया (सुपर गर्म कैंची की एक जोड़ी का उपयोग करके संज्ञाहरण के बिना पूंछ को काट दिया) क्योंकि वे मानते हैं कि एक पूरी लंबाई की पूंछ मल और मूत्र में भिगो सकती है जब जानवर अपनी गंदी मंजिल पर लेट जाता है और संक्रमित हो सकता है गाय का मूत्र संभवतः मास्टिटिस के लिए अग्रणी है। "- जर्नल ऑफ़ डेयरी साइंस (2001) 42: - खाद्य पिरामिड का सफेद सच "USDA और स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग (HHS) ने शेष दुनिया के लिए" द फूड पिरामिड "प्रकाशित किया है। खाद्य पिरामिड को 2 कारणों की वजह से संदेह की निगाह से देखा जा सकता है: 1. सलाहकार बोर्ड के 11 सदस्यों में से छह का डेयरी उद्योग के साथ वित्तीय संबंध था! "2. यूएसडीए का प्राथमिक उद्देश्य स्वास्थ्यवर्धक भोजन को प्रोत्साहित करना नहीं है, बल्कि अमेरिकी कृषि / डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देना है। - न्यूयॉर्क टाइम्स (7 वें सितंबर, 2004) 43: - कैल्शियम अवशोषण का सफेद सच "मनुष्य गाय के दूध (32%) की तुलना में सब्जियों से कैल्शियम का अधिक प्रतिशत (63%) अवशोषित कर सकता है।" - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1994) 44: - दूध के प्रदूषण का सफेद सच “गाय के हार्मोन, एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाओं के संपर्क में आने के कारण एक गिलास दूध में लगातार संदूषण पाया जाता है। इनमें से कुछ को मनुष्यों में रक्त रोगों, कैंसर और मौतों से जोड़ा गया है। ” -एफडीए नोटिस, एसोसिएटेड प्रेस (4 मार्च, 2003) 45: - गाय के दूध के प्रोटीन का सफेद सच "गाय के दूध में कम से कम 30 प्रोटीन होते हैं जो एक एलर्जी प्रतिक्रिया कर सकते हैं। सबसे आम कैसिइन, β-lactaglobulin (BLG), α-lactalbumin (ALA), गोजातीय glo-globulin (BGG), और गोजातीय सीरम एल्ब्यूमिन (BSA) शामिल हैं। ” - एनल्स ऑफ एलर्जी (1984) 46: - दूध एलर्जी का सफेद सच "दूध एलर्जी के लक्षणों में त्वचा पर चकत्ते, पित्ती, सूजन, घरघराहट, भीड़, दस्त, कब्ज, कान का दर्द, सिर में दर्द, त्वचा में मलिनकिरण, जोड़ों में सूजन, दमा, अल्सरेटिव कोलाइटिस, शूल, पुरानी थकान, आंतों में रक्तस्राव और मृत्यु शामिल हैं।" - एलर्जी (1996) ) 47: - दिल के रोगों को दूर करने का सफेद सच "डब्ल्यूएचओ द्वारा वित्त पोषित अनुसंधान परीक्षण," द मोनिका प्रोजेक्ट "ने बताया कि," दूध की खपत में परिवर्तन, ऊपर या नीचे, चार से सात साल बाद कोरोनरी मौतों में सटीक रूप से अनुमानित परिवर्तन। "- लैंसेट (1999) 48: - एथेरोस्क्लेरोसिस का सफेद सच "गोजातीय एक्सथाइन ऑक्सीडेज, दूध में मौजूद एक एंजाइम, मानव आंत के माध्यम से अवशोषित किया जा सकता है और रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकता है, जहां यह एथेरोस्क्लेरोटिक (धमनी-दबाना) घावों के विकास को बढ़ावा दे सकता है।" - क्लिनिकल रिसर्च (1976) 49: - सबसे ज्यादा दूध की खपत वाले देशों का सफेद सच "गाय के दूध, डेयरी उत्पादों और कैल्शियम-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के दुनिया के उच्चतम उपभोक्ताओं को भी हड्डी फ्रैक्चर का सबसे अधिक खतरा है।" -अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2003) 50: - डॉक्टरों के बीच पोषण शिक्षा का सफेद सच "सभी पुरानी बीमारियों में से 70% हमारे द्वारा किए गए आहार विकल्पों में निहित हैं, फिर भी, चिकित्सा शिक्षा के कम से कम 5 वर्षों में अधिकांश चिकित्सकों को पोषण शिक्षा के केवल 2 घंटे (सबसे अच्छे) प्राप्त होते हैं।" - पोषण और स्वास्थ्य पर सर्जन जनरल की रिपोर्ट DHHS (PHS) प्रकाशन (21 जुलाई, 1999) 51: - राष्ट्रीय पोषण नीति का सफेद सच “हमारी राष्ट्रीय पोषण संबंधी नीतियां और साहित्य, जैसा कि स्कूल में पढ़ाया जाता है, लाभकारी डेयरी उद्योग से अत्यधिक प्रभावित होते हैं; जैसा कि प्रकाशित रिपोर्ट से स्पष्ट है। " - पोषण और स्वास्थ्य समाचार ब्यूरो (17 जनवरी, 2002) 52: - कब्ज का सफेद सच "कई अध्ययनों ने गाय के दूध और कब्ज की खपत के बीच संबंध स्थापित किया है, और जब आक्रामक दूध को आहार से हटा दिया जाता है तो उल्लेखनीय सुधार होता है।"- न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन (1998) 53: - मल्टीपल स्केलेरोसिस का सफेद सच “27 देशों के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि, गाय के दूध के सेवन से जनसंख्या में वृद्धि हुई है; ऐसा कई स्केलेरोसिस का शिकार हुआ। - न्यूरोएपिडेमि योलॉजी (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES



Last updated date 28/09/2020

विश्व प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों का उद्भव

आदिकाल में मानव की आवश्‍यकता थी अपनी क्षुधा की तृप्‍ती, आदि मानव यहॉ वहॉ फल फूल या जानवरों का कच्‍चा मांस खा कर पेट भर लिया करता था। धीरे-धीरे उसने फल तथा वृक्षों को पहचानना शुरू किया । वह यह समझने लगा कि किस वृक्ष का फल मीठा, कडुआ, कसैला या जहरीला, मादक है। कहने का अर्थ यह कि वह वनस्‍पतियों के गुणधर्मों को पहचानने लगा था । आग से वह डरता था , परन्‍तु जब उसने उसके महत्‍व को समझा तब वह धीर धीरे सभ्‍यता की ओर बढने लगा । उसने समूह में रहना सीखा, पेड़ पौधों के गुणों से परिचित होने से उसका उपयोग करने लगा। किसी भी प्रकार की प्राकृतिक अपदा या बीमारीयों के फैलने को वह दैवी प्रकोप ,या दुष्‍ट आत्‍मा का प्रकोप समझता था ।    आज से कई हज़ार वर्ष पूर्व जब "रोमन सभ्‍यता" का विकास शुरू हुआ। यूरोप के सभी देश अज्ञानता तथा असभ्‍यता के अंधकार में डूंबे हुऐ थे , किसी के बीमार हो जाने पर कई प्रकार से झाड़-फूंक, जादू टोना का सहारा लिया जाता था। उनका मानना था कि यह बीमारी किसी दैवीय शक्ति ,जादू टोना इत्‍यादि के कारण है। झाड़ फूंक की प्रक्रिया बडी ही उपेक्षित एंव बर्बरतापूर्ण थी ,रोगी को मारा पीटा, तथा विभिन्‍न किस्‍म की यातनायें दी जाती थी। उनका मानना था कि किसी देवीय प्रकोप, दुष्‍ट आत्‍मा या भूत प्रेत का प्रकोप रोगी के शरीर में है, जिसे शरीर से भगाना आवश्‍यक है, जो प्रताड़ना दी जा रही है वह रोगी को नहीं, बल्‍की उसके शरीर में निवास कर रही दुष्‍ट आत्‍मा को दी जा रही है। आत्‍माये अच्‍छी एंव दुष्‍ट प्रवृति की होती है। इतने पर भी रोगी यदि ठीक नहीं होता तो उसे असाध्य समझकर छोड़ दिया जाता। संक्रामक या अज्ञात बीमारीयों के फैलने पर रोगग्रस्‍त रोगी को अन्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों से अलग-थलग कर दिया जाता, या कभी-कभी ऐसे व्‍यक्तियों को समय से पहले मार कर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता या उसे जला दिया जाता था,ताकि बीमारी अन्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों में न फैले। पाषाण युग के प्राप्‍त अवशेषों से यह संकेत मिलता है कि उस युग में लोग प्रेत विद्या को अधिक महत्‍व देते थे उपचार हेतु पत्‍थरों के उपकरणों से अप्रेशन इत्‍यादि के भी प्रमाण मिले है ,जो अवैज्ञानिक तथा अत्‍याधिक अपरिष्‍कृत रूप में थे । चीन,मिस्‍त्र,यूनान के प्राचीन ग्रन्‍थों में मिलने वाले प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि वे उस काल में प्रेतों एंव दुष्‍ट आत्‍माओं के प्रभावों को रोग का करण मानते एंव झाड़-फूंक द्वारा उपचार किया करते थे। लगभग 860 ई0 पूर्व यूनान में मानसिक रोगियों के उपचार के लिये प्रार्थना एंव मंत्रोपचार का सहारा लिया जाता था । आधुनिक चिकित्‍सा ऐलौपैथी :- हिपोक्रेटिस (450-460 ई0 पू0) अज्ञानतापूर्ण अंधविश्‍वास के बातावरण में जन्‍में आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान के जनक हिपोक्रेटिस ने रोगियों पर घटित होने वाले देवी देवताओं एंव भूत प्रेतों के प्रभावों को अस्‍वीकार किया तथा इस बात पर जोर दिया कि रोगियों का उपचार ही इसका विकल्‍प है। उस जमाने में उपचार धर्म शास्‍त्रों एंव धर्माचार्यों के हाथों में था। इसका विरोध करना सीधे अर्थों में धर्म का विरोध करना था जिसकी सजा मौत को आमंत्रित करना था। परन्तु मानव हित में किये जाने वाले इन महापुरूषों को मौत का डर नही था। उल्‍लेखनीय है कि हिप्‍पोक्रेटिस की उपचार प्रक्रिया वर्तमान समय में अपरिष्‍कृत होते हुऐ भी उस युग की प्रचलित झाड़-फूंक की पद्धिति की तुलना में अत्‍याधिक विकसित थी, वह शरीर रसों के व्‍यातिक्रम को सभी रोगों का कारण मानता था। उसका मत था कि "जब इन रसों के संयोजन में गड़बड़ी होती है तो विभिन्‍न शारीरिक व मानसिक रोग उत्‍पन्‍न होते है जिसका उपचार आवश्‍यक है।"  हिपोक्रेटिस ही आधुनिक औषधियों व चिकित्‍सा विज्ञान (एलौपैथिक) के जन्‍मदाता माने जाते हैं एलोपैथिक चिकित्‍सा असदृष्‍य विधान पर आधारित चिकित्‍सा थी , इस चिकित्‍सा में रोगी का रोग पूरी तरह से नष्‍ट न होकर ऊपर से दब जाता था, उस समय यूरोपवासियों को इनका उपचार एक चमत्‍कार प्रतीत हुआ, जो अंधविश्‍वास में डूबे हुऐ थे। धीरे-धीरे इस असदृष्‍य विधान का काफी विस्‍तार तथा प्रचार प्रसार होता गया। इसमें औषधि उपचार एंव शल्‍य चिकित्‍सा दोनों शामिल थें ।  हिपोक्रेटिस के बाद इस सम्‍बन्‍ध में जिन जिन दवाओं व उपचार का प्रयोग होता गया उनके गुणों व प्रयोग के बारे में जानकारी लिपिबद्ध होती गयी, जिसने "मेटेरिया मैडिका" का रूप ग्रहण किया। इस चिकित्‍सा विज्ञान ने शवों के चीर फाड़, शाल्य क्रिया में निश्‍चय ही सफलता प्राप्‍त की एंव चिकित्‍सा जगत को बहुमूल्‍य ज्ञान दिया। इस विकास क्रम में कीटाणुओं पर प्रयोग भी हुऐ, "भौतिक कीटाणुओं के कारण ही सारे रोग उत्‍पन्‍न होते हैं।" इस सिद्धान्‍त को मान्‍यता प्राप्‍त होते ही उस समय के सभी एलोपैथिक चिकित्‍सक इन्‍ही किटाणुओं का अघ्‍ययन तथा अनुसंधान करने लग गये, इस चिकित्‍सा पद्धति ने सबसे अधिक उन्‍नती की एंव शासकीय संरक्षण प्राप्‍त होने के कारण विभिन्‍न देशों में इसका पूर्ण विकास हुआ। भारतवर्ष में प्रचलित आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति भी अपनी उन्‍नती के शिखर पर थी। परन्‍तु विदेशी आक्रमणकारी इसके बहुत से ग्रन्‍थों को अपने साथ ले गये। यूनानी चिकित्‍सा प्रणाली बहुत कुछ भारतीय आयुर्वेद के चरक गृन्‍थों से मिलती जुलती चिकित्‍सा थी ।     15 वी शताब्‍दी के अन्‍त तक भूत-प्रेत विद्याओं पर विश्‍वास किया जाता रहा है। मार्टिन लूथर (1483-1546) जैसे व्‍यक्ति भी इन विचारों से ग्रसित थे। 16 वीं तथा 17 वीं शताब्‍दी के आसपास औषधि विज्ञान का विकास हुआ । पैरासेल्‍सस (1493-1541)  15 वीं शताब्‍दी के अन्‍त में मध्‍यकालीन प्रेत विद्या जो धर्मशास्‍त्रों का अभिन्‍न अंग थी, उसके विरोध में आवाज उठाना यानी जीवन को ख़तरे में डालना था, इसके बाबजूद भी कई वैज्ञानिकों, चिन्तकों ने इसके विरूद्ध समय-समय पर आवाज उठाई और दंड तथा उपेक्षाओं का शिकार हुऐ । पैरासेल्‍सस ने भी प्रेत विद्या को अस्‍वीकार किया, एंव उन्‍होने कहा कि शारीरक रोगों का एंव मानसिक रोगों का उपचार न तो धर्म पर आधारित है न ही जादू टोना पर, ऐसे रोगियों का चिकित्‍सकीय उपचार किया जाना चाहिये। स्विजरलैण्ड में जन्‍में इस पैरासेल्‍सस ने शरीर में चुम्‍बकत्‍व के विचारों को प्रतिपादित किया जो आगे चलकर सम्‍मोहन के रूप में विकसित हुई। तथापि वह मानसिक रोगों पर नक्षत्रों के प्रभावों को स्‍वीकार करता था। उसका मत था कि चन्‍द्रमा मस्तिष्‍क पर प्रभाव डालता है। पन्द्रहवीं शताब्‍दी के इस प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने अपनी पुस्‍तक में दो सिद्धान्‍तों को प्रतिपादित किया था:- 1 वनस्‍पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान होती है।  2-समता से समान का निवारण ।  पैरासेल्‍सस के दो सिद्धन्‍तों से दो चिकित्‍सा पद्धतियों का उद्भव :- डॉ0 सर सैमुअल हैनिमैन ने 18 वीं सदी में सन् 1796 ई0 में पैरासैल्‍स के दूसरे सिद्धान्‍त समता से समता का निवारण के आधार पर एक अलग चिकित्‍सा पद्धति को जन्‍म दिया जो (सम: सम शमियते अर्थात सम औषधियों से सम रोगों का निवारण करना ) होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति के नाम से प्रचलित है। वहीं इसके दुसरे सिद्धान्‍त "वनस्पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान होती है।" के सिद्धान्‍त पर डॉ0 काऊन्‍ट सीजर मैटी ने 1865 ई0 मे हैनिमैन की मृत्‍यू के 22 वर्षों बाद इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक नामक चिकित्‍सा विज्ञान का आविष्‍कार किया। इन दोनों चिकित्‍सा पद्धतियों का अलग से वर्णन किया जायेगा । मेस्‍मर (1734-1815 )  मेस्‍मर आस्ट्रिया निवासी बनदाम मनोचिकित्‍सक थे। पर 16 वीं सदी के विचारक पैरासेल्‍सस का उन पर बहुत अधिक प्रभाव पडा था, जिसने मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर नक्षत्रों के प्रभाव को स्‍वीकार किया था उसका मत था कि नक्षत्र शरीर के प्रत्‍येक भाग विशेषकर स्‍नायुमण्‍डल पर विशेष प्रभाव डालते हैं, यह प्रभाव शरीर में सार्वभौमिक चुम्‍बकीय द्रव्य द्वारा डाला जाता है इस द्रव्य की क्रिया में वृद्धि अथवा कमी होने पर आकर्षण शक्ति संयोग लचीलापन, चिड़चिड़ापन तथा विद्युत शक्ति उत्‍पन्‍न होती है। मेस्मर का मत था कि "सभी व्‍यक्तियों में चुम्‍बकीय शक्ति विद्यमान है, जिसका प्रयोग अन्‍य व्‍यक्तियों में चुम्‍बकीय द्रव्‍य के वितरण को प्रभावित करने हेतु किया जा सकता है।" जोहन बेयर:- (1515-1588)  जोहनबेयर एक जर्मन चिकित्‍सक थे एंव आधुनिक मनोविज्ञान के संस्‍थापक कहे जाते है, क्योंकि आप ने मानसिक रोगों के इलाज में विशेष दक्षता प्राप्‍त की थी। चूंकि उस जमाने में उपचार प्रक्रिया एंव खॉस कर मानसिक रोगीयों का इलाज चर्च एंव धर्माचार्यों के द्वारा किया जाता था। इसके विरोध के परिणाम में उनके ग्रन्‍थों के पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह प्रतिबंध 20 वीं सदी तक चला ।   18 वीं शताब्‍दी के आस पास ही शरीर शास्‍त्र , स्नायु शास्‍त्र,रसायन शास्‍त्र तथा भौतिक एंव औषधि विज्ञान ने अत्‍याधिक तेजी से विकास किया। शाल्‍य चिकित्‍सा ने भी अपने पैर जमाना प्रारंभ कर दिया था । हिपोक्रेटिसस की देन आधुनिक चिकित्‍सा (एलोपैथिक) जो असदृष्‍य विधान पर आधारित थी, इसने दिन दूनी रात चौगनी उन्‍नती की। शाल्‍य चिकित्‍सा ,औषधि विज्ञान,सभी पर अनुसंधान एंव परिक्षण हुऐ ,इस आधुनिक चिकित्‍सा पद्धति को "सिस्‍टम आफ मेडिसन" कह जाता था।सर्वप्रथम एलोपैथिक शब्‍द का प्रयोग इस पद्धति के लिये डॉ0 फैडरिक हैनिमैन(होम्‍योपैथिक के जन्‍मदाता) ने किया जो उस जमाने के प्रसिद्ध आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान (एलोपैथिक) के सफल चिकित्‍सक थे । उस जमाने में "लिपजिंग" ही एलापैथिक चिकित्‍सा का एक प्रमुख केन्‍द्र माना जाता था , लेकिन एलोपैथिक चिकित्‍सा का सबसे बडा केन्‍द्र "वियना" था। इस आधुनिक चिकित्‍सा पद्धति जिसे एलोपैथिक चिकित्‍सा के नाम से जाना जाता है, पाश्चात्य देशों में इसे पूर्व से ही शासकीय संरक्षण व मान्‍यता मिल चुकी थी। स्‍वतंत्र भारत में इसे भारतीय आर्युविज्ञान के नाम से भारतीय आर्युविज्ञान अधिनियम 1956 पारित कर इसे 30 दिसम्‍बर 1956 सम्‍पूर्ण भारतवर्ष में लागू किया गया । जिसमें चिकित्‍सकों को चिकित्‍सा कार्य हेतु मान्‍यता तथा इस पैथी की शिक्षा पाठयक्रम के संचालन की प्रक्रियाओं पर विधान बनाकर मान्‍यता प्रदान की गयी । आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति :-  यह चिकित्‍सा पद्धति सर्वप्रथम चिकित्‍सा पद्धति थी, जो आदिकाल से रोग निदान हेतु भारतवर्ष में प्रचलित रही है, इसीलिये कह गया है कि "आयुर्वेद अनादि ज्ञान है ,जिसने सृष्टि की रचना के पूर्व ही बृम्‍हाजी ने स्‍मरण करके लोक कल्‍याण के लिये आयुर्वेद की उत्‍पति की।" इसकी उत्‍पति के तीन रूप है:-  1-सुश्रुत संहिता –भगवान इन्‍द्र से धन्‍वंतरी (दिवोदास काशीराज) ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्‍त किया था शाल्‍यतंत्र तथा अष्‍टॉग का प्रचार हुआ ।  2-चरक संहिता –इन्‍द्र ने भारद्वाज,भारद्वाज से आत्रेय, पुनर्वसु, अग्निवेश, भेड, जतुकर्ण, क्षारपाणी, आदि ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्‍त किया 3- कश्‍यप संहिता –इन्‍द्र से कश्‍यप,वशिष्‍ठ,अत्रि भ्रगु ने आयुर्वेद सीखा        पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से भगवान धनवंतरी बारह रत्‍नों के साथ प्रगट हुये। तब से आयुर्वेद के विद्वानो ने आयुर्वेद का प्रचार प्रसार किया एंव लम्‍बे समय से विद्वान वैद्य इस चिकित्‍सा पद्धति को चिकित्‍सा उपचार हेतु करते आ रहे है । भारतवर्ष में इस चिकित्‍सा पद्धति को शासकीय मान्‍यता से पूर्व अवैज्ञानिक तथा तर्कहीन उपचार कह कर इसकी उपेक्षा की जाती रही, इसके बाद भी आयुर्वेद में आस्‍था रखने वाले विद्वाना वैद्यों ने इसकी शिक्षण संस्‍थाये जारी रखी, और अपनी चिकित्‍सा पद्धति की मान्‍यता हेतु संर्धष करते रहे। सन् 1920 में आल इंडिया कॉग्रेस ने अपने नागपुर अधिवेशन में आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति को शासकीय मान्‍यता देने के सम्‍बन्‍ध में कमेटी गठित की। यूनानी चिकित्‍सा पद्धति प्राचीन आयुर्वेद चिकित्‍सा पर आधारित थी । लार्ड ऐपथिल ने कह था कि आयुर्वेद भारत से अरब फिर वहॉ से यूरोप गया। अरब खलीफाओं ने आयुर्वेद के ग्रन्‍थों का अरबी में अनुवाद कराया, अर्थात आयुर्वेद एंव यूनानी चिकित्‍सा पद्धतियॉ बहुत कुछ मिलती जुलती चिकित्‍सा है।भारत में एलोपैथिक को मान्‍यता पूर्व में प्राप्‍त हो चुकी थी, परन्‍तु आयुर्वेद के मान्‍यता का अहम सवाल शासन के समक्ष कई कमेटियों के बीच धूमता रहा। छात्र और चिकित्‍सक मान्‍यता प्राप्‍ती की प्रतीक्षा में संर्धष करते रहे। 21 दिसम्‍बर 1970 को इसे शासन द्वारा मान्‍यता दी गयी एंव इसका अधिनियम बना जिसमें अष्‍टॉग आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी चि‍कित्‍सा पद्धति एंव प्राकृतिक चिकित्‍सा पद्धति को रखा गया जो भारतीय चिकित्‍सा केन्‍द्रीय परिषद अधिनियम 1970 कहलाता है । जिसके द्वारा आयुर्वेदिक, यूनानी, एंव प्राकृतिक चिकित्‍सा पद्धतियो को अधिनियमित कर उसके संचालन रजिस्‍ट्रेशन इत्‍यादि का दायित्‍व सौपा गया ।      होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति:-  होम्‍योपैथिक का नाम लेते ही मीठी-मीठी शक्‍कर की गोलियों की याद आ जाती है। इस चिकित्‍सा पद्धति के जन्‍मदाता डॉ0 फैरेडिक सैमुअल हैनिमैन (जर्मन) थे। आपने एलोपैथिक से सन् 1779 में एम0डी0 की एंव शासकीय चिकित्‍सक बन कर लोगों की एलोपैथिक से चिकित्‍सा कार्य करते रहे। वे अपने समय के एक सफल एलोपैथिक चिकित्‍सक थे, परन्‍तु उन्‍होने अपने चिकित्‍सा के दौरान एलोपैथिक के दुष्‍परिणामों को देखा, जिसमें कई रोगी, जो रोग है उससे तो ठीक हो जाते हैं परन्‍तु औषधियजन्‍य रोगों की चपेट में आ जाते है और कभी कभी तो यही औषधिजन्‍य रोग उनकी मौत का करण होती थी, उनका मन इस एलोपैथिक चिकित्‍सा से भर गया एंव उन्होंने इस प्रकार की चिकित्‍सा पद्धति से धनोपार्जन के कार्यो को छोड़ दिया। एंव जीवकापार्जन हेतु पुस्‍तकों का अनुवाद कार्य करने लगे चूंकि उन्‍हे कई भाषाओं का ज्ञान था चिकित्‍सा विज्ञान की पुस्‍तकों के अनुवाद करते समय एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका में पढा कि सिनकोना कम्‍पन्‍न ज्‍वर अर्थात ठण्‍ड लग कर आने वाले बुखार को दूर करती है , और इसी के सेवन से कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो जाता है, अर्थात एक ही औषधि से दो प्रकार के विपरीत परिणमों ने उन्‍हे विचार करने पर मजबूर कर दिया, एक ही औषधि के दो विपरीत परिणमों ने एक नई चिकित्‍सा होम्‍योपैथिक के आविष्‍कार का सूत्रपात किया । हैनिमन सहाब ने सिनकोना के परिणामों का परिक्षण करने के उद्धेश्‍य से स्‍वयं सिनकोना का सेवन किया, इससे उन्‍हे कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो गया , और यही औषधि जब कम्‍पन्‍न ज्‍वर से ग्रसित मरीज को दिया गया तो वह ठीक हो गया, बस यही एक ऐसा सूत्र था, जिसने एक नई चिकित्‍सा पद्धति "होम्योपैथिक" का श्री गणेश 1716 ई0 में किया । इसी परिक्षण क्रम में उन्‍होन बहुत सी औषधियों को स्‍वस्‍थ्‍य व्‍याक्तियों को दिया एंव जो लक्षण उत्‍पन्‍न हुऐ उसे लिपिबद्ध करते गये, इस लिपिबद्ध संगृह को "मेटेरिया मेडिका" कह गया। जैसे रोगी में रोग के जैसे लक्षण हो, यदि वैसे ही लक्षण स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों को दवा देने पर उभरते हो, तो वही उस रोगी की दवा होगी , अर्थात "सम से सम की चिकित्‍सा" का प्रथम सिद्धान्‍त का उन्‍होने प्रतिपादन किया एंव इस नई चिकित्‍सा का नाम होम्‍योपैथिक इसी सिद्धान्‍त के आधार पर रखा । होम्‍योपैथी शब्‍द दो शब्‍दों से मिलकर बना है, होमियोज और पैथी , होमियोज ग्रीक भाषा का शब्‍द है जिसका अर्थ है "सदृश या समान" । पैथी का अर्थ विधान या चिकित्‍सा, अर्थात होमियोपैथी से तात्‍पर्य उस उपचार विद्या से है जो सदृश विधान पर आधारित हो, अर्थात होमियोपैथक चिकित्‍सा को "सदृश विधान चिकित्‍सा", "सम से सम की चिकित्‍सा" आदि नामों से भी पुकारा जाता है । होम्‍योपैथिक में किसी रोग का उपचार न कर रोग के लक्षणों का उपचार किया जाता है । हैनिमैन सहाब को प्रथम सूत्र प्राप्‍त हो गया था,  अब इसका दूसरा सूत्र, जो रोग उपचार या रोगी के शरीर में उत्‍पन्‍न लक्षणों को पूरी तरह से शमन कर सकती है। वह औषधि की कैसी मात्रा या कौन सी शक्ति होगी , इसलिये उन्‍होन मूल औषधि को तनुकृत कर शक्तिकरण का सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया । इसमें मूल औषधि की मात्रा को जितना तनुकृत या कम किया जाता है एंव उसमें झटके देने से उसकी  पोटेंशी या शक्ति उतनी अधिक बढती जाती है ।   होम्‍योपैथिक के दो मूल सिद्धान्‍त 1-सम से सम कि चिकित्‍सा का सिद्धान्‍त 2-औधियों के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त  हैनीमैन के इस नये आविष्‍कार का तत्‍कालीन चिकित्‍सकों ने काफी विरोध किया,एंव इस चिकित्‍सा पद्धति को लम्‍बे समय तक अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन उपचार कह कर नकारा जाता रहा। इसके बाद भी इस चिकित्‍सा पद्धति पर विश्‍वास रखने बाले कई चिकित्‍सकों ने इसका अध्‍ययन किया एंव इसकी चिकित्‍सा कार्य एंव शैक्षिणिक संस्‍थाओं का संचालन शासकीय मान्‍यता के अभावों में कई कानूनी दॉवों पेचों के बीच से गुजरते हुऐ उपेक्षाओं का शिकार होते हुऐ करते रहे। 19 वीं शताब्‍दी के मध्‍य भारतवर्ष में होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का आगमन सन 1836 में होनिंग बगैर के माध्‍यम से भारत के पंजाब राज्‍य में हुआ । इस चिकित्‍सा पद्धति का भारत में लाने का श्रेष्‍य महाराजा रंजीत सिंह को जाता है । जन सामान्‍य में इसका प्रचलन ब्रिटिश शासन काल में बंगाल में शुरू हुआ था । भारत में प्रथम चिकित्‍सक डॉ0 एम0 एल0 सरकार थे जिन्होंने कलकत्‍ता विश्‍वविद्यालय से 1883 में एम0 डी0 की थी। भारत में होम्‍योपैथिक के अध्‍ययन की पहली संस्‍था 1880 में कलकत्‍ता में स्‍थापित की गई शासकीय मान्‍यता न मिलने पर भी इसकी उपयोगिता को देखते हुऐ कई विद्धवानों, चिकित्सकों एंव छात्रों ने इसका अध्‍ययन किया । अपने अधिकारों के लिये संधर्ष करते हुऐ दिनांक 26 दिसम्‍बर 1968 को दा इण्डियन मेडिसिन एण्‍ड होम्‍योपैथिक सेन्‍ट्रल कौंसिल बिल पर विचार किया गया एंव यह पाया गया कि आयुर्वेद‍ सिद्ध युनानी में मूलभूत अन्‍तर है। अत: होम्‍योपैथिक का अलग से केन्‍द्रीय बोर्ड बनाना चाहिये होम्‍योपैथिक एडवाइजर कमेटी जिसे भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था। 19 दिसम्‍बर 1973 को केन्‍द्रीय होम्‍योपैथिक परिषद अधिनियम पारित किया गया जिसे सम्‍पूर्ण भार के राज्‍यों पर लागू किया गया। आज होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा परिषद का केन्‍द्रीय बोर्ड एंव प्रत्‍येक राज्‍यों में राज्‍य बोर्ड संचालित है, जो इस चिकित्‍सा पद्धति की शिक्षा का संचालन एंव चिकित्‍सकों का पंजियन कार्य कर रही है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक :-  पैरासेल्‍सस के प्रथम सिद्धान्‍त ‘ सम से सम की चिकित्‍सा ’ पर डॉ0 हैनिमैन सहाब ने होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का आविष्‍कार किया। वहीं, उनकी मृत्‍यु के 22 वर्षो पश्‍चात सन 1865 ई0 में  पैरासेल्‍सस के दूसरे सिद्धान्‍त ‘ वनस्‍पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान ’ होती है। इस दूसरे सिद्धान्‍त पर  इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का आविष्‍कार बोलग्‍ना इटली निवासी  डॉ0 काऊट सीजर मैटी ने किया था । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति के दो सिद्धान्‍त है:-  1-वनस्‍पति जगत में विधुत शक्ति विधमान होती है   2- रस और रक्‍त की समानता एंव शुद्धता    मैटी सहाब ने हानिरहित वनस्‍पतियों की विधुत शक्ति की खोज करते हुऐ 114 वनस्‍पतियों के अर्क को कोहेबेशन प्रक्रिया से निकाल कर 38 मूल औषधियों का निर्माण किया जो मनुष्‍य के रस एंव रक्‍त के दोषों को दूर कर उन्‍हे शुद्ध व सम्‍यावस्‍था करती है , उन्होंने उक्‍त औषधियों के निर्माण में शरीर के अंतरिक अंगों पर कार्य करने वाली औषधियों के समूह का निर्माण किया जिन्हें आपस में मिला कर मिश्रित कम्‍पाऊंउ दवा बनाई गई। इस प्रकार इनकी संख्‍या बढकर कुल 60 हो गयी है।  इसे सुविधा व कार्यो की दृष्टि से निम्‍न समूहो में विभाजित किया जा सकता है। इस विभाजन में मूल औषधियों के साथ मिश्रित किये गये कम्‍पाऊड की संख्‍या भी सम्‍मलित है । 1- स्‍क्रोफोलोसोज :-प्रथम वर्ग में रस पर कार्य करने वाली मेटाबोलिज्म को संतुलित एंव उसके कार्यो को सामान्‍य रूप से संचालित करने वाली एक क्रियामिक औषधिय है जो रस तथा पाचन सम्‍बन्धित अव्‍यावों पर कार्य करती है,औषधियों को रखा जो स्‍क्रोफोलोसोज नाम से जानी जाती है एंव संख्‍या में कुल 13 है । स्‍क्रोफोलोसो लैसेटिबों :- इसमें एक दवा स्‍क्रोफोलोसो लैसेटिबों सम्‍मलित है इसका कार्य कब्‍ज को दूर करना तथा ऑतों की नि:सारण क्रिया को प्रभावित करना है 2- एन्जिओटिकोज :- दूसरे वर्ग में रक्‍त पर कार्य करने वाली ,  औषधियों को रखा जो एन्जिओटिकोज के नाम से जानी जाती है इस समूह में कुल 5 औषधियॉ है । 3- लिन्‍फैटिकोज :-तीसरे वर्ग में रक्‍त एंव रक्‍त दोनो पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा गया जो लिन्‍फैटिकोज नाम से जानी जाती है इस समूह में 2 औषधियॉ है 4- कैन्‍सेरोसोज:- चौथे वर्ग में शरीर पर कार्य करने वाले अवयवों तथा सैल्‍स एंव टिश्‍यूज की बरबादी एंव उनकी अनियमिता से उत्‍पन्‍न होने वाले रोगों पर कार्य करती है रखा गया एंव यह  कैन्‍सेरोसोज के नाम से जानी जाती है इस समूह में कुल 17 औषधियॉ है । 5- फैब्रि‍फ्यूगोज :- पॉचवे वर्ग में वात संस्‍थान नर्व सिस्‍टम पर कार्य करती है इसे फैब्रि‍फ्यूगोज नाम से जाना जाता है इस समूह में कुल 2 औषधियॉ है । 6- पेट्टोरल्‍स :- छठे वर्ग में श्‍वसन तंत्र पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा गया जो पेट्टोरल्‍स के नाम से जानी जाती है एंव संख्‍या में 9 औषधियॉ है । 7-वेनेरियोज –सातवे वर्ग में वेनेरियोज यह औषधिय सक्ष्‍या में 6 है एंव इसका कार्य रति सम्‍बन्धित ,मूत्रसंस्‍थान ,जननेन्‍दीय पर प्रभावी है जिसका उपयोग रतिजन्‍य रोगो व जन्‍नेद्रीय मूत्र संस्‍थान सम्‍बन्धित पर होता है । 8-वर्मिफ्युगोज :–‘ इस वर्ग में में वर्मिफ्युगोज दवा का रखा गया जो संख्‍या में 2 है इस ग्रुप की दवा का प्रभाव विशेष रूप से आंतों पर है एंव यह शरीर से किटाणुओं व कृमियों को शरीर से खत्‍म कर देती है 9- सिन्‍थैसिस:- इस समूह में सिन्‍थैसिस (एस वाय) है जो एक कम्‍पाऊड मेडिसन है जिसका उपयोग सम्‍पूर्ण शरीर के आगैनन को सुचारूप से संचालित करने हेतु प्रेरित करती है एंव उन्‍हे शक्ति प्रदान करती है इसे एस वाई या सिन्‍थैसिस नाम से जाना जाता है ।     10-इलैक्‍ट्रीसिटी:- इस वर्ग में पॉच इलैक्‍ट्रीसिटी एंव एक तरल औषधिय अकुवा पैरिला पैली (ए0पी0पी) है । इसमें पॉच इलैक्‍ट्रीसिटी एंव एक त्‍वचा जल सम्‍मलित है जो क्रमश: निम्‍नानुसार है । 1-व्‍हाईट इलैक्‍ट्रीसिटी :-इसे सफेद बिजली भी कहते है , इसकी क्रिया ग्रेट सिम्‍पाईटिक नर्व, सोरल फ्लेक्‍स,लधु मस्तिष्‍क तथा वात संस्‍थान के समवेदिक सूत्रों पर है ,इसलिये यह वातज निर्बलता की विशेष औषधिय है ,इसका प्राकृतिक गुण पीडा नाशक,शक्ति प्रदान करने बाली , नींद लाने वाली वातज पीडा को ठीक करने वाली एंव ठंडक पहुचाने वाली है । इसका वाह्रय एंव आंतरिक प्रयोग किया जाता है । 2- ब्‍लू इलैक्‍ट्रीसिटी :-इसे नीली बिजली भी कहते है ,यह रक्‍त प्रकृति के अनुकूल है ,इसका प्रभाव हिद्रय के बांये भाग पर है यह रक्‍त के स्‍त्राव को चाहे वह वाह्रय स्‍थान या अंतरिक अवयव से हो उसे रोक देती है ,नीली बिजली क्‍योकि यह रक्‍त नाडियों का सुकोड देती है इससे रक्‍त स्‍त्राव रूक जाता है । यह लकवा ,मस्तिष्‍क में रक्‍त संचय ,चक्‍कर आना ,खूनी बबासीर , या शरीर से रक्‍त स्‍त्रावों के लिये उपयोगी है ।    3-रेड इलैक्‍ट्रीसिटी:- इसे लाल बिजली भी कहते है, यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा नाशक,बल वर्धक उत्‍तेजक,प्रदाह नाशक, ग्रन्‍थी रोग नाशक है । इसमें रक्‍त की मन्‍द गति को तीब्र करने का विशेष गुण है ।  4-यलो इलैक्‍ट्रीसिटी:- इसे पीली बिजली भी कहते है,यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा नाशक, रक्‍त की कमी एंव ऐढन को दूर करने वाली,  कै को रोकने वाली एंव कृमि नाशक है तथा वात सूत्रों को बल प्रदान करने वाली है । यह औषधिय बल वर्धक है तथा अन्‍य अपनी सजातीय औषधियों के साथ प्रयोग करने पर शरीर से पसीना लाने वाली है । वात सूत्रों ,ऑतों,और मॉस पेशियों पर इसका विशेष प्रभाव है ,मिर्गी,हिस्‍टीरिया,जकडन,पागलपन इत्‍यादि में एंव उष्‍णता को शान्‍त करने के लिये इसका प्रयोग होता है ।   5-ग्रीन इलैक्‍ट्रीसिटी:-इसे हम हरी बिजली भी कह सकते है ,यह रक्‍त प्रकृति वालों के लिये अनुकूल है इसका प्रभाव शिराओं एंव उनकी कोशिकाओं और हिद्रय के आधे दाहिने भाग की बात नाडियों पर है , इसकी क्रिया त्‍वचा ,श्‍लैष्मिककला पर होता है, इसके प्रयोग से किसी भी प्रकार के धॉव, चाहे वे सडनें गलने लगे हो उसमें इसका प्रयोग किया जाता है जैसे कैंसर, गैगरीन,दूषित धॉव बबासीर ,भगन्‍दर के ऊभारों में इसका प्रयोग किया जाता है । मस्‍स्‍ो ,चिट्टे इसके प्रयोग से झड जाते है यह जननेन्द्रिय या मूंत्र मार्ग से पीव निकलने पर अत्‍यन्‍त उपयोगी है । इसके प्रयोग से शरीर के अन्‍दर या बाहर किसी भी स्‍थान पर कैंसर हो जाये तो उसकी पीडा को यह दूर कर देती है । 6-अकुआ पर ला पेली या ए0पी0पी :- इसे त्‍वचा जल के नाम से भी जाना जाता है इसका प्रयोग त्‍वचा को स्निग्‍ध, मुलायम, चिकनाई युक्‍त एंव सुन्‍दर स्‍वस्‍थ्‍य बनाने तथा त्‍वचा के रंग को साफ करने के लिये वाह्रय रूप से (त्‍वचा पर लगाना) उपयोग किया जाता है । इस दवा को ऑखों के चारों तरफ की त्‍वचा पर (ऑखों पर नही) लगाने से ऑखों को शक्ति मिलती है । इसका प्रयोग चहरे व त्‍वचा को चिकना मुलायम साफ चमकदार बनाने में तथा दॉग धब्‍बे झुरियों अथवा मुंहासे,चहरे के ब्‍लैक हैड, खुजली ,छीजन,त्‍वचा के रंग में परिवर्तन आदि में किया जाता है, जो अपने रंगों के अनुसार वनस्पितियों से प्राप्‍त की गई है एंव इनका कार्य रोगों के निवारण में किया जाता है एंव इसके बडे ही आशानुरूप परिणाम प्राप्‍त होते है । इसमें एक त्‍वचा जल है जो त्‍वचा को निखरने एंव त्‍वचा दोषों पर प्रभावी औषधिय है।



Last updated date 20/09/2020

बेरोज़गारी दूर करें.....!

ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU ! -: बेरोज़गारों केलिए सुनहरा अवसर:- HEALTH IN BOX ® यूनानी दवा से 20% - 40% तक आय करने का सुनहरा अवसर आपके सामने है, जो इस प्रकार है:- 20%= 5-9 packet's 25%= 10-19 packet's 30%= 20-49 packet's 40%= 50-100 Packet's (एक पैकेट HEALTH IN BOX ® का मूल्य ₹ 3000/- है।) मैं, हकीम मुहम्मद अबू रिज़वान (जमशेदपुर, झारखंड) 1993 से अपने व्यक्तिगत रूप से चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहा हूँ। मैंने अंग्रेजी दवा और एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है। ये डॉक्टर किसी कसाई और डाकू से कम नहीं हैं। मैं लंबे समय से "DISEASE FREE WORLD" नामक एक अभियान चला रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप इस अभियान में मेरा साथ देंगे और मुझे प्रोत्साहित करेंगे। और अंग्रेजी दवा के घातक प्रभावों से मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड, हार्ट ब्लॉकेज, कैंसर, गठिया और अन्य घातक बीमारियों जैसे LIFESTYLE DISEASES वाले रोगियों की रक्षा के लिए आम जनता की मदद करेंगे। और उन्हें अंग्रेजी दवा से दूर रखने की कोशिश करेंगे। अनुसंधान कार्य लंबे समय से चल रहा है और परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से, केवल एक दवा, "HEALTH IN BOX", से सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करना शुरू कर दिया है। परिणाम उल्लेखनीय है। फिर क्या हुआ, मैं अपने पास आने वाले सभी मरीजों को केवल एक ही दवा देता हूं:- "HEALTH IN BOX ®" महाशय जी! मैंने वो देखा है कि हमारे समाज के अधिकतर लोग अपनी अल्प आय और सीमित संसाधनों के कारण हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए, मैं ने सोचा है कि ऐसे यूवक या बेरोज़गार लोग आगे आएं और मुझसे जूड़ें। ऐसा करके अपनी आय बढ़ाने की कोशिश क्यों न करें। आज भी इलाज इतना आसान है कि मेरी दवा "HEALTH IN BOX" कोई भी आसानी से किसी भी बीमार आदमी का इलाज कर सकता है। तो फिर आप क्यों नहीं? इस मुसीबत की घड़ी में जहां लाखों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, खासकर बेरोजगार युवाओं को, उन्हें आगे बढ़कर मेरी पेशकश को गले लगाने की कोशिश करनी चाहिए। "HEALTH IN BOX" पूरी तरह से यूनानी दवा है। इसकी सभी सामग्रियों में केवल जड़ी-बूटियां हैं। इस दवा का उपयोग सभी उम्र के सभी प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है। नतीजा माशाल्लाह। केवल उन लोगों को जो मेरे बताए सभी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें 100% परिणाम प्राप्त होते हैं। यह वास्तव में किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह किसी भी बीमारी के "कारणों" पर काम करता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सभी बीमारियों का केवल एक ही कारण है, और वह है: - "ग्लूकोज और इंसुलिन के आपसी तालमेल की गड़बड़ी।" "HEALTH IN BOX" सभी प्रकार की जीवन शैली(LIFESTYLE DISEASES) बीमारियाँ जैसे: कैंसर, मधुमेह, हाई बीपी, मोटापा, हार्ट ब्लॉकेज, लीवर, पेट और किडनी की समस्याएँ, डायलिसिस, सोरायसिस, सेक्स समस्याएँ, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड की समस्याएँ, हड्डियाँ और जोड़ों आदि रोगों के लिए लोग अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग जीवन भर करते हैं क्यों कि डॉक्टर यही सलाह देते हैं। HEALTH IN BOX का इस्तेमाल शुरू करते ही अधिकांश रोगों में, इस के परिणाम पहले ही दिन प्राप्त होते हैं। यानी यह दवा पहले दिन से काम करना शुरू कर देती है। अंग्रेज़ी दवा पहले ही दिन बंद हो जाती है और हमेशा केलिए कोई भी रोग रिवर्स हो जाती है। "मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस पर विचार करें।" सेवाभाव से लोगों की भलाई केलिए अवश्य मुझसे जुड़कर अवसर का लाभ उठाएं। लोगों को अंग्रेज़ी दवाओं से और डॉक्टरों से और रोगों से मुक्ति दिलाने में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करें। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons. (BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES + UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND संपर्क करें 9334518872 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website:- https://umrc.co.in



Last updated date 17/09/2020



Last updated date 02/09/2020

Obesity Problem

Obesity (Saman-e- Mufrat) has become a serious public health problem nowadays. Obesity comes from a Latin word ‘obedere’, to devour and in English literature it means very fat. Obesity is the vital nutritional or metabolic disorder where the percentage of fat tissue (adipose tissue) increases disproportionately owing to imbalance of energy intake and energy expenditure. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Obesity Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Obesity Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®.



Obesity

It is a slowly and gradually progressing disease in which healthy liver tissue is replaced with scar tissue, hence preventing the liver from proper functioning. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Liver Disorders Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Liver Disorders Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime.