मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।

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डायबिटीज़ - "बीमारी नहीं,फ़ार्मा कंपनियों की साज़िश"* आज भारत में 7.5 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरी मंशा सिर्फ एक ही है, और वो हैं आप! मुझे विश्वास है कि इस विधि से आप DIABETES से खुद को ठीक कर पाएंगे। तब आप लोगों की मदद करेंगे। जिससे वे फिर से स्वस्थ हो जाएं। स्वास्थ्य न केवल आपका अधिकार है बल्कि आपकी जिम्मेदारी भी है। आप सोच रहे होंगे कि, अगर यह तकनीक इतनी क्रांतिकारी है। फिर मैं यह क्यों नहीं जान रहा हूँ। डॉक्टर इस बारे में क्यों नहीं बताते ? इसे समझने के लिए आपको मेरे इन आँकड़ों का विश्लेषण करना होगा। पिछले *10 वर्षों में देश को DIABETES और उससे होने वाली बीमारियों के कारण 246 बिलियन डॉलर का महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है,* जो पिछले साल के राष्ट्रीय बजट से सिर्फ 70 बिलियन डॉलर कम है। यह बहुत बड़ी रक़म है, यह एक बड़ा उद्योग है। आपकी बीमारी से किसी का बहुत बड़ा लाभ होता है। वे नहीं चाहते कि आप बीमारियों से मुक्त हों, वे केवल यही चाहते हैं कि आप बीमारियों के गुलाम हों, दवाओं के गुलाम हों। इस साजिश को समझने के लिए आपको खाद्य और औषधि तंत्र को समझना होगा । कृपया ध्यान दें! जब आप कुछ खाते हैं तो वह अनाज, सब्जी, चपाती, करी और फल हो। भोजन मुंह से पेट तक जाता है, आंत में जाता है। आंत में, यह छोटे कणों में टूट जाता है। यह लीवर में जाता है, लीवर में पुनर्संसाधन होता है। रक्त संचार की सहायता से भोजन पूरे शरीर में वितरित हो जाता है। ताकि वह शरीर के हर कोशिका में जाए जिसकी मदद से वह ऊर्जा पैदा कर सके, जिसकी मदद से वह शरीर की मरम्मत कर सके। इसका उपयोग शरीर के विकास में किया जा सकता है, या कुछ अन्य चयापचय गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा सकता है, इस तरह शरीर काम करता है। इस प्रकार भोजन कोशिकाओं में जाता है। आपका शरीर भोजन के साथ कैसा व्यवहार करता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि खाना स्वीकार करने के लिए हर सेल को अपना दरवाजा खोलना होता है। कोशिका स्वयं को नहीं खोल सकते। इसके लिए उन्हें ब्लड सर्कुलेशन में ख़ास केमिकल की जरूरत होती है, वह है "इंसुलिन"। आप कह सकते हैं कि इंसुलिन एक कुंजी है, कोशिका के दरवाजे की चाबी। इसका मतलब है, अगर इंसुलिन है, तभी कोशिका का दरवाजा खोला जा सकता है। और उसके बाद ही भोजन को कोशिकाओं में पहुँचाया जाएगा। यानी उनके शरीर की इंसुलिन बनाने वाली फैक्ट्री ठीक से काम नहीं करती है। इंसुलिन उत्पादन फैक्ट्री का नाम PANCREAS है । अग्न्याशय पेट के पीछे, जिगर के पीछे अंदर है। यह शरीर का एक छोटा अंग है, एक बहुत छोटा अंग है। यदि अग्न्याशय ठीक से काम नहीं करता है, तो इंसुलिन नामक कुंजी का उत्पादन नहीं होगा। इस मामले में, शरीर में भोजन के पर्याप्त संचलन के बावजूद, सेल इसका उपयोग नहीं कर पाएगा। उसे कहते हैं- हाई ब्लड शुगर, जिसे डायबिटीज कहते हैं। आप इसे अपने घर पर एक रेफ्रिजरेटर के रूप में मानते हैं जिसका दरवाजा बंद है। खाना उसके अंदर है, लेकिन तुम्हारे पास चाबी नहीं है, यानी मधुमेह। आप डॉक्टर के पास जाओ, वह आपको एक दवा देगा, जिसे मेटामॉर्फिन कहा जाता है। मेटामॉर्फिन सीधे लीवर पर हमला करता है, यह लीवर को ब्लड शुगर को नियमित करने के लिए मजबूर करता है। लेकिन यह तरकीब ज्यादा दिन तक नहीं चलती। कभी-कभी "मेटामॉर्फिन" लेने के बावजूद भी रोगी को आराम नहीं मिलता है , डॉक्टर ने "मेटामॉर्फिन" के साथ एक और दवा डाली, जिसे "सल्फ़ोनिल्युरस" कहा जाता है। यह दवा अग्न्याशय पर काम करती है। *यह दवा अग्न्याशय को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए मजबूर करती है। कभी-कभी, यह काम करता है। लेकिन उसके बाद दवाओं के बोझ के कारण अग्न्याशय पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, यानी शरीर इंसुलिन का उत्पादन बिल्कुल नहीं कर रहा है। अब, डॉक्टर कहेंगे, आपके शरीर ने इंसुलिन का उत्पादन बंद कर दिया है। इसका मतलब है कि आपको दिन में कई बार इंसुलिन को अपने शरीर में इंजेक्ट करना होगा। हर बार जब आप खाना खाएंगे तो आपको इंजेक्शन लगाना होगा। क्योंकि इंसुलिन बनाने वाली बॉडी की फैक्ट्री अब बंद हो गई है। यह यहीं नहीं रुकता क्योंकि वे अग्न्याशय क्षतिग्रस्त हैं। कुछ रोगी में अग्नाशय के कैंसर का खतरा होगा। लेकिन, दवा का एक और वर्ग है, जिसे अल्फा - ग्लुकोसिडेस इनहिबिटर कहा जाता है। यह दवा INTESTINE में काम करती है। यह दवा आंत को धीरे-धीरे कार्बोहाइड्रेट छोड़ने के लिए मजबूर करती है। लेकिन, इसके अपने साइड इफेक्ट होते हैं। इस वजह से अग्न्याशय पर अधिक भार पड़ता है। कुछ समय बाद ट्यूमर, कोलन कैंसर जैसे रोगों की समस्या होती है। फिर दवा का एक और वर्ग है, जिसे ग्लिटाज़ोन कहा जाता है! GLITAZONES एक ही समय में शरीर की प्रत्येक कोशिका पर कार्य करता है। ताकि इन्सुलिन के प्रति कोशिकाओं की संवेदनशीलता थोड़ी बढ़ जाए। लेकिन इस दवा के साथ समस्या यह है कि जो मरीज इन दवाओं को लेते हैं। कुछ वर्षों के बाद वे ब्लैडर कैंसर के रोगी बन जाते हैं। इसीलिए फ्रांस और जर्मनी सहित कई देशों ने GLITAZONES पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में लगभग 30 लाख रोगी GLITAZONES दवा लेते हैं। मेरा मतलब है कि यदि आप कुछ लंबे समय तक मधुमेह की दवाओं पर हैं, तो वह किसी और गंभीर बीमारी के साथ समाप्त हो जाएगा। भारत में 15% जनसंख्या जो मधुमेह रोगी हैं वह नेत्रहीन हैं। लगभग 20% आबादी ने अपना अंग खो दिया है। 50% से अधिक आबादी दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण वे किडनी फेल्योर के भी मरीज हैं।

   1947 तक हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी दवाओं के गुलाम हैं। हम सब मिलकर भारत को तीन डी - ड्रग्स, बीमारी और डॉक्टर से मुक्त करने में मदद कर सकते हैं। BUT DON'T WORRY , डायबिटीज़ या किसी भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ को हमेशा केलिए बाय बाय कहने का समय आ गया है। अब ये डायबिटीज़ या उच्च रक्तचाप, कैंसर या हार्ट ब्लाकेज, किडनी फेलियर हो या कि डायलिसिस -- ऐसी तमाम बिमारियां हमेशा केलिए "रिवर्स" (REVERSE) होंगी और वो भी केवल एक युनिक यूनानी दवा HEALTH IN BOX ™ से।

एक पैग़ाम

⭕ आपसे निवेदन है कि मेरे इस *"पैग़ाम"* को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करें ।

▶️ अगर आप बरसों से कैंसर, डायबिटीज, हाई बी.पी., हार्ट ब्लाकेज, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिसआर्डर, डायलिसिस, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पीड़ित हैं और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है । *केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक युनिक यूनानी दवा HEALTH IN BOX™ का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए "REVERSE" हो जाएगी । फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी । इन शा अल्लाह । अंग्रेज़ी दवाओं के अंधा धुंध इस्तेमाल करवा कर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है ।

☄️ डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है । लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है । और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है । ☄️ बी.पी. कम करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है । और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है ।

☄️ कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है।

⭕ सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है ।

🕹️ फैसला आपको ही करना है । और आज ही !

📍 चीनी खाने से होनेवाले नुकसान*

📌 चीनी कभी न खाएं । चीनी में शरीर के काम आने वाला एक भी पोषक तत्व नहीं होता । चीनी का मीठापन SUCROSE के कारण होता है । जो कि शरीर में हज़म नहीं होता । अगर होता है तो बहुत मुश्किल से होता है । जिसके साथ इसे आप खाओगे उसे भी हज़म नहीं होने देता । जो मीठापन हमारे काम का है, वो FRUCTOSE होता है । सभी फलों में मीठापन FRUCTOSE के कारण होता है । चीनी तभी से भारत में आई है जब से अंगरेज आए हैं । 1868 में सबसे पहली चीनी की मिल लगीं । पहले इसे मुफ्त में बंटवाया गया । चीनी से मोटापा बढ़ता है । चीनी से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है । जिससे 103 बीमारियाँ आती हैं । चीनी छोड़ने के बाद घुटनों का दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द सब में आराम मिलेगा । माइग्रेन, सर्दी-जुकाम, नींद अच्छी आएगी । स्नोफिलिया, साइनस, जैसी बीमारियों में भी लाभ मिलने लगेगा । चीनी बनाने में पानी बहुत बर्बाद होता है। चीनी मिलों के कचरे से वातावरण बहुत प्रदुषित होता है । चीनी में सबसे ज्यादा सल्फर पाया जाता है ।

⭕ जिसे हिन्दी में गंधक कहते हैं । जो कि पटाखे बनाने में काम आता है । ये सल्फर अंदर जानें के बाद बाहर नहीं निकलती । गुड़ में पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम आदि, जैसे सभी पोषक तत्व होते हैं । गुड़ बनाने के लिए बाहर से कुछ भी मिलाया नहीं जाता । भोजन के बाद थोड़ा गुड जरूर खायें । क्योंकि यह ख़ाना पचाने में बहुत मदद करता है ।


टूथ पेस्ट कैसे तैयार होता है ?

⭕ हजरत एक महत्वपूर्ण बात कहना था । अगर आप बुरा न मानें तो मैं कहना चाहता हूं । कोई भी टूथ पेस्ट कैसे बनता है । इस पर शायद अब तक किसी ने शोध नहीं किया है । यदि आप, विद्वान और न्यायविद, मुफ्ती, सच्चाई जानते, तो कोई भी टूथ पेस्ट मुसलमानों के लिए बिल्कुल "हराम" होता । टूथपेस्ट बनाने के लिए दो मुख्य चीजों की जरूरत होती है।

⭕ 1) D.I. CALCIUM PHOSPHATE

⭕ 2) SODIUM LOREN SULPHATE*

▶️ D.I. CALCIUM PHOSPHATE नामक रसायन प्राप्त करने के लिए केवल मृत जानवरों के हड्डियों के पाउडर का उपयोग किया जाता है । मरे हुए जानवरों की हड्डियों में वह कुत्ता, गधा, बैल, गाय, भैंस, सुअर किसी का भी हो सकता है । ▶️ दूसरा रसायन, SODIUM LOREN SULPHATE, झाग बनाने के लिए शैंपू में प्रयोग किया जाता है । और इन दोनों रसायनों के बिना कोई टूथपेस्ट बनाना असंभव है । ▶️ इसलिए इस उत्पाद को ISI MARK नहीं मिलता है ।

⏺️ क्योंकि यह सरकार की नजर में सबसे खराब गुणवत्ता वाला उत्पाद है । और आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों चीजों से "ओरल कैंसर" होता है । और आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले दस से पंद्रह सालों में "मुंह के कैंसर" के रोगियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है । वहीं दूसरी ओर दंत चिकित्सक की तो जैसे बाढ़ ही आ गई है ।

👉🏻 यह मसूड़ों, और दांतों की बीमारियां उन दंत चिकित्सकों के लिए लॉटरी की तरह है । 👉🏻 यह महत्वपूर्ण बात आप विद्वानों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचे तो बेहतर होगा ।

भारत में डायबिटीज़ से मरने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि

   तेज़ अनुवांशिक गड़बड़ी और बदलती जीवनशैली के कारण भारत में मधुमेह से होने वाली मौतों में साल 2005 से 2015 के बीच 50 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और यह देश में मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण है, जो कि 2005 में 11वां सबसे बड़ा कारण था। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज (जीबीडी) के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। वहीं, मौत का सबसे बड़ा कारण हृदय रोग बना हुआ है, उसके बाद क्रॉनिक फेफड़े का रोग, ब्रेन हेमरेज, श्वसन तंत्र में संक्रमण, दस्त रोग और तपेदिक का नंबर है। जीबीडी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में तपेदिक से कुल 3,46,000 लाख लोगों की मौत हुई, जो सालभर में हुई कुल मौतों का 3.3 फीसदी है। इसमें साल 2009 से 2.7 फीसदी का इजाफा हुआ है।हर एक लाख की आबादी पर 26 लोगों की मौत डायबटीज से हो जाती है। मधुमेह विकलांगता का भी प्रमुख कारण है और 2.4 फीसदी लोग इसके कारण ही विकलांग हो जाते हैं। भारत में कुल 6.91 करोड़ लोग मधुमेह के शिकार हैं जो कि दुनिया में चीन के बाद दूसरा नंबर है।


   चीन में कुल 10.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के डायबिटीज एटलस के मुताबिक भारत में मधुमेह से पीड़ित 3.6 करोड़ लोगों की जांच तक नहीं हुई है। देश के 20 से 79 साल की उम्र की आबादी का करीब 9 फीसदी मधुमेह से ग्रसित है। ये आंकड़े चिंताजनक है, क्योंकि मधुमेह एक क्रॉनिक रोग है, जो न केवल पैंक्रियाज की इंसुलिन निर्माण करने की क्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता, दृष्टि की हानि और न्यूरोपैथी या तंत्रिका तंत्र क्षति होती है जिसे पांव काटने तक की नौबत आ जाती है। 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा हो रही बीमारी:- अन्य देशों की तरह जहां ज्यादातर 60 साल के ऊपर के लोग ही मधुमेह के शिकार होते हैं। भारत में यह 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा पाया जाता है। इससे आबादी की उत्पादकता भी प्रभावित होती है। फोर्टिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डायबिटीज के मेटाबोलिक डिजिज एंड एंडोक्राइनोलॉजी के अध्यक्ष अनूप मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, "भारत में दुनिया से एक दशक पहले से ही मधुमेह फैला है। इससे उत्पादकता घटती है और जटिलताएं पैदा होती हैं। हमें मधुमेह से लड़ने के लिए पल्स पोलिया जैसा अभियान चलाने की जरूरत है, क्योंकि यह समस्या टीबी, एचआईवी और मलेरिया से भी बड़ी है।"


एक चैलेंज:-

  जिस किसी को भी #डायबिटीज़ या कोई भी #लाइफस्टाइल #डीज़ीज़ जैसे #उच्च रक्तचाप, #हृदय संबंधी प्राब्लम, #मोटापा, #कैंसर, #कोलेस्ट्रॉल, #थायराइड, #अर्थराइटिस, #सोरियासिस, #आंत व जिगर संबंधित रोग, #अस्थमा इत्यादि तकलीफ़ हो गई है उनके लिए मैंने काफ़ी रिसर्च करके एक युनिक यूनानी दवा तैयार की है जिसके सेवन से सिर्फ चार या छः या नौ महीने में उपरोक्त सभी प्रकार के रोग हमेशा केलिए रिवर्स हो जाती हैं। उस दवा का नाम है :- #HEALTH IN BOX ®" जिस दिन से इसे लेना शुरू करेंगे उसी दिन से आपकी तमाम अंग्रेज़ी दवाओं को छोड़ने केलिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसका कोर्स पूरा करने के पश्चात् आप बिल्कुल सेहतमंद जिंदगी गुज़ार सकते हैं, बिना किसी दवा के। इस दवा अबतक हज़ारों लोग इस तरह की लाइफस्टाइल डीज़ीज़ से मुक्त हो चुके हैं। आप भी आज़मा कर देख लें। 

मधुमेह के लक्षण

    मधुमेह (Diabetes ) को तमाम बिमारियों का जनक माना गया है।तिब्बे यूनानी में डायबिटीज़ को "उम्मुल अमराज़" कहा गया है। मधुमेह होने के बाद शरीर को बहुत सी बीमारियाँ आसानी से घेर लेती है । 35 वर्ष के बाद तो नियमित रूप से लोगों में "चेक अप" कराने की होड़ लगी रहती है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए आपको बताता चलूं कि आज हमारा मेडिकल साइंस इतना तरक़्क़ी कर गया है कि "आज वही लोग सेहतमंद हैं जो कभी डॉक्टर के पास नहीं गए, या जिन्होंने कभी चेक अप नहीं कराया। वैसे बहुत से ऐसे शुरूआती लक्षण है जिनसे मधुमेह होने का संकेत मिलने लगता है। इसलिए शरीर पर इन लक्षणों के नज़र आते ही सावधान हो जाना चाहिए , अपने खान-पान का ध्यान रखे , और कुशल चिकित्सक के पास जाकर शीघ्र ही परामर्श करने की कोशिश भी नहीं करें, क्योंकि वो तो जीवन भर ऐलोपैथिक मेडिसिन पर रखकर आपको वहां तक पहुंचाने वाले हैं जहां ये भी याद नहीं रहेगा कि पहली बार किस बीमारी के लिए दवा शुरू किया था। अगर डायबिटीज़ के लक्षण दिखाई देने लगे तो पहली फुरसत में ही मुझसे संपर्क करें और मेरी ख़ुद की बनाई हुई यूनानी मेडिसींस "HEALTH IN BOX" मंगवाकर कम से कम चार महीने प्रयोग करें।आप पायेंगे कि ये लोग जिसके लिए जीवन भर ऐलोपैथिक दवा लेने वाले थे,इन चंद महीनों में ही इनकी डायबिटीज़ हमेशा के लिए REVERSE हो गई है। एलोपैथी ड्रग माफिया के द्वारा खींची गई आंकड़ों के अनुसार FASTING , PP और Hb1Ac तो केवल आपको TRAP करने के लिए भर है।स्थिर आंकड़ा तो केवल मृत शरीर में ही रह सकता है, जबकि आप तो ज़िंदा हैं। आपका शूगर लेवल कुछ भी हो सकता है। आंकड़ों पर कभी भी भरोसा न करें।आप केवल इन लक्षणों को देखकर ही समझ सकते हैं कि आपके शरीर में डायबिटीज़ का हमला होने वाला है:-1. बार-बार पेशाब आना। 2. बहुत ज्यादा प्यास लगना। 3. बहुत पानी पीने के बाद भी गला सूखना। 4. खाना खाने के बाद भी बहुत भूख लगना। 5. मितली होना और कभी-कभी उल्टी होना। 6. हाथ-पैर में अकड़न और शरीर में झंझनाहट होना। 7. त्वचा में रूखापन आना। 8. चिड़चिड़ापन। 9. सिरदर्द। 10. शरीर का तापमान कम होना। 11. मांसपेशियों में दर्द। 12. वजन में कमी होना।


   यदि आप थोड़ी सी सावधानी बरतें, अपने जीवनशैली , खान-पान की आदतों में सुधार करें तो इसपर अवश्य ही विजय प्राप्त कर सकते हैं।

ASPARTAME

   ASPARTAME was invented by GD-SEARLE in 1965 and submitted for pre-marketing safety evaluation in early 1980s.


   The studies conducted by GD-SEARLE to evaluate the potential carcinogenic risks of aspartame did not show any effect. Because of the great commercial diffusion of aspartame,in 1997 the RAMAZZINI INSTITUTE started a large EXPERIMENTS project on rodents to rest the carcinogenic effects of aspartame in our EXPERIMENTAL model with more sensitive characteristics, namely large number of Rats and Mice, observation until NATURAL death. Overall the project included the study of 2,270 Rats and 852 Mice starting the Treatment from prenatal life or in mature age and lasting all life.


  ASPARTAME is a carcinogenic agent including a significant dose-related increased incidence of several types of malignant tumors and, among them, hematological neoplasias. Later this effects was confirmed tan EPIDEMIOLOGICAL study conducted by a group of the HARVARD UNIVERSITY.


एक चैलेंज:-

  मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। 

DIABETES - A CONSPIRACY.......!

   "Till 1947 , the country was slave to the ENGLISH MEN and, today it is slave to ENGLISH MEDICINES."     Nothing is the world can destroy your happiness, more than you trying to live with ILLNESSES,more than you trying to live with SICKNESS.In this world the most painful things to know keep trying to live with SICKNESS.It is possible that this time your mind is wandering in to so many thought. But still, this means there is some ray of hope at some corner of your mind that you wish your DIABETES can be cured. I want to tell you about one of the kind of REVOLUTIONARY LIFE STYLE method, with help of which, not only you will face yourself from the CLUTCHES of DIABETES.But you will be able to help people so that even they are able to cure the DIABETES. What are we required to do this? Are we supposed to take precautions? Are we required to be hungry? you are not required to be hungry stomach. Instead, you have to eat in plenty. Rather most of my DIABETIC PATIENTS.      Within the first week of applying this LIFE STYLE method, they are able to drink a glass of       " SUGARCANE JUICE", or if they like A DOZEN OF "BANANA",or may be A KG of  "MANGO".You have to eat in plenty.    Today in INDIA, 6.5 chores people are suffering from DIABETES.


   My intention behind the writing of this post is only one, and that is you!     I believe that with this method you will be able to cure yourself from DIABETES. Then you will help people. So that they are healthy again. Health is not just your right it is your responsibility as well.      You must be thinking that, if this technique is so REVOLUTIONARY. Then why I am not knowing this! why do DOCTORS not tell about this? To understand this, you will have to analyse these data of mine, in the last 10 years the nation has suffered the significant loss of  $ 246 billion due to DIABETES & its resultant diseases, which is just  $ 70 billion lesser than last year national budget. It is the huge money, it is a big industries. your illness is someone's HUGE PROFIT! !!They do not want you to be FREE FROM ILLNESSES, they only wish you to be SLAVE to diseases, SLAVE to medicines.     To understand this CONSPIRACY, you need to understand the FOOD AND DRUG MECHANISMS. Focus please! when you eat something be it CEREAL, VEGETABLE, CHAPATI, CURRY & FRUIT. The food goes from mouth to stomach, it goes to the intestine.At intestine, it breaks down into small particles. It goes to LIVER, there is reprocessing in liver. with the help of blood circulation, the food gets distributed in whole body. So that it goes to every CELLS of the body with the help of which it may produce energy, with the help of which, it may repair body. It may be used in the body growth, or may use for some other metabolic activities, that's how the body works. That's how the food goes into CELLS. That how your body behave with the food. But the interesting things is that in order to accept food. Every CELLS has to open its door. CELLS cannot open themselves. For this, they require the special chemical in blood circulation. That is "INSULIN".You can say INSULIN is a key.      A key for the doorsof CELLS. It means, if INSULIN is there, only then the CELLS door can be opened. And only then food will be transported into the CELLS. Means, the INSULIN producing factory of their body does not function well. The INSULIN production factory is named as PANCREAS. PANCREAS is somewhere behind stomach, somewhere behind the liver, somewhere inside. You can see here, but it is a small organ of the body, a very small organ.If PANCREAS  does not function well, the key named INSULIN will not be produced. In the case, in spite of the enough circulation of food in the body, CELLS won't be able to utilise it. That is called - HIGH BLOOD SUGAR, that is called DIABETES. you consider it as a REFRIGERATOR at your home with its door locked. The food is inside it, but you don't have the key. That is DIABETES. You go to DOCTOR. He will give you a class of DRUG, called - METAMORPHINE. METAMORPHINE directly attacks liver, it force liver to regularise the BLOOD SUGAR. But this trick does not last for long.


  After sometimes, in spite of taking METAMORPHINE, the patient does not get relief, DOCTOR added one more drug with METAMORPHINE, that is called SULFONILUREAS. This drug works on PANCREAS. This drug forces PANCREAS to produce more INSULIN. For sometimes, it works. But after that because of the burden of the MEDICINES, PANCREAS stop working altogether, that means the body is not producing INSULIN at all. Now, the DOCTOR will say, your body has stopped producing INSULIN. It means you need to inject INSULIN in your body several times in a day. You will have to inject every time you have food. Because the factory of the body to produce INSULIN is now shut down. It doesn't stop here since those PANCREAS are damaged .Few patients. In few will prone to PANCREATIC CANCER. But, there is another class of drug,that is called ALPHA-GLUCOSIDASE INHIBITOR. This drug works in INTESTINE. This drug forces intestine to release CARBOHYDRATES slowly. But, it has its own side effects. Because of this, the PANCREAS  are over-burdened.After sometime, there is the problem in the INTESTINE & COLON of such patients like TUMER , COLON CANCER.Then there is another class of drug,that is called GLITAZONES ! GLITAZONES works on every CELLS of the body at the same time. So that the CELLS sensitivity towards INSULIN to be raised a little.But the problem with this drug is that patients who take these drugs.After few years they endup becoming a BLADDER CANCER patient.    That why many countries has banned GLITAZONES including FRANCE & GERMANY. In INDIA near about 3 million patients take GLITAZONES drug. I mean if you are on a DIABETIC DRUGs for some long time, then that will be ending up with some another more serious illness. Tod,in INDIA 15% population who is DIABETIC is BLIND also. About 20% of the population  has lost their LIMBS. More than 50% of the population because of the side effects of the MEDICINES. They are also the KIDNEY FAILURE patients. Till 1947 , we were slave to the ENGLISH MEN and today we are slave to ENGLISH MEDICINES. Together we can help INDIA FREE FROM three D - DRUGS, DISEASE AND DOCTOR.

एक चैलेंज:-

   मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है।

سچائی اور ایمانداری کا روزگار

*سچائی اور ایمانداری کا روزگار:- DISCOUNTS :- 1:- 5 - 9 Packet's = 20% , 2:- 10 - 19 Packet's = 25% , 3:- 20 - 49 Packet's = 30% & 4:- 50 - 100 Packet's = 40% HEALTH IN BOX® کا ایک پیکٹ ایک ماہ کے لیے ہے۔ ایک پیکٹ کی قیمت صرف تین ہزار روپے (-/3000) ہے۔ مکرمی السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ ! امید ہے کہ مزاج گرامی بخیر ہونگے۔ الحمدللہ! آپ میری مہم سے جڑکر مندرجہ ذیل طریقہ سے اپنی آمدنی حاصل کر سکتے ہیں:- میں حکیم محمد ابو رضوان (جمشیدپور جھارکھنڈ) 1993 سے کلی طور پر صرف اپنی تیار کردہ یونانی دواؤں سے اپنے نجی مطب (UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE)میں طبی خدمات انجام دیتا آ رہا ہوں۔ کافی عرصہ سے ریسرچ و تحقیق وغیرہ کا کام بھی چلتا رہا اور جس کا نتیجہ ہے پچھلے چند سالوں سے اب صرف اور صرف "ایک ہی دوا" ®HEALTH IN BOX سے تمام اقسام کے بیماریوں کا علاج کرنے لگا۔ نتیجہ خاطر خواہ۔ پھر کیا تھا، میرے پاس تو جتنے بھی مریض آتے ہیں ان سب کو صرف اور صرف یہی ایک دوا دیتا ہوں۔ حضرت ! میں نے دیکھا ہے کہ مساجد کے امام، مدرسے کے مدرسین، حفاظ کرام، مفتی کرام، قاری حضرات، علماء کرام وغیرہم اپنی قلیل آمدنی اور محدود وسائل کے سبب ہر وقت تنگدستی کا شکار رہتے ہیں۔ تو، کیوں نہ وہ اس کام کو کرکے اپنی آمدنی میں اضافہ کرنے کی کوشش کریں۔ آج کے دور میں بھی علاج اتنا آسان ہے کہ میری اس دوا " HEALTH IN BOX" سے کوئی بھی انسان کسی بھی بیمار کا بآسانی علاج کر سکتا ہے۔ تو پھر آپ کیوں نہیں؟ اس مصیبت کی گھڑی میں جہاں کروڑوں لوگوں کے روزگار چھن گئے، بالخصوص بیروزگار مسلم نوجوان آگے بڑھ کر میرے اس پیشکش کو گلے لگانے کی کوشش کریں۔ "HEALTH IN BOX®" مکمل طور پر یونانی میڈیسن ہے ۔اسکے تمام اجزاء یونانی مفردات پر مشتمل ہے۔ اس دوا کا استعمال ہر عمر، ہر قسم کے امراض کے علاج میں کیا جاتا ہے۔ رزلٹ ماشاءاللہ۔ دوا کی پرچی پر جتنے ضوابط درج ہیں انکو صد فیصد فالو کرنے والے کو ہی صد فیصد رزلٹ پانے کا متمنی رہنا چاہیے۔ یہ در اصل کسی بیماری کے علاج کی دوا نہیں ہے، بلکہ یہ کسی بھی بیماری کے ہونے کے "اسباب" پر کام کرتا ہے۔ آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ تمام بیماریوں کے اسباب صرف اور صرف ایک ہی ہیں، اور وہ ہے:- " گلوکوز اور انسولین کا تال میل گڑبڑ ہونا۔" یعنی GLUCOSE اور INSULIN جب IMBALANCE هو جاتا ہے تو ہمارے جسم میں کوئی بھی بیماری ہو جائے گی۔ اس IMBALANCE کو REBALANCE کرنے سے ہی کوئی بھی بیماری ہو وہ REVERSE ہو جائے گی ہمیشہ کے لیے۔ اس METHOD کو UNIVERSAL LAW OF REBALANCING کہا جاتا ہے۔ HEALTH IN BOX ® تمام اقسام کی لائف سٹائل ڈیزیزیز جیسے:-کینسر، ڈائبیٹیز، ہائی بی پی، موٹاپا، ہارٹ بلاکیج، لیور ایبڈامینل اور کڈنی پرابلم، ڈائلیسس، سورائسس، سیکس پرابلم، مینٹل ہیلتھ پرابلم، کولسٹرول، تھائیرائڈ پرابلم، ہڈیوں و جوڑوں کے درد، وغیرہ بیماریوں کے لئے استعمال کیا جاتا ہے۔ اکثروبیشتر امراض میں اس دوا کا رزلٹ پہلے ہی روز مل جاتا ہے اور بڑی بڑی بیماریاں جس کے بارے میں ڈاکٹر حضرات تاحیات انگریزی دواؤں کے استعمال کرتے رہنے کی تاکید کرتے ہیں، ہمیشہ کے لیے "REVERSE" ہو جاتی ہیں، اور انگریزی دواؤں سے ہمیشہ کے لیے چھٹکارا بھی مل جاتا ہے اور آپ زندگی بھر آپ صحت مند زندگی گزاریں گے۔ یعنی یہ دوا اول روز سے ہی کام کرنا شروع کر دیتاہے۔ انشاءاللہ۔ "آپ سے خصوصی اپیل ہے کہ آپ میری بات پر غور کریں اور اپنا ذریعہ معاش بنائیں۔"یعنی، آپ میرے مشورے پر عمل کرکے "حکمت" کا پیشہ اختیار کریں گے تو بہتر ہوگا اور سب سے بڑی بات یہ ہے کہ آپ جس منصب پر فائز ہیں وہاں اس کام کو بخوبی انجام دے سکتے ہیں۔ اور اچھا خاصا انکم کر سکتے ہیں۔ اس معاملے میں ہر قسم کا تعاون کرونگا۔ آپکا خیر اندیش 

डायबिटीज़- एक बड़ी साज़िश

    आपका स्वागत है इस बीमार दुनिया में।आप सब किसी न किसी बीमारी में मुब्तला हैं।फिर या तो आप बरसों से डॉक्टर का चक्कर काट रहे हैं या उसके सुझाव पर सुबह से शाम तक अनगिनत दवाएं ले रहे हैं। आज का सबसे चर्चित बीमारी "डायबिटीज" ही तो है जो हमारे तिब्ब यूनानी चिकित्सा पद्धति में सिरे से बीमारी है ही नहीं।बल्कि यह किसी बीमारी का "लक्षण" ही तो है। आप मेरे इस पोस्ट को पढ़कर अपना ईरादा बदलने पर मजबूर हो जाएंगे, और ऐलोपैथिक दवा कभी भी नहीं लेंगे, ये मेरा दावा है।क्योंकि संसार के किसी भी हिस्से में आजतक ऐसा नहीं देखा गया कि दस,बीस, तीस या चालीस साल तक ऐलोपैथिक दवा का सेवन करने वाला "डायबिटीज" का रोगी स्वस्थ्य हो गया और दवाओं का सेवन बंद कर दिया। डायबिटीज के मेकानिज़्म को समझना जरूरी है।अगर अब भी न समझे तो ये फार्मास्युटिकल कंपनियां आगे भी आपको बीमारियों और दवाओं के बीच झूला झुलाती रहेंगी।क्योंकि, "डायबिटीज" यानि "ब्लड शुगर" ही सारे रोगों की जड़ है।तो,आइये मेकानिज़्म समझते हैं:- हम कुछ भी खाते हैं तो वो " ग्लूकोज़" ही बनता है जिससे हमें "एनर्जी" मिलती है।लेकिन, वो एनर्जी तभी मिलेगी जब ये "ग्लूकोज़" शरीर के हर "सेल" में जाए।ट्रक समान ब्लड "ग्लूकोज़ को लेकर भ्रमण करते हुए हर सेल के दरवाजे तक पहुंचता है,मगर सेल के अंदर दाखिल नहीं हो पाता, क्योंकि सेल का दरवाजा बंद रहता है। जिसे खोलने के लिए एक चाभी की ज़रूरत पड़ती है, जिसका नाम "ईन्सुलीन" है। ईन्सुलीन की प्रचूर मात्रा जबतक हमारे शरीर के भीतर मौजूद है तबतक ये मेकानिज़्म सुचारू ढंग से चलता रहता है। ड्रामा तो तब शुरू होता है जब ईन्सुलीन की कमी होने लगती है। अगर ग्लूकोज़ सेल का दरवाजा बंद होने की सूरत में सेल के अंदर दाखिल न हो पाया तो उसके दरवाजे पर ही BLOOD आर्ट्रीज़ के अंदर ग्लूकोज़ गिरा देता है।


   जिससे उस जगह पर चिपचिपा पन होने लगता है,और फिर वहाँ INFLAMMATION हो जाता है और फिर वहां पर कोलेस्ट्रॉल, इन्ज़ाइम, वसा ,खनिज,लवण ईत्यादि चिपकने लगते हैं। और रक्त धमनियों के अंदर उन कचरों के जमाव की वजह से संकरा होने लगता है। ये सूरतहाल अधिक समय तक रहने पर सेल की बजाय खून में ही ग्लूकोज़ घूमता रहता है। खून की जांच करने पर पता चलता है कि आपका शूगर लेवल बहुत बढ़ गया है। डॉक्टर आपको दवा देकर ग्लूकोज़ का नम्बर घटाकर बोलता है कि आपका शूगर लेवल नार्मल आ गया है, मगर दवाएं हमेशा लेते रहें वरन शूगर बढ़ जाएगा। इनकी चालाकी देखिये कि दवा खिलाकर शूगर का नम्बर तो घटा दिया, मगर आप ही उनसे सवाल करें कि ब्लड शुगर का लेवल तो घट गया, लेकिन ब्लड वाला बढ़ा हुआ शूगर कहां चला गया? इस सवाल का जवाब उनके पास है ही नहीं।और, दूसरा ये कि आज मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है, मगर खून की नली में जमने वाले उस कचरे को साफ करनेवाली दवा आजतक नहीं ईजाद की जा सकी। वरना "डायबिटीज" से एक भी ईन्सान घुट घुटकर नहीं मरता, आंखों की रौशनी नहीं खोता, किसी की किडनी फेल नहीं होती, और गैंगरीन होने की स्थिति में किसी का पांव नहीं काटना पड़ता। इसी तरह के "कचरे" का जमाव किसी भी बीमारी का कारण बनता है।यानी सभी प्रकार के रोगों का एक मात्र कारण यही "कचरे" का जमाव है।ये "कचरा" ग्लूकोज़ और ईन्सुलीन के बीच का आपसी तालमेल गड़बड़ हो जाना है। अगर इस कचरे को साफ कर दिया जाए और ग्लूकोज़ व ईन्सुलीन के अनुपात को ठीक कर दिया जाए तो डायबिटीज ही नहीं,बल्कि हर प्रकार की बीमारियां हमेशा केलिए समाप्त हो जाएंगे। लेकिन ऐसाआजतक नहीं हो पाया,जबकि मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है। मैं ने एक दवा तैयार की है जो ये सारे काम करने में सक्षम है।




डायबिटीज़ - "बीमारी नहीं,फ़ार्मा कंपनियों की साज़िश"* आज भारत में 7.5 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरी मंशा सिर्फ एक ही है, और वो हैं आप! मुझे विश्वास है कि इस विधि से आप DIABETES से खुद को ठीक कर पाएंगे। तब आप लोगों की मदद करेंगे। जिससे वे फिर से स्वस्थ हो जाएं। स्वास्थ्य न केवल आपका अधिकार है बल्कि आपकी जिम्मेदारी भी है। आप सोच रहे होंगे कि, अगर यह तकनीक इतनी क्रांतिकारी है। फिर मैं यह क्यों नहीं जान रहा हूँ। डॉक्टर इस बारे में क्यों नहीं बताते ? इसे समझने के लिए आपको मेरे इन आँकड़ों का विश्लेषण करना होगा। पिछले *10 वर्षों में देश को DIABETES और उससे होने वाली बीमारियों के कारण 246 बिलियन डॉलर का महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है,* जो पिछले साल के राष्ट्रीय बजट से सिर्फ 70 बिलियन डॉलर कम है। यह बहुत बड़ी रक़म है, यह एक बड़ा उद्योग है। आपकी बीमारी से किसी का बहुत बड़ा लाभ होता है। वे नहीं चाहते कि आप बीमारियों से मुक्त हों, वे केवल यही चाहते हैं कि आप बीमारियों के गुलाम हों, दवाओं के गुलाम हों। इस साजिश को समझने के लिए आपको खाद्य और औषधि तंत्र को समझना होगा । कृपया ध्यान दें! जब आप कुछ खाते हैं तो वह अनाज, सब्जी, चपाती, करी और फल हो। भोजन मुंह से पेट तक जाता है, आंत में जाता है। आंत में, यह छोटे कणों में टूट जाता है। यह लीवर में जाता है, लीवर में पुनर्संसाधन होता है। रक्त संचार की सहायता से भोजन पूरे शरीर में वितरित हो जाता है। ताकि वह शरीर के हर कोशिका में जाए जिसकी मदद से वह ऊर्जा पैदा कर सके, जिसकी मदद से वह शरीर की मरम्मत कर सके। इसका उपयोग शरीर के विकास में किया जा सकता है, या कुछ अन्य चयापचय गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा सकता है, इस तरह शरीर काम करता है। इस प्रकार भोजन कोशिकाओं में जाता है। आपका शरीर भोजन के साथ कैसा व्यवहार करता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि खाना स्वीकार करने के लिए हर सेल को अपना दरवाजा खोलना होता है। कोशिका स्वयं को नहीं खोल सकते। इसके लिए उन्हें ब्लड सर्कुलेशन में ख़ास केमिकल की जरूरत होती है, वह है "इंसुलिन"। आप कह सकते हैं कि इंसुलिन एक कुंजी है, कोशिका के दरवाजे की चाबी। इसका मतलब है, अगर इंसुलिन है, तभी कोशिका का दरवाजा खोला जा सकता है। और उसके बाद ही भोजन को कोशिकाओं में पहुँचाया जाएगा। यानी उनके शरीर की इंसुलिन बनाने वाली फैक्ट्री ठीक से काम नहीं करती है। इंसुलिन उत्पादन फैक्ट्री का नाम PANCREAS है । अग्न्याशय पेट के पीछे, जिगर के पीछे अंदर है। यह शरीर का एक छोटा अंग है, एक बहुत छोटा अंग है। यदि अग्न्याशय ठीक से काम नहीं करता है, तो इंसुलिन नामक कुंजी का उत्पादन नहीं होगा। इस मामले में, शरीर में भोजन के पर्याप्त संचलन के बावजूद, सेल इसका उपयोग नहीं कर पाएगा। उसे कहते हैं- हाई ब्लड शुगर, जिसे डायबिटीज कहते हैं। आप इसे अपने घर पर एक रेफ्रिजरेटर के रूप में मानते हैं जिसका दरवाजा बंद है। खाना उसके अंदर है, लेकिन तुम्हारे पास चाबी नहीं है, यानी मधुमेह। आप डॉक्टर के पास जाओ, वह आपको एक दवा देगा, जिसे मेटामॉर्फिन कहा जाता है। मेटामॉर्फिन सीधे लीवर पर हमला करता है, यह लीवर को ब्लड शुगर को नियमित करने के लिए मजबूर करता है। लेकिन यह तरकीब ज्यादा दिन तक नहीं चलती। कभी-कभी "मेटामॉर्फिन" लेने के बावजूद भी रोगी को आराम नहीं मिलता है , डॉक्टर ने "मेटामॉर्फिन" के साथ एक और दवा डाली, जिसे "सल्फ़ोनिल्युरस" कहा जाता है। यह दवा अग्न्याशय पर काम करती है। *यह दवा अग्न्याशय को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए मजबूर करती है। कभी-कभी, यह काम करता है। लेकिन उसके बाद दवाओं के बोझ के कारण अग्न्याशय पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, यानी शरीर इंसुलिन का उत्पादन बिल्कुल नहीं कर रहा है। अब, डॉक्टर कहेंगे, आपके शरीर ने इंसुलिन का उत्पादन बंद कर दिया है। इसका मतलब है कि आपको दिन में कई बार इंसुलिन को अपने शरीर में इंजेक्ट करना होगा। हर बार जब आप खाना खाएंगे तो आपको इंजेक्शन लगाना होगा। क्योंकि इंसुलिन बनाने वाली बॉडी की फैक्ट्री अब बंद हो गई है। यह यहीं नहीं रुकता क्योंकि वे अग्न्याशय क्षतिग्रस्त हैं। कुछ रोगी में अग्नाशय के कैंसर का खतरा होगा। लेकिन, दवा का एक और वर्ग है, जिसे अल्फा - ग्लुकोसिडेस इनहिबिटर कहा जाता है। यह दवा INTESTINE में काम करती है। यह दवा आंत को धीरे-धीरे कार्बोहाइड्रेट छोड़ने के लिए मजबूर करती है। लेकिन, इसके अपने साइड इफेक्ट होते हैं। इस वजह से अग्न्याशय पर अधिक भार पड़ता है। कुछ समय बाद ट्यूमर, कोलन कैंसर जैसे रोगों की समस्या होती है। फिर दवा का एक और वर्ग है, जिसे ग्लिटाज़ोन कहा जाता है! GLITAZONES एक ही समय में शरीर की प्रत्येक कोशिका पर कार्य करता है। ताकि इन्सुलिन के प्रति कोशिकाओं की संवेदनशीलता थोड़ी बढ़ जाए। लेकिन इस दवा के साथ समस्या यह है कि जो मरीज इन दवाओं को लेते हैं। कुछ वर्षों के बाद वे ब्लैडर कैंसर के रोगी बन जाते हैं। इसीलिए फ्रांस और जर्मनी सहित कई देशों ने GLITAZONES पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में लगभग 30 लाख रोगी GLITAZONES दवा लेते हैं। मेरा मतलब है कि यदि आप कुछ लंबे समय तक मधुमेह की दवाओं पर हैं, तो वह किसी और गंभीर बीमारी के साथ समाप्त हो जाएगा। भारत में 15% जनसंख्या जो मधुमेह रोगी हैं वह नेत्रहीन हैं। लगभग 20% आबादी ने अपना अंग खो दिया है। 50% से अधिक आबादी दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण वे किडनी फेल्योर के भी मरीज हैं।

   1947 तक हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी दवाओं के गुलाम हैं। हम सब मिलकर भारत को तीन डी - ड्रग्स, बीमारी और डॉक्टर से मुक्त करने में मदद कर सकते हैं। BUT DON'T WORRY , डायबिटीज़ या किसी भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ को हमेशा केलिए बाय बाय कहने का समय आ गया है। अब ये डायबिटीज़ या उच्च रक्तचाप, कैंसर या हार्ट ब्लाकेज, किडनी फेलियर हो या कि डायलिसिस -- ऐसी तमाम बिमारियां हमेशा केलिए "रिवर्स" (REVERSE) होंगी और वो भी केवल एक युनिक यूनानी दवा HEALTH IN BOX ™ से।

एक पैग़ाम

⭕ आपसे निवेदन है कि मेरे इस *"पैग़ाम"* को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करें ।

▶️ अगर आप बरसों से कैंसर, डायबिटीज, हाई बी.पी., हार्ट ब्लाकेज, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिसआर्डर, डायलिसिस, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पीड़ित हैं और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है । *केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक युनिक यूनानी दवा HEALTH IN BOX™ का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए "REVERSE" हो जाएगी । फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी । इन शा अल्लाह । अंग्रेज़ी दवाओं के अंधा धुंध इस्तेमाल करवा कर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है ।

☄️ डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है । लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है । और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है । ☄️ बी.पी. कम करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है । और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है ।

☄️ कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है।

⭕ सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है ।

🕹️ फैसला आपको ही करना है । और आज ही !

📍 चीनी खाने से होनेवाले नुकसान*

📌 चीनी कभी न खाएं । चीनी में शरीर के काम आने वाला एक भी पोषक तत्व नहीं होता । चीनी का मीठापन SUCROSE के कारण होता है । जो कि शरीर में हज़म नहीं होता । अगर होता है तो बहुत मुश्किल से होता है । जिसके साथ इसे आप खाओगे उसे भी हज़म नहीं होने देता । जो मीठापन हमारे काम का है, वो FRUCTOSE होता है । सभी फलों में मीठापन FRUCTOSE के कारण होता है । चीनी तभी से भारत में आई है जब से अंगरेज आए हैं । 1868 में सबसे पहली चीनी की मिल लगीं । पहले इसे मुफ्त में बंटवाया गया । चीनी से मोटापा बढ़ता है । चीनी से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है । जिससे 103 बीमारियाँ आती हैं । चीनी छोड़ने के बाद घुटनों का दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द सब में आराम मिलेगा । माइग्रेन, सर्दी-जुकाम, नींद अच्छी आएगी । स्नोफिलिया, साइनस, जैसी बीमारियों में भी लाभ मिलने लगेगा । चीनी बनाने में पानी बहुत बर्बाद होता है। चीनी मिलों के कचरे से वातावरण बहुत प्रदुषित होता है । चीनी में सबसे ज्यादा सल्फर पाया जाता है ।

⭕ जिसे हिन्दी में गंधक कहते हैं । जो कि पटाखे बनाने में काम आता है । ये सल्फर अंदर जानें के बाद बाहर नहीं निकलती । गुड़ में पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम आदि, जैसे सभी पोषक तत्व होते हैं । गुड़ बनाने के लिए बाहर से कुछ भी मिलाया नहीं जाता । भोजन के बाद थोड़ा गुड जरूर खायें । क्योंकि यह ख़ाना पचाने में बहुत मदद करता है ।


टूथ पेस्ट कैसे तैयार होता है ?

⭕ हजरत एक महत्वपूर्ण बात कहना था । अगर आप बुरा न मानें तो मैं कहना चाहता हूं । कोई भी टूथ पेस्ट कैसे बनता है । इस पर शायद अब तक किसी ने शोध नहीं किया है । यदि आप, विद्वान और न्यायविद, मुफ्ती, सच्चाई जानते, तो कोई भी टूथ पेस्ट मुसलमानों के लिए बिल्कुल "हराम" होता । टूथपेस्ट बनाने के लिए दो मुख्य चीजों की जरूरत होती है।

⭕ 1) D.I. CALCIUM PHOSPHATE

⭕ 2) SODIUM LOREN SULPHATE*

▶️ D.I. CALCIUM PHOSPHATE नामक रसायन प्राप्त करने के लिए केवल मृत जानवरों के हड्डियों के पाउडर का उपयोग किया जाता है । मरे हुए जानवरों की हड्डियों में वह कुत्ता, गधा, बैल, गाय, भैंस, सुअर किसी का भी हो सकता है । ▶️ दूसरा रसायन, SODIUM LOREN SULPHATE, झाग बनाने के लिए शैंपू में प्रयोग किया जाता है । और इन दोनों रसायनों के बिना कोई टूथपेस्ट बनाना असंभव है । ▶️ इसलिए इस उत्पाद को ISI MARK नहीं मिलता है ।

⏺️ क्योंकि यह सरकार की नजर में सबसे खराब गुणवत्ता वाला उत्पाद है । और आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों चीजों से "ओरल कैंसर" होता है । और आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले दस से पंद्रह सालों में "मुंह के कैंसर" के रोगियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है । वहीं दूसरी ओर दंत चिकित्सक की तो जैसे बाढ़ ही आ गई है ।

👉🏻 यह मसूड़ों, और दांतों की बीमारियां उन दंत चिकित्सकों के लिए लॉटरी की तरह है । 👉🏻 यह महत्वपूर्ण बात आप विद्वानों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचे तो बेहतर होगा ।

भारत में डायबिटीज़ से मरने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि

   तेज़ अनुवांशिक गड़बड़ी और बदलती जीवनशैली के कारण भारत में मधुमेह से होने वाली मौतों में साल 2005 से 2015 के बीच 50 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और यह देश में मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण है, जो कि 2005 में 11वां सबसे बड़ा कारण था। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज (जीबीडी) के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। वहीं, मौत का सबसे बड़ा कारण हृदय रोग बना हुआ है, उसके बाद क्रॉनिक फेफड़े का रोग, ब्रेन हेमरेज, श्वसन तंत्र में संक्रमण, दस्त रोग और तपेदिक का नंबर है। जीबीडी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में तपेदिक से कुल 3,46,000 लाख लोगों की मौत हुई, जो सालभर में हुई कुल मौतों का 3.3 फीसदी है। इसमें साल 2009 से 2.7 फीसदी का इजाफा हुआ है।हर एक लाख की आबादी पर 26 लोगों की मौत डायबटीज से हो जाती है। मधुमेह विकलांगता का भी प्रमुख कारण है और 2.4 फीसदी लोग इसके कारण ही विकलांग हो जाते हैं। भारत में कुल 6.91 करोड़ लोग मधुमेह के शिकार हैं जो कि दुनिया में चीन के बाद दूसरा नंबर है।


   चीन में कुल 10.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के डायबिटीज एटलस के मुताबिक भारत में मधुमेह से पीड़ित 3.6 करोड़ लोगों की जांच तक नहीं हुई है। देश के 20 से 79 साल की उम्र की आबादी का करीब 9 फीसदी मधुमेह से ग्रसित है। ये आंकड़े चिंताजनक है, क्योंकि मधुमेह एक क्रॉनिक रोग है, जो न केवल पैंक्रियाज की इंसुलिन निर्माण करने की क्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता, दृष्टि की हानि और न्यूरोपैथी या तंत्रिका तंत्र क्षति होती है जिसे पांव काटने तक की नौबत आ जाती है। 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा हो रही बीमारी:- अन्य देशों की तरह जहां ज्यादातर 60 साल के ऊपर के लोग ही मधुमेह के शिकार होते हैं। भारत में यह 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा पाया जाता है। इससे आबादी की उत्पादकता भी प्रभावित होती है। फोर्टिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डायबिटीज के मेटाबोलिक डिजिज एंड एंडोक्राइनोलॉजी के अध्यक्ष अनूप मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, "भारत में दुनिया से एक दशक पहले से ही मधुमेह फैला है। इससे उत्पादकता घटती है और जटिलताएं पैदा होती हैं। हमें मधुमेह से लड़ने के लिए पल्स पोलिया जैसा अभियान चलाने की जरूरत है, क्योंकि यह समस्या टीबी, एचआईवी और मलेरिया से भी बड़ी है।"


एक चैलेंज:-

  जिस किसी को भी #डायबिटीज़ या कोई भी #लाइफस्टाइल #डीज़ीज़ जैसे #उच्च रक्तचाप, #हृदय संबंधी प्राब्लम, #मोटापा, #कैंसर, #कोलेस्ट्रॉल, #थायराइड, #अर्थराइटिस, #सोरियासिस, #आंत व जिगर संबंधित रोग, #अस्थमा इत्यादि तकलीफ़ हो गई है उनके लिए मैंने काफ़ी रिसर्च करके एक युनिक यूनानी दवा तैयार की है जिसके सेवन से सिर्फ चार या छः या नौ महीने में उपरोक्त सभी प्रकार के रोग हमेशा केलिए रिवर्स हो जाती हैं। उस दवा का नाम है :- #HEALTH IN BOX ®" जिस दिन से इसे लेना शुरू करेंगे उसी दिन से आपकी तमाम अंग्रेज़ी दवाओं को छोड़ने केलिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसका कोर्स पूरा करने के पश्चात् आप बिल्कुल सेहतमंद जिंदगी गुज़ार सकते हैं, बिना किसी दवा के। इस दवा अबतक हज़ारों लोग इस तरह की लाइफस्टाइल डीज़ीज़ से मुक्त हो चुके हैं। आप भी आज़मा कर देख लें। 

मधुमेह के लक्षण

    मधुमेह (Diabetes ) को तमाम बिमारियों का जनक माना गया है।तिब्बे यूनानी में डायबिटीज़ को "उम्मुल अमराज़" कहा गया है। मधुमेह होने के बाद शरीर को बहुत सी बीमारियाँ आसानी से घेर लेती है । 35 वर्ष के बाद तो नियमित रूप से लोगों में "चेक अप" कराने की होड़ लगी रहती है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए आपको बताता चलूं कि आज हमारा मेडिकल साइंस इतना तरक़्क़ी कर गया है कि "आज वही लोग सेहतमंद हैं जो कभी डॉक्टर के पास नहीं गए, या जिन्होंने कभी चेक अप नहीं कराया। वैसे बहुत से ऐसे शुरूआती लक्षण है जिनसे मधुमेह होने का संकेत मिलने लगता है। इसलिए शरीर पर इन लक्षणों के नज़र आते ही सावधान हो जाना चाहिए , अपने खान-पान का ध्यान रखे , और कुशल चिकित्सक के पास जाकर शीघ्र ही परामर्श करने की कोशिश भी नहीं करें, क्योंकि वो तो जीवन भर ऐलोपैथिक मेडिसिन पर रखकर आपको वहां तक पहुंचाने वाले हैं जहां ये भी याद नहीं रहेगा कि पहली बार किस बीमारी के लिए दवा शुरू किया था। अगर डायबिटीज़ के लक्षण दिखाई देने लगे तो पहली फुरसत में ही मुझसे संपर्क करें और मेरी ख़ुद की बनाई हुई यूनानी मेडिसींस "HEALTH IN BOX" मंगवाकर कम से कम चार महीने प्रयोग करें।आप पायेंगे कि ये लोग जिसके लिए जीवन भर ऐलोपैथिक दवा लेने वाले थे,इन चंद महीनों में ही इनकी डायबिटीज़ हमेशा के लिए REVERSE हो गई है। एलोपैथी ड्रग माफिया के द्वारा खींची गई आंकड़ों के अनुसार FASTING , PP और Hb1Ac तो केवल आपको TRAP करने के लिए भर है।स्थिर आंकड़ा तो केवल मृत शरीर में ही रह सकता है, जबकि आप तो ज़िंदा हैं। आपका शूगर लेवल कुछ भी हो सकता है। आंकड़ों पर कभी भी भरोसा न करें।आप केवल इन लक्षणों को देखकर ही समझ सकते हैं कि आपके शरीर में डायबिटीज़ का हमला होने वाला है:-1. बार-बार पेशाब आना। 2. बहुत ज्यादा प्यास लगना। 3. बहुत पानी पीने के बाद भी गला सूखना। 4. खाना खाने के बाद भी बहुत भूख लगना। 5. मितली होना और कभी-कभी उल्टी होना। 6. हाथ-पैर में अकड़न और शरीर में झंझनाहट होना। 7. त्वचा में रूखापन आना। 8. चिड़चिड़ापन। 9. सिरदर्द। 10. शरीर का तापमान कम होना। 11. मांसपेशियों में दर्द। 12. वजन में कमी होना।


   यदि आप थोड़ी सी सावधानी बरतें, अपने जीवनशैली , खान-पान की आदतों में सुधार करें तो इसपर अवश्य ही विजय प्राप्त कर सकते हैं।

ASPARTAME

   ASPARTAME was invented by GD-SEARLE in 1965 and submitted for pre-marketing safety evaluation in early 1980s.


   The studies conducted by GD-SEARLE to evaluate the potential carcinogenic risks of aspartame did not show any effect. Because of the great commercial diffusion of aspartame,in 1997 the RAMAZZINI INSTITUTE started a large EXPERIMENTS project on rodents to rest the carcinogenic effects of aspartame in our EXPERIMENTAL model with more sensitive characteristics, namely large number of Rats and Mice, observation until NATURAL death. Overall the project included the study of 2,270 Rats and 852 Mice starting the Treatment from prenatal life or in mature age and lasting all life.


  ASPARTAME is a carcinogenic agent including a significant dose-related increased incidence of several types of malignant tumors and, among them, hematological neoplasias. Later this effects was confirmed tan EPIDEMIOLOGICAL study conducted by a group of the HARVARD UNIVERSITY.


एक चैलेंज:-

  मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। 

DIABETES - A CONSPIRACY.......!

   "Till 1947 , the country was slave to the ENGLISH MEN and, today it is slave to ENGLISH MEDICINES."     Nothing is the world can destroy your happiness, more than you trying to live with ILLNESSES,more than you trying to live with SICKNESS.In this world the most painful things to know keep trying to live with SICKNESS.It is possible that this time your mind is wandering in to so many thought. But still, this means there is some ray of hope at some corner of your mind that you wish your DIABETES can be cured. I want to tell you about one of the kind of REVOLUTIONARY LIFE STYLE method, with help of which, not only you will face yourself from the CLUTCHES of DIABETES.But you will be able to help people so that even they are able to cure the DIABETES. What are we required to do this? Are we supposed to take precautions? Are we required to be hungry? you are not required to be hungry stomach. Instead, you have to eat in plenty. Rather most of my DIABETIC PATIENTS.      Within the first week of applying this LIFE STYLE method, they are able to drink a glass of       " SUGARCANE JUICE", or if they like A DOZEN OF "BANANA",or may be A KG of  "MANGO".You have to eat in plenty.    Today in INDIA, 6.5 chores people are suffering from DIABETES.


   My intention behind the writing of this post is only one, and that is you!     I believe that with this method you will be able to cure yourself from DIABETES. Then you will help people. So that they are healthy again. Health is not just your right it is your responsibility as well.      You must be thinking that, if this technique is so REVOLUTIONARY. Then why I am not knowing this! why do DOCTORS not tell about this? To understand this, you will have to analyse these data of mine, in the last 10 years the nation has suffered the significant loss of  $ 246 billion due to DIABETES & its resultant diseases, which is just  $ 70 billion lesser than last year national budget. It is the huge money, it is a big industries. your illness is someone's HUGE PROFIT! !!They do not want you to be FREE FROM ILLNESSES, they only wish you to be SLAVE to diseases, SLAVE to medicines.     To understand this CONSPIRACY, you need to understand the FOOD AND DRUG MECHANISMS. Focus please! when you eat something be it CEREAL, VEGETABLE, CHAPATI, CURRY & FRUIT. The food goes from mouth to stomach, it goes to the intestine.At intestine, it breaks down into small particles. It goes to LIVER, there is reprocessing in liver. with the help of blood circulation, the food gets distributed in whole body. So that it goes to every CELLS of the body with the help of which it may produce energy, with the help of which, it may repair body. It may be used in the body growth, or may use for some other metabolic activities, that's how the body works. That's how the food goes into CELLS. That how your body behave with the food. But the interesting things is that in order to accept food. Every CELLS has to open its door. CELLS cannot open themselves. For this, they require the special chemical in blood circulation. That is "INSULIN".You can say INSULIN is a key.      A key for the doorsof CELLS. It means, if INSULIN is there, only then the CELLS door can be opened. And only then food will be transported into the CELLS. Means, the INSULIN producing factory of their body does not function well. The INSULIN production factory is named as PANCREAS. PANCREAS is somewhere behind stomach, somewhere behind the liver, somewhere inside. You can see here, but it is a small organ of the body, a very small organ.If PANCREAS  does not function well, the key named INSULIN will not be produced. In the case, in spite of the enough circulation of food in the body, CELLS won't be able to utilise it. That is called - HIGH BLOOD SUGAR, that is called DIABETES. you consider it as a REFRIGERATOR at your home with its door locked. The food is inside it, but you don't have the key. That is DIABETES. You go to DOCTOR. He will give you a class of DRUG, called - METAMORPHINE. METAMORPHINE directly attacks liver, it force liver to regularise the BLOOD SUGAR. But this trick does not last for long.


  After sometimes, in spite of taking METAMORPHINE, the patient does not get relief, DOCTOR added one more drug with METAMORPHINE, that is called SULFONILUREAS. This drug works on PANCREAS. This drug forces PANCREAS to produce more INSULIN. For sometimes, it works. But after that because of the burden of the MEDICINES, PANCREAS stop working altogether, that means the body is not producing INSULIN at all. Now, the DOCTOR will say, your body has stopped producing INSULIN. It means you need to inject INSULIN in your body several times in a day. You will have to inject every time you have food. Because the factory of the body to produce INSULIN is now shut down. It doesn't stop here since those PANCREAS are damaged .Few patients. In few will prone to PANCREATIC CANCER. But, there is another class of drug,that is called ALPHA-GLUCOSIDASE INHIBITOR. This drug works in INTESTINE. This drug forces intestine to release CARBOHYDRATES slowly. But, it has its own side effects. Because of this, the PANCREAS  are over-burdened.After sometime, there is the problem in the INTESTINE & COLON of such patients like TUMER , COLON CANCER.Then there is another class of drug,that is called GLITAZONES ! GLITAZONES works on every CELLS of the body at the same time. So that the CELLS sensitivity towards INSULIN to be raised a little.But the problem with this drug is that patients who take these drugs.After few years they endup becoming a BLADDER CANCER patient.    That why many countries has banned GLITAZONES including FRANCE & GERMANY. In INDIA near about 3 million patients take GLITAZONES drug. I mean if you are on a DIABETIC DRUGs for some long time, then that will be ending up with some another more serious illness. Tod,in INDIA 15% population who is DIABETIC is BLIND also. About 20% of the population  has lost their LIMBS. More than 50% of the population because of the side effects of the MEDICINES. They are also the KIDNEY FAILURE patients. Till 1947 , we were slave to the ENGLISH MEN and today we are slave to ENGLISH MEDICINES. Together we can help INDIA FREE FROM three D - DRUGS, DISEASE AND DOCTOR.

एक चैलेंज:-

   मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है।

سچائی اور ایمانداری کا روزگار

*سچائی اور ایمانداری کا روزگار:- DISCOUNTS :- 1:- 5 - 9 Packet's = 20% , 2:- 10 - 19 Packet's = 25% , 3:- 20 - 49 Packet's = 30% & 4:- 50 - 100 Packet's = 40% HEALTH IN BOX® کا ایک پیکٹ ایک ماہ کے لیے ہے۔ ایک پیکٹ کی قیمت صرف تین ہزار روپے (-/3000) ہے۔ مکرمی السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ ! امید ہے کہ مزاج گرامی بخیر ہونگے۔ الحمدللہ! آپ میری مہم سے جڑکر مندرجہ ذیل طریقہ سے اپنی آمدنی حاصل کر سکتے ہیں:- میں حکیم محمد ابو رضوان (جمشیدپور جھارکھنڈ) 1993 سے کلی طور پر صرف اپنی تیار کردہ یونانی دواؤں سے اپنے نجی مطب (UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE)میں طبی خدمات انجام دیتا آ رہا ہوں۔ کافی عرصہ سے ریسرچ و تحقیق وغیرہ کا کام بھی چلتا رہا اور جس کا نتیجہ ہے پچھلے چند سالوں سے اب صرف اور صرف "ایک ہی دوا" ®HEALTH IN BOX سے تمام اقسام کے بیماریوں کا علاج کرنے لگا۔ نتیجہ خاطر خواہ۔ پھر کیا تھا، میرے پاس تو جتنے بھی مریض آتے ہیں ان سب کو صرف اور صرف یہی ایک دوا دیتا ہوں۔ حضرت ! میں نے دیکھا ہے کہ مساجد کے امام، مدرسے کے مدرسین، حفاظ کرام، مفتی کرام، قاری حضرات، علماء کرام وغیرہم اپنی قلیل آمدنی اور محدود وسائل کے سبب ہر وقت تنگدستی کا شکار رہتے ہیں۔ تو، کیوں نہ وہ اس کام کو کرکے اپنی آمدنی میں اضافہ کرنے کی کوشش کریں۔ آج کے دور میں بھی علاج اتنا آسان ہے کہ میری اس دوا " HEALTH IN BOX" سے کوئی بھی انسان کسی بھی بیمار کا بآسانی علاج کر سکتا ہے۔ تو پھر آپ کیوں نہیں؟ اس مصیبت کی گھڑی میں جہاں کروڑوں لوگوں کے روزگار چھن گئے، بالخصوص بیروزگار مسلم نوجوان آگے بڑھ کر میرے اس پیشکش کو گلے لگانے کی کوشش کریں۔ "HEALTH IN BOX®" مکمل طور پر یونانی میڈیسن ہے ۔اسکے تمام اجزاء یونانی مفردات پر مشتمل ہے۔ اس دوا کا استعمال ہر عمر، ہر قسم کے امراض کے علاج میں کیا جاتا ہے۔ رزلٹ ماشاءاللہ۔ دوا کی پرچی پر جتنے ضوابط درج ہیں انکو صد فیصد فالو کرنے والے کو ہی صد فیصد رزلٹ پانے کا متمنی رہنا چاہیے۔ یہ در اصل کسی بیماری کے علاج کی دوا نہیں ہے، بلکہ یہ کسی بھی بیماری کے ہونے کے "اسباب" پر کام کرتا ہے۔ آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ تمام بیماریوں کے اسباب صرف اور صرف ایک ہی ہیں، اور وہ ہے:- " گلوکوز اور انسولین کا تال میل گڑبڑ ہونا۔" یعنی GLUCOSE اور INSULIN جب IMBALANCE هو جاتا ہے تو ہمارے جسم میں کوئی بھی بیماری ہو جائے گی۔ اس IMBALANCE کو REBALANCE کرنے سے ہی کوئی بھی بیماری ہو وہ REVERSE ہو جائے گی ہمیشہ کے لیے۔ اس METHOD کو UNIVERSAL LAW OF REBALANCING کہا جاتا ہے۔ HEALTH IN BOX ® تمام اقسام کی لائف سٹائل ڈیزیزیز جیسے:-کینسر، ڈائبیٹیز، ہائی بی پی، موٹاپا، ہارٹ بلاکیج، لیور ایبڈامینل اور کڈنی پرابلم، ڈائلیسس، سورائسس، سیکس پرابلم، مینٹل ہیلتھ پرابلم، کولسٹرول، تھائیرائڈ پرابلم، ہڈیوں و جوڑوں کے درد، وغیرہ بیماریوں کے لئے استعمال کیا جاتا ہے۔ اکثروبیشتر امراض میں اس دوا کا رزلٹ پہلے ہی روز مل جاتا ہے اور بڑی بڑی بیماریاں جس کے بارے میں ڈاکٹر حضرات تاحیات انگریزی دواؤں کے استعمال کرتے رہنے کی تاکید کرتے ہیں، ہمیشہ کے لیے "REVERSE" ہو جاتی ہیں، اور انگریزی دواؤں سے ہمیشہ کے لیے چھٹکارا بھی مل جاتا ہے اور آپ زندگی بھر آپ صحت مند زندگی گزاریں گے۔ یعنی یہ دوا اول روز سے ہی کام کرنا شروع کر دیتاہے۔ انشاءاللہ۔ "آپ سے خصوصی اپیل ہے کہ آپ میری بات پر غور کریں اور اپنا ذریعہ معاش بنائیں۔"یعنی، آپ میرے مشورے پر عمل کرکے "حکمت" کا پیشہ اختیار کریں گے تو بہتر ہوگا اور سب سے بڑی بات یہ ہے کہ آپ جس منصب پر فائز ہیں وہاں اس کام کو بخوبی انجام دے سکتے ہیں۔ اور اچھا خاصا انکم کر سکتے ہیں۔ اس معاملے میں ہر قسم کا تعاون کرونگا۔ آپکا خیر اندیش 

डायबिटीज़- एक बड़ी साज़िश

    आपका स्वागत है इस बीमार दुनिया में।आप सब किसी न किसी बीमारी में मुब्तला हैं।फिर या तो आप बरसों से डॉक्टर का चक्कर काट रहे हैं या उसके सुझाव पर सुबह से शाम तक अनगिनत दवाएं ले रहे हैं। आज का सबसे चर्चित बीमारी "डायबिटीज" ही तो है जो हमारे तिब्ब यूनानी चिकित्सा पद्धति में सिरे से बीमारी है ही नहीं।बल्कि यह किसी बीमारी का "लक्षण" ही तो है। आप मेरे इस पोस्ट को पढ़कर अपना ईरादा बदलने पर मजबूर हो जाएंगे, और ऐलोपैथिक दवा कभी भी नहीं लेंगे, ये मेरा दावा है।क्योंकि संसार के किसी भी हिस्से में आजतक ऐसा नहीं देखा गया कि दस,बीस, तीस या चालीस साल तक ऐलोपैथिक दवा का सेवन करने वाला "डायबिटीज" का रोगी स्वस्थ्य हो गया और दवाओं का सेवन बंद कर दिया। डायबिटीज के मेकानिज़्म को समझना जरूरी है।अगर अब भी न समझे तो ये फार्मास्युटिकल कंपनियां आगे भी आपको बीमारियों और दवाओं के बीच झूला झुलाती रहेंगी।क्योंकि, "डायबिटीज" यानि "ब्लड शुगर" ही सारे रोगों की जड़ है।तो,आइये मेकानिज़्म समझते हैं:- हम कुछ भी खाते हैं तो वो " ग्लूकोज़" ही बनता है जिससे हमें "एनर्जी" मिलती है।लेकिन, वो एनर्जी तभी मिलेगी जब ये "ग्लूकोज़" शरीर के हर "सेल" में जाए।ट्रक समान ब्लड "ग्लूकोज़ को लेकर भ्रमण करते हुए हर सेल के दरवाजे तक पहुंचता है,मगर सेल के अंदर दाखिल नहीं हो पाता, क्योंकि सेल का दरवाजा बंद रहता है। जिसे खोलने के लिए एक चाभी की ज़रूरत पड़ती है, जिसका नाम "ईन्सुलीन" है। ईन्सुलीन की प्रचूर मात्रा जबतक हमारे शरीर के भीतर मौजूद है तबतक ये मेकानिज़्म सुचारू ढंग से चलता रहता है। ड्रामा तो तब शुरू होता है जब ईन्सुलीन की कमी होने लगती है। अगर ग्लूकोज़ सेल का दरवाजा बंद होने की सूरत में सेल के अंदर दाखिल न हो पाया तो उसके दरवाजे पर ही BLOOD आर्ट्रीज़ के अंदर ग्लूकोज़ गिरा देता है।


   जिससे उस जगह पर चिपचिपा पन होने लगता है,और फिर वहाँ INFLAMMATION हो जाता है और फिर वहां पर कोलेस्ट्रॉल, इन्ज़ाइम, वसा ,खनिज,लवण ईत्यादि चिपकने लगते हैं। और रक्त धमनियों के अंदर उन कचरों के जमाव की वजह से संकरा होने लगता है। ये सूरतहाल अधिक समय तक रहने पर सेल की बजाय खून में ही ग्लूकोज़ घूमता रहता है। खून की जांच करने पर पता चलता है कि आपका शूगर लेवल बहुत बढ़ गया है। डॉक्टर आपको दवा देकर ग्लूकोज़ का नम्बर घटाकर बोलता है कि आपका शूगर लेवल नार्मल आ गया है, मगर दवाएं हमेशा लेते रहें वरन शूगर बढ़ जाएगा। इनकी चालाकी देखिये कि दवा खिलाकर शूगर का नम्बर तो घटा दिया, मगर आप ही उनसे सवाल करें कि ब्लड शुगर का लेवल तो घट गया, लेकिन ब्लड वाला बढ़ा हुआ शूगर कहां चला गया? इस सवाल का जवाब उनके पास है ही नहीं।और, दूसरा ये कि आज मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है, मगर खून की नली में जमने वाले उस कचरे को साफ करनेवाली दवा आजतक नहीं ईजाद की जा सकी। वरना "डायबिटीज" से एक भी ईन्सान घुट घुटकर नहीं मरता, आंखों की रौशनी नहीं खोता, किसी की किडनी फेल नहीं होती, और गैंगरीन होने की स्थिति में किसी का पांव नहीं काटना पड़ता। इसी तरह के "कचरे" का जमाव किसी भी बीमारी का कारण बनता है।यानी सभी प्रकार के रोगों का एक मात्र कारण यही "कचरे" का जमाव है।ये "कचरा" ग्लूकोज़ और ईन्सुलीन के बीच का आपसी तालमेल गड़बड़ हो जाना है। अगर इस कचरे को साफ कर दिया जाए और ग्लूकोज़ व ईन्सुलीन के अनुपात को ठीक कर दिया जाए तो डायबिटीज ही नहीं,बल्कि हर प्रकार की बीमारियां हमेशा केलिए समाप्त हो जाएंगे। लेकिन ऐसाआजतक नहीं हो पाया,जबकि मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है। मैं ने एक दवा तैयार की है जो ये सारे काम करने में सक्षम है।



कोविड वैक्सीन के लिए गर्भवती गायों का क़त्ल

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Last updated date 29/09/2022


"DISEASE FREE WORLD" ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU ! भारतीय कोविड वैक्सीन विकसित करने के लिए नवजात पशुओं के ख़ून का प्रयोग:- वैक्सीन के विकास जैसी बायोलॉजिकल रिसर्च में, नवजात पशु का ब्लड सिरम एक प्रमुख घटक है, जो आयात के लिए व्यापक रूप से उपलब्ध है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और भारत बायोटेक की ओर से, उनके द्वारा विकसित की जा रही, कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सिन के बारे में, हाल ही में जारी एक रिसर्च पेपर में, वैज्ञानिकों ने उल्लेख किया है, कि इसमें इस्तेमाल हो रहा एक प्रमुख घटक, नवजात पशु से लिया गया ब्लड सिरम है। ये घटक कोविड वैक्सीन में पहली बार इस्तेमाल नहीं हो रहा है; नवजात पशु से लिया गया ब्लड सिरम, बायोल़जिकल रिसर्च का एक ज़रूरी हिस्सा होता है, और आमतौर से दूसरे देशों से आयात होता है। हालांकि अब इसके कुछ कृत्रिम विकल्प भी उपलब्ध हैं, लेकिन पशु सिरम उत्पादों की व्यापक उपलब्धता ने, इसे कोविड वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया का, एक प्रमुख हिस्सा बना दिया है। नवजात पशु के रक्त के इस्तेमाल का विज्ञान:- कोवैक्सिन निष्क्रिय किए गए वैक्सीन्स की श्रेणी में आती है, जिसमें पैथोजंस को निष्क्रिय कर दिया जाता है, ताकि ये संक्रमण न फैला सकें. लेकिन फिर भी शरीर का इम्यून सिस्टम, वायरस के कुछ हिस्सों को पहचान सकता है, जिससे एक प्रतिक्रिया चालू हो जाती है. वैक्सीन तैयार करने के लिए, लैब में वेरो सीसीएल-81 सेल्स विकसित किए जाते हैं- जो एक सामान्य वयस्क अफ्रीकी ग्रीन मंकी के, गुर्दों से लिए गए सेल्स होते हैं. इस सेल्स को फिर नियंत्रित परिस्थितियों में, बायोरिएक्टर्स के अंदर सार्स-सीओवी-2 वायरस के सामने लाया जाता है. क़रीब 36 घंटे के बाद इस वायरस को निकालकर, निष्क्रिय कर दिया जाता है। निष्क्रिय किए गए वायरस को, कुछ गुणवर्धक औषधियों के साथ मिलाया जाता है- ऐसे पदार्थ जो इम्यून रेस्पॉन्स को बढ़ाते हैं. कोवैक्सिन के मामले में ये औषधियां फिटकिरी, और इमीडैज़ोकुईनोलीन कहा जाने वाला एक मॉलीक्यूल होता है, जो वायरसों से आरएनए की बेहतर पहचान करने में, शरीर की सहायता करता है। लैब में सेल्स विकसित करने के लिए, वैज्ञानिकों को ऐसी परिस्थितियां पैदा करनी पड़ती हैं, जिनमें सेल्स बंटकर ऐसे विशिष्ट सेल्स का रूप ले लें, जो उनके प्रयोगों के लिए चाहिए होता है। कोवैक्सिन के लिए वैज्ञानिकों ने नवजात बछड़े के 5-10 प्रतिशत सिरम के साथ, डलबेको का मॉडिफाइड ईगल मीडियम (डीएमईएम) इस्तेमाल किया. डीएमईएम में कई ज़रूरी पोषक होते हैं, जो सेल को बांटने के लिए आवश्यक होते हैं। लेकिन, अलग अलग तरह के सेल्स को सक्रिय करने के लिए, बहुकोशिकीय जीवों के सेल्स को, बटवारे के लिए पोषकों पर निर्भर रहने के अलावा, कुछ अन्य स्पेशल मॉलिक्यूल्स की ज़रूरत होती है, जिन्हें ‘ग्रोथ फैक्टर्स’ कहा जाता है। सेल्स के अंदर रिसेप्टर्स होते हैं, जो अलग अलग ग्रोथ फैक्टर्स को रेस्पांड करते हैं। इन ग्रोथ फैक्टर्स को नियमित करके, वैज्ञानिक ये नियंत्रित कर सकते हैं, कि किस तरह के सेल विकसित होंगे। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के, सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिकुलर बायोल़जी की एक वैज्ञानिक, वी राधा ने दिप्रिंट को समझाया, ‘विकास का विनियमन अगर केवल पोषकों पर आधारित होता, तो हमारे पास एक जैसे सेल्स से भरा बैग होता। कोई विभेदन या विशेष कार्य न होते’। उन्होंने बताया, ‘किसी भ्रूण के विशेष क्षेत्र में, ग्रोथ को रोकने या बढ़ाने के लिए, प्रकृति ने एक संकेत झरना क़ायम किया है, और ये कंट्रोल मॉलिक्यूल्स के एक सेट पर निर्भर होता है, जिन्हें ग्रोथ फैक्टर्स कहते हैं’। बहुकोशिकीय जीवों के इस पहलू को समझने में बहुत साल लग गए, और पिछले 70 सालों में ही वैज्ञानिक, शरीर के बाहर सेल्स विकसित करना शुरू कर पाए। वैज्ञानिकों ने गाय के भ्रूण से निकाले गए सिरम का, व्यापक रूप से इस्तेमाल किया, जिनमें ये ग्रोथ फैक्टर्स बहुत मात्रा में होते हैं। भ्रूण का सिरम लेने के लिए, गर्भवती गाय को मारकर उसका भ्रूण निकाला जाता है। फिर उस भ्रूण से ख़ून निकालकर लैब में भेजा जाता है, जहां सिरम को अलग किया जाता है। पिछले कुछ सालों में नैतिक दुविधा, और इस प्रक्रिया की निर्दयता को देखते हुए, वैज्ञानिक नवजात बछड़ों से निकाला गया सिरम इस्तेमाल करने लगे। इसमें बछड़े की पैदाइश के 3 से 10 दिन के भीतर, इसका ब्लड ले लिया जाता है। ‘इसमें सिर्फ एक समस्या ये है, कि तब तक ख़ून में एंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं, जो लैब के प्रयोगों में दख़ल डाल सकते हैं’। उन्होंने आगे कहा कि इसमें ख़ासतौर से तब समस्या हो सकती है, अगर लैबोरेटरी के काम में, ऐसे व्हाइट ब्लड सेल्स विकसित करने पड़ जाएं, जो किसी भी जानवर के इम्यून सिस्टम में शामिल होते हैं। इस पर क़ाबू पाने के लिए, सिरम को एक निर्धारित समय तक गर्म किया जाता है, जो ‘कॉम्प्लिमेंट सिस्टम’ को निष्क्रिय कर देता है- इम्यून रेस्पॉन्स का वो हिस्सा, जो एंटीबॉडी को सक्रिय करता है। पशु के खून का सिरम, किसी भी दूसरे क़िस्म के जानवर के मुक़ाबले, ज़्यादा आसानी से मिल जाता है, क्योंकि इसका सीधा कारण ये है, कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड और अमेरिका जैसे देशों में, बड़ी संख्या में मवेशी फार्म्स मौजूद हैं। उन्होंने ये भी कहा, कि चूंकि भारत में गौ हत्या पर पाबंदी है, इसलिए किसी भी तरह की बायोलॉजिकल रिसर्च करने वाली लैब्स, इस ब्लड सिरम को बड़ी मात्रा में आयात करती हैं। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2019-20 में लगभग 2.80 लाख डॉलर (मौजूदा विनिमय दरों के हिसाब से क़रीब 2 करोड़ रुपए) मूल्य के कैटल सिरम उत्पाद आयात किए। इस साल ये आयात काफी बढ़ गए हैं, और केवल अप्रैल से जून के बीच, 2.1 लाख डॉलर (लगभग 1.51 करोड़ रुपए) मूल्य के ऐसे उत्पाद आयात किए गए। संभावित विकल्प:- लेकिन अब ऐसी टेक्नॉलॉजीज़ विकसित हो गई हैं, जिनमें सिरम की जगह सिंथेटिक या कृत्रिम रूप से तैयार ग्रोथ फैक्टर्स इस्तेमाल किए जा सकते हैं। रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नोल़जी से, जिसमें अलग अलग ऑर्गेनिज़म्स की जिनेटिक कोडिंग के टुकड़ों को एक साथ रखकर, उन्हें एक होस्ट ऑर्गेनिज़म में दाख़िल किया जाता है, वैज्ञानिक ऐसे बहुत से ग्रोथ फैक्टर्स, कृत्रिम रूप से लैब में तैयार कर सकते हैं। लेकिन, डीएनए रेकॉम्बीनैंट टेक्नोल़जी, ज़्यादा महंगी होती है, और इसके लिए विशेष लैब्स की ज़रूरत होती है। कैटल सिरम जो बीफ इंडस्ट्री का एक उप-उत्पाद होता है, आसानी से मिल जाता है। सिग्मा-एल्ड्रिच और थर्मो फिशर साइंटिफिक जैसी बहुत सी कंपनियां, सिरम के मानकीकृत फॉर्मुलेशंस बेच रही हैं। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) #UNANIPHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 8651274288 WHAT'S APP 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/



Last updated date 02/01/2021

कोरोनावायरस से लाखों की जानें गईं , लेकिन क्या ये जानलेवा है?

कोरोनावायरस से दुनिया भर में पांच लाख से अधिक मौतों के बाद भी वैज्ञानिक पूरी तरह नहीं जान पाए हैं कि वायरस कितना जानलेवा है। इस समय भारत, ब्राज़ील, नाइजीरिया जैसे सघन आबादी वाले देशों में महामारी फैल रही है।


मृत्यु दर की सही जानकारी होने से स्थितियों का अंदाज़ा लगा सकेंगे। वैसे, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस से भविष्य में लगभग पौने पांच लाख मौतों का अधिकृत आंकड़ा पेश किया है। विश्व में मौतों की दर भी बदल सकती है। एक-दो अपवादों को छोड़कर महामारी का प्रकोप पहले एशिया, पश्चिम यूरोप और उत्तर अमेरिका के सम्पन्न देशों में हुआ। यहां अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है।


वायरस अब भारत, ब्राज़ील, मेक्सिको, नाइजीरिया और अन्य देशों में फैल रहा है। इन देशों में बड़ी संख्या में लोग भीड़ भरी बस्तियों में रहते हैं। इनमें अस्पतालों में प्रर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

Last updated date 21/10/2020

کورونا - یہ نام اتفاق نہیں، خفیہ انتخاب ہے

"کرونا" - یہ نام اتفاق نہیں خفیہ انتخاب ہے." یہ معلومات پڑھ کر آپ کی آنکھیں پھٹی کی پھٹی رہ جائیں گی۔ وہم اور خوف سے دنیا میں پھیلائے گئے باطل نظریات کو "کرونا وائرس" کہا جاتا ہے. کیا آپ جانتے ہیں یہ لفظ "کرونا" یہودیوں کی مذھبی کتاب "تلمود" میں بھی بڑے معنی خیز انداز میں موجود ہے.  کرونا کو عبرانی میں קרא נא ایسے لکھا جاتا ہے اسکی معنی ہے *"پکارنا یا آواز لگانا"* کس کو پکارنا؟ اسکا جواب ہے یہودیوں کا مسیحا آرتھوڈوکس یہودیت کے مطابق مسیحا جسے انگلش میں Moshiach یا Hashem کہتے ہیں، دجال نہیں بلکہ ایک ایسا لبرل یہودی النسل رہنماء ہوگا جو مسجد اقصی کو شہید کرکے اسکی جگہ دجال کیلیے "ہیکل سلیمانی" تعمیر کرے گا یہودیت کے مطابق جب وہ مسیحا آئے گا تو اس وقت سب لوگ گھروں میں چھپے ہوئے ہوں گے، اسے پکار رہے ہوں گے یعنی ہر کوئی اسے ان الفاظ سے پکار رہا ہوگا کہ کرونا کرونا کرونا....... یعنی اے ہمارے مسیحا آجاؤ، آجاؤ، اب آجاؤ.....!! اسکے علاوہ نئے کرونا وائرس کو (COVID-19) کا نام بھی یہودیوں نے دیا ہے اور آپ اسے بھی ہرگز اتفاق نہ سمجھیں. میں ہمیشہ قارئین کو سمجھاتا رہا ہوں کہ یہودی ہمیشہ ذو معنی الفاظ ایجاد کرتے ہیں جن کا ظاہری مطلب کچھ اور جبکہ اصل مطلب کچھ اور ہی ہوتا ہے.  لفظ COVID یہودی مذھبی کتاب "تلمود" کے پانچویں باپ masechet Berachot کے پہلے پیراگراف میں کچھ اس موجود ہے אין עומדין להתפלל אלא מתוך כובד דראש  اسکی معنی ہے کہ "کسی شخص کو اس وقت تک نماز کے لئے نہیں اٹھنا چاہیئے جب تک کہ اس کو کووڈ COVID نہ ہو۔ کووڈ کیا ہے؟  یہودی علماء اسکی تشریح کرتے ہوئے بتاتے ہیں کہ اس کا مطلب ہے عاجزی، یعنی آپ کا اس بات پر ایمان ہو کہ ہم کچھ بھی نہیں ہیں اور ہاشم (مسیحا) کے بغیر ہم کچھ کر بھی نہیں سکتے اس لیے ہمیں اس کو کووڈ COVID کے ساتھ پکارنا ہوگا، عاجزی سے اسے آواز دینی ہوگی۔ اور کیا آواز دینی ہوگی؟ اسکا جواب ہے 19.  اب یہ 19 کیا ہے؟  19. Sim Shalom ("Grant Peace") - asks God for peace, goodness, blessings, kindness and compassion.  یہاں 19 کا مطلب تلمود میں موجود یہودی نماز کا انیسواں کلمہ ہے. یعنی ہمیں کرونا کے ساتھ 19 واں کلمہ دہراتے رہنا ہوگا جب ہی ہمارا مسیحا آکر مسجد اقصی گرا کر وہاں دجال کے لیے ہیکل سلیمانی تعمیر کرے گا۔ اب آپ کو سمجھ آگئی ہوگی کہ صیہونی اپنے پلانز کو کس طرح خفیہ "ذو معنی الفاظ" بناکر پیش کرتے ہیں.  اب آپ اسرائیلی وزیر صحت اور وزیر دفاع کے بیانات ذہن میں لاکر ان پر غور کریں جس میں ایک کہتا ہے کہ ہمیں کرونا سے کوئی پریشانی نہیں اور دوسرا کہتا ہے کہ ہمیں نجات دلانے والا "مسیحا" جلد آنے والا ہے. اسکے علاوہ اسرائیل کے چیف ربی نے بھی اعلان کیا ہے کہ مسیحا اسی سال آئے گا پچھلے دنوں آپ نے ٹویٹر پر اسکا ٹرینڈ بھی دیکھا ہوگا جو پاکستان میں قادیانیوں نے بنایا تھا اور یہودیوں کے وہ نظریاتی باطل غلام جو اس وقت پاکستان میں موجود ہیں انہوں نے اس پر خوب محنت کی تھی۔  جی ہاں 100% بالکل ٹھیک سمجھ رہے ہیں آپ  اسی لیے سب کو گھروں میں قید کروا کے ہر جگہ کرونا کرونا کروایا جارہا ہے۔ یہ محض اتفاق نہیں ڈیجیٹل دور کے آغاز میں اس کرونا کے نام پر آپ کے لئے جو ویکسین تیار کی گئی ہے اس سے آپ کے دماغ سے حقیقی معبود کا خیال نکال کر آپ کو دجال کی پیروی پر آمادہ کیا جارہا ہے لہذا اس لفظ کو بھی استعمال کرنے سے روکیں کیوں کہ کرونا وائرس نہیں صرف یہودیوں کا پیدا کیا گیا ایک باطل نظریاتی وہم ہے۔ ، 5G اور ایجنڈہ نینو چپ ۔ ۔ ۔ ۔ ! اکانومسٹ میگزین اپریل 2020 شمارے میں 5 خفیہ پلانز کا اعلان کیا گیا ہے۔  اس تحریر میں پانچوں یہودی پلانز کو ڈی کوڈ کیا جائے گا۔ نمبر 1 : Everything is Under Control اس کے معنی ہیں "ہر چیز طے شدہ منصوبے کے مطابق ہمارے کنٹرول میں ہے"۔ ایک طرف پوری دنیا کرونا سے ڈر کر گھروں میں بیٹھی ہوئی ہے، حکومتیں سکڑ کر دارالحکومتوں تک محدود ہو گئیں، عوام کو دو وقت کی روٹی کے لالے پڑ گئے، کئی ممالک کو اپنی حیثیت برقرار رکھنے کے خطرے کا سامنا ہے لیکن آپ دیکھیں وہیں یہودی میگزین فخریہ کہتا ہے کہ Everything is Under Control.  یہ بات عقلمندوں کے کان کھڑے کرنے کے لئے کافی ہے۔ کرونا وائرس کے ذریعے جس جال کو بچھایا گیا ہے وہ بالکل توقعات کے عین مطابق پورا ہو رہا ہے  تبھی تو یہودی میگیزین فخریہ کہتا ہے کہ سب کچھ طے شدہ منصوبے کے مطابق ان کے کنٹرول میں ہے۔ نمبر 2 : Big Government اس سے مراد عالمی حکومت ہے۔ اس بڑی حکومت کو یہودی دانا بزرگوں کی خفیہ دستاویزات  دی الیومیناٹی پروٹوکولز میں  "سپر گورنمنٹ" کے نام سے بار بار بیان کیا گیا ہے۔  اس کی تفصیلات بھی بیان کی گئی ہیں جن کے مطابق پوری دنیا کی ایک ہی "عالمی سپر گورنمنٹ" بنائی جائے گی  جس کا حکمران فرعون و نمرود کی طرح پوری دنیا پر اپنے مسیحا کے ذریعے حکمرانی کرے گا  یہاں یہ بتانا بھی ضروری سمجھوں گا کہ ان کی عالمی حکومت بن چکی ہے۔  یہ اقوام متحدہ ہے۔ صرف اس کا اعلان نہیں کیا گیا۔  ان کا منصوبہ یہ ہے کہ مستقبل میں کسی بھی وقت دنیا میں کرائسز پیدا کرکے (جیسے اس وقت ہیں) اقوام متحدہ کو ایک عالمی سپر حکومت میں تبدیل کر دیا جائے گا۔  اقوام متحدہ کے جو بھی ادارے ہوں گے انہیں وزارتوں میں تبدیل کرکے اسے عالمی سپر گورنمنٹ قرار دے دیا جائے گا اور اس حکومت کی باگ دوڑ یہودی النسل ایسے شخص کے ہاتھ دی جائے گی  جو دجال کے لیے ہیکل سلیمانی تعمیر کرے گا اور یہودیوں کو چھوڑ کر باقی پوری دنیا کی اقوام کو اپنا غلام بنا لے گا۔  اب موجودہ دور میں آ جائیں، برطانوی وزیراعظم سے لیکر بہت سے عالمی رہنماؤں نے اب کھل کر کہنا شروع کر دیا ہے کہ  ایک عالمی حکومت بننی چاہیے۔ یہ سب اسی عالمی سپر گورنمنٹ بنانے کی راہ ہموار کر رہے ہیں۔ اب اگر اقوام متحدہ کا کوئی ایسا حکمران بن جائے جو ویکسین دینے کا اعلان کر دے  تو دنیا کا کون سا ملک ہو گا جو اس کی حکمرانی تسلیم نہ کرے گا ؟؟ نمبر 3 : Liberty  لبرٹی کا مطلب ہے "آزادی"۔ یہاں آزادی سے مراد دنیا کو جو آزادی حاصل ہے اس کا کنٹرول اس "خفیہ ہاتھ" کے پاس ہے جو اکانومسٹ نے بطور علامت اپنے کور فوٹو پر نمایاں کیا ہے۔ یہ وہ "خفیہ ہاتھ" ہے جو پردے میں رہ کر پوری دنیا کو چلاتا ہے۔ آپ اس ہاتھ کو یہودیوں کے 13 خفیہ خاندان سمجھیں جو پوری دنیا کی معیشت، زراعت، میڈیا، حکومت الغرض ہر چیز کی باگ دوڑ سنبھالتے ہیں، ورلڈ بینک ہو یا آئی ایم ایف یہ تمام ادارے ان کے فنڈز سے چلتے ہیں،  اقوام متحدہ کا خرچہ پانی یہی دیتے ہیں، اقوام متحدہ کے تمام بڑے اداروں کے سربراہاں ان کے اپنے لوگ اور یہودی النسل ہیں۔  اقوام متحدہ کو آپ ان کے گھر کی لونڈی سمجھیں، آئی ایم ایف اور ورلڈ بینک جیسے ادارے درحقیقت اقوام متحدہ کے ادارے ہی ہیں۔  آج یہ 13 یہودی خاندان اپنے مسیحا کے انتظار میں ہیں جس کے بارے حال ہی میں اسرائیلی یہودی ربی اور یہاں تک کہ اسرائیلی سرکاری وزراء بھی اعلان کر چکے ہیں کہ مسیحا اسی سال آ رہا ہے۔ ایک نے تو یہ بھی کہہ دیا ہے کہ وہ مسیحا سے ملاقات بھی کر چکا ہے اور بتا دیا کہ مسیحا اسی سال کسی بھی وقت آ جائے گا۔ یعنی یہ لوگ جانتے ہیں کہ مسیحا کون ہے لیکن اس کافلحال اعلان نہیں کر رہے۔ نمبر 4 : وائرس یعنی کہ "کرونا وائرس" کا کنٹرول بھی اسی "خفیہ ہاتھ" کے پاس ہے۔ جب پوری دنیا وائرس کے خوف سے کانپ رہی ہےتو یہ لوگ کون ہیں جو کہتے ہیں کہ وائرس ان کے قابو میں ہے؟یا ہم یوں کہہ سکتے ہیں کہ وائرس کے ذریعے انہوں نے پوری دنیا کو اپنے قابو میں کر رکھا ہے۔ اسرائیلی وزیر دفاع خود کہتے ہیں کہ ہمیں وائرس سے کوئی پریشانی نہیں ہے (اسکی وڈیو پچھلی پوسٹ میں شیئر کر چکا ہوں)کیونکہ جب 70 فیصد آبادی کو کرونا متاثر کر لے گا تو پھر ازخود ختم ہو جائے گا۔یعنی وہ پہلے سے جانتے ہیں کہ اتنے فیصد آبادی متاثر ہو گی لیکن ساتھ ہی کسی قسم کی انہیں پریشانی بھی نہیں ہے، یہ اس بات کی علامت ہے کہ پردے کے پیچھے وہ بہت کچھ جانتے ہیں جب ہی تو بالکل مطمئن ہیں،اسی لیے نہ لاک ڈاؤن کرتے ہیں نہ ہی انہیں کوئی پریشانی ہے بلکہ اعلانیہ کہتے ہیں کہ وائرس ان کے قابو میں ہے۔ نمبر 5 : The Year Without winter اس کو اگر ڈی کوڈ کریں تو اس کا مطلب ہو گا کہ اس سال دنیا کو موسم سرما گھروں میں قید رہ کر گزارنا پڑ سکتا ہے۔ یاد رہے اس وقت سال کا چوتھا مہینہ اپریل چل رہا ہےلیکن انہوں نے اعلان کر دیا ہے کہ اس سال موسم سرما نہیں ہو گا یعنی دنیا موسم سرما کے مزے اس سال نہیں لے سکے گی ۔ یہاں یہ بتانا ضروری سمجھوں گا کہ کرونا وائرس پر بنی فلم Contagion میں بھی ایک ڈائلاگ بالکل ایسا ہی سننے کو ملتا ہے۔ایک لڑکی ویکسین کی عدم دستیابی پر اکتاتے ہوئی کہتی ہے کہ یعنی اس سال میرا موسم سرما برباد ہو جائے گا کیونکہ مجھے گھر میں قید رہ کر گزارنا ہو گا۔  اکانومسٹ میگزین، کانٹیجئین فلم اور موجودہ صورتحال کا آپس میں بہت گہرا تعلق ہے۔ اگر حالات بالکل اس فلم جیسے ہی چلتے ہیں تو پھر آپ کو وقت سے پہلے ہوشیار رہ کر تیاری کرنی ہو گی۔ اگر لاک ڈاؤن مزید چند ماہ چلتا ہے تو ہر ملک کے پاس کھانے پینے کی اشیاء کی قلت ہو جائے گی، ڈاکے پڑنا شروع ہو جائیں گے، اس دفعہ لوگ پیسے نہیں بلکہ روٹی اور راشن چھیننے کے لیے ایک دوسرے پر بندوق چلائیں گے۔ اس فلم میں بلکل ایسے ہی مناظر دیکھنے کو ملتے ہیں(اگر آپ نے Contagion فلم نہیں دیکھی تو میری وال پر موجود ہے جلدی دیکھ لیں) اسکے علاوہ ۔ ۔ ۔۔ کچھ اور عوامل بھی ہیں جنہیں ابھی تک اکانومسٹ میگزین نے نمایاں نہیں کیا۔ شاید اگلے مہینے کے شمارے میں ظاہر کر دیں۔ میں آپ کو پہلے ہی آگاہ کر دیتا ہوں۔ پہلا پروجیکٹ 5G ہے : سب سے پہلے 5G انسٹالیشن ہے جو لاک ڈاؤن کے دوران دنیا کے بیشتر ممالک میں چپکے سے کی جا رہی ہے۔ عالمی میڈیا کو اس کی رپورٹنگ سے روکا گیا ہے۔ میڈیا پر آپکو 5G کے متعلق کوئی خبر نہیں ملے گی۔ لندن  میں مکمل لاک ڈاؤن ہے لیکن وہاں 5 جی انسٹالیشن کا عملہ پھر بھی دن رات پولز پر ٹاورز نصب کرنے میں مصروف ہے۔ پاکستان میں ٹیلی نار اور زونگ کمپنیوں نے اشتہارات کے ذریعے 5جی کی پروموش شروع کر دی ہے۔ آخر یہ 5G کیا بلا ہے؟ یہ آپ کے لیے سمجھنا بہت ضروری ہے۔ یہ دراصل انٹرنیٹ اسپیڈ کی تیز ترین رفتار ہے جو اگر کسی علاقے میں لگا دی (انسٹال) کر دی جائے تواس پورے علاقے کو ایک "سپر کمپیوٹر" کے ذریعے ہر وقت وڈیو پر دیکھا جا سکے گا، علاقے کا کوئی فرد ایسا نہیں بچے گا جس کی جاسوسی ممکن نہ ہو۔موبائل سے لیکر ٹی وی. ایل سی ڈی یا ایل ای ڈی ، فرج، آٹو پارٹس اور گھر کی تمام اشیاء میں نصب چھوٹے خفیہ کمیروں کے ذریعے چوبیس گھنٹے ہر فرد کی جاسوسی ممکن ہو جائے گی۔ ملٹری سطح پر یہ کام پہلے ہی دنیا کی بڑی افواج کرتی رہی ہیں لیکن عوامی سطح پر اسے لانے کا بہت زیادہ سائنسی نقصان بھی ہے،کیونکہ اس ٹیکنالوجی کی شعائیں انسانی دماغ کے لئے انتہائی خطرناک ہیں، ماہرین کے مطابق 5G سگنلز میں رہنے والا انسان ایسا ہو گا جیسے اسکا دماغ مائیکرو ویو اوون میں پڑا ہوا ہو۔ یہ انسان کو مختلف ذہنی بیماریوں کا شکار کر دے گی  لیکن خفیہ ہاتھ کو اس کی پرواہ نہیں کہ انسانوں کے دماغ پر کیا بیتتی ہے، انہیں صرف پوری دنیا کو ڈجیٹلائیز کرنا ہے اور اس مقصد کے لئے لاکھوں انسانوں کو مارنا پڑا تو وہ اس سے بھی دریغ نہیں کریں گے۔ دوسرا پروجیکٹ Nano Chip بذریعہ ویکسین : حال ہی میں ایک آرٹیکل پڑھا جس میں بل گیٹس نے 1 بلین ڈالرز کی سرمایہ کاری کرنے کا اعلان کیا۔یہ اعلان پوری دنیا کو ڈجیٹلائیز کرنے کے متعلق تھا۔ سوال یہ ہے کہ پوری دنیا کو ڈجیٹلائز کیسے کیا جائے گا؟  اسکا جواب ہے 5G اور Nano chip سے۔دیکھیں 5G کے ٹاورز بظاہر تو آپ کو انٹرنیٹ کی تیز سپیڈ دینے کے لئے ہوں گے لیکن ان کا اصل خفیہ مقصد انسانوں میں لگی نینو چپ(بہت زیادہ چھوٹی چپ) میں جمع ہونے والا ڈیٹا (یعنی آپ کی دماغی سوچ) کسی خفیہ جگہ جمع کرنا ہو گا۔ وہ "خفیہ ہاتھ"جسے آپ اکانومسٹ میگزین پر دیکھ سکتے ہیں پوری دنیا کے انسانوں کے دماغوں میں پیدا ہونے والی سوچ کو کسی نامعلوم جگہ پر اپنے "سپر کمپیوٹر" کے ذریعے دیکھے گا۔  میں وثوق سے کہہ دیتا ہوں، وہ یہودیوں کا مسیحا ہو گا جو "اقوام متحدہ کی سپر گورنمنٹ" سنبھالتے ہی ان ٹیکنالوجیز سے انسانوں کے دماغ بھی پڑھ لے گا بلکہ کسی کے بولنے سے پہلے اس کے خیالات بھی جان لے گا۔ بالکل ایسی ہی ایک حدیث بھی ملتی ہے کہ دجال ایک جگہ سے گزرے گا جہاں کسی شخص کے والدین فوت ہو گئے ہوں گے، وہ شخص سوچ رہا ہو گا کہ کاش میرے والدین دوبارہ زندہ ہو جائیں، دجال اس کی یہ سوچ اور خواہش پہچان لے گا اور اس کے بولنے سے پہلے ہی اس کے پاس جا کر اسے کہے گا کہ اگر میں تمہارے والدین کو زندہ کر دوں تو کیا تم مجھے خدا مان لو گے۔ وہ شخص بولے گا ہاں کیوں نہیں، پھر دجال اپنے شیاطین کو حکم دے گا وہ اس شخص کے والدین کے مردہ اجسام میں داخل ہو کر زندہ ہو کر کھڑے ہو جائیں گے اور اس شخص کو کہیں گے کہ بیٹا یہ (دجال) تمہارا رب ہے اس کی بات مان لو، اس کی اطاعت کرو۔ یہاں یہ بھی ثابت ہوتا ہے کہ دجال اور اس کی قوتوں کو شیاطین کی مدد حاصل ہو جائے گی۔ یعنی وہ کسی ایسی چیز حاصل کرنے میں بھی کامیاب ہو جائیں گے جس سے دنیا میں موجود  غیر مرئی مخلوق یعنی "جنات" سے ان کا رابطہ ممکن ہو جائے گا اور اسی کی مدد سے دجال  شیطانوں سے مدد لے گا۔ رسول اللہ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) نے فرمایا :اللہ روئے زمین کے تمام شیاطین کو دجال کے تابع کر دےگا (تاکہ اس فتنہ عظیم سے دنیا کے آخری بہترین مسلمانوں کی آزمائش کرے)۔ اب اس سارے منظرعام کو اگر مختصر بیان کیا جائے تو یہ کچھ ایسا ہو گا کہ؛ "خفیہ ہاتھ" کامیاب ہو رہا ہے، ہر چیز طے شدہ منصوبے کے مطابق ان کے کنٹرول میں ہے۔ کرونا وائرس سے دنیا کو لاک ڈاؤن کروا کے وہ اپنے منصوبے میں کامیاب ہو رہے ہیں، ساتھ ہی انہوں نے چپکے سے 5G انسٹالیشن شروع کر دی ہے اور بل گیٹس نے نینو چپس کی شروعات کے لئے اقوام متحدہ سے 1 بلین ڈالر کا معاہدہ بھی کر لیا ہے ،اس معاہدے میں ویکسین بنے گی اور اسی ویکسین کے اندر اتنی چھوٹی نینو چپ ہو گی کہ جو انسان کو خوردبین سے ہی نظر آ سکتی ہے، وہ دنیا کے ہر انسان کو دی جائے گی۔Contagion فلم میں جو ویکسین سب کو دی جاتی ہے وہ ناک میں ڈالی جاتی ہے اور ساتھ ہی ایک ڈجیٹل کڑا ہاتھ میں پہنا دیا جاتا ہے- جس سے ان کو کسی "خفیہ جگہ" سے مانیٹر کیا جا سکتا ہے۔ اب مجھے پورا یقین ہے- بل گیٹس بھی اقوام متحدہ کو چلانے والے "خفیہ ہاتھ" کے ساتھ مل کر ایسی ہی ویکسین بنائے گا جو ناک یا منہ میں ڈالی جائے گی اور اسی کے ذریعے نینو چپ بھی ہر انسان کے جسم میں داخل کی جائے گی۔ چونکہ چپ انتہائی چھوٹی ہے اور کسی بھی ویکسین کے ذریعے جسم میں ڈالی جا سکتی ہے- لہذا کسی انسان کو پتا ہی نہیں چلے گا کہ وہ چپ زدہ ہو چکا ہے۔ دجال کو دنیا میں خوش آمدید کہنے کی تیاریاں عروج پر ہیں ۔ ۔ ۔ ۔ ۔  جو پہلے سے اس فتنے سے آگاہ ہوں گے وہی اس سے بچ پائیں گے ۔ جو لاعلم ہوں گے وہ پھنس جائیں گے، بہک جائیں گے، گمراہ ہو جائیں گے، سیلابی پانی میں تنکوں کی طرح بہہ جائیں گے۔خواتین و حضرات سے درخواست ہے کہ اس دجال کے فتنے کو قرآن و سنت کی روشنی میں سمجھنے کی بھر پور کوشش کریں- اور اس فتنے سے بچنے کے لئے دین اسلام میں جو راہنمائی دی گئی ہے اسے اپنی زندگیوں میں فوری طور پر اختیار کریں-  تاکہ کہیں بے خبری میں اپنی دنیا و آخرت اپنے ہاتھوں سے برباد نہ کر لیں- دجال کے فتنے سے بچنے کے لئے سورہ الکہف کی پہلی دس آیات کی روزانہ تلاوت کریں اور دجال کے فتنے سے بچنے کی مسنون دعائیں یاد کر کے اپنے معمول کے اذکار میں شامل فرمائیں اللہ تعالیٰ ہمیں توبہ کرنے اور قرآن وسنت کے مطابق زندگی گزارنے کی توفیق عطا فرمائے آمین ثم آمین یا رب العالمین جزاک اللہ خیرا و احسن الجز



Last updated date 30/09/2020

खुला पत्र

माननीय प्रधानमंत्री ,भारत सरकार , दिल्ली! माननीय मुख्यमंत्री गण एवं भारत के सम्मानित नागरिक गण आदाब , जय भारत!!! विषय:- देश व दुनिया में फैले कोविड-19 (कोरोनावायरस) महामारी की रोकथाम, बचाव और ईलाज में सहभागिता सुनिश्चित करने के संबंध में।


महाशय,  मैं, हकीम मो अबू रिज़वान, बी यू एम एस, आनर्स(बी यू), (यूनानी चिकित्सक, यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर, जमशेदपुर झारखंड।) 1992 ई में राजकीय तिब्बी कालेज पटना से पास आउट हूं, और उस समय से अबतक लगातार सिर्फ और सिर्फ यूनानी पद्धति द्वारा मरीजों का इलाज करता आ रहा हूं। यानी इस प्रोफेशन में लगभग 27-28 वर्षों का तजुर्बा हो चुका है, और लाइफस्टाइल डीज़ीज़, वायरल डीज़ीज़ वगैरह के ईलाज में काफी लंबा अनुभव रहा है।  देश में इस महामारी से मैं भी आहत हूं, और अपने अनुभव से सहृदय समर्पित भाव से अपने देश की जनता की सच्ची सेवा करना चाहता हूं।  ये तो बड़ी अच्छी बात है कि आयूष मंत्रालय की ओर से हम यूनानी पद्धति वालों को सेवा का मौक़ा दिया जा रहा है। जो स्वागत योग्य है। मुझे बड़ी खुशी होगी कि इस ग्रूप का मैं भी हिस्सा बनूं।  आपको ये सुचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि मैं ने किसी अन्य वायरल डीज़ीज़ का ईलाज का प्रयोग अपने घर से लेकर बाहर तक के मरीजों पर आज़माया और नतीजा बेहतर मिला। कोई भी वायरल डीज़ीज़ हो उनको तीन दिनों में ही ठीक किया जा सकता है, lऐसा मैं अपने अनुभव से कहता हूं। इसलिए आप अगर चाहें तो मुझे इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। ऐसा अस्पताल जहां कोरोनावायरस के मरीजों को रखा गया है lवहां पर आपके द्वारा दी गई ज़िम्मेदारी सहर्ष सहृदय स्वीकार्य होगा।  ये अलग बात है कि,


  हम भी छू सकते हैं, सूरज की कलाई   हम गरीबों को हिमायत नहीं मिलती।  इस प्रकार की अपनी हार्दिक इच्छा मैं सभी माननीय मुख्यमंत्रियों को भी ईमेल के ज़रिए भेज चुका हूं कि अमुक तरीक़े से यूनानी पद्धति में बहुत ही आसान ईलाज शत् प्रतिशत संभव है।  मेरे व्हाट्सएप से लगभग बीस हजार लोग जुड़े हैं जिनसे इस वायरल डीज़ीज़ (कोरोना वायरस) के ईलाज के बारे में पूरी पूरी जानकारी साझा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।सोशल मीडिया , फेसबुक और यूट्युब चैनल के द्वारा भी लोगों से इस कोरोनावायरस से बचाव और ईलाज साझा कर चुका हूं।  आपके सामने मैं अपने ईलाज के तरीक़े पेश करने की हिम्मत कर रहा हूं। कोरोनावायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ का अचुक इलाज का मैं आपके सामने दावा करने की कोशिश कर रहा हूं। कोरोनावायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ से बचाव:-  जब भी कभी इस तरह की महामारी का प्रकोप फैले तो आरंभ में ही इससे बचने हेतु उचित उपाय कर लिया जाए तो किसी को भी वायरल अटैक होगा ही नहीं। उसके लिए व्यक्ति को अपना "रोग प्रतिरोधक क्षमता" मज़बूत करने पर ध्यान देना चाहिए।उसका भी बहुत आसान तरीक़ा है।रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए नित्य प्रति दिन अपने भोजन में "विटामिन सी" की उचित मात्रा (0.2 ग्राम/दिन) नेचुरल तरीक़े से लें(गोली, कैप्सुल या सीरप कदापि नहीं)। इस के लिए आपको एक अमरूद, या दो मौसम्मी या दो संतरे या तीन आम या चार टमाटर (इनमें से कोई भी एक) रोज़ाना लें।  (इस तरह ऐसा करके हम अपने शरीर के बाहर और अंदर मौजूद "डेन्ड्रिटिक सेल" को मज़बूत करते हैं जो हमारे अंदर प्रवेश करने वाले वाह्य हानिकारक जीवाणुओं जैसे :-बैक्टिरिया,पैथोजींस और वायरस से लड़ कर हमें सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।) और कोई भी एनीमल प्रोटीन और डेयरी प्रोडक्ट्स से दूर रहें, यानी इस्तेमाल बिल्कुल ही नहीं करें।  लाख टके का सवाल यह है कि इंसानी शरीर नेचर से निर्मित है। और जब इसके भीतर कोई परेशानी या बीमारियां उत्पन्न हो जाए तो उसे "नेचुरल विधि" ही ठीक करेंगी,न कि कोई केमिकल (ऐलोपैथिक दवाएं)। वायरस को कभी भी किसी भी दवा से नहीं मार सकते।  सिर्फ यही वो तरिक़ा है जिससे उसे ख़त्म किया जा सकता है और शरीर के बाहर भी फेंका जा सकता है। इस बात का मैं ख़ास तौर पर उल्लेख करना चाहूंगा कि वायरल डीज़ीज़ कोरोना वायरस का यूनानी पद्धति से इलाज करने पर मरीज़ तीन या चार दिन में ही पूरी तरह सेहतमंद हो जाता है। मैं चाहूंगा कि आप मेरे इस प्रस्ताव को मंजूरी दें ताकि मुझे अपनी प्रतिभा साबित करने का अवसर मिले। इस बाबत मेरे पास हजारों पन्नों पर आधारित अनेकानेक रिसर्च पेपर्स बतौर साक्ष्य भी मौजूद हैं।   श्रीमान,आशा करता हूं कि आप उल्लेखित बातों से सहमत हों। और मेरे इस प्रस्ताव को मंजूरी देने की कृपा करेंगे। निस्संदेह मैं अपने आप को देशसेवा में लीन हो कर ख़ुद को गौरवान्वित महसूस करूंगा।  आपका विश्वासभाजन HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND INDIA-831006 CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 E-mail:-umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN दिनांक 2 मई 2020

Last updated date 30/09/2020

दैनिक उदीतवाणी जमशेदपुर में 04/04/2020 को प्रकाशित लेख

कोरोना एक "एन्फ्लूएंजा लाईक इलनेस" है, इससे घबराएं नहीं, बल्कि अपना इम्यूनिटी पावर बढ़ाए : हकीम मो अबू रिज़वान जमशेदपुर : आज सारी दुनिया में कोरोना वायरस के नाम पर कोहराम मचाया जा रहा है. ये वायरस भी उतना ही ख़तरनाक है जितना कॉमन कोल्ड है।ईमर्जिंग वायरस पुस्तक के लेखक डा रिओनाल्ड होरोविट्ज़ ने कहा है कि अगर कोई ईनसान कौमन कोल्ड से मर सकता है तो वो किसी भी वायरस से मर सकता है,बशर्ते कि उसका ईम्युनिटी पावर "ज़ीरो" रहे।लेकिन मृत्यु दर एक हज़ार में केवल एक होगा।वायरस नान लीविंग है,इसकी कोई शक्ल नहीं,बार बार ये अपना रूप बदलता रहता है,तो जब आप अपने दुशमन को पहचान ही नहीं पाएंगे तो मारेंगे किसे?ऐसा आजतक कोई तरीक़ा नहीं निकला जिससे ये पता लगाया जा सके वो "अमुक वायरस" ही है।"पी सी आर" के अविष्कारक डा कैरी मूलस ने ख़ुद कहा है कि इस टेस्ट से सिर्फ उसके जेनेटिक सिक्वैंस और प्रोटीन का ही पता चल सकता है।केवल अपने शरीर का "हाई टेम्परेचर" ही किसी वायरस को हमेशा केलिए मार सकता है और शरीर बाहर फेंक सकता है। किसी भी वायरल डीज़ीज़ से वही लोग पीड़ित होते हैं जिनकी इम्यूनिटी पावर ‘ज़ीरो’ हो, उनकी ही मृत्यु भी हो सकती है. लेकिन इसके उलट जितने भी लोग आज कोरोना वायरस से मारे गए हैं, हकीकत यह है कि वे सभी ऐलोपैथिक दवाओं की वजह से ही मारे गए है. उक्त बातें यूनानी फिजिशियन हकीम मो अबू रिज़वान (बीयूएमएस) ने कही. उन्होंने कहा कि जितने भी वायरल डिज़ीज़ेज़ हैं, उन सभी में समानता होती है,जैसे:- प्लेट्लेट्स का कम हो जाना, हाई फीवर, कफ एंड कोल्ड, बदन दर्द, सिर दर्द, बेचैनी वगैरह होता ही है. हकीम मो अबू रिज़वान ने बताया कि वायरल डिजिज का इलाज आप अपने घर में ही करेंगे, तो सच में जिंदा रहेंगे और सेहतमंद भी हो जाएंगे. कोरोना वायरस के इलाज में "विटामीन सी" कारगर:-


यूनानी फिजिशियन हकीम मो अबू रिज़वान ने बताया कि कोरोना जैसे वायरल डिज़ीज़ के इलाज में नेचुरल "विटामिन सी" (ऐलोपैथ की विटामिन सी नहीं) काफी कारगर है. यह शरीर का इम्यूनिटी पावर बढ़ाता है. जिससे बाहरी नुक़सानदायक वायरस का शरीर पर दुष्प्रभाव नहीं दिखता है. उन्होंने बताया कि आज ‘कोरोना’ को लेकर विश्व में हाय तौबा मची हुई है. जबकि उक्त वायरस हजारो वर्षों से है. कहा कि, आज जितने भी लोगों की मृत्यू हुई है. उनमें अधिकांश लोग उम्रदराज हैं. जिनकी इम्यूनिटी पावर कमजोर है, उन्हें ही नुक़सान होता है. कहा कि उम्रदराज लोगों की भी अगर इम्यूनिटी पावर मजबूत हो, तो उन्हें कोई इन्फ्लूएंजा नुक़सान नहीं पहुंचा सकता है. कोरोना ही नहीं किसी "वायरल डीज़ीज़ का ईला इस प्रकार करें:-(यह मत सोचिएगा कि इतनी ठंढी चीजें इतनी मात्रा में लेंगे तो खांसी सर्दी हो जाएगा,बल्कि उदाहरण में बताएनुसार सही क्वांटिटी में लेंगे तो ये आपके लिए दवा बन जाएगी।) पहले दिन:- BODY WEIGHT (80KG) --------------------------------- = 8 10 यानी पहले दिन 8 (आठ) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 8 (आठ) गिलास नारियल पानी बारी बारी पिलाते रहें। * दूसरे दिन:- BODY WEIGHT (80 KG) ----------------------------------- =4 20 यानी 4 (चार) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 4 (चार) गिलास नारियल पानी बारी बारी से पिलाते रहें।और शाम में BODY WEIGHT (80 KG)×5 = 400 GRAM खीरा और टमाटर (बराबर बराबर) खिलाएं। * तीसरे दिन BODY WEIGHT (80 KG) =2.6


30 यानी 2.6 (लगभग ढाई गिलास) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 2.6 (लगभग ढाई गिलास) गिलास नारियल पानी बारी बारी से पिलाते रहें दोपहर बारह बजे तक। दोपहर के समय में BODY WEIGHT (80 KG)×5 = 400 GRAM खीरा और टमाटर (बराबर बराबर) खिलाएं। हाई फीवर होने पर : हकीम मो अबू रिज़वान का कहना है कि हाई फीवर होने की चिंता नहीं करनी है. यही वो "हथियार" है जिससे वायरस मर जाएगा. ऊपर लिखे तरीके से बुख़ार 101-102 डिग्री फारेनहाइट से अधिक नहीं बढ़ेगा. अगर बुख़ार इससे अधिक बढ़े तो उसके लिए किसी भी तरह की ऐलोपैथिक दवा या कुछ भी देने की ज़रूरत नहीं है. केवल इतना करना है कि एक बर्तन में गर्म पानी और दूसरे बर्तन में ठंडा पानी लें.बारी बारी से कपड़े भिगोकर पूरा शरीर पोछते रहें. बस इतना ही काफी है. (फोटो -- पेज में हकीम मो अबू रिज़वान)

Last updated date 29/09/2020

कोरोनावायरस बिज़नेस का असली चेहरा

ये है कोरोनावायरस/बिज़नेस का असली चेहरा..! कोरोनावायरस पीड़ितों से निजी अस्पतालों में उनके परिजनों से बुख़ार की दवा, विटामिन सप्लीमेंट और पीपीई किट के नाम पर मोटा बिल थमाया जा रहा है। दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में मरीज़ भर्ती करने से पहले एडवांस में पैसा लिया जा रहा है।पीपीई किट केलिए ही रोज़ नौ हज़ार रुपए तक वसूले जा रहे हैं। मुंबई में रोज़ एक-एक लाख रुपए वसूले जा रहे हैं। काले कारनामों की बानगी:-


दिल्ली के अशोक कुमार बारह दिन मैक्स अस्पताल में भर्ती रहा, हाइड्रौक्सी क्लोरो क्वीन और विटामिन सी डी दवा दी। इसका कुल मिलाकर बिल 4.40 लाख रुपए। इसमें 1.06 लाख रुपए पीपीई किट केलिए, 1.58 लाख रुपए रूम रेंट का। एक मरीज़ जिनका नाम पप्पू कोहली। उनसे साढ़े पांच लाख रुपए वसूले गए जिसमें रोज़ 8,900/- रुपए पीपीई किट केलिए ही वसूले गए। मुंबई अस्पताल में 15 दिन भर्ती मरीज़ सेवंतीलाल एच पारीख का बिल 16 लाख रुपए बना। नानावती अस्पताल की ये करतूत है।उस मरीज़ को वेंटिलेटर पर रखा गया था, ऐसा अस्पताल प्रबंधन ने कहा। अहमदाबाद के डी एच एस मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल में सविताबेन के निधन के बाद परिजनों ने अस्पताल पर मोटी रकम वसूलने का आरोप लगाया। वहां एक दिन का खर्च 50-1.10 लाख रुपए तक है।14 दिन रूकने से 6-15.40 लाख रुपए तक का खर्च आता है।


हरियाणा के करणाल 4 लाख रुपए तो मध्य प्रदेश के इंदौर में 3 लाख रुपए वसूले जाने की ख़बर है।

Last updated date 29/09/2020

كيف يحمي القناع كورونافيروس? النية وجدول الأعمال والهدف كلها متشابهة - "هزيمة

كيف يحمي القناع كورونافيروس? النية وجدول الأعمال والهدف كلها متشابهة - "هزيمة فيروس كورونا وإفشالها بأي ثمن". مهما كان الناس يفقدون وظائفهم أو الأشخاص الذين يسعون جاهدين حتى الموت أو حتى انهيار الاقتصاد. لا يهم! علينا فقط هزيمة CORONAVIRUS! آسف لا CORONAVIRUS ، ولكن NOVEL CORONAVIRUS.     هناك فرق بين كل من CORONAVIRUS ، أحدهما يسمى HUMAN CORONAVIRUS كما كان لدينا FLU عدة مرات منذ طفولتنا مع هذا الفيروس ، هذا هو النوع القديم. الآن ، NOVEL CORONAVIRUS هو جديد بسبب حدوث LOCKDOWN.     دعونا أولاً نفهم الفرق بين نوعي الفيروس. يرجى إلقاء نظرة على الجدول أدناه للمقارنة: -     القديم (HUMANVVIRUS) جديد (NOVEL VIRUS) 4.18 ريال عماني 2.2 CFR 0.147 0.1 اللقاحات / الأدوية × ×     الأول هو القدرة على التدمير والثاني هو قدرته على الانتشار السريع أو الإرسال. يمكننا أن نقبل أحدهما كأخ غير الآخر. إذا نظرت إلى الجدول أعلاه ، فستلاحظ أن الفيروس الأقدم ، الذي أصابنا به عدة مرات في الماضي والذي استردناه كان لديه ضعف القدرة على الانتشار أو الإرسال مقارنة بـ VIRUS NEW. كان هذا هو ميل انتشار أو نقل فيروس OLD VIRUS.     الآن نأتي إلى نزعته المدمرة. الأمر نفسه في كلتا الحالتين - إذا أصيب 1000 شخصًا ، فسوف يموت واحد فقط وسيتعافى 999 شخصًا. لا يوجد لدى VIRUS أي لقاح أو أدوية للتسبب في شفاء المريض. لقد تعافوا من تلقاء أنفسهم. معدل وفياتهم منخفض للغاية ، أي 0.1٪ ، وهذا يعني أن شخصًا واحدًا فقط سيموت في الألف و 999 شفاء. هذه حالة "INFLUENZA LIKE ILLNESS" ، الذي يصطف العديد من أبناء عمومته على شكل H1N1 و H1N2 و INFLUENZA A و INFLUENZA B ، ومعظمهم لديهم نفس معدل النقل والتدمير تقريبًا. ليس لدينا أي عداء مع هؤلاء. إن عدونا الرئيسي هو NOVEL CORONAVIRUS الذي يتعين علينا هزيمته بأي ثمن ، على الرغم من أن الفيروس الجديد أضعف من الفيروس الأقدم.     منذ اليوم فصاعدًا ، تعاونت مع الحكومة الهندية ومنظمة الصحة العالمية في هذه المهمة لهزيمة NOVEL CORONAVIRUS بأي ثمن. أنا وأنت جميعًا نستفيد من هذا LOCKDOWN بمعنى أنك في منزلك وأنا في منزلي. لذلك يتم تحقيق هدفنا بالكامل. ثم بالطبع يقوم بائعو الخضروات بعملهم اليومي عن طريق ارتداء FACEMASK. إذا كنت مصابًا بـ CORONAVIRUS وأنا عطس ، فعندئذ تبقى العدوى داخل FACMASKS - فكرة ممتازة ، من الدرجة الأولى! لقد درست أكثر لتقوية هذه النظرية واستنتجت أن هناك طريقتان أخريان للانتقال. تكشف ورقة بحثية في مجلة الجمعية الطبية الأمريكية في 4 مارس 2020 أن هذا الفيروس يمكن أن ينتقل أيضًا عن طريق البراز أو البراز. [كان هناك تلوث بيئي واسع النطاق من قبل مريض واحد من سارس - COV - 2 مع تورط خفيف في الجهاز التنفسي العلوي. كانت عينات حوض المرحاض والمغسلة إيجابية ، مما يشير إلى أن سفك الفيروس في البراز يمكن أن يكون طريقًا محتملًا لانتقال العدوى. - JAMA، 4 MARCH]     اقترح تقرير نشرته منظمة الصحة العالمية في 26 مارس 2020 أنه يمكن أن يكون انتقال العدوى بين الإنسان أو الإنسان أو الحيوان أو الحيوان.   هذا LOCKDOWN هو في الأساس للإنسان للبقاء في الداخل. ماذا عن الحيوانات الضالة التي تعيش في العراء على سبيل المثال. الكلاب ، القطط ، الخنازير ، الأبقار؟ هذه الحيوانات تعيش على الطرق. يجب أن ينشروا CORONAVIRUS من خلال فضلاتهم. من أجل تعزيز معركتنا ضد هذه المهمة ، أود أن أعرض اقتراحي على الحكومة الهندية ومنظمة الصحة العالمية. فكرت في البداية أن أطلب موافقتك هل سأمضي قدما. يجب أن نقوم أنت وأنا بتطوير DIAPER لهذه الحيوانات الضالة مثل الكلاب والقطط والحمير والخنازير وما إلى ذلك ، ويجب عليهم دائمًا ارتداء حفاضات حتى لا تكون فضلات هناك مكشوفة. بنفس الطريقة التي نرتدي بها أقنعة ، نخطو إلى الخارج. دعونا نفترض أن هذه الفكرة قد تم تنفيذها بحيث عندما تستيقظ في صباح اليوم التالي ، انظر من شرفتك وأنت أكبر من هذا المنظر الرائع لجميع الحيوانات الضالة التي ترتدي DIAPERS البيضاء. في اليوم الثاني ، تبدو DIAPERS كبيرة ولكن كل شخص سعيد بأن جراثيم CORONAVIRUS محصورة. يأتي إلى اليوم الثالث ، واليوم الرابع ، واليوم الخامس ، واليوم السادس ، ثم اليوم السابع. في اليوم السابع ، تبدو DIAPERS أكبر ويكون DIAPERS متسخًا والجو بأكمله ملوث برائحة كريهة.     الآن في حالة أن يرتدي الإنسان FACEMASK ، فإننا نعطس أو نسعلها ونلمسها عن غير قصد أو نضعها في المنزل أو السيارات ونشتري الفواكه والخضروات. يبلغ قطر CORONAVIRUS 100 نانومتر والنانومتر صغير جدًا.     تذكر ، تنتشر العدوى حيثما يكون هناك ركود. العدوى فقط في المياه الراكدة. تتلاشى العدوى أو الجراثيم في المياه المتدفقة.     تذكر أن أكبر اثنين من برامج مكافحة الفيروسات الموهوبة إلينا من قبل الله هما SUNLIGHT و FRESH AIR. لكن تجنب الهواء النقي وضوء الشمس معتقدين أنني إذا عطست أو سعلت في FACEMASK فأنا أمنع تلوث فيروس VIRUS. نحن في الواقع نقوم بتمكين فيروس VIRUS من الازدهار كما هو مغلق في الداخل وزيادة فرص ازدهار فيروس VIRUS.     فلنتحدث الآن في سياق الأطفال الصغار. يُسمح لهم بالخروج في الهواء الطلق في ضوء الشمس والهواء النقي. في مثل هذه الحالات سوف تنخفض حصانتهم. تذكر ، إذا لم يُسمح للأطفال بالخروج في الهواء الطلق والتفاعل ، فسوف يمرضون كثيرًا ، حتى عندما يخرجون بعد شهر أو 4 أشهر أو حتى عام واحد ، فلن يتمكنوا من البقاء حتى أصغر الجراثيم.     نحن كبالغين ما زلنا نخرج لشراء الضروريات ولكن ماذا عن الأطفال الذين لا يخرجون على الإطلاق. ما هي أنواع التأثير التي سيكون لها هذا على عقولهم وأجسادهم؟      أخيرًا ، كيف أعجبتك فكرتي عن DIAPER؟ هل توافق على ذلك؟ معًا يمكننا تقديم اقتراحنا إلى حكومة الهند. سؤالي الثاني هو ما إذا كان FACEMASK يوفر لك أي نوع من الحماية؟ ما أشعر به هو أنه عندما نضع هذا FACEMASK هناك خوف مجهول يكمن في أذهاننا أننا محكوم عليهم بالفشل ... سيحكم عليهم بالفشل ....!      أشعر أن هذا نوع من المؤامرة التي نشعر فيها كضحية يتم التغلب عليها من قبل قوى الشر. فكرنا السلبي هو أكبر عدونا. هذا مثبت علميا. إذا لم نتمكن من العيش ، فلن تستطيع أي قوة على وجه الأرض أن تجعلنا نعيش. هذه هي الحقيقة المطلقة باسم "الموت".



Last updated date 29/09/2020

دعوة رحمة لـ "كورونا": -    أيها الرجل الشرير!

"دعوة رحمة لـ "كورونا": -    أيها الرجل الشرير! ما هو الخراب الذي حدث باسمي ، كنت أتجول في هذا الكون بأكمله منذ العصور القديمة. لقد سمعت هذا القول - "تعال ، أنت الريح ، حيث الريح." بنفس الطريقة التي تأخذني بها هذه الريح ، أذهب إلى هناك. لأنني ميت ، لست على قيد الحياة. أتشبث بما أجده في الطريق ، ولا أعيش حتى في دمه ، ولكن بدلاً من الثانية الأولى من خلاياه ، أذهب إلى الطبقة الثالثة. ثم أعيش على قيد الحياة بتناول الطعام من داخل تلك الخلايا. في نفس الوقت أقوم بزيادة عدد السكان لديك وتحصل على سعال محموم وما إلى ذلك. أنت مضطرب وتهرب إلى الطبيب. ما رأيك أن هذا الطبيب سيقتلني وينتهي بي! لا على الاطلاق. لا شك أن والده يجب أن يردع شعري. لأنه حيث أعيش ، لا يوجد دواء وما إلى ذلك يمكن أن يصل إلى هناك. نعم ، من المؤكد أنك قتلت ، وربما لا تعرف أنني لا أقتل ، ولكنك تقتل فقط من الدواء الذي يقدمه لك الطبيب. كان نظام المناعة لديك كافياً لقتلي ومحاربتي. مع هجومه الذي تعرضت للضرب في ثلاثة أيام فقط وسوف تكون بصحة جيدة. عندما يزداد عدد السكان بشكل كبير داخل الخلية ، أريد الخروج من هناك ، لكن ارتفاع درجة حرارة دمك يقتلني. ويخرجها من جسدك أيضًا. ثم تصبح بصحة جيدة مرة أخرى. أي أن عدوي ليس سوى درجة الحرارة العالية لجسمك ، والتي تفقد بسببها وتفوز. ولكن بسبب الأدوية التي يعطيها لك الطبيب لقتلي ، تتلف خلاياك. وعندما تتلف الخلايا ، تنتهي عندها ، والآن أخبرني من قتلك؟ أنا أو طبيبك. تذكر الرجل الشرير! أنت نفسك أعداء لبعضكما البعض. لكن انت تلومني أنا ميت ، ماذا ستضربني يا دكتور! ثم ماذا يفعل هذا الطبيب أيضا للفقراء؟ وهي ليست مجرد "وكيل" لشركات الأدوية ومنظمة الصحة العالمية وحكوماتها. يقتلك في سياق قتلي ، يحصل على ثوابه. المستشفى الذي تموت فيه أثناء العلاج لا تحصل حتى على مكافأة عميقة ويتم نشر أخبار وفاتك بأحرف جريئة في جميع صحف اليوم التالي ، لخلق "جو من الخوف" في المجتمع. .     فهم يا رجل! هذه اللعبة كلها هي "تجارة الخوف". ترقصك الحكومة وتخيفك بإصبعك باسم ميت ، هل فهمت شيئًا؟     نعم ، باسمي ، تقوم شركات الأدوية بأعمالها بمليارات التريليونات. أي أن كتفي يجري بمسدس. تباع أفضل الأدوية لمعرفة أنني "كورونا" أو "H1N1" أو "حمى الضنك" أو "شيكونغونيا" أو "أنفلونزا الخنازير" أو أي شخص آخر. أنت تجري الكثير من التحقيقات ، لكن هل تعرف أي شيء؟     حتى من خلال اختبار تفاعل البوليميراز المتسلسل (PCR) ، لا يمكن تحقيق أي شيء ، ولكن يمكنك فقط اكتشاف البروتين والتسلسل الجيني الخاص بي.لأنني ليس لدي شكل أو مظهر ، فإن هويتي ليست صعبة ، وعندما لا يمكنك تحديد هويتي ، ستقتلني. كيف؟ اسأل العالم "كاري موليس" ، الذي اخترع اختبار PCR ، هذا ما سيقوله. ولكن بسبب هذا التحقيق ، تكسب جيدًا أيضًا. من بين أفضل عشرة باحثين في العالم ، واسمهم "ليونارد هورويكز" ، قال لك كتابه "فيروس ناشئ" كل شيء ، ولكن لم يكن هناك وقت للحصول على معلومات عني. عندما كشف عن الفيروس المسمى "إيبولا" ، "زيكا" ، إلخ ، اختطفت الحكومة الأمريكية منزل حكومته منه ، وأعلن الخيانة. لقد قال حتى أنه خطير مثل "نزلات البرد" الشائعة أو أي فيروس آخر مثل "حمى الضنك" و "شيكونغونيا" و "H1N1" و "زيكا" و "أنفلونزا الخنازير". هل سمعت من قبل أنه حتى شخص ميت بسبب "نزلات البرد" ، لا ينتشر "حمى الضنك" عبر البعوض. قيل لك مدى خطورة. مجرد التفكير ، إذا كانت البعوضة التي تحمل فيروس حمى الضنك ، عندما لا يمكن أن يموت البعوض من هذا الفيروس ، كيف يمكن أن تموت؟ تقتل بأدوية الوباتشيك. لكنك تلوم فيروس حمى الضنك المسكين.     بقدر ما تريد مع المطهر ، اغسل أيدي الناس ، ولكن أيضًا استحم ، لكنني لن أموت لأنني أموت ، أموت ، كيف يمكنك قتلي مع هذا المطهر. نعم ، أنت تقتل بالتأكيد البكتيريا والميكروبات ومسببات الأمراض الودية ، وما زلت في يدك ، لأنني شخص ميت. هذا يعني أنك تضر نفسك أثناء قتلي. أعني أن أقول أنه في العالم الخارجي لا يمكنك قتلي ولا في الخلايا الداخلية. ثم أنت تقوم بمليار عمل فقط باسم قتلي ، أليس كذلك.    أنت تبيع الكثير من أقنعة الوجه ، أي أنك تتاجر بملايين الكرور. إنه لأمر جيد ، جيد جدًا أن عملك يقع باسمي. ملحوظة:- لقد قمت بإنشاء دواء Unani واحد يسمى HEALTH IN BOX®. مع هذا الدواء ، تصبح جميع أمراض نمط الحياة معكوسة إلى الأبد. أي أن كل مرض يفشل فيه الأطباء ويخبرونك بتناول دواء الوباتش طوال حياتك ، على العكس من ذلك ، أصبحت المحطة الأولى لطب الوباتشيك جزءًا من حياتك لسنوات عديدة بمجرد أن بدأت بتناول دوائي HEALTH IN BOX®. سأكون قادرًا على إيقاف هذا الدواء بعد أربعة أشهر من استخدامه ، وسوف أتمكن من العيش حياة صحية. دعني أخبرك أن أمراض نمط الحياة مثل السمنة ، ارتفاع ضغط الدم ، مرض السكري ، الربو ، الكوليسترول ، الغدة الدرقية ، مشكلة القلب ، السرطان ، التهاب الكبد والبطن ، الصداع النصفي ، الصدفية ، الجيوب الأنفية ، التهاب المفاصل ، OSTEOTPTPITITSTARIT يذهب. عبوة هذا الدواء هي 240 غرامًا لمدة شهر ، وهو فقط 3000 / روبية. يتم إرسال هذا الدواء من البريد السريع في كل مكان في الهند. حكيم أبو رضوان BUMS ، مع مرتبة الشرف (BU) طبيب أونياني متخصصون في أمراض نمط الحياة مركز البحوث الطبية UNANI طريق شروتي تشوك بوراني باستي JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND. رقم الاتصال 8651274288 & 9334518872 ما هو AAP 9334518872 و 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com يوتيوب حكيم MD ABU RIZWAN



Last updated date 29/09/2020

HEALTH IN BOX से आप किसी भी लाइलाज बीमारी का इलाज करें और अच्छी आमदनी पाएं

ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU !बेरोज़गारों केलिए सुनहरा अवसर:-HEALTH IN BOX ® यूनानी दवा से 20% - 40% तक आय करने का सुनहरा अवसर आपके सामने है, जो इस प्रकार है:-20%= 5-9 packet's25%= 10-19 packet's30%= 20-49 packet's 40%= 50-100 Packet's(एक पैकेट HEALTH IN BOX ® का मूल्य ₹ 3000/- है।) मैं, हकीम मुहम्मद अबू रिज़वान (जमशेदपुर, झारखंड) 1993 से अपने व्यक्तिगत रूप से चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहा हूँ। मैंने अंग्रेजी दवा और एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है। ये डॉक्टर किसी कसाई और डाकू से कम नहीं हैं। मैं लंबे समय से "DISEASE FREE WORLD" नामक एक अभियान चला रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप इस अभियान में मेरा साथ देंगे और मुझे प्रोत्साहित करेंगे। और अंग्रेजी दवा के घातक प्रभावों से मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड, हार्ट ब्लॉकेज, कैंसर, गठिया और अन्य घातक बीमारियों जैसे LIFESTYLE DISEASES वाले रोगियों की रक्षा के लिए आम जनता की मदद करेंगे। और उन्हें अंग्रेजी दवा से दूर रखने की कोशिश करेंगे।अनुसंधान कार्य लंबे समय से चल रहा है और परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से, केवल एक दवा, "HEALTH IN BOX", से सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करना शुरू कर दिया है।


परिणाम उल्लेखनीय है। फिर क्या हुआ, मैं अपने पास आने वाले सभी मरीजों को केवल एक ही दवा देता हूं:- "HEALTH IN BOX ®" महाशय जी! मैंने वो देखा है कि हमारे समाज के अधिकतर लोग अपनी अल्प आय और सीमित संसाधनों के कारण हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए, मैं ने सोचा है कि ऐसे यूवक या बेरोज़गार लोग आगे आएं और मुझसे जूड़ें। ऐसा करके अपनी आय बढ़ाने की कोशिश क्यों न करें।आज भी इलाज इतना आसान है कि मेरी दवा"HEALTH IN BOX"कोई भी आसानी से किसी भी बीमार आदमी का इलाज कर सकता है। तो फिर आप क्यों नहीं? इस मुसीबत की घड़ी में जहां लाखों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, खासकर बेरोजगार युवाओं को, उन्हें आगे बढ़कर मेरी पेशकश को गले लगाने की कोशिश करनी चाहिए। "HEALTH IN BOX" पूरी तरह से यूनानी दवा है। इसकी सभी सामग्रियों में केवल जड़ी-बूटियां हैं। इस दवा का उपयोग सभी उम्र के सभी प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है। नतीजा माशाल्लाह। केवल उन लोगों को जो मेरे बताए सभी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें 100% परिणाम प्राप्त होते हैं।यह वास्तव में किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह किसी भी बीमारी के "कारणों" पर काम करता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सभी बीमारियों का केवल एक ही कारण है, और वह है: -"ग्लूकोज और इंसुलिन के आपसी तालमेल की गड़बड़ी।""HEALTH IN BOX"सभी प्रकार की जीवन शैली(LIFESTYLE DISEASES) बीमारियाँ जैसे: कैंसर, मधुमेह, हाई बीपी, मोटापा, हार्ट ब्लॉकेज, लीवर, पेट और किडनी की समस्याएँ, डायलिसिस, सोरायसिस, सेक्स समस्याएँ, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड की समस्याएँ, हड्डियाँ और जोड़ों आदि रोगों के लिए लोग अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग जीवन भर करते हैं क्यों कि डॉक्टर यही सलाह देते हैं। HEALTH IN BOX का इस्तेमाल शुरू करते ही अधिकांश रोगों में, इस के परिणाम पहले ही दिन प्राप्त होते हैं। यानी यह दवा पहले दिन से काम करना शुरू कर देती है। अंग्रेज़ी दवा पहले ही दिन बंद हो जाती है और हमेशा केलिए कोई भी रोग रिवर्स हो जाती है।"मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस पर विचार करें।" सेवाभाव से लोगों की भलाई केलिए अवश्य मुझसे जुड़कर अवसर का लाभ उठाएं। लोगों को अंग्रेज़ी दवाओं से और डॉक्टरों से और रोगों से मुक्ति दिलाने में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करें।HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons. (BU)


UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES+ UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND संपर्क करें 9334518872 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN Visit us our website https://umrc.co.in

Last updated date 22/09/2020

WHO (वर्ल्ड हारर आर्गनाइजेशन)

जिस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं आया है। उसी बीमारी का इलाज करवा कर लाखों लोग ठीक भी हो गए। वाह! और तो और कुछ लोगों ने इस खौफ (Corona Virus) के तथाकथित ईलाज के नाम पर करोड़ों /अरबों कमा भी लिये। भरपेट कमा लेने के बाद जैसे N-95 मास्क बेकार घोषित हो गया। यकीन करें कमाई के बाद सेनेटाइजर, हैंडवाश और immunity booster दवायें भी बेअसर घोषित हो जाएंगी।फिर वैक्सीन से कमाने का दौर शुरू होगा।आप डर बनाये रखिये और हम बाजार बनाये रखते हैं।


*WHO" हमेशा आपके डर के साथ है!"* *(World Horror Organization)* अंग्रेजों की ग़ुलामी के ज़माने से भी अधिक अन्याय है ये तो। मास्क सैनिटाइजर से वायरस का कौन सा बाल बांका कर लेंगे, बल्कि उसके उलट सिर्फ और सिर्फ स्वंय का ही नुकसान होता है। अब इस संकट की घड़ी में, जबकि लोगों का रोज़गार छिन गया,दो रोटी का जुगाड़ भी कठिन है। और बदकिस्मती से आपलोग मास्क, सैनिटाइजर, सोशल डिस्टेंसिग,लाकडाउन, टेस्ट को अकारण ही सरकारी आमदनी का जरिया बना लिया है। अगर आम जनता से इतनी ही हमदर्दी है तो मास्क , सैनिटाइजर आदि लोगों को बांटने चाहिए क्योंकि इस so called महामारी से बचाव हो। लेकिन प्रशासन को इस से क्या मतलब? "आमदनी" का एक नया "श्रोत" का अविष्कार जो हो गया।


WHO का कौन सा गाइड लाइन है जिसमें बिना मास्क, सैनिटाइजर वाले को "दंडित" करो या उसकी "पिटाई" करें या "जेल" में डाल दिया जाए? बहुत ही दुखी मन से मैं ने ये बातें लिखी हैं क्योंकि मैं इस "गोरखधंधे" के सुत्रधारकों के काले कारनामों को भलिभांति जानता हूं। सबूत व साक्ष्य भी मौजूद हैं।

Last updated date 20/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

CORONA BUSINESS

WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।) इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है। बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर बचाव करने की कोशिश करें। FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें। शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है। हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है। NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है। NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ? वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है।


जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है। REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है? ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए? यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है। ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए। मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच सकेंगे।"


इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।" LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब? SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया? ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब! FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं। SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे। अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।" PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई। रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।) LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।) जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए। HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं। R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा। ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें। ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।

Last updated date 17/09/2020

O R A C क्या है?

*ORAC* का अर्थ *ऑक्सीजन रेडिकल एब्सॉरबेन्ट केपेसिटी* (Oxygen Radical Absorbance Capacity.) जितना अधिक ORAC, होगा उतनी ही ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता हमारे *फेफड़ो* को और *रक्त* को होगी।भविष्य में हमें हमारे अस्तित्व, जीवन बचाने के लिए हमे हमारी *रोग प्रतिरोधक शक्ति(Immunity)* को बढ़ानी होगी। हमारे जीवन में मसालों और जड़ीबूटियों का रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत महत्व है। मसाले और जड़ीबूटियों का अमूल्य धरोहर प्रकृति से हमे मिला है। 👍🙏 आइए कुछ जड़ीबूटियों और मसालों के ORAC क्षमता (values) पर नजर डाले :1. लौंग Clove : 314,446 ORAC 2. दालचीनी Cinnamon :267,537 ORAC 3. कॉफी Coffee. :243000 ORAC 4. हल्दी Turmeric :102,700 ORAC 5. कोका Cocoa :80,933 ORAC 6. जीरा Cumin : 76,800 ORAC 7. अजवाइन Parsley :74,349 ORAC 8. तुलसी Tulsi : 67,553 ORAC 9. अजवायन के फूल Thyme : 27,426ORAC 10. अदरक Ginger :28,811 ORAC अदरक, तुलसी, हल्दी आदि के *सत्व(रस)* की ORAC की क्षमता दस गुणी ज्यादा होती है। इसलिए इनका प्रयोग करना चाहिए। खून में ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता को (OXYGEN CARRYING CAPACITY OF THE BLOOD) प्रकृति में मिलने वाले विभिन्न फलों, हरी शाकसब्ब्जी, पत्तेदार सब्जियों, मसालों, वनस्पतियों, जड़ीबूटियों आदि से भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है।उत्तम क्षमता वाले ORAC खाद्यपदार्थ (आहार) और पोषक तत्व (Nutrients) जैसे कि *Iron, Vitamin C, Zinc, Omega 3, Magnesium and Vitamin D* आदि शारिरिक क्षमता और सुरक्षा कवच को सुदृढ़ तथा मजबूत करते हैं। तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, हल्दी, दालचीनी, लोंग के अतिरिक्त जड़ीबूटी जैसे *ब्राह्मी, अश्वगंधा, सतावरी, मुलेठी, अर्जुनारिष्ट, पीपर, धनिया, काला जीरा, इलाइची* आदि वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। अतः यह किसी भी वेक्सीन या ठीके से बहुत ज्यादा प्रभावशाली है वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट्स के।चूंकि 80% कोरोना के पोसिटिव मरीज़ों में कोई लक्षण नहीं होने की वजह से हम हर समय अनिश्चितता के वातावरण में रहने को बाध्य हो रहे हैं।130 करोड़ आबादी वाले देश में सबका टेस्ट करना असंभव है। प्रति दिन यदि दस लाख टेस्ट करे तो भी 35 वर्ष लग जाएगें। *उपरोक्त सभी बातों का निष्कर्ष निकलता है कि हमारे शरीर में इम्युनिटी उतनी ही आवश्यक है जितनी जरूरत कंप्यूटर में इंटेल (Intel) की है।*



Last updated date 16/09/2020

कोरोना मरीज़-फार्मा कंपनियों के लिए एक BEARER CHEQUE

आपको कोई लाईलाज बीमारी है,या जीवन भर अंग्रेजी दवा खाने को बाध्य हों,या और अपनी बीमारी से सदा केलिए छुटकारा पाकर सेहतमंद जीवन जीना चाहते हों। डाबिटीज़ को दूर भगायें,कभी भी न हो हाई बीपी से सामना,कोलेस्टरोल से भयभीत न होना कभी,ये तो हमारी जिन्दगी है|         कोरोना, चिकनगुनिया, डेन्गू, एच 1एन 1, स्वाइन फ्लू, ज़ीका, नीपा या कोई भी 'फ्लू' कभी जानलेवा होता ही नहीं,बल्कि जानलेने वाला तो उस वायरल डीज़ीज़ के ईलाज में  ईस्तेमाल की जानेवाली 'टैमीफ्लू' वगैरह जैसी दवायें हैं , और तो और अब कोरोना वायरस के लिए तो एच आई वी एड्स की दवा देने केलिए सहमति बन भी गई है| SCIENTIST और रीसर्चर्स (जिसमें सर्वोच्च नाम LEONARD HOROWIDTH) का तो इतना तक कहना है कि सर्दी जुकाम या कॉमन कोल्ड से अगर लोग मर सकते  हैं (वही लोग जिनकी ईम्यूनिटी यानि 'रोग प्रतिरोधक क्षमता गौण हो जाती है|) तो किसी भी वाययल डीजीज़ जैसे - चिकनगुनिया,डेन्गू,फ्लू,एच1 एन1,एच आई वी एड्स,ईत्यादि से भी किसी की मृत्यु हो सकती है| KERRY MULUS जो PCR TEST के जनक हैं।उनका कहना है कि PCR TEST से जो जांच की जाती है उससे किसी वायरस का नहीं बल्कि केवल उसके GENETIC SEQUENCE या PROTEIN का ही पता चलता है। जब ये ही पता नहीं चलता है कि कौन सा वायरस है तो मारेंगे किसे? वायरस का न तो कोई SHAPE होता है और न ही ये हमारे BLOOD STREAM में मौजूद रहता है तो मारेंगे किसे?ये वायरस तो हमारे शरीर के भीतर कोशिकाओं क पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुप जाता है।    बस यूं समझ लीजिए कि ऐलोपैथिक फार्मास्युटिकल कम्पनियों का ड्रामा मात्र है,ताकि उनका व्यापार धड़ल्ले से चलता रहे। कुछ लोग चाहते हैं कि दुनिया की आबादी पंद्रह प्रतिशत घट जाए।WHO और सरकारों का सहयोग भी इस मामले में बराबर बराबर है।     एक बहुत ही SHOCKING NEWS देना चाहता हूं।वो ये कि जिस किसी भी अस्पताल में किसी भी वायरल डीज़ीज़ के जितने ज़्यादा मरीज़ भर्ती होते हैं उन अस्पतालों को FUNDING मुहैय्या कराई जाती है। इतना ही नहीं जिस अस्पताल में जितने ज़्यादा मरीजों की मौत होती है उन अस्पतालों को REWARDS भी मिलते हैं और अख़बार में फ्रंट पेज पर पूरी अहमियत के साथ ख़बरें छापी जाती हैं ताकि जनता को डरता जाए।     आपने सुना ही है कि आपको SANITIZER से बार बार हाथ धोने की हिदायत दी गई है। पता होना चाहिए कि SANITIZER से हाथ धोने से केवल FRIENDLY BACTERIA और MICROBES ही मरेंगे, वायरस नहीं मरेंगे। वायरस तो पहले ही मरे हुए हैं।ये वायरस LIVING BEHAVIOUR तब दिखाते हैं जब वो CELL के अंदर छुपे हुए होते हैं, जहां वो MULTIPLY होने लगते हैं।     ये सब तो आज के दौर के मेडीकल साईन्स का सबसे बड़ा फ्राड मात्र है,'एक भय का व्यापार' मात्र यानि 'डीजीज़ मोन्जरिंग' है,जो लगातार एक 'सिस्टम' के तहत चलाया जा रहा है|जिसमें 'मेडीकल कम्पनिय़ाँ' ही हैं, जिनको अपना कारोबार चलाना है,और अपने मुनाफे भर से मतलब है,न कि हमारी सेहत से|ये डाक्टर साहिबान जो ऊँची-ऊँची डिग्रियां लेकर ऊँची-ऊँची फीस मरीज़ों से वसूलते नजर आते हैं,ऐसा प्रतीत होता है,मानो 'फार्मासियूटीकल्स कम्पनीज़' के 'रजिस्टर्ड एजेन्ट' या 'मेडीएटर' की तरह  काम करने वाले हैं। उनको सिर्फ और सिर्फ हमारी 'बीमारी' की चिन्ता रहती है न कि हमारी 'सेहत' की| क्यूंकी ऐसी ही व्यवस्था है कि उनसे ईलाज करवाना शुरु कर दिया एकबार तो फिर आप उनके परमानेन्ट कस्टमर बन गये|फिर क्या, जीवन भर 'कष्ट से मरते रहिए|'.     CORONA  कुछ लोगों की कमाई का ज़रिया बना हुआ है।लैब में इसके जांच की फीस सिर्फ और सिर्फ ₹ 4500/- है।डर और भय का माहौल तो ऐसा तैयार किया जा रहा है कि मानो क़यामत आनेवाली है,या आ ही गई।    हमारे देश में कल (20th MARCH,2020) तक 14,514 लोगों की जांच की गई, जिसमें सिर्फ 271 यानी 1.86% लोग ही संक्रमित या POSITIVE पाए गए। फिर इतना हाय तौबा क्यों मचाया जा रहा है?     जिस वायरस का अंत ही केवल "हाई फीवर" से हो सकता है तो हमारे क़ाबिल डॉक्टर सबसे पहले उसे ही ख़त्म करके "वायरस" को सुरक्षा प्रदान करने में मदद करते हैं। इसके लिए तो WHO का गाइडलाइंस भी आ गया है:-" 99 डिग्री फारेनहाइट से अधिक ज्वर मिले तो ANTIPYRETIC, ANALGESIC, ANTIBIOTICS अवश्य ही दें।"   एलोपैथी ड्रग माफिया के तो वल्ले वल्ले हैं, आमदनी के कई नये द्वार जो खुल गये :-     PCR TEST जिससे ये कभी भी पता नहीं चलता कि ये कौन सा वायरस है। उससे केवल उसके GENETIC SIQUENCE का और उसके PROTEIN का ही पता चलता है।      SANITIZER से जितना भी हाथ धोएंगे, केवल फ्रेंडली बैटरिया ही मरेंगे, वायरस नहीं। क्योंकि वायरस तो पहले से ही मुर्दा है। वायरस हमेशा NON LIVING होता है और अदृश्य यानी INVISIBLE। जब ये हमारे शरीर में कोशिकाओं के भीतर दाख़िल होता है तो जानदार (LIVING) की तरह BEHAVE करता है और वहां पर ही MULTIPLY होने लगता है। GLOVES, MASKS की बिक्री जोरों पर है।   मैं तो चैलेंज करता हूं कि अगर किसी "माई के लाल" में दम है तो सच जो मेरा वाला है, उसपर सहमति जताते हुए मेरा साथ दे। इसके इलाज में एक रूपए की अंग्रेजी दवा की ज़रूरत है और न ही किसी तरह की जांच करने की।     मीडिया से लेकर सरकारी तंत्र इसके प्रचार प्रसार में जुटा है।अजब ग़ज़ब अनर्गल बातें अख़बारों में सलाह के नाम पर परोसा जा रहा है।    "घड़ी डिटर्जेंट" का ऐड:- "क्या आप जानते हैं कि आपके कपड़े बीमारी फैला सकते हैं?आज मैल सिर्फ वो नहीं जो दिख जाए, अंजाने में कोई वायरस आपके कपड़ों पर लग कर किसी बड़ी बीमारी का कारण बन सकता है। अपने कपड़े रोज़ धोएं, यानि सुरक्षित और स्वस्थ रहें।"     अब इस विज्ञापन से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? 65000 लोगों को सर्विलांस पर रखा गया है। अभी देश में क़रीब 5500 लोगों को क्वारेंटाइश में रखा गया है।इन लोगों में यदि बीमारी का लक्षण दिखता है तो इनके जांच को प्राथमिकता दी जाएगी। नमूनों की जांच की क्षमता बढ़ाई जा रही है।   कल 20 मार्च 2020 तक के आंकड़ों को देखें:- देश    लोगों की जांच   संक्रमित   प्रतिशत भारत      14,514           271        1.86 चीन     3,20,000      81,300      25.41 इटली   2,06,886     41,035      19.84 ईरान       80,000      18,407       23.01 स्पेन        30,000      17,147       57.16 जर्मनी  1,67,000      10,999         6.59 फ्रांस        36,747      10,877      29.60 अमेरिका  1,03,945  10,442      10.04 द कोरिया  3,16,664   8,654        2.73 यू के         64,621        3277        5.07 जापान      14,901         950         6.38 रूस       1,43,519        253          0.18 यू ए ई     1,25,000        140          0.11 आंकड़ों को देखें,ये क्या हो रहा है।आज 21 मार्च, 2020 को सरकार ने "जनता कर्फ्यू" का ऐलान किया है, लोगों ने स्वीकार किया और वो अपने घरों में नज़रबंद हो गए। धूप और शुद्ध हवा वायरस का दुश्मन है जिसमें जाने की ही मनाही है, आगे भुगतने को तैयार रहें।     विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7अप्रैल को 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है|जानिए क्या है हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं और आम-जन के सेहत की स्थिति:-     * पाँच लाख डाक्टर्स की कमी है देश में|10,189 लोगों पर 'एक सरकारी डाक्टर' है|विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक के मुताबिक 'एक हजार लोगों पर एक डाक्टर' होना चाहिए|      * महज़ 56 हजार छात्र हर साल 462 मेडिकल कालेजों से ग्रेजुएट होते हैं,जबकि देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.6 करोड़ बढ़ रही है|     * 90,343 लोगों के बीच एक सरकारी अस्पताल है देश में| 12 किलोमीटर औसतन दूरी आम भारतीय को तय करनी पड़ती है मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं केलिए|     * 13 राज्यों के 64 ज़िलों में क़रीब 27 करोड़ लोगों केलिए एक भी ब्लड बैंक नहीं है|     * 68.3 वर्ष है भारत में जीवन प्रत्याशा की दर|पुरुषों की औसत आयु 66.9 वर्ष तथा महिलाओं की 69.9 वर्ष हे|     * एक हजार बच्चों में 41 बच्चों की मृत्यु जन्म के एक साल के भीतर हो जाती है    * प्रति 10,000 में से 174 मातृ मृत्यु दर|मतलब हर घंटे में 5 महिलाओं की प्रसव के दौरान होनेवाली जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है|    * भारत में सबसे ज्यादा मौतें हृदय से संबंधित बीमारी की वजह से होती हैं|2005 से 2016 के बीच इन मौतों में 53% की बढोतरी हुई है|     * 25 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु अकेले प्रदुषण से हो जाती है|    नोट:-    इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |          * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|    * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है।    * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER, HIV AIDS & TUMOUR के लिए) है।    * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|   HAKEEM MD ABU RIZWAN             BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN



Last updated date 16/09/2020

कोरोनावायरस का ईलाज कुरान मजीद में

आप अल्लाह के पाक कलाम में एक जगह '19' बिल्कुल साफ़ लिखा पाएंगे, जो भयंकर कष्ट देने वाला बताया गया है। 'हम अनक़रीब (बहुत जल्द) उसे सक़र (नर्क) भेज देंगे. और तुम क्या जानो कि सक़र क्या है? वह किसी को छोड़ने वाली और बाक़ी रखने वाली नहीं है। "बदन को जलाकर स्याह कर देने वाली है।" ' उस पर 19 हैं। (पवित्र क़ुरआन 74:26-30) आपको यह देखकर ताज्जुब होगा कि जिस बीमारी के हमले से दुनिया दहशत में है, उसका नाम है #covid_19 आपको यह देखकर भी ताज्जुब होगा कि इसी सूरत, सूरह मुदस्सिर के शुरू में रब ने यह फ़रमाया है: "अपने कपड़े पाक रखो और गन्दगी से दूर ही रहो।" "अपनी कोशिशों को अधिक समझकर उसके क्रम को भंग न करो।" (आयत 4, 5 व 6) इसी बात पर आज सारी दुनिया की सरकारें ज़ोर दे रही हैं। ...और यह भी लिखा है कि वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी। (आयत 28) जो लोग कोविड 19 से बच जाएंगे, वे भी उसकी वजह से चौपट हो चुकी इकोनॉमी के कष्टों से न बच पाएंगे। कोविड 19 के अटैक का कारण, पवित्र क़ुरआन की रौशनी में: यह बीमारी जिस देश में पैदा हुई, वहाँ क्यों पैदा हुई? यह हरगिज़ न होगा वह तो मेरी आयतों का दुश्मन था।शीघ्र ही मैं उसे घेरकर कठिन चढ़ाई चढ़वाऊँगा। (आयत 12 व 13) इलाज: पवित्र क़ुरआन की सूरह नंबर 74 आयत नंबर 13 में अल्लाह ने बता दिया है कि कोविड 19 की दवा ऊँचाई पर है। चीन में ऊंची चढ़ाई पर एक फल मिलता है, जिसमें आँवले से अस्सी गुना ज़्यादा विटामिन सी होता है। इसका नाम #Sea buck thorn है। यह तिब्बत और लद्दाख़ में भी मिलता है। #Allahpathy के अनुसार रब ने Covid_19 का इलाज भी इसी सूरह में बता दिया है। आप इस सूरह को सूरह यासीन से जोड़कर पढ़ लें तो पूरा ट्रीटमेंट आपके सामने आ जाएगा। सूरह यासीन की आयत नंबर 56 व 57 में अल्लाह की आयतों को मानने वाले, फल खाने वालों के लिए सलामती की भविष्यवाणी है। फलों से भरपूर मात्रा में विटामिन सी मिलता है और फलों का विटामिन सी इंसान की इम्यूनिटी को बूस्ट करता है। अल्हम्दुलिल्लाह! याद रखें कि सिंथेटिक विटामिन सी की गोलियाँ इम्यूनिटी को नेचुरल विटामिन सी जितना सपोर्ट नहीं करतीं। इसलिए विटामिन सी की गोलियाँ खाना फ़ायदा न देगा। 7 #Ajwah खजूर खाने वाले पर उस दिन कोई ज़हर असर नहीं करता। (भावार्थ हदीस) कोरोना वायरस बॉडी में जो ज़हर पैदा करेगा, उन ज़हरों को #अजवा_खजूर खाकर बेअसर किया जा सकता हैं। अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐसा फ़रमाने के बाद #अजवाखजूर काफ़ी क़ीमती बिकने लगी और आज भी काफ़ी क़ीमती बिकती है। ग़रीब लोग इसे ख़रीद नहीं सकते। वैसे भी इसका प्रोडक्शन बहुत कम है। ग़रीब लोग इसकी जगह #Moringa Leaves यानि सहजन की पत्तियाँ खा लें। उनके जिस्म में पड़े हुए ज़हर भी बेअसर हो जाएंगे और यह हर देश में पैदा होता है। हमारे देश में ग़रीब बिहारी भाई बहन इसे अपने घर आँगन में ज़रूर बोते हैं। इसमें विटामिन सी के साथ प्रोटीन और कैल्शियम भी बहुत होता है। इसके 28 ग्राम पत्तों में 7 गिलास संतरा जूस से ज़्यादा विटामिन सी होता है। जो बूढ़ा बीमार रोज़ 20-20 पत्ते कच्चे चबाकर या उन्हें सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर खाने लगता है, उसका शरीर फिर से जवानी की तरफ़ लौटने लगता है क्योंकि यह दुनिया का #Highest ORAC value Food है। जो लोग डायलिसिस करा रहे हैं, वे इसके पत्ते खाने लगते हैं तो उनका डायलिसिस कम होने लगता है और उनके गुर्दे ठीक हो जाते हैं। तौरात में लिखा है कि अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को पानी का ज़हरीला असर दूर करने के लिए इस #Tree Of Life को पानी में डालने के लिए कहा था। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ऐसा किया तो उस पानी का ज़हरीला असर दूर हो गया था। देखें: Exodus 15:25 वह पेड़ Moringa olrifera था। आज वैज्ञानिकों ने मोरिंगा यानि सहजन के इस गुण की पुष्टि कर दी है। सो आप जब पानी पिएं तो इसके कुछ पत्तों को धोकर उसके साथ खा लिया करें। इससे पानी का ज़हरीला असर दूर हो जाएगा क्योंकि आजकल पानी में आर्सेनिक और दूसरे ज़हरों की क्वांटिटी बढ़ चुकी है। बुख़ार में टेम्प्रेचर को बढ़ने से रोकने के लिए: नारियल पानी और मौसमी जूस पीते रहें। पानी के बजाय यही पिएं और शरीर पर ताज़े पानी में भिगोकर पाक साफ़ सूती कपड़ा रखते रहें। बॉडी टेंपरेचर 101 और 102 से ऊपर नहीं जाएगा, इन् शा अल्लाह! सूखी खाँसी का इलाज: रब ने पवित्र क़ुरआन में शहद, अंजीर और सोंठ/अदरक का तारीफ़ के साथ ज़िक्र किया है। ये सब  सूखी खाँसी को दूर करते हैं। ज़ैतून का तेल भी सूखी खाँसी के ख़िलाफ़ एक प्रभावी प्राकृतिक उपचार है।  यदि आप खाँसी से पीड़ित हैं, विशेष रूप से रात में, बिस्तर पर जाने से पहले ज़ैतून के तेल का एक बड़ा चमचा लेना याद रखें। शहद, अंजीर और ज़ैतून अंदर की गंदगी को ख़ारिज करके जिस्म को पाक करते हैं जिसका हुक्म सूरह मुदस्सिर में दिया गया है कि गंदगी से दूर ही रहो। सबसे अच्छी दवा क़ुरआन है। -हदीस बहवाला तिब्बे नबवी, लेखक:इब्ने क़य्यिम) कोरोना की दवा भी क़ुरआन है क्योंकि कोरोना की वजह भी चीन द्वारा पवित्र क़ुरआन को पढ़ने पर पाबंदी लगाना है और उसे बदलने की कोशिश करना है। अल्लाह को यह पसंद नहीं है कि इंसान ख़ुद को इतना बड़ा समझे कि वह दूसरे लोगों के मानवाधिकार ख़त्म कर दे, उनकी आस्था, उनका धर्म, उनका सुख-चैन और आज़ादी और उनका जीवन ख़त्म कर दे। जब ऐसा करने वाले कष्ट में पड़ें तो अगर वे उससे निकलना चाहें तो वे रब के सामने अपनी ग़लती मानकर उसे सुधार लें और 'सीधे रास्ते' पर चलें। इसी को तौबा कहते हैं। अब कुछ वीडियोज़ ऐसी सामने आई हैं, जिनमें चीन के लोगों को भारी संख्या में पवित्र क़ुरआन और नमाज़ पढ़ते हुए दिखाया गया है। ऐसा लगता है कि चीन के हाकिम अपनी ग़लती समझ चुके हैं और वे उसे सुधार रहे हैं। इसके बाद से चीन में कोविड 19 के नए मरीज़ मिलने बंद हो गए हैं। #कोविड_19 के इस इलाज को केवल वही लोग समझ सकते हैं, जिन्हें अल्लाह ने ईमान के साथ  इल्मो-हिकमत बख़्शी है और जो लोग बीमारी की वजह और उससे शिफ़ा के क़ुदरती निज़ाम को समझते हैं। ख़ुलासा: जब ईमान यानि अवचेतन मन के सही विश्वास के साथ शिफ़ाबख़्श फ़ूड खाया जाता है तो रब शिफ़ा देता है।



Last updated date 16/09/2020

किसी भी वायरल डीज़ीज़ में इस लेमन जूस को न भूलें

🍋 नींबू की एक बूंद ICEJUICE यदि आप अपने नथुने में लेमन जूस की केवल एक बूंद डालते हैं, तो वायरस जो नाक, गले और फेफड़ों में पड़ा है, कफ के रूप में मुंह में आ जाएगा, जिसे आपको बाहर थूकना है। फिर गुनगुने पानी में नींबू के रस की कुछ बूंदें और थोड़ा सा नमक, गार्गल करके थूक दें। तब आपको बड़ी राहत महसूस होगी। फिर अपनी उँगलियों से नारियल के तेल को अपनी नासिका में लगायें। इस आसान प्रक्रिया का पालन करने के बाद भी, अगर कोई साबित करता है कि उसे कोई राहत नहीं मिली है, मैं चुनौती देताहूं और उन्हें एकबार आज़माने की सलाह दूंगा। जब कोरोना वायरस पूरी दुनिया को हिला देने वाला खलनायक है। लेमन जूस भी दोगुना हो जाता है और एक सैनिटाइज़र के रूप में शानदार काम करता है। अपने हाथों और सिर पर नींबू का रस लगाएं , और अपने कपड़ों पर स्प्रे करें और कमरों में छिड़कें, कोरोनावायरस आपको या आपके प्रियजनों को प्रभावित नहीं करेगा। यह आपके पास नहीं आएगा, जैसा कि मैंने ऊपर वर्णित किया है, स्वयं के ऊपर उपरोक्त उपाय का सफलतापूर्वक परीक्षण किया और सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के बाद, उन्होंने उपरोक्त उपाय कई अन्य लोगों को सुझाए जो कोरोनावायरस से संक्रमित थे। तत्काल राहत पाने वाले सभी ने उन्हें धन्यवाद दिया। "साइनाइड की एक बूंद दुश्मन द्वारा पकड़े गए एक सैनिक को मार देती है" ... जबकि "लेमन जूस की एक बूंद किसी की जान बचाती है।"



Last updated date 16/09/2020

COMPARE THE DEATH'S BETWEEN corona & others CAUSES

``` The number of deaths in the world in the last 3 months of 2020 3,14,687 : Corona virus 3,69,602 : Common cold 3,40,584 : Malaria 3,53,696 : suicide 3,93,479 : road accidents 2,40,950 : HIV 5,58,471 : alcohol 8,16,498 : smoking 11,67,714: Cancer Then do you think Corona is dangerous? Or is the purpose of the media campaign to settle the trade war between China and America or to reduce financial markets to prepare the stage of financial markets for mergers and acquisitions or to sell US Treasury bonds to cover the fiscal deficit in them Or Is it a Panic created by Pharma companies to sell their products like sanitizer, masks, medicine etc. Do not Panic & don't kill yourself with unecessary fear. This posting is to balance your newsfeed from posts that caused fear and panic. 33,38,724 People are sick with Coronavirus at the moment, of which 32,00,000 are abroad. This means that if you are not in or haven't recently visited any foreign country, this should eliminate 95% of your concern. If you do contact Coronavirus, this still is not a cause for panic because: 81% of the Cases are MILD 14% of the Cases are MODERATE Only 5% of the Cases are CRITICAL Which means that even if you do get the virus, you are most likely to recover from it. Some have said, “but this is worse than SARS and SWINEFLU!” SARS had a fatality rate of 10%, Swine flu 28% while COVID-19 has a fatality rate of 2% Moreover, looking at the ages of those who are dying of this virus, the death rate for the people UNDER 55 years of age is only 0.4% This means that: if you are under 55 years of age and don't live out of India - you are more likely to win the lottery (which has a 1 in 45,000,000 chance) Let's take one day ie 1 May as an example when Covid 19 took lives of 6406 in the world. On the same day: 26,283 people died of Cancer 24,641 people died of Heart Disease 4,300 people died of Diabetes Suicide took 28 times more lives than the virus did. Mosquitoes kill 2,740 people every day, HUMANS kill 1,300 fellow humans every day, and Snakes kill 137 people every day. (Sharks kill 2 people a year) SO DO THE DAILY THINGS TO SUPPORT YOUR IMMUNE SYSTEM , PROPER HYGIENE AND DO NOT LIVE IN FEAR. Join to Spread *Hope* instead of Fear. The Biggest Virus is not Corona Virus but Fear! ``` *SHARE TO STOP PANIC*



Last updated date 16/09/2020

बिना दवा कोरोना वायरस या किसी अन्य वायरल डीज़ीज़ का ईलाज यूनानी पद्धति से

"CORONA VIRUS का ईलाज" (all types of viral diseases)THROUGH UNANI SYSTEM at HOME:-          -:OPEN CHALLENGE:- (देशहित में मानवता को समर्पित मेरे इस उपचार विधि को जन जन तक पहुंचाने में मदद करें। इसके अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है।) बस इतना ही समझ लीजिए कि इंसानी शरीर नेचर से निर्मित है। और जब इसके भीतर कोई परेशानी या बीमारियां उत्पन्न हो जाए तो उसे "नेचुरल" तरीक़े ही ठीक करेंगी,न कि कोई केमिकल (ऐलोपैथिक दवाएं), किसी भी तरह की दवाएं चाहे आयूर्वेदिक हो, यूनानी हो, होमियोपैथिक हो,वो वायरस को कभी भी नहीं मार सकती हैं क्योंकि आप दवाओं से सिर्फ उसी को मार सकते हैं जो आपके ब्लड में मौजूद हो। लेकिन कोई भी वायरस ब्लड में तो रहता ही नहीं है। वायरल फीवर चाहे कोई भी हो उसे इस नीचे दी गई नेचुरल विधि के ज़रिए ही ठीक किया जा सकता है। जैसे ही कोई भी वायरल फीवर के लक्षण दिखाई दे तो नीचे लिखे "यूनानी पद्धति" का मेरा बार-बार का आज़माया TREATMENT शुरू कर दें:- * मरीज़ को पका हुआ खाना बिल्कुल न दें। * पहले दिन:- BODY WEIGHT (60KG) / 10 = 6 यानी पहले दिन 6 (छ:) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 6 (छ:) गिलास नारियल पानी बारी बारी पिलाते रहें। * नोट:- (नारियल पानी (COCONUT WATER) की जगह एक अनार/एक गिलास नारियल पानी खाएं।)  * दूसरे दिन:- BODY WEIGHT (60 KG) / 20 = 3 यानी 3 (तीन) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 3 (तीन) गिलास नारियल पानी बारी बारी से पिलाते रहें।और शाम में BODY WEIGHT (60 KG)×5 = 300 GRAM खीरा और टमाटर (बराबर बराबर) खिलाएं।  * तीसरे दिन:- BODY WEIGHT (60 KG) / 30 = 2 यानी 2 (दो) गिलास मोसम्मी या संतरा जूस और 2 (दो) गिलास नारियल पानी बारी बारी से पिलाते रहें दोपहर बारह बजे तक।और दोपहर के समय में BODY WEIGHT (60 KG)×5 = 300 GRAM खीरा और टमाटर (बराबर-बराबर) खिलाएं। रात के भोजन में सादा खाना जिसमें तेल और प्रोटीन की मात्रा कम से कम रहे। किसी भी रूप में एनीमल और डेयरी प्रोडक्ट्स भोजन में शामिल न करें।और अगले दिन यानि चौथे दिन वो बिल्कुल सेहतमंद हो जाएगा।   "ईन्शा अल्लाह" HIGH FEVER की चिंता न करें। यही वो हथियार है जिससे वायरस मारा जाएगा। ऊपर लिखे तरीक़े से ईलाज चलाने पर बुख़ार 101-102° F से अधिक नहीं बढ़ेगा। -:आपकी सेवा केलिए चौबीस घंटे उपलब्ध:- HAKEEM MD ABU RIZWAN   BUMS,hons.(BU)   UNANI PHYSICIAN Specialist in LIFESTYLE DISEASES



Last updated date 16/09/2020

सच्चाई छुप नहीं सकती

जिस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं आया है। उसी बीमारी का इलाज करवा कर लाखों लोग ठीक भी हो गए। वाह! और तो और कुछ लोगों ने इस खौफ (Corona Virus) के तथाकथित ईलाज के नाम पर करोड़ों /अरबों कमा भी लिये। भरपेट कमा लेने के बाद जैसे N-95 मास्क बेकार घोषित हो गया। यकीन करें कमाई के बाद सेनेटाइजर, हैंडवाश और immunity booster दवायें भी बेअसर घोषित हो जाएंगी।फिर वैक्सीन से कमाने का दौर शुरू होगा।आप डर बनाये रखिये और हम बाजार बनाये रखते हैं। *WHO" हमेशा आपके डर के साथ है!"* *(World Horror Organization)*



Last updated date 16/09/2020

शर्मनाक व अनैतिक कृत्य

आयुर्वेद के डॉक्टर ने COVID-19 के इलाज का किया दावा… SC ने लगाया 10,000 का जुर्माना… (20 August 2020 HIND WATAN SAMACHAR LUCKNOW) ओमप्रकाश वैद ज्ञानतारा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कोरोना के इलाज की दवा की खोज करने का दावा किया है,उन्होंने अपनी याचिका में इस दवाई का इस्तेमाल देशभर के सभी डॉक्टरों और अस्पतालों में कराए जाने की मांग कोर्ट से की है। आयुर्वेदिक दवा और शल्यचिकित्सा (BAMS) की डिग्री रखने वाले ग्यांतारा ने अदालत से मांग करते हुए कहा कि कोर्ट भारत सरकार के सचिव और स्वास्थ्य विभाग को कोविड​​-19 के इलाज के लिए उसके द्वारा बनाई गई दवाओं का उपयोग करने का आदेश दे,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘हमारा मानना है कि ग्यांतारा की जनहित याचिका के जरिए रखी गई मांग पूरी तरह से गलत है और लोगों के बीच यह संदेश जाना जरूरी है कि इस तरह की बेतुकी बातें को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर नहीं करनी चाहिए। बता दें कि महामारी की शुरुआत से ही दुनियाभर में इसके वैक्सीन बनाने को लेकर रिसर्च जारी है,लेकिन अभी तक सिर्फ रूस ने ही इसमें कामयाबी हासिल की है।रूस ने दावा किया है कि उसने दुनिया का पहला कोरोना टीका बना लिया है,दुनियाभर के लोगों यकीन दिलाने के लिए ये टीका सबसे पहले रूस के प्रधानमंत्री की बेटी को लगाया गया था। हालांकि अभी भी इस वायरस के टीके को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च जारी है।



Last updated date 16/09/2020

कोरोना की नहीं, किसानों की चिंता करें यूनानी पद्धति के माध्यम से....!

अजब गजब दुनिया और दुनिया भर के लोग.....! जिसे देखो, कोरोनावायरस से पीड़ित रोगियों को बचाने में लगे हैं और ऐसे दिखाते हैं कि जैसे आसमान से तारे तोड़ लाए हैं। उन तमाम महानुभावों से विनम्र निवेदन है, अपील है कि अगर कोरोनावायरस के संदर्भ में कुछ करना ही है तो उससे पीड़ित रोगियों का इलाज तो बाद की बात है, पहले लोगों को जागरूक करें कि ये कोई बड़ी आफत नहीं बल्कि फार्मास्युटिकल कंपनियों की बहुत बड़ी साज़िश है। वायरस से लड़ना हम इंसानों का काम है ही नहीं, न ही हमें इससे बचने और भागने की ज़रूरत ही है। बल्कि, ऐलोपैथिक दवाओं से, डॉक्टरों से लोगों को बचाने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिए। हमारे अंदर "रोग प्रतिरोधक क्षमता" को बूस्ट कर देना ही काफी है। बाक़ी, वायरस से लड़ने का काम तो हमारे शरीर में मौजूद DENDRITIC CELLS का ही है, जिसका हमें केवल सहयोग करना चाहिए। सरकार ऐसा करती, तो न इतने लोगों की जानें जातीं, न ही लोगों में इस कोरोनावायरस का इतना ज़्यादा भय समाता। रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत करने के लिए प्रति दिन एक अमरूद, दो संतरे या मोसम्मी, तीन आम या चार टमाटर का सेवन करना काफ़ी है। लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि अमरूद, संतरे,मोसम्मी,आम या फिर टमाटर से तो केवल हमारे भारत देश के किसानों को फायदा हो सकता है। लेकिन हमारी सरकार को तो इस बात की चिंता है कि इस अमरूद संतरे मोसम्मी आम से फार्मास्युटिकल कंपनियों का व्यापार संभव नहीं,जो हर हाल में करवाया जाना है।



Last updated date 16/09/2020

कोरोना प्रश्नोत्तर

निम्न प्रश्नों का उत्तर देंl 1:- कोरोनावायरस कैसी बीमारी है जिसमें बिना दवा के 90% लोग अच्छे हो जाते हैं? उत्तर:- कोरोनावायरस कोई महामारी नहीं है, बिल्कुल भी नहीं है। ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों के द्वारा व्यवसायीकरण है। ये ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) मात्र भर है। किसी भी तरह से ये इतना जानलेवा है ही नहीं। कोरोनावायरस या किसी अन्य वायरल डीज़ीज़ से 1000 में केवल एक ही व्यक्ति मर सकता है और 999 व्यक्ति ठीक हो जाते हैं। और बदकिस्मती से वो मरने वाला एक आदमी भी ऐसा होता है जिसकी "रोग प्रतिरोधक क्षमता" एकदम निम्न हो। आज भी हम देखते हैं कि वायरस से पीड़ित रोगियों में 90% तो स्वस्थ हो जाते हैं,तो यह बिल्कुल मत सोचिएगा कि ऐलोपैथिक दवा से ठीक हो जाते हैं, बल्कि उनकी "रोग प्रतिरोधक क्षमता" उच्चतम स्तर की रही है। 2:- भारत सरकार आयुर्वेदिक यूनानी होम्योपैथिक डॉक्टरों को रिसर्च करने के लिए आयुष मंत्रालय को क्यों नहीं आदेश देता है ? उत्तर:- इस देश का दुर्भाग्य ही है कि जिस यूनानी पद्धति, आयूर्वेद को भारतीय धरोहर माना जाता है उसी को ALTERNATIVE या वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बता कर किनारे लगा दिया गया है। जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत देश भी वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन (डब्लू एच ओ) का सदस्य है। ये उसी को फौलो करता है। हम जानते हैं कि यह संस्था फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए "मुंह" का काम करता है, और भारत में ऐलोपैथिक दवाओं के व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर उसी की सुनी जाती है। सरकार भी उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकती है। क्योंकि फार्मा कंपनियां सरकार को इतना "चंदा" देती हैं कि उसकी बराबरी कोई भी नहीं कर सकता, कौर्पोरेट कंपनियां भी नहीं। मतलब स्वास्थ के मामले में सिर्फ़ और सिर्फ़ फार्मा कंपनियों को व्यापारिक दृष्टि से फ़ायदा पहुंचाने में सारे सरकारी तंत्र लगी होती हैं। अब सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में सरकार क्यों अपनी देशी चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना चाहेगी। देशी चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने से तो हमारे किसान भाई करोड़पति लखपति बनने लगेंगे, भला सरकार ऐसा क्यों चाहेगी? हालांकि, अगर कोरोनावायरस के संदर्भ में देखा जाए तो इस वायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ का ईलाज केलिए किसी भी पैथी में कोई "दवा" नहीं बन सकती, कभी नहीं,कभी भी नहीं बन सकती है। ये तो बिना किसी दवा के तीन से सात दिनों में या अधिकतम चौदह दिनों में घर पर रहकर ही मरीज़ बिल्कुल सेहतमंद हो जाते हैं। लेकिन यहां तो अरबों खरबों डॉलर का बिज़नेस करना है, चाहे पब्लिक मरती रहे। जबकि अभी तक ईलाज के नाम पर जो ऐलोपैथिक दवा दी जा रही है वह EXPERIMENTAL DRUGS ही हैं। यूनानी पद्धति से इलाज शत् प्रतिशत मुमकिन है मगर सरकार ने पाबंदी लगा दी है कि हम यूनानी पद्धति वाले कोरोनावायरस पीड़ितों का इलाज नहीं कर सकते, सलाह भी नहीं दे सकते, वरना "जेल" की हवा खानी पड़ सकती है। 3:- डब्ल्यूएचओ पर किन देशों का कब्जा है? उत्तर:- WHO यानी "वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन" वो संगठन या संस्था है जो दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य का ठीकादार है। लेकिन ये असल में अमेरिका और फार्मास्युटिकल कंपनियों का कठपुतली संगठन मात्र भर है। ये एक ऐसी संस्था है जो ऐसे शेर की तरह है जिसके मुंह में दांत है ही नहीं, और सिर्फ ग़ुर्राता है।ये वही करता है जो अमेरिका चाहता है और फार्मास्युटिकल कंपनियों का जिसमें फायदा हो। 4:- कोरोनावायरस से अधिक अन्य किन बीमारियों से भारत में लोग अब तक मर चुके हैं? उत्तर:- कोरोनावायरस के नाम पर दुनिया भर में अब तक आठ लाख से अधिक लोगों को मारा जा चुका है, मैं तो यही कहूंगा। लेकिन अगर आप अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों पर नज़र डालें तो हर साल हमारे भारत देश में टीबी से लगभग 6,50000 लोग, कैंसर से 1500 लोग हर दिन मर जाते हैं, पूरी दुनिया में अगर एक लाख लोग हृदयाघात से मरते हैं तो उसमें से 60% लोग भारतीय होते हैं। इतना ही नहीं, डेंगू से प्रति वर्ष 45000 लोगों की मौत हो जाती है। जबकि 3,69,602 लोग कामन कोल्ड, 3,40,584 लोग मलेरिया से,मर गये। 3,53,696 लोगों ने आत्महत्या की है। 3,93479 लोग हर साल सड़क दुघर्टनाओं में मर जाते हैं। 2,40950 लोग HIV AIDS से, 5,58,471 अल्कोहल से, 8,16,498 लोग धुम्रपान से, 8,16498 लोग कैंसर से हर साल मरते हैं। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कोरोनावायरस क्या वाक़ई इतना ख़तरनाक है? जिसके तहत 81% तो एकदम से MILD CASES हैं, और 14% MODERATE CASES की श्रेणी में आते हैं, जबकि कोरोनावायरस के मात्र 5% मरीज़ ही CRITICAL CASES की श्रेणी में आते हैं। बता दें कि SARS से मृत्यु दर सबसे ज्यादा 10%, SWINE FLUE में मृत्यु दर 2.8% जबकि COVID-19 में मृत्यु दर मात्र 2% है। जबसे COVID-19 का हंगामा हुआ है तब से लेकर पहली मई तक कैंसर से 26,283, हृदय संबंधी रोगों से 24,641और 4,300 लोगों ने डायबिटीज़ से दम तोड़ा है। जबकि कोरोनावायरस से जितनी मौतें हुई हैं उससे 28 गुना ज़्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली है। मच्छरों के काटने से 2,740 और सांप के काटने से 137 लोग प्रतिदिन मर जाते हैं।



Last updated date 16/09/2020

STEP TOWARDS CURE OF COVID-19

STEPS TOWARDS CURE OF COVID-19" SUBJECT: Regarding ensuring participation in the prevention, causes and treatment of COVID-19 (Corona Virus) epidemic in the country and the world. Sir, With due respect, I, Hakeem Md. Abu Rizwan, [BUMS hons. (BU), Unani Physician, UNANI MEDICINE RESEARCH CENTRE, Jamshedpur, Jharkhand] passed out in 1992 from Rajkiya Tibbi College, Patna, and from that time to till now I have been treating patients continuously by the Unani Methods Only. That means I have almost 27-28 years of experience in this profession, and a long experience in treating lifestyle diseases, viral diseases, etc. I am also shocked by this epidemic in the country and want to do true service to our nation’s people with the kind dedication. It is good that we, on behalf of the Ministry of Ayush, are being given an opportunity to serve the Nation through the Unani practices which are appreciable. I will be glad to be the participant of this group. It is a great pleasure to inform you that I have tried the treatment of any other viral disease on patients from outside my home and got better results. As per my experience, I can say that any viral diseases can be cured in only three days. Therefore, if you want, I will be glad by entrusted with the responsibility. At the hospital, where corona virus patients are housed, the responsibility given by you will be accepted with pleasure. It is a different matter, “We can also touch sun's wrist We poor do not get support”. I have sent this heartily desire to all respected Chief Ministers through E-mail that there is Cent Percent possibility of the treatment Of Corona virus patients through Unani Methods. Around 20,000 peoples are connected to my WhatsApp Group and I am leaving no stone unturned in sharing whole info and treatment procedure of this viral disease (corona virus). Also through social media, like: Facebook and YouTube, I have shared the prevention and treatment of this corona virus. I am daring to present my way of treatment in front of you. I am trying to claim before you the infallible cure of this corona virus or any viral disease. PREVENTION OF CORONA VIRUS OR ANY OTHER VIRAL DISEASE: Whenever there is an outbreak of such an epidemic, one should take appropriate measures to avoid it at the outset and no one will have a viral attack. For this the person should focus on strengthening his immunity power with very easy way. Take a natural dose of Vitamin C (0.2 gram per day) to your daily diet to boost your immune system (don’t take any tablets, capsules or syrups to boost Vitamin C). For this, you can take a Guava or two Mosambi (Sweet Lemon) or two Oranges or three Mangoes or four Tomatoes (Anyone from these) daily. (In this way, we strengthen the "dendritic cells" outside and inside our bodies that help to keep us safe by fighting off the harmful bacteria that enter to our body: bacteria, pathogens and viruses.) And stay away from any animal protein and dairy products, means not a little bit use of it. As we are aware of the fact that human body is built by the nature. So, whenever any problem or any illness arises inside it, then it will be cured only by “natural methods” not by any chemicals (Allopathic Medicines). Virus can never be killed by any medicine. This is the only way that it can be destroyed and thrown outside the body. I would like to mention in particular that the treatment of viral disease especially this corona virus with Unani method, the patient will become completely well in three to four days. I would like you to approve my proposal so that I have an opportunity to prove my talent. In this regard, I also have many research papers based on thousands of pages as evidence. Sir, I hope you agree with my words what is mentioned above. Kindly give acceptance to my proposal and I will be pleased if you approve this proposal. Undoubtedly, I will feel pride when I give my service to the nation. Yours Faithfully, HAKEEM MD. ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES



Last updated date 15/09/2020

बेवक़ूफ लोग अक़लमंदों केलिए वरदान

"बेवक़ूफ लोग अक़लमंदों केलिए वरदान" एक कहावत हम सभी ने सुनी है - " जब तक इस धरती पर बेवक़ूफ ज़िंदा है, अक़लमंद कभी भूखा नहीं मरेगा।" आज "कोरोनावायरस" के माहौल में ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। कोरोनावायरस कोई नया नहीं है, बल्कि इसके पहले भी ये पहली बार 1965 में US में 229 E के नाम से, 2004 में NL 63 के नाम से NETHERLANDS में, सन् 2005 में HKU 1 के नाम से HONGKONG में अपनी धौंस जमा चुका है। मतलब ये है कि ये जो NOVEL CORONA VIRUS बताकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है और डराया जा रहा है, इसके पीछे का साइंस और कामर्स समझना होगा। वायरस चाहे जितना भी बुरा हो, बड़ा हो, असल में ये वैसा है ही नहीं जितना बुरा, ख़तरनाक और बड़ा बताया गया है, बल्कि इस वायरस से ज़्यादा ख़तरनाक तो इसका इलाज है।आज सारी दुनिया कोरोनावायरस के ईलाज केलिए दवा ढूंढने में लगी है। अलग-अलग कंपनियों के दावे सामने आ रहे हैं। जबकि दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आप वायरस को कभी भी किसी भी दवा से नहीं मार सकते। WHO ने इस कोरोनावायरस को एक ऐसा भयंकर तबाही मचाने वाला वायरस बताया कि करोड़ों लोग मारे जाएंगे। जबकि सच्चाई तो यह है कि लोग वायरस से नहीं मरे, बल्कि EXPERIMENTAL DRUGS (REMDESIVIR, ANTIPYRETIC, ANTIMALARIAL, HIV-AIDS, ANTIBIOTICS) से लोगों को मौत के घाट उतारा गया है। हमारे मेडिकल साइंस में एक नया विषय अवश्य शामिल करना चाहिए - "थेथेरोलौजी"। जब सब जानते हैं कि वायरस की दवा नहीं बन सकती तो क्या वजह है कि ज़बरदस्ती ज्ञान पेलने वालों की लाइन लगी है कि अमुक अमुक दवाएं वायरस को मार देंगे, घोर कलयुग है भाई ! कंपनियों में होड़ मची है कोरोनावायरस की दवा बनाने की।सत्य से परे, दिमाग़ से परे, लोगों को भ्रम में डाल कर, डरा कर अपना "धंधा" करना है। इस धरती पर मानव निवास से पहले से ही वायरस का वास है और अंत तक रहेगा ही।हम सब वायरस से हमेशा घिरे हुए हैं। वायरस से बचने की चिंता तो हमें करना ही नहीं चाहिए, ये हमारा काम है ही नहीं और जिसका काम है उसी को करने देना चाहिए। हमें वायरस से सुरक्षित रखने वाला ख़ुद का "इम्युनिटी पॉवर" है, जिसका केवल सहयोग हमलोग करेंगे तो हमें पता भी नहीं चलेगा कि कब कौन सा वायरस हमारे शरीर में आया और आकर चला भी गया। हमें तो बस इतना ही करना था कि अपने इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाने पर ज़ोर देते, सरकार को भी इस इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाने के तरीक़े से लोगों को अवगत करा देती। लेकिन अंधी निकम्मी सरकार और सरकारी कारिंदे जो दिन रात "ऐलोपैथिक फार्मास्युटिकल कंपनियों" के "व्यापार" को बढ़ाने केलिए जुटी हैं, जो "अरबों खरबों डालर" का "कारोबार" कर रही हैं और लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं।ये सब जानबूझ कर किया जा रहा है और ये जो पब्लिक है बिल्कुल "मासूम" जैसे "गिनी पिग" बन कर रह गई है, अस्पतालों में भर्ती होकर मरने को तैयार बैठी है। ज़रा सोचिए, जिस वायरल डीज़ीज़ का ईलाज घर में ही है, उस के लिए लोग अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। अस्पतालों की बेशर्मी और ढिठाई तो देखिए कि उनको ज़रा भी अफसोस नहीं है कि उनके पास जब दवा है ही नहीं तो इतनी बड़ी बड़ी रक़म क्यों और कैसे वसूल रही हैं। बस, बात वहीं पर आकर रूक जाती है - " जबतक इस धरती पर बेवक़ूफ ज़िंदा है अक़लमंद कभी भी भूखा नहीं मरेगा।" HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 15/09/2020

टीबी से मरने वालों की संख्या भारत में सबसे अधिक

दुनिया में टीबी से मरने वालों की संख्या में भारत TOP पर: 24 मार्च विश्व टीबी डे है, इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में टीबी के कारण होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा मौत भारत में होती है। चौंकाने वाली बात यह है कि WHO (डब्ल्यूएचओ) ने "वर्ल्ड टीबी डे" के मौके पर वर्ष 2016 में यह रिपोर्ट जारी की थी जिसके बाद जनवरी 2018 में इस रिपोर्ट को RENEW कर दिया गया और आज भी यह आंकड़ा नहीं बदला। आइए जानते हैं इस रिपोर्ट की कुछ खास बातें "वर्ल्ड टीबी डे" हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। दुनिया में मौत के 10 कारणों में टीबी से होने वाली मौत सबसे ज्यादा है। वर्ष 2016 में पूरे विश्व में 10.4 मिलियन लोग टीबी के शिकार हुए, जिनमें से 1.7 मिलियन की मौत हो गई। इनमें से 95 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आयवर्ग वाले देशों में हुई। दुनिया में टीबी के मरीजों की संख्या का 64 प्रतिशत सिर्फ सात देशों में है, जिनमें भारत सबसे ऊपर है। भारत के बाद इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका है। वर्ष 2016 में दुनियाभर में करीब 10 लाख बच्चों को टीबी हुई, इनमें से ढाई लाख बच्चों की मौत हो गई। इनमें वे बच्चे भी शामिल थे जिनमें टीबी के साथ-साथ "एचआईवी" के भी लक्षण पाए गए थे। "एचआईवी" से पीड़ित होने वाले रोगियों की मौत का सबसे बड़ा कारण टीबी ही है। 2016 में ही टीबी से ग्रसित जिन मरीजों की मौत हुई उनमें से 40% मरीज "एचआईवी" के शिकार हो गए थे। WHO (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि दुनिया के सभी देश अगर सही तरीके से टीबी का इलाज होता रहे तो वर्ष 2030 तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। भारत सरकार से मैं ये मांग करता हूं कि आज जिस तरह से WHO (डब्लू एच ओ) के फ़रमान पर कोरोनावायरस से पीड़ित रोगियों को बचाने के लिए लड़ाई की जा रही है, टीबी केलिए क्यों नहीं? जबकि कोरोनावायरस के मुक़ाबले टीबी के मरीजों की तादाद कई गुना ज़्यादा है। टीबी केलिए क्यों नहीं लाकडाउन किया जाता है,मास्क लगाना क्यों नहीं ज़रूरी किया गया? वजह मैं बताता हूं। "टीबी" केलिए "वैक्सीन" नहीं बनाई जा सकती है।" और जब वैक्सीन नहीं तो फार्मास्युटिकल कंपनियों को फ़ायदा नहीं। आपको बता दें कि कोरोनावायरस का ये सारा खेल फार्मास्युटिकल कंपनियों को व्यापारिक दृष्टि से फ़ायदा पहुंचाने के लिए खेला गया है। ये खेल तबतक जारी रहेगा जबतक कोरोनावायरस का "वैक्सीन" बाज़ार में नहीं आता, भले ही टीबी से लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़े।



Last updated date 15/09/2020

कोरोना की करूणामयी पुकार

कोरोना" की करूणामयी पुकार" हे दुष्ट मानव! ये क्या हाहाकार मचा रखा है मेरे नाम पर,मैं तो अतिप्राचीनकाल से ही इस पूरे ब्रह्माण्ड में घूमता फिरता रहता हूं। वो कहावत तो तूने सुना है ना-"चलो तुम ऊधर की,हवा हो जिधर की।" ठीक उसी तरह से ये वायु मुझे जिधर ले जाए ,मैं उधर चला जाता हूं। क्योंकि मैं तो मृतप्राणी हूं,ज़िन्दा तो हूं नहीं। रास्ते में जो मिल जाए उसी से लिपट जाता हूं,और उसके अंदर उसके ख़ून में भी नहीं रहता हूं,बल्कि उसके कोशिकाओं के पहले दूसरे नहीं अपितु तीसरे लेयर में चला जाता हूं। और तब उन कोशिकाओं के अंदर ही उसी से भोजन पाकर जीवित हो उठता हूं। वहीं पर मैं अपनी आबादी बढ़ाता हूं और तुझे बुख़ार खांसी वग़ैरह आता है। तुम बेचैन होते हो और डाक्टर के पास भागते हो। तुम क्या समझते हो कि वो डाक्टर मुझे मारकर समाप्त कर देगा ! हरगिज़ हरगिज़ नहीं। उसके बाप की भी मजाल नहीं कि मेरा बाल भी बांका करदे। क्योंकि जहां मेरा वास होता है ना वहां कोई दवा आदि नहीं पहुंच सकता है। हां ,इतना ज़रूर होता है कि तुम बेमौत मारे जाते हो,और शायद तुम्हें नहीं पता कि मैं नहीं मारता बल्कि वो डाक्टर तुम्हें जो दवा देता है उससे ही तुम मारे जाते हो। मुझे मारने के लिए और मुझसे लड़ने के लिए तो तुम्हारा इम्युनिटी सिस्टम ही काफी था। जिसके हमले से मैं केवल तीन दिनों में ही पस्त हो जाता हूं और तुम स्वस्थ हो जाते। मेरी आबादी जब कोशिका के अंदर काफी बढ़ जाती है तो मैं वहां से निकलना चाहता हूं लेकिन तेरे ख़ून का हाई टेम्परेचर मुझे मार डालता है। और तेरे शरीर से बाहर भी फेंक डालता है। और तब तुम फिर से स्वस्थ हो जाते हो। यानि मेरा दुशमन केवल तेरे शरीर का उच्च तापमान ही है जिससे मैं हार जाता हूं और तुम जीतते हो। लेकिन जिन दवाओं से तेरा डाक्टर मुझे मारने के लिए तुझे देता है उसके चलते तो तेरी कोशिकाओं को क्षति पहुंचता है। और जब कोशिकाएं डैमेज होती हैं तो तेरा अंत भी हो जाता है।अब तुम ही बताओ तुझे किसने मारा? मैंने या तेरे डाक्टर ने। याद रख ऐ दुष्ट मानव! तुमलोग ख़ुद ही एक दूसरे के दुशमन हो। लेकिन इल्ज़ाम मुझे देते हो। मैं तो मुरदा हूं, मुझे क्या मारोगे, ओ डाक्टर! और फिर ये डाक्टर भी बेचारा क्या करे? वो तो ठहरा फार्मासियुटिकल कंपनियों,वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाईज़ेशन और अपनी सरकारों का " मात्र एक एजेंट" ही ना। मेरे मारने के चक्कर में वो तुझे मारता है,उसे इसका ईनाम मिलता ही है। जिस अस्पताल में तेरे ईलाज के दौरान तेरी मृत्यु हो जाती है ना ,तो उसे भी अथाह रीवार्ड मिलता है और अगले दिन के सभी समाचार पत्रों में मोटे मोटे अक्षरों में तेरी मौत की ख़बरें छप जाती हैं,ताकि समाज में " भय का माहौल" बने।और यही भय का व्यापार है जिसे DISEASE MONGERING कहते हैं। ख़ूब समझ लो हे मानव! ये सारा खेल "भय का व्यापार" ही तो है। सरकार तुझे एक उंगली के ईशारे पर नचाती और डराती है मुझ मुर्दे के नाम पर,कुछ समझ में आया क्या?और सरकारों को व वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाईज़ेशन जैसी संस्थाएं फार्मासियुटिकल कंपनियां की मुट्ठियों में क़ैद होती हैं। हां, मेरे नाम पर फार्मासियुटिकल कंपनियां अपना अरबों खरबों का व्यापार अवश्य कर लेती हैं। यानि मेरे कंधे बंदूक़ रखकर चलाती हैं। ख़ूब दवाएं बिकती हैं,पता लगाने के लिए कि मैं "कोरोना" हूं,"एच 1एन1" हूं," डेंगू" हूं, "चिकेनगुनिया" हूं, "स्वाईन फ्लु" हूं या कोई और। ढेरों जांच करते हो मगर कुछ पता चलता है क्या तुझे? पीसीआर टेस्ट से भी कुछ हासिल नहीं होता,बल्कि मेरे प्रोटीन और जेनेटिक सिक्वेंस का ही पता कर पाते हो।क्योंकि मेरा कोई एक रूप या शक्ल नहीं होता, इसलिए मेरी पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, और जब मुझे पहचान ही नहीं पाओगे तो मारोगे कैसे? तेरे जिस वैज्ञानिक "कैरी मूलस" ने पीसीआर टेस्ट का अविष्कार किया है उसी से पूछो ना ,उसका भी यही कहना है। लेकिन उस जांच की बदौलत ख़ूब कमाई भी कर लेते हो। दुनिया के टॉप दस रिसर्चर में से जिनका नाम "लियोनार्ड होरोविझ" है , ने अपनी पुस्तक " इमर्जिंग वायरस" में बता दिया है सब कुछ तुझे,लेकिन मेरे बारे में जानकारी हासिल करने का समय ही नहीं। उसने "ईबोला", "ज़ीका" इत्यादि नामों के वायरस का खुलासा कर दिया तो अमेरिकी सरकार ने उससे उसका सरकारी मकान छीन लिया,देशद्रोह क़रार दे दिया। उसने तो यहां तक बता दिया कि जितना ख़तरनाक मामूली "कॉमन कोल्ड" है उतना ही ख़तरनाक मैं या कोई और दूसरा वायरस जैसे "डेंगु", चिकेनगुनिया","एच1एन1",ज़ीका", "स्वाईन फ्लु" भी है। कभी तूने सुना है कि "कॉमन कोल्ड" से भी आदमी मरा हो,नहीं ना।"डेंगू" तो मच्छरों से फैलता है। तुझे कितना ख़तरनाक बताया जाता है। ज़रा सोचो,जिस मच्छर में डेंगु का वायरस होता है तो उस वायरस से जब एक मच्छर तक नहीं मर सकता है तो तुम कैसे मर सकते हो? तुम ऐलोपैथिक दवाओं से मारे जाते हो। लेकिन इल्ज़ाम उस बेचारे डेंगु वायरस को दे डालते हो। तुम सैनिटाईज़र से जितना चाहे लोगों के हाथ धुलवाओ बल्कि नहलाओ भी,मगर मैं नहीं मरने वाला क्योंकि मैं तो मुर्दा हूं,मैं मरा हुआ हूं,मुझे कैसे मार सकते हो उस सैनिटाईज़र से। हां,उससे तुम अपने फ्रेंडली बैक्टीरिया, माइक्रोब्स और पैथोजींस को अवश्य ही मार डालते हो और मैं फिर भी तेरे हाथों में चिपका रहता हूं,क्योंकि मैं तो मुर्दा हूं। यानि मुझे मारने के चक्कर में अपना ही नुक़सान कर बैठते हो। मतलब मेरे कहने का ये है कि न तो तुम बाहर की दुनिया में मुझे मार सकते हो और न ही भीतरी कोशिकाओं में। फिर तो तुम मुझे मारने के नाम पर अरबों का कारोबार ही करते हो ना। चेहरे पर लगाने वाले मास्क की ख़ूब बिक्री करते हो,यानी लाखों करोड़ों का व्यापार कर ही लेते हो। अच्छा है,बहुत ही अच्छा है कि मेरे नाम पर ही तेरा व्यापार टिका है। नोट:- मैं ने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इस एक ही दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है।



Last updated date 15/09/2020

डेंगू - कोरोनावायरस से भी भयानक

डेंगू" कोरोनावायरस से भी भयानक !" पिछले सालों में कितने लोगों को हो चुका है डेंगू, ये हैं हैरान करने वाले आंकड़े:- डेंगू का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन हर साल हज़ारों लोग इसकी चपेट में आकर मर जाते हैं। अगर पिछले सालों का आंकड़ा देखें तो डेंगू से होने वाली मौतों और डेंगू के केस में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सरकारी आंकड़ो पर नजर डालें तो लाखों लोग हर साल डेंगू से पीड़ित होते हैं और उसमें से कई लोग डेंगू से जिंदगी की जंग नहीं जीत पाते हैं। आज हम बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में किस तरह डेंगू का प्रभाव बढ़ता जा रहा है... आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में 40571 लोग इसका शिकार हुए और अगले ही साल यह आंकड़ा दोगुना हो गया। वहीं साल 2015 में 99913 लोगों में डेंगू के मामले सामने आए। उसके बाद साल 2016 में 129166 और 2017 में 150482 लोग डेंगू से प्रभावित हुए। वहीं साल 2018 में भी इन आंकड़ो में काफी बढ़ोतरी हुई है। वैसे आपको बता दें कि दुनिया में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग मच्छर के काटने से होने वाली बीमारियों की वजह से मर जाते हैं। भारत में भी इन मौतों का आंकड़ा काफी बड़ा है। राज्यवार आंकड़ों को देखें:- AndhraPradesh- 4381, ArunachalPradesh- 15 Assam- 4346, Bihar- 1804, Chhattisgarh- 388, Goa- 238, Gujarat- 4420, Haryana- 4333, Himachal Pradesh- 442, Jammu & Kashmir- 403, Jharkhand- 689, Karnataka- 16342, Kerala- 19694, Madhya Pradesh- 2566, Meghalaya- 40, Maharashtra- 6894, Manipur- 187, Mizoram- 107, Nagaland- 191, Odisha- 4055, Punjab- 15002, Rajasthan- 7768, Sikkim- 659, Tamil Nadu- 21350, Tripura- 103 Telangana- 2773, Uttar Pradesh- 3032, Uttrakhand- 958, West Bengal- 10697, A&N Island- 13, Chandigarh- 1083, Delhi- 8896, D&N Haveli- 1972, Daman & Diu- 59, Puducherry- 4586 = Total- 150482. अगर हर राज्य की बात करें तो साल 2017 में इतने डेंगू के मामले सामने आए थे।



Last updated date 15/09/2020

ہم بھی چھو سکتے ہیں سورج کی کلائی

ہم بھی چھو سکتے ہیں سورج کی کلائی. ہم غریبوں کو حمایت نہیں ملتی حضرات ! کچھ تلخ حقیقت آپ کے سامنے رکھونگا شاید آپ میں سے کچھ اختلاف کریں گے اور زیادہ تر ضرور حمایت کریں گے۔ آج کا برننگ ٹاپک ہے "کورونا وائرس" ۔ سرکاری طور پر کورونا وائرس کا علاج صرف اور صرف ایلوپیتھی ادویہ سے کیا جائیگا۔ جبکہ ایلوپیتھی میں کسی بھی وائرس کے علاج کی کوئی دوا بن ہی نہیں سکتی۔ اسکے برعکس ہمارے طب یونانی میں بالکل کارگر علاج موجود ہے۔ لیکن وائے قسمت، حکومت ہند کی طرف سے روکا گیا ہے۔ یہ ایک زبردست سازش کی طرف اشارہ کرتا ہے۔ دراصل سچائی یہ ہے کہ ہمارا جسم نیچرل چیزوں سے بنا ہے۔ اس جسم میں جب بھی کوئی گڑبڑی ہوگی تو اس کو درست کرنے میں نیچرل چیزیں ہی کارگر ہونگی نا کہ کیمیکلز۔ ایلوپیتھی ادویہ تو خالص "کیمیکل" ہیں۔یہ کیمیکلز ہماری ایمیونیٹی پاور کو ہمیشہ کمزور کرتے ہیں۔ ابھی ایک خبر بڑی تیزی سے وائرل ہورہاہے جو افریقی ملک تنزانیہ کا ہے، خود ہی ملاحظہ فرمائیں:- ‎کرونا ٹیسٹنگ کٹس کا بھانڈا پھوٹ گیا وہ بھی افریقی ملک تنزانیہ میں۔ الجزیرہ نیوز نے خبر دی ہے کہ‎تنزانیہ میں کرونا کیسز 22 سے اچانک 480 پر پہنچے تو کیمسٹری کی ڈگری رکھنے والے ملک کے صدر جان مغوفولی کو شک گزرا کہ "کچھ گڑبڑ ہے"۔ انہوں نے ایک "عجیب و غریب" تجربہ کیا۔ ‎انہوں نے ایک بھیڑ، بکری اور پپیتہ ، بٹیر اور انجن آئل سے لئے گئے نمونے ٹیسٹ کے لئے ملک کی مرکزی لیبارٹری بھجوائے۔ بھجوائے گئے نمونوں کو مختلف انسانی نام اور مختلف عمریں دی گئیں۔ حیران کن طور پر دو جانوروں بکری اور بھیڑ اور ایک پھل پپیتہ کا رزلٹ مثبت ایا۔ اس کے بعد انہوں نے بیرون ممالک سے درآمد کردہ تمام ٹیسٹنگ کٹس فوج کی تحویل میں دے دی اور انکوائری کرانے کا حکم دیا ہے۔ تنزانیہ کے صدر کا کہنا ہے کہ ضرور کوئی "بڑی گڑبڑ" ہے۔ ‎واقعہ کے بعد بین الاقوامی اداروں اور اپوزیشن کی جانب سے تنزانیہ کے صدر کے اس فعل کی مذمت کی جارہی ہے۔ حالانکہ بین الاقوامی اداروں اور خود تنزانیہ کی اپوزیشن کو کرونا ٹیسٹنگ کٹس کے معیار اور کام پر سوالات اٹھانے چاہئیں کہ کس طرح ایک بکری۔ بھیڑ اور پپیتے کا کرونا ٹیسٹ مثبت آگیا؟ اب سوال ٹیسٹ کی کوالٹی پر اٹھنا چاہئے یا ٹیسٹنگ کٹس کی کوالٹی پر؟ اب یہ ایک نیا پنڈورا باکس کھل گیا ہے۔۔۔ اب مسلمانوں کو اس بات کا احساس ہونا چاہئے کہ سائنس و تحقیق کے میدان سے دور رہ کر ہم نے اپنا کتنا بڑا نقصان کرلیا ہے اور ہم ہر طرح سے مغرب کے محتاج بن چکے ہیں۔ اب کرونا ٹیسٹنگ کٹس پر بھی سوال اٹھ گئے ہیں کہ آیا ان کٹس میں کچھ خرابی ہے یا یہ کٹس ڈیزائن ہی اس طرح کی گئ ہیں کہ ایک مخصوص تعداد میں کرونا ٹیسٹ پازیٹو ظاہر ہو! دوسری طرف مختلف ممالک کی روایتی ھربل ادویات کرونا کے مریضوں کے لئے مفید ثابت ہورہی ہیں لیکن WHO سختی سے ان تمام دعووں کو رد کردیتا ہے کہ اس کے نزدیک صرف وہی دوا اور علاج کارگر ہوگا جس کو ان کی اپنے سائنسدان اور لیبارٹریز تصدیق کر دیں۔ اس لنک پر پوری خبر دیکھ سکتے ہیں۔ https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10221462898431418&id=1519356423 اب ایک دوسری خبر پر نظر ڈالیں یہ ڈاکٹر مائکرو بائیولوجسٹ ہے اور (Immune) امیون سسٹم اسپیشلسٹ بھی ہے،ان دونوں ڈاکٹرز کی براہ راست نیوز کانفرنس 80 لاکھ سے زائد افراد نے دیکھی،اورFox News سمیت کئی نیوز چینلز پر وائرل ہوگئی، پوری ویڈیو کا لنک نیچھے کمٹنس میں ہے۔ ڈاکٹر ڈینئل ایرکسن اورڈاکٹر آرٹین امریکہ میں وائرل اور سانس کے انفیکشن کے سب سے تجربہ کار ڈاکٹروں میں سے ہیں۔ ڈاکٹر ڈینئل کورونا وائرس ، COVID-19 پر کام کر رہے ہیں ، انہوں نے کورونا وائرس کو کسی بھی دوسرے موسمی فلو کی طرح بیان کیا، ان کا دعوی ہے جو کہ COVID-19 موسمی فلو سے زیادہ مہلک نہیں ہے۔اور اسکی شرح اموات 0.03 فیصد ہے، اس نے اس پریس کانفرنس میں یہ اہم انکشافات کئے ہیں۔ کہتا ہے کہ زیادہ ہاتھ دھونے ایک دوسرے سے دور رہنے اور زیادہ جراثیم کش (سینیٹائزرز) استعمال کرنے سے(immune) امیون سسٹم تباہ ہوجاتا ہے انسان کا امیون سسٹم بنا ہے ایک دوسرے کے وائرس شئیر کرنے کے لیے ۔ جب ہاتھ ملا کے وائرس بیکٹیریا شئیر ہوتے ہیں تو نئے قسموں کے وائرس کی اینٹی باڈی بنتی ہیں جس سے براڈ سپیکٹرم اینٹی باڈی رسپانس تیار ہوتا ہے پھر جب کوئی نیا خطرناک وائرس آتا ہے۔ اس سے ملتے جلتے کسی وائرس سے آپ پہلے ہی نپٹ چکے ہوتے ہو۔ تو پھر وہ اتنا پرابلم نہیں کرتا۔ مٹی میں کھیلنا بچوں کا ہر چیز منہ میں ڈال لینا ہاتھ ملانا۔ بچوں کو گند میں کھیلنے کا شوق۔ یہ قدرت کی طرف سے نیچرل ویکسین سسٹم ہے جن ملکوں میں یہ سب نہیں ہوتا جہاں کچھ زیادہ ہی صفائی کا خیال ہوتا ہے۔ وہ کمزور وائرس سے بھی مارے جاتے ہیں، ،انہوں نے معیشت کو دوبارہ کھولنے اور معاشرتی دوری کے احکامات کو ختم کرنے کاپرزور مطالبہ کیا،ان دونوں ڈاکٹرز کا پیغام پوری دنیا میں پھیلائیے، آپ بھی اس کار خیر میں حصہ ڈالیے، اور سچائی کو سامنے کے لیےتمام نیٹ ورک پر شئیر کریں، جزاک اللہ ۔ اب آپ کی یہ ذمہ داری ہے کہ حکومت سے ایک سوال پوچھیں کہ اس وقت کورونا وائرس کے سلسلے میں rtPCR کٹس سے زیادہ سے زیادہ ٹیسٹ کرنے پر زور دیا جارہا ہے،ایسا کیوں ؟ایسے ٹیسٹ کرنے کا فیصلہ کیوں کیا گیا ؟ اسلئے کہ فارماسیوٹیکل کمپنیوں کے کاروبار میں بے پناہ اضافہ ہو اور زیادہ سے زیادہ منافع ہو۔ rtPCR test kit کے مؤجد مسٹر کیری مولیس نے صاف طور پر کہا ہے کہ یہ کٹس صرف ریسرچ کے لئے ہے نہ کہ ڈائگنوسس کیلئے ہے۔ کوئی بھی چیز جیسے ٹی وی فریز کار موبائل وغیرہ خریدیں تو ایک یوزر مینوول بھی ملتا ہے جس میں اس پروڈکٹ کا استعمال کا طریقہ درج ہوتا ہے۔ ٹھیک اسی طرح جب آپ rtPCR کٹس خریدیں گے تو ایک یوزر مینوول ملیگا۔ دھیان سے پڑھیں تو اس میں صاف صاف طور پر لکھا ہوتا ہے (Regulatory Status:- " FOR RESEARCH USE ONLY, NOT FOR USE IN DIAGNOSTIC PROCEDURES".) تب اس طرح سے جبری طور پر کورونا وائرس کے جانچ کا کیا مطلب ؟ ویسے بھی اگر سو صحت مند انسان کو جانچ کریں تو اس میں سے ایک آدمی کورونا پوزیٹو مل ہی جائے گا۔ WHO کی جانب سے خصوصی طور پر زیادہ سے زیادہ ٹیسٹ کرنے کا فیصلہ کیا گیا ہے۔ کیا آپ اب بھی نہیں سمجھتے کہ یہ سب ایک زبردست سازش کے تحت فارماسیوٹیکل کمپنیوں کو فروغ دینے اور زیادہ سے زیادہ فائدہ پہنچانے کے لیے کیا جارہا ہے۔ مطلب صاف ہے کہ جتنا زیادہ ٹیسٹ کیا جائے گا اتنا ہی ان کمپنیوں کو منافع کمانے کا موقع ملیگا۔ اب آئیے کورونا وائرس کے مریضوں کے علاج کے لیے استعمال کی جانے والی دواؤں کی بابت بات کرتے ہیں۔ کورونا وائرس کے علاج میں جن ایلوپیتھی ادویہ کا استعمال کیا جارہا ہے اسمیں REMDESIVIR, ANTIMALARIAL, ANTIBIOTICS, HIV AIDS MEDICINE, BCG VACCINE وغیرہ ہیں۔ ان دواؤں سے مریض تو ٹھیک نہیں ہی ہونگے، البتہ وہ مارے جارہے ہیں۔ آپ نے غور کیا ہوگا کہ اب تک ایک بھی کورونا وائرس کا مریض اپنے گھر میں نہیں مرا۔ جتنے بھی مریضوں کی موتیں ہوئیں وہ اسپتال میں علاج کے دوران ہی ہوئی ہیں۔ اور جو اس خطرناک دواؤں سے علاج کے بعد زندہ بچ گئے وہ انکی اپنی ایمیونیٹی پاور مضبوط ہونے کے سبب ہی۔ یعنی فارماسیوٹیکل کمپنیوں نے انسانوں کو GUINEA PIG بنا کر EXPERIMENTAL DRUGS استعمال کرکے اپنا منافع کمانے کا دھندہ پھیلا دیا ہے۔ اس میں ہماری حکومت WHO اور PHARMACEUTICAL COMPANIES سے دامے درمے سخنے، قدم سے قدم ملا کر چل رہی ہے۔ سب کو پتہ ہے کہ کورونا وائرس ہی نہیں بلکہ کسی بھی وائرس کی دوا بن ہی نہیں سکتی۔ یعنی دوا سے مارنا ناممکن ہے۔ آپ کسی بھی وائرس یا بیکٹیریا کو تبھی مار پائیں گے جب وہ بلڈ میں رہے۔ لیکن ان " نام نہاد اعلی تعلیم یافتہ جاہل ڈاکٹر صاحبان" کو یہ کیوں نہیں پتہ ؟ درحقیقت یہ سب کچھ ان سے زبردستی کروایا جاتا ہے۔ اگر وہ اس کے خلاف آواز اٹھانے کی ہمت کریں گے تو انڈین میڈیکل ایسوسی ایشن انکی ڈگری چھین کر نوکری سے نکال دیگی۔ ویسے بھی ایلوپیتھک ڈاکٹر ہوتے ہیں وہ فارماسیوٹیکل کمپنیوں کے ایجنٹ ہی تو ہیں۔ انکو انسانوں کی صحت سے کوئی مطلب نہیں، وہ تو انسان کی بیماری بچانے کی حتی الامکان کوشش کرتے ہیں، تاکہ ان کی دوکان داری جلتی رہے۔ اب بات کرتے ہیں SANITIZER کی۔ کورونا وائرس کے گائیڈ لائن میں سخت تنبیہ کی گئی ہے کہ لگاتار سینیٹائزر سے ہاتھ دھونا ضروری ہے۔ آپ کو شاید نہیں پتہ کہ جتنی مرتبہ سینیٹائزر سے ہاتھ دھوئیں گے تو اتنا ہی آپ کا ایمیونیٹی پاور کمزور ھوگا۔ تب تو ظاہر ہے وائرس کے شکار ہو ہی جائیں گے۔ یہی تو وہ چاہتے ہیں۔ اس سے جو دوسرا نقصان ہوتا ہے وہ یہ کہ سینیٹایزر سے ہاتھ دھو کر آپ چار پہیہ گاڑی ڈرائیو کرنے نکلیں اور اتفاق سے کہیں چیکنگ پوائنٹ پر پولیس نے بریتھنگ انالائزر لگایا تو آپکو چالان کردیگا کہ آپ نے شراب پی رکھی ہے۔ اس میں 80 فیصد الکحل ہوتا ہے جسے لگاتے ہی جلد کے اندر ہی داخل نہیں ہوتے بلکہ یہ بہت تیزی سے ہمارے خون میں شامل ہو جاتا ہے۔ ایسے کیمیکلز ہماری ایمیونیٹی پاور کمزور کرتے ہیں اور پھر وائرس کیا کسی بھی بیماری کے شکار ہو سکتے ہیں۔ اور فارماسیوٹیکل کمپنیوں کی سازش کے پھندے میں پھنسے چلے جارہے ہیں۔ آگے بڑھتے ہیں اور ماسک (MASK) کی سچائی جاننے کی کوشش کرتے ہیں۔ یہ کہہ کر ماسک پہننے کی صلاح دی جاتی ہے کہ کورونا وائرس سے تحفظ فراہم کریگا۔ کسی بھی وائرس سے تحفظ کے لئے سورج کی روشنی اور صاف شفاف ہوا ہی سب سے زیادہ ضروری ہے جو قدرتی طور پر بے مول ملتا ہے۔ ماسک اور ڈائپر (MASK & DIAPER) کا برابر رول ہے۔ آپ اسے خود سمجھ سکتے ہیں۔ وائرس کا سائز محض 100 نینومیٹر ہے اور ایک اسپرم (SPERM) کا سائز 5000 نینومیٹر ہے۔ اب آپ ایک ماسک میں پانی ڈالیں، اسپرم ڈالئے تو دیکھتے ہیں کہ وہ تو ماسک سے باہر ٹپکنے لگی ہے۔ اسپرم اپنے سائز کے اعتبار سے فٹبال ہے جبکہ وائرس اسکے مقابلے میں ایک ٹینس بال ٹھہرا نا۔ اب جبکہ اس ماسک سے فٹبال پاس کر جائے گا تو ٹینس بال کیسے رکے گا۔ پھر ماسک لگائیں تو کس لیے؟ دوسرا نقصان وہ ہوتا ہے جو ڈائپر سے ہو سکتا ہے۔ Edit Delete



Last updated date 15/09/2020

कोरोना NO MEDICATION ONLY EDUCATION

अस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातोहू ! मास्क सैनिटाइजर सोशल डिस्टेंसिग लाकडाउन टेस्ट इत्यादि के नाम पर प्रशासन की आमदनी का नया द्वार खुल गया है अंग्रेजों की ग़ुलामी के ज़माने से भी अधिक अन्याय है ये तो। मास्क सैनिटाइजर से वायरस का कौन सा बाल बांका कर लेंगे, बल्कि उसके उलट सिर्फ और सिर्फ स्वंय का ही नुकसान होता है। अब इस संकट की घड़ी में, जबकि लोगों का रोज़गार छिन गया,दो रोटी का जुगाड़ भी कठिन है। और बदकिस्मती से आपलोग मास्क, सैनिटाइजर, सोशल डिस्टेंसिग,लाकडाउन, टेस्ट को अकारण ही सरकारी आमदनी का जरिया बना लिया है। अगर आम जनता से इतनी ही हमदर्दी है तो मास्क सैनिटाइजर आदि लोगों को बांटने चाहिए क्योंकि इस so called महामारी से बचाव हो। लेकिन प्रशासन को इस से क्या मतलब? आमदनी का एक नया श्रोत का अविष्कार जो हो गया। WHO का कौन सा गाइड लाइन है जिसमें बिना मास्क सैनिटाइजर वाले को दंडित करो या उसकी पिटाई करें या जेल में डाल दिया जाए? बहुत ही दुखी मन से मैं ने ये बातें लिखी हैं क्योंकि मैं इस गोरखधंधे के सुत्रधारकों के काले कारनामों को भलिभांति जानता हूं। सबूत व साक्ष्य भी मौजूद हैं। सारी सच्चाई से परे, आम जनता को भी इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि मास्क सैनिटाइजर सोशल डिस्टेंसिग लाकडाउन टेस्ट इत्यादि के बारे में जानकारी हासिल करे , या सरकार से इस पर स्पष्टीकरण ही मांगे। मगर शायद आपको मालूम नहीं है कि भारत की जनता हर तरह का ज़ुल्म सहने की ताक़त रखती है। हमारा देश सैंकड़ों हज़ारों बरसों से ग़ुलामी देखती आई है। हमें पता है कि एक ग़ुलाम को कैसे रहना चाहिए। बहरहाल! इस "कोरोना" महामारी के नाम पर जो कुछ घटित हो रहा है वो बड़ा घिनौना खेल ही है, और कुछ भी नहीं। हमें जागरूक होने की ज़रूरत है। वरना हमारी आने वाली पीढ़ियां अबसे बीमार और विसंगतियों से परिपूर्ण जन्म लेंगी। फार्मास्युटिकल कंपनियों की जाल, वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की "चाल" और देश की सरकार का "जंजाल" जनता को "बेहाल" करके छोड़ेगी। वायरस की कोई दवा नहीं होती,न ही कोई वैक्सीन बन सकती है,जो हो रहा है शत् प्रतिशत ग़लत हो रहा है और जो होगा वो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा। इसका बस एकमात्र उपाय है:- "NO MEDICATION ONLY EDUCATION" आपका शुभ चिंतक हकीम मो अबू रिज़वान यूनानी चिकित्सक जमशेदपुर झारखंड 9334518872 8651274288 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in



Last updated date 15/09/2020

#TREATMENT

#TREATMENT# OF CORONAVIRUS" #IMMUNITYPOWERबढ़ानाहीएकमात्र बचाव #FreshAirऔरSunlightऔरNaturalVitaminCकीभरपूरमात्रालेंऔरसुरक्षितरहेंनिडररहें #शरीरकाHIGHTEMPERATUREवायरसकादुशमन #हमसबNATUREद्वारानिर्मितहैं #NATUTALयानीGODmadeitemsसेकिसीवायरलडिज़ीज़काईलाजशतप्रतिशतसंभव #ITSmyCHALLANGE #HAKEEMMDABURIZWANjamshedpurUNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE #NoMedicationOnlyEducation #VIRUSब्लडमेंरहताहीनहींतोदवासेकैसेमारोगे #कोईदवाCELLकेभीतरपहुंचतीहैक्या #RemdesivirAntimalarialsAntibioticsAntiHIVdrugs&BCGvaccineAREexperimentalDrugs #यानीआपमानवनहींGUINEAPIGहोइसीलिएतो #इनदवाओंकोआपपरआज़मायाजारहाहैफिरलगातोतीरनहींतोतुक्का #डाक्टरोंकीवेषभभूसाऐसीजैसेडरावनेASTRONAUTSमतलबकिसीनाटकेकैरेक्टर #इतनीमौतेंउसीऐलोपैथीईलाजकानतीजा #वायरसकीदवायाटीकाबनीहीनहीं #औरनहीबनसकतीहै #Pharmacompaniesकाढोंगहै #WorldHealthOrganizationकीसरपरस्ती #विश्वके194देशWHOकेग़ुलाम #LockdownNoSOLUTION #SOCIALDISTSNCINGभीNosolution #IsolationभीकोईSolutionनहींहै #FACEMASKisjustlikeDIAPER #SANITIZERतोआपकीImmunitypowerकोकमज़ोरकररही #PHARMCEUTICALCOMPANIESमीलियनट्रीलीयनडालरकीकमाईमेंजुटीहैं #जागोईंडियाजागोक्योंकिसरकारआपकोआपकेघरमेंक़ैदीबनानेजारहीहै #Isolationcentreभीजेलयाक़ैदख़ाना



Last updated date 15/09/2020

हम भी छू सकते हैं सूरज की कलाई....!

हम भी छू सकते हैं सूरज की कलाई। हम गरीबों को हिमायत नहीं मिलती। सज्जनों! मैं कुछ कड़वी सच्चाई आपके सामने रखूंगा। हो सकता है कि आप में से कुछ असहमत हों और आप में से अधिकांश निश्चित रूप से समर्थन करेंगे। आज का ज्वलंत विषय "कोरोना वायरस" है। आधिकारिक तौर पर, कोरोना वायरस का इलाज केवल एलोपैथिक दवा के साथ किया जाएगा। एलोपैथी में, हालांकि, किसी भी वायरस का कोई इलाज नहीं है। इसके विपरीत, हमारी यूनानी चिकित्सा में बहुत प्रभावी उपचार है। लेकिन दुर्भाग्य से, इसे भारत सरकार ने रोक दिया है। यह एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। तथ्य यह है कि हमारे शरीर प्राकृतिक चीजों से बने हैं। जब भी इस शरीर में कोई समस्या होती है, तो केवल प्राकृतिक चीजें, न कि "रसायन" इसे सही करने में प्रभावी होंगे। एलोपैथिक दवाएं शुद्ध "रसायन" हैं। ये रसायन हमेशा हमारी प्रतिरक्षा शक्ति को कमजोर करते हैं। एक खबर वायरल हो रही है जो अफ्रीकी देश तंजानिया की है, खुद देखें:-अफ्रीकी देश तंजानिया में कोरोना परीक्षण किट का भांडा फोड़ हुआ। अल जज़ीरा न्यूज़ की रिपोर्ट है कि जब तंजानिया में कोरोना मामलों की संख्या अचानक 22 से 480 हो गई, तो देश के राष्ट्रपति, जॉन मैगोफ़ोली, जिनके पास रसायन विज्ञान में डिग्री है, को संदेह हो गया कि "कुछ गलत है"। उनके पास एक "अजीब" अनुभव था। उन्होंने परीक्षण के लिए एक भेड़, बकरी और पपीता, बटेर और इंजन तेल से नमूने देश की केंद्रीय प्रयोगशाला में भेजे। भेजे गए नमूनों को अलग-अलग मानव नाम और अलग-अलग उम्र दिए गए थे। आश्चर्यजनक रूप से, दो जानवर, एक बकरी और एक भेड़, और एक फल, पपीता के रिपोर्ट सकारात्मक निकले। फिर उन्होंने विदेश से आयात किए गए सभी परीक्षण किट सेना को सौंप दिए और एक जांच का आदेश दिया। तंजानियाई राष्ट्रपति का कहना है कि निश्चित रूप से एक "बड़ी गड़बड़" है। तंजानिया के राष्ट्रपति के कार्यों की अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और घटना के बाद से विपक्ष ने निंदा की है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और तंजानियाई विपक्ष को खुद ही कोरोना टेस्टिंग किट की गुणवत्ता और कार्य, कैसे एक बकरी है, के बारे में सवाल उठाने चाहिए। भेड़ और पपीता का कोरोना परीक्षण सकारात्मक कैसे आया? अब प्रश्न परीक्षण किट की गुणवत्ता पर या परीक्षण किट की गुणवत्ता पर उठाया जाना चाहिए? अब एक नया भानुमती का पिटारा खुल गया है ... अब मुसलमानों को यह महसूस करना चाहिए कि विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र से दूर रहकर हमने कितना कुछ खोया है और हम हर तरह से पश्चिम के जरूरतमंद बन गए हैं। अब यह सवाल कोरोना टेस्टिंग किट पर भी उठने लगा है कि क्या इन किटों में कोई खराबी है या इन किटों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि निश्चित संख्या में कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव दिखाई दें! दूसरी ओर, विभिन्न देशों की पारंपरिक हर्बल दवाएं कोरोनरी हृदय रोग के रोगियों के लिए उपयोगी साबित हो रही हैं, लेकिन डब्लूएचओ ने सभी दावों का खंडन करते हुए कहा है कि एकमात्र दवा और उपचार जो अपने स्वयं के वैज्ञानिकों और प्रयोगशालाओं द्वारा प्रभावी माना जा सकता है, प्रभावी है। पूरी खबर आप इस लिंक पर देख सकते हैं। https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10221462898431418&id=1519356423 अब एक और खबर पर नजर डालते हैं यह डॉक्टर एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट है और एक इम्यून सिस्टम स्पेशलिस्ट भी है। इन दोनों डॉक्टरों के लाइव न्यूज कॉन्फ्रेंस को 8 मिलियन से ज्यादा लोगों ने देखा और फॉक्स न्यूज समेत कई न्यूज चैनलों पर वायरल हुआ। डॉ डैनियल एरिकसन और डॉ आर्टिन वायरल और श्वसन संक्रमण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे अनुभवी डॉक्टरों में से एक हैं। डॉ डैनियल, कोरोना वायरस पर काम कर रहे, COVID-19, कोरोना वायरस को किसी भी अन्य मौसमी फ्लू के रूप में वर्णित किया, यह दावा करते हुए कि COVID-19 मौसमी फ्लू से अधिक घातक नहीं है, और इसकी मृत्यु दर 0.03% है, उन्होंने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये अहम खुलासे किए हैं। कहते हैं कि अधिक हाथ धोना, एक दूसरे से दूर रहना और अधिक सैनिटाइज़र का उपयोग करने से प्रतिरक्षा प्रणाली नष्ट हो जाती है। मानव प्रतिरक्षा प्रणाली एक दूसरे के साथ वायरस साझा करने के लिए बनाई गई है। जब हाथ से मिश्रित वायरस बैक्टीरिया साझा करते हैं, तो वायरस के नए उपभेद एंटीबॉडी बनाते हैं जो एक व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबॉडी प्रतिक्रिया का उत्पादन करते हैं। फिर जब कोई नया खतरनाक वायरस आता है। आप पहले से ही एक समान वायरस से निपट सकते हैं। तब उसके पास इतनी समस्या नहीं है। कीचड़ में खेलते हुए बच्चे हाथ हिलाते हुए सब कुछ मुंह में डाल लेते हैं। बच्चों को गंदगी में खेलना पसंद है। यह प्रकृति द्वारा एक प्राकृतिक टीका प्रणाली है जिन देशों में यह स्थिति नहीं है, वहाँ अति-स्वच्छ होने की प्रवृत्ति है। वे एक कमजोर वायरस द्वारा मारे जाते हैं,उन्होंने अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने और सामाजिक बहिष्कार के आदेश को खत्म करने का आह्वान किया। दुनिया भर में इन दोनों डॉक्टरों के संदेश को फैलाएं, इस में योगदान करें और सभी नेटवर्क पर सच्चाई साझा करें। अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप सरकार से एक सवाल पूछें कि फिलहाल कोरोना वायरस के संबंध में अधिक से अधिक rtPCR किट के परीक्षण पर जोर है, क्यों? इस तरह के परीक्षण करने का निर्णय क्यों लिया गया? क्योंकि दवा कंपनियों का कारोबार बेहद बढ़ जाना चाहिए और मुनाफे को अधिकतम करना चाहिए। rtPCR परीक्षण किट के आविष्कारक, श्री केरी मुलिस ने यह स्पष्ट किया है कि ये किट केवल शोध के लिए हैं न कि निदान के लिए। यदि आप टीवी, फ्रीज़, कार, मोबाइल आदि कुछ भी खरीदते हैं, तो आपको एक उपयोगकर्ता पुस्तिका(युज़र मैनुअल) भी मिलेगी जो यह बताती है कि इस उत्पाद का उपयोग कैसे किया जाए। इसी तरह, जब आप rtPCR किट खरीदते हैं, तो आपको एक उपयोगकर्ता पुस्तिका मिलेगी। यदि आप इसे ध्यान से पढ़ते हैं, तो यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है (विनियामक स्थिति: - "केवल रिसर्च के लिए, व्यावहारिक प्रक्रियाओं में उपयोग के लिए नहीं") इस तरह से कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए मजबूर होने का क्या मतलब है? वैसे भी, यदि आप सौ स्वस्थ लोगों की जांच करते हैं, तो उनमें से एक कोरोना पॉजिटिव पाया जाएगा। WHO ने और विशेष रूप अत्यधिक परीक्षण करने का निर्णय लिया है। क्या आप अभी भी यह नहीं समझते हैं कि यह सब दवा कंपनियों के मुनाफे को बढ़ावा देने और अधिकतम व्यापार करने के लिए एक भव्य साजिश के तहत किया जा रहा है? निहितार्थ यह है कि अधिक परीक्षण किए जाते हैं, इन कंपनियों को अधिक लाभ होगा। अब बात करते हैं कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की। कोरोना वायरस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एलोपैथिक दवाओं में रेमेडिविर, एंटी मलेरियल, एंटीबायोटिक्स, एचआईवी एड्स की दवा, बीसीजी वैक्सीन, आदि शामिल हैं। मरीज इन दवाओं से ठीक नहीं होंगे, लेकिन उन्हें मार दिया जा रहा है। आपने देखा होगा कि अपने घर में अब तक एक भी कोरोना वायरस रोगी की मृत्यु नहीं हुई है। अस्पताल में इलाज के दौरान सभी मरीजों की मौत हो गई। और जो लोग इस खतरनाक दवा के उपचार से बच गए वे अपनी मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण बच गए। यानी, फार्मास्युटिकल कंपनियों ने इंसानों को GUINEA PIG बनाकर और EXPERIMENTAL DRUGS का इस्तेमाल करके मुनाफा कमाने का कारोबार फैलाया है। इसमें हमारी सरकार WHO और PHARMACEUTICAL कंपनियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। हर कोई जानता है कि कोरोना या कोई वायरस ऐसा नहीं है जो किसी भी दवा से ठीक कर सकता है। यही है, दवा से मारना असंभव है। आप किसी भी वायरस या बैक्टीरिया को तभी मार सकते हैं जब वे रक्त में हों। लेकिन ये "तथाकथित उच्च शिक्षित अज्ञानी डॉक्टर" क्यों नहीं जानते? वास्तव में, वे यह सब करने के लिए मजबूर हैं। अगर वह बोलने की हिम्मत करता है, तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन उससे उसकी डिग्री छीन लेगा और उसे आग लगा देगा। वैसे भी, एलोपैथिक डॉक्टर हैं, दवा कंपनियों के एजेंट हैं। वे मानव स्वास्थ्य के बारे में परवाह नहीं करते हैं, वे मानव रोग को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं, ताकि उनका व्यवसाय चलता रहे। अब बात करते हैं SANITIZER की। कोरोनावायरस दिशानिर्देश दृढ़ता से चेतावनी देते हैं कि सैनिटाइज़र के साथ नियमित रूप से अपने हाथ धोना महत्वपूर्ण है। आप नहीं जानते होंगे कि जितना अधिक बार आप अपने हाथों को सैनिटाइजर से धोते हैं, उतना ही कमजोर आपका प्रतिरक्षा तंत्र होगा। फिर स्पष्ट रूप से आप वायरस से संक्रमित हो जाएंगे। यही तो वे चाहते हैं। इसका दूसरा नुकसान यह है कि यदि आप अपने हाथों को सैनिटाइज़र से धोते हैं और एक चार पहिया वाहन चलाने के लिए बाहर जाते हैं, और संयोग से पुलिस एक चेकपॉइंट पर एक BREATH ANALYZER से जांच करती है, तो वो आपको चालान करेंगे कि आप शराब पी कर गाड़ी चला रहे हैं। इसमें 80% अल्कोहल होता है, जो लगाते ही त्वचा में प्रवेश करता है, यह हमारे रक्त में बहुत जल्दी प्रवेश करता है। ऐसे रसायन हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करते हैं और फिर वायरस या किसी भी बीमारी का शिकार हो सकते है। और इस तरह से दवा कंपनियां साजिश के जाल में फंसा रही हैं। आगे पढ़िए, और MASK के बारे में सच्चाई जानने की कोशिश करते हैं। एक मुखौटा पहनने की सिफारिश की जाती है क्योंकि यह कोरोना वायरस से रक्षा करेगा। किसी भी वायरस से बचाने के लिए धूप और साफ हवा सबसे महत्वपूर्ण चीज है, जो स्वाभाविक रूप से अमूल्य है। मास्क और डायपर (MASK & DIAPER) की समान भूमिकाएँ हैं। इसे आप खुद समझ सकते हैं। एक वायरस का आकार केवल 100 नैनोमीटर है और एक शुक्राणु का आकार 5000 नैनोमीटर है। अब आप एक मास्क में पानी डालें, शुक्राणु डालें और आप देखें कि यह मास्क से बाहर टपक रहा है। स्पर्म आकार में फुटबॉल है, जबकि वायरस एक टेनिस बॉल है। अब वह फुटबॉल इस MASK से गुज़र रहा है, तो टेनिस बॉल कैसे रुकेगी? फिर मास्क क्यों पहनते हैं? दूसरा नुकसान डायपर के साथ क्या हो सकता है आपतो खुद समझदार हैं।



Last updated date 15/09/2020

PROPOSAL TO AYUSH MINISTRY

"PROPOSAL to AYUSH MINISTRY" मैं, हकीम मो अबू रिज़वान, बी यू एम एस, आनर्स(बी यू), (यूनानी चिकित्सक, यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर, जमशेदपुर झारखंड।) 1992 ई में राजकीय तिब्बी कालेज पटना से पास आउट हूं, और उस समय से अबतक लगातार सिर्फ और सिर्फ यूनानी पद्धति द्वारा मरीजों का इलाज करता आ रहा हूं। यानी इस प्रोफेशन में लगभग 27-28 वर्षों का तजुर्बा हो चुका है, और लाइफ स्टाइल डीज़ीज़, वायरल डीज़ीज़ वगैरह के ईलाज में काफी लंबा अनुभव रहा है। देश में इस महामारी से मैं भी आहत हूं, और अपने अनुभव से सहृदय समर्पित भाव से अपने देश की जनता की सच्ची सेवा करना चाहता हूं। ये तो बड़ी अच्छी बात है कि आयूष मंत्रालय की ओर से हम यूनानी पद्धति वालों को सेवा का मौक़ा दिया जा रहा है। जो स्वागत योग्य है। मुझे बड़ी खुशी होगी कि इस ग्रूप का मैं भी हिस्सा बनूं। आपको ये सुचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि मैं ने किसी अन्य वायरल डीज़ीज़ का ईलाज का प्रयोग अपने घर से लेकर बाहर तक के मरीजों पर आज़माया और नतीजा बेहतर मिला। कोई भी वायरल डीज़ीज़ हो उनको तीन दिनों में ही ठीक किया जा सकता है, ऐसा मैं अपने अनुभव से कहता हूं। इसलिए आप अगर चाहें तो मुझे इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। ऐसा अस्पताल जहां कोरोनावायरस के मरीजों को रखा गया है वहां पर आपके द्वारा दी गई ज़िम्मेदारी सहर्ष सहृदय स्वीकार्य होगा। ये अलग बात है कि, हम भी छू सकते हैं सूरज की कलाई हम गरीबों को हिमायत नहीं मिलती। इस प्रकार की अपनी हार्दिक इच्छा मैं सभी माननीय मुख्यमंत्रियों को भी ईमेल के ज़रिए भेज चुका हूं कि अमुक तरीक़े से यूनानी पद्धति में बहुत ही आसान ईलाज शत् प्रतिशत संभव है। मेरे व्हाट्सएप से लगभग बीस हजार लोग जुड़े हैं जिनसे इस वायरल डीज़ीज़ (कोरोना वायरस) के ईलाज के बारे में पूरी पूरी जानकारी साझा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।सोशल मीडिया , फेसबुक और यूट्युब चैनल के द्वारा भी लोगों से इस कोरोनावायरस से बचाव और ईलाज साझा कर चुका हूं। आपके सामने मैं अपने ईलाज के तरीक़े पेश करने की हिम्मत कर रहा हूं। कोरोनावायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ का अचुक इलाज का मैं आपके सामने दावा करने की कोशिश कर रहा हूं। कोरोनावायरस या किसी भी वायरल डीज़ीज़ से बचाव:- जब भी कभी इस तरह की महामारी का प्रकोप फैले तो आरंभ में ही इससे बचने हेतु उचित उपाय कर लिया जाए तो किसी को भी वायरल अटैक होगा ही नहीं। उसके लिए व्यक्ति को अपना "रोग प्रतिरोधक क्षमता" मज़बूत करने पर ध्यान देना चाहिए।उसका भी बहुत आसान तरीक़ा है।रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए नित्य प्रति दिन अपने भोजन में "विटामिन सी" की उचित मात्रा (0.2 ग्राम/दिन) नेचुरल तरीक़े से लें(गोली, कैप्सुल या सीरप कदापि नहीं)। इस के लिए आपको एक अमरूद, या दो मौसम्मी या दो संतरे या तीन आम या चार टमाटर (इनमें से कोई भी एक) रोज़ाना लें। (इस तरह ऐसा करके हम अपने शरीर के बाहर और अंदर मौजूद "डेन्ड्रिटिक सेल" को मज़बूत करते हैं जो हमारे अंदर प्रवेश करने वाले वाह्य हानिकारक जीवाणुओं जैसे :-बैक्टिरिया,पैथोजींस और वायरस से लड़ कर हमें सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।) और कोई भी एनीमल प्रोटीन और डेयरी प्रोडक्ट्स से दूर रहें, यानी इस्तेमाल बिल्कुल ही नहीं करें। लाख टके का सवाल यह है कि इंसानी शरीर नेचर से निर्मित है। और जब इसके भीतर कोई परेशानी या बीमारियां उत्पन्न हो जाए तो उसे "नेचुरल विधि" ही ठीक करेंगी,न कि कोई केमिकल (ऐलोपैथिक दवाएं)। वायरस को कभी भी किसी भी दवा से नहीं मार सकते। सिर्फ यही वो तरिक़ा है जिससे उसे ख़त्म किया जा सकता है और शरीर के बाहर भी फेंका जा सकता है। इस बात का मैं ख़ास तौर पर उल्लेख करना चाहूंगा कि वायरल डीज़ीज़ कोरोना वायरस का यूनानी पद्धति से इलाज करने पर मरीज़ तीन या चार दिन में ही पूरी तरह सेहतमंद हो जाता है। मैं चाहूंगा कि आप मेरे इस प्रस्ताव को मंजूरी दें ताकि मुझे अपनी प्रतिभा साबित करने का अवसर मिले। इस बाबत मेरे पास हजारों पन्नों पर आधारित अनेकानेक रिसर्च पेपर्स बतौर साक्ष्य भी मौजूद हैं। श्रीमान,आशा करता हूं कि आप उल्लेखित बातों से सहमत हों। और मेरे इस प्रस्ताव को मंजूरी देने की कृपा करेंगे। निस्संदेह मैं अपने आप को देशसेवा में लीन हो कर ख़ुद को गौरवान्वित महसूस करूंगा।



Last updated date 15/09/2020

Viral Disease

Viral diseases are extremely widespread infections caused by viruses, a type of microorganism. There are many types of viruses that cause a wide variety of viral diseases. The most common type of viral disease is the common cold, which is caused by a viral infection of the upper respiratory tract (nose and throat)





HEALTHY DIET


HEALTHY DIET का सीधा संबंध आपके स्‍वास्‍थ्‍य से है, जैसा खानपान वैसा स्‍वास्‍थ्‍य। संतुलित व पौष्टिक आहार का सेवन कर कई गंभीर बीमारियों को दूर रखा जा सकता है।    Plant Based Diet: मधुमेह, जिसे आमतौर पर DIABETES के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गंभीर स्थिति है, जो कि शरीर के पर्याप्त INSULIN का उत्पादन करने में असमर्थ होने या फिर शरीर द्वारा BLOOD SUGAR के उतार-चढ़ाव के कारण शरीर द्वारा उत्पादित INSULIN  सही ढंग से काम नहीं करता है। इसीलिए, इसे स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा एक 'SLOW KILLER' या 'SILENT KILLER' के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, DIABETES के लिए खानपान में कुछ बदलाव और नियमित व्यायाम के अलावा, LIFESTYLE में कुछ बदलावों से BLOOD SUGAR को CONTROL रखा जा सकता है।  कुछ अध्‍ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि बहुत सारे PLANT BASED DIET शरीर में BLOOD SUGAR को कम करने में मदद कर सकते हैं, जिससे DIABETES को कंट्रोल में रखकर अन्‍य जटिलताओं से बचा जा सकता है।     अध्ययनों के परिणामस्वरूप PLANT BASED DIET और BLOOD SUGAR को नियंत्रित करने के बीच एक गहरा संबंध है। ऐसे लोग जो कि PLANT BASED DIET का सेवन करते हैं उनमें SEMI VEGETARIAN लोगों के मुकाबले HIGH BLOOD SUGAR या DIABETES का खतरा कम होता है। इसके अलावा,PLANT BASED DIET से लोगों को BMI (BODY MASS INDEX) बनाए रखने में मदद मिलती है, जो मधुमेह को रोकने और प्रबंधन में एक प्रमुख निर्णायक कारक के रूप में कार्य करता है।     BLOOD SUGAR के लिए PLANT BASED DIET :-


PLANT BASED DIET न केवल DIABETES के रोगियों में BLOOD SUGAR CONTROL करने में मददगार है, बल्कि यह अन्‍य लोगों के लिए भी फायदेमंद है। आम तौर पर, PLANT BASED DIET में फलियां, साबुत अनाज, सब्जियां, फल, नट्स और बीज शामिल होते हैं। BLOOD SUGAR के लिए PLANT BASED DIET में हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे लेट्यूस, पालक, ग्रीन सॉरेल, ऐमारैंथ (राजगिरा), मेथी और गैर- स्‍टार्च वाली सब्जियाँ जैसे करेला, लौकी, गोभी, फूलगोभी, ककड़ी, प्याज, भिंडी, टमाटर, मशरूम शामिल हैं।      फलों में सेब, ब्लूबेरी, चेरी, जामुन, नाशपाती और अमरूद जैसे फल भी DIABETES के लिए फायदेमंद हैं। पुदीना, तुलसी और धनिया और मसाले जैसे दालचीनी, हल्दी और इलायची जैसी जड़ी-बूटियाँ भी DIABETES को CONTROL करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा,  फलियां INSULIN प्रतिरोध को कम करने, वजन घटाने और METABOLIC SYNDROME के खिलाफ सुरक्षा में मददगार हैं।  खाली पेट:-    सुबह खाली पेट आप नींबू और नमक के साथ पोषक तत्वों से भरपूर हरी स्मूदी पिएं। इससे शरीर के DETOXIFICATION, खून में SUGAR LEVEL को नियंत्रित करना, BLOOD PRESSURE, BAD CHOLESTEROL को कम करने जैसे कई फायदे हैं, जिससे METABOLIC ACIDOSIS को कम करने में मदद मिलती है। सुबह का नाश्ता:-


PLANT BASED DIET में आप सुबह के नाश्ते में अनाज से बचें। दाल जैसा नाश्ता करें इससे STOMACH पर CARBOHYDRATES के भार को कम करने में मदद मिलती है, जिससे BLOOD SUGAR LEVEL को CONTROL करने में मदद मिलती है। जैसे आप चाहें, तो स्‍प्राउट्स, मूंग दाल डोसा / इडली, बेसन चीला या मिक्स दाल आदि का सेवन कर सकते हैं।  दोपहर और रात का खाना :-    दोपहर व रात के खाने में अनाज, पकी हुई सब्जी, दाल और कच्चा सलाद खा सकते हैं। इससे लगभग 65% से 70% CARBOHYDRATES, 10-15% PROTEIN, 20-25% FAT और र्प्‍याप्‍त मात्रा में SOLUBLE AND INSOLUBLE FIBRE मिलता है।  प्रति दिन खाना पकाने के तेल के चार से पांच चम्मच शामिल करने की सलाह दी जाती है। आपका शुभचिंतक HAKEEM MD ABU RIZWAN Specialist in LIFESTYLE DISEASES UNANI PHYSICIAN

Last updated date 30/09/2020

अंग्रेज़ो से आज़ादी, अंग्रेज़ी दवाओं की ग़ुलामी

 "1947 से पहले हम अंग्रेज़ों के ग़ुलाम थे,और आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी दवा के ग़ुलाम हो कर रह गये।" ये अतिशीयोक्ति नहीं होगा अगर मैं कहूं कि अंग्रेज़ी दवा ही नहीं,बल्कि किसी भी क़िस्म की दवा (ऐलोपैथ, आयू- र्वेद,यूनानी,होमियोपैथ) के ग़ुलाम मत बनिए।अपने डाक्टर खुद बनिए,न कि बीमार होकर खुद को डाक्टर हकीम या वैध के हवाले कर दीजिए।आपकी ज़िन्दगी एक 4 WHEELER CAR की तरह है।जैसे मान लीजिए कि कार की DRIVING SEAT पर आप खुद बैठे हों, STEARING संभाले हों, आपके बग़ल वाली सीट पर आपका दूसरा दोस्त BREAK लगाता हो, पीछे वाली सीट पर आपका तीसरा दोस्त GEAR संभालता हो, और पिछली सीट पर ही बैठा आपका चौथा दोस्त ACCELERATER संभाल रहा होता है।अंदाज़ा लगाईए, क्या आपकी कार सड़क पर दौड़ पाएगी? ठीक यही होता है जब आप बीमार पड़ते हैं और आप HOSPITAL, DOCTOR, PATH-LAB, MEDICINES के चक्रव्यूह में फंसते हैं और फंसते ही चले जाते हैं। आप समझते हैं कि आपकी ज़िन्दगी की गाड़ी चल रही ही है।बस चल रही है।लेकिन चला कौन रहा है,कभी ग़ौर किया आपने...! और वो भी ऐसे हाथों में अपनी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी की सारी पूंजी सौंप दी हो, जिसे यही नहीं मालूम कि," किसी भी बीमारी का कारण क्या है?


नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|


NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS). * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 30/09/2020

ALLOPATHIC MEDICINESसे दूरी बनाएं

डाबिटीज़ को दूर भगायें,कभी भी न हो हाई बीपी से सामना,कोलेस्टरोल से भयभीत न होना कभी,ये तो हमारी जिन्दगी है|चिकनगुनिया, डेन्गू,कोई भी 'फ्लू' कभी जानलेवा होता ही नहीं,बल्कि जानलेने वाला तो उस वायरल डीजीज के ईलाज में ईस्तेमाल की जानेवाली 'टैमीफ्लू' वगैरह जैसी दवायें हैं | SCIENTIST और रीसर्चर्स का तो इतना तक कहना है कि सर्दी जुकाम या कामन कोल्ड से अगर लोग मर सकते हैँ(वही लोग जिनकी ईम्यूनिटी यानि 'रोग प्रतिरोधक छमता' गौण हो जाती है|)तो किसी भी वाययल डीजीज़ जैसे - चिकनगुनिया,डेन्गू,फ्लू,एच 1 एन 1,एच आई वी एड्स,ईत्यादि से भी किसी की मृत्यु हो सकती है| ये सब तो आज के दौर के मेडीकल साईन्स का सबसे बड़ा फ्राड मात्र है:'एक भय का 'व्यापार' मात्र यानि'डीजीज़ मोन्जरिंग' है,जे लगातार एक 'सिस्टम' के तहत चलाया जा रहा है|जिसमें 'मेडीकल कम्पनिय़ाँ' ही हैं,जिनको अपना कारोबार चलाना है,और अपने मुनाफे भर से मतलब है,न कि हमारी सेहत से|ये डाक्टर साहिबान जो ऊँची۔ऊँची डिग्रियां लेकर ॐची۔ॐची फीस मरीज़ों से वसूलते नजर आते हैँ,ऐसा प्रतीत होता है मानो 'फार्मासियूटीकल्स कम्पनीज़' के रजिस्टर्ड 'एजेन्ट' या 'मेडीएटर' की तरह काम करने वाले हैँ,उनको सिर्फ और सिर्फ हमारी 'बीमारी' की चिन्ता रहती है न कि हमारी 'सेहत' की|क्यूंकी ऐसी ही व्यवस्था है कि उनसे ईलाज करवाना शुरु कर दिया एकबार तो फिर आप उनके परमानेन्ट कस्टमर बन गये|फिर क्या जीवन भर 'कष्ट से मरते रहिए|' विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7अप्रैलको 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है|जानिए क्या है हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं और आमजन के सेहत की स्थिति......... * पाँच लाख डाक्टर्स की कमी है देश में|10,189 लोगों पर 'एक सरकारी डाक्टर' है|विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक के मुताबिक 'एक हजार लोगों पर एक डाक्टर' होना चाहिए| * महज़ 56 हजार छात्र हर साल 462 मेडिकल कालेजों से ग्रेजुएट होते हैं,जबकि देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.6 करोड़ बढ़ रही है|


* 90,343 लोगों के बीच एक सरकारी अस्पताल है देश में|12 किलोमीटर औसतन दूरी आम भारतीय को तय करनी पड़ती है मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं केलिए| * 13 राज्यों के 64 ज़िलों में क़रीब 27 करोड़ लोगों केलिए एक भी ब्लड बैंक नहीं है| * 68.3 वर्ष है भारत में जीवन प्रत्याशा की दर|पुरुषों की औसत आयु 66.9 वर्ष तथा महिलाओं की 69.9 वर्ष हे| * एक हजार बच्चों में 41 बच्चों की मृत्यु जन्म के एक साल के भीतर हो जाती है * प्रति 10,000 में से 174 मातृ मृत्यु दर|मतलब हर घंटे में 5 महिलाओं की प्रसव के दौरान होनेवाली जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है| * भारत में सबसे ज्यादा मौतें हृदय से संबंधित बीमारी की वजह से होती हैं|2005 से 2016 के बीच इन मौतों में 53% की बढोतरी हुई है|


* 25 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु अकेले प्रदुषण से हो जाती हैं। नोट:- * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं।

Last updated date 30/09/2020

WHITE TRUTH OF MILK

1:- White Truth of Obesity “The largest study of its kind analyzed more than 12,000 children aged 9 to 14. It found that the more milk they drank, the heavier they were.”-Archives of Pediatrics and Adolescent Medicine (2005) 2:- White Truth of Breast Cancer “A study from the Harvard Medical School on Breast Cancer risk and diet among 90,000 pre-menopausal women showed a cancer link to Whole Milk and Milk Products.” – The Journal of the National Cancer Institute (2003) 3:- White Truth of  Women Consuming Highest Amount of Milk “Denmark, Sweden and Switzerland have highest rate of ovarian cancer. Their per capita milk consumption is also among the highest in the world.” -American Journal of Epidemiology (1989) 4:- White Truth by Hippocrates (460-315 B.C.E) “Cow’s milk could cause skin rashes and gastric problems.”- Pediatric Allergy (1951) 5:- White Truth by FDA Food and Drug Administration in its ‘Eating for Healthy Heart’ brochure stated that, “some fats are more likely to cause heart diseases; these fats are usually found in food from animals such as meat, milk, cheese and butter.” – Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6:- White Truth of Heart Disease “A study involving 7 countries showed that, as the milk supply grew, so did the incidence of deaths from heart diseases.”   International Journal of Cardiology (1994) 7:- White Truth of Countries with Lowest Milk Consumption “Societies with low calcium diet and only fraction of ­­­­­dairy consumption have less risk and prevalence of bone fractures. Dairy products are not dietary staples in China, Japan, Vietnam and Thailand. Yet, the residents of these countries have the lowest rate of bone fractures.”- American Journal of Clinical Nutrition (2001) 8:- White Truth of Insulin Dependent Diabetes (Type I) “The more the cow’s milk is consumed particularly by the children; higher is the incidence of Diabetes Type I. For Example, Finland has one of the highest intake of dairy products in the world. Interestingly, the country also has the world’s highest rate of insulin dependent diabetes affecting 40 out of every 1000 children.”–American Journal of Clinical Nutrition (1990) 9:- White Truth of Autism “Autistic children frequently have very high levels of opiate peptides in both blood and urine.”-American Journal of Clinical Nutrition (1990) 10:- White Truth of Infant Colitis “It was seen that allergic reaction to food was the cause of colitis in infants under the age of 2. Cow’s milk was the most common culprit. After it was excluded from the diet, the infants recovered completely.” – Archives of Diseases in Childhood (1984)


11:- White Truth of our Ancestors “After examining the bones of our ancestors who lived in a pre-milk era, we found robust fracture resistant bones.”- Department of Evolutionary Biology, Colorado State University (2002) 12:- White Truth of Bone Health “No conclusive evidence exists that cow’s milk builds strong bones in humans, on the contrary; the data shows it promotes bone fracture.”- Pediatrics (2005) 13:- White Truth by British Advertising Standards Authority “In October 2005, the British Advertising Standards Authority forced Nestle Health Nutrition to withdraw its advertisements in the United Kingdom, stating that milk was “Essential for healthy bones.” - UK Advertising Standards Authority (13th Oct, 2005) 14:- White Truth by US Government appointed Scientific Panel Report “Milk cannot be considered as a sports drink, does not specifically prevent osteoporosis, and might play a role in heart disease and cancer.”-  Family Practice News (5th Dec, 2001) 15:- White Truth by Swiss Federal Health Ministry “Milk industry has failed to provide medical proofs that claim that, milk has preventive effects against osteoporosis.” -Spring, Physicians Committee for Responsible Medicine (2001) 16:- White Truth by Biggest Ever Study on Milk “Harvard University study on seventy eight thousand women revealed that, those who drink milk the most, were actually at greater risk of bone fracture than those who drink little or no milk.”-12 year prospective study-American Journal of Public Health (1997) 17:- White Truth of Infertility “A consistent correlation is seen between the consumption of cow’s milk and infertility in women. Researchers have specifically found that the countries where the most milk products are being consumed have high prevalence of infertility, with earlier occurance in life.”- American Journal of Epidemiology (2005) 18:- White Truth of Slaughter of Dairy Cows “Mastitis or the infection of cow’s udder is the primary reason for pre-mature slaughter of dairy cows, and 2nd most common cause of death.” -USDA (Aug, 2004) 19:- White Truth of Bone Health “Analysis of 50 studies, on which US Dairy intake recommendation is based; shows no relationship between dairy or dietary calcium intake and measure of bone health.” - Cornell University, Pediatrics (2005)


20:- White Truth of Milk Propaganda “The Dairy Industry lobbied for an increased recommendation of three to four servings of milk per day, so, in 2005 the US Health and Human Services raised the recommendation by 50% to 3 servings a day.”-Wall Street Journal (30th Aug, 2004) 21:- White Truth of Calcium Supplements “Calcium is one of the numerous nutrients essential for bone health. An abundance of dietary or supplemental calcium in itself has not shown to assure greater bone density or protection from bone fracture.”-Bone (1990) 22:- White Truth of Diabetes Type I “Major cause of Diabetes Type I and bone disease among teenagers is daily dairy intake.”– Journal of the American Academy of Dermatology (2007) 23:- White Truth of Migraine “A double blinded controlled trial of Oligoantigenic Diet Treatment concluded that, migraine is a result of food allergy majorly by daily dairy intake.”  Lancet (5th July, 1980) 24:- White Truth of Allergy among Children “Cow’s milk and the products made from it, are one of the most common food allergens. This is particularly true for children.”  -Nutrition Review (1984) 25:- White Truth of Prostate Cancer “ The association between dairy products and prostate cancer is one of the most consistent dietary predictors for prostate cancer.”-  Epidemiology Reviews (2001) 26:- White Truth of Parkinson’s Disease “Harvard School of Public Health Researchers found that, men who consumed lactose, calcium and vitamin-D from dairy, along with dairy protein, had 50% to 80% higher risk of developing Parkinson’s disease, than men who consumed least amount of these nutrients.”-Annals of Neurology (2003) 27:- White Truth of Pregnancy “The risk of juvenile diabetes, ear infection, skin rashes, colic and iron deficiency may all be reduced by the avoidance of cow’s milk based formula and other dairy products during pregnancy.”-  Pediatric Research (1993) 28:- White Truth of ‘2 Glasses of Milk per day’ “In comparison to men who drink no milk, than men who consumed more than 2 glasses per day, the latter had twice the incidence of Parkinson’s disease.” -Neurology (2005) 29:- White Truth of Menstrual Cramps World renowned gynecologist and best-selling author Dr. Christiane Northop cautions that, “In addition to menstrual cramps, cow’s milk consumption has been associated with recurrent vaginitis, fibroids and increased pain from endometriosis.” – Women’s Body, Women Wisdom (1994) 30:- White Truth of Brain Disorder “Dangerously high levels of aluminum were  found in cow’s milk sample and infant formula.” -Journal of Pediatric Gastro-Enterology and Nutrition (1999) “Aluminum poisoning has been associated with memory loss, dementia, Parkinson’s disease and Alzheimer’s disease.”   Brain Research (2002) 31:- One Spoon of Pus in Every Glass of Milk – A White Truth “It’s legal to have not more than 7,50,000 pus (cells) per milliliter of milk.”– Journal of Dairy Science (2001) 32:- White Truth of Sudden Deaths in Infants “Vaccination and cow’s milk are the primary cause of Sudden Infant Death Syndrome (SIDS)”.- New Zealand Medical Journal (1991) 33:- White Truth of Infant Asthma “A significant number of infants with asthma also tested positive for allergy to cow’s milk. Infants six months old or younger, experienced relief from symptoms once cow’s milk was eliminated from their diets.”. Annals of Allergy (1975) 34:- White Truth of Dioxins and Liver/Nervous System Damage “Dairy products alone account for 30% of dioxin exposure in adults and 50% exposure in children.”  Green Guide (July/August 2004) “Dioxins have been shown to result in nervous system and liver damage.”  Dioxin Action Summit (2000) 35:- White Truth of Intestinal Bleeding “The gastro-intestinal blood loss caused by cow’s milk is quite common in infants.” - Journal of Pediatrics (1974) 36:- White Truth of Calcium Supplements “Calcium supplements may compromise the immune system. As Magnesium plays an important role in the development and proper functioning of the immune cells, excess of calcium displaces magnesium ions, and in doing so impair the function of key immune factors such as white blood cells.” Journal of American Dietetics Association (1996) 37:- White Truth of Iron Deficiency “Iron retention decreased by 45% in post-menopausal women, who were given 500 mg of supplemental –  American Journal of Clinical Nutrition (1991) 38:- White Truth of  Bone Loss “Women who derived most dietary protein from animal sources, had 3 times higher chances of bone loss and 3.7 times higher chances of hip fracture, compared to the women who obtained most of their protein from vegetable sources.”   American Journal of Clinical Nutrition (2001) 39:- White Truth of Refined Sugar “Refined sugar interferes with the calcium absorption, thereby increasing the risk of osteoporosis.”– Journal of Nutrition (1987) 40:- White Truth of Cruelty on Cows “In a modern/industrial dairy farm, milk is extracted three times a day by electronic milking machine. Stray voltage from the machine occasionally shocks the cows in the process, causing fear, panic and sometimes even death. Dairy farm loses several hundreds of cows each year to stray electric voltage.”–  The Washington Post (9th Aug, 1987) 41:- White Truth of Animal Cruelty “Dairy farmers dock cow’s tail (cut the tail off without anesthesia by using a pair of super hot scissors) because they believe that a full length tail may become soiled in excrement and urine when the animal lies down on its filthy floor and could infect the cow’s udder possibly leading to mastitis.”-Journal of Dairy Science (2001) 42:- White Truth of Food Pyramid “USDA and Department of Health and Human Service (HHS) have published “The Food Pyramid” for the rest of the world. The food pyramid can be looked at with suspicion because of 2 reasons: 1. Six of 11 advisory board members had financial ties with the dairy industry! ” 2. The primary objective of USDA is not to encourage healthful eating, but, rather to promote American agricultural/dairy products.    –   New York Times (7 th Sept, 2004)       43:- White Truth of Calcium Absorption “Humans can absorb greater percentage (63%) of calcium from vegetables than that from cow’s milk (32%).”–  American Journal of Clinical Nutrition (1994) 44:-;White Truth of Milk Contamination “Frequent contamination is found in a glass of milk because of cow’s exposure to hormones, antibiotics and other drugs. Some of these have been linked to blood diseases, cancer and deaths in humans.” -FDA Notice, Associated Press (4th March, 2003) 45:- White Truth of Cow’s Milk Protein “Cow’s milk contains at least 30 proteins that can elicit an allergic response. The most common include casein, β-lactaglobulin (BLG), α-lactalbumin (ALA), bovine γ-globulin (BGG), and bovine serum albumin (BSA).” –  Annals of Allergy (1984) 46:- White Truth of Milk Allergy “Milk allergy symptoms include skin rashes, hives, swelling, wheezing, congestion, diarrhea, constipation, earache, headache, skin discoloration, joint swelling, asthma, ulcerative colitis, colic, chronic fatigue, intestinal bleeding and death.”–  Allergy (1996) 47:- White Truth of Reversing Heart Diseases “WHO funded research trial, “The MONIKA Project” reported that, “changes in milk consumption, up or down, accurately predicted changes in coronary deaths four to seven years later.”– Lancet (1999) 48:- White Truth of Atherosclerosis “Bovine Xanthine Oxidase, an enzyme present in milk, can be absorbed through human gut and enter the blood stream, where it may promote the growth of atherosclerotic (artery-clogging) lesions.” – Clinical Research (1976) 49:- White Truth of Countries with Highest Milk Consumption “The world’s highest consumers of cow’s-milk, dairy products and calcium-Australia, New Zealand, North America and Western Europe, also have the highest risk of bone fractures.”-American Journal of Clinical Nutrition (2003) 50:- White Truth of Nutritional Education among Doctors “70% of all the chronic diseases are rooted in the dietary choices we make, yet, in at least 5 years of medical education most physicians receive only 2  hours (at best) of nutritional education.”   -The Surgeon General’s Report on Nutrition and Health DHHS (PHS) Publication (21st  July, 1999) 51:- White Truth of National Nutrition Policy “Our national nutritional policies and the literature, as is taught in the school are highly influenced by the profit minded dairy industry; as is clearly evident from the report published."– Nutrition and Health News Bureau (17th Jan, 2002) 52:- White Truth of Constipation “Many studies have established the relationship between consumption of cow’s milk and constipation, and remarkable improvement when the offending milk is removed from the diet.”– New England Journal of Medicine (1998) 53:- White Truth of Multiple Sclerosis “In the survey of 27 countries it was found that, as a population’s intake of cow’s milk went up; so did the prevalence of multiple sclerosis.”– Neuro-Epidemiology (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

Last updated date 28/09/2020

"यूनानी चिकित्सक - तिब्बी ख़िदमतगार या ग़द्दार....!

हम यूनानी चिकित्सक-"तिब्बी ख़िदमतगार या ग़द्दार", यूनानी चिकित्सा पद्धति और पब्लिक को धोका दे रहे हैं। "मैं तो कहता हूं कि जहां पर ऐलोपैथिक डॉक्टर अपने हाथ खड़े कर देते हैं वहां से मेरा काम शुरू होता है।" 12 फरवरी 2020,स्थान कंस्टीट्यूशन क्लब दिल्ली। मौक़ा था-"आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस" के बैनर तले "यूनानी डे" का। मुझे भी शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,मैं भी आमंत्रित था। सैंकड़ों SO CALLED डॉक्टरों (BUMS डिग्री धारक हकीम) का जमघट था। गणमान्य अदाधिकारियों वो सरकारी पदाधिकारियों ने भी शिरकत की। लोगों ने अपने अपने विचार भी रखें, मुझे भी मौक़ा मिला, मैं ने भी अपने विचार रखे। इस 'यूनानी डे" के मौक़े पर एक मैगज़ीन भी तक़सीम की गई। बड़ी हैरानी हुई,और ताज्जुब हुआ ये देखकर कि "आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस" के पदाधिकारियों के नाम और हिंदुस्तान के सभी राज्यों के पदाधिकारियों के नाम दर्ज थे, लेकिन उनके अधिकांश नाम से पहले "डॉक्टर" ही थे, जबकि सब के सब हकीम थे,BUMS डिग्री धारक थे। बहरहाल! ये सब देख कर दिल कचोट रहा था कि हम कहां जा रहे हैं। पेश है मेरे दिल की आवाज़,आप भी महसूस कर सकते हैं:- BUMS - BACHELOR OF UNANI MEDICINE AND SURGERY. BAMS - BACHELOR OF AYURVEDIC MEDICINE AND SURGERY. BHMS - BACHELOR OF HOMEOPATHIC MEDICINE AND SURGERY. MBBS - BACHELOR OF MEDICINE AND BACHELOR OF SURGERY.


ऊपर मैं ने चार प्रचलित पैथियों के SHORT FORM और FULL FORM लिखे हैं। ख़ूब ध्यान से देखिए और जी भर कर दिल थाम कर देखिए कि कहीं कोई ग़लत तो नहीं है। ऊपर से ही शुरू करते हैं। ऊपर की तीनों डिग्रियों के FULL FORM बिल्कुल दुरुस्त हैं, और ऐलोपैथिक डिग्री MBBS के FULL FORM पर ग़ौर कीजिए,क्या लगता है आपको कि ये दुरुस्त और सही है? नहीं ना। MBBS का सही और दुरुस्त FULL FORM तो इस तरह होना चाहिए था - " MEDICINE OF BACHELOR AND BACHELOR OF SURGERY", या जो अभी हम लोगों को उसका FULL FORM बताया जाता है वो इस तरह- "BACHELOR OF MEDICINE AND BACHELOR OF SURGERY" है। तो इसका मतलब यह है कि इसका FULL FORM इस तरह होना चाहिए-"BMBS". यही सत्य है और यही इसकी "औक़ात" है। ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति की बुनियाद ही झूठ और फरेब पर टिकी है। अब आईए एक और डिग्री को परखिए- "MD". इसका FULL FORM बताया जाता है- " DOCTOR OF MEDICINE". जबकि सही तो इस तरह होना चाहिए था - "MARKETING OF DRUG"(MD) क्या ख़्याल है आपलोगों का? अब मैं सीधे सीधे मुद्दे पर आता हूं।ये मुद्दा बड़ा जटिल है, कड़वा सच भी है। जिस पैथी की बुनियाद ही ग़लत, झूठ और फरेब पर टिकी है, उससे कोई बीमारी ठीक होती है या नहीं, ये बताने की क़तई ज़रुरत नहीं है। इस ऐलोपैथिक पद्धति ने शुरूआत से ही सिर्फ और सिर्फ "दर्द ही दर्द" बांटे हैं। लेकिन हमारे यूनानी चिकित्सा पद्धति के BUMS डिग्री धारकों को क्या हो गया है कि वो अपने नाम के आगे "DOCTOR" लगाने और ऐलोपैथिक दवाओं से खुलेआम इलाज करने में "बेशर्मी और ढिठाई की सारी हदें पार कर गये हैं।" माफ करना BUMS डिग्री धारको....एक बात अच्छी तरह से अपने ज़ेहन व दिल में बठा लें, आपको जो "हिक्मत" की शक्ल में सलाहियत हासिल है ना, उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती है। हिक्मत अल्लाह तआला की जानिब से आपको मिली थी, लेकिन लुटा दी हमने जो असलाफ से मीरास पाई थी, सुरैया से ज़मीं पर आसमां ने हमको दे मारा।


हिक्मत की डिग्री लेकर हकीम बन पाए और न ही डॉक्टर। पेंडुलम की तरह पब्लिक के बीच झूलते हुए अपने वजूद की तलाश में सरेगरदां हैं। " न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम।" "हकीम" के पेट से "डॉक्टर" वजूद में आया है। BUMS वालो ,ये समझ लो कि तेरे सामने उन "ऐलोपैथिक डॉक्टरों" की तो सर उठाने की कभी हिम्मत भी न हो पाए।आप जो एक "हकीम" होकर ऐलोपैथिक प्रैक्टिस करते हैं,वो ऐलोपैथिक डॉक्टर्स आपको कितनी नफरत भरी निगाह से देखते हैं, पब्लिक आपके बारे में क्या सोचती है,कभी तन्हाई में सोचना मेरे प्यारे भैया। आपको BUMS डिग्री देकर अल्ल्लाह ने अपने हिस्से में से थोड़ी "हिक्मत" तो दे दी मगर आपने उसकी अहमियत को नहीं समझा, उसकी क़द्र भी नहीं की आपने।आप अपने नाम के आगे "DR" लिखकर ख़ुश तो हो सकते हैं लेकिन उस सबसे बड़े "हकीम" ने जो आपको इनायत किया,उस पर क्या गुज़रती होगी जिसने आपको "हिक्मत" से नवाज़ा, अंधेरे में सोचिएगा ज़रुर। आप ख़ुद को "डॉक्टर" कहेंगे तो डॉक्टरी ही करेंगे, "हकीम" कहलाएंगे तो दिमाग़ में हिक्मत ही आएगी।आप शेर थे लेकिन गीदड़ बन बैठे। नोट:- मैं ने अथक परिश्रम और रिसर्च के बाद केवल एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX" है। केवल इसी एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं ( जिसके लिए डॉक्टर्स जीवन भर ऐलोपैथिक दवा खाने को बता दिया करते हैं), अंग्रेज़ी दवाओं से हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है और बीमारियों से हमेशा के लिए निजात मिल जाती है। असंख्य मरीजों ने आज़माया,शिफा पाई और अब बिल्कुल सेहतमंद हैं, कोई भी दवा का सेवन नहीं करते। उन्होंने अपना FEEDBACK दिया भी है जिसे मेरे YOUTUBE CHANNEL पर आप ख़ुद ही देख सकते हैं। मेरा YOUTUBE CHANNEL का नाम -"HAKEEM MD ABU RIZWAN" है। इस दवा के बारे में किसी भी प्रकार की मुकम्मल जानकारी मुझसे ले सकते हैं। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

Last updated date 28/09/2020

"एक्सपायरी डेट" की कहानी

क्या दवाइयां एक्सपायर हो जाने के बाद भी इस्तेमाल की जा सकती हैं? 1979 में अमेरिकी FDA (FOOD AND DRUG ASSOCIATION) ने सभी दवा कंपनियों को निर्देश जारी किया कि "वो सभी दवाओं पर EXPIRY DATE अवश्य डालें।" लेकिन, इस EXPIRY DATE का ये मतलब भी नहीं है कि "BRUFEN" की गोलियों की शीशी अपनी EXPIRY DATE के बाद एक दूध के कार्टून की तरह ख़राब और स्वास्थ के लिए हानिकारक हो जाती है।जी हां, जो तिथि हम दवा की शीशी के ऊपर कंपनी की ओर से मुद्रित देखते हैं, उसका मतलब दवा का ख़राब हो जाना बिल्कुल भी नहीं होता,बल्कि कंपनी "उस मुद्रित तिथि" तक दवा के असरदार और सही होने की ज़िम्मेदार होती हैं। सही मायने में एक दवा कितनी देर तक असरदार और इस्तेमाल के क़ाबिल हैं, इसके बारे में अलग अलग राय हो सकती हैं। कुछ दवाएं जैसे, कि INSULIN, NITROGLYCERIN और ANTIBODIES, जिनमें शामिल COMPONENTS समय के साथ साथ बेअसर या कम फायदेमंद हो जाती हैं।उसी तरह बहुत सी दवाओं की ताक़त काफी लंबे समय तक बरक़रार रहती हैं,जो कि न केवल उपयोग करने के लिहाज से ही, बल्कि पूरी असरदार भी होती हैं। क्योंकि किसी को भी ये पता नहीं होता, और दवा के ऊपर EXPIRY DATE देखकर और सुनकर ही हमलोग भ्रमर में पड़ जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं। इसलिए अमेरिका में ज़हर कंट्रोल करने वाली क़ानूनी संस्था को प्रतिदिन ऐसी अनगिनत फोन काल आती हैं जिनमें लोग ये बताते हैं कि उन्होंने एक्सपायर दवा खा ली है और अब उन्हें मेडिकल सहायता की आवश्यकता है। कैलिफोर्निया प्वायज़न कंट्रोल सेंटर के डायरेक्टर ली सेंट्रिल ने आगे बताया कि उसने किसी एक्सपायर्ड दवा की वजह से किसी इन्सान में कोई जानलेवा लक्षण बिल्कुल नहीं देखते।बस,समय गुज़रने के साथ दवाओं के असरदार होने में कमी हो जाती है जिसपर अलग से ढेरों रिसर्च की गई है। कुछ वर्षों पहले "ली सेंटर रील" को दवाओं के एक पुराने भंडार को चेक करने का अवसर मिला,जो कि एक फार्मेसी के पीछे स्टोर में मौजूद थीं। उनमें एलर्जी और दर्द निवारक दवा के अलावा अन्य दूसरी दवाएं और गोलियां मौजूद थीं। डायरेक्टर ने बताया कि उन दवाओं में से कुछ को चालीस साल गुजरने के बाद भी असरकारक पाया गया और ये रिसर्च स्टडी "JAMA INTERNAL MEDICINE" में 2012 में प्रकाशित की गई थी।सेंटरील ने एक अन्य रिसर्च स्टडी 2017 में प्रकाशित करवाई, जिसमें EPIPEN जैसी महंगे AUTO INJECTIONS जिनका इस्तेमाल जानलेवा एलर्जीज़ के इमरजेंसी इलाज में किया जाता है, अपनी अंतिम तिथि पूरी हो जाने के चार साल की अवधि के बाद भी चौरासी प्रतिशत प्रभावी पाए गए। इसीलिए विशेषज्ञों की राय है कि कुछ भी मौजूद न होने से जान बचाने के लिए एक एक्सपायर्ड दवा भी उस समय काम कर जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो दवा बनाने वाली कंपनियों के पास काफी रक़म मौजूद होती है कि वह दवाओं पर रिसर्च कर सकते हैं। लेकिन सचमुच में ऐसा करने का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और जब हमलोग किसी दवा पर एक्सपायरी डेट पढ़ लेते हैं तो हम उसे फेंक कर नयी दवा ख़रीद लाते हैं। अमेरिका में फेडेरल गवर्नमेंट को इन दवाओं पर रिसर्च करने का लाभ तो अवश्य ही है और वो करते भी हैं। और अमेरिका में दवाओं का बहुत बड़ा भण्डारण संभावित एमरजेंसी जैसे हालात यानी कि आतंकी हमले या किसी महामारी के फैलने के दौरान इस्तेमाल हो सकता है। 1986 में फेडेरल गवर्नमेंट और अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने अपने इस भण्डारण में कमी करने के लिए दवाओं की तय तिथि में कमी करने के साथ साथ अपने स्टाक में भी कमी की। दोबारा उसी प्रोग्राम के तहत 2006 में एक सौ बाईस विभिन्न औषधियों को जांचने के बाद सही अवस्था में महफूज़ करके उनकी एक्सपायरी डेट में अगले चार साल की बढ़ौतरी कर दी गई। इस प्रोग्राम के कारण अमेरिकी संस्थाओं ने 2.1 बीलियन डालर ,जो कि उन दवाओं की दोबारा तैयारी में लगते, अमेरिकी संस्थाओं के अथक परिश्रम और प्रयास से उस मोटी रक़म को अकारण लगने से बचा लिया गया।इस सबके बावजूद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जानते बूझते तय मानक तिथि के बाद वाली दवाईयां लेने से सख़्ती से मना करते हैं। उनके अनुसार, कुछ दवाओं में तय तिथि समाप्त हो जाने के बाद बैक्टीरिया पैदा होने और बढ़ने का ख़तरा होने के अलावा कुछ दवाईयां एलर्जी रिएक्शन को रोकने में न केवल नाकाम रहती हैं बल्कि,बीमार भी कर सकती हैं। और इसी तरह ऐसी दवाईयां लेने वाला स्वास्थ से संबंधित संभावित ख़तरों से दोचार हो सकता है। इसलिए ऐसी दवाईयों और उनसे संबंधित प्रश्न के साथ बेहतर यही है कि किसी विशेषज्ञ चिकित्सक या किसी सर्टिफाइड फार्मासिस्ट से संपर्क किया जाए। अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था लोगों को ऐसी दवाईयां जिनकी तय तिथि समाप्त हो चुकी हो, "NATIONAL DRUG TAKE BACK" नामक संस्था( जिसे AMERICAN DRUG ENFORCEMENT DEPARTMENT कंट्रोल करती है)के सुपुर्द कर देने का हुक्म दे रखी है, ताकि उनका सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सके, और जनता को परेशानी से बचाया जा सके। व्हाइट हाउस की ओर से ये दावा है कि पिछले साल इस संबंध में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 3.7 मिलीयन पाउण्ड की दवाईयां जो कि अपनी अंतिम तिथि गुजरने के बाद भी अनुपयोगी थीं,उनको सुरक्षित किया गया ताकि बाद में उसपर रिसर्च करके उनको प्रयोग के लायक़ बनाया जा सके। जबतक ट्रम्प सरकार इस अकूत साधन से लाभ उठाते हैं,न जाने कितने ही देश अपनी लापरवाही और ऐसे किसी सिस्टम के न होने के कारण संसाधन और बजट को बर्बाद करते रहेंगे, जिनमें प्रगतिशील देश सबसे आगे रहेंगे। और ख़ासतौर से भारत में दवाईयां दिन-प्रतिदिन महंगी होती रहेंगी। ज़रूरत इस बात की है कि ऐसी दवाईयों को सुलभ तरीक़े से सरकारी स्तर पर रिसर्च के बाद उपयोग करने के लायक़ बनाकर न केवल देश में दवाओं की भारी कमी को दूर किया जा सकता है, बल्कि ड्रग माफिया/तस्कर से भी छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन, अफसोस की बात है कि सरकार इस तरह के काम के बजाय ऐसी सोच से भी लाखों कोस दूर है।


नोट:- अगर आप बरसों से मोटापा, कैंसर, डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट प्राब्लम, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिस आर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं, और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है। केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। * अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है। * डायबिटीज की अंग्रेजी दवाओं का ही नतीजा है कि 20%-30% लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं,50% लोगों का किडनी फेल हो रहा है और 15%-20% लोगों का लोवर लिम्ब (दोनों पैर) काटने की नौबत आ रही है। * बी पी लो करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लक़वा तक पहुंच रहा है। * कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है। फैसला आपको ही करना है, और आज ही।


नोट:- मैं ने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इसी एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 28/09/2020

लाइफस्टाइल और वायरल डीज़ीज़

ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU.......! आगे बढ़ने और पढ़ने से पहले आजकल के बर्निंग टापिक "कोरोनावायरस" को ज़रूर सामने रखियेगा, कि किस तरह से डब्लू एच ओ, फार्मा कंपनियां, दुनिया भर की सरकारें (जो वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की ग़ुलाम हैं), सभी ऐलोपैथिक डॉक्टर्स, सरकारी व निजी अस्पतालों में इस कोरोनावायरस के ईलाज के नाम पर लाखों रुपए किस तरह वसूली की जा रही हैं। ये वायरल डीज़ीज़ केवल एक इन्फलुएंज़ा वायरस ही (ईन्फ्लुएंज़ा लाइक इलनेस) है जिसका इलाज हमारे यूनानी चिकित्सा पद्धति में मात्र तीन से पांच दिनों में घर में ही केवल चंद सौ रुपए में मुमकिन है।    मैंने कई बरसों तक लगातार शोध करके एक ऐसी यूनानी दवा बनाई है जिसको अधिकांश लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे:- डायबिटीज़, हाई बीपी, कोलैस्ट्रौल, थायराइड, लीवर व ऐब्डोमिनल प्राब्लम, किडनी के विभिन्न रोग, हृदय संबंधी रोग (ब्लाकेज), माइग्रेन वगैरह में कम से कम चार महीने, कुछ रोगों में छः महीने जैसे: आस्थमा, सियाटिका, हड्डियों व जोड़ों का दर्द , और कुछ रोगों जैसे कैंसर, एच आई वी एड्स, ट्यूमर, सोरियासिस वग़ैरह में नौ महीने से एक साल तक लगातार सेवन करने से सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। ऊपर वर्णित तमाम बिमारियां ऐसी हैं जिसका ऐलोपैथिक डॉक्टर और दवा से ईलाज ही नहीं है, बल्कि ऐलोपैथिक डॉक्टर आपकी उन बिमारियों को बढ़ाने का काम ही करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो डॉक्टर आपकी बीमारी को हर हाल में बचाकर और बढ़ाकर रखना चाहता है, ताकि आप उनके परमानेंट कस्टमर बने रहें और उनकी दुकानदारी चलती रहे।उसे आपके सेहतमंद होने की चिंता है ही नही और एक दिन ऐसी नौबत आ जाती है कि आप बिल्कुल "कंगाल" हो जाते हैं या "काल के गाल" में समा जाते हैं। "जहां डॉक्टर का काम ख़त्म हो जाता है वहां से मेरा काम शुरू होता है।" यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को बताए गए तरीक़े और समय तक लगातार सेवन करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। सैंकड़ों साल का इतिहास उठा कर देखेंगे तो पाएंगे कि आजतक ऐलोपैथिक दवाओं से कोई भी बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक नहीं हुई है।यह एक कड़वी सच्चाई है कि मेडिकल साइंस, अंग्रेज़ी दवाओं और डॉक्टरों ने अबतक लोगों को केवल "दर्द बांटे हैं और दर्द से लड़ते-लड़ते कंगाल बनाना सिखाया है, जिसे आप ज़रूर मानेंगे। ऊपर में कुछ ख़ास बिमारियों के जो नाम मैंने गिनाए हैं वो ऐसी बिमारियां बिल्कुल नहीं हैं कि ठीक न हो, बल्कि ऐलोपैथिक डॉक्टरों और फार्मास्युटिकल कंपनियों की मिलीभगत से आपको लगातार बीमार बनाए रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं, और आपको पता भी नहीं चलता। आपको सच्चाई का पता चलता है तबतक काफी देर हो चुकी होती है।या तो आप कंगाल हो गये या स्वर्ग सिधार गए। यानी डॉक्टर आपको दो ही राह दिखाते हैं। इसलिए मैं आपको सलाह देना चाहुंगा कि अंग्रेजी दवाइयों का शत् प्रतिशत परित्याग करें। और यूनानी दवा का सेवन करके स्वस्थ जीवन जीने की कोशिश करें। "1947 से पहले हमलोग अंग्रेजों के ग़ुलाम थे, और आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी दवाओं के ग़ुलाम हो गये हैं।" किसी भी बीमारी का इलाज अंग्रेज़ी दवा से है ही नहीं, क्योंकि वो केमिकल है,नीली छतरी वाले ने हमारा शरीर नेचुरल चीज़ों से बनाया है, जिसमें कोई रोग उत्पन्न हो जाए तो नेचुरल विधि से ही ठीक हो सकता है। और यही सबसे बड़ी सच्चाई है।    मैंने जो दवा तैयार की है वो यूनानी पद्धति व यूनानी जड़ी-बूटियों से निर्मित है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। आप को ये जानकर हैरानी होगी कि ये खाने की दवा नहीं है बल्कि इस पावडर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीना पड़ता है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। HAKEEM MD ABU RIZWAN            BUMS,hons.(BU)



Last updated date 28/09/2020

लाइफस्टाइल डीज़ीज़ और ईलाज

अस्सलाम अलैकुम _ _ _ _ ! (नोट:- मेरे इस पोस्ट को ध्यान से पढ़कर ठंढे दिल से शांतिपूर्वक मनन कर के अपनी स्वास्थ्य के ऊपर विचार कर सकते है| ये आपको सोचना है कि क्या आप भी निरोग जीवन जी सकते है?) "PLEASE SHARE THIS POST to reach more and more people's, friends, relatives and others who is suffering from DIABETESE, HIGH BP, HEART PROBLEM, KIDNEY FAILURE, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAIN, MENTAL, PARKINSONS, ALZHIMER, DISEASES, PILES, CHOLESTEROL, THYROID, OBESITY, PSORIASIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS, SINUSITIS" etc. which is 100% "REVERSE" forever within few month's from only one Medicine ie. "HEALTH IN BOX ™" a unique UNANI MEDICINE made by myself. हमारे यहाँ ताज़ा यूनानी जड़ी-बूटियों से तैयार दवाओं से पुराने जटिल, असाध्य और हर उस बीमारी का मुकम्मल ईलाज किया जाता है जिसके बारे में आपको कह दिया गया कि *लाईलाज* है, या *जीवन-भर* दवा का सेवन करना ही पड़ेगा, जैसे :- 1- ब्लड शूगर या डायबिटीज 2- किडनी फेल्योर, किडनी पथरी, डायलिसिस, पेशाब की कमी या ज़्यादती व जलन, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढ़ना या घटना| 3- गाल ब्लैडर की पथरी 4- दिल से सम्बन्धित रोग, उच्च रक्त चाप, हाथ-पैर में कपकपी, झिनझिनी, जलन| 5- लीवर की खराबी, गैस्ट्रिक, बवासीर| 6- चर्म रोग जैसे सोरियासिस, दाद, एक्जीमा, सफेद दाग| 7- स्त्री-गुप्त जैसे रोग जैसे बाण्झपन, मासिकधर्म गड़बडी, लिकोरिया, फाईब्राइड, ओवैरियन सिस्ट(PCOD / PCOS)| 8- पुरुष-गुप्त रोग जैसे मर्दाना कमजोरी, धात आना, वीर्य का पतलापन| 9- हड्डी व जोड़ रोग, गठिया-वात् और 10- मानसिक रोग| DEAR DIABETESE (ब्लड शूगर) PATIENTS ध्यान से पढ़ लँ और जरुर सम्पर्क करे :- आप सभी ब्लड शूगर मरीजो केलिए अच्छी खबर है| अगर आप डायबिटीज़ रोग से ग्रस्त है, त्रस्त है, जिन्दगी से आजिज़ आ चुके है तो अब आपको चिन्ता की कोई बात नहीं| क्योंकि, अगर आपको अंग्रेज़ी दवा से फ़ायदा न मिल रहा है तो कोई बात नहीं, और सच मानिए ऐलोपैथ दवा से उलटा असर होता ही है, यानि मर्ज़ बढ़ता गया जूं-जूं दवा की| ब्लड शूगर चाहे जितना भी पुराना हो, आपको केवल मेरा *डाइट प्लान* और एक ही *यूनानी दवा* (HEALTH IN BOX) का सेवन करना पड़ेगा| शत प्रतिशत् परिणाम अवश्य मिलेगा, पहले ही सप्ताह में परिणाम मिलेगा| 1_3 वर्ष के डायबिटीक मरिज को तो तीसरे-चौथे दिन ही परिणाम मिलेगा| वो अंग्रेज़ी दवा छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे| 10 वर्ष के भुग्तभोगी तीसरे सप्ताह में अपने परिणाम अवश्य देख पायेंगे| मेरी खुद की बनाई दवा और कुछ *डाइट प्लान* का अनुसरण करके, सख्ती से अमल करके आप न केवल डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारी से हमेशा केलिए छुटकारा पाईएगा, बल्कि कई दूसरी जटिल बीमारियों जैसे - हड्डो व जोड़ रोग, किडनी फेल्योर, डायलिसीस, दिल की बीमारी, कोलेस्ट्रौल, थाईराइड और इन जैसी बीमारियो से हमेशा हमेशा केलिए छुटकारा पा सकते है| एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात नोट कर लिजीए :- *आज़दी से पहले हमलोग अंग्रेज़ी हुकूमत के गुलाम थे, और आज़ाद हुए तो *अंग्रेज़ी दवा* के गुलाम बन कर रह गये|* इसलिए आपसे अनुरोध है कि ऊपर लिखी बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते है तो अवश्य सम्पर्क करें और *दवा रहित जीवन* की ख़ुशहाल पारी की शुरुआत करें| अब से अंग्रेजी दवा का इस्तेमाल मत करना बल्की हमेशा यूनानी दवा का ही इस्तेमाल किया करें| क्योंकि इसी यूनानी दवा में हर बीमारी का मुकम्मल ईलाज मौजूद है| यूनानी दवा का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है| अगर फ़ायदा न हो तो नुक़सान भी बिल्कल नहीं होगा| कैसी भी बीमारी क्यों न हो, बड़ी से बड़ी बीमारी, जटिल व पेचीदा, पुरानी से पुरानी बिमारी। यानी हर किस्म की बीमारी केलिए ये यूनानी दवा बेहद कारगर होते है| इसलिये याद रखिए, कि किसी भी ऐसी बीमारी में आप अगर मुब्तला हो गये हों जिसको ऐलोपैथ वाले उसके लाईलाज या कभी भी ठीक न होने का ठप्पा लगा दिया हो तो आप से नम्र निवेदन है कि बिल्कल निराश न हों| आप उन ऐलोपैथ वालों की सारी बातों को एक बुरे सपने की तरह भूल जाईए| चुपचाप एक समझदार ईन्सान की तरह, एक बेहतरीन और क़ाबिल, डिग्रीधारी हकीम( जिसकी डिग्री देखिये कि *बी यू एम एस* ही हो|) से मिलिए। एकबार जाकर उससे मिलिये, और अपनी व्यथा, दु:ख और सारी तकलीफ़ उसे बताईए| वहाँ वो आपका बेहतर ईलाज करेंगे| एक बात जो आपको अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि आप उस हकीम के पास तब पहुचे हैं जब आपकी बीमारी या तो काफी पुरानी हो चुकी है या जटिल सूरत ईख़्तियार कर चुकी है, तो इस परिस्थिति में हकीम साहब का उपचार काफी लम्बा चलने वाला है| यूनानी पैथी में जब कोई हकीम आपका ईलाज करता है तो वो सारी दवाये खुद से बनाकर देगा| अगर ऐसा नहीं हो तो आप अवश्य ही किसी *झोलाछाप हकीम* के पास चले गये हो| आजकल लोग ब्राण्ड ढूंढते है| यही यूनानी दवा निर्माताओ की असीम कृपा से हमारे आसपास कुकुरमुत्ते और कीड़े मकोड़ों जैसे *झोलाछाप हकीम* हकीम पैदा हो गये| जिसके कारण इस पैथी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है|क्योंकि ये जाहिल झोलाछाप जो ख़ुद को विशेष माहिर हकीम मानते हुए लोगों को अपनी लच्छेदार और ख़ुशामदाना बातों से अपने जाल में फांसते और रोग ठीक करने की गारण्टी देकर मनमाना मोटी रकम ये कहकर लेते है कि वो खुद से सभी दवा बनाकर देंगे| और फिर किसी यूनानी कम्पनी की दवा लाकर पैकिंग बदलकर आपको थमा देते है| आप किसी भी हकीम के पास चले जाएँ वो आपको जवारिश या माजून या इतरीफ़ल ही बना कर देगा ।बेचारा मरीज़ मरता क्या न करे उसको बड़े ही अक़ीदे और भारोसे के साथ खाना शुरू करता है। 1 2 3 4 माह खाने के बावजुद बीमारी ठीक नहीं हो पाती, जानते हैं क्यों ? मैं बाताता हूँ आपको। किसी भी जवारिश, माजून या इतरीफ़ल बनाने के लिए कई तरह की दवाओं को मिलाकर पहले उसका powder बानाया जाता है , फिर उसमें 3 गुना क़वाम (जो गुड़ , चीनी या मिश्री का होता है ) मिलाया जाता है ।इस तरह अगर 100 ग्राम दवा का माजून , जवारिश या इतरीफ़ल 400 ग्राम बनकर तैयार होता है ।यहीं पर ये हकीम या UNANI दवा कंपनी बेवकूफ बनाने का खेल खेलते हैं। अब देखिये, कैसे बेवकूफ बनते हैं आपलोग ! दवा जो आपको चाहिए वो तो 100 ग्राम चुरण ही है, ज़िसका खुराक मेरे हिसाब से 5-5 ग्राम ( यानि 1 दिन में 10 ग्राम ) 10 दिन का ही है। लेकिन इसी 10 दिन की दवा को माजून जवारिश या इतरीफ़ल बनाकार 40 दिनो का किया गया। मतलब ये कि 10 दिन की दवा आप 40 दिन में खा रहे हैं ।ऐसे में आपको असल ख़ुराक का चौथाई हिस्सा दिया जा रहा है ।इस तरह तो बीमारी कभी भी ठीक नहीं होनेवाली है ।जैसे कि आपकी खुराक 10 रोटी की हो और 2 रोटी ही खाने को दिया जाए । हकीम जालीनुस ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में सिर्फ एक जवारिश "जवारिश जालीनुस" बना पाया । लेकिन आज के हमारे क़ाबिल हकीम हज़रात सैंकड़ों माजून जवारिश वगैरह बना कर रख छोड़े हैं और UNANI कंपनी वाले उन नुसखों को लेकर अजब ग़ज़ब दावे वाली लेवल लगा कर बाजार में बेच रहे हैं। अजीब बात ये है कि दवाओं का मिज़ाज का कोई लिहाज किये बिना ये दवायें हर तरह के मर्ज में हर किसी को इस्तेमाल कराये जाते हैं। जबकी इंसानी मिज़ाज 4 तरह के होते हैं, और दवाओं के मिज़ाज भी 4 ही तरह के होते हैं ।अब अगर गर्म मिज़ाज आदमी को गर्म तासीर वाली दवा ( जो किसी ब्रांड का भी है ) दी जाए तो क्या फ़ायेदा करेगा ? आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कोई भी हकीम ऐसा नहीं मिलता जो ख़ुद से दवा बनाते हो ।यही वजह है की आजकल झोलाछाप हाकीमों की चांदी हो गयी है। और बेचारे भोले-भाले मरीज़ ठगी का शिकार हो रहे हैं ।ऊपर से सभी दवा कंपनी वाले अपने product की पुस्तिका भी देते हैं जिसमे लच्छेदार भाषा में अजब ग़ज़ब बातें दवाओं के बारे में बाताये जाते हैं ।भ्रामक और भड़कीले भाषा का ऐसा प्रयोग होता है कि पूछिये मत।उसे पढ़कर झोलाछाप खुद को माहिर हकीम समझते हैं।और अपनी इन्हीं आधी-अधुरी जानकारी के बल बूते भोली-भाली जनता को लूटने का धन्धा शुरू करके अपनी जेब गर्म करके मालामाल बनते हैं। और इस UNANI चिकित्सा पद्धति को बादनाम करने पर आमादा रहते है| आपका शुमचिन्तक HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 28/09/2020

"لائف سٹائل ڈیزیزیز اور علاج...!"

"آپکو کوٸی بھی لاعلاج بیماری یا دیگر مھلک امراض یا پرانی تکلیف و پریشانی رھتی ھو تو ضرور از ضرور رابطہ کریں۔" "پوسٹ کو سنجیدگی کے ساتھ پڑھیں,پھر آپکو مجھ سے کچھ بھی پوچھ تاچھ کرنے یا تحقیق کرنے کی ضرورت ھی نھیں پڑیگی۔اور نیچے درج پتے پر پہنچ کر اپنا مکمل علاج کرالیں اور پھر خوشحال اور صحتمند زندگی کا لطف اٹھاتے رھیں۔" نیچے لکھی چند بیماریاں جس کو ھم لوگ "LIFESTYLE DISEASE" کے نام سے جانتے ھیں. اسطرح کی سارے امراض کا مکمل علاج %100 ممکن ھے,وہ بھی صرف اور صرف ایک ھی ”یونانی دوا“ سے۔کیونکہ ساری بیماریاں”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے درمیان گڑبڑ کیوجہ سے ھی وجود میں آتی ھیں، مگر جسم کے مختلف اعضاّ کی مناسبت سے اسکا نام دے دیا جاتا ھے۔لیکن سارے امراض ”DIABETESE“ کی بدلی ھوٸی شکل ھی ھے۔ ”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے بیچ میں جب تک تال میل صحیح ھے تب تک ھم صحتمند رہ پاتے ھیں۔یھی ایک سب سے بڑی سچاٸی ھے جسے سینکڑوں سالوں سے ھملوگوں سے چھپاٸی گٸی ھے ان بڑی بڑی ”PHARMACEUTICALS COMPANIES“ کی جانب سے۔تاکہ وہ اپنا بزنس چلا بڑھا سکیں۔ھم لوگوں کو ڈرایا گیا ھے ھمیشہ سے جسے ”DISEASE MONGERING“ یعنی ”خوف کا کاروبار“ کہتے ھیں،اور اسکا فاٸدہ ھم سب کو الو بناکر اُنکے ذریعہ اٹھایا جاتا رھا ھے۔ DIABETESE,HIGH BP, CHOLESTEROL, THYROID, ANY TYPES OF VIRAL DISEASESES:- "DENGUE, H1N1, SWINE FLUE, CHIKANGUNIA, HIV-AIDS" وغیرہ امراض کی ساری سچاٸی اور حقیقت اب دنیا کے سامنے آ چکی ھےجس کو ھملوگ ”LIFESTYLE DISEASE“ کے نام سے جانتے ھیں۔اور اپنی اس بات کو کسی بھی منچ پر سب کے سامنےثابت کر سکتا ھوں کہ تمام امراض پوری طرح سے ھمیشہ کیلٸے ”REVERSE“ ھو جاتی ھیں جس کیلٸے زندگی بھر "ALLOPATHIC MEDICINES" کھلایا جاتا ھے،یعنی تاحیات مریض بناکر رکھا جاتا ھے۔ضرورت ھے صرف اور صرف عوام، جنتا، سماج، سوساٸٹی کے جاگنے- جگانے کی۔ آگے آٸیے! اس عوامی اور سماجی بیداری مھم کا حصہ بنٸے جسے "DISEASE FREE SOCIETY CAMPAIGN" کا نام دیا گیا ھے۔ تمام امراض ایک متعین اوقات مں بالکل REVERSE ھو جاتی ھیں۔ ::::::::::::::::::::::::::::::::: 3-4 MONTHS -DIABETES HIGH B P,HIGH CHOLESTEROL,INTESTINAL DISORDER,THYROID. 4-6 MONTH - ARTHRITIS,KIDNEY DYSFUNCTION, OBESITY (5 kg/ month), LIVER DISORDER,HEART DISEASES. 6 MONTHS - ASTHMA 9 MONTHS - SKIN DISORDER, ADVANCE STAGE OF CANCER. ::::::::::::::::::::::::::::::::: DEAR FRIEND ! جو واحد "UNANI MEDICINE“ میں دیتا ھوں ، اور جو باتیں بتاتا ھوں ، وہ ساری دواٶں سے بالکل الگ ھے۔الگ اس معنیٰ میں کہ تمام امراض کیلٸے یہی "ایک دوا" کافی ھے۔ اسکو ایک مقررہ وقت تک ھی استعمال کرنا پڑتا ھے۔اسکی شروعات کے دن سے ھی ھر قسم کی دواٶں کو کنارے رکھ دینا پڑتا ھے۔ لوگوں کو بالکل عجوبہ سا لگتا ھے، کیونکہ ”ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC“ والوں نے اتنا زیادہ پراپیگنڈہ پھیلایا ھوا ھے، اور ”UNANI MEDICINES“ کے بارے میں لوگوں کے ذہن و دل میں ایسی ایسی غلط فہمیاں ڈال دی گٸیں ھیں کہ واقعی عجوبہ ھی لگتا ھے۔اسی لئے لوگوں کی ساری غلط فہمیاں دور کرنے اور ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کی حقیقت سامنے رکھنے، بتانےاور ان کی سازشوں کا بھانڈہ پھوڑنے میں 3-4 گھنٹے لگ جاتے ھیں۔سارا کچا چٹھہ کھول کر جب تک نہیں بتایا جاٸے تو کسی ایک کو بھی یقین نہیں ھوتا۔ ”DIABETESE“ اور دیگر سبھی قسم کی امراض یعنی”LIFESTYLE DISEASES“ کی”ALLOPATHIC MEDICINES“ پہلے دن سے ہی چھوٹ جاتی ھے، اور پھر ھیشہ کیلٸے۔مستقبل میں پھر کبھی اس کی ضرورت بھی نہیں پڑیگی۔ ان شاء اللہ۔ آج تک لوگوں کو ”PHARMACEUTICAL COMPANIES,ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC HOMEOPATHIC“ والے تو صرف عوام الناس کو بیوقوف ھی بناتی آ رھی ھیں۔ یہ لوگ ان کمپنیوں کے ایجنٹ کے طور پر کام کرتے ھیں جسکے بدلے میں خطیر رقم بطور کمیشن اور انعام ملتا ھے۔مگر اب بس! ”DIABETESE“ یا کسی بھی ”LIFESTYLE DISEASES“ کے ھونے کے اسباب کو نظر انداز کیا جاتا رھا ھےتاکہ یہ، اور اس طرح کی تمام بیماریوں میں زندگی بھر ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کھلاتے رھیں اور ”PERMANENT CUSTOMER“ بنا کر لوٹتے رھیں۔ میں جو صرف "ایک ھی دوا" ھر امراض کے لٸے دیتا ھوں, اسکو استعمال کرتے ھی پہلے روز سے ھی اپنا اثر دکھانے لگتی ھے۔ ”ALLOPATHIC,UNANI,AYURVEDIC اور HOMEOPATHIC MEDICINES“ چھوڑنا پڑتا ھے ھمیشہ کے لٸے۔تین ماہ بعد میری ”UNANI MEDICINES“ بھی بند ھو جاتی ھے، ان شاء اللہ۔ نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔ * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔ * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250 گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی صبح شام استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف 3000/- روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔ * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔ ............................ HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 28/09/2020

"دودھ کا سفید سچ"

1: - موٹاپا کا سفید سچ "اس نوعیت کے سب سے بڑے مطالعے میں 9 سے 14 سال کی عمر میں 12،000 سے زائد بچوں کا تجزیہ کیا گیا۔ اس سے معلوم ہوا ہے کہ وہ جتنا زیادہ دودھ پیتا ہے ، اتنا ہی بھاری ہوتا ہے۔" - آرکائیوز آف پیڈیاٹریکس اینڈ ایڈولیسنٹ میڈیسن (2005) 2: - چھاتی کے کینسر کا سفید سچ۔ "ہارورڈ میڈیکل اسکول کے چھاتی کے کینسر کے خطرے اور غذا کے بارے میں 90،000 قبل مینوپاوزل خواتین میں شامل ایک مطالعہ میں پوری دودھ اور دودھ کی بنی اشیاء سے کینسر کا تعلق دکھایا گیا ہے۔".   - جرنل آف نیشنل کینسر انسٹی ٹیوٹ (2003) 3: - دودھ کی سب سے زیادہ مقدار میں خواتین کا سفید سچ ڈنمارک ، سویڈن اور سوئٹزرلینڈ میں رحم کے کینسر کی شرح سب سے زیادہ ہے۔ ان کے فی کس دودھ کی کھپت بھی دنیا میں سب سے زیادہ ہے۔ امریکن جرنل آف ایپیڈیمولوجی (1989) 4: - سفید سچ بذریعہ ہپپوکریٹس (460-315 B.C.E) "گائے کا دودھ جلد کی خارشوں اور گیسٹرک کی پریشانیوں کا سبب بن سکتا ہے۔" ۔ پیڈیاٹرک الرجی (1951) 5: - سفید سچائی از ایف ڈی اے۔ فوڈ اینڈ ڈرگ ایڈمنسٹریشن نے اپنے ’صحت مند دل کے لئے کھائیے‘ بروشر میں بتایا ہے کہ ، "کچھ چربی دل کے امراض کا زیادہ امکان رکھتے ہیں۔ یہ چربی عام طور پر جانوروں جیسے گوشت ، دودھ ، پنیر اور مکھن کے کھانے میں پائی جاتی ہیں۔" - Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6: - دل کی بیماری کا سفید سچ۔ "7 ممالک سے متعلق ایک تحقیق میں بتایا گیا کہ جیسے جیسے دودھ کی فراہمی میں اضافہ ہوتا گیا ، ویسے ویسے دل کی بیماریوں سے اموات کے واقعات میں بھی اضافہ ہوا۔" انٹرنیشنل جرنل آف کارڈیالوجی (1994) 7: - دودھ سب سے کم استعمال کرنے والے ممالک کا۔ سفید سچ "کم کیلشیئم غذا والے معاشروں اور ڈیری کی کھپت کے صرف تھوڑے حصے میں ہڈیوں کے ٹوٹنے کا خطرہ کم ہوتا ہے۔ چین ، جاپان ، ویتنام اور تھائی لینڈ میں ڈیری مصنوعات غذائی اجزا نہیں ہیں۔ پھر بھی ، ان ممالک کے باشندوں کی ہڈیوں کے ٹوٹنے کی شرح سب سے کم ہے۔ "- امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (2001) 8: - انسولین منحصر ذیابیطس کا سفید سچ (قسم اول) "خاص طور پر بچوں کے ذریعہ گائے کا دودھ زیادہ سے زیادہ کھایا جاتا ہے۔ ذیابیطس کی قسم I کے واقعات زیادہ ہیں۔ مثال کے طور پر ، فن لینڈ میں دنیا میں دودھ کی مصنوعات میں سب سے زیادہ مقدار پائی جاتی ہے۔ دلچسپ بات یہ ہے کہ اس ملک میں انسولین پر منحصر ذیابیطس کی بھی دنیا میں سب سے زیادہ شرح ہے جو ہر 1000 بچوں میں سے 40 پر اثر انداز ہوتی ہے۔ "- امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1990) 9: - آٹزم کا سفید سچ۔ "آٹسٹک بچوں میں خون اور پیشاب دونوں میں کثرت سے افیم پیپٹائڈ ہوتے ہیں۔" - امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1990) 10: - بچوں کے کولائٹس کا سفید سچ۔ "یہ دیکھا گیا تھا کہ کھانے سے الرجک ردعمل 2 سال سے کم عمر کے بچوں میں کولائٹس کا سبب تھا۔ گائے کا دودھ سب سے عام مجرم تھا۔ اسے کھانے سے باہر رکھنے کے بعد ، شیر خوار بچے بالکل صحت یاب ہو گئے۔" - بچپن میں امراض کے محفوظ شدہ دستاویزات (1984) 11: - ہمارے اجداد کا سفید سچ "دودھ سے پہلے والے دور میں رہنے والے ہمارے آباواجداد کی ہڈیوں کا جائزہ لینے کے بعد ، ہمیں مضبوط فریکچر مزاحم ہڈیاں ملی ہیں۔" - ارتقاء حیاتیات ، کولوراڈو اسٹیٹ یونیورسٹی (2002) 12: - ہڈی صحت کا سفید سچ "اس کے کوئی حتمی ثبوت موجود نہیں ہیں کہ گائے کا دودھ انسانوں میں مضبوط ہڈیاں بناتا ہے ، اس کے برعکس؛ اعداد و شمار سے پتہ چلتا ہے کہ اس سے ہڈیوں کے ٹوٹنے کو فروغ ملتا ہے۔" - پیڈیاٹرکس (2005) 13: - برطانوی اشتہاری معیارات اتھارٹی کے ذریعہ سفید سچ "اکتوبر 2005 میں ، برطانوی اشتہاری معیارات اتھارٹی نے نیسلے ہیلتھ نیوٹریشن کو برطانیہ میں اپنے اشتہارات واپس لینے پر مجبور کیا ، جس میں کہا گیا تھا کہ دودھ" صحت مند ہڈیوں کے لئے ضروری ہے۔ " - یوکے ایڈورٹائزنگ اسٹینڈرڈ اتھارٹی (13 اکتوبر ، 2005) 14: - امریکی حکومت کی طرف سے سفید سچ نے سائنسی پینل کی رپورٹ مقرر کی "دودھ کو اسپورٹس ڈرنک کے طور پر نہیں سمجھا جاسکتا ، خاص طور پر آسٹیوپوروسس کی روک تھام نہیں کرتا ہے ، اور یہ امراض قلب اور کینسر میں بھی کردار ادا کرسکتا ہے۔" فیملی پریکٹس نیوز (5 دسمبر ، 2001) 15: - سوئس وفاقی وزارت صحت کی طرف سے سفید سچ "دودھ کی صنعت میڈیکل ثبوت فراہم کرنے میں ناکام رہی ہے جس میں یہ دعویٰ کیا جاتا ہے کہ ، دودھ میں آسٹیوپوروسس کے خلاف روک تھام کے اثرات ہیں۔" اسپرنگ ، ڈاکٹروں کی ذمہ داری کے لئے کمیٹی (2001) 16: - دودھ کے بارے میں سفید سچائی سب سے بڑا کبھی کا مطالعہ "ہارورڈ یونیورسٹی میں پچھتر ہزار خواتین پر کی جانے والی تحقیق سے یہ بات سامنے آئی ہے کہ دودھ پینے والوں میں سب سے زیادہ ہڈیوں کے فریکچر ہونے کا خطرہ ان لوگوں کے مقابلے میں ہوتا ہے جو بہت کم پیتے ہیں یا دودھ نہیں پیتے ہیں۔" - 12 سالہ امکانی مطالعہ امریکی جرنل آف پبلک ہیلتھ (1997) ) 17: - بانجھ پن کا سفید سچ "گائے کے دودھ کے استعمال اور خواتین میں بانجھ پن کے مابین ایک مستقل ارتباط پایا جاتا ہے۔ محققین کو خاص طور پر پتہ چلا ہے کہ جن ممالک میں سب سے زیادہ دودھ کی مصنوعات استعمال کی جارہی ہیں ان میں بانجھ پن کی شرح بہت زیادہ ہے ، اور زندگی میں پہلے کی صورتحال کے ساتھ ہی۔ " امریکن جرنل آف ایپیڈیمولوجی (2005) 18: - ڈیری گائے کے ذبح کا سفید سچ "ماسٹائٹس یا گائے کے آوزار کا انفیکشن ڈیری گائے کے پہلے سے پختہ ذبح کی بنیادی وجہ ہے ، اور موت کا دوسرا عام سبب ہے۔" -یو ایس ڈی اے (اگست ، 2004) 19: - ہڈی صحت کا سفید سچ "50 مطالعات کا تجزیہ ، جس پر امریکی ڈیری انٹیک کی سفارش پر مبنی ہے۔ ڈیری یا غذائی کیلشیم کی مقدار اور ہڈیوں کی صحت کے پیمائش کے مابین کوئی تعلق نہیں دکھاتا ہے۔" - کارنیل یونیورسٹی ، پیڈیاٹریکس (2005) 20: - دودھ پروپیگنڈا کا سفید سچ "ڈیری انڈسٹری نے دودھ کی روزانہ تین سے چار پیش کرنے کی سفارش پر لبیک کہا ، لہذا ، 2005 میں امریکی صحت اور انسانی خدمات نے ایک دن میں 50 فیصد سے 3 سرونگ (SERVING)تک سفارش کی تھی۔ وال وال اسٹریٹ جرنل (30 اگست ، 2004) 21: - کیلشیم سپلیمنٹس کا سفید سچ “کیلشیم ہڈیوں کی صحت کے لئے ضروری متعدد غذائی اجزاء میں سے ایک ہے۔ خود میں غذائیت یا اضافی کیلشیم کی کثرت نے ہڈیوں کی کثافت یا ہڈیوں کے ٹوٹنے سے حفاظت کی یقین دہانی نہیں کی ہے۔ "- ہڈی (1990) 22: - ذیابیطس کی قسم I کا سفید سچ "نوعمروں میں ذیابیطس کی قسم I اور ہڈیوں کی بیماری کی بڑی وجہ روزانہ دودھ کی مقدار ہوتی ہے۔" - جرنل آف دی امریکن اکیڈمی آف ڈرمیٹولوجی (2007) 23: - مائگرین کا سفید سچ "اولیگوانٹیجینک ڈائیٹ ٹریٹمنٹ کے دوہرے اندھے کنٹرول شدہ مقدمے کی سماعت سے یہ نتیجہ اخذ کیا گیا ہے کہ ، روزانہ ڈیری کی مقدار میں کھانے سے الرجی کا نتیجہ فوڈ الرجی کا ہے۔" لانسیٹ (5 جولائی ، 1980) 24: - بچوں میں الرجی کا سفید سچ "گائے کا دودھ اور اس سے تیار کردہ مصنوعات ، فوڈ الرجیوں میں سے ایک سب سے عام چیز ہے۔ خاص طور پر بچوں کے لئے یہ سچ ہے-" غذائیت کا جائزہ (1984) 25: - پروسٹیٹ کینسر کا سفید سچ "ڈیری پروڈکٹ اور پروسٹیٹ کینسر کے مابین ایسوسی ایشن پروسٹیٹ کینسر کے لئے مستقل غذائی پیش گوئوں میں سے ایک ہے۔" - وبائی امراضیات جائزہ (2001) 26: - پارکنسنز کی بیماری کا سفید سچ "ہارورڈ اسکول آف پبلک ہیلتھ محققین نے پایا ہے کہ ، ڈیری پروٹین کے ساتھ ساتھ ، جو لوگ ڈیری سے لییکٹوز ، کیلشیم اور وٹامن ڈی پیتے تھے ، ان میں مردوں کی نسبت پارکنسن کا مرض بڑھنے کا خطرہ 50 فیصد سے 80 فیصد زیادہ ہوتا ہے ، جنھوں نے ان غذائی اجزاء کی کم مقدار استعمال کی۔ " . "- اعصابی علوم (2003) 27: - حمل کا سفید سچ "حمل کے دوران گائے کے دودھ پر مبنی فارمولا اور دودھ کی دیگر مصنوعات سے بچنے سے بچوں میں ذیابیطس ، کان میں انفیکشن ، جلد کی جلدی ، کولک اور آئرن کی کمی کا خطرہ کم ہوسکتا ہے۔"۔ پیڈیاٹرک ریسرچ (1993) 28: - ‘روزانہ 2 گلاس دودھ’ کا سفید سچ "ان مردوں کے مقابلے میں جو دودھ نہیں پیتا ، ان مردوں کے مقابلے میں جو روزانہ 2 گلاس سے زیادہ کھاتے ہیں ، مؤخر الذکر کو پارکنسن کی بیماری کے دوبار واقعات ہوتے ہیں۔" نیورولوجی (2005) 29: - حیض کے درد کا سفید سچ عالمی شہرت یافتہ ماہر امراض چشم اور بیچنے والے مصنف ڈاکٹر کرسٹیئین نارتوپ نے متنبہ کیا ہے کہ ، "ماہواری کے درد کے علاوہ ، گائے کے دودھ کا استعمال بار بار اندام نہانی ، فائبرائڈس اور اینڈومیٹریوسیس کے درد میں اضافہ سے ہوتا ہے۔" - خواتین کا جسم ، خواتین کی حکمت (1994) 30: - دماغ کی خرابی کا سفید سچ "گائے کے دودھ کے نمونے اور نوزائیدہ فارمولے میں خطرناک طور پر اعلی سطح کی ایلومینیم پائی گئی ہے۔" جرنل آف پیڈیاٹرک گیسٹررو - انٹریولوجی اینڈ نیوٹریشن (1999) "ایلومینیم کا زہریلا میموری کی کمی ، ڈیمینشیا ، پارکنسنز کی بیماری اور الزائمر کی بیماری سے وابستہ ہے۔". دماغی تحقیق (2002) 31: - دودھ کے ہر گلاس میں ایک چمچ پیپ (PUS ) کا سفید سچ "یہ جائز ہے کہ فی لیٹر دودھ میں 7،50،000 پس سیلس (خلیات) سے زیادہ نہ ہو۔" - ڈیری سائنس جرنل (2001) 32: - بچوں میں اچانک اموات کا سفید سچ "ویکسینیشن اور گائے کا دودھ اچانک انفینٹ ڈیتھ سنڈروم (SIDS) کی بنیادی وجہ ہے۔" ۔- نیوزی لینڈ میڈیکل جرنل (1991) 33: - نوزائیدہ دمہ کا سفید سچ "دمہ کے شکار بچوں کی ایک قابل ذکر تعداد نے گائے کے دودھ سے ہونے والی الرجی کے لئے بھی مثبت جانچ کی۔ چھ ماہ یا اس سے کم عمر کے شیر خوار ، گائے کا دودھ انکے کھانے سے ختم ہونے کے بعد علامات سے راحت محسوس کرتے ہیں۔"   الرجی کے اینالس (1975) 34: - ڈائی آکسنز اور جگر / اعصابی نظام کے نقصان کا سفید سچ "صرف دودھ کی مصنوعات ہی بالغوں میں 30 فیصد ڈائی آکسین اور بچوں میں 50 فیصد نمائش کرتی ہیں۔" گرین گائیڈ (جولائی / اگست 2004) اعصابی نظام اور جگر کو نقصان پہنچانے کے نتیجے میں ڈائی آکسنز دکھائے گئے ہیں۔ ڈائی آکسن ایکشن سمٹ (2000) 35: - آنتوں سے خون بہنے کا سفید سچ "گائے کے دودھ کی وجہ سے معدے میں آنتوں میں خون کی کمی شیر خوار بچوں میں بہت عام ہے۔" - پیڈیاٹرکس کا جرنل (1974) 36: - کیلشیم سپلیمنٹس کا سفید سچ “کیلشیم سپلیمنٹس مدافعتی نظام میں سمجھوتہ کرسکتے ہیں۔ چونکہ میگنیشیم مدافعتی خلیوں کی نشوونما اور مناسب کام میں اہم کردار ادا کرتا ہے ، لہذا کیلشیم کی زیادتی سے میگنیشیم آئنوں کو بے گھر کردیا جاتا ہے ، اور ایسا کرنے سے سفید خون کے خلیات جیسے اہم مدافعتی عوامل کی افعال کو نقصان پہنچتا ہے۔" جرنل آف امریکن ڈائیٹیکس ایسوسی ایشن (1996) 37: - لوہے کی کمی کا سفید سچ "رجعت کے بعد کی خواتین میں آئرن کی برقراری میں ٪45 کی کمی واقع ہوئی ہے ، جنھیں 500 ملی گرام تک ملی ۔" - امریکی جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1991) 38: - ہڈی کے نقصان کا سفید سچ "وہ خواتین جنہوں نے جانوروں کے ذرائع سے زیادہ تر غذائی پروٹین لیا ، ان میں ہڈیوں کے گرنے کے 3 گنا زیادہ امکان اور ہپ فریکچر کے 3.7 گنا زیادہ امکانات ہیں ، ان خواتین کے مقابلے میں جنہوں نے سب سے زیادہ پروٹین سبزیوں کے ذرائع سے حاصل کی ہیں۔" امریکی جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (2001) 39: - بہتر چینی کی سفید سچ "بہتر چینی کیلشیم جذب میں مداخلت کرتی ہے ، اور اس طرح آسٹیوپوروسس کا خطرہ بڑھ جاتا ہے۔" - جرنل آف نیوٹریشن (1987) 40: - گائے پر ظلم کا سفید سچ ایک جدید / صنعتی ڈیری فارم میں ، الیکٹرانک دودھ ڈالنے والی مشین کے ذریعہ دن میں تین بار دودھ نکالا جاتا ہے۔ مشین کی طرف سے آوارہ وولٹیج کبھی کبھار گائے کو اس عمل میں ہلکا دیتی ہے جس سے خوف ، گھبراہٹ اور بعض اوقات موت بھی واقع ہوجاتی ہے۔ ڈیری فارم ہر سال سیکڑوں گائوں کو بجلی کے وولٹیج سے بھٹکنے کے لئے کھو دیتا ہے۔ " - واشنگٹن پوسٹ (9 اگست ، 1987) 41: - جانوروں پر ظلم کا سفید سچ "دودھ کے کاشت کار گائے کی دم کو گود میں رکھتے ہیں (بے ہوشی کے بغیر دم کا جوڑا سپر گرم کینچی کا جوڑا استعمال کریں) کیونکہ انہیں یقین ہے کہ جب جانور اس کی گندی منزل پر لیٹ جاتا ہے تو اس کی لمبائی کی دم خارج اور پیشاب میں گندی ہوجاتی ہے۔ گائے کا چھوٹا بچہ ممکنہ طور پر ماسٹائٹس کا باعث بنتا ہے۔ " - ڈیری سائنس جرنل (2001) 42: - خوراک کا اہرام کا سفید سچ "یو ایس ڈی اے اور محکمہ صحت اور انسانی خدمات (ایچ ایچ ایس) نے باقی دنیا کے لئے" دی فوڈ اہرام "شائع کیا ہے۔ فوڈ پرامڈ کو 2 وجوہات کی بناء پر شبہات کی نگاہ سے دیکھا جاسکتا ہے: 1. مشاورتی بورڈ کے 11 ممبروں میں سے 6 کو ڈیری انڈسٹری کے ساتھ مالی تعلقات تھے! ”2. یو ایس ڈی اے کا بنیادی مقصد صحت مند کھانے کی ترغیب دینا نہیں ، بلکہ امریکی زرعی / دودھ کی مصنوعات کو فروغ دینا ہے۔" - نیو یارک ٹائمز (7 ستمبر ، 2004) 43: - کیلشیم جذب کا سفید سچ "انسان گائے کے دودھ سے (32٪) سبزیوں سے زیادہ فیصد (٪63) کیلشیم جذب کرسکتے ہیں۔" - امریکن جرنل آف کلینیکل نیوٹریشن (1999) 44: - دودھ کی آلودگی کا سفید سچ گائے کے ہارمونز ، اینٹی بائیوٹکس اور دیگر منشیات کی نمائش کی وجہ سے ایک گلاس دودھ میں بار بار آلودگی پائی جاتی ہے۔ ان میں سے کچھ خون کی بیماریوں ، کینسر اور انسانوں میں اموات سے منسلک ہیں۔" -ایف ڈی اے نوٹس ، ایسوسی ایٹڈ پریس (4 مارچ ، 2003) 45: - گائے کے دودھ پروٹین کا سفید سچ "گائے کے دودھ میں کم از کم 30 پروٹین ہوتے ہیں جو الرجک ردعمل کا اظہار کرسکتے ہیں۔ سب سے عام میں کیسین ، la-لیکٹاگلوبلین (BLG) ، la-lactalbodyin (ALA) ، بوائین- گلوبلین (BGG) ، اور بوائین سیرم البومین (BSA) شامل ہیں۔" - الرجی کے اینالسس (1984) 46: - دودھ کی الرجی کا سفید سچ "دودھ سے متعلق الرجی کی علامات میں جلد کی جلدی ، چھتے ، سوجن ، گھرگھراہٹ ، بھیڑ ، اسہال ، قبض ، کان میں درد ، سر درد ، جلد کی رکاوٹ ، مشترکہ سوجن ، دمہ ، السرسی کولائٹس ، درد ، دائمی تھکاوٹ ، آنتوں میں خون بہنا اور موت شامل ہیں۔" - الرجی (1996) ) 47: - دل کی بیماریوں کو تبدیل کرنے کا سفید سچ۔ "ڈبلیو ایچ او نے تحقیقات کے مقدمے کی مالی اعانت فراہم کی ،" منیکا پروجیکٹ "نے بتایا کہ ،" دودھ کی کھپت میں ، اوپر یا نیچے ، چار سے سات سال بعد ، کورونری اموات میں درست تبدیلی کی پیش گوئی کی گئی ہے۔ "- لانسیٹ (1999) 48: - ایتھروسکلروسیس کا سفید سچ۔ "بوائن زانتائن آکسیڈیس ، دودھ میں موجود ایک انزائم ، انسانی آنتوں کے ذریعے جذب ہوکر خون کے بہاؤ میں داخل ہوسکتی ہے ، جہاں یہ ایٹروسکلروٹک (دمنی سے رکاوٹ) کے گھاووں کی نشوونما کو فروغ دے سکتا ہے۔" - کلینیکل ریسرچ (1976) 49: - دودھ کا سب سے زیادہ استعمال کرنے والے ممالک کا سفید سچ "دنیا میں گائے کے دودھ ، دودھ کی مصنوعات اور کیلشیم آسٹریلیا ، نیوزی لینڈ ، شمالی امریکہ اور مغربی یورپ کے سب سے زیادہ صارفین کو بھی ہڈیوں کے ٹوٹنے کا سب سے زیادہ خطرہ ہے۔" امریکی جریدہ برائے کلینیکل غذائیت (2003) 50:-ڈاکٹروں کے درمیان غذائیت کی تعلیم کا سفید سچ "تمام دائمی بیماریوں میں سے 70 root کی جڑیں ہمارے ذریعہ کی جانے والی غذا کے انتخاب میں ہوتی ہیں ، اس کے باوجود ، طبی تعلیم کے کم از کم 5 سالوں میں زیادہ تر معالج صرف 2 گھنٹے (بہترین میں) غذائیت کی تعلیم حاصل کرتے ہیں۔"۔ غذائیت اور صحت ڈی ایچ ایچ ایس (پی ایچ ایس) اشاعت (21 جولائی ، 1999) کے بارے میں سرجن جنرل کی رپورٹ 51: - قومی تغذیہ پالیسی کا سفید سچ "ہماری قومی غذائی پالیسیاں اور ادب ، جیسا کہ اسکول میں پڑھایا جاتا ہے ، منافع خور دودھ کی صنعت سے بہت متاثر ہوتے ہیں۔ جیسا کہ شائع ہونے والی رپورٹ سے واضح ہے۔ " غذائیت اور صحت نیوز بیورو (17 جنوری ، 2002) 52: - قبض کا سفید سچ "بہت سارے مطالعات نے گائے کے دودھ کی کھپت اور قبض کے درمیان رشتہ قائم کیا ہے ، اور جب ناقص دودھ کو غذا سے ہٹا دیا جاتا ہے تو قابل ذکر بہتری آتی ہے۔" - نیو انگلینڈ جرنل آف میڈیسن (1998) 53: - ایک سے زیادہ سکلیروسیس کا سفید سچ "27 ممالک کے سروے میں یہ بات سامنے آئی ہے کہ جیسے ہی آبادی میں گائے کے دودھ کی مقدار میں اضافہ ہوتا ہے۔ اسی طرح ایک سے زیادہ سکلیروسیس کا پھیلاؤ بھی ہوا۔ " - نیورو - ایپیڈیمولوجی (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons (BU) UNANI PHYSICIAN



Last updated date 28/09/2020

"दूध का सफेद सच"

सावधान, होशियार!.........! अब होशियार हो जाइए और दूध पीना बंद कीजिए, ख़ासकर बच्चों को दूध का सेवन कराने से मना कीजिए। जिस दूध को हमलोग अमृत समझकर लगातार सेवन करते आ रहे हैं वो कितना ज़हरीला है, ये जानने के लिए मैं ने विभिन्न देशों के रिसर्च को आपके सामने पेश करने की कोशिश की है। कृपया ध्यान से पढ़ें:- 1: - मोटापा का सफेद सच "अपनी तरह के सबसे बड़े अध्ययन में 9 से 14. आयु वर्ग के 12,000 से अधिक बच्चों का विश्लेषण किया गया। यह पाया गया कि जितना अधिक दूध वे पीते थे, वे उतने ही अधिक मोटे थे।" ( बाल चिकित्सा और किशोर चिकित्सा के अभिलेखागार (2005) 2: - स्तन कैंसर का सफेद सच "90,000 पूर्व-रजोनिवृत्त महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम और आहार पर हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन ने पूरे दूध और दूध उत्पादों के लिए एक कैंसर लिंक दिखाया।"   (द जर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (2003) 3: - दूध का अधिक मात्रा में सेवन करने वाली महिलाओं का सफेद सच “डेनमार्क, स्वीडन और स्विट्जरलैंड में डिम्बग्रंथि के कैंसर की दर सबसे अधिक है। उनकी प्रति व्यक्ति दूध की खपत भी दुनिया में सबसे अधिक है। ” -अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी (1989) 4: - हिप्पोक्रेट्स द्वारा सफेद सच (460-315 ई.पू.) "गाय के दूध से त्वचा पर चकत्ते और गैस्ट्रिक की समस्या हो सकती है।" - बाल चिकित्सा एलर्जी (1951) 5: - FDA द्वारा व्हाइट ट्रुथ फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अपने ईटिंग फॉर हेल्दी हार्ट ’ब्रोशर में कहा है कि,“ कुछ वसा दिल की बीमारियों का कारण बनते हैं; ये वसा आमतौर पर जानवरों के मांस, दूध, पनीर और मक्खन जैसे भोजन में पाए जाते हैं। " - Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6: - हृदय रोग का सफेद सच "7 देशों से जुड़े एक अध्ययन से पता चला है कि जैसे-जैसे दूध की आपूर्ति बढ़ती गई, वैसे-वैसे दिल की बीमारियों से मौतें भी होती गईं।" कार्डियोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल (1994) 7: - सबसे कम दूध की खपत वाले देशों का सफेद सच “कम कैल्शियम वाले आहार और डेयरी उपभोग के केवल कुछ अंशों में अस्थि भंग होने का जोखिम कम होता है। डेयरी उत्पाद चीन, जापान, वियतनाम और थाईलैंड में आहार के स्टेपल नहीं हैं। फिर भी, इन देशों के निवासियों में अस्थि भंग की दर सबसे कम है। "- अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2001) 8: - इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज का सफेद सच (टाइप I) “विशेषकर बच्चों द्वारा गाय के दूध का अधिक सेवन किया जाता है; डायबिटीज टाइप I की घटनाएं अधिक हैं। उदाहरण के लिए, फिनलैंड में दुनिया में डेयरी उत्पादों का सबसे अधिक सेवन है। दिलचस्प बात यह है कि देश में दुनिया में हर 1000 बच्चों में से 40 को प्रभावित करने वाले इंसुलिन पर निर्भर मधुमेह की उच्चतम दर भी है। ” - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1990) 9: - आत्मकेंद्रित का सफेद सच "ऑटिस्टिक बच्चों में अक्सर रक्त और मूत्र दोनों में अफीम पेप्टाइड्स का स्तर बहुत अधिक होता है।" - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1990) 10: - शिशु कोलाइटिस का सफेद सच "यह देखा गया कि भोजन के लिए एलर्जी की प्रतिक्रिया 2 वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में कोलाइटिस का कारण थी। गाय का दूध सबसे आम अपराधी था। आहार से बाहर किए जाने के बाद, शिशु पूरी तरह से ठीक हो गए। " - अभिलेखागार बचपन में रोग (1984) 11: - हमारे पूर्वजों का श्वेत सत्य "हमारे पूर्वजों की हड्डियों की जांच करने के बाद, जो दूध से पहले के युग में रहते थे, हमें मजबूत फ्रैक्चर प्रतिरोधी हड्डियां मिलीं।" - विकासवादी जीवविज्ञान विभाग, कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (2002) 12: - अस्थि स्वास्थ्य का सफेद सच “कोई निर्णायक सबूत मौजूद नहीं है कि गाय का दूध मनुष्यों में मजबूत हड्डियों का निर्माण करता है, इसके विपरीत; डेटा से पता चलता है कि यह हड्डी फ्रैक्चर को बढ़ावा देता है। ” - बाल रोग (2005) 13: - ब्रिटिश विज्ञापन मानक प्राधिकरण द्वारा श्वेत सत्य "अक्टूबर 2005 में, ब्रिटिश विज्ञापन मानक प्राधिकरण ने नेस्ले हेल्थ न्यूट्रिशन को यूनाइटेड किंगडम में अपने विज्ञापनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया, जिसमें कहा गया था कि दूध" स्वस्थ हड्डियों के लिए आवश्यक है। " - यूके विज्ञापन मानक प्राधिकरण (13 अक्टूबर, 2005) 14: - अमेरिकी सरकार द्वारा व्हाइट ट्रुथ ने वैज्ञानिक पैनल रिपोर्ट नियुक्त की "दूध को एक स्पोर्ट्स ड्रिंक के रूप में नहीं माना जा सकता है, विशेष रूप से ऑस्टियोपोरोसिस को नहीं रोकता है, और हृदय रोग और कैंसर में भूमिका निभा सकता है।" - फैमिली प्रैक्टिस न्यूज़ (5 दिसंबर, 2001) 15: - स्विस फेडरल हेल्थ मिनिस्ट्री द्वारा व्हाइट ट्रुथ "दूध उद्योग चिकित्सा प्रमाण देने में विफल रहा है जो दावा करता है कि, दूध का ऑस्टियोपोरोसिस के खिलाफ निवारक प्रभाव है।" -सप्रिंग, फिजिशियन कमेटी फॉर रिस्पॉन्सिबल मेडिसिन (2001) 16: - दूध पर सबसे बड़ा सफेद अध्ययन द्वारा सफेद सच "सत्तर आठ हजार महिलाओं पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययन से पता चला है कि, जो लोग सबसे अधिक दूध पीते हैं, वास्तव में उन लोगों की तुलना में हड्डी फ्रैक्चर का अधिक खतरा होता है, जो बहुत कम या कोई दूध नहीं पीते हैं।" - 12 साल के संभावित अध्ययन-अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ (1997) ) 17: - बांझपन का सफेद सच “गाय के दूध की खपत और महिलाओं में बांझपन के बीच एक सुसंगत सहसंबंध देखा जाता है। शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से पाया है कि जिन देशों में सबसे अधिक दूध उत्पादों का सेवन किया जा रहा है, उनमें बांझपन की व्यापकता होती है, जो जीवन में पहले की संभावना है। " - अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी (2005) 18: - डेयरी गायों के वध का सफेद सच "मास्टिटिस या गाय के ऊदबिलाव का संक्रमण डेयरी गायों के पूर्व-वध का प्राथमिक कारण है, और मृत्यु का दूसरा सबसे आम कारण है।" -यूएसडीए (अगस्त, 2004) 19: - अस्थि स्वास्थ्य का सफेद सच “50 अध्ययनों का विश्लेषण, जिस पर अमेरिकी डेयरी सेवन की सिफारिश आधारित है; डेयरी या आहार कैल्शियम के सेवन और हड्डी के स्वास्थ्य को मापने के बीच कोई संबंध नहीं दिखाता है। - कॉर्नेल विश्वविद्यालय, बाल रोग (2005) 20: - दूध प्रचार का सफेद सच "डेयरी उद्योग ने प्रति दिन तीन से चार सर्विंग्स की बढ़ी हुई सिफारिश की पैरवी की, इसलिए 2005 में अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा ने एक दिन में 50% से 3 सर्विंग की सिफारिश की।" -वेल स्ट्रीट जर्नल (30 अगस्त, 2004) 21: - कैल्शियम सप्लीमेंट्स का सफेद सच “कैल्शियम हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कई पोषक तत्वों में से एक है। अपने आप में आहार या पूरक कैल्शियम की एक बहुतायत हड्डी अस्थिभंग से अधिक हड्डियों के घनत्व या सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए नहीं दिखाया गया है। "- हड्डी (1990)) 22: - डायबिटीज टाइप I का सफ़ेद सच "मधुमेह के प्रमुख कारण I और किशोरों में हड्डियों की बीमारी दैनिक डेयरी सेवन है।" - जर्नल ऑफ़ द अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ डर्मेट (2007) 23: - माइग्रेन का सफेद सच "ओलिगोएन्जेनजेनिक डाइट ट्रीटमेंट के एक डबल ब्लाइंड नियंत्रित परीक्षण ने निष्कर्ष निकाला कि, माइग्रेन दैनिक डेयरी सेवन द्वारा प्रमुख रूप से खाद्य एलर्जी का परिणाम है।" लांसेट (5 जुलाई, 1980) 24: - बच्चों के बीच एलर्जी का सफेद सच “गाय का दूध और उससे बने उत्पाद, सबसे आम खाद्य एलर्जी में से एक हैं। यह बच्चों के लिए विशेष रूप से सच है। ” - न्यूट्रिशन रिव्यू (1984) 25: - प्रोस्टेट कैंसर का सफेद सच "डेयरी उत्पादों और प्रोस्टेट कैंसर के बीच संबंध प्रोस्टेट कैंसर के लिए सबसे सुसंगत आहार भविष्यवाणियों में से एक है।" - महामारी विज्ञान समीक्षा (2001) 26: - पार्किंसंस रोग का सफेद सच "हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ रिसर्चर्स ने पाया कि जिन पुरुषों ने डेयरी प्रोटीन के साथ-साथ डेयरी से लैक्टोज, कैल्शियम और विटामिन-डी का सेवन किया, उनमें पार्किंसंस रोग के विकास का 50% से 80% अधिक जोखिम था, उन पुरुषों की तुलना में जिन्होंने इन पोषक तत्वों का कम से कम मात्रा में सेवन किया था। "- एन्यूरल ऑफ़ न्यूरोलॉजी (2003) 27: - गर्भावस्था का सफेद सच "गर्भावस्था के दौरान गाय के दूध आधारित सूत्र और अन्य डेयरी उत्पादों के सेवन से किशोर मधुमेह, कान के संक्रमण, त्वचा पर चकत्ते, शूल और लोहे की कमी के जोखिम को कम किया जा सकता है।" - बाल चिकित्सा अनुसंधान (1993) 28: - प्रति दिन Glass 2 गिलास दूध का सफेद सच "उन पुरुषों की तुलना में जो बिना दूध पीते हैं, उन पुरुषों की तुलना में, जो प्रति दिन 2 गिलास से अधिक का सेवन करते हैं, बाद में पार्किंसंस रोग की घटना दोगुनी थी।" -नियूरोलॉजी (2005) 29: - मासिक धर्म ऐंठन का सफेद सच विश्व प्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ और सबसे ज्यादा बिकने वाले लेखक डॉ। क्रिस्टियन नॉर्थोप का कहना है कि, "मासिक धर्म में ऐंठन के अलावा, गाय के दूध की खपत आवर्तक योनिशोथ, फाइब्रॉएड और एंडोमेट्रियोसिस से बढ़े हुए दर्द के साथ जुड़ी हुई है।" - महिला शरीर, महिला बुद्धि (1994) 30: - मस्तिष्क विकार का सफेद सच "गाय के दूध के नमूने और शिशु फार्मूला में एल्यूमीनियम के खतरनाक उच्च स्तर पाए गए।" -जूरनल ऑफ पीडियाट्रिक गैस्ट्रो-एंटरोलॉजी एंड न्यूट्रिशन (1999) "एल्युमीनियम विषाक्तता स्मृति हानि, मनोभ्रंश, पार्किंसंस रोग और अल्जाइमर रोग से जुड़ी हुई है।" ब्रेन रिसर्च (2002) 31: - दूध के हर गिलास में एक चम्मच मवाद - एक सफ़ेद सच "दूध की प्रति मिलीलीटर 7,50,000 से अधिक मवाद (कोशिकाएं) होना कानूनी नहीं है।" - जर्नल ऑफ़ डेयरी साइंस (2001) 32: - शिशुओं में अचानक मौत का सफेद सच "टीकाकरण और गाय का दूध अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का प्राथमिक कारण है।" - न्यूजीलैंड मेडिकल जर्नल (1991) 33: - शिशु अस्थमा का सफेद सच “गाय के दूध से एलर्जी के लिए अस्थमा के साथ शिशुओं की एक महत्वपूर्ण संख्या भी सकारात्मक है। छह महीने या उससे कम उम्र के शिशुओं को, गाय के दूध को उनके आहार से खत्म करने के बाद लक्षणों से राहत मिलती है। ” एनल्स ऑफ एलर्जी (1975) 34: - डाइऑक्सिन और लिवर / तंत्रिका तंत्र की क्षति का सफेद सच "अकेले डेयरी उत्पाद वयस्कों में डायोक्सिन के 30% और बच्चों में 50% जोखिम के लिए जिम्मेदार हैं।" ग्रीन गाइड (जुलाई / अगस्त 2004) "डाइऑक्सिन को तंत्रिका तंत्र और यकृत की क्षति के परिणामस्वरूप दिखाया गया है।" डाइऑक्सिन एक्शन समिट (2000) 35: - आंतों में रक्तस्राव का सफेद सच "शिशुओं में गाय के दूध से होने वाला गैस्ट्रो-इन्टेस्टिनल ब्लड लॉस काफी आम है।" - जर्नल ऑफ़ पीडियाट्रिक्स (1974) 36: - कैल्शियम सप्लीमेंट्स का सफेद सच “कैल्शियम की खुराक प्रतिरक्षा प्रणाली से समझौता कर सकती है। चूंकि मैग्नीशियम प्रतिरक्षा कोशिकाओं के विकास और समुचित कार्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कैल्शियम की अधिकता मैग्नीशियम आयनों को विस्थापित करती है, और ऐसा करने में महत्वपूर्ण प्रतिरक्षा कारकों जैसे सफेद रक्त कोशिकाओं के कार्य को बाधित करता है। " जर्नल ऑफ़ अमेरिकन डाइटेटिक्स एसोसिएशन (1996) 37: - आयरन की कमी का सफेद सच "रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाओं में लोहे की अवधारण में 45% की कमी आई, जिन्हें 500 मिलीग्राम पूरक दिया गया - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1991) 38: - अस्थि हानि का श्वेत सत्य "जो महिलाएं पशु स्रोतों से सबसे अधिक आहार प्रोटीन प्राप्त करती हैं, उन महिलाओं की तुलना में 3 गुना अधिक और हिप फ्रैक्चर की 3.7 गुना अधिक संभावना होती है, उन महिलाओं की तुलना में जो सब्जी स्रोतों से अपने अधिकांश प्रोटीन प्राप्त करती हैं।" अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2001) 39: - परिष्कृत चीनी का सफेद सच "परिष्कृत चीनी कैल्शियम अवशोषण में हस्तक्षेप करती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।" - जर्नल ऑफ़ न्यूट्रिशन (1987) 40: - गायों पर क्रूरता का सफेद सच “एक आधुनिक / औद्योगिक डेयरी फार्म में, इलेक्ट्रॉनिक दूध देने वाली मशीन द्वारा दिन में तीन बार दूध निकाला जाता है। मशीन से आवारा वोल्टेज कभी-कभी गायों को इस प्रक्रिया में झटका देता है, जिससे डर, घबराहट और कभी-कभी मौत भी हो जाती है। डेयरी फार्म हर साल कई सैकड़ों गायों को बिजली के वोल्टेज से भटका देता है। "- वाशिंगटन पोस्ट (9 अगस्त, 1987) 41: - पशु क्रूरता का सफेद सच "डेयरी किसानों ने गाय की पूंछ को काट दिया (सुपर गर्म कैंची की एक जोड़ी का उपयोग करके संज्ञाहरण के बिना पूंछ को काट दिया) क्योंकि वे मानते हैं कि एक पूरी लंबाई की पूंछ मल और मूत्र में भिगो सकती है जब जानवर अपनी गंदी मंजिल पर लेट जाता है और संक्रमित हो सकता है गाय का मूत्र संभवतः मास्टिटिस के लिए अग्रणी है। "- जर्नल ऑफ़ डेयरी साइंस (2001) 42: - खाद्य पिरामिड का सफेद सच "USDA और स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग (HHS) ने शेष दुनिया के लिए" द फूड पिरामिड "प्रकाशित किया है। खाद्य पिरामिड को 2 कारणों की वजह से संदेह की निगाह से देखा जा सकता है: 1. सलाहकार बोर्ड के 11 सदस्यों में से छह का डेयरी उद्योग के साथ वित्तीय संबंध था! "2. यूएसडीए का प्राथमिक उद्देश्य स्वास्थ्यवर्धक भोजन को प्रोत्साहित करना नहीं है, बल्कि अमेरिकी कृषि / डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देना है। - न्यूयॉर्क टाइम्स (7 वें सितंबर, 2004) 43: - कैल्शियम अवशोषण का सफेद सच "मनुष्य गाय के दूध (32%) की तुलना में सब्जियों से कैल्शियम का अधिक प्रतिशत (63%) अवशोषित कर सकता है।" - अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (1994) 44: - दूध के प्रदूषण का सफेद सच “गाय के हार्मोन, एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाओं के संपर्क में आने के कारण एक गिलास दूध में लगातार संदूषण पाया जाता है। इनमें से कुछ को मनुष्यों में रक्त रोगों, कैंसर और मौतों से जोड़ा गया है। ” -एफडीए नोटिस, एसोसिएटेड प्रेस (4 मार्च, 2003) 45: - गाय के दूध के प्रोटीन का सफेद सच "गाय के दूध में कम से कम 30 प्रोटीन होते हैं जो एक एलर्जी प्रतिक्रिया कर सकते हैं। सबसे आम कैसिइन, β-lactaglobulin (BLG), α-lactalbumin (ALA), गोजातीय glo-globulin (BGG), और गोजातीय सीरम एल्ब्यूमिन (BSA) शामिल हैं। ” - एनल्स ऑफ एलर्जी (1984) 46: - दूध एलर्जी का सफेद सच "दूध एलर्जी के लक्षणों में त्वचा पर चकत्ते, पित्ती, सूजन, घरघराहट, भीड़, दस्त, कब्ज, कान का दर्द, सिर में दर्द, त्वचा में मलिनकिरण, जोड़ों में सूजन, दमा, अल्सरेटिव कोलाइटिस, शूल, पुरानी थकान, आंतों में रक्तस्राव और मृत्यु शामिल हैं।" - एलर्जी (1996) ) 47: - दिल के रोगों को दूर करने का सफेद सच "डब्ल्यूएचओ द्वारा वित्त पोषित अनुसंधान परीक्षण," द मोनिका प्रोजेक्ट "ने बताया कि," दूध की खपत में परिवर्तन, ऊपर या नीचे, चार से सात साल बाद कोरोनरी मौतों में सटीक रूप से अनुमानित परिवर्तन। "- लैंसेट (1999) 48: - एथेरोस्क्लेरोसिस का सफेद सच "गोजातीय एक्सथाइन ऑक्सीडेज, दूध में मौजूद एक एंजाइम, मानव आंत के माध्यम से अवशोषित किया जा सकता है और रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकता है, जहां यह एथेरोस्क्लेरोटिक (धमनी-दबाना) घावों के विकास को बढ़ावा दे सकता है।" - क्लिनिकल रिसर्च (1976) 49: - सबसे ज्यादा दूध की खपत वाले देशों का सफेद सच "गाय के दूध, डेयरी उत्पादों और कैल्शियम-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के दुनिया के उच्चतम उपभोक्ताओं को भी हड्डी फ्रैक्चर का सबसे अधिक खतरा है।" -अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2003) 50: - डॉक्टरों के बीच पोषण शिक्षा का सफेद सच "सभी पुरानी बीमारियों में से 70% हमारे द्वारा किए गए आहार विकल्पों में निहित हैं, फिर भी, चिकित्सा शिक्षा के कम से कम 5 वर्षों में अधिकांश चिकित्सकों को पोषण शिक्षा के केवल 2 घंटे (सबसे अच्छे) प्राप्त होते हैं।" - पोषण और स्वास्थ्य पर सर्जन जनरल की रिपोर्ट DHHS (PHS) प्रकाशन (21 जुलाई, 1999) 51: - राष्ट्रीय पोषण नीति का सफेद सच “हमारी राष्ट्रीय पोषण संबंधी नीतियां और साहित्य, जैसा कि स्कूल में पढ़ाया जाता है, लाभकारी डेयरी उद्योग से अत्यधिक प्रभावित होते हैं; जैसा कि प्रकाशित रिपोर्ट से स्पष्ट है। " - पोषण और स्वास्थ्य समाचार ब्यूरो (17 जनवरी, 2002) 52: - कब्ज का सफेद सच "कई अध्ययनों ने गाय के दूध और कब्ज की खपत के बीच संबंध स्थापित किया है, और जब आक्रामक दूध को आहार से हटा दिया जाता है तो उल्लेखनीय सुधार होता है।"- न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन (1998) 53: - मल्टीपल स्केलेरोसिस का सफेद सच “27 देशों के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि, गाय के दूध के सेवन से जनसंख्या में वृद्धि हुई है; ऐसा कई स्केलेरोसिस का शिकार हुआ। - न्यूरोएपिडेमि योलॉजी (1993) HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES



Last updated date 28/09/2020

विश्व प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों का उद्भव

आदिकाल में मानव की आवश्‍यकता थी अपनी क्षुधा की तृप्‍ती, आदि मानव यहॉ वहॉ फल फूल या जानवरों का कच्‍चा मांस खा कर पेट भर लिया करता था। धीरे-धीरे उसने फल तथा वृक्षों को पहचानना शुरू किया । वह यह समझने लगा कि किस वृक्ष का फल मीठा, कडुआ, कसैला या जहरीला, मादक है। कहने का अर्थ यह कि वह वनस्‍पतियों के गुणधर्मों को पहचानने लगा था । आग से वह डरता था , परन्‍तु जब उसने उसके महत्‍व को समझा तब वह धीर धीरे सभ्‍यता की ओर बढने लगा । उसने समूह में रहना सीखा, पेड़ पौधों के गुणों से परिचित होने से उसका उपयोग करने लगा। किसी भी प्रकार की प्राकृतिक अपदा या बीमारीयों के फैलने को वह दैवी प्रकोप ,या दुष्‍ट आत्‍मा का प्रकोप समझता था ।    आज से कई हज़ार वर्ष पूर्व जब "रोमन सभ्‍यता" का विकास शुरू हुआ। यूरोप के सभी देश अज्ञानता तथा असभ्‍यता के अंधकार में डूंबे हुऐ थे , किसी के बीमार हो जाने पर कई प्रकार से झाड़-फूंक, जादू टोना का सहारा लिया जाता था। उनका मानना था कि यह बीमारी किसी दैवीय शक्ति ,जादू टोना इत्‍यादि के कारण है। झाड़ फूंक की प्रक्रिया बडी ही उपेक्षित एंव बर्बरतापूर्ण थी ,रोगी को मारा पीटा, तथा विभिन्‍न किस्‍म की यातनायें दी जाती थी। उनका मानना था कि किसी देवीय प्रकोप, दुष्‍ट आत्‍मा या भूत प्रेत का प्रकोप रोगी के शरीर में है, जिसे शरीर से भगाना आवश्‍यक है, जो प्रताड़ना दी जा रही है वह रोगी को नहीं, बल्‍की उसके शरीर में निवास कर रही दुष्‍ट आत्‍मा को दी जा रही है। आत्‍माये अच्‍छी एंव दुष्‍ट प्रवृति की होती है। इतने पर भी रोगी यदि ठीक नहीं होता तो उसे असाध्य समझकर छोड़ दिया जाता। संक्रामक या अज्ञात बीमारीयों के फैलने पर रोगग्रस्‍त रोगी को अन्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों से अलग-थलग कर दिया जाता, या कभी-कभी ऐसे व्‍यक्तियों को समय से पहले मार कर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता या उसे जला दिया जाता था,ताकि बीमारी अन्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों में न फैले। पाषाण युग के प्राप्‍त अवशेषों से यह संकेत मिलता है कि उस युग में लोग प्रेत विद्या को अधिक महत्‍व देते थे उपचार हेतु पत्‍थरों के उपकरणों से अप्रेशन इत्‍यादि के भी प्रमाण मिले है ,जो अवैज्ञानिक तथा अत्‍याधिक अपरिष्‍कृत रूप में थे । चीन,मिस्‍त्र,यूनान के प्राचीन ग्रन्‍थों में मिलने वाले प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि वे उस काल में प्रेतों एंव दुष्‍ट आत्‍माओं के प्रभावों को रोग का करण मानते एंव झाड़-फूंक द्वारा उपचार किया करते थे। लगभग 860 ई0 पूर्व यूनान में मानसिक रोगियों के उपचार के लिये प्रार्थना एंव मंत्रोपचार का सहारा लिया जाता था । आधुनिक चिकित्‍सा ऐलौपैथी :- हिपोक्रेटिस (450-460 ई0 पू0) अज्ञानतापूर्ण अंधविश्‍वास के बातावरण में जन्‍में आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान के जनक हिपोक्रेटिस ने रोगियों पर घटित होने वाले देवी देवताओं एंव भूत प्रेतों के प्रभावों को अस्‍वीकार किया तथा इस बात पर जोर दिया कि रोगियों का उपचार ही इसका विकल्‍प है। उस जमाने में उपचार धर्म शास्‍त्रों एंव धर्माचार्यों के हाथों में था। इसका विरोध करना सीधे अर्थों में धर्म का विरोध करना था जिसकी सजा मौत को आमंत्रित करना था। परन्तु मानव हित में किये जाने वाले इन महापुरूषों को मौत का डर नही था। उल्‍लेखनीय है कि हिप्‍पोक्रेटिस की उपचार प्रक्रिया वर्तमान समय में अपरिष्‍कृत होते हुऐ भी उस युग की प्रचलित झाड़-फूंक की पद्धिति की तुलना में अत्‍याधिक विकसित थी, वह शरीर रसों के व्‍यातिक्रम को सभी रोगों का कारण मानता था। उसका मत था कि "जब इन रसों के संयोजन में गड़बड़ी होती है तो विभिन्‍न शारीरिक व मानसिक रोग उत्‍पन्‍न होते है जिसका उपचार आवश्‍यक है।"  हिपोक्रेटिस ही आधुनिक औषधियों व चिकित्‍सा विज्ञान (एलौपैथिक) के जन्‍मदाता माने जाते हैं एलोपैथिक चिकित्‍सा असदृष्‍य विधान पर आधारित चिकित्‍सा थी , इस चिकित्‍सा में रोगी का रोग पूरी तरह से नष्‍ट न होकर ऊपर से दब जाता था, उस समय यूरोपवासियों को इनका उपचार एक चमत्‍कार प्रतीत हुआ, जो अंधविश्‍वास में डूबे हुऐ थे। धीरे-धीरे इस असदृष्‍य विधान का काफी विस्‍तार तथा प्रचार प्रसार होता गया। इसमें औषधि उपचार एंव शल्‍य चिकित्‍सा दोनों शामिल थें ।  हिपोक्रेटिस के बाद इस सम्‍बन्‍ध में जिन जिन दवाओं व उपचार का प्रयोग होता गया उनके गुणों व प्रयोग के बारे में जानकारी लिपिबद्ध होती गयी, जिसने "मेटेरिया मैडिका" का रूप ग्रहण किया। इस चिकित्‍सा विज्ञान ने शवों के चीर फाड़, शाल्य क्रिया में निश्‍चय ही सफलता प्राप्‍त की एंव चिकित्‍सा जगत को बहुमूल्‍य ज्ञान दिया। इस विकास क्रम में कीटाणुओं पर प्रयोग भी हुऐ, "भौतिक कीटाणुओं के कारण ही सारे रोग उत्‍पन्‍न होते हैं।" इस सिद्धान्‍त को मान्‍यता प्राप्‍त होते ही उस समय के सभी एलोपैथिक चिकित्‍सक इन्‍ही किटाणुओं का अघ्‍ययन तथा अनुसंधान करने लग गये, इस चिकित्‍सा पद्धति ने सबसे अधिक उन्‍नती की एंव शासकीय संरक्षण प्राप्‍त होने के कारण विभिन्‍न देशों में इसका पूर्ण विकास हुआ। भारतवर्ष में प्रचलित आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति भी अपनी उन्‍नती के शिखर पर थी। परन्‍तु विदेशी आक्रमणकारी इसके बहुत से ग्रन्‍थों को अपने साथ ले गये। यूनानी चिकित्‍सा प्रणाली बहुत कुछ भारतीय आयुर्वेद के चरक गृन्‍थों से मिलती जुलती चिकित्‍सा थी ।     15 वी शताब्‍दी के अन्‍त तक भूत-प्रेत विद्याओं पर विश्‍वास किया जाता रहा है। मार्टिन लूथर (1483-1546) जैसे व्‍यक्ति भी इन विचारों से ग्रसित थे। 16 वीं तथा 17 वीं शताब्‍दी के आसपास औषधि विज्ञान का विकास हुआ । पैरासेल्‍सस (1493-1541)  15 वीं शताब्‍दी के अन्‍त में मध्‍यकालीन प्रेत विद्या जो धर्मशास्‍त्रों का अभिन्‍न अंग थी, उसके विरोध में आवाज उठाना यानी जीवन को ख़तरे में डालना था, इसके बाबजूद भी कई वैज्ञानिकों, चिन्तकों ने इसके विरूद्ध समय-समय पर आवाज उठाई और दंड तथा उपेक्षाओं का शिकार हुऐ । पैरासेल्‍सस ने भी प्रेत विद्या को अस्‍वीकार किया, एंव उन्‍होने कहा कि शारीरक रोगों का एंव मानसिक रोगों का उपचार न तो धर्म पर आधारित है न ही जादू टोना पर, ऐसे रोगियों का चिकित्‍सकीय उपचार किया जाना चाहिये। स्विजरलैण्ड में जन्‍में इस पैरासेल्‍सस ने शरीर में चुम्‍बकत्‍व के विचारों को प्रतिपादित किया जो आगे चलकर सम्‍मोहन के रूप में विकसित हुई। तथापि वह मानसिक रोगों पर नक्षत्रों के प्रभावों को स्‍वीकार करता था। उसका मत था कि चन्‍द्रमा मस्तिष्‍क पर प्रभाव डालता है। पन्द्रहवीं शताब्‍दी के इस प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने अपनी पुस्‍तक में दो सिद्धान्‍तों को प्रतिपादित किया था:- 1 वनस्‍पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान होती है।  2-समता से समान का निवारण ।  पैरासेल्‍सस के दो सिद्धन्‍तों से दो चिकित्‍सा पद्धतियों का उद्भव :- डॉ0 सर सैमुअल हैनिमैन ने 18 वीं सदी में सन् 1796 ई0 में पैरासैल्‍स के दूसरे सिद्धान्‍त समता से समता का निवारण के आधार पर एक अलग चिकित्‍सा पद्धति को जन्‍म दिया जो (सम: सम शमियते अर्थात सम औषधियों से सम रोगों का निवारण करना ) होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति के नाम से प्रचलित है। वहीं इसके दुसरे सिद्धान्‍त "वनस्पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान होती है।" के सिद्धान्‍त पर डॉ0 काऊन्‍ट सीजर मैटी ने 1865 ई0 मे हैनिमैन की मृत्‍यू के 22 वर्षों बाद इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक नामक चिकित्‍सा विज्ञान का आविष्‍कार किया। इन दोनों चिकित्‍सा पद्धतियों का अलग से वर्णन किया जायेगा । मेस्‍मर (1734-1815 )  मेस्‍मर आस्ट्रिया निवासी बनदाम मनोचिकित्‍सक थे। पर 16 वीं सदी के विचारक पैरासेल्‍सस का उन पर बहुत अधिक प्रभाव पडा था, जिसने मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर नक्षत्रों के प्रभाव को स्‍वीकार किया था उसका मत था कि नक्षत्र शरीर के प्रत्‍येक भाग विशेषकर स्‍नायुमण्‍डल पर विशेष प्रभाव डालते हैं, यह प्रभाव शरीर में सार्वभौमिक चुम्‍बकीय द्रव्य द्वारा डाला जाता है इस द्रव्य की क्रिया में वृद्धि अथवा कमी होने पर आकर्षण शक्ति संयोग लचीलापन, चिड़चिड़ापन तथा विद्युत शक्ति उत्‍पन्‍न होती है। मेस्मर का मत था कि "सभी व्‍यक्तियों में चुम्‍बकीय शक्ति विद्यमान है, जिसका प्रयोग अन्‍य व्‍यक्तियों में चुम्‍बकीय द्रव्‍य के वितरण को प्रभावित करने हेतु किया जा सकता है।" जोहन बेयर:- (1515-1588)  जोहनबेयर एक जर्मन चिकित्‍सक थे एंव आधुनिक मनोविज्ञान के संस्‍थापक कहे जाते है, क्योंकि आप ने मानसिक रोगों के इलाज में विशेष दक्षता प्राप्‍त की थी। चूंकि उस जमाने में उपचार प्रक्रिया एंव खॉस कर मानसिक रोगीयों का इलाज चर्च एंव धर्माचार्यों के द्वारा किया जाता था। इसके विरोध के परिणाम में उनके ग्रन्‍थों के पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह प्रतिबंध 20 वीं सदी तक चला ।   18 वीं शताब्‍दी के आस पास ही शरीर शास्‍त्र , स्नायु शास्‍त्र,रसायन शास्‍त्र तथा भौतिक एंव औषधि विज्ञान ने अत्‍याधिक तेजी से विकास किया। शाल्‍य चिकित्‍सा ने भी अपने पैर जमाना प्रारंभ कर दिया था । हिपोक्रेटिसस की देन आधुनिक चिकित्‍सा (एलोपैथिक) जो असदृष्‍य विधान पर आधारित थी, इसने दिन दूनी रात चौगनी उन्‍नती की। शाल्‍य चिकित्‍सा ,औषधि विज्ञान,सभी पर अनुसंधान एंव परिक्षण हुऐ ,इस आधुनिक चिकित्‍सा पद्धति को "सिस्‍टम आफ मेडिसन" कह जाता था।सर्वप्रथम एलोपैथिक शब्‍द का प्रयोग इस पद्धति के लिये डॉ0 फैडरिक हैनिमैन(होम्‍योपैथिक के जन्‍मदाता) ने किया जो उस जमाने के प्रसिद्ध आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान (एलोपैथिक) के सफल चिकित्‍सक थे । उस जमाने में "लिपजिंग" ही एलापैथिक चिकित्‍सा का एक प्रमुख केन्‍द्र माना जाता था , लेकिन एलोपैथिक चिकित्‍सा का सबसे बडा केन्‍द्र "वियना" था। इस आधुनिक चिकित्‍सा पद्धति जिसे एलोपैथिक चिकित्‍सा के नाम से जाना जाता है, पाश्चात्य देशों में इसे पूर्व से ही शासकीय संरक्षण व मान्‍यता मिल चुकी थी। स्‍वतंत्र भारत में इसे भारतीय आर्युविज्ञान के नाम से भारतीय आर्युविज्ञान अधिनियम 1956 पारित कर इसे 30 दिसम्‍बर 1956 सम्‍पूर्ण भारतवर्ष में लागू किया गया । जिसमें चिकित्‍सकों को चिकित्‍सा कार्य हेतु मान्‍यता तथा इस पैथी की शिक्षा पाठयक्रम के संचालन की प्रक्रियाओं पर विधान बनाकर मान्‍यता प्रदान की गयी । आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति :-  यह चिकित्‍सा पद्धति सर्वप्रथम चिकित्‍सा पद्धति थी, जो आदिकाल से रोग निदान हेतु भारतवर्ष में प्रचलित रही है, इसीलिये कह गया है कि "आयुर्वेद अनादि ज्ञान है ,जिसने सृष्टि की रचना के पूर्व ही बृम्‍हाजी ने स्‍मरण करके लोक कल्‍याण के लिये आयुर्वेद की उत्‍पति की।" इसकी उत्‍पति के तीन रूप है:-  1-सुश्रुत संहिता –भगवान इन्‍द्र से धन्‍वंतरी (दिवोदास काशीराज) ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्‍त किया था शाल्‍यतंत्र तथा अष्‍टॉग का प्रचार हुआ ।  2-चरक संहिता –इन्‍द्र ने भारद्वाज,भारद्वाज से आत्रेय, पुनर्वसु, अग्निवेश, भेड, जतुकर्ण, क्षारपाणी, आदि ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्‍त किया 3- कश्‍यप संहिता –इन्‍द्र से कश्‍यप,वशिष्‍ठ,अत्रि भ्रगु ने आयुर्वेद सीखा        पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से भगवान धनवंतरी बारह रत्‍नों के साथ प्रगट हुये। तब से आयुर्वेद के विद्वानो ने आयुर्वेद का प्रचार प्रसार किया एंव लम्‍बे समय से विद्वान वैद्य इस चिकित्‍सा पद्धति को चिकित्‍सा उपचार हेतु करते आ रहे है । भारतवर्ष में इस चिकित्‍सा पद्धति को शासकीय मान्‍यता से पूर्व अवैज्ञानिक तथा तर्कहीन उपचार कह कर इसकी उपेक्षा की जाती रही, इसके बाद भी आयुर्वेद में आस्‍था रखने वाले विद्वाना वैद्यों ने इसकी शिक्षण संस्‍थाये जारी रखी, और अपनी चिकित्‍सा पद्धति की मान्‍यता हेतु संर्धष करते रहे। सन् 1920 में आल इंडिया कॉग्रेस ने अपने नागपुर अधिवेशन में आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति को शासकीय मान्‍यता देने के सम्‍बन्‍ध में कमेटी गठित की। यूनानी चिकित्‍सा पद्धति प्राचीन आयुर्वेद चिकित्‍सा पर आधारित थी । लार्ड ऐपथिल ने कह था कि आयुर्वेद भारत से अरब फिर वहॉ से यूरोप गया। अरब खलीफाओं ने आयुर्वेद के ग्रन्‍थों का अरबी में अनुवाद कराया, अर्थात आयुर्वेद एंव यूनानी चिकित्‍सा पद्धतियॉ बहुत कुछ मिलती जुलती चिकित्‍सा है।भारत में एलोपैथिक को मान्‍यता पूर्व में प्राप्‍त हो चुकी थी, परन्‍तु आयुर्वेद के मान्‍यता का अहम सवाल शासन के समक्ष कई कमेटियों के बीच धूमता रहा। छात्र और चिकित्‍सक मान्‍यता प्राप्‍ती की प्रतीक्षा में संर्धष करते रहे। 21 दिसम्‍बर 1970 को इसे शासन द्वारा मान्‍यता दी गयी एंव इसका अधिनियम बना जिसमें अष्‍टॉग आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी चि‍कित्‍सा पद्धति एंव प्राकृतिक चिकित्‍सा पद्धति को रखा गया जो भारतीय चिकित्‍सा केन्‍द्रीय परिषद अधिनियम 1970 कहलाता है । जिसके द्वारा आयुर्वेदिक, यूनानी, एंव प्राकृतिक चिकित्‍सा पद्धतियो को अधिनियमित कर उसके संचालन रजिस्‍ट्रेशन इत्‍यादि का दायित्‍व सौपा गया ।      होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति:-  होम्‍योपैथिक का नाम लेते ही मीठी-मीठी शक्‍कर की गोलियों की याद आ जाती है। इस चिकित्‍सा पद्धति के जन्‍मदाता डॉ0 फैरेडिक सैमुअल हैनिमैन (जर्मन) थे। आपने एलोपैथिक से सन् 1779 में एम0डी0 की एंव शासकीय चिकित्‍सक बन कर लोगों की एलोपैथिक से चिकित्‍सा कार्य करते रहे। वे अपने समय के एक सफल एलोपैथिक चिकित्‍सक थे, परन्‍तु उन्‍होने अपने चिकित्‍सा के दौरान एलोपैथिक के दुष्‍परिणामों को देखा, जिसमें कई रोगी, जो रोग है उससे तो ठीक हो जाते हैं परन्‍तु औषधियजन्‍य रोगों की चपेट में आ जाते है और कभी कभी तो यही औषधिजन्‍य रोग उनकी मौत का करण होती थी, उनका मन इस एलोपैथिक चिकित्‍सा से भर गया एंव उन्होंने इस प्रकार की चिकित्‍सा पद्धति से धनोपार्जन के कार्यो को छोड़ दिया। एंव जीवकापार्जन हेतु पुस्‍तकों का अनुवाद कार्य करने लगे चूंकि उन्‍हे कई भाषाओं का ज्ञान था चिकित्‍सा विज्ञान की पुस्‍तकों के अनुवाद करते समय एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका में पढा कि सिनकोना कम्‍पन्‍न ज्‍वर अर्थात ठण्‍ड लग कर आने वाले बुखार को दूर करती है , और इसी के सेवन से कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो जाता है, अर्थात एक ही औषधि से दो प्रकार के विपरीत परिणमों ने उन्‍हे विचार करने पर मजबूर कर दिया, एक ही औषधि के दो विपरीत परिणमों ने एक नई चिकित्‍सा होम्‍योपैथिक के आविष्‍कार का सूत्रपात किया । हैनिमन सहाब ने सिनकोना के परिणामों का परिक्षण करने के उद्धेश्‍य से स्‍वयं सिनकोना का सेवन किया, इससे उन्‍हे कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो गया , और यही औषधि जब कम्‍पन्‍न ज्‍वर से ग्रसित मरीज को दिया गया तो वह ठीक हो गया, बस यही एक ऐसा सूत्र था, जिसने एक नई चिकित्‍सा पद्धति "होम्योपैथिक" का श्री गणेश 1716 ई0 में किया । इसी परिक्षण क्रम में उन्‍होन बहुत सी औषधियों को स्‍वस्‍थ्‍य व्‍याक्तियों को दिया एंव जो लक्षण उत्‍पन्‍न हुऐ उसे लिपिबद्ध करते गये, इस लिपिबद्ध संगृह को "मेटेरिया मेडिका" कह गया। जैसे रोगी में रोग के जैसे लक्षण हो, यदि वैसे ही लक्षण स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों को दवा देने पर उभरते हो, तो वही उस रोगी की दवा होगी , अर्थात "सम से सम की चिकित्‍सा" का प्रथम सिद्धान्‍त का उन्‍होने प्रतिपादन किया एंव इस नई चिकित्‍सा का नाम होम्‍योपैथिक इसी सिद्धान्‍त के आधार पर रखा । होम्‍योपैथी शब्‍द दो शब्‍दों से मिलकर बना है, होमियोज और पैथी , होमियोज ग्रीक भाषा का शब्‍द है जिसका अर्थ है "सदृश या समान" । पैथी का अर्थ विधान या चिकित्‍सा, अर्थात होमियोपैथी से तात्‍पर्य उस उपचार विद्या से है जो सदृश विधान पर आधारित हो, अर्थात होमियोपैथक चिकित्‍सा को "सदृश विधान चिकित्‍सा", "सम से सम की चिकित्‍सा" आदि नामों से भी पुकारा जाता है । होम्‍योपैथिक में किसी रोग का उपचार न कर रोग के लक्षणों का उपचार किया जाता है । हैनिमैन सहाब को प्रथम सूत्र प्राप्‍त हो गया था,  अब इसका दूसरा सूत्र, जो रोग उपचार या रोगी के शरीर में उत्‍पन्‍न लक्षणों को पूरी तरह से शमन कर सकती है। वह औषधि की कैसी मात्रा या कौन सी शक्ति होगी , इसलिये उन्‍होन मूल औषधि को तनुकृत कर शक्तिकरण का सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया । इसमें मूल औषधि की मात्रा को जितना तनुकृत या कम किया जाता है एंव उसमें झटके देने से उसकी  पोटेंशी या शक्ति उतनी अधिक बढती जाती है ।   होम्‍योपैथिक के दो मूल सिद्धान्‍त 1-सम से सम कि चिकित्‍सा का सिद्धान्‍त 2-औधियों के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त  हैनीमैन के इस नये आविष्‍कार का तत्‍कालीन चिकित्‍सकों ने काफी विरोध किया,एंव इस चिकित्‍सा पद्धति को लम्‍बे समय तक अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन उपचार कह कर नकारा जाता रहा। इसके बाद भी इस चिकित्‍सा पद्धति पर विश्‍वास रखने बाले कई चिकित्‍सकों ने इसका अध्‍ययन किया एंव इसकी चिकित्‍सा कार्य एंव शैक्षिणिक संस्‍थाओं का संचालन शासकीय मान्‍यता के अभावों में कई कानूनी दॉवों पेचों के बीच से गुजरते हुऐ उपेक्षाओं का शिकार होते हुऐ करते रहे। 19 वीं शताब्‍दी के मध्‍य भारतवर्ष में होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का आगमन सन 1836 में होनिंग बगैर के माध्‍यम से भारत के पंजाब राज्‍य में हुआ । इस चिकित्‍सा पद्धति का भारत में लाने का श्रेष्‍य महाराजा रंजीत सिंह को जाता है । जन सामान्‍य में इसका प्रचलन ब्रिटिश शासन काल में बंगाल में शुरू हुआ था । भारत में प्रथम चिकित्‍सक डॉ0 एम0 एल0 सरकार थे जिन्होंने कलकत्‍ता विश्‍वविद्यालय से 1883 में एम0 डी0 की थी। भारत में होम्‍योपैथिक के अध्‍ययन की पहली संस्‍था 1880 में कलकत्‍ता में स्‍थापित की गई शासकीय मान्‍यता न मिलने पर भी इसकी उपयोगिता को देखते हुऐ कई विद्धवानों, चिकित्सकों एंव छात्रों ने इसका अध्‍ययन किया । अपने अधिकारों के लिये संधर्ष करते हुऐ दिनांक 26 दिसम्‍बर 1968 को दा इण्डियन मेडिसिन एण्‍ड होम्‍योपैथिक सेन्‍ट्रल कौंसिल बिल पर विचार किया गया एंव यह पाया गया कि आयुर्वेद‍ सिद्ध युनानी में मूलभूत अन्‍तर है। अत: होम्‍योपैथिक का अलग से केन्‍द्रीय बोर्ड बनाना चाहिये होम्‍योपैथिक एडवाइजर कमेटी जिसे भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था। 19 दिसम्‍बर 1973 को केन्‍द्रीय होम्‍योपैथिक परिषद अधिनियम पारित किया गया जिसे सम्‍पूर्ण भार के राज्‍यों पर लागू किया गया। आज होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा परिषद का केन्‍द्रीय बोर्ड एंव प्रत्‍येक राज्‍यों में राज्‍य बोर्ड संचालित है, जो इस चिकित्‍सा पद्धति की शिक्षा का संचालन एंव चिकित्‍सकों का पंजियन कार्य कर रही है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक :-  पैरासेल्‍सस के प्रथम सिद्धान्‍त ‘ सम से सम की चिकित्‍सा ’ पर डॉ0 हैनिमैन सहाब ने होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का आविष्‍कार किया। वहीं, उनकी मृत्‍यु के 22 वर्षो पश्‍चात सन 1865 ई0 में  पैरासेल्‍सस के दूसरे सिद्धान्‍त ‘ वनस्‍पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान ’ होती है। इस दूसरे सिद्धान्‍त पर  इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का आविष्‍कार बोलग्‍ना इटली निवासी  डॉ0 काऊट सीजर मैटी ने किया था । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति के दो सिद्धान्‍त है:-  1-वनस्‍पति जगत में विधुत शक्ति विधमान होती है   2- रस और रक्‍त की समानता एंव शुद्धता    मैटी सहाब ने हानिरहित वनस्‍पतियों की विधुत शक्ति की खोज करते हुऐ 114 वनस्‍पतियों के अर्क को कोहेबेशन प्रक्रिया से निकाल कर 38 मूल औषधियों का निर्माण किया जो मनुष्‍य के रस एंव रक्‍त के दोषों को दूर कर उन्‍हे शुद्ध व सम्‍यावस्‍था करती है , उन्होंने उक्‍त औषधियों के निर्माण में शरीर के अंतरिक अंगों पर कार्य करने वाली औषधियों के समूह का निर्माण किया जिन्हें आपस में मिला कर मिश्रित कम्‍पाऊंउ दवा बनाई गई। इस प्रकार इनकी संख्‍या बढकर कुल 60 हो गयी है।  इसे सुविधा व कार्यो की दृष्टि से निम्‍न समूहो में विभाजित किया जा सकता है। इस विभाजन में मूल औषधियों के साथ मिश्रित किये गये कम्‍पाऊड की संख्‍या भी सम्‍मलित है । 1- स्‍क्रोफोलोसोज :-प्रथम वर्ग में रस पर कार्य करने वाली मेटाबोलिज्म को संतुलित एंव उसके कार्यो को सामान्‍य रूप से संचालित करने वाली एक क्रियामिक औषधिय है जो रस तथा पाचन सम्‍बन्धित अव्‍यावों पर कार्य करती है,औषधियों को रखा जो स्‍क्रोफोलोसोज नाम से जानी जाती है एंव संख्‍या में कुल 13 है । स्‍क्रोफोलोसो लैसेटिबों :- इसमें एक दवा स्‍क्रोफोलोसो लैसेटिबों सम्‍मलित है इसका कार्य कब्‍ज को दूर करना तथा ऑतों की नि:सारण क्रिया को प्रभावित करना है 2- एन्जिओटिकोज :- दूसरे वर्ग में रक्‍त पर कार्य करने वाली ,  औषधियों को रखा जो एन्जिओटिकोज के नाम से जानी जाती है इस समूह में कुल 5 औषधियॉ है । 3- लिन्‍फैटिकोज :-तीसरे वर्ग में रक्‍त एंव रक्‍त दोनो पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा गया जो लिन्‍फैटिकोज नाम से जानी जाती है इस समूह में 2 औषधियॉ है 4- कैन्‍सेरोसोज:- चौथे वर्ग में शरीर पर कार्य करने वाले अवयवों तथा सैल्‍स एंव टिश्‍यूज की बरबादी एंव उनकी अनियमिता से उत्‍पन्‍न होने वाले रोगों पर कार्य करती है रखा गया एंव यह  कैन्‍सेरोसोज के नाम से जानी जाती है इस समूह में कुल 17 औषधियॉ है । 5- फैब्रि‍फ्यूगोज :- पॉचवे वर्ग में वात संस्‍थान नर्व सिस्‍टम पर कार्य करती है इसे फैब्रि‍फ्यूगोज नाम से जाना जाता है इस समूह में कुल 2 औषधियॉ है । 6- पेट्टोरल्‍स :- छठे वर्ग में श्‍वसन तंत्र पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा गया जो पेट्टोरल्‍स के नाम से जानी जाती है एंव संख्‍या में 9 औषधियॉ है । 7-वेनेरियोज –सातवे वर्ग में वेनेरियोज यह औषधिय सक्ष्‍या में 6 है एंव इसका कार्य रति सम्‍बन्धित ,मूत्रसंस्‍थान ,जननेन्‍दीय पर प्रभावी है जिसका उपयोग रतिजन्‍य रोगो व जन्‍नेद्रीय मूत्र संस्‍थान सम्‍बन्धित पर होता है । 8-वर्मिफ्युगोज :–‘ इस वर्ग में में वर्मिफ्युगोज दवा का रखा गया जो संख्‍या में 2 है इस ग्रुप की दवा का प्रभाव विशेष रूप से आंतों पर है एंव यह शरीर से किटाणुओं व कृमियों को शरीर से खत्‍म कर देती है 9- सिन्‍थैसिस:- इस समूह में सिन्‍थैसिस (एस वाय) है जो एक कम्‍पाऊड मेडिसन है जिसका उपयोग सम्‍पूर्ण शरीर के आगैनन को सुचारूप से संचालित करने हेतु प्रेरित करती है एंव उन्‍हे शक्ति प्रदान करती है इसे एस वाई या सिन्‍थैसिस नाम से जाना जाता है ।     10-इलैक्‍ट्रीसिटी:- इस वर्ग में पॉच इलैक्‍ट्रीसिटी एंव एक तरल औषधिय अकुवा पैरिला पैली (ए0पी0पी) है । इसमें पॉच इलैक्‍ट्रीसिटी एंव एक त्‍वचा जल सम्‍मलित है जो क्रमश: निम्‍नानुसार है । 1-व्‍हाईट इलैक्‍ट्रीसिटी :-इसे सफेद बिजली भी कहते है , इसकी क्रिया ग्रेट सिम्‍पाईटिक नर्व, सोरल फ्लेक्‍स,लधु मस्तिष्‍क तथा वात संस्‍थान के समवेदिक सूत्रों पर है ,इसलिये यह वातज निर्बलता की विशेष औषधिय है ,इसका प्राकृतिक गुण पीडा नाशक,शक्ति प्रदान करने बाली , नींद लाने वाली वातज पीडा को ठीक करने वाली एंव ठंडक पहुचाने वाली है । इसका वाह्रय एंव आंतरिक प्रयोग किया जाता है । 2- ब्‍लू इलैक्‍ट्रीसिटी :-इसे नीली बिजली भी कहते है ,यह रक्‍त प्रकृति के अनुकूल है ,इसका प्रभाव हिद्रय के बांये भाग पर है यह रक्‍त के स्‍त्राव को चाहे वह वाह्रय स्‍थान या अंतरिक अवयव से हो उसे रोक देती है ,नीली बिजली क्‍योकि यह रक्‍त नाडियों का सुकोड देती है इससे रक्‍त स्‍त्राव रूक जाता है । यह लकवा ,मस्तिष्‍क में रक्‍त संचय ,चक्‍कर आना ,खूनी बबासीर , या शरीर से रक्‍त स्‍त्रावों के लिये उपयोगी है ।    3-रेड इलैक्‍ट्रीसिटी:- इसे लाल बिजली भी कहते है, यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा नाशक,बल वर्धक उत्‍तेजक,प्रदाह नाशक, ग्रन्‍थी रोग नाशक है । इसमें रक्‍त की मन्‍द गति को तीब्र करने का विशेष गुण है ।  4-यलो इलैक्‍ट्रीसिटी:- इसे पीली बिजली भी कहते है,यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा नाशक, रक्‍त की कमी एंव ऐढन को दूर करने वाली,  कै को रोकने वाली एंव कृमि नाशक है तथा वात सूत्रों को बल प्रदान करने वाली है । यह औषधिय बल वर्धक है तथा अन्‍य अपनी सजातीय औषधियों के साथ प्रयोग करने पर शरीर से पसीना लाने वाली है । वात सूत्रों ,ऑतों,और मॉस पेशियों पर इसका विशेष प्रभाव है ,मिर्गी,हिस्‍टीरिया,जकडन,पागलपन इत्‍यादि में एंव उष्‍णता को शान्‍त करने के लिये इसका प्रयोग होता है ।   5-ग्रीन इलैक्‍ट्रीसिटी:-इसे हम हरी बिजली भी कह सकते है ,यह रक्‍त प्रकृति वालों के लिये अनुकूल है इसका प्रभाव शिराओं एंव उनकी कोशिकाओं और हिद्रय के आधे दाहिने भाग की बात नाडियों पर है , इसकी क्रिया त्‍वचा ,श्‍लैष्मिककला पर होता है, इसके प्रयोग से किसी भी प्रकार के धॉव, चाहे वे सडनें गलने लगे हो उसमें इसका प्रयोग किया जाता है जैसे कैंसर, गैगरीन,दूषित धॉव बबासीर ,भगन्‍दर के ऊभारों में इसका प्रयोग किया जाता है । मस्‍स्‍ो ,चिट्टे इसके प्रयोग से झड जाते है यह जननेन्द्रिय या मूंत्र मार्ग से पीव निकलने पर अत्‍यन्‍त उपयोगी है । इसके प्रयोग से शरीर के अन्‍दर या बाहर किसी भी स्‍थान पर कैंसर हो जाये तो उसकी पीडा को यह दूर कर देती है । 6-अकुआ पर ला पेली या ए0पी0पी :- इसे त्‍वचा जल के नाम से भी जाना जाता है इसका प्रयोग त्‍वचा को स्निग्‍ध, मुलायम, चिकनाई युक्‍त एंव सुन्‍दर स्‍वस्‍थ्‍य बनाने तथा त्‍वचा के रंग को साफ करने के लिये वाह्रय रूप से (त्‍वचा पर लगाना) उपयोग किया जाता है । इस दवा को ऑखों के चारों तरफ की त्‍वचा पर (ऑखों पर नही) लगाने से ऑखों को शक्ति मिलती है । इसका प्रयोग चहरे व त्‍वचा को चिकना मुलायम साफ चमकदार बनाने में तथा दॉग धब्‍बे झुरियों अथवा मुंहासे,चहरे के ब्‍लैक हैड, खुजली ,छीजन,त्‍वचा के रंग में परिवर्तन आदि में किया जाता है, जो अपने रंगों के अनुसार वनस्पितियों से प्राप्‍त की गई है एंव इनका कार्य रोगों के निवारण में किया जाता है एंव इसके बडे ही आशानुरूप परिणाम प्राप्‍त होते है । इसमें एक त्‍वचा जल है जो त्‍वचा को निखरने एंव त्‍वचा दोषों पर प्रभावी औषधिय है।



Last updated date 20/09/2020

बेरोज़गारी दूर करें.....!

ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU ! -: बेरोज़गारों केलिए सुनहरा अवसर:- HEALTH IN BOX ® यूनानी दवा से 20% - 40% तक आय करने का सुनहरा अवसर आपके सामने है, जो इस प्रकार है:- 20%= 5-9 packet's 25%= 10-19 packet's 30%= 20-49 packet's 40%= 50-100 Packet's (एक पैकेट HEALTH IN BOX ® का मूल्य ₹ 3000/- है।) मैं, हकीम मुहम्मद अबू रिज़वान (जमशेदपुर, झारखंड) 1993 से अपने व्यक्तिगत रूप से चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहा हूँ। मैंने अंग्रेजी दवा और एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है। ये डॉक्टर किसी कसाई और डाकू से कम नहीं हैं। मैं लंबे समय से "DISEASE FREE WORLD" नामक एक अभियान चला रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप इस अभियान में मेरा साथ देंगे और मुझे प्रोत्साहित करेंगे। और अंग्रेजी दवा के घातक प्रभावों से मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड, हार्ट ब्लॉकेज, कैंसर, गठिया और अन्य घातक बीमारियों जैसे LIFESTYLE DISEASES वाले रोगियों की रक्षा के लिए आम जनता की मदद करेंगे। और उन्हें अंग्रेजी दवा से दूर रखने की कोशिश करेंगे। अनुसंधान कार्य लंबे समय से चल रहा है और परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से, केवल एक दवा, "HEALTH IN BOX", से सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करना शुरू कर दिया है। परिणाम उल्लेखनीय है। फिर क्या हुआ, मैं अपने पास आने वाले सभी मरीजों को केवल एक ही दवा देता हूं:- "HEALTH IN BOX ®" महाशय जी! मैंने वो देखा है कि हमारे समाज के अधिकतर लोग अपनी अल्प आय और सीमित संसाधनों के कारण हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए, मैं ने सोचा है कि ऐसे यूवक या बेरोज़गार लोग आगे आएं और मुझसे जूड़ें। ऐसा करके अपनी आय बढ़ाने की कोशिश क्यों न करें। आज भी इलाज इतना आसान है कि मेरी दवा "HEALTH IN BOX" कोई भी आसानी से किसी भी बीमार आदमी का इलाज कर सकता है। तो फिर आप क्यों नहीं? इस मुसीबत की घड़ी में जहां लाखों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, खासकर बेरोजगार युवाओं को, उन्हें आगे बढ़कर मेरी पेशकश को गले लगाने की कोशिश करनी चाहिए। "HEALTH IN BOX" पूरी तरह से यूनानी दवा है। इसकी सभी सामग्रियों में केवल जड़ी-बूटियां हैं। इस दवा का उपयोग सभी उम्र के सभी प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है। नतीजा माशाल्लाह। केवल उन लोगों को जो मेरे बताए सभी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें 100% परिणाम प्राप्त होते हैं। यह वास्तव में किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह किसी भी बीमारी के "कारणों" पर काम करता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सभी बीमारियों का केवल एक ही कारण है, और वह है: - "ग्लूकोज और इंसुलिन के आपसी तालमेल की गड़बड़ी।" "HEALTH IN BOX" सभी प्रकार की जीवन शैली(LIFESTYLE DISEASES) बीमारियाँ जैसे: कैंसर, मधुमेह, हाई बीपी, मोटापा, हार्ट ब्लॉकेज, लीवर, पेट और किडनी की समस्याएँ, डायलिसिस, सोरायसिस, सेक्स समस्याएँ, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड की समस्याएँ, हड्डियाँ और जोड़ों आदि रोगों के लिए लोग अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग जीवन भर करते हैं क्यों कि डॉक्टर यही सलाह देते हैं। HEALTH IN BOX का इस्तेमाल शुरू करते ही अधिकांश रोगों में, इस के परिणाम पहले ही दिन प्राप्त होते हैं। यानी यह दवा पहले दिन से काम करना शुरू कर देती है। अंग्रेज़ी दवा पहले ही दिन बंद हो जाती है और हमेशा केलिए कोई भी रोग रिवर्स हो जाती है। "मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस पर विचार करें।" सेवाभाव से लोगों की भलाई केलिए अवश्य मुझसे जुड़कर अवसर का लाभ उठाएं। लोगों को अंग्रेज़ी दवाओं से और डॉक्टरों से और रोगों से मुक्ति दिलाने में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करें। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons. (BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES + UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND संपर्क करें 9334518872 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website:- https://umrc.co.in



Last updated date 17/09/2020



Last updated date 02/09/2020

Obesity Problem

Obesity (Saman-e- Mufrat) has become a serious public health problem nowadays. Obesity comes from a Latin word ‘obedere’, to devour and in English literature it means very fat. Obesity is the vital nutritional or metabolic disorder where the percentage of fat tissue (adipose tissue) increases disproportionately owing to imbalance of energy intake and energy expenditure. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Obesity Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Obesity Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®.



सेहतमंद लोग

حقیقۃ السمنۃ البیضاء

1: - حقيقة السمنة البيضاء "إن أكبر دراسة من نوعها تحلل أكثر من 12000 طفل تتراوح أعمارهم بين 9 و 14 سنة. ووجدت أنه كلما زاد شربهم من الحليب ، زاد وزنهم." - أرشيف طب الأطفال وطب المراهقين (2005) 2: - الحقيقة البيضاء لسرطان الثدي "أظهرت دراسة من كلية الطب بجامعة هارفارد حول خطر الإصابة بسرطان الثدي والنظام الغذائي بين 90.000 امرأة قبل انقطاع الطمث وجود صلة للسرطان بالحليب الكامل ومنتجات الألبان."   - مجلة المعهد الوطني للسرطان (2003). 3: - الحقيقة البيضاء للمرأة التي تستهلك أعلى كمية من الحليب "الدنمارك والسويد وسويسرا لديها أعلى معدل من سرطان المبيض. كما يعد استهلاك الفرد من الحليب من أعلى المعدلات في العالم ". - المجلة الأمريكية لعلم الأوبئة (1989). 4: - الحقيقة البيضاء بواسطة أبقراط (460-315 قبل الميلاد) "حليب البقر يمكن أن يسبب طفح جلدي ومشاكل في المعدة." - حساسية الأطفال (1951) 5: - الحقيقة البيضاء من قبل ادارة الاغذية والعقاقير ذكرت إدارة الغذاء والدواء في كتيبها "الأكل من أجل صحة القلب" أن "بعض الدهون من المحتمل أن تسبب أمراض القلب. عادة ما توجد هذه الدهون في طعام الحيوانات مثل اللحوم والحليب والجبن والزبدة ". - Fda.gov/opa.com/lowlit/hlyheart.html 6: - الحقيقة البيضاء لأمراض القلب "أظهرت دراسة شملت 7 دول أنه مع نمو إمدادات الألبان ، ازدادت حالات الوفاة بسبب أمراض القلب". المجلة الدولية لأمراض القلب (1994) 7: - الحقيقة البيضاء للبلدان التي لديها أقل استهلاك للحليب "المجتمعات ذات النظام الغذائي المنخفض من الكالسيوم والجزء الوحيد من استهلاك منتجات الألبان لديها مخاطر أقل وانتشار كسور العظام. منتجات الألبان ليست مواد غذائية أساسية في الصين واليابان وفيتنام وتايلاند. ومع ذلك ، فإن سكان هذه البلدان لديهم أدنى معدل لكسور العظام. "- American Journal of Clinical Nutrition (2001) 8: - الحقيقة البيضاء لمرض السكري المعتمد على الأنسولين (النوع الأول) "كلما زاد استهلاك حليب الأبقار خاصة للأطفال ؛ أعلى من حدوث مرض السكري من النوع الأول. على سبيل المثال ، تمتلك فنلندا واحدة من أعلى مدخول من منتجات الألبان في العالم. ومن المثير للاهتمام أن الدولة لديها أيضًا أعلى معدل في العالم لمرض السكري المعتمد على الأنسولين الذي يؤثر على 40 من كل 1000 طفل. "- American Journal of Clinical Nutrition (1990) 9: - الحقيقة البيضاء للتوحد "لدى الأطفال المصابين بالتوحد في كثير من الأحيان مستويات عالية جدًا من الببتيدات الأفيونية في كل من الدم والبول." - American Journal of Clinical Nutrition (1990) 10: - الحقيقة البيضاء لالتهاب القولون الرضع "لوحظ أن رد الفعل التحسسي تجاه الطعام هو سبب التهاب القولون عند الرضع تحت سن 2. كان حليب البقر هو السبب الأكثر شيوعًا. بعد استبعاده من النظام الغذائي ، تعافى الرضع تمامًا ". - أرشيف أمراض الطفولة (1984). 11: - الحقيقة البيضاء لأجدادنا "بعد فحص عظام أسلافنا الذين عاشوا في عصر ما قبل الحليب ، وجدنا عظام قوية مقاومة للكسور." - قسم علم الأحياء التطوري ، جامعة ولاية كولورادو (2002) 12: - الحقيقة البيضاء لصحة العظام "لا يوجد دليل قاطع على أن حليب البقر يبني عظامًا قوية لدى البشر ، على العكس ؛ تشير البيانات إلى أنه يعزز كسر العظام ". - طب الأطفال (2005) 13: - الحقيقة البيضاء من قبل هيئة معايير الإعلان البريطانية "في تشرين الأول (أكتوبر) 2005 ، أجبرت هيئة معايير الإعلان البريطانية شركة نستله للصحة الغذائية على سحب إعلاناتها في المملكة المتحدة ، مشيرة إلى أن الحليب" ضروري للعظام الصحية ". - هيئة المعايير الإعلانية البريطانية (13 أكتوبر 2005) 14: - الحقيقة البيضاء من قبل تقرير لجنة علمية عينته الحكومة الأمريكية "لا يمكن اعتبار الحليب كمشروب رياضي ، ولا يمنع هشاشة العظام على وجه التحديد ، وقد يلعب دورًا في أمراض القلب والسرطان." - أخبار ممارسة الأسرة (5 ديسمبر 2001) 15: - الحقيقة البيضاء من قبل وزارة الصحة الاتحادية السويسرية "فشلت صناعة الحليب في تقديم البراهين الطبية التي تدعي أن الحليب له آثار وقائية ضد هشاشة العظام". - ربيع لجنة الأطباء للطب المسؤول (2001). 16: - الحقيقة البيضاء بأكبر دراسة على الإطلاق عن الحليب "كشفت دراسة جامعة هارفارد على ثمانية وسبعين ألف امرأة ، أن أولئك الذين يشربون الحليب بكثرة هم في الواقع أكثر عرضة لخطر كسر العظام من أولئك الذين يشربون القليل من الحليب أو لا يشربونه على الإطلاق." - دراسة استطلاعية لمدة 12 عامًا - American Journal of Public Health (1997 ) 17: - الحقيقة البيضاء للعقم "لوحظ وجود ارتباط ثابت بين استهلاك حليب البقر والعقم عند النساء. وقد وجد الباحثون على وجه التحديد أن البلدان التي يتم فيها استهلاك معظم منتجات الألبان لديها نسبة انتشار عالية للعقم ، مع حدوث مبكر في الحياة ". - المجلة الأمريكية لعلم الأوبئة (2005) 18: - الحقيقة البيضاء لذبح الأبقار الحلوب "التهاب الضرع أو عدوى ضرع البقر هو السبب الرئيسي لذبح الأبقار قبل النضج ، والسبب الثاني للوفاة." -USDA (أغسطس 2004) 19: - الحقيقة البيضاء لصحة العظام "تحليل 50 دراسة ، تستند إليها توصية تناول الألبان الأمريكية ؛ لا تظهر أي علاقة بين تناول منتجات الألبان أو الكالسيوم الغذائي وقياس صحة العظام ". - جامعة كورنيل طب الأطفال (2005) 20: - الحقيقة البيضاء للدعاية الحليب "ضغطت صناعة الألبان من أجل زيادة التوصية بثلاث إلى أربع حصص من الحليب يوميًا ، لذلك ، في عام 2005 رفعت وزارة الصحة والخدمات الإنسانية الأمريكية التوصية بنسبة 50٪ إلى 3 حصص في اليوم." - وول ستريت جورنال (30 أغسطس 2004) 21: - الحقيقة البيضاء لمكملات الكالسيوم "الكالسيوم هو واحد من العديد من العناصر الغذائية الأساسية لصحة العظام. وفرة من الكالسيوم الغذائي أو التكميلي في حد ذاته لم تثبت أنها تضمن كثافة أكبر للعظام أو الحماية من كسر العظام. - العظام (1990) 22: - الحقيقة البيضاء لمرض السكري من النوع الأول "السبب الرئيسي لمرض السكري من النوع الأول وأمراض العظام بين المراهقين هو تناول الألبان اليومي." - مجلة الأكاديمية الأمريكية للأمراض الجلدية (2007) 23: - الحقيقة البيضاء من الصداع النصفي "توصلت تجربة مزدوجة التعمية للرقابة على علاج النظام الغذائي Oligoantigenic إلى أن الصداع النصفي ناتج عن الحساسية الغذائية بشكل رئيسي عن طريق تناول منتجات الألبان اليومية." لانسيت (5 يوليو 1980) 24: - الحقيقة البيضاء للحساسية بين الأطفال "إن حليب البقر والمنتجات المصنوعة منه ، هي واحدة من أكثر مسببات الحساسية الغذائية شيوعًا. هذا ينطبق بشكل خاص على الأطفال ". - مراجعة التغذية (1984). 25: - الحقيقة البيضاء لسرطان البروستاتا "إن العلاقة بين منتجات الألبان وسرطان البروستاتا هي واحدة من أكثر المؤشرات الغذائية ثباتًا لسرطان البروستاتا." - مراجعات علم الأوبئة (2001) 26: - الحقيقة البيضاء لمرض باركنسون "وجد باحثو كلية الصحة العامة بجامعة هارفارد أن الرجال الذين تناولوا اللاكتوز والكالسيوم وفيتامين د من منتجات الألبان ، إلى جانب بروتين الألبان ، لديهم خطر أعلى بنسبة 50٪ إلى 80٪ من الإصابة بمرض باركنسون ، مقارنة بالرجال الذين استهلكوا أقل كمية من هذه العناصر الغذائية . "- حوليات علم الأعصاب (2003) 27: - الحقيقة البيضاء للحمل "يمكن الحد من خطر الإصابة بداء السكري عند الأطفال ، وعدوى الأذن ، والطفح الجلدي ، ونقص المغص والحديد عن طريق تجنب تركيبة حليب البقر ومنتجات الألبان الأخرى أثناء الحمل." - أبحاث طب الأطفال (1993) 28: - الحقيقة البيضاء "كأسين من الحليب يوميا" "بالمقارنة مع الرجال الذين لا يشربون الحليب ، من الرجال الذين يستهلكون أكثر من كأسين في اليوم ، فإن الأخير كان لديه ضعف معدل الإصابة بمرض باركنسون." - طب الأعصاب (2005) 29: - الحقيقة البيضاء من تقلصات الدورة الشهرية تحذر طبيبة أمراض النساء المشهورة عالمياً والمؤلفة الأكثر مبيعاً الدكتورة كريستيان نورثوب من أنه "بالإضافة إلى تقلصات الدورة الشهرية ، فقد ارتبط استهلاك حليب الأبقار بالتهاب المهبل المتكرر والأورام الليفية وزيادة الألم الناجم عن الانتباذ البطاني الرحمي." - جسد المرأة ، حكمة المرأة (1994) 30: - الحقيقة البيضاء لاضطراب الدماغ "تم العثور على مستويات عالية من الألومنيوم بشكل خطير في عينة حليب البقر وحليب الأطفال." - مجلة أمراض الجهاز الهضمي والتغذية للأطفال (1999). "ارتبط التسمم بالألمنيوم بفقدان الذاكرة والخرف ومرض باركنسون ومرض الزهايمر." أبحاث الدماغ (2002) 31: - ملعقة من القيح في كل كوب من الحليب - حقيقة بيضاء "من القانوني أن لا يكون لديك أكثر من 7،50،000 صديد (خلايا) لكل ملليلتر من الحليب." - Journal of Dairy Science (2001) 32: - الحقيقة البيضاء للوفيات المفاجئة عند الرضع "التطعيم وحليب البقر هما السبب الرئيسي لمتلازمة موت الأطفال المفاجئ (SIDS)". - مجلة نيوزيلاندا الطبية (1991) 33: - الحقيقة البيضاء للربو الرضع "وقد أثبتت نسبة كبيرة من الأطفال المصابين بالربو أيضًا أنهم مصابون بالحساسية تجاه حليب البقر. الرضع الذين يبلغون من العمر ستة أشهر أو أصغر ، عانوا من الأعراض بمجرد التخلص من حليب البقر من وجباتهم الغذائية ".   حوليات الحساسية (1975) 34: - الحقيقة البيضاء للديوكسينات وتلف الكبد / الجهاز العصبي "منتجات الألبان وحدها مسؤولة عن 30٪ من التعرض للديوكسين عند البالغين و 50٪ عند الأطفال." الدليل الأخضر (يوليو / أغسطس 2004) "ثبت أن الديوكسينات تؤدي إلى تلف في الجهاز العصبي وتلف الكبد." قمة عمل الديوكسين (2000) 35: - الحقيقة البيضاء للنزيف المعوي "فقدان الدم المعدي المعوي الناجم عن حليب البقر شائع جداً عند الرضع." - مجلة طب الأطفال (1974). 36: - الحقيقة البيضاء لمكملات الكالسيوم "قد تضر مكملات الكالسيوم بالجهاز المناعي. بما أن المغنيسيوم يلعب دورًا مهمًا في تطوير الخلايا المناعية وعملها بشكل سليم ، فإن الكالسيوم الزائد يحل محل أيونات المغنيسيوم ، وبذلك يضعف وظيفة عوامل المناعة الرئيسية مثل خلايا الدم البيضاء. مجلة جمعية علم التغذية الأمريكية (1996) 37: - الحقيقة البيضاء لنقص الحديد "انخفض احتباس الحديد بنسبة 45٪ في النساء بعد انقطاع الطمث ، اللاتي تم إعطاؤهن 500 ملغ من المكمل - American Journal of Clinical Nutrition (1991) 38: - الحقيقة البيضاء لفقدان العظام "النساء اللائي استمدن معظم البروتينات الغذائية من المصادر الحيوانية ، لديهن فرص أكبر ثلاث مرات لفقدان العظام و 3.7 أضعاف فرص كسر الورك ، مقارنة بالنساء اللواتي حصلن على معظم بروتينهن من مصادر نباتية." المجلة الأمريكية للتغذية الطبية (2001) 39: - الحقيقة البيضاء للسكر المكرر "السكر المكرر يتداخل مع امتصاص الكالسيوم ، وبالتالي يزيد من خطر الإصابة بهشاشة العظام." - مجلة التغذية (1987) 40: - الحقيقة البيضاء من القسوة على الأبقار "في مزرعة الألبان الحديثة / الصناعية ، يتم استخراج الحليب ثلاث مرات في اليوم بواسطة آلة الحلب الإلكترونية. في بعض الأحيان ، يصدم الجهد الشارد من الماكينة الأبقار في العملية ، مما يتسبب في الخوف والذعر وأحيانًا الموت. تفقد مزرعة الألبان عدة مئات من الأبقار كل عام لتضيق التيار الكهربائي ". - واشنطن بوست (9 أغسطس 1987) 41: - الحقيقة البيضاء للقسوة الحيوانية "يزرع مزارعو الألبان ذيل بقرة (قطع الذيل بدون تخدير باستخدام مقص ساخن للغاية) لأنهم يعتقدون أن الذيل الكامل الطول قد يتسخ في البراز والبول عندما يستلقي الحيوان على أرضه القذرة ويمكن أن يصيب ضرع البقر قد يؤدي إلى التهاب الضرع. "- مجلة علوم الألبان (2001) 42: - الحقيقة البيضاء عن الهرم الغذائي نشرت وزارة الزراعة الأمريكية ووزارة الصحة والخدمة الإنسانية "الهرم الغذائي" لبقية العالم. يمكن النظر إلى الهرم الغذائي بريبة بسبب سببين: 1. ستة من أصل 11 من أعضاء المجلس الاستشاري لديهم علاقات مالية مع صناعة الألبان! "2- ليس الهدف الأساسي لوزارة الزراعة الأمريكية هو تشجيع الأكل الصحي ، بل الترويج لمنتجات الزراعة / منتجات الألبان الأمريكية. - نيويورك تايمز (7 سبتمبر 2004) 43: - الحقيقة البيضاء لامتصاص الكالسيوم "يمكن للبشر امتصاص نسبة أكبر من الكالسيوم (63٪) من الخضار أكثر من تلك الموجودة في حليب البقر (32٪)." - American Journal of Clinical Nutrition (1994) 44: - الحقيقة البيضاء عن تلوث الحليب "يوجد تلوث متكرر في كوب من الحليب بسبب تعرض البقر للهرمونات والمضادات الحيوية والأدوية الأخرى. وقد تم ربط بعض هذه الأمراض بأمراض الدم والسرطان والوفيات بين البشر. - إشعار وكالة الغذاء والدواء الأمريكية ، أسوشيتد برس (4 مارس 2003) 45: - الحقيقة البيضاء لبروتين حليب البقر "يحتوي حليب الأبقار على ما لا يقل عن 30 بروتينًا يمكن أن تثير الحساسية. الأكثر شيوعًا تشمل الكازين ، β-lactaglobulin (BLG) ، α-lactalbumin (ALA) ، البقري γ-الجلوبيولين (BGG) ، ألبومين المصل البقري (BSA). " - حوليات الحساسية (1984) 46: - الحقيقة البيضاء لحساسية الحليب "تشمل أعراض حساسية الحليب طفح جلدي ، وخلايا ، وتورم ، وأزيز ، واحتقان ، وإسهال ، وإمساك ، وألم في الأذن ، وصداع ، وتغير لون الجلد ، وتورم المفاصل ، والربو ، والتهاب القولون التقرحي ، والمغص ، والتعب المزمن ، ونزيف الأمعاء والموت." - الحساسية (1996) ) 47: - الحقيقة البيضاء لعكس أمراض القلب ذكرت "تجربة الأبحاث الممولة من منظمة الصحة العالمية" ، "مشروع MONIKA" أن "التغيرات في استهلاك الحليب ، صعودا أو هبوطا ، تنبأت بدقة بالتغيرات في الوفيات التاجية بعد أربع إلى سبع سنوات." - لانسيت (1999) 48: - الحقيقة البيضاء لتصلب الشرايين "يمكن امتصاص إنزيم Bovine Xanthine Oxidase الموجود في اللبن من خلال أمعاء الإنسان ودخول مجرى الدم ، حيث يمكن أن يعزز نمو آفات تصلب الشرايين (انسداد الشرايين)." - بحث سريري (1976) 49: - الحقيقة البيضاء للبلدان ذات أعلى استهلاك للحليب "إن أعلى مستهلكين في العالم لحليب الأبقار ومنتجات الألبان والكالسيوم - أستراليا ونيوزيلندا وأمريكا الشمالية وأوروبا الغربية ، لديهم أيضًا أعلى مخاطر الإصابة بكسور العظام". - المجلة الأمريكية للتغذية العلاجية (2003). 50: - الحقيقة البيضاء للتعليم الغذائي بين الأطباء "70٪ من جميع الأمراض المزمنة متجذرة في الاختيارات الغذائية التي نتخذها ، ومع ذلك ، في 5 سنوات على الأقل من التعليم الطبي ، يتلقى معظم الأطباء ساعتين (في أحسن الأحوال) من التعليم الغذائي". - تقرير الجراح العام عن التغذية والصحة DHHS (PHS) منشور (21 يوليو 1999) 51: - الحقيقة البيضاء لسياسة التغذية الوطنية "إن سياساتنا الغذائية الوطنية والأدبيات ، كما يتم تدريسها في المدرسة ، تتأثر بشكل كبير بصناعة الألبان المربحة. كما يتضح من التقرير المنشور ". - مكتب أخبار التغذية والصحة (17 يناير 2002) 52: - حقيقة الإمساك البيضاء "أثبتت العديد من الدراسات العلاقة بين استهلاك حليب البقر والإمساك ، والتحسن الملحوظ عند إزالة الحليب المخالف من النظام الغذائي". - مجلة نيو إنجلاند للطب (1998). 53: - الحقيقة البيضاء للتصلب المتعدد "في المسح الذي أجري على 27 دولة ، تبين أنه مع ارتفاع عدد السكان من حليب البقر ؛ وكذلك انتشار التصلب المتعدد. "- علم الأوبئة العصبية (1993)



Last updated date 29/09/2020

सेहतमंद लोग

लोग सेहतमंद रहना ही नहीं चाहते इसलिए दवाएँ खाते हुए ज़िन्दा रहने की नाकाम कोशिशें करते रहते हैं।अंग्रेज़ी दवाएँ केमीकल होती हैं,जो किसी भी लिहाज़ से हमारे जिस्म केलिए कभी भी किसी हालत में फायदेमंद हो ही नहीं सकते।इसका रोल हमारे जिस्म के अंदर एक "आतंकवादी" की तरह है।एक आतंकवादी से अच्छाई की उम्मीद करना जागते में सपने देखने जैसा ही है।तो फिर सवाल ये उठता है कि जब हम बीमार हों तो क्या करें? मेरा सवाल ये है कि पुराने ज़माने में भी लोग बीमार हुआ करते थे,तो वो क्या करते थे,कैसे ठीक होते थे।सबसे पहली बात तो ये है कि वो लोग यदा कदा ही बीमार होते थे।लम्बी लम्बी उम्र गुज़ार कर मरते थे।बीमार हुए तो क़ुदरती चीज़ें खा कर ठीक हो जाया करते थे। ईंसान नेचर की पैदावार है,उसे बीमार होने पर नेचुरल चीज़ें ही सेहतमंद कर सकती हैं।दूसरी कोई भी चीज़ नहीं कर सकती हैं।आज के ज़माने में जिधर नज़रें घुमाएँ अजब ग़ज़ब बीमारियाँ और बीमार लोग नज़र आ जाएँगे।खैर खैरियत पूछने पर बड़े ही निराले ढंग से उनका जवाब होता है-"हाँ,सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है,शूगर,बी पी,कोलेस्टोल,विटामिन वग़ैरह की दवायें सुबह शाम लिया करता हूँ और ठीक हूँ।" अब ज़रा अंदाज़ा लगाईए कि इतनी दवायें लेने वाला ईंसान कहता है कि इतनी सारी दवायें पिछले कई सालों से खाते आ रहा है और फिर भी कह रहा है कि "ठीक" हूँ।


सुनने में कैसा अटपटा सा लगता है कि दिन भर में सुबह से शाम तक दवा खकर खुद को कोई ठीक कैसे कह सकता है। अजी जनाब ! दवा खनेवाला तो बीमार हुआ करता है,ठीक कैसे कह रहा है खुद को।ईलाज तो ऐसा हो कि दवा खाईए और ठीक हो जाईए।असल में इन सबके पीछे एक बहुत बड़ी साज़िश चलाई जा रही है ऐलोपैथिक दवा कंपनियों ,डॉक्टरों व लैबोरेट्रियों और अन्य दूसरे ऐसे ही सेहत के दुश्मनों की ओर से।और हमलोग उसके "जाल" में फंसते चले जा रहे हैं।हमें एहसास ही नहीं कि जिसे हम अपना "नेक्स्ट टू गॉड" मान बैठे हैं,और उसके हर आदेश का पालन करना परम् कर्तव्य मानते हैं,वो हमारी सेहत का नहीं बल्कि हमारी बीमारी की रक्षा कर रहा है,ताकि हम हमेशा बीमार रहते हुए "उसकी दवा" का ईस्तेमाल करते रहें,उसका "परमानेंट कस्टमर" बने रहें।और हमें ये एहसास ही नहीं हो रहा है कि वो मेरा "तन" बेकार कर रहा है,मेरी "ज़िन्दगी" भर की "कमाई" को धीरे धीरे खींच रहा है,मुझे "कंगाल" कर रहा है,"कर्ज़दार" बना दिया है।फिर भी हम कहते हैं कि ठीक हैं,रोज़ाना सुबह से शाम तक दवायें खाते हुए जीने की कोशिश कर रहे हैं।भला ये कौन सी ज़िन्दगी है मेरे भाई ! कोई बताएगा मुझे कि इसे कौन सी ज़िन्दगी कहते हैं। रिसर्च कहता है कि "सारी बीमारियों की वजह केवल एक है, तो बीमारी का रुप या नाम चाहे कोई भी हो,उस सब "बीमारी" की "दवा" सिर्फ और सिर्फ "एक" ही है।


मैंने यही किया है कि सभी बीमारियों की एक दवा बना रखी है,और कोई भी किसी भी तरह की बीमारी लेकर आता है तो वही "एक दवा" दे दिया करता हूँ। चौंकिये मत ! हाँ रिज़ल्ट के बारे में जानकर ज़रुर चौंक जाएँगे।तो सुनिए जनाब ! रीज़ल्ट शत् प्रतिशत् मिलता है,वो भी पहले दिन से ही,किसी किसी को केवल तीन हफ्तों में ही।लेकिन तीन महीनों तक उस एक दवा का सेवन करने की सलाह देता हूँ और फिर आज़ादी "बीमारी से भी और दवा से भी।" आप चाहे किसी भी तरह के नये या पुराने और लाईलाज बीमारी के शिकार हों,या डॉक्टर ने जीवन भर दवा खाते रहने की मुहर लगा दी हो तो अब भी वक़्त है,पहली फुर्सत में आकर ज़रुर एकबार मिल लें।अल्लाह ने चाहा तो अपनी बाक़ी की ज़िन्दगी "सेहतमंद" रहकर गुज़ारेंगे। ईन्शा अल्लाह !

Last updated date 23/09/2020

अंग्रेज़ों से आज़ादी - अंग्रेज़ी दवाओं के ग़ुलाम

"1947 से पहले हम अंग्रेज़ों के ग़ुलाम थे,और आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी दवा के ग़ुलाम हो कर रह गये।" ये अतिशीयोक्ति नहीं होगा अगर मैं कहूं कि अंग्रेज़ी दवा ही नहीं,बल्कि किसी भी क़िस्म की दवा (ऐलोपैथ, आयू- र्वेद,यूनानी,होमियोपैथ) के ग़ुलाम मत बनिए।अपने डाक्टर खुद बनिए,न कि बीमार होकर खुद को डाक्टर हकीम या वैध के हवाले कर दीजिए।आपकी ज़िन्दगी एक 4 WHEELER CAR की तरह है।जैसे मान लीजिए कि कार की DRIVING SEAT पर आप खुद बैठे हों, STEARING संभाले हों, आपके बग़ल वाली सीट पर आपका दूसरा दोस्त BREAK लगाता हो, पीछे वाली सीट पर आपका तीसरा दोस्त GEAR संभालता हो, और पिछली सीट पर ही बैठा आपका चौथा दोस्त ACCELERATER संभाल रहा होता है।अंदाज़ा लगाईए, क्या आपकी कार सड़क पर दौड़ पाएगी? ठीक यही होता है जब आप बीमार पड़ते हैं और आप HOSPITAL, DOCTOR, PATH-LAB, MEDICINES के चक्रव्यूह में फंसते हैं और फंसते ही चले जाते हैं। आप समझते हैं कि आपकी ज़िन्दगी की गाड़ी चल रही ही है।बस चल रही है।लेकिन चला कौन रहा है,कभी ग़ौर किया आपने...! और वो भी ऐसे हाथों में अपनी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी की सारी पूंजी सौंप दी हो, जिसे यही नहीं मालूम कि," किसी भी बीमारी का कारण क्या है?


नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|


NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS). * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 23/09/2020

ऐलोपैथिक चिकित्सको - शर्म करो !

ईमानदार डॉक्टर्स से क्षमा सहित प्रार्थना ...! हार्ट अटैक"हो गया ...डॉक्टर कहता है STREPTOKINASE इंजेक्शन ले के आओ 9,000/= का, इंजेक्शन की असली कीमत 700/= से 900/= रु के बीच है,पर उसपर MRP 9,000/= का है,आप क्या करेंगे ? टाइफाइड हो गया ...डॉक्टर ने लिख दिया,कुल 14 MONOCEF लगेंगे! होलसेल दाम 25/= है,अस्पताल का केमिस्ट आपको 53/= में देता है,आप क्या करेंगे? किडनी फेल हो गयी है|हर तीसरे दिन DIALYSIS होता है| DIALYSIS के बाद एक इंजेक्शन लगता है|MRP शायद 1800 रु है


आप सोचते हैं की बाज़ार से होलसेल मार्किट से ले लेता हूँ| पूरा हिन्दुस्तान आप खोज मारते हैं कहीं नहीं मिलता,क्यों?कम्पनी सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर को सप्लाई देती है|इंजेक्शन की असली कीमत 500/= है,पर डॉक्टर अपने अस्पताल में MRP यानि 1,800/= में देता है,आप क्या करेंगे ?? इन्फेक्शन हो गया है ..डॉक्टर ने जो ANTIBIOTIC लिखी,वो 540/= रु का एक पत्ता है,वही Salt किसी दूसरी कम्पनी का 150/= का है,और जेनेरिक 45/= रु का,पर केमिस्ट आपको मना कर देता है,नहीं जेनेरिक हम रखते ही नहीं|दूसरी कम्पनी की देंगे नहीं|वही देंगे जो डॉक्टर साहब ने लिखी है ष|यानी 540/= वाली| आप क्या करेंगे? बाज़ार में ULTRASOUND TEST 750/= रु में होता है|चैरिटेबल डिस्पेंसरी 240/= रु में करती है|750/= में डॉक्टर का कमीशन 300/= रु है| MRI में डॉक्टर का कमीशन Rs. 2,000/= से 3,000/= के बीच है|डॉक्टर और अस्पतालों की ये लूट और ये नंगा नाच बेधड़क,बेखौफ्फ़ देश में चल रहा है ! PHARMACEUTICAL कम्पनियों की LOBBY इतनी मज़बूत है की उसने देश को सीधे-सीधे बंधक बना रखा है|''डॉक्टर्स''और ''दवा कम्पनियां'' मिली हुई हैं|दोनों मिल कर सरकार को ब्लैकमेल करते हैं|


सबसे बडा यक्ष प्रश्न ... मीडिया दिन रात क्या दिखाता है?गड्ढे में गिरा प्रिंस, बिना ड्राईवर की कार,राखी सावंत, BIG BOSS, सास बहू और साज़िश,सावधान, क्राइम रिपोर्ट, CRICKETER की GIRL FRIEND .ये सब दिखाता है, किंतु ... DOCTOR'S, HOSPITAL'S और PHARMACEUTICAL कम्पनियों की ये खुली लूट क्यों नहीं दिखाता? मीडिया नहीं दिखाएगा तो कौन दिखाएगा?मेडिकल LOBBY की दादागिरी कैसे रुकेगी?इस LOBBY ने सरकार को लाचार कर रखा है, MEDIA क्यों चुप है? *20/= मांगने पर ऑटोरिक्शा वाले को तो आप कालर पकड़ कर मारेंगे,डॉक्टर साहब का क्या करेंगे? जागरूकता लाइए और दूसरों को भी जागरूक बनाने में अपना सहयोग दीजिये| THE MAKERS OF IDEAL SOCIETY *एक सोच बदलाव की*

Last updated date 23/09/2020

यूरोप में डिलीवरी के नियम

यूरोप में डिलीवरी के समय उस औरत का पति उसके पास होता है,और कमरे में एक या दो नर्सें होती हैं। किसी तरह की दवा नहीं दी जाती। औरत दर्द की वजह से चीखती-चिल्लाती है मगर नर्स उसे सब्र करने को कहती है और 99% डिलीवरी नार्मल की जाती है। ना डिलीवरी से पहले दवा दी जाती है,और न बाद में।किसी किस्म का टीका भी नहीं लगाया जाता।औरत को हौसला होता है कि उसका पति उसके पास खड़ा हुआ है,उसका हाथ पकड़े हुए है । डिलीवरी के बाद बच्चे की नाल कैंची से उस औरत का पति ही काटता है और बच्चे को औरत के जिस्म से डायरेक्ट बगैर कपड़े के लगाया जाता है,ताकि बच्चा टेंपरेचर मेंटेन कर ले।बच्चे को सिर्फ मां का दूध पिलाने को कहा जाता है,और जच्चा- बच्चा दोनों को किसी किस्म की दवाई नहीं दी जाती,बस एक सुरक्षा टीका जो पैदाइश के फौरन बाद बच्चे को लगाया जाता है। पहले दिन से बच्चे की पैदाइश तक सब फ्री होता है और डिलीवरी के फौरन बाद बच्चे की परवरिश के पैसे मिलने शुरू हो जाते हैं,लेकिन सभी देशों में ऐसा नहीं है। भारत में लेडी डॉक्टर डिलीवरी के लिए आती हैं, और औरत के घरवालों से पहले ही कह देती हैं कि आपकी बेटी बहन या पत्नी की पहली प्रेगनेंसी है, उसका काफी केस खराब है,जान जाने का खतरा है। ऑपरेशन से डिलीवरी करनी पड़ेगी। 99% डॉक्टरों की कोशिश होती है कि बच्चे ऑपरेशन से ही पैदा हो और जान बूझ कर नॉर्मल डिलीवरी को भी ऑपरेशन का रूप बना देते हैं। डिलीवरी से पहले और बाद में झोली भर-भर कर दवाईयां दी जाती हैं। डिलीवरी के वक्त औरत का पति तो दूर की बात है, औरत के माँ या बहन को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं होती और अंदर डॉक्टर और उसकी नर्स क्या करती हैं, यह तो रब ही जाने या तो वह औरत जाने जो अंदर होती है। नॉर्मल डिलीवरी में ₹ 2000/- से ₹ 3000/- और ऑपरेशन वाली डिलीवरी में ₹ 70,000/- से ₹ 80,000/- चले जाते हैं। कौन डॉक्टर भला चाहेगा कि उसके हाथ से यह रुपये जाएं? नॉर्मल डिलीवरी जान बूझ कर नहीं कराई जाती। किस डॉक्टर का दिमाग खराब है कि नॉर्मल की तरफ ले जाए, आखिर उसको भी तो नोट कमाना है, बच्चों को बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ाना है। महंगी गाड़ियां लेनी हैं,बड़ा घर बनाना है। इंसानियत से क्या लेना, इनका तो पैसा ही धर्म होता है और वही इनका सब कुछ होता है। नोट:- इस में कुछ आँकड़े या तथ्य गलत हो सकते, हैं लेकिन मौजूदा दौर में डॉक्टरों से किसी भी तरह की इंसानी हमदर्दी की उम्मीद मात्र कुछ % ही रखी जा सकती है। आप बहुत से केसेज़ देखते होंगे, झेलते होंगे । अगर ऐसा कुछ आप के साथ हुआ है तो जरूर बतायें ताकि सच पता चले लोगों को भी ! तल्ख़ हक़ीक़त :-


* DIABETES सबसे बड़ी साज़िश। * HIGH BLOOD PRESSURE एक धोखा। * HIGH CHOLESTEROL,THYROID एक छलावा। * DENGUE,H1N1,CHIKAN-GUNIA,NIPAH,SWINE-FLUE,HIV- AIDS वग़ैरह 21वीं सदी का सबसे बड़ा FRAUD है।


* उन वायरल बीमारियों की वजह से नहीं, बल्कि उनके ईलाज में इस्तेमाल होने वाली "अंग्रेजी दवा" से लोगों की जान चली जाती है|"वायरस" को मारना मुश्किल ही नहीं ना- मुमकिन है,क्योंकी ये "वायरस" अपना रुप हमेशा बदलते रहते हैं| * DIABETES की ALLOPATHIC दवा खा-खा कर "8% लोग" मरते हैं,जबकि न खायें तो केवल "3% लोग" ही मरेंगे| * जब-जब दुनिया में कहीं भी "ऐलोपैथिक डाक्टरों" की हड़ताल होती है,तब-तब उन जगहों पर मरने वालों की संख्या में 8% तक की कमी आ जाती है| * "DIABETES,HIGH BP, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEMS, KIDNEY FAILURE, DIALYSIS,LIVER DISORDERS, ABDOMINAL DISORDERS, ARTHRITIS, OSTEO-ARTHRITIS, MIGRAINE, TUMOUR, ADVANCE STAGE CANCER, SKIN DISEASES, PSORIASIS" वग़ैरह बीमारियाँ "LIFESTYLE DISEASES" कहलाती हैं। ये और दूसरी सारी बीमारियाँ सिर्फ एक ही वजह से होती हैं, जिसमें "ग्लूकोज़" व "ईन्सुलिन" IMBALANCE हो जाता है। और "GLUCOSE" और "INSULIN" को "UNIVERSA LAW OF RE-BALANCING" के ज़रिया REBALANCE कर देने भर से ये बीमारियाँ हमेशा केलिए "REVERSE" हो जाती हैं।" मतलब "ऐलोपैथिक दवा" से सदा केलिए छुटकारा।" * शरीर के किसी भी हिस्से में कोई भी बीमारी हो तो उसी "अंग" के नाम पर बीमारी का नाम रख दिया जाता है। * जब सभी बीमारियों की वजह "एक" है तो उसकी दवा,उसका ईलाज भी एक ही होना चाहिए| और फिर सारी बीमारियाँ बिल्कुल ठीक हो जाती हैं| * कोई भी बीमारी "ला-ईलाज" नहीं है| एक बार ज़रुर मिलें।

Last updated date 23/09/2020

Tumor Treatments

The abnormal, uncontrollable growth of the cells tissue may lead to the formation of tumors. These tumors can be either malignant which contain cancer cells or benign. The malignant form of tumor is cancer. It is highly fatal and life-threatening.


Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Tumor Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Tumor Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation.


We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime

Last updated date 26/08/2020


भारत में कैंसर के 14 लाख मरीज़ !

118:- "DISEASE FREE WORLD" "भारत में कैंसर के 14 लाख मरीज, 2018 में दुनियाभर में 96 लाख मौतें" पुरुषों में सबसे ज्यादा तादाद फैफड़े के कैंसर के मरीजों की है जो कि 10.6 फीसदी है। भारत में कैंसर दूसरी सबसे ज्यादा कॉमन बीमारी बनती जा रही है जिससे सबसे ज्यादा मरीज जान गंवा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर भी यह जानलेवा बीमारी सबसे ज्यादा खतरा बनी हुई है। कैंसर की बीमारी से होने वाली मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले 26 सालों में कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा बढ़ा है। ब्रेस्ट कैंसर ने सबसे तेजी से अपने पांव पसारे हैं। भारतीय महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा बढ़ा है। साल 2016 की ICMR की रिपोर्ट की बात करें तो भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या 14 लाख से ज्यादा है। भारत में हर साल 10 लाख मरीज कैंसर की बीमारी का इलाज कराते हैं।  पुरुषों में सबसे ज्यादा तादाद फैफड़े के कैंसर के मरीजों की है जो कि 10.6 फीसदी है जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की तादाद 27.5 फीसदी है।    भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या 14 लाख से ज्यादा है:-


सरकार ने कैंसर की बीमारी के चार प्रकार को प्राथमिकता में रखा है। इनमें से पहले नंबर पर ब्रेस्ट कैंसर है। कैंसर की बीमारी में 41 फीसदी खतरा ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल (ग्रीवा) कैंसर, ओरल कैंसर और लंग्स  कैंसर का है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की तीन साल पुरानी रिपोर्ट में इस बात को बताया गया है।  भारत में होने वाले टॉप तीन प्रकार के कैंसर की बात करें तो इनमें ओरल कैंसर की तादाद सबसे ज्यादा है। पुरुषों में होने वाले सभी तरह के कैंसर में ओरल कैंसर की तादाद सबसे ज्यादा है। जबकि, महिलाओं में इस प्रकार के कैंसर होने की संभावना तीसरे नंबर पर है।   भारत ने साल 2012 में अपने जीडीपी का 0.36 फीसदी कैंसर पर खर्च किया था:- महिलाओं में होने वाला सबसे कॉमन कैंसर ब्रेस्ट कैंसर है। भारत ने साल 2012 में अपने जीडीपी का 0.36 फीसदी कैंसर पर खर्च किया था। कैंसर एक नहीं बल्कि 100 तरह का कैंसर होता है। लेकिन भारत में जो सबसे ज्यादा ब्रेस्ट, कैविटी और ओरल कैंसर के मरीजों की संख्या ज़्यादा है। वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉक्टर मनीष कुमार का कहना है कि जीवनशैली में सुधार के जरिए कैंसर जैसी घातक बीमारी पर रोकथाम संभव है। सही वक्त रहते अगर कैंसर की बीमारी का इलाज करा लिया जाए तो इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है। अमेरिका में 33% और भारत में 68 % कैंसर के मरीजों की होती है मौत:- GLOBOCAN की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 18 सालों में भारत में कैंसर की बीमारी का खतरा 70 फीसदी तक बढ़ सकता है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह ख़तरनाक बीमारी हमारे बदलते जीवनशैली में किस तरह से हमें प्रभावित कर रही है। इस रिपोर्ट का कहना है कि 2035 तक कैंसर के 17 लाख नए मरीज बढ़ सकते हैं।   अमेरिका में 33% और भारत में 68 % कैंसर के मरीजों की होती है मौत :- कैंसर के मरीजों की मृत्यु दर की बात की जाए तो भारत अमेरिका से भी आगे है। अमेरिका में जहां कैंसर की बीमारी से ग्रसित मरीजों की मृत्यु दर 33 फीसदी है, तो वहीं भारत में यह संख्या 68 फीसदी है। यानी कि अमेरिका से भी दोगुनी तादाद में  भारत में कैंसर की बीमारी से मरीजों की मौत होती है। साल 2016 में भारत में केंसर के मरीजों के 14.5 लाख नए केस सामने आए थे:-


साल 2016 में भारत में केंसर के मरीजों के 14.5 लाख नए केस सामने आए थे। वहीं भारत में कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या 736,000 से ज्यादा थी। साल 2030 तक कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़कर 17.3 लाख से ज्यादा होने की संभावना है। वहीं 2020 तक इस बीमारी से मरने वाले मरीजों की संख्या 880,000  को पार कर सकती है। ये आंकड़ें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के हैं। कैंसर की बीमारी को लेकर एक सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि 80 फीसदी कैंसर के मरीजों का पता एडवांस स्टेज में चलता है। ऐसे में भारत में कैंसर सेंटर भी मरीजों के इलाज के लिए कम पड़ सकते हैं। डॉ मनीष कुमार का कहना है वर्तमान सरकार ने कैंसर के प्रति जागरुकता अभियान चलाया है और कई राज्यों में एम्स खोले हैं। लेकिन अभी भारत में इस बीमारी से लड़ने के लिए और ज्यादा कैंसर केयर यूनिट की जरूरत है। कैंसर की बीमारी को लेकर एक सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि 80 फीसदी कैंसर के मरीजों का पता एडवांस स्टेज में चलता है। ये ही वजह है कि भारत में कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या 68 फीसदी से भी ज्यादा है। अगर वक्त पर कैंसर की बीमारी का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है। भारत में कितने फीसदी महिला और पुरुष हैं कैंसर की बीमारी से पीड़ित?:- पुरुष:- लंग कैंसर- 10.6 फीसदी स्टॉमक कैंसर- 7.6 फीसदी प्रोस्टेट कैंसर- 7 फीसदी ब्रेन कैंसर-   5 फीसदी महिलाएं:- ब्रेस्ट कैंसर- 27.5 फीसदी गर्भाशय कैंसर-12.3 फीसदी माउथ कैंसर- 3.9 फीसदी अंडाशय कैंसर- 5.5 फीसदी 2018 में हुई कैंसर से 96 लाख मौतें:- आपको जानकर हैरानी होगी साल 2018 में दुनियाभर में कैंसर से 96 लाख से ज्यादा मौतें हुई थी। वहीं विकासशील देशों की बात करें तो यहां कैंसर से मौतें सबसे ज्यादा हुई हैं। विकासशील देशों में कैंसर की बीमारी से मरने वाले की तादाद 70 फीसदी है। 22 फीसदी मरीजों को कैंसर तंबाकू के सेवन से हो रहा है। (आंकड़ें- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन और नेशनल कैंसर रजिस्ट्री (ICMR)) एक चैलेंज:- जिस किसी को भी किसी भी प्रकार के कैंसर की समस्या या कोई भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़, मोटापा, हार्ट ब्लाकेज, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, अर्थराइटिस, सोरियासिस, आंत व जिगर संबंधित रोग, अस्थमा इत्यादि तकलीफ़ हो गई है उनके लिए मैंने काफ़ी रिसर्च करके एक युनिक यूनानी दवा HEALTH IN BOX ® तैयार की है जिसके सेवन से सिर्फ चार या छः या नौ महीने में उपरोक्त सभी प्रकार के रोग हमेशा केलिए "रिवर्स" हो जाती हैं। उस दवा का नाम है :- "HEALTH IN BOX ®" जिस दिन से इसे लेना शुरू करेंगे उसी दिन से तमाम अंग्रेज़ी दवाओं को छोड़ने केलिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसका कोर्स पूरा करने के पश्चात् आप बिल्कुल सेहतमंद जिंदगी गुज़ार सकते हैं, बिना किसी दवा के। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ JAMSHEDPUR JHARKHAND Contact 9334518872 & 8651274288 What's App 9334518872 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN Website https://umrc.co.in/

Last updated date 20/10/2020

ریفائنڈ آئل کیسے تیار کیا جاتا ہے ؟

اگر ہندوستان میں کوئی بھی ایسی چیز ہے جس میں سب سے زیادہ اموات ہوں ، تو اس "ریفائنڈ تیل کہی جاتی ہے۔ کیرالہ آیورویدک یونیورسٹی ریسرچ سینٹر کے مطابق ، "ریفائنڈ تیل" ہر سال 20 لاکھ افراد کی ہلاکت کا سبب بنتا ہے۔ "ریفائنڈ تیل ڈی این اے کو ، آر این اے کو نقصان پہنچانے والی ، دل کا دورہ ، دل کی رکاوٹ ، دماغ کو نقصان ، فالج، شکر (ذیابیطس) ، بلڈ پریشر ، نامردی، کینسر ، ہڈیوں کا کمزور ہونا ، جوڑوں کا درد ، کمر میں درد ، گردے کو نقصان ، جگر کے نقصان کا سبب بنتا ہے۔ کولیسٹرول ، آنکھوں کی روشنی کم ہونا ، لیکوروریا ، بانجھ پن ، ڈھیر ، جلد کی بیماری وغیرہ ہزاروں بیماریوں کی سب سے بڑی وجہ ہیں۔ "ریفائنڈ تیل " کیسے بنائے جاتے ہیں؟ تیل کو چھلکے ہوئے بیجوں کے ساتھ نکالا جاتا ہے ، اس طریقے سے ، تیل میں جو بھی نقائص آتا ہے ، وہ صاف کرکے اس کو بہتر بنایا جاتا ہے تاکہ تیل کا ذائقہ ، بو اور بے رنگ ہوسکے۔ دھلائی: - پانی ، نمک ، کاسٹک سوڈا ، گندھک ، پوٹاشیم ، تیزاب اور دیگر مضر تیزاب دھونے کے ل. استعمال ہوتے ہیں ، تاکہ نقائص ختم ہوجائیں۔ یہ بنانے کے لئے استعمال کیا جاتا ہے یہ تیل تیزاب کی وجہ سے زہر آلود ہوگیا ہے۔ تشخیص: - تیل کے ساتھ کاسٹک یا صابن ملا کر 180 ° F پر گرم کیا جاتا ہے۔ جس کی وجہ سے اس تیل کے تمام غذائی عنصر ختم ہوجاتے ہیں۔ بلیچنگ: اس طریقہ کار میں ، تیل کا رنگ اور شامل کیمیکل 130 P F پر گرم کیا جاتا ہے جو P O P (پلاسٹر آف پیرس ، جو مکانات بنانے کے لئے استعمال ہوتا ہے) کا استعمال کرتے ہیں! ہائیڈروجنسیشن: - کسی ٹینک میں تیل کے ساتھ نکول اور ہائیڈروجن کا ملاوٹ ہل جاتا ہے۔ ان سارے عمل میں ، تیل کو 7-8 بار گرم اور ٹھنڈا کیا جاتا ہے ، جس سے تیل میں "پولیمر" تشکیل پاتا ہے ، جو "نظام انہضام" کو خطرہ بناتا ہے ، اور کھانے کی کم ہضم عمل کا سبب بنتا ہے۔ نکیل: - کیٹالسٹ میٹل (آئرن) کی ایک قسم ہے جس سے ہمارے جسم کے ریپریٹری نظام ، زندہ ، سکین ، میٹابولزم ، ڈی این اے ، آر این اے کو شدید نقصان ہوتا ہے۔ "ریفائنڈ کرکے تیل کے تمام عناصر کو ختم کر دیا جاتا ہے اور تیزاب (کیمیائی) شامل کیا جاتا ہے ، اس سے اندرونی اعضاء کو نقصان ہوتا ہے۔ گندا نالیوں کا پانی پیجئے ، کچھ نہیں ہوگا ، کیونکہ ہمارے جسم میں قوت مدافعت ان بیکٹیریا سے لڑتی ہے اور اسے ختم کردیتی ہے ، لیکن "ریفائنڈ تیل کھانے والا شخص وقت سے پہلے ہی مرنا یقینی ہے ۔ہمارا جسم کروڑوں سیل (خلیوں) پر مشتمل ہوتا ہے۔ بنا ہوا ، پرانے CELLS جسم کو زندہ رکھنے کے لئے نئے CELLS سے REPLACE کرتا ہے ، جسم نئے CELLS (خلیات) بنانے کے لئے خون کا استعمال کرتا ہے ، اگر "ریفائنڈ تیل استعمال کریں تو خون میں TOXINS کی مقدار بڑھ جاتی ہے۔ ، اور جسم کو نئے خلیے بنانے میں رکاوٹیں آتی ہیں ، اس کے بعد بہت ساری قسم کی بیماریوں جیسے - کینسر ، ذیابیطس ، دل کا دورہ ، بچ PROے کی دشواریوں ، الرجیوں ، اسٹومک السر ، پریشر ، امپوتینس ، آرتھرائٹس ، ڈپریشن ، ہائی بلڈ پریشر وغیرہ۔ ہو جائے گا. "ریفائنڈ تیل بنانے کے عمل سے تیل بہت مہنگا ہوجاتا ہے ، لہذا اس میں "پام آئل" شامل کیا جاتا ہے! (کھجور کا تیل خود ہی میٹھا زہر ہے) گورنمنٹ آرڈر: - ہمارے ملک کی پالیسی امریکی حکومت کے کہنے پر چلتی ہے۔ امریکہ کے پام آئل کو بیچنے کے لئے "،" منموہن حکومت "نے ایک آرڈیننس لاگو کیا جس میں یہ کہا گیا ہے کہ ہر تیل کمپنیوں کو پام آئل کو 40٪ خوردنی تیل میں شامل کرنا ہے ، بصورت دیگر لائسنس منسوخ ہوجائے گا۔اس سے امریکہ کو بہت فائدہ ہوا۔ اس کی وجہ سے ، لوگ زیادہ بیمار ہونا شروع ہوگئے ، دل کا دورہ پڑنے کے امکانات ٪ 99بڑھ گئے ، پھر دوائیں بھی امریکہ سے آنے لگیں ، دل میں لگنے والی STENTS دو لاکھ روپے میں فروخت ہوتی ہے ، یعنی امریکہ کے دونوں ہاتھوں میں لڈو :- "پام آئل" اور اس کی "دوائیں" بھی۔ اب بہت ساری معروف کمپنیاں ، یہاں تک کہ "پام آئل" سے بھی کم سستا ، نے کار سے کالا تیل (جسے آپ صرف کار سروس کے پاس چھوڑ دیتے ہیں) ، جو صاف اور خوردنی تیل میں بھی شامل کیا جاتا ہے ، کئی بار اخبارات میں اس کے پکڑے جانے کی اطلاعات آتی ہیں سویابین دال ہے ، تیل نہیں۔ دالیں :- مونگ ، چنے ، سویا بین اور ہر طرح کی دالیں۔ تیلہن :-سرسوں ، مونگ پھلی ، ناریل ، بادام وغیرہ شامل ہیں۔ لہذا ، سویا بین کا تیل خالص پام آئل ہے۔ سویابین کا استعمال پام آئل کو بہتر بنانے کے لئے کیا جاتا ہے۔ سویا بین کی ایک خصوصیت یہ ہے کہ یہ ہر ایک مائع کو جذب کرتا ہے ، پام آئل مکمل طور پر کالی اور الکترو کی مانند ہوتا ہے ۔اس میں سویا بین ڈال دیا جاتا ہے تاکہ سویا بین کا بیج پام کے تیل کی نرمی کو جذب کرے ، اور پھر سویا بین گھسائی کرنے والی جگہ لے جا تا ہے ، جو چکنائی مادہ "تیل" اور "آٹے" کو الگ کرتا ہے ، سویا مانگوڈی آٹے سے بنی ہوتی ہے! اگر آپ چاہیں تو ، سویا بین کو کسی بھی تیل نکالنے والے کے پاس لے جائیں اور اس سے تیل نکالنے کو کہیں۔ یہاں تک کہ ایک لاکھ روپے ادا کرنےکے بھی تیل نہیں نکالے گا ، کیوں کہ سویا بین کا آٹا بنتا ہے ، تیل نہیں! سورج مکھی ، چاول کی بھوسی (چارہ) وغیرہ کا تیل "ریفائنڈ کیے بغیر نہیں نکالا جاسکتا ، لہذا یہ زہریلا ہے! "خوش قسمتی" کا مطلب ہے آپ اور آپ کے اہل خانہ کا "مستقبل"۔ "سفولا" ، یعنی سانپ کے بچے کو "سپولا" کہا جاتا ہے۔ 5 سال کھانے کے بعد جسم کو زہر کردیا گیا "سپولا" (سانپ کاٹنے والا) 10 سال بعد "سانپ" بن گیا ہے۔ * موت کے 15 سال بعد ، یعنی "سفولا" اب "ڈریگن" بن گیا ہے اور وہ آپ کو نگل لے گا۔ غلط کھانوں کی وجہ سے قبل از وقت موت واقع ہوجاتی ہے۔ دماغ ، دولت اور روح کی تسکین کے لئے صرف کچی گھانی ، تل ، سرسوں ، مونگ پھلی ، ناریل ، بادام وغیرہ کا استعمال کریں۔ "کچے گھانی" کا نکالا ہوا تیل ہی استعمال کریں گے! آج کل سبھی کمپنیاں اپنی مصنوعات پر کچی گھانی تیل لکھتی ہیں ، جو سراسر غلط ہے ، سراسر دھوکہ ہے۔ کچی گھانی کا مطلب لکڑی ، مارٹر اور لکڑی سے بنا ہوا کولہو ہونا چاہئے ۔اس میں لوہے کا رگڑ نہیں ہونا چاہئے۔ اسے "کچی گھانی" کہا جاتا ہے ، جسے بیل چلاتے ہیں۔ آج کل موٹر بیل کی جگہ لائی گئی ہے! لیکن موٹر بیل کے بہ نسبت تیز دوڑتی ہے! لوہے کی بڑی مشینیں جن کے سلنڈر انتہائی تیز رفتار سے چلتے ہیں ، تیل کے تمام غذائیت پسند عناصر کو ختم کردیتے ہیں ، اور وہ لکھتے ہیں - "کچی گھانی"۔ نوٹ:- اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد ، اپنے خیالات کا اظہار کریں ، مجھے اچھا لگے گا۔ نیز ، اپنے دائرے میں مزید شیئر کریں۔ * میرے پاس صرف ایک دوا ®HEALTH IN BOX ہے ، جو پاؤڈر کی شکل میں ہے۔ اللہ کا شکر ہے کہ اس ایک ہی دوا سے تمام اقسام کے بیماریوں کا علاج بآسانی کیا جاتا ہے اور ہر اس بیماری کا علاج کلی طور پر هو جاتا ہے جسکے لیے ڈاکٹر حضرات اعلان کر دیا کرتے ہیں کہ تا حیات انگریزی دواؤں کے استعمال سے ہی زندہ رہ سکتے ہیں۔ مگر آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ میری اس دوا سے ہر قسم کی لاعلاج اور لائف سٹائل ڈیزیزیز ہمیشہ کے لیے REVERSE هو جاتی ہیں اور D 3 یعنی (ڈیزیز، ڈرگس اور ڈاکٹر) سے ہمیشہ کے لیے چھٹکارا۔ صبح اور شام 4 سے 4 گرام کاڑھی بنائیں اور استعمال کریں۔ کسی بھی بیماری میں کم از کم چار ماہ۔ حکیم محمد ابو رضوان (بی یو ایم ایس (آنرس یونانی فزیسیئن



Last updated date 09/10/2020

किर्ज़िदा राड्रिग्ज़ के आख़िरी अल्फ़ाज़

विश्व प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर, ब्लॉगर और लेखक *किर्ज़िदा रोड्रिग्ज* द्वारा लिखा गया एक नोट कैंसर से मरने से पहले। --- 1. दुनिया की सबसे महंगी ब्रांड कार मेरे गैरेज में पड़ी है। लेकिन मुझे व्हीलचेयर में बैठना होगा। 2. मेरा घर हर तरह के डिजाइन के कपड़े, जूते, महंगी चीजों से भरा है। लेकिन मेरा शरीर अस्पताल द्वारा प्रदान की गई एक छोटी सी चादर में ढका हुआ है। 3. बैंक का पैसा मेरा पैसा है। लेकिन वह पैसा अब मेरे किसी काम का नहीं है। 4. मेरा घर एक महल की तरह है लेकिन मैं अस्पताल में एक जुड़वां आकार के बिस्तर पर लेटी हूं। 5. मैं एक फाइव स्टार होटल से दूसरे फाइव स्टार होटल में जाती थी । लेकिन अब मैं अपना समय अस्पताल में एक प्रयोगशाला से दूसरे में जाने में लगा रही हूं। 6. मैंने सैकड़ों लोगों को ऑटोग्राफ दिया है - और आज डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन मेरा ऑटोग्राफ है।


6. मेरे बालों को सजाने के लिए मेरे पास सात ब्यूटीशियन थे - आज मेरे सिर पर एक भी बाल नहीं है। 6. एक निजी जेट में, मैं जहां चाहे उड़ सकती थी । लेकिन अब मुझे अस्पताल के बरामदे में जाने के लिए दो लोगों की मदद लेनी होगी। 9. हालांकि दुनिया भर में कई खाद्य पदार्थ हैं, मेरा आहार दिन में दो गोलियां और रात में खारा कुछ बूँदें हैं।


यह घर, यह कार, यह जेट, यह फर्नीचर, इतने सारे बैंक खाते, इतनी प्रतिष्ठा और इतनी प्रसिद्धि, इनमें से कोई भी मेरे लिए किसी काम का नहीं है। इसमें से कोई भी मुझे थोड़ा आराम नहीं दे सकता। यह केवल दे सकता है - कुछ प्यारे लोगों के चेहरे, और उनका स्पर्श। " मृत्यु से अधिक सत्य कुछ भी नही है।

Last updated date 09/10/2020

कैंसर

लाख टके का सवाल यह है कि जब तक किसी "डॉक्टर" , "हकीम" , "वैध" को यही नहीं मालूम कि कोई बीमारी कैसे होती है या किस कारण से होती है , तो कोई "डॉक्टर" , "हकीम" , "वैध" किसी मामूली से मामूली या बड़ी से बड़ी बीमारी का ईलाज कैसे कर पाएगा।ऐसे में वो ईलाज तो करेगा मगर सिर्फ अंधेरे में तीर चलाएगा, "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का"।आपसे अनुरोध है कि इस सच्चाई को जन जन तक पहुंचाने में मेरी मदद करें। सोचने का समय आ गया है....................! कैंसर कोई बीमारी नहीं,बल्कि चिकित्सा जगत में पैसा कमाने का साधन मात्र है।पिछले कुछ सालों में कैंसर को एक तेजी से बढ़ती बीमारी के रूप में प्रचारित किया गया,जिसके ईलाज के लिए कीमोथैरेपी, सर्जरी या और उपायों को अपनाया जाता है,जो महंगे होने के साथ-साथ मरीज के लिए उतने ही खतरनाक भी होते हैं। लेकिन,अगर हम कहें कि कैंसर जैसी कोई बीमारी है ही नहीं तो ?


जी हां...! यह बात बिल्कुल सच है कि कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को स्वास्थ्य जगत में कैंसर का नाम दिया गया है और इससे अच्छी खासी कमाई भी की जाती है।लेकिन, इस विषय पर लिखी गई एक किताब "THE WORLD WITHOUT CANCER" (वर्ल्ड विदाउट कैंसर),जो कि कैंसर से बचाव के हर पहलू को इंगित करती है,और अब तक विश्व की कई भाषाओं में ट्रांसलेट की जा चुकी है। इस किताब का दावा है कि कैंसर कोई बीमारी नहीं,बल्कि शरीर में "विटामिन बी 17" की कमी होना है।आपको यह बात जरूर जान लेना चाहिए कि कैंसर नाम की कोई बीमारी है ही नहीं,बल्कि यह शरीर में "विटामिन बी 17" की कमी से ज्यादा कुछ भी नहीं है।इस कमी को ही कैंसर का नाम देकर चिकित्सा के क्षेत्र में एक व्यवसाय के रूप में स्थापित कर लिया गया है,जिसका फायदा मरीज को कम और चिकित्सकों को अधिक होता है।चूंकि कैंसर मात्र शरीर में किसी विटामिन की कमी है तो इसकी पूर्ति करके इसे कम किया जा सकता है और इससे बचा जा सकता है।यह उसी तरह का मसला है जैसे सालों पहले "SCURVEY" रोग से कई लोगों की मौते होती थी,लेकिन बाद में खोज में यह सामने आया कि यह कोई रोग नहीं बल्कि विटामिन सी की कमी या अपर्याप्तता थी। कैंसर को लेकर भी कुछ ऐसा ही है। विटामिन बी 17 की कमी को कैंसर का नाम दिया गया है,लेकिन इससे डरने या मानसिक संतुलन खोने क बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। मैं ने जो एक यूनानी दवा विकसित की है, उससे ये "कैंसर" चाहे जिस स्टेज का ही क्यों न हो,आप शत्- प्रतिशत सदा के लिए छुटकारा पा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए मोबाइल नंबर पर मुझसे CONTACT कर सकते हैंl


नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER , HIV-AIDS & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 30/09/2020

PROSTATE CANCER

अस्सलाम अलैकुम। मेरे एक मरीज़ जिनका नाम "RAM SHARAN SHUKLA है।ATTARRA,BANDA(UP) के रहने वाले हैं। इनका MOBILE NO 8840847810 है।उनसे आप सीख सकते हैं कि कैंसर से कैसे जीत सकते हैं।ये PROSTATE CANCER,(4th. STAGE) से पीड़ित थे। मैं जो कहता हूं कि,"CANCER का इलाज "CHEMOTHERAPY" से करना ऐसा ही है जैसे कि आपके गाल पर "मच्छर" बैठे और उसे मारने के लिए "MISSILE" का इस्तेमाल करें। मेरा दावा है कि किसी भी बीमारी को हमेशा के लिए "REVERSE" करना मेरी इस एक यूनानी दवा से शत् प्रतिशत संभव है। मेरी दवा शुरू होने के बाद 55वें दिन की रिपोर्ट बता रहे हैं। खुद उन्हीं की जुबानी सुनिए।


जिस किसी हकीम, वैध या डॉक्टर को यह पता ही नहीं है कि किसी रोग का कारण क्या है तो वो क्या इलाज कर पाएगा। वो तो आपको जांच की लिस्ट, दवा की लिस्ट , ढेर सारी बीमारियो के शिकार होने की संभावना और उसके बुरे परिणाम का भय,और अपनी बजट जो उसे नज़राना के रूप में चाहिए , वही थमाएगा। क्योंकी,भाई लोग,उसे तो धंधा करना है। ये छुटभैय्ए खानदानी हकीम वैध या बड़े बड़े डिग्री धारक डॉक्टर्स की दुकानदारी युंही नहीं चलती। ऐसे ऐसे डरावने, लुभावने सपने दिखा दिखा कर,डरा डरा कर छोटी से छोटी बीमारी को जैसे फुंसी का भगंदर बनाने के माहिर होते हैं। मेरा लिखा हुआ पोस्ट ध्यान से पढ़ें, मेरा वीडियो देखने के लिए YOUTUBE CHANNEL पर जाएं, टाइप करें:- UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE और देखें , जिसमें इलाज की बिल्कुल ऐसी नयी-नयी चौंकाने वाली जानकारी प्राप्त करेंगे, जो कभी कोई बड़े से बड़ा डॉक्टर,हकीम वैध आपको नहीं बताएगा। इलाज कोई खेल तमाशा नहीं है। बीमारी चाहे जो भी हो, सभी रोगों का कारण एक ही है-GLUCOSE & INSULIN का UNBALANCE होना इसे REBALANCE कर देने से ही कोई भी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाती है।उस METHOD को "UNIVERSAL LAW OF REBALANCING" कहते हैं।जो केवल एक ही यूनानी दवा से किया जाता है। मैं ने ही यह दवा बनाई है। आप किसी भी प्रकार की बीमारियो का इलाज इस एक यूनानी दवा से करेंगे तो आप की बरसों से चलती आ रही अंग्रेजी दवाएं भी बन्द हो जाएंगी और बीमारी भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।


नोट:- किसी भी प्रकार की बीमारी की दवा मंगवाने के लिए ज़रूरी रक़म मेरे एकाउंट नं में डालें। BANK ACCOUNT DETAIL:- A/C NO 0324101031398 IFSC CODE CNRB0000324 DR M A RIZWAN CANARA BANK BRANCH DIAGONAL ROAD BISTUPUR JAMSHEDPUR JHARKHAND. * CANCER और TUMOUR को छोड़कर अन्य सभी रोगों के लिए:- Rs 3000/-(एक महीना के लिए) Rs 5600/-(दो महीने के लिए) Rs 8400/-(तीन महीने के लिए) * CANCER & TUMOUR की दवा कम से कम नौ महीने तक सेवन करना है।जिसका मूल्य:- Rs 6000/-(एक महीना के लिए) Rs 12000/-(दो महीने के लिए) डालें, और अपना "पोस्टल एड्रेस पिन कोड नं के साथ" भेजें। अगले दिन ही आपकी दवा स्पीड पोस्ट से भेज दी जाएगी। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons(BU) UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND INDIA WHATSAPP NO 9334518872 CONTACT NO 8651274288

Last updated date 29/09/2020

صحت مند انسان

لوگ صحتمند رہنا ھی نھیں چاہتے۔ اسلئے دوائیں کھاتے ھوئے زندہ رہنے کی ناکام کوشش کرتے رہتے ھیں۔ انگریزی دوائیں کیمیکل ھوتی ھیں جو کسی بھی لحاظ سے ھمارے جسم کیلئے کسی بھی حالت میں فائدہ مند ھو ھی نھیں سکتے۔ اسکا رول ھمارے جسم کے اندر ایک "آتنکوادی" کی طرح ھے۔ ایک آتنکوادی سے اچھائی کی امید کرنا جاگتے میں سپنا دیکھنے جیسا ھی ھے۔تو پھر سوال یہ اٹھتا ھے کہ جب ھم بیمار ھوں تو کیا کریں؟ میرا یہ سوال ھے کہ قدیم زمانے میں بھی لوگ بیمار پڑتے تھے،تو وہ کیا کرتے تھے اور کیسے ٹھیک ھوتے تھے؟سب سے پہلی بات تو یہ ھے کہ وہ لوگ اکا دکا ھی بیمار پڑتے تھے اور لمبی عمریں گزار کر مرتے تھے۔ بیمار ھوئے بھی تو قدرتی چیزیں کھا کر ٹھیک ھو جایا کرتے تھے۔ انسان نیچر کی پیداوار ھے اور اسے بیمار ھونے پر نیچرل چیزیں ھی صحتمند کر سکتی ھیں۔ دوسری کوٸی بھی چیز نھیں کر سکتی ھیں۔ أج کے زمانے میں جدھر بھی نظریں گھماٸیں عجب غضب بیماریاں اور بیمار لوگ نظر أ جاٸیں گے۔ خیر خیریت پوچھنے پر بڑے ھی نرالے ڈھنگ سے انکا جواب ھوتا ھے :- " ھاں سب کچھ ٹھیک ٹھاک چل رھا ھے۔شوگر, بلڈ پریشر, کولیسٹرول, وٹامن, وغیرہ کی دواٸیں بلا ناغہ صبح شام لیا کرتا ھوں اور بس ٹھیک ھوں۔ اب ذرا اندازہ لگاٸیے کہ اتنی ساری دواٸیں لینے والا انسان گزشتہ کٸی سالوں سے کھاتے أرھا ھے اور پھر بھی کہتا ھے کہ "ٹھیک ھوں-" سننے میں کیسا اٹپٹا سا لگتا ھے کہ دن بھر میں صبح سے رات تک دواٶں کی خوراک لیتے رہنے والا انسان خود کو ٹھیک ٹھاک کہ رھا ھے۔وہ بیمار انسان تین وقت کا کھانا کھانے کو اتنا ترجیح نھیں دیتا جتنی دواٶں کے لٸے چوکنا رھتا ھے۔کیا مجال جو ایک وقت کی بھی دوا کھانے سے رہ جاٸے۔ ایسا کیسے ھو سکتا ھے؟ اجی جناب ! دوا کھانے والا تو بیمار کہلاتا ھے ٹھیک کیسے کہ رھا ھے خود کو۔ علاج تو ایسا ھونا چاھٸے کہ دوا کچھ دن یا کچھ ماہ کھاٸیے اور ٹھیک ہو جاٸیے۔ اصل میں ان سب کے پیچھے ایک بہت بڑی اور سوچی سمجھی سازش ھے جو پوری دنیا میں چند لوگوں کی طرف سے رچی گٸی ھے اور جسکا شکار ساری دنیا کے لوگ ھو گٸے ھیں۔ایک قسم کا "DISEEASE MONGERING" ھے یعنی "خوف کا کاروبار"۔ کچھ لوگ چاھتے ھیں کہ دنیا کی آبادی %15 کم ھو جاٸے۔اسلٸے انکی چاھت ھے کہ سارے لوگ انکی دواٶں کا استعمال کریں یعنی سبھی بیمار رہیں۔ PHARMACEUTICAL COMPANIES اور ALLOPATH DOCTORS اور PATHOLOGICAL LABS. اور دیگر صحت کے دشمن ھی یہ ساری سازشیں رچنے والے ھیں۔پوری دنیا میں انھوں نے قسم قسم کے "جال" بچھا رکھیں ھیں اور اس جال دنیا میں لاتعداد لوگ پھنستے چلے جا رھے ھیں۔لیکن لوگوں کو بالکل بھی احساس نھیں ھو رہا ھے کہ جسے وہ NEXT TO GOD مان بیٹھے ھیں اور اسکے ھر حکم کو من و عن مانتے جا رھے ھیں وہ ھماری صحت کا نھیں بلکہ ھماری "بیماری کا محافظ" ھے۔ اور اسطرح لوگ ھمیشہ بیمار رہتے ھوٸے ان نام نھاد ڈاکٹرس کے چکر لگاتے رھیں اونچی اونچی فیس دیکر انکی تجوری بھرتے رھیں۔ لوگ کنگال ھوتے رھیں۔حتی کہ گھر بار گروی رکھنا پڑے پھر بھی کم پڑ جاٸے۔ لیکن انکو کوٸی فرق نھیں پڑتا۔ وہ اس بات سے خوش ھیں کہ میرے چیمبر کے آگے لمبی قطار کھڑی ھے۔لوگ اس شوق میں اور اس خوش فھمی میں مبتلا ھیں کہ بس ایک بار ڈکٹر صاحب سے ملاقات ھوجاٸےتو سارے دکھ دور ھو جاٸیں گے۔ مگر سارے ارمان تب چکناچور ھو جاتے ھیں جب وہ ڈاکٹر بہت اچھی سی رونی صورت بناتے ھوٸے اپنے چیمبر سے باھر آکر کہتا ھے کہ میں نے اپنی جانب سے بڑی کوشش کی مگر آپکے مریض کی جان نھیں بچا سکا۔ میرے کہنے کا یہ مطلب ھے کہ وہ لوگوں کو صرف اپنا CUSTOMER بناکر رکھنا چاھتے ھیں اور یہی انکا اصل مقصد ھے۔لوگ انکی بھاری بھرکم فیس ادا کرتے رھیں اور مہنگی مہنگی دواٸیں استعمال کرتے رھیں۔ ذرا سوچٸے ! لوگ انہیں اپنی "صحت کا محافظ" سمجھتے ھیں اور وہ لوگوں کو صرف اور صرف اپنا CUSTOMER ۔ اور لوگوں کو یہ احساس ھی نہیں ھورھا ھے کہ وہ میرا تن بیکار کر رھا ھے۔میری زندگی بیکار کر رھا ھے۔زندگی بھرکی کماٸی کو دھیرے دھیرے کھینچ کر اپنی تجوری بھر رھا ھے۔مجھے کنگال کر رھا ھے اور قرضدار بنا دیا ھے۔ "پھر بھی ھم کہتے ھیں کہ ٹھیک ھیں۔ جبکہ روزانہ صبح سے شام تک ١٠۔١٠ اور ١٥۔١٥ گولیاں کھاتے ھوٸے زندہ رھنے کی ناکام کوشش کر رھے ھیں۔ بھلا یہ کیسی زندگی ھے میرے عزیز دوست؟ کوٸی بتاٸے گا مجھے کہ اسے کون سی زندگی کہتے ھیں؟ اب ذرا غور سے سنٸے ! ریسرچ کہتا ھے کہ "ساری بیماریوں کی وجہ صرف اور صرف "ایک" ھے۔اور جسم کے جس عضو میں کوٸی تکلیف رونما ھو جاٸے تو اسی عضو کی مناسبت سے مرض کا نام رکھ دیا جاتا ھے۔ اب جبکہ یہ ثابت ھو چکا ھے کہ سبھی اقسام کی بیماریوں کا سبب ایک ھی ھے تو کیا ھوا, "علاج" یعنی "دوا" بھی صرف اور صرف "ایک" ھی ھونا چاھٸے۔اور واقعی ایسا ھی ھے۔ کہ "ھر مرض کی ایک ھی دوا۔" میں نے یہی کیا ھے کہ سارے امراض کی ایک ھی دوا بنادی ھے اور کوٸی بھی کیسی بھی بیماری لیکر آتا ھے اسے وھی "ایک دوا" دے دیتا ھوں۔ چونکٸے مت! ہاں رزلٹ کے بارے میں جان کر ضرور چونک جاٸیں گے۔ تو سنٸیے جناب ! رزلٹ ٩٩ فیصد مل رھا ھے۔ اکثروبیشتر امراض میں تو اول روز سے ھی ve+ رزلٹ ملنا شروع ھو جاتا ھے۔ ورنہ تین ھفتے بعد تو ضرور ۔لیکن احتیاطاً تین مہینوں تک اس دوا کا استعمال اکثر امراض میں کافی ھوتا ھے۔ پھر دوا کی ضرورت نہیں۔ کچھ ھی امراض میں چھ سے نو مہینوں تک استعمال کرنا ھوتا ھے۔پھر بیماریوں اور دواٶں سے مکمل آزادی۔ ان شاء اللہ! کیا آپ بھی چاھتے ھیں کہ آ ٸندہ ساری زندگی بغیر دوا اور مرض کے گزرے۔تو دیر نہ کریں مجھ سے رابطہ کریں۔ اور اپنی ھر اس بیماری سے ھمیشہ کے لٸے چھٹکارہ پا لیں جسکے لٸے ڈاکٹر نے تا حیات دوا کھانے کی مہر لگادی ھو۔ سر سے پاٶں تک سبھی امراض کی صرف اور صرف ایک ھی دوا ھے۔ کیونکہ ھر مرض کی وجہ صرف اور صرف ایک ھی ھے۔ HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 23/09/2020

कैंसर - बीमारी या व्यवसाय ?

INDIAN CANCER SOCIETY का विज्ञापन प्रकाशित हुआ। पढ़िए, समझिए और मंथन कीजिए, कि कैसे-कैसे डरावने सपने दिखाए जाते हैं। आपको डराया जाता है, भय और डर दिखाकर इस तरह की "जांच" के लिए आपको "प्रेरित" किया जाता है। उनके अनुसार निश्चित अवधि में समय-समय पर MAMMOGRAPHY करवाएं और उनकी "कमाई" में इज़ाफ़ा करते हुए अनचाहे रोग "कैंसर"को न्योता दे कर जीवन भर उस अभिषाप यानी "कैंसर" का सबसे दुखदाई ईलाज झेलते रहें, अस्पतालों और डाक्टरों की तिजोरियों को भरते रहें,स्व्यं को कंगाल बनाते रहें। और जब आपकी सारी जमा पूंजी ख़त्म हो जाती है तो "वो" भगवान् रूपी "डॉक्टर" आपके सामने दोनों हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता और दर्द भरे लहजे में जवाब देगा कि "मैं ने आपके मरीज़ को अंतिम समय तक बचाने की कोशिश की,मगर अब मेरे पास करने को कुछ भी नहीं है, अतः आप इसे अब घर ले जाईए, क्योंकि अब इनकी ज़िन्दगी दो चार महीने की ही है। और .... फिर हाथ झटक कर आपके सामने से ग़ायब।     यही विडंबना है। जिसका जीता जागता उदाहरण है नीचे का ये "विज्ञापन",आप भी पढ़िए, होशियार हो जाईए..................


 * जब सही लक्षण और उपाय जानेंगे तभी स्तन कैंसर से आगे रहेंगे। आज कैंसर का पता लगाने से लेकर उपचार तक, तकनीक से लेकर जागरूकता तक बहुत तरक्की हो चुकी है, और इसलिए इसे पछाड़ने में हम पहले से कहीं ज़्यादा सफल हो रहे हैं, तो अब बात करते हैं स्तन कैंसर की, और कैसे उससे आगे रहा था सकता है। भारत में महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक पाया जाता है। 28 में से 1 महिला को स्तन कैंसर होने की संभावना है। लक्षणों पर नज़र रखना है ज़रूरी: यहां दिए हुए लक्षण कैंसर ही हों, यह ज़रूरी नहीं, पर इनके नज़र आने पर एकबार डाक्टर से सलाह ज़रूर लें:-     स्तन पर या बगल में गांठ     निप्पल पर खुजली या चकत्ते आना    स्तन या बगल में दर्द    स्तन के आकार या माप में बदलाव    मांसपेशी का एक जगह पर मोटा होना    स्तन में सूजन,या उसका काला या लाल पड़ना    निप्पल से रिसाव    चर्चा का संतरे के छिलके जैसा दिखना    निप्पल का उलट जाना    जांच रखेगी आगे:-स्क्रीनिंग यानी कैंसर की जांच,लक्षण नज़र आने के पहले कैंसर को पकड़ लेती है और इन तीन तरीकों से की जा सकती है:- खुद की हुई जांच:- अपने स्तन और बगलों की जांच,हर महीने, माहवारी के एक हफ्ते बाद,20 साल से ज़्यादा की महिलाओं के लिए। डॉक्टर या नर्स द्वारा क्लिनिकल जांच:-20 से 30 वर्ष की औरतें हर तीन साल पर कराएं और 40 की उम्र के बाद हर साल। मैमोग्राफी यानी स्तन का एक्स-रे:- 45 वर्ष की उम्र के बाद डॉक्टर की सलाह पर इन सभी बातों को ध्यान में रख कर व जीवन शैली में छोटे छोटे परिवर्तन ला कर हम कैंसर से आगे रह सकते हैं और जब आप जान ही गए हैं तो अपने आसपास के लोगों को भी बताईए। खुद भी दो क़दम आगे रहिए और उनको भी आगे रखिए।


 याद रखिए:- गांठ, ट्यूमर, गिल्टी ईत्यादि होने का यह अर्थ नहीं है कि वह "कैंसर" है।ये गांठ या ट्यूमर "कैंसर" का रूप तभी ले सकता है जब आप डॉक्टर के पास जा कर चेक अप करवाएंगे। कैंसर का सबसे बड़ा कारण BIOPSY और MAMMOGRAPHY या X-RAY आदि है। हर किसी के शरीर में कैंसर, ट्यूमर, सर्पों रहता ही है,ये न हो तो हम जीवित नहीं रह सकते।उनको जबतक छेड़-छाड़ नहीं करेंगे तब तक ये कैंसर में परिवर्तित नहीं होंगे।     एक निवेदन:- जागरूकता ही एकमात्र विकल्प है। अगर, ट्यूमर, कैंसर का चले तो इसे छेड़छाड़ करने से रुक जाइए। मुझसे संपर्क करें,पुर्ण समाधान बिल्कुल मुमकिन है।वो भी घर बैठे, बिना किसी तकलीफ़ के ही आप कुछ ही महीनों में बिल्कुल सेहतमंद हो जाएंगे।    आपका शुभचिंतक     HAKEEM MD ABU RIZWAN                       BUMS,hons.(BU) Specialist in LIFESTYLE DISEASES             UNANI PHYSICIAN +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTHI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND INDIA CONTACT NO       8651274288 WHAT'S APP NO  9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com

Last updated date 23/09/2020





HEALTH IN BOX - FOR YOUR BUSINESS


"DISEASE FREE WORLD" ASSALAM O ALAIKUM WA RAHMATULLAH WA BARKATOHU ! -: बेरोज़गारों केलिए सुनहरा अवसर:- HEALTH IN BOX ® यूनानी दवा से 20% - 40% तक आय करने का सुनहरा अवसर आपके सामने है, जो इस प्रकार है:- 20%= 5-9 packet's 25%= 10-19 packet's 30%= 20-49 packet's 40%= 50-100 Packet's (एक पैकेट HEALTH IN BOX ® का मूल्य ₹ 3000/- है।)


मैं, हकीम मुहम्मद अबू रिज़वान (जमशेदपुर, झारखंड) 1993 से अपने व्यक्तिगत रूप से चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहा हूँ। मैंने अंग्रेजी दवा और एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है। ये डॉक्टर किसी कसाई और डाकू से कम नहीं हैं। मैं लंबे समय से "DISEASE FREE WORLD" नामक एक अभियान चला रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप इस अभियान में मेरा साथ देंगे और मुझे प्रोत्साहित करेंगे। और अंग्रेजी दवा के घातक प्रभावों से मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड, हार्ट ब्लॉकेज, कैंसर, गठिया और अन्य घातक बीमारियों जैसे LIFESTYLE DISEASES वाले रोगियों की रक्षा के लिए आम जनता की मदद करेंगे। और उन्हें अंग्रेजी दवा से दूर रखने की कोशिश करेंगे। अनुसंधान कार्य लंबे समय से चल रहा है और परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से, केवल एक दवा, "HEALTH IN BOX", से सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करना शुरू कर दिया है। परिणाम उल्लेखनीय है। फिर क्या हुआ, मैं अपने पास आने वाले सभी मरीजों को केवल एक ही दवा देता हूं:- "HEALTH IN BOX ®" महाशय जी! मैंने वो देखा है कि हमारे समाज के अधिकतर लोग अपनी अल्प आय और सीमित संसाधनों के कारण हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए, मैं ने सोचा है कि ऐसे यूवक या बेरोज़गार लोग आगे आएं और मुझसे जूड़ें। ऐसा करके अपनी आय बढ़ाने की कोशिश क्यों न करें। आज भी इलाज इतना आसान है कि मेरी दवा "HEALTH IN BOX" कोई भी आसानी से किसी भी बीमार आदमी का इलाज कर सकता है। तो फिर आप क्यों नहीं? इस मुसीबत की घड़ी में जहां लाखों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, खासकर बेरोजगार युवाओं को, उन्हें आगे बढ़कर मेरी पेशकश को गले लगाने की कोशिश करनी चाहिए। "HEALTH IN BOX" पूरी तरह से यूनानी दवा है। इसकी सभी सामग्रियों में केवल जड़ी-बूटियां हैं। इस दवा का उपयोग सभी उम्र के सभी प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है। नतीजा माशाल्लाह। केवल उन लोगों को जो मेरे बताए सभी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें 100% परिणाम प्राप्त होते हैं। यह वास्तव में किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह किसी भी बीमारी के "कारणों" पर काम करता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सभी बीमारियों का केवल एक ही कारण है, और वह है: - "ग्लूकोज और इंसुलिन के आपसी तालमेल की गड़बड़ी।" "HEALTH IN BOX" सभी प्रकार की जीवन शैली(LIFESTYLE DISEASES) बीमारियाँ जैसे: कैंसर, मधुमेह, हाई बीपी, मोटापा, हार्ट ब्लॉकेज, लीवर, पेट और किडनी की समस्याएँ, डायलिसिस, सोरायसिस, सेक्स समस्याएँ, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड की समस्याएँ, हड्डियाँ और जोड़ों आदि रोगों के लिए लोग अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग जीवन भर करते हैं क्यों कि डॉक्टर यही सलाह देते हैं। HEALTH IN BOX का इस्तेमाल शुरू करते ही अधिकांश रोगों में, इस के परिणाम पहले ही दिन प्राप्त होते हैं। यानी यह दवा पहले दिन से काम करना शुरू कर देती है। अंग्रेज़ी दवा पहले ही दिन बंद हो जाती है और हमेशा केलिए कोई भी रोग रिवर्स हो जाती है। "मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस पर विचार करें।" सेवाभाव से लोगों की भलाई केलिए अवश्य मुझसे जुड़कर अवसर का लाभ उठाएं। लोगों को अंग्रेज़ी दवाओं से और डॉक्टरों से और रोगों से मुक्ति दिलाने में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करें।


  मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे।    आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।     इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। :::::::::::::::::::::::::::::: I invented a unique single Unani medicine HEALTH IN BOX®. With this one medicine, all lifestyle diseases become REVERSE forever. That is, every disease in which doctors fail and suggest you to take allopathic medicine life long. On the contrary, the first you stop allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®. I will stop my UNANI MEDICINE after four, six or nine months. And you will be able to live a healthy life for lifelong. Let me tell you that all kinds of lifestyle diseases like:- OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, KIDNEY FAILURE, DIALYSIS, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS and all kinds of chronic DISEASES etc. are reverse forever. The packing of this medicine is 240 grams for a month, which is only ₹ 3000 / -. This MEDICINE is sent from the speed post everywhere in India. For more information about HEALTH IN BOX ®, Please visit our website https://umrc.co.in/ HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS, hons. (BU) UNANI PHYSICIAN Specialists in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTER+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND. YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN CONTACT NO 8651274288 & 9334518872 WHAT'S AAP 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YOUTUBE HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 08/10/2020

بیماریوں کی مایا نگری

موجودہ طرز زندگی میں انسان پہلے سے ھی مختلف قسم کے امراض میں مبتلا ھے کہ اسے اورنٸی بیماری کی ضرورت ھی نہیں ھے۔لیکن ھمارے سماج کے کٸی طاقتور کارخانے ایسے ھیں جو انسان کو نٸی بیماری کا تحفہ دینے میں جٹے ھیں۔انسان کو لگاتار یہ یقین دلایا جاتا ھے کہ اسے کوٸی”مرض“ھے جس کا علاج  بیحد ضروری ھے۔اسی کوشش کو               DISEASE MONGERING  کا نام دیا گیاھے۔”ڈیزیز مونجرنگ“ ایک صحت مند انسان کے من میں یہ خوف پیدا کر دیتی ھے کہ وہ کسی نہ کسی مرض کی گرفت میں ھے۔ جو انسان چھوٹی موٹی بیماریوں جیسے: کھانسی زکام وغیرہ سے پریشان ھے اور اسے یہ احساس کرایا جاتا ھے جیسے اسے کوٸی بہت بڑی بیماری لگ گٸی ھے۔جس کا علاج ھونا صد فیصد ضروری ھے۔اس نظریہ کو Ray Moynihan,Iona heath اور David Henry نے ”برٹش میڈیکل جرنل (BRITISH MEDICAL JOURNAL) میں کارپوریٹ کنسٹرکشن آف ڈیزیز  (CORPORATE CONSTRUCTION OF DISEASE) کا نام دیا ھے۔اس کے مطابق بیماریوں کے بارے میں جھوٹی و انرگل باتوں کا افواہ پھیلایا جاتا ھے۔تاکہ صحتمند لوگوں کو بیمار بتا کر بہت سارا پیسہ بنایا جا سکے۔یہی وجہ ھے کہ دوا ساز کمپنیاں نٸی-نٸی بیماریاں اور انکی دواٸیں بنا کر اپنے گراھکوں کی تعداد بڑھانے میں لگاتار کام کرتی رہتی ھیں۔     ”ڈیزیز مونجرنگ“ کی ابتداء 1879 میں LISTRIN کے ایجاد سے ھوٸی۔جو دراصل ایک سرجیکل انٹی سیپٹک ھے۔اسکا نام مشہور انگریزی سرجن جوزف لارینس لِسٹر جنھوں نے پہلی انٹی سیپٹک سرجیکل عمل کی نماٸش کی تھی۔اسی کے نام پراسکا نام رکھا گیا۔جلد ھی Listrin کے موجد ”ڈاکٹر جوزف لارینس لسٹر“ اور ”جارڈن وی لیمبرٹ“ اسے ”فرش صاف کرنے والا کلینر“ اور گونوریا کے علاج کیٸے بیچ رھے تھے۔ 1895 میں وہ اسے”دانتوں اور سانس کی بدبو“ کے علاج کے لٸے دانتوں کے ڈاکٹروں کو بیچ رھے تھے۔1914 تک امریکہ میں ایک ”اوور دی کاٶنٹر ماٶتھ واش“ کی شکل میں راٸج ھو چکا تھا۔1920 کے دھاٸی میں ”لیمبارٹ فارماسیول کمپنی (Listrin) بنانے والےکو یہ یقین ھو گیا کہ انھیں ایک ”علاج“ مل گیا ھے۔ اب ضرورت تھی صرف ”ایک عدد بیماری“کی۔اور ایک نٸی بیماری ”ایجاد“ کی گٸی جس کا نام HALITOSIS رکھا گیا۔ ھیلیٹوسس ”منہ کی بدبو“ کیلٸے ایک میڈیکل Term تھا۔جسکی بارے میں بہت کم لوگوں کو جانکاری تھی۔اشتہارات کے ذریعہ لسٹرین (LISTRIN) کو منہ کی بدبو کی بیماری HALITOSIS کیلٸے علاج واحد کی شکل میں پیش کیا گیا۔اشتہار بازوں نے "ھیلیٹوسس" کو ایک ایسی بیماری بتایا جو کسی بھی انسان کے کیریٸر، عشق اور ازدواجی زندگی میں ناکامی کی وجہ بن سکتا ھے۔ پھر کیا تھا جلد ھی امریکہ کی 90 فیصد آبادی ھیلیٹوسس نام کی ایک بیماری کی چپیٹ میں آ چکی تھی۔    میڈیکل لابی جانتی ھے کہ اسے زیادہ سے زیادہ منافع پانے کیلٸے معمولی سے معمولی اور روزمرہ کے کے تجربات کو علاج کی شکل میں پیش کرنا ھوگا۔ اسے ھر ایک جذبات، عادات و اطوار اور موڈ کے بدلاٶ کو ایک بیماری یا عیب کی شکل میں پیش کرنا ھوگا جس کا کیمیاٸی علاج ضروری ھوگا۔ انکے اس پلان کے تحت حالات کو اس طرح بڑھا چڑھا کر پیش کرنے کی ضرورت تھی جس سے وہ ایک خطر ناک مرض لگنے لگے۔ساتھ ھی انھیں یہ احساس کرا دینا تھا کہ اگر وقت رہتے اسکا علاج نہ کیا گیا تو وہ آپ کی ذاتی خوشیوں و کامیابیوں کی امیدوں تک کو برباد کر سکتا ھے۔یہ حقیقی زندگی لیکن غیر یقینی حالات کو اس انداز سے دکھلاتے ھیں کہ بیشتر افراد ماننے لگے ھیں کہ وہ بیماری میں ملوث ھیں۔یہ عجیب مگر سچ ھے کہ لوگوں کے تاثراتت کو جب نقص یا مرض کے نام سے جوڑا جاتا ھے تو انھیں ایک آرام یا سکون کا احساس ھوتا ھے۔انھیں ذھنی طور پر سنبھالنا آسان ھو جاتا ھے۔انھیں لگتا ھے :”مجھے فلاں-فلاں مرض ھے اور اللہ کاشکر ھے کہ فلاں-فلاں دواٸیاں صرف أور صرف میرے لٸے ھی بنی ھیں۔“    اپنے کسی عزیز کے انتقال کے بعد پرانی روٹین صرف دو ھفتے بعد لوٹنا ناممکن ھے۔ مصیبت یا غم ایک ذاتی تجربہ ھے اوربیشتر افراد میں کسی سانحہ یا غم کی مدت دو سے چھ ماہ یا کبھی-کبھی اس سے بھی زیادہ کی ھوتی ھے۔ ھمارے خاص رشتہ دار کے انتقال کے بعد غم منانے کی یہ ایک عام مدت اور عمل ھے۔لیکن AMERICAN PSYCHIATRIC ASSOCIATION اس قسم کے منانے کے عمل کو ایک ”ذھنی مرض“ کی شکل میں شمار کیاھے۔جس سے ڈاکٹروں کو بڑھاوا ملے کہ وہ 2 ھفتے سے طویل مدت کے غم کو ایک ”شدید ذھنی مرض“ کا نام دے سکیں۔    ”غم“ کو ایک ” ذھنی مرض“ کا سرٹیفیکیٹ دینے سے یہ ایک ”دوا“ کے ذریعہ ٹھیک کیا جانے والا اور ”بل بنانے والا“ مرض بن جاٸیگا۔پھرویہ ”انشیورنس کمپنی“ کے ذریعہ ”claim“ کیا جا سکےگا اور ہھمارے ”ھیلتھ رکارڈ“ میں ایک ”بدنما داغ“ کی شکل میں جھلکتا رھے گا۔   امریکن ساٸکیٸٹرک ایسوسی ایشن (APA) کے مذکورہ تقسیم زیرغور مسودے کے مطابق: ”دو ھفتے سے زیادہ مناٸے جانے والے غم کو ”ایک ذھنی مرض“ کی شکل میں”ڈایگنوسٹک اوراسٹیٹیکل مینوٶل یعنی (ڈی ایس ایم-5) کے آٸندہ شمارہ میں شامل کر لیا جاٸے گا۔    ڈی ایس ایم-4 (DIAGNOSTIC MANUAL & STATICAL) کےمطابق غمگین ھونا، نیند نہ آنا اور رونا، غم کے ھلکے پھلکے خصوصیات میں شامل ھیں۔ڈی ایس ایم-4 کی گاٸڈ لاٸنس میں”عام غم“اور مخصوص ”ڈی پریشن“ کی خصوصیات کے درمیان اھم تفریق کو ظاھر کیا گیا ھے۔ رچرڈ فراٸیڈمین (ایم ڈی) نے "THE NEW ENGLAND JOURNAL OF MEDICINES" کیلٸے اپنے مقالے میں لکھتے ھیں:”ڈی ایس ایم-5" کے نٸے گاٸڈ لاٸنس ان صحتمند انسانوں کو جو ذرا سا بھی پریشان یا غمگین ھوں تو ان کو ایک بھترین CLIENT بنا دیتی ھیں جنہیں ANTI DEPRESSENT یا دیگر اقسام کی ذھنی امراض کو دور کرنے والی دواٸیں لکھی جاسکتی ھیں۔“    رچرڈ کے مطابق یہ ”ڈی ایس ایم-5“ PHARMACEUTICAL COMPANIES کیلٸے ایک اعلی درجے کا تحفہ ثابت ھوگا، کیوں کہ یہ غیرضروری ANTI DEPRESSENT اور ANTI PSYCHOTIC کے استعمال بڑھاوا دیگا جو خصوصی طور پر DEPRESSION وغیرہ کیلٸے استعمال میں لاٸی جاتی ھیں۔“    رچرڈ اس بات کی جانب بھی توجہ دلانا چاھتے ھیں کہ ”امریکہ میں ھرسال 2.5 ملین لوگوں کی موت ھوتی ھے اور ان کی وجہ سے غم میں ڈوب جانے والوں کی تعداد اس سے بھی کہیں زیادہ ھے۔ یہ وھی غمگین افراد ھیں جن کا علاج کر کے یہ دوا ساز کمپنیاں منافع کمانا چاھتی ھیں۔اس کیلٸے ڈاکٹروں کو APA اور ان کے ذریعہ تشکیل دی گٸی گاٸڈ لاٸنس کو تھینکس کہنا چاہیے۔ *  اسی طرح کے پوسٹ جو ماڈرن سائنس کی پول کھولنے والی ھوں گی، میرے فیس بک ٹائم لائن پر جائیں یا میرے Whatsapp no 9334518872 پر جائیں۔ اردو، انگریزی و ھندی میں ڈھیر ساری پوسٹ پڑھکر سچائی سے روبرو ہونگے اور دیکھیں گے کہ کیسے یہ فارما سیو ٹیکل کمپنیاں بیوقوف بنا کر عوام کو کنگال بنا رھی ھیں۔         نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

لائف سٹائل ڈیزیزیز صد فیصد ریورسیبل(REVERSIBLE)

"آپکو کوٸی بھی لاعلاج بیماری یا دیگر مھلک امراض یا پرانی تکلیف و پریشانی رھتی ھو تو ضرور از ضرور رابطہ کریں۔"     "پوسٹ کو سنجیدگی کے ساتھ پڑھیں,پھر آپکو مجھ سے کچھ بھی پوچھ تاچھ کرنے یا تحقیق کرنے کی ضرورت ھی نھیں پڑیگی۔اور نیچے درج پتے پر پہنچ کر اپنا مکمل علاج کرالیں اور پھر خوشحال اور صحتمند زندگی کا لطف اٹھاتے رھیں۔"    نیچے لکھی چند بیماریاں جس کو ھم لوگ "LIFESTYLE DISEASE" کے نام سے جانتے ھیں. اسطرح کی سارے امراض کا مکمل علاج %100 ممکن ھے,وہ بھی صرف اور صرف ایک ھی ”یونانی دوا“ سے۔کیونکہ ساری بیماریاں”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے درمیان گڑبڑ کیوجہ سے ھی وجود میں آتی ھیں، مگر جسم کے مختلف اعضاّ کی مناسبت سے اسکا نام دے دیا جاتا ھے۔لیکن سارے امراض ”DIABETESE“ کی بدلی ھوٸی شکل ھی ھے۔ ”GLUCOSE“ اور ”INSULIN“ کے بیچ میں جب تک تال میل صحیح ھے تب تک ھم صحتمند رہ پاتے ھیں۔یھی ایک سب سے بڑی سچاٸی ھے جسے سینکڑوں سالوں سے ھملوگوں سے چھپاٸی گٸی ھے ان بڑی بڑی ”PHARMACEUTICALS COMPANIES“ کی جانب سے۔تاکہ وہ اپنا بزنس چلا بڑھا سکیں۔ھم لوگوں کو ڈرایا گیا ھے ھمیشہ سے جسے ”DISEASE MONGERING“ یعنی ”خوف کا کاروبار“ کہتے ھیں،اور اسکا فاٸدہ ھم سب کو الو بناکر اُنکے ذریعہ اٹھایا جاتا رھا ھے۔     DIABETESE,HIGH BP, CHOLESTEROL, THYROID, ANY TYPES OF VIRAL DISEASESES:- "DENGUE, H1N1, SWINE FLUE, CHIKANGUNIA, HIV-AIDS"  وغیرہ امراض کی ساری سچاٸی اور حقیقت اب دنیا کے سامنے آ چکی ھےجس کو ھملوگ  ”LIFESTYLE DISEASE“ کے نام سے جانتے ھیں۔اور اپنی اس بات کو کسی بھی منچ پر سب کے سامنےثابت کر سکتا ھوں کہ تمام امراض پوری طرح سے ھمیشہ کیلٸے ”REVERSE“ ھو جاتی ھیں جس کیلٸے زندگی بھر "ALLOPATHIC MEDICINES" کھلایا جاتا ھے،یعنی تاحیات مریض بناکر رکھا جاتا ھے۔ضرورت ھے صرف اور صرف عوام، جنتا، سماج، سوساٸٹی کے جاگنے- جگانے کی۔ آگے آٸیے! اس عوامی اور سماجی بیداری مھم کا حصہ بنٸے جسے "DISEASE FREE SOCIETY CAMPAIGN" کا نام دیا گیا ھے۔     تمام امراض ایک متعین اوقات مں بالکل REVERSE ھو جاتی ھیں۔                ::::::::::::::::::::::::::::::::: 3-4 MONTHS -DIABETES HIGH B P,HIGH         CHOLESTEROL,INTESTINAL          DISORDER,THYROID.  4-6 MONTH - ARTHRITIS,KIDNEY       DYSFUNCTION, OBESITY (5 kg/      month), LIVER DISORDER,HEART       DISEASES.  6 MONTHS - ASTHMA  9 MONTHS - SKIN DISORDER, ADVANCE STAGE OF CANCER.              :::::::::::::::::::::::::::::::::    DEAR FRIEND !       جو واحد "UNANI MEDICINE“ میں دیتا ھوں ، اور جو باتیں بتاتا ھوں ، وہ ساری دواٶں سے بالکل الگ ھے۔الگ اس معنیٰ میں کہ تمام امراض کیلٸے یہی "ایک دوا" کافی ھے۔ اسکو ایک مقررہ وقت تک ھی استعمال کرنا پڑتا ھے۔اسکی شروعات کے دن سے ھی ھر قسم کی دواٶں کو کنارے رکھ دینا پڑتا ھے۔     لوگوں کو بالکل عجوبہ سا لگتا ھے، کیونکہ ”ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC“ والوں نے اتنا زیادہ پراپیگنڈہ پھیلایا ھوا ھے، اور ”UNANI MEDICINES“ کے بارے میں لوگوں کے ذہن و دل میں ایسی ایسی غلط فہمیاں ڈال دی گٸیں ھیں کہ واقعی عجوبہ ھی لگتا ھے۔اسی لئے لوگوں کی ساری غلط فہمیاں دور کرنے اور ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کی حقیقت سامنے رکھنے، بتانےاور ان کی سازشوں کا بھانڈہ پھوڑنے میں 3-4 گھنٹے لگ جاتے ھیں۔سارا کچا چٹھہ کھول کر جب تک نہیں بتایا جاٸے تو کسی ایک کو بھی یقین نہیں ھوتا۔ ”DIABETESE“ اور دیگر سبھی قسم کی امراض یعنی”LIFESTYLE DISEASES“ کی”ALLOPATHIC MEDICINES“ پہلے دن سے ہی چھوٹ جاتی ھے، اور پھر ھیشہ کیلٸے۔مستقبل میں پھر کبھی اس کی ضرورت بھی نہیں پڑیگی۔ ان شاء اللہ۔    آج تک لوگوں کو ”PHARMACEUTICAL COMPANIES,ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC HOMEOPATHIC“ والے تو صرف عوام الناس کو بیوقوف ھی بناتی آ رھی ھیں۔ یہ لوگ ان کمپنیوں کے ایجنٹ کے طور پر کام کرتے ھیں جسکے بدلے میں خطیر رقم بطور کمیشن اور انعام ملتا ھے۔مگر اب بس! ”DIABETESE“ یا کسی بھی ”LIFESTYLE DISEASES“ کے ھونے کے اسباب کو نظر انداز کیا جاتا رھا ھےتاکہ یہ، اور اس طرح کی تمام بیماریوں میں زندگی بھر ”ALLOPATHIC MEDICINES“ کھلاتے رھیں اور ”PERMANENT CUSTOMER“ بنا کر لوٹتے رھیں۔     میں جو صرف "ایک ھی دوا" ھر امراض کے لٸے دیتا ھوں, اسکو استعمال کرتے ھی پہلے روز سے ھی اپنا اثر دکھانے لگتی ھے۔     ”ALLOPATHIC,UNANI,AYURVEDIC اور HOMEOPATHIC MEDICINES“  چھوڑنا پڑتا ھے ھمیشہ کے لٸے۔ 4 ماہ بعد  میری ”UNANI MEDICINES“ بھی بند ھو جاتی ھے، ان شاء اللہ۔        نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

خوف کا بزنس یا کاروبار (DISEASE MONGERING)

غم اور ماتم-کب تشویش ناک ھے؟اگر ہم غم و اندوہ کی بات کریں تو کہہ سکتے ہیں کہ غم و الم کی انتہا آہستہ آہستہ وقت کے ساتھ گھٹتے ہوئے ختم ہو جاتی ہے لیکن 10 سے 20 فیصد افراد کو نارمل ھونے میں چند ماہ یا سال بھی لگ جاتے ہیں۔ایک تحقیق کے مطابق لمبے عرصے تک چلنے والی غم والم ایک عادت کی طرح کام کرتے ہیں اور ہمارا دماغ جانے انجانے اسی سرور میں مگن رھنے لگتا ہے۔اسکا مطلب یہ ہے کہ اگر آپ غم سے نجات حاصل کرنے کی کوشش کریں تو نیچے دیئے سجھاؤ پر عمل کریں۔یہ بہت ہی سودمند ثابت ہوگا:-پہلے تو آپ یہ جان لیں کہ غم والم کی تاریکیوں سے باھر نکل پانا آسان نہیں ہوتا لیکن ھر شخص اس سیاہ غار کی تاریکی سے نکل پانے کا اہل ھے۔چھ ماہ کے دوران ھی آپکو اس سیاہ غار کے دوسرے سرے پر روشنی کی شعاعیں دکھائی دینے لگیں گی اور آپ خود کے مثبت حوصلے کے ذریعہ غمگین حالات سے باھر نکل سکتے ہیں۔اس دوران ورزش ازحد مددگار ثابت ہوتا ہے۔ھمیشہ یاد رکھیں کہ آپ کاجسم و دماغ آپکے کھان پان پر منحصر ہوتی ہے۔اگرآپکی غذا بہترھے تو آپ کو کوئی بھی ذھنی امراض نہیں ھو سکتا ھے۔غذا کے علاوہ اچھی,بہترین اور بھرپور نیند لینا بھی ضروری ہے۔اگر آپ دنیا کی سب سے بہترین غذا لے رہے ہیں اور بلاناغہ ورزش کر رہے ہیں،لیکن ٹھیک سے سو نہیں رھے ھیں تو آپ کے ذہنی توازن میں خلل واقع ہونے کا امکان ھو سکتا ھے۔    خلاصہ یہ کہ آپ اچھی غذا،ورزش،نیند اور مثبت سوچ سے کسی بھی غمگین حالات سے بآسانی باھر آسکتے ھیں،جوکہ آگے چل کر ذہنی خلل کا سبب بن سکتا ہے۔ڈیزیز مونجرنگ (Disease Mongering) کی چند مثالیں:- 1- بال جھڑنا یا گنجاپن  -  Hair Follicles Disorders 2- پیٹ میں درد یا Bowel Movement میں تبدیلی  -  Irritable Bowel Syndrome 3- شرمیلا پن  -  Social Fobia 4- ہڈیاں کمزور ہونا(یہ ایک Risk Factor ھے،لیکن اسے ایک مرض کی شکل دے دی گئی ھے۔)  -  Osteoporosis 5- عضو تناسل میں تناؤ میں کمی  -  Erectile Dysfunction 6- جن خواتین کو سیکس میں زیادہ دلچسپی نہیں ھے  -  Female Sexual Disorder 7- بڑھتے بچوں کے موڈ میں بدلاؤ  -  Bipolar Disphoric Disorder 8- خواتین میں حیض سے قبل آنیوالا تناؤ  -  Pre-menstrual Disphoric Disorder -9- بلاسب ٹانگیں ھلانا  -  Restless Leg Syndrome 10- 60 سال کی عمر کے بعد ذھنی توازن بگڑنے کا امکان  -  Psychosis Risk Syndrome 11- بھولنے کی عادت  -  Mild cognitive Impairment 12- بلڈ گلوکوز لیول نارمل رینج سے زیادہ ھونا  -  Pre-diabetes 13- پیر کے انگوٹھے کے ناخن میں انفکشن  -  Toe Nail Fungus 14- کبھی کبھی سینے میں جلن  -  Gastero-Eosophageal Reflex Syndrome(GRD) 15- نوجوانوں کا کام میں جی نہ لگنا،بھولنا اور غیر سنجیدگی  -  Adult Attention Deficit Hyperactivity Disorder 16- بغیر کسی وجہ کے جسمانی تھکان و درد  -  Fibromyalgia 17- سانسوں میں بدبو  -  Halitosis 18- 40 سے 45 برس کے بعد حیض کا رک جانا  -  Menopause 19- تیزرفتار گاڑی چلانے کی عادت  -  Road Raise 20- بار بار ٹایلیٹ جانے کی خواہش  ۔  Over Activ Bladder 21- زیادہ ورزش کرنے کے بعد ایک اتھلیٹ کے چہرے پر چربی کی کمی  -  Runner Face 22- زیادہ خریداری کرنے کی خواہش  -  COMPULSIVE SHOPPING Disorder 23- مردوں میں ٹیسٹوسٹیرون کی کمی - Low T 24- زیادہ انٹرنیٹ سرفنگ کرنا  -  Internet Addiction Disorder 25- میتھس حل کرتے ہوئے مشکل ھونا  -  DISCALCULIA 26- بہت زیادہ صفائی پسند ھونا،کسی بھی کام یا بات کی گہرائی میں جانا یا پرفکشنزم  -  Obsessive-Compulsive personality Disorder 27- جم میں زیادہ وقت گزارنا  -  Muscle DISMORFIA 28- تیرہ (13) نمبر کا ڈر  -  TRISCIDEK AFOBIA    تو،دیکھا آپ نے!کس کس قسم کے ہتھکنڈے اختیار کیے جاتے ہیں فارما سیو ٹیکل کمپنیوں کی جانب سے۔تاکہ آپ خود کو مریض سمجھ کر ان ڈاکٹروں (فارما سیو ٹیکل کمپنیوں کے دلال) کے پاس جاؤ،کوئی نہ کوئی بیماری بتا کر دواؤں کی لمبی چوڑی لسٹ تھما دینگے،اور اس بات کا یقین دلا کر ھی چھوڑیں گے کہ آپ کو ایک مہلک مرض لاحق ہو گیا ھے،اوراب ان دواؤں کے سہارے زندگی گزارنے کی کوشش کریں ورنہ کچھ بھی ہو سکتا ہے جس کے ذمے دار آپ خود ہونگے۔         نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

امراض جسے"تل کا تار" بنا دیا جاتا ہے

{"امراض" جسے "تل کا تاڑ" بنا دیا جاتا ہے}     صحیح معنی میں APA (AMERICAN PSYCHIATRIC ASSOCIATION ) کو امریکن ساییکو فارماکو لوجیکل ایسوسی ایشن کہنا چاھیے۔کیونکہ وہ سبھی ذھنی امراض کا علاج صرف اور صرف "دوا" کو ہی مانتے ہیں اور دوا کے استعمال کی ترغیب دیتے ھیں۔ ایک بری خبر یہ بھی ہیکہ APA اکثر عجیب و غریب نام و اقسام کے امراض کا "ایجاد" کرنے میں میڈیکل انڈسٹریز کے شانہ بشانہ کام کر رہی ہیں جو کہ وقتا فوقتا میڈیکل لٹریچرس میں شامل کی جاتی ھے۔مثال کے طور پر:-   * اگر آپ بہت زیادہ شاپنگ کرتے ھیں تو آپ کو "COMPULSIVE SHOPPING DISORDER" ھے۔   * اگر آپکو ضرب (×) کرتے ہویے پریشانی ہوتی ھے تو آپکو "DISCALCULIA" ھو سکتا ھے۔   * اگر آپ ویب سرفنگ میں زیادہ وقت گزارتے ہیں تو آپ کو "INTERNET ADDICTION DISORDRR" کا عارضہ ھے۔   * جم میں زیادہ ورک آؤٹ کا مطلب ھیکہ آپ "BIGOREXIA" یا "MUSCLE DISMORFIA" کے مریض ھیں۔   *اگر آپ کو نمبر 13 سے ڈر لگتا ھے تو غالبا آپ کو "TRISCIDEK FOBIA" ھے۔   یہ جدید امراض اگر زیادہ سے زیادہ افراد میں ملنے لگے تو "DSM" کے اگلے شمارہ میں شامل ہو جایےگا۔کسی بھی برتاؤ یا نقص پر اگر دواؤں کا اثر پڑتا ھے تو یقینی طور پر ایک مرض تسلیم کیا جانا طے ھے۔ اور DSM میں از خود شامل کر لی جایے گی۔ DSM میں شامل 297 ذھنی امراض میں سے کوئی ایک مرض بھی ایسا نہیں ہے جسے کسی اعلی پیمانے پر جانچا پرکھا جا سکے۔دوسرے لفظوں میں کہا جا سکتا ھیکہ یہ امراض مکمل طور پر ایک تکا کا کھیل ھے،ایک ڈراموں بھر ھے۔ایک PSYCHIATRIC PANEL میں بیٹھ کر آزادانہ طور پر DSM میں درج ذھنی امراض کے SYMPTOMS کو مرض میں تبدیل کر دیا جاتا ھے۔جسکا کوئی اسٹینڈرڈ ھوتا ھے اور نہ ھی CRITERIA ھوتا ھے۔      "مطلب صاف ھے۔ یہ لوگ MEDICINES کے حساب سے نیی  نیی بیماریوں کا ایجاد کر رھے ہیں،نہ کہ بیماریوں کے لیے دواؤں کا۔"آج کسی بھی ماہر نفسیات یعنی PSYCHOLOGIST سے ملنے کا مطلب ھیکہ آپ ایک ذھنی مریض ھیں،اور آپکا صرف ایک "غیر فطری عمل" بھی ایک نقض یا مرض کے ضمرے میں دیکھا جائے گا۔اس بات کا صد فی صد یقین ھیکہ آپ کسی "ماہر نفسیات" کے چیمبر سے ایک "ذھنی مریض" کا "تحفہ" لے کر ھی باھر آیینگے۔اور آپکے ہاتھوں میں قطعی طور پر دواؤں کی لمبی فہرست والا چٹھہ بھی ہوگا۔ آپکے برتاؤ کو کس طرح معمول پر لایا جائے اور کس طرح آپ اپنی طرز زندگی (LIFESTYLE) میں کچھ تبدیلی لا کر خود کو نارمل کر سکتے ھیں۔یہ سکھانے کی بجائے کوشش یہ رہتی ہے کہ آپکو آسان طریقہ بتا دیا جائے، اور وہ ھے:"دواؤں کا استعمال-" یہ طریقہ آسان ھی نہیں بلکہ انکے لئے منافع بخش اور پرکشش بھی ھے،کیوں کہ اسکے ساتھ ہی ماہر نفسیات کی مستقبل کی کیی منافع بخش امیدیں وابسطہ ھیں۔انسان کے الگ الگ اقسام کےطور طریقے کو ایک نفسیاتی مریض کی شکل دینے کا یہ فنڈا دوا ساز کمپنیوں کے لیے "قارون کا خزانہ" ثابت ہوا ھے۔مارکیٹنگ پروفیشنل MR WINS PARRY نے اسے ایک آرٹ کا نام دیا ہے- "THE ART OF BRANDING A CONDITION"! انکا کہنا ہے کہ ہر دس سال میں DSM کے بڑھتے دایرے سے یہ یقین اور بھی مضبوط ھو جاتا ھے کہ دنیا پہلے سے بھی زیادہ غیر یقینی ھو گیی ھے۔شاید‌ یہی وجہ ہے کہ ہمیں یہ جان کر بالکل بھی تعجب نہیں ہوتا کہ ان نیی نیی بیماریوں کے ایجاد اور انکے مشتہر یعنی ایڈور ٹائزنگ میں دواساز کمپنیوں کا سیدھا پیسہ لگا ہوا ہے،چاھےوہ کوئی تحقیق ھو یا پھر اسکی ایڈورٹائزنگ۔اس سے بھی قابل مذمت بات کیا ہوسکتی ہے،جب‌ AMERICAN PSYCHIATRIC ASSOCIATION کا ایک سابق چیئرمین یہ مانتا ہے کہ APA کے ذریعے DSM میں کی گئی احتیاطی تدابیر اور غلطیوں کا نتیجہ بہت ہی برا ھو سکتا ھے۔ایسی غلط تدابیر کی وجہ سے لاتعداد بچوں اور نوجوانوں پر ایک "ذھنی مریض" ھونےکا لیبل لگ چکا ھے اور ذہنی امراض کا ایسا "جال" پھیل گیا ھے،جنکا حقیقت میں کوئی وجود ہی نہیں تھا۔        نوٹ:-                                                                   *  اسی طرح کے اور بھی رونگٹے کھڑے کر دینے والے ڈھیر سارے پوسٹ میرے فیس بک پیج کے ٹائم لاین یا وہاٹس ایپ پر پڑھیں اور آپ پائینگے کہ کس طرح سے یہ فارما سیو ٹیکل کمپنیاں عام لوگوں کو بیوقوف بنانے کا کام کرتی ہیں۔اور مریضوں کو کنگال کر رہی ہیں۔     نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف  -/3000 روپیہ ہی ہے۔ جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے ۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

میں یہی کرتا ہوں

ذرا سوچئے ! سائنس ھمیں کہاں لے آیا؟ * پہلے وہ کنواں کامیلا کچیلا پانی پی کر بھی100سال زندہ رہتے تھے اوراب RO کا صاف شفاف پانی پی کر 40 سال میں بوڑھے ھو رھے ہیں۔ * پہلے وہ گھانی کامیلاساتیل کھاکربڑھاپے میں بھی محنت کرلیتےتھےاوراب ہم ڈبل فلٹرڈ تیل کھاکرجوانی میں بھی ھانپ جاتے ھیں۔پہلے وہ ڈلی والا نمک کھاکر بیمارنھیں پڑتے تھے اوراب ہم آیوڈین والا نمک کھاکر ھائی بلڈپریشر (HIGH BLOOD PRESSURE) لئے پڑے ھیں۔ * پہلے وہ نیم ببول کوئلہ نمک سے دانت چمکاتے تھے اور80سال تک ہڈی بھی چباچبا کر کر کر کر کر کھاتے تھے اور COLGATE سے دانت چمکانے والےاکثروبیشترDENTISTکے چکر لگاتے دیکھے جاسکتے ھیں۔ * پہلے وہ نبض پکڑ کر مرض بتا دیتے تھے اور اب آج ہر قسم کا PATHOLOGICAL جانچ کے بعد بھی مرض نہیں بتا پاتے تو علاج کیا کرینگے؟ * پہلے 7-8 بچے پیدا کرنے والی مائیں 80 سال کی عمر میں بھی کھیتوں میں کام کیا کرتی تھیں اور آج کل حمل کے پہلے ماہ سے ہی ڈاکٹر کی نگہبانی میں رہتی ھیں اور پھر بھی پیٹ چیر کر پیدا کروایا جاتا ھے۔ * پہلے کالے گڑکی مٹھاٸیاں ٹھونک ٹھونک کر کھاجاتے تھے اور اب کھانے سے قبل ھی شوگر کی بیماری ھو جاتی ھے۔ * پہلے بزرگوں کے بھی گھٹنے نہیں دکھتے تھے اور اب جوان بھی گھٹنوں و کندھوں کے درد سےکراہتا ھے۔ * سمجھ نہیں آتا کہ یہ"ساٸنس کا دور"ھے یا "دور جہالت"۔ * اب ڈاکٹرس (دھرتی کے بھگوان) ہماری بیماری پر ھی صد فیصد دھیان لگاتے ھیں نہ کہ ھماری صحت پر۔ وہ چاھتے ھیں کہ ھم ھمیشہ بیمار رھیں اور دوا کھاتے رھیں۔ * بیماری چاھے جیسی بھی ھو، صد فیصد علاج موجود ھے۔کوٸی بھی بیماری لاعلاج نہیں۔ بلکہ کسی بھی بیماری کو لاعلاج بتا کر ھمیں ڈرا کر زندگی بھر بیمار رکھ کر دوا کھلاتے رھنے کا دھندہ چلانا انکا مقصد ھے۔جس میں یہ ڈاکٹرس، دوا کمپنیاں، جانچ سنٹرس کا آپس میں بہترین تال میل ھے۔ لیکن یہ بات آپلوگ بہت اچھی طرح سے یاد رکھٸے کہ اب انکی پول کھل گٸی ھے۔ ھر بیماری 100 فیصد ٹھیک ھوتی ھے اور وہ بھی ان "مھان" ڈاکٹروں کے پاس گٸے بنا۔ ان ڈاکٹروں کو کسی بھی بیماری کیوجہ ھی نہیں معلوم تو علاج کس چیز کا کرینگے؟ مجھے پتہ ھےکہ بیماریوں کیوجہ صرف اور صرف ”ایک“ ھے۔ اسلٸے اس ایک ”وجہ“ کو درست کر دینے بھر سےکوٸی بھی بیماری ٹھیک ھو جاتی ھے اور انسان بالکل صحتمند زندگی گزار سکتا ھے۔ میں ایسا ھی کرتا ھوں۔ * اسی طرح کے اور بھی رونگٹے کھڑے کر دینے والے ڈھیر سارے پوسٹ میرے فیس بک پیج کے ٹایم لاین یا وہاٹس ایپ پر پڑھیں اور آپ پایینگے کہ کس طرح سے یہ فارما سیو ٹیکل کمپنیاں عام لوگوں کو بیوقوف بنانے کا کام کرتی ہیں۔اور مریضوں کو کنگال کر رہی ہیں۔ नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| ........................... BANK ACCOUNT DETAILS DR M A RIZWAN CANARA BANK BRANCH DIAGONAL ROAD BISTUPUR JAMSHEDPUR JHARKHAND SB A/C NO 0324101031398 IFSC CODE CNRB0000324 ....................... HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND. CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN



Last updated date 30/09/2020

ALLOPATHIC दवाओं का प्रकोप

अगर आप बरसों से कैंसर, डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिसआर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है। केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX®" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। * अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है।


* डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है। * बी पी लो करनेवाली दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है। * कोलेस्ट्रॉल कम करने की दव STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है। फैसला आपको ही करना है, और आज ही।


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Last updated date 30/09/2020

YouTube channel

मेरा लिखा हुआ पोस्ट ध्यान से पढ़ें, मेरा वीडियो देखने के लिए YOUTUBE CHANNEL पर जाएं, टाइप करें:- #HAKEEMMDABURIZWAN और देखें , जिसमें इलाज की बिल्कुल ऐसी नयी-नयी चौंकाने वाली जानकारी प्राप्त करेंगे, जो कभी कोई बड़े से बड़ा डॉक्टर, हकीम वैध आपको नहीं बताएगा।    इलाज कोई खेल तमाशा नहीं है। बीमारी चाहे जो भी हो, सभी रोगों का कारण एक ही है-GLUCOSE & INSULIN का UNBALANCE होना इसे REBALANCE  कर देने से ही कोई भी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाती है।उस METHOD को #UNIVERSAL LAW OF REBALANCING कहते हैं।जो केवल एक ही यूनानी दवा से किया जाता है। मैं ने ही यह दवा बनाई है। आप किसी भी प्रकार की बीमारियों का इलाज इस एक यूनानी दवा से करेंगे तो आप की बरसों से चलती आ रही अंग्रेजी दवाएं भी बन्द हो जाएंगी और बीमारी भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।   किसी भी वायरल डीज़ीज़ या लाइफस्टाइल डीज़ीज़ का ईलाज हमारी बनाई एक दवा-


#HEALTHINBOX® से शत् प्रतिशत मुमकिन है। जो देसी व यूनानी जड़ी-बूटियों बनाया गया है।हर ऐसी बीमारी जैसे मोटापा, डायबिटीज़, हाई बीपी, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, हृदय रोग, आर्थराइटिस, दमा, माइग्रेन, कैंसर, चर्म रोग, अमाशय और लीवर प्राब्लम, गठिया वगैरह के बारे में आपक डॉक्टर आपको ठप्पा लगा दें कि ज़िंदगी भर दवा खाते रहना होगा। तो वहीं पर इसके उल्ट मैं कहता हूं कि #HEALTHINBOX कम से कम चार महीने इस्तेमाल कर लें और जीवन भर केलिए बीमारी और ऐलोपैथिक दवा से दूर हो जाएं।  HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES


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Last updated date 30/09/2020

HEALTH IN BOX के बारे में

मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को  सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे।    आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।     इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है।


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Last updated date 30/09/2020

غیر ضروری علاج (UNNECESSARY INVESTIGATION AND TREATMENT)

ذرا سوچئے! اگر ایسا ہوکہ آپکی کار راستے میں چلتے چلتے خراب ھو جایے،اور پھر کچھ دیر بعد وہ خود بہ خود ٹھیک ھو جایے۔یا کبھی آپ کی کار کا ٹایر پنکچر ھو جائے اور خود ہی اپنا پنکچر ٹھیک کر لے۔    ان مشینوں کے ساتھ ایسا ہونا ایک خواب ھو سکتا ھے،لیکن انسان نما مشین کے ساتھ ایسا ھی ھوتا ھے۔جب آپکے جسم کے کسی بھی حصے میں چوٹ لگتی ھے یا کوئی عضو کٹ جاتا ھے تو وہاں سے خون بہنا شروع ھو جاتا ھے۔پھر خون جمع ھو کر زخم کو بھر دیتا ھے اور کچھ ھی دنوں میں آپ پوری طرح سے ٹھیک اور تندرست ھو جاتے ھیں۔اسی طرح آپکے جسم میں کوئی بیماری کا وایرس (Virus) داخل ھوتا ھے تو ہمارے جسم میں موجود "قوت مناعت" جسم کا ٹمپریچر (Temperature) بڑھا دیتی ھے، جس سے وہ ‌نقصاندہ وایرس اپنا وجود ھی کھو دیتا ھے،اور کچھ عرصہ بعد آپ کا بخار اتر جاتا ھے۔"مشین اور جسم انسانی میں یہی ایک بڑا فرق ھے۔"    ہمارا یہ جسم کسی فیکٹری میں تیار کیا گیا "پروڈکٹ" نہیں ھے۔فیکٹری سے نکلنے والا پروڈکٹ تو پوری طرح سے طے شدہ شرائط و ضوابط کے مطابق ھو سکتا،لیکن "انسان" کے ساتھ ایسا نہیں ھوتا۔"اس دنیا کا ھر انسان اپنے آپ میں خاص ھے۔"کسی پروڈکٹ کو بازار میں اتارنے سے قبل اسکی کوالٹی کی جانچ کی جاتی ھے،تاکہ پروڈکٹ میں بھول یا کوئی خرابی کے امکانات پر پہلے ھی روک لگا دی جایے۔اگرکسی پروڈکٹ میں کچھ کمی ھے تو وہ لاکھ چاہنے کے باوجود (خود) کو درست نہیں کرسکتا،لیکن جسم انسانی میں خود کو درست کرنے کی بےپناہ صلاحیت موجود ھے۔    آپکے جسم میں ھر پل لاتعداد خلیے ٹوٹتے رھتے ھیں اور آپکا جسم خودبخود دوبارہ انہیں بنا لیتا ھے یا مرمت کر لیتا ھے،لیکن جب آپ ہاسپٹل (Hospital) جاتے ھیں تو آپ کے جسم کی جانچ کچھ اس انداز سے کی جاتی ہے کہ آپ کوئی "انسان" نہیں بلکہ ایک "مشین" ھوں۔ اس بات کو سمجھنے کے لیے درج ذیل مثال کو بغور دیکھیں:-    1- 1991 میں "Investigative Radiology" نام کے Journal میں شایع ہونیوالی ایک رپورٹ کے مطابق،"ایک تجربہ میں کچھ ایسے لوگوں کو شامل کیا گیا جن میں "Gall Stone"سے متعلق کوئی علامت نہیں تھی۔پھر ان سب پر یوں ھی Gall Bladder Disease کے امکانات کا پتہ لگانے کے لئے Ultrasound سے Scan کیا گیا تو پایا گیا کہ 10 فیصد افراد میں Gall Stone موجود تھا۔ 1- نیو انگلینڈ جرنل آف میڈیسن،1994 (New England Journal Of Medicine,1994) کے رپورٹ کے مطابق ایسے لوگوں کو جمع کیا گیا جن کو نہ تو Back Pain تھا اور نہ ہی Back Pain کی کوئی ھسٹری،لیکن MRI سے Back Scan کیے جانے کے بعد یہ پتہ چلا کہ 50 فیصد سے بھی زیادہ افراد میں Bulging Lumber Disc کا Problem ھے۔ 3- نیو انگلینڈ جرنل آف میڈیسن،2008 (New England Journal Of Medicine,2008) کے مطابق ایک تجربہ میں کچھ ایسے لوگوں کو جمع کیا گیا،جنکو نہ تو گھٹنوں کا درد تھا اور نہ ہی گھٹنے کے درد سے جڑاکوئی ھسٹری۔اسکے باوجود MRI کے ذریعہ گھٹنے کی Scanning کی گئی تو لگ بھگ 40 فی صد لوگوں کے گھٹنوں میں Maniscus Damage پایا گیا۔    خلاصہ یہ کہ ھمارے جسم میں ھمہ وقت مختلف قسم کے جوڑتوڑ چلتے رھتے ھیں۔یہ جسم کا ایک راز ھے۔لیکن ھم جسم کے Self Healing Mechanism (جسم کے ذریعہ خود کاعلاج کرنے کا عمل) پر یقین نہ کرکے گھبرا کر خود کو ڈاکٹروں یا سرجنوں کے سپرد کر دیتے ہیں۔اسکے بعد MRI یا Ultrasound کی رپورٹ میں جو کمیاں نظر آتی ہیں،ڈاکٹر اسے ٹھیک کرنے میں جٹ جاتے ھیں۔اس سے آپ کے جسم کا Micro Balance بگڑ جاتا ھے اور ایک سے دوسری اور دوسری سے تیسری بیماریوں کا ایسا سلسلہ شروع ھو جاتا ھے جو کبھی تھمنے کا نام ھی نہیں لیتا۔ٹائم میگزین (Time Magazine) کی ایک رپورٹ کے مطابق، "مرنے کے بعد جسم کی Autopsy Report سے پتہ چلا کہ لگ بھگ 98 فیصد افراد کے جسم میں Benign Cancerous Cell ہمیشہ موجود رہتی ھے۔لیکن چند وجوہات کی بنا پر یہ Cancerous Cells ایکٹیو ھو جاتی ھیں۔وہ اسباب درجِ ذیل ہیں:- 1- مسلسل چند ماہ تک ایسی دواؤں کا استعمال کرنا جو اکثر Diabetes, Cholesterol یا High BP کے مریض کرتے ہیں یا Birth Control Pills لمبے عرصے تک استعمال کرنا بھی کینسر سیلز کو ایکٹیو کر سکتا ھے۔ 2- کسی بھی قسم کا Diagnostic X-ray جیسے Mammography, Ultrasonography وغیرہ کینسر کوبلاوا دیتے ہیں۔فنلینڈ (Finland) کے Pathologist کی Report کے مطابق گلے کی Autopsy میں پایا گیا کہ لگ بھگ ھر شخص کے Thyroid میں کینسر سیلز بہت کم تعداد میں ہوتے ہیں۔اس لئے Benign Cancerous Cells کا Thyroid Gland میں ھونا عام طور پر مانا جانا چاہئے،لیکن آج Hospital اس بات کو علی الاعلان مشتہر کرتے ہینکہ "ھر سال آپ کو اپنے پورے جسم کا Scan کروا کر یہ دیکھنا چاہیے کہ جسم میں کسی Cancerous Cells کے ھونے کی امید تو نہیں ھے۔    Guide To Clinical Preventive Services,1996:-    اس کے تحت یہ ضابطہ بنایا گیا کہ ھر سال Cancer کی Screening ضروری ھے۔اور آپکو یہ جان کر حیرانی ھوگی کہ اس ضابطے پر عمل کرنے کے بعد سے اچانک ھی Thyroid Cancer کے معاملے کافی زیادہ سامنے آئے۔اس میں بھی خاص بات یہ ھے کہ بیشتر معاملے میں تو ڈاکٹر اپنی کالی آمدنی بڑھانے کے لئے Thyroid Gland کو سرجری کے ذریعہ نکال دینے کی کوشش کرتے ھیں،جسکی قطعی ضرورت نہیں ہوتی۔    تھائرایڈ گلینڈ (Thyroid Gland) ہمارے جسم کے لئے ایک بہت ہی اھم اور مخصوص عضو ھے،جسکو نکال دینے سے پورے جسم کی Biochemistry ایکدم سے بگڑ جاتی ھے۔ اور مریض ایک زندہ لاش کی طرح ھو جاتا ھے۔ 2005 تک Thyroid Cancer کے معاملے محض جانچ کی وجہ سے یا جانچ کے بعد کئی گنا بڑھ گئے،جبکہ Thyroid Cancer سے ھونےوالی حقیقی اموات کا گراف 1975 اور 2005 میں یکساں تھے۔مطلب بالکل صاف ھیکہ:-" ہسپتالوں کی یہی کوشش رہتی ھے کہ کسی بھی طرح سے،کچھ بھی کر کے،کسی بھی بہانے آپ کو بیمار بنا دیں۔اور اسکے ساتھ ہی ایک ایسا علاج مہیا کرادیں، جسکی آپ کو کبھی کوئی ضرورت ھی نہیں تھی۔"    اب Mammography یعنی Breast Cancer Screening پر ذرا غور کریں۔اسپتالوں کے ذریعہ یہ مشتہر کیا جاتا ھے کہ 40 سال کی عمر کے بعد ھر خاتون کو Breast Cancer ھونے یا ھونے کی علامات کا پتہ چلانے کے لئے Screening کروانی چاہیے۔اسی Mammography کا سچ جاننے کی کوشش کرتے ہیں:-    "National Center For Health Statistics" (A Body Of Health Department For US Government) کے مطابق اگر 2000 خواتین لگاتار 10 سال تک Mammo graphy کراتی ہیں تو 2000 میں سے صرف ایک خاتون کو ھی اس Screening کا فائدہ ملے گا۔مطلب صاف ھے کہ Screening کی وجہ سے 2000 کسی ایک خاتون کا ھی Breast Cancer ابتدائی مرحلے میں پکڑا جاتا ھے۔جس سے اس کے بریسٹ کینسر کے ٹھیک ھونے کے چانسز بڑھ جاتے ھیں۔    اب اس بات پر غور کیجئے کہ لگاتار Mammography سےکتنی فیصد خواتین کو نقصان ہوگا۔ 1992 سے 1997 کے درمیان ناروے حکومت کی جانب سے کرایے گیے دو تحقیقاتی رپورٹ یہ ثابت کرتے ہیں کہ Mammography کی شعاعیں جسم میں کینسر پیدا کرتی ہیں۔لگاتار 6 سالوں تک اگر کسی خاتون نے Mammography Test کرایے تو اس کے Breast Cancer کا عارضہ لاحق ھونے کے امکانات میں لگ بھگ 22 فیصد کا اضافہ ہوتا ھے۔ٹھیک اسی طرح بار بار X-RAY یا MRI  کے ذریعہ کی جانیوالی جانچ پڑتال نقصاندہ ھو سکتی ھے۔ذرا ان مثالوں کو غور سے دیکھیں:- 1- ایک خاتون مرگی کے دورے پڑنے کی وجہ سے Brain Scan کیلئے پہنچی۔ Scan کے دوران اسکے Sinus میں ایک Cyst پایا گیا۔حالانکہ Cyst کا مرگی کے دورے سے کوئی لینا دینا نہیں ھے۔ 2- ایک شخص ریڑھ کی ہڈی میں چوٹ کی وجہ سے X-ray کرانے گیا اور Radiologist نے Lungs میں ایک داغ ڈھونڈ نکالا۔حالا‌نکہ اس پھیپھڑے کے داغ کا،ریڑھ کی چوٹ سے کوئی لینا دینا نہیں ھے۔ 3- ایک خاتون اپنی سانس لینے کی تکلیف کی وجہ سے CT SCAN کروانے گیی اؤر انجانے میں ھی اس کے Liver میں ایک گانٹھ پایا گیا۔جبکہ اس Liver کی گانٹھ کا سانس لینے کی دقت سے کوئی تعلق نہیں ھے۔اس طرح جب جسم کے اندر Scan کیا جاتا ھے تو Radiologist کا دھیان کسی نہ کسی Unexpected growth پر چلا جاتا ھے۔ڈاکٹر کے اس تلاش کو  Incidentals کے نام سے بلاتے ھیں۔ایسے Growth آپکے جسم میں آتی اور جاتی رھتی ھیں۔اور ڈاکٹر اسے Growth of Unnecessary Benign Cancerous Cells کا نام دے دیتے ھیں۔پھر ایک اچھا خاصہ صحتمند انسان پر کینسر کے سارے علاج تھوپ دیجاتی ھے جس کی کبھی ضرورت ھی نہیں تھی۔  Archives Of Internal Medicine,1994  کی رپورٹ کے مطابق اگر 100 صحتمند افراد کے پھیپھڑوں کا CT SCAN کیا جائے تو لگ بھگ 35 فیصد افراد کے پھیپھڑوں میں ایسی گانٹھیں دکھائی دینگے جو کینسر کی گانٹھوں کے مشابہ ھونگی،لیکن 99.9 فیصد معاملے میں وہاں کینسر کی بیماری سے کوئی تعلق نہیں ہوگا۔ ٹھیک اسی طرح ایک سو صحت مند افراد کےگردےکے Scan میں ℅23 افراد کےگردے میں Cyst دکھائی دئے،جو پہلی نظر میں Cancerous Cells معلوم ہوا۔جب کہ سہی معنی میں انکے Cancerous ھونے کے امکانات لگ بھگ 0.05 فیصد ھی تھی۔اسی طرح اگر Liver کے CT SCAN میں صرف 15 فیصد افراد میں Incidentals ملیں گے،جسے پہلی نظر میں ھی ڈاکٹر اسے کینسر بتا دیں گے لیکن زندگی بھر میں یہ Incidentals بنا کسی بدلاؤ کے یا جسم کو کسی قسم کا نقصان پہنچائے بنا بس یوں ھی پڑے رھیں گے۔کہنے کا مقصد یہ ہے کہ اگر آپ جدید مشینوں یا آلات سے جسم کے اندر جھانک کر دیکھیں تو یقیناً کچھ ایسا مل ھی جایے گی جو میڈیکل کی دنیا میں آپ کے لئے جان لیوا قرار دے دیا جائے گا،لیکن سچ تو یہی ہے کہ جسم میں زہریلی شعاعوں کے ذریعہ غیر ضروری تاک جھانک کرنا یا جسم کے اعضاء کے ساتھ چھیڑ چھاڑ کرنا آپ کے لئے مہلک ثابت ھو سکتا ھے! *  اسی طرح کے پوسٹ جو ماڈرن سائنس کی پول کھولنے والی ھونگی،میرے فیس بک ٹائم لائن پر جائیں یا میرے Whatsapp no 9334518872 پر جائیں۔اردو،انگریزی و ھندی میں ڈھیر ساری پوسٹ پڑھکر سچائی سے روبرو ہونگے اور دیکھیں گے کہ کیسے یہ فارما سیو ٹیکل کمپنیاں بیوقوف بناکر عوام کو کنگال بنا رھی ھیں۔        نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX ہے۔ یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    ........................ NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS).    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپکی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

Migraine Problem

Migraine is a neurological disorder that causes intense, pulsing attacks that feel like headaches. It’s also associated with symptoms like nausea, vomiting, and increased sensitivity to sound or light. When these symptoms occur, it’s called a migraine attack. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Migraine Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Migraine Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine.



Last updated date 26/08/2020


ایک پیغام ان ڈاکٹروں کے نام جو "حرام" کی کماتے ہیں اور "حرام" کی کھاتے ہیں


یہ خیانت ہے کہ ڈاکٹر اپنے مریض کو صرف ان کمپنیوں کی دوائیں لکھ کر کے دے جو کمپنیاں اسے کمیشن، تحفے تحائف، کانفرنسوں میں شرکت کی دعوت اور تفریحی سیر و سیاحت جیسی مراعات فراہم کرتی ہیں۔جبکہ مارکیٹ میں دوسری کمپنیوں کی وہی دوائیں اس سے کم قیمت پر دستیاب ہیں۔ یہ بھی خیانت ہے کہ ڈاکٹر اپنے مریض کو مختلف چیک اپ اور X-ray ایکسرے کے لئے مہنگے ترین لبارٹریز LABORATORIES کی طرف ریفر کریں،* محض اس بنیاد پر کہ اسے ان لیبارٹریز کے علاوہ اور دوسروں پر بھروسہ نہیں۔ جب کہ حقیقت یہ ہے کہ ڈاکٹرز کا ان LABORATORIES کے ساتھ کچھ پرسنٹ کمیشن پر اتفاق/ ایگریمنٹ ہوتا ہے۔ اس سے بھی زیادہ گھناؤنا عمل یہ ہے کہ یہی کچھ کمیشن حاصل کرنے کے لئے ڈاکٹر مریضوں کو ایسے چیک اپ اور ایکسرے لکھ کر کے دیتے ہیں جن کی کوئی ضرورت ہی نہیں ہوتی۔یہ بھی خیانت ہے کہ ڈاکٹر محض پیسہ کمانے کیلئے حاملہ عورت کو آپریشن کے ذریعے ولادت DELIVERY پر مجبور کرے حالانکہ نارمل ڈلیوری کے امکانات موجود ہوتے ہیں۔ یہ بھی خیانت ہے کہ ڈاکٹر مریضوں کا آپریشن جنرل ہاسپٹل میں نہ کرکے اپنے پرائیویٹ اسپتال میں کرے اور آپریشن کے لیے اتنے پیسوں کا مطالبہ کرے جس سے مریض کے گھر والوں کی کمر ہی ٹوٹ جائے۔ یہاں تک کہ قرض لینے یا اپنے پاس موجود قیمتی چیزوں کو اونے پونے داموں پر فروخت کرنے کی نوبت آجاتی ہے۔ یہی نہیں، بلکہ بسا اوقات اتنے پیسے اکٹھا کرنے کے لئے ذلت و رسوائی کا بوجھ اٹھانے پر مجبور ہو جاتے ہیں۔ یہ بھی خیانت ہے کہ ڈاکٹر مریض سے نومولود بچے کو اضافی نگہداشت میں رکھنے کا مطالبہ کرے۔ حالانکہ اسے اچھی طرح معلوم ہے کہ اس کی کوئی ضرورت ہی نہیں۔ لیکن یہ سب کچھ محض پیسے کمانے کے لیے۔ یہ بھی خیانت کہ ایمبولینس ڈرائیور مریض کو اس ہاسپٹل میں لے جائے۔ جہاں اسے ہر مریض کے بدلے کچھ کمیشن ملتے ہوں۔حالانکہ وہاں دوسرے اس سے سستے اور اچھے ہاسپٹل موجود ہیں۔ خیانت یہ بھی ہے کہ مریض سے پیسے چوسنے کے لیے اس کو ایسے ہاسپٹل میں ایڈمٹ کر لیا جائے جہاں اس کی بیماری کے علاج کے لئے مناسب سہولیات موجود نہ ہوں اور اخیر میں یہ کہہ کر ڈسچارج کر دیا جائے: "بھائی ہمیں افسوس ہے کہ مریض کی حالت اب بہت نازک ہوگئی ہے اور اس کو کسی اسپیشلسٹ ڈاکٹر کی ضرورت ہے۔" حالانکہ یہ بات انہیں شروع ہی سے معلوم ہوتی ہے۔ اور یہ بھی خیانت کی ایک شکل ہے کہ اگر مریض کو کہیں دوسرے ہاسپٹل میں ریفر کرنے کی ضرورت ہو تو اسے مہنگے ترین ایمبولینس کے ذریعے ریفر کیا جائے۔ (یہ چند مثالیں ہیں ورنہ خیانت اور حرام کمائی کی اور بھی دوسری صورتیں اور شکلیں رائج ہیں جن سےمریض جوجھ رہے ہیں)_ سوال یہ ہے کہ کیا ہم ڈاکٹری اس لیے پڑھتے ہیں کہ مریضوں کی خدمت کریں یا ان کے لئے وبال جان اور مصیبت کا سامان بنیں۔ ڈاکٹرز اور حکماء حضرات! طب ایک بلند مقام پیغام اور انسانیت کی خدمت کرنے کے لئے ایک بہترین پیشہ کا نام ہے جس کے اپنے اصول و ضوابط اور عہد و پیمان ہیں جسے ڈاکٹروں کو اپنی جیبوں میں نہیں بلکہ اپنے دلوں میں لے کر کے چلنا چاہیے۔ زندہ ضمیروں کے مالک اور انسانیت نواز ان ڈاکٹروں کو بہت بہت سلام ہو خواہ کہیں بھی ہوں۔ وہ جس تعریف اور شکریہ کے مستحق ہیں ہم ان کا حق ادا نہیں کر سکتے۔ یقینا وہ ضرور اس دنیا کے مال و دولت سے کہیں زیادہ اپنے رب کے پاس عظیم اجر و ثواب کے مستحق ہوں گے۔ واضح رہے کہ انسان کا اپنا ضمیر سب سے بڑا نگراں ہیں۔ اس لیے اپنے ضمیر کو ٹٹولو کہ یہی اللہ رب العالمین کے نزدیک نیک اعمال کی قبولیت کا ذریعہ ہے۔ یہ میرا پیغام میرے اپنے ملک کے تمام ڈاکٹروں اور حکیموں کی انسانی ضمیر کے لیے ہے۔ کیونکہ ڈاکٹروں اور حکیموں کی انھیں خیانتوں اور منفی رویوں کی وجہ سے بہت سے بیچارے باشندگانِ وطن غربت و افلاس کے شکار ہو گئے اور بہت سارے لوگ اپنی جان سے ہاتھ دھو بیٹھے۔ آپ سے گزارش کی جاتی ہے کہ اس پیغام کو عام کریں تاکہ تمام ڈاکٹروں، دوا کی تمام تجارتی کمپنیوں، پرائیویٹ ہاسپٹل کے مالکان و دیگر LABORATORIES کے ذمہ داران تک پہنچ سکے۔

"मर्ज़ बढ़ता गया - जूं जूं दवा की"

ये कहावत आज के दौर में बिल्कुल सटीक बैठता है| साईन्स ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि आज वही आदमी सेहतमन्द है जो लैबोरेट्री में नही गया , या वो जो डाक्टर के पास नही गया| देखने में आया है कि जहां कहीं भी डाक्टर और उच्च तकनीक की स्वास्थ्य सुविधायें बहुत ज्यादा हैं ,वहाँ उतनी ही ज्यादा बीमारियां और मरिज़ होते हैं | कभी आपने सोचा कि आखिर ऐसा क्यो ? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जब भी जहाँ कहीं भी DOCTORS के द्वारा हड़ताल का आयोजन किया गया,तब-तब उन स्थानोँ में मरीज़ और मारीजों की मौत की संख्या में भारी कमी आ जाती है| क्या उच्च तकनीकी संसाधन,सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल या डाक्टर इसके जिम्मेदार हैं ? ये हमारे लिए बहुत बड़ी विडंबना है जिसपर हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया|हमलोग बस इतना जानते हैं कि बीमार पड़ गये तो डाक्टर के पास जाना है,वो दवा देगा जिसे हम खाकर स्वस्थ हो जायेंगे| हमारी मानसिकता यही है, जिसके लिए बहुत अच्छी,हाई क्वालिफाईड यानि ऊँची डिग्री के साथ सबसे ज्यादा व भारी भरकम फीस वाले डाक्टर की तलाश करते हैं| जब हम उनके चैम्बर से बाहर आते हैं तो ऐसा मालूम होता है कि बहुत बड़ी बीमारी में गिरफ्तार हो गये,यानि जितना बड़ा डाक्टर उतनी बड़ी बीमारी|इसे हमलोग WHITE COAT SYNDROME के नाम से जानते हैं| सच कहूँ तो हमारी शारीरिक बनावट अल्लाह ने ऐसी बनाई है जिस में ALLOPATHIC MEDICINES यानि CHEMICALS किसी भी हाल में फिट नहीं बैठता| कहा गया है कि "आप जहाँ कहीं भी रहते हो,वहाँ डेढ़ किलोमीटर के दायरे में ही आपकी सारी बिमारी का ईलाज मौजूद है|" बीमारी चाहे जैसी भी हो,उस सबका शत् प्रतिशत ईलाज आसानी से और सुलभता से मौजूद है| ज़रा सोचिए, ALLOPATHIC MEDICINES का चलन कितना पुराना है? क्या ईन्सान उससे पहले बीमार नहीं पड़ता था,फिर क्या उसका ईलाज नहीं होता था?ये भी सच है कि जब ALLOPATHIC MEDICINES नहीं था तो लोग ईकका-दुक्का ही बीमार पड़ते थे| लोग जीवनभर स्वस्थ रसता था| आज भी पूरी दुनिया में कितने ही ऐसे स्थान हैं जहाँ के लोग बीमार ही नहीं पड़ते|जो BLUE ZONE कहलाते हैं ,उन ईलाकों के नाम ये हैं :- 1- ALTA PEOPLE, SOLOMAN ISLANDS 2 - AUSTRALIAN ABORIGINES 3 - BOTSWANA NATIVES 4 - CARAJAS INDIAN, BRAZIL 5 - ESKIMOS GREENLAND 6 - KENYA NATIVES 7 - MELANESIANS,NORTHERN LOOK ISLANDS 8 - NATIVES NEW GUINEA 9 - SOUTH AFRICA NATIVES 10 - TARA HUMARA INDIAN, NORTHERN MEXICO 11 - UGANDAN NATIVES 12 - YANOMAMO INDIAN BRAZIL हमारे देश में भी ऐसी ही एक जगह ANDAMAN NIKOBAR ISLANDS में है-JARAWAS,जहाँ के लोगों में कोई बीमारी पाई ही नहीं जाती|उनको DIABETES, HIGH BLOOD PRESSURE, HEART DISEASE, इत्यादि किसी प्रकार की बीमारी नहीं हुआ करती| सोचने का मक़ाम है कि जब JARAWAS के लोग स्वस्थ रह सकते , बीमार नहीं पड़ते तो हमलोग क्यों ऐसा स्वस्थ्य जीवन नहीं जी सकते? हमारे लिए सबसे दुखःद स्थिति यह है कि बीमार रहते हुए लगातार ALLOPATHIC MEDICINES खाकर जीवित रहने का प्रयास करते रहते हैं|लेकिन उसका अंजाम हमेशा उलटा ही होता है| याद रखिए दुनिया की कोई ऐसी बीमारी नहीं जिसके लिए जीवनभर दवा का सेवन करना पड़ता है|ये तो उन बड़े-बड़े दिग्गज PHARMACEUTICAL COMPANIES का "कमाल" है, जो हमारी "सेहत के ठीकेदार" बनकर हमारे मानस पटल पर छा गये|जबकि कटु सच्चाई ये है कि उनको हमारी सेहत की कोई फिक्र ही नही,बल्कि उनको अपनी ALLOPATHIC MEDICINES खिला खिलाकर बीमार रखना और अपना कारोबार सारी दुनिया में फैलाना एकमात्र उद्देश्य है| आप लोगों ने कभी सुना या देखा है कि DIABETES, HIGH BLOOD PRESSURE, ALZHIMER,PSORIASIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, CHOLESTEROL, THYROID, ABDOMINAL DISORDER, PARKIN-SONISM , HEART DISEASE, CANCER, KIDNEY DISEASE, KIDNEY FAILURE, DIALYSIS, इत्यादि ऐसी किसी बीमारी से ALLOPATHIC MEDICINES खाकर कोई एक आदमी सेहतमंद हो गया,या उसने दवा का सेवन बंद कर दिया|ज़रा अपने आसपास तलाश तो कीजिए ! कामयाब ईलाज है मेरे भाईयो !आपके आसपास ही है,जानकारी नही है हमसब को| इन सब बीमारियो का ईलाज केवल 1-3 महीना, 6 महीना, 9 महीना में ही हो जाता है|ALLOPATHIC MEDICINES से हमेशा केलिए छुटकारा भी मिल जाता है| क्या आपलोग चाहते हैं कि ऐसा ही हो तो देर न करें और आज ही मुझसे संपर्क करें और अपने जानने वाले, सगे संबंधियों को भी बतादें| घबराईए मत ! मैं कोई 10-12 प्रकार की दवाएं नहीं दूँगा, बल्कि हर प्रकार की बीमारी केलिए केवल एक ही दवा दूंगा। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें,मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

"تلخ حقیقت.........!"

* ھائی بلڈ شوگر (HIGH BLOOD SUGAR) ایک سب سے بڑی سازش۔ * ھائی بلڈ پریشر (HIGH BLOOD PRESSURE)ایک سب سے بڑا دھوکہ۔ * ھائی کولیسٹیرول (HIGH CHOLESTEROL اور THYROID) اس صدی کا سب سے بڑا چھلاوہ۔ * وائرل ڈیزیزز) VIRAL DSEASES) جیسے DENGUE H1N1 CHIKANGUNIA NIPAH SWINE FLUE HIV AIDS وغیرہ 21 ویں صدی کا سب سے بڑا FRAUD ھے۔اِن وائرل بیماریوں کی وجہ سے نھیں، بلکہ اِنکے علاج میں استعمال ھونے والی انگریزی دواؤں سے مریضوں کی جان چلی جاتی ھے۔ وائرس کو مارنا یا ختم کرنا مشکل ھی نھیں ناممکن ھے، کیونکہ یہ وائرس ھرپل اپنی شکل تبدیل کرتے رھتے ھیں۔حتیٰ کہ اسکی پہچان بھی نھیں کی جاسکتی ھے۔جانچ کرنے پرصرف اور صرف اسکے جینیٹکس (GENETICS) کا پتہ چلتا ھے * ھائی بلڈ شوگر (HIGH BLOOD SUGAR) کی دوا کھا کر اور انسولین (INSULIN) کا انجکشن لینے کے بعد بھی ھر سال %8 لوگ کال کے گال میں سماجاتے ھیں، جبکہ دوا اور انجکشن کا استعمال نہ کریں گے توصرف اور صرف %3 لوگ ھی مریں گے۔ * جب جب دنیا میں جھاں کہیں بھی ڈاکٹروں کی ھڑتال ھوتی ھے، تب تب ان جگھوں میں اموات کی شرح میں %8 تک کی کمی آجاتی ھے۔ * انسولین اور گلوکوز (INSULIN & GLUCOSE) کے درمیان آپس کا تال میل گڑبڑ ھونے سے ھی تمام بیماریاں وجود میں آتی ھیں، اور ہمارے جسم کے اس عضو میں آئی خرابی یا تکلیف کو اسی عضوکی مناسبت سے مرض کا نام دے دیا جاتا ھے، پھر اس کے علاج کا کبھی نہ ختم ھونے والا لامتناھی سلسلہ شروع ھوتا ھے،جو تھمنے کا نام ھی نہیں لیتا۔علاج تبھی رکتا ھے،جب یا تو زندگی بھرکی جمع پونجی ختم ھو جائے، گھر بار بِک جائے یا مریض قبرمیں پہنچ جائے۔اصل میں اس طرح کے سارے امراض لائف اسٹائل ڈیزیز (LIFESTYLE DISEASE) کہلاتی ھیں۔چونکہ گلوکوز و انسولین (GLUCISE & INSULIN) کی گڑبڑی ہی تمام امراض کی جڑ ھے،اسلئے علاج بالکل آسان ھے۔جس میں ان دونوں کا "بیلینس" درست کر دیا یعنی IMBALANCE کو REBALANCE کر دیا جائے تو مرض چاھےکیسا بھی ھو، کچھ دنوں یا کچھ مھینوں میں ھمیشہ کیلئے بالکل ٹھیک ھو جاتا ھے، مریض صحتمند اور تندرست و توانا ھو جاتا ھے۔یعنی دوا اور مرض سے چھٹکارا مل جاتا ھے۔"ریسرچ تو یہی بتاتا ھے۔"کوئی بھی مرض "لاعلاج" نہیں۔! جب یہ ثابت ھوگیا کہ سارے امراض کی وجہ "ایک" ہی ھے تو اُن سبھی امراض کا علاج بھی "ایک" ھی ھونا چاھئے۔پھر اتنا زیادہ "ھڑکمپ" مچانے کی کیا ضرورت؟ "ضرورت ھے جناب!"دنیا میں کچھ لوگوں کو آپ کے بیمار رھنے سے فائدہ ھوتا ھے ،ان کا دواؤں کا زبردست کار و بار چلتا ھے۔وہ کیوں چاھیں گے کہ آپ"صحتمند" رہیں یا بیمار ھوں بھی تو علاج کے بعد بالکل ٹھیک ھوجائیں۔ میری اِن باتوں پر یقین نہ آئے تو ایک بار، صرف ایک بار ضرور آ کر ملیں۔ * جمشیدپور سے باھر دور دراز سے آنیوالے مریضوں کیلئے ٹھہرنے و کھانے ہینے کا معقول انتظام ھے۔ * توجہ فرمائیں : اکثر و بیشتر امراض کیلئے یہ (صرف اور صرف واحد دوا) 4 سے 6 ماہ کیلئے کافی ھوتا ھے۔ریسرچ کے مطابق دمہ کیلئے 6 ماہ اور ایڈوانس اسٹیج کینسر و جلدی امراض کے لئے 9 ماہ تک اس دوا کا استعمال کرنا ھوتا ھے۔ * اسی طرح کے پوسٹ جو ماڈرن سائنس کی پول کھولنے والی ھونگی،میرے فیس بک ٹائم لائن پر جائیں یا میرے وہاٹس اپ نمبر 8651274288 پر جائیں اور اردو، انگریزی و ھندی میں ڈھیر ساری پوسٹ پڑھ کر سچائی سے روبرو ہونگے۔اور دیکھیں گے کہ کیسے یہ فارما سیو ٹیکل کمپنیاں بیوقوف بنا کر عوام کو کنگال بنا رھی ھیں۔ نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔ * میرے پاس صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔ * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250 گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی صبح شام استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف -/3000 روپیہ ہی ہے۔ کینسر (CANCER) اور HIV-AIDS اور ٹیومر (TUMOUR) کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔ * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔ ........................... HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons(BU) UNANI PHYSICIAN

ऐलोपैथिक दवाओं से दूरी बनाएं

डाबिटीज़ को दूर भगायें,कभी भी न हो हाई बीपी से सामना,कोलेस्टरोल से भयभीत न होना कभी,ये तो हमारी जिन्दगी है|चिकनगुनिया, डेन्गू,कोई भी 'फ्लू' कभी जानलेवा होता ही नहीं,बल्कि जानलेने वाला तो उस वायरल डीजीज के ईलाज में ईस्तेमाल की जानेवाली 'टैमीफ्लू' वगैरह जैसी दवायें हैं | SCIENTIST और रीसर्चर्स का तो इतना तक कहना है कि सर्दी जुकाम या कामन कोल्ड से अगर लोग मर सकते हैँ(वही लोग जिनकी ईम्यूनिटी यानि 'रोग प्रतिरोधक छमता' गौण हो जाती है|)तो किसी भी वाययल डीजीज़ जैसे - चिकनगुनिया,डेन्गू,फ्लू,एच 1 एन 1,एच आई वी एड्स,ईत्यादि से भी किसी की मृत्यु हो सकती है| ये सब तो आज के दौर के मेडीकल साईन्स का सबसे बड़ा फ्राड मात्र है:'एक भय का 'व्यापार' मात्र यानि'डीजीज़ मोन्जरिंग' है,जे लगातार एक 'सिस्टम' के तहत चलाया जा रहा है|जिसमें 'मेडीकल कम्पनिय़ाँ' ही हैं,जिनको अपना कारोबार चलाना है,और अपने मुनाफे भर से मतलब है,न कि हमारी सेहत से|ये डाक्टर साहिबान जो ऊँची۔ऊँची डिग्रियां लेकर ॐची۔ॐची फीस मरीज़ों से वसूलते नजर आते हैँ,ऐसा प्रतीत होता है मानो 'फार्मासियूटीकल्स कम्पनीज़' के रजिस्टर्ड 'एजेन्ट' या 'मेडीएटर' की तरह काम करने वाले हैँ,उनको सिर्फ और सिर्फ हमारी 'बीमारी' की चिन्ता रहती है न कि हमारी 'सेहत' की|क्यूंकी ऐसी ही व्यवस्था है कि उनसे ईलाज करवाना शुरु कर दिया एकबार तो फिर आप उनके परमानेन्ट कस्टमर बन गये|फिर क्या जीवन भर 'कष्ट से मरते रहिए|' विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7अप्रैलको 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है|जानिए क्या है हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं और आमजन के सेहत की स्थिति......... * पाँच लाख डाक्टर्स की कमी है देश में|10,189 लोगों पर 'एक सरकारी डाक्टर' है|विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक के मुताबिक 'एक हजार लोगों पर एक डाक्टर' होना चाहिए| * महज़ 56 हजार छात्र हर साल 462 मेडिकल कालेजों से ग्रेजुएट होते हैं,जबकि देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.6 करोड़ बढ़ रही है| * 90,343 लोगों के बीच एक सरकारी अस्पताल है देश में|12 किलोमीटर औसतन दूरी आम भारतीय को तय करनी पड़ती है मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं केलिए| * 13 राज्यों के 64 ज़िलों में क़रीब 27 करोड़ लोगों केलिए एक भी ब्लड बैंक नहीं है| * 68.3 वर्ष है भारत में जीवन प्रत्याशा की दर|पुरुषों की औसत आयु 66.9 वर्ष तथा महिलाओं की 69.9 वर्ष हे| * एक हजार बच्चों में 41 बच्चों की मृत्यु जन्म के एक साल के भीतर हो जाती है * प्रति 10,000 में से 174 मातृ मृत्यु दर|मतलब हर घंटे में 5 महिलाओं की प्रसव के दौरान होनेवाली जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है| * भारत में सबसे ज्यादा मौतें हृदय से संबंधित बीमारी की वजह से होती हैं|2005 से 2016 के बीच इन मौतों में 53% की बढोतरी हुई है| * 25 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु अकेले प्रदुषण से हो जाती हैं। नोट:- * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं।

एक क़दम नेचर की तरफ़

आज हम सब 12500 बीमारियों के बीच ज़िन्दा रहने की कोशिश कर रहे हैं।हर कोई किसी न किसी बीमारी से परेशान है।हर घर में बीमारी का साम्राज्य है।आप किसी के जनाज़े में शरीक हों,पूछताछ में पता चलता है कि मरने वाला फलां फलां बीमारी से बरसों से ग्रस्त था, अन्त तक ईलाज भी चलता रहा, और फिर ये दुखद अंत और घर कंगाल। मैं आपको चेतावनी देते हुए कहना चाहता हूँ कि बीमारी होने पर किसी भी हाल में अंग्रेजी दवाओं से और ऐलोपैथ डॉक्टर से दूर ही रहें।ये ऐलोपैथिक डॉक्टर आपकी सेहत से खिलवाड़ करने को आतुर रहते हैं।कभी भी नहीं चाहते कि आप स्वस्थ रहें।ये डॉक्टर हमारी सेहत की नहीं बल्कि बीमारी की देखभाल करने में माहिर होते हैं। फार्मास्युटिकल कंपनियों की साज़िशें हमारी ज़िंदगी बरबाद कर रही हैं।और ये डॉक्टर इनके एजेंट की तरह काम करते हैं।ये चाहते हैं कि आप हमेशा बीमार रहें, ताकि अपनी बरसों की गाढ़ी कमाई इनकी झोली में डालते रहें। मैं तो कहता हूँ कि आप ऐसी ज़िंदगी जीएं कि बीमार ही न पड़ें, और अगर बदक़िस्मती से बीमार हो भी जाएं तो ऐलोपैथिक डॉक्टर के पास कभी न जाएं और ऐलोपैथिक दवाओं का कभी भी प्रयोग न करें। अल्लाह ने हमें नेचुरल चीजों से बनाया है और शरीर के अंदर कोई विकार हो जाए तो उस विकार को नेचुरल तरीके से ही दूर किया जा सकता है। लाख टके का सवाल यह है कि जब तक किसी "डॉक्टर" , "हकीम" या "वैध" को यही नहीं मालूम कि कोई बीमारी कैसे होती है या किस कारण से होती है , तो कोई "डॉक्टर" , "हकीम" या "वैध" किसी मामूली से मामूली या बड़ी से बड़ी बीमारी का ईलाज कैसे कर पाएगा?ऐसे में वो ईलाज तो करेगा ही , मगर सिर्फ अंधेरे में तीर चलाएगा, "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का"। चिंतन का समय है.........कि...........जब सभी बीमारियों की वजह GLUCOSE और INSULIN का आपसी तालमेल में गड़बड़ी होना ही है,तो फिर क्या वजह है कि सभी बीमारियों केलिए "एक ही दवा" काफि क्यों नहीं? इस MECHANISM को समझना जरूरी है। मेरा मतलब है कि GLUCOSE और INSULIN के बीच जो असामान्य स्थिति हमारे शरीर के भीतर उत्पन्न हो चुकी है, जिसके कारण कोई "रोग" सामने आया है।"रोग" के पीछे न पड़कर, "रोग" के "कारण" यानी "जड़" को दुरुस्त कर देने भर से ही कोई भी ईन्सान अपनी बड़ी से बड़ी बीमारी छुटकारा पा लेता है। मैं ने बरसों की मेहनत और रिसर्च के बाद यूनानी जड़ी बूटियों का अचूक मिश्रण तैयार किया है। "HEALTH IN BOX" उसका नाम रखा है। ट्रेडमार्क लाईसेंस भी मिल गया है।ये खाने की दवा नहीं है, बल्कि इस पावडर के चार ग्राम को काढ़ा बनाकर सुबह शाम पिया जाता है। पहले बता चुका हूँ कि सारी बिमारियों की एक ही वजह है तो दवा भी यही एक ही है।इस दवा के साथ कुछ परहेज़ भी है, जैसे:-दूध और दूध से बनी कोई भी चीज़ न लें,आयोडीन युक्त नमक का सेवन कभी न करें, चीनी से बनी हुई कोई भी वस्तु का सेवन कभी न करें और रिफाइंड तेल को सदा के लिए बाई बाई कहदें।सुबह से रात तक खाना पीना मेरे बताये मुताबिक़ ही लें। यक़ीन मानिये, आप चाहे जिस प्रकार की भी बीमारी से ग्रस्त होंगे चंद महीनों में ही वो बीमारी REVERSE हो जाएगी।आप बिल्कुल स्वस्थ्य हो जाएंगे, जैसे कि कभी बीमार न हुए हों। और अगर बताई गई परहेज़ को पूरे परिवार में लागू करें तो मेरा दावा है कि उस परिवार का कोई भी सदस्य 3 D's यानि :- DISEASE, DOCTORS और DRUGS से हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। जरा सोचिए - ! विज्ञान हमे कहाँ ले आया ? * पहले वो कुँए का मैला कुचैला पानी पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे और अब RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढे हो रहे हैं। * पहले वो घाणी का मैला सा तेल खाकर बुढ़ापे में भी मेहनत कर लेते थे।और अब हम डबल-ट्रिपल फ़िल्टर तेल खा कर जवानी में भी हाँफ जाते हैं। * पहले वो डले वाला नमक खाकर बीमार ना पड़ते थे। और अब हम आयोडीन-युक्त खाकर हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं। * पहले वो नीम,बबूल,कोयला,नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चबा-चबा कर खाते थे।और अब कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते है। * पहले वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे और अब आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते है। * पहले वो 7-8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी खेत का काम करती थी।और अब पहले महीने से डॉक्टर की देख-रेख में रहती हैं और फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते हैं। * पहले काले गुड़ की मिठाइयां ठोक-ठोक के खा जाते थे और अब खाने से पहले ही सुगर की बीमारी हो जाती है। * पहले बुजर्गो के भी घुटने नहीं दुखते थे और अब जवान भी घुटनों और कन्धों के दर्द से कहराता है। * समझ नहीं आता कि ये "विज्ञान का युग" है या "अज्ञान का युग" है ?* * अब डॉक्टर्स (धरती के भगवान्) हमारी बीमारी पर ही शत् प्रतिशत ध्यान लगाते हैं,सेहत पर नहीं।वो चाहते हैं कि हम हमेशा बीमार रहें और उनकी दवाएँ खाते रहें। * यही तो शायद मेरी बदनसीबी है,लोगों को यक़ीन ही नहीं हो रहा,क्योंकि रिवाज नहीं है ना।ऐलोपैथ वालों ने लोगों के दिमाग में यह बात लिख कर लॉक कर दिया है कि बीमार पड़ो तो जीवन भर दवा खाते रहो। सर जी ! ये भी कोई बात हुई।मैं ऐसा ही करता हूँ कि चाहे जैसी भी बीमारी हो,दवा खाओ और ठीक हो जाओ,फिट रहो।और आपको मानना पड़ेगा। नोट:- बीमारी चाहे जैसी भी हो,शत् प्रतिशत् ईलाज मौजूद है।कोई भी बीमारी लाईलाज नहीं,बल्कि किसी भी बीमारी को लाईलाज बताकर हमें डराकर जीवन भर बीमार रखकर दवा खिलाते रहने का व्यापार चलाना उनका मक़सद है।जिसमें ये डॉक्टर्स,दवा कंपनियाँ,जाँच सेंटर्स का आपस में बेहतरीन तालमेल है। लेकिन ये बात आपलोग बहुत अच्छी तरह से याद रखिए कि अब इनकी "पोल" खुल गयी है। हर बीमारी 100% ठीक होती है और वो भी इन महान डॉक्टरों के पास जाए बिना।इन डॉक्टरों को किसी भी बीमारी का कारण ही नहीं पता तो ईलाज किस चीज का करेंगे ! मुझे पता है,बीमारियों का कारण केवल "एक" है।इसलिए उस एक "कारण" को ख़त्म करने से ही सभी तरह की लाइफस्टाइल डीज़ीज़ हमेशा केलिए रिवर्स हो जाती हैं।

Skin Treatments

Acne is one of the commonest skin problems. It produces unsightly spots on the face, neck, chest, back & upper arms. Our skin gradually becomes rough & parched. These disorders can be treated successfully through our Unani herbal preparation. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Skin Diseases Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Skin Diseases Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®.


وھاٹس اپ چیٹنگ

السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ (ایک  MBBS ڈاکٹر کی بے تکی بات کا جواب۔ انکا قول:-[06/02, 8:31 PM] DR NADEEM AMBEDKARNAGAR: آپکی بات کا کوئی سائنٹیفک پروف نہیں ہے [06/02, 8:32 PM] DR NADEEM AMBEDKARNAGAR: ہم کسی کو دھوکا نہیں دے سکتے) I can't tolerate this rubish type of post so you will not more staying in this group Waise eh mumkin Nahi hai Kisi Tarah دعوے کے لیے دلیل کی ضرورت ہوتی ہے ۔       #  میرا جواب ملاحظہ فرمائیں:-۔                    دلیل سے ثابت ہوجائے گا تو پھر بھی نہیں مانیں گے کیونکہ کٹھ دلیلی سے اسکو آپ جیسے جھٹلانے والوں کی کمی نہیں ہے۔اور پھر آپ جیسے نام نہاد ڈاکٹر (سماجی کینسر) مرغی کے درپہ میں رہنے والے اور دھندہ کرنےوالوں کی کمی ہے کیا؟  بہرحال! کیسے ثابت کرنا ہے، کہاں ثابت کرنا ہے، وہ بتائیں۔ میں اپنی اس دوا سے (جسکا نام HEALTH IN BOX ہے ) لاتعداد مریضوں کو ڈائبٹیز, ہایی بی پی, ہارٹ بلاکیج, کینسر وغیرہ سبھی طرح کے لائف اسٹائل بیماریوں سے چھٹکارا دلا چکا ہوں۔جناب میری ایک ایک بات سائینٹیفک اور ریسرچ بیسڈ ہوتی ہے۔ آپ کی نظر میں سائینٹیفک اور ریسرچ کا کیا مطلب ہے ، یہ آپ اچھی طرح جانتے ہیں۔ للہ اپنی ہٹھ دھرمی اور انا سے باز آجائیں اور عقل کے ناخن لیجئے۔ کوئی بھی نئی بات آپ کے سامنے آئے تو اس پر ایک بار اپنا دماغ لگانے کی کوشش کریں۔ بھیجہ میں نہ سمائے تو جاننے کی کوشش کریں۔ لکیر کے فقیر بننا جاہلوں کا طریقہ ہے۔ آپ ایک ڈاکٹر ہیں اور ایسی انرگل باتیں مسلسل لکھے جارہے ہیں،جبکہ میں آپ کا احترام کرتے ہوئے لگاتار سمجھانے بتانے کی کوشش کررہا ہوں۔  یقین نہیں ہے تو براہ کرم میرے you tube channel پر جائیں۔  HAKEEM MD ABU RIZWAN ٹائپ کریں اور مریضوں کی زبانی ہی سن لیں۔ اور اگر پھر بھی یقین نہیں آئے تو مجھ سے ہی بات کریں۔ اگر پھر بھی یقین نہیں ہو تو پھر آپ کو ایجوکیشن کی ضرورت ہے۔وہ بھی دینے کو تیار ہوں۔ حکیم محمد ابو رضوان بی یو ایم ایس،آنرس(بی یو) یونانی میڈیسنس ریسرچ سینٹر جگسلائی جمشیدپور جھارکھنڈ۔ موبائل 9334518872 8651274288



Last updated date 30/09/2020

VICTORY OF MEDICAL SCIENCE

This year in 2019, MEDICAL SCIENCE has witnessed something when had not conducted,i consider it as VICTORY Of MEDICAL SCIENCE and FAILURE of MEDICAL INDUSTRY.Actually i am referring to the last month's 2019 NOBEL PRIZE WINNING SCIENCE OF "ANGIOGENESIS THERAPY".     ANGIOGENESIS THERAPY means a body mechanism by which HEART DISEASE/CANCER/ KIDNEY FAILURE or any other diseases of body can also be CURED for that any tools or surgery or MEDICINE is not required, almost all you have whatever necessary.I would call it the VICTORY OF MEDICAL SCIENCE,or Last year released "ISCHEMIA TRIAL" report.    ISCHEMIA that started in 2012 and it was seen that HEART SURGERY/BY-PASS SURGERY is beneficial or harmful for any person.Result is very shocking, Answer is "HARMFUL".It increases MORTALITY RATE.So there is a need to put a LOCK on HEART SURGERY DEPARTMENT OF BIG HOSPITALS, which have been built by investing CRORES of RUPEES. Or,i would talk about AMERICAN HEART ASSOCIATION'S 2019 guidelines started early this year.Since 200 years it was considered that ASPIRIN is an ELIXIR for HEART PATIENTS and it was given almost every person above 40 years he would go to hospital. Now,if we talk about this year's AMERICAN HEART ASSOCIATION'S GUIDELINES,it has been found that ASPIRIN is very HARMFUL.It increases CANCER rate, increases MORTALITY rate.Actually, all those who are taking ASPIRIN, don't need it actually, rather than they are HARMING themselves.Taking this means FAILURE PHARMACEUTICAL COMPANIES.If we talk about the results of a trial "GLOBAL BURDEN ON DISEASE STUDY", released in the mid of this year's.This trial started in 1990 and in this trail DATA from 195 countries were compiled till 2017, ie about 27 years and it's results came in the mid of this year and that result can be seen as the VICTORY OF MEDICAL SCIENCE and gits of the result is that you CURE any DISEASES by modifying your DIET rather depending on MEDICINES.Its big thing,so result of trial, guidelines, recommendations, about prize winning sciences,came this year suggest's that CANCER and HEART DISEASE are not two different things, but two sides of same COIN.If you can understand this thing,then finally FEAR OF ILLNESS will be gone.And secondly, you will also come to know how to come out from illness if anybody falls sick.But not only come out from the illness but how to get rid of those MEDICINES continued since years.Clearly VICTORY OF MEDICAL SCIENCE and FAILURE OF MEDICAL INDUSTRY.    I can make easy to understand all this for you by



Last updated date 30/09/2020

सबको बता दें......!

आपसे निवेदन है कि मेरे इस "पैग़ाम" को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करें:- #अगर आप बरसों से कैंसर, डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिस आर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है।केवल तीन से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है।डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है।बीपी कम करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है।कोलेस्ट्रॉल कम करने की दव STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है। फैसला आपको ही करना है, और आज ही। #HAKEEM M A RIZWAN 9334518872



Last updated date 29/09/2020

एक्सपायरी डेट का गोरखधंधा

क्या दवाइयां एक्सपायर हो जाने के बाद भी इस्तेमाल की जा सकती हैं? 1979 में अमेरिकी FDA (FOOD AND DRUG ASSOCIATION) ने सभी दवा कंपनियों को निर्देश जारी किया कि "वो सभी दवाओं पर EXPIRY DATE अवश्य डालें।" लेकिन, इस EXPIRY DATE का ये मतलब भी नहीं है कि "BRUFEN" की गोलियों की शीशी अपनी EXPIRY DATE के बाद एक दूध के कार्टून की तरह ख़राब और स्वास्थ के लिए हानिकारक हो जाती है।जी हां, जो तिथि हम दवा की शीशी के ऊपर कंपनी की ओर से मुद्रित देखते हैं, उसका मतलब दवा का ख़राब हो जाना बिल्कुल भी नहीं होता,बल्कि कंपनी "उस मुद्रित तिथि" तक दवा के असरदार और सही होने की ज़िम्मेदार होती हैं। सही मायने में एक दवा कितनी देर तक असरदार और इस्तेमाल के क़ाबिल हैं, इसके बारे में अलग अलग राय हो सकती हैं। कुछ दवाएं जैसे, कि INSULIN, NITROGLYCERIN और ANTIBODIES, जिनमें शामिल COMPONENTS समय के साथ साथ बेअसर या कम फायदेमंद हो जाती हैं।उसी तरह बहुत सी दवाओं की ताक़त काफी लंबे समय तक बरक़रार रहती हैं,जो कि न केवल उपयोग करने के लिहाज से ही, बल्कि पूरी असरदार भी होती हैं। क्योंकि किसी को भी ये पता नहीं होता, और दवा के ऊपर EXPIRY DATE देखकर और सुनकर ही हमलोग भ्रमर में पड़ जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं। इसलिए अमेरिका में ज़हर कंट्रोल करने वाली क़ानूनी संस्था को प्रतिदिन ऐसी अनगिनत फोन काल आती हैं जिनमें लोग ये बताते हैं कि उन्होंने एक्सपायर दवा खा ली है और अब उन्हें मेडिकल सहायता की आवश्यकता है। कैलिफोर्निया प्वायज़न कंट्रोल सेंटर के डायरेक्टर ली सेंट्रिल ने आगे बताया कि उसने किसी एक्सपायर्ड दवा की वजह से किसी इन्सान में कोई जानलेवा लक्षण बिल्कुल नहीं देखते।बस,समय गुज़रने के साथ दवाओं के असरदार होने में कमी हो जाती है जिसपर अलग से ढेरों रिसर्च की गई है। कुछ वर्षों पहले "ली सेंटर रील" को दवाओं के एक पुराने भंडार को चेक करने का अवसर मिला,जो कि एक फार्मेसी के पीछे स्टोर में मौजूद थीं। उनमें एलर्जी और दर्द निवारक दवा के अलावा अन्य दूसरी दवाएं और गोलियां मौजूद थीं। डायरेक्टर ने बताया कि उन दवाओं में से कुछ को चालीस साल गुजरने के बाद भी असरकारक पाया गया और ये रिसर्च स्टडी "JAMA INTERNAL MEDICINE" में 2012 में प्रकाशित की गई थी।सेंटरील ने एक अन्य रिसर्च स्टडी 2017 में प्रकाशित करवाई, जिसमें EPIPEN जैसी महंगे AUTO INJECTIONS जिनका इस्तेमाल जानलेवा एलर्जीज़ के इमरजेंसी इलाज में किया जाता है, अपनी अंतिम तिथि पूरी हो जाने के चार साल की अवधि के बाद भी चौरासी प्रतिशत प्रभावी पाए गए। इसीलिए विशेषज्ञों की राय है कि कुछ भी मौजूद न होने से जान बचाने के लिए एक एक्सपायर्ड दवा भी उस समय काम कर जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो दवा बनाने वाली कंपनियों के पास काफी रक़म मौजूद होती है कि वह दवाओं पर रिसर्च कर सकते हैं। लेकिन सचमुच में ऐसा करने का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और जब हमलोग किसी दवा पर एक्सपायरी डेट पढ़ लेते हैं तो हम उसे फेंक कर नयी दवा ख़रीद लाते हैं। अमेरिका में फेडेरल गवर्नमेंट को इन दवाओं पर रिसर्च करने का लाभ तो अवश्य ही है और वो करते भी हैं। और अमेरिका में दवाओं का बहुत बड़ा भण्डारण संभावित एमरजेंसी जैसे हालात यानी कि आतंकी हमले या किसी महामारी के फैलने के दौरान इस्तेमाल हो सकता है। 1986 में फेडेरल गवर्नमेंट और अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने अपने इस भण्डारण में कमी करने के लिए दवाओं की तय तिथि में कमी करने के साथ साथ अपने स्टाक में भी कमी की। दोबारा उसी प्रोग्राम के तहत 2006 में एक सौ बाईस विभिन्न औषधियों को जांचने के बाद सही अवस्था में महफूज़ करके उनकी एक्सपायरी डेट में अगले चार साल की बढ़ौतरी कर दी गई। इस प्रोग्राम के कारण अमेरिकी संस्थाओं ने 2.1 बीलियन डालर ,जो कि उन दवाओं की दोबारा तैयारी में लगते, अमेरिकी संस्थाओं के अथक परिश्रम और प्रयास से उस मोटी रक़म को अकारण लगने से बचा लिया गया।इस सबके बावजूद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जानते बूझते तय मानक तिथि के बाद वाली दवाईयां लेने से सख़्ती से मना करते हैं। उनके अनुसार, कुछ दवाओं में तय तिथि समाप्त हो जाने के बाद बैक्टीरिया पैदा होने और बढ़ने का ख़तरा होने के अलावा कुछ दवाईयां एलर्जी रिएक्शन को रोकने में न केवल नाकाम रहती हैं बल्कि,बीमार भी कर सकती हैं। और इसी तरह ऐसी दवाईयां लेने वाला स्वास्थ से संबंधित संभावित ख़तरों से दोचार हो सकता है। इसलिए ऐसी दवाईयों और उनसे संबंधित प्रश्न के साथ बेहतर यही है कि किसी विशेषज्ञ चिकित्सक या किसी सर्टिफाइड फार्मासिस्ट से संपर्क किया जाए। अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था लोगों को ऐसी दवाईयां जिनकी तय तिथि समाप्त हो चुकी हो, "NATIONAL DRUG TAKE BACK" नामक संस्था( जिसे AMERICAN DRUG ENFORCEMENT DEPARTMENT कंट्रोल करती है)के सुपुर्द कर देने का हुक्म दे रखी है, ताकि उनका सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सके, और जनता को परेशानी से बचाया जा सके। व्हाइट हाउस की ओर से ये दावा है कि पिछले साल इस संबंध में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 3.7 मिलीयन पाउण्ड की दवाईयां जो कि अपनी अंतिम तिथि गुजरने के बाद भी अनुपयोगी थीं,उनको सुरक्षित किया गया ताकि बाद में उसपर रिसर्च करके उनको प्रयोग के लायक़ बनाया जा सके। जबतक ट्रम्प सरकार इस अकूत साधन से लाभ उठाते हैं,न जाने कितने ही देश अपनी लापरवाही और ऐसे किसी सिस्टम के न होने के कारण संसाधन और बजट को बर्बाद करते रहेंगे, जिनमें प्रगतिशील देश सबसे आगे रहेंगे। और ख़ासतौर से भारत में दवाईयां दिन-प्रतिदिन महंगी होती रहेंगी। ज़रूरत इस बात की है कि ऐसी दवाईयों को सुलभ तरीक़े से सरकारी स्तर पर रिसर्च के बाद उपयोग करने के लायक़ बनाकर न केवल देश में दवाओं की भारी कमी को दूर किया जा सकता है, बल्कि ड्रग माफिया/तस्कर से भी छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन, अफसोस की बात है कि सरकार इस तरह के काम के बजाय ऐसी सोच से भी लाखों कोस दूर है। नोट:- अगर आप बरसों से मोटापा, कैंसर, डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट प्राब्लम, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिस आर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं, और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है। केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। * अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है। * डायबिटीज की अंग्रेजी दवाओं का ही नतीजा है कि 20%-30% लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं,50% लोगों का किडनी फेल हो रहा है और 15%-20% लोगों का लोवर लिम्ब (दोनों पैर) काटने की नौबत आ रही है। * बी पी लो करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लक़वा तक पहुंच रहा है। * कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है। फैसला आपको ही करना है, और आज ही। नोट:- मैं ने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम HEALTH IN BOX® है। इसी एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा HEALTH IN BOX® का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को सिर्फ चार महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के काबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN



Last updated date 29/09/2020

Arthritis Treatment

In the Unani system of medicine, Arthritis is described under a board term Waja-ul-Mafasil which encompasses entire joint disorders like inflammatory, non-inflammatory, infections, metabolic and other musculoskeletal disorders. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Arthritis Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Arthritis Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®.



Last updated date 26/08/2020


आयूष चिकित्सकों का घोर अपम

125:- "DISEASE FREE WORLD"       -:आयुष चिकित्सकों का भीषण अपमान:- आज दिनांक 8/122/2020 के दैनिक भास्कर के पृष्ठ संख्या 2 भर एक ख़बर आई, पूरी ख़बर से आप भी रूबरू होंगे तो अच्छा रहेगा। पूरी ख़बर नीचे पढ़ें:-    [आयुष चिकित्सक सर्जरी के लिए अयोग्य-डा संतोष।     आई एम ए के संयुक्त सचिव डॉक्टर संतोष गुप्ता ने कहा- इससे आयुष चिकित्सकों को बढ़ावा मिलेगा व असली चिकित्सकों की बदनामी होगी।शरीर के अंदरूनी हिस्सों की जानकारी आयुष चिकित्सकों को नहीं है।इस अधिकार के तहत आयुष चिकित्सकों को जनरल सर्जरी, ई एन टी, नेत्र, हड्डी, डेंटल सहित अन्य सर्जरी करेंगे। यह फ़ैसला संस्थाओं में पिछले दरवाज़े से इंट्री का प्रयास है। उन्होंने आयुष चिकित्सकों को सर्जरी के लिए अयोग्य बताया है मौक़े पर आई एम ए सचिव डॉक्टर मृत्युंजय सिंह, संयुक्त सचिव डॉक्टर संतोष गुप्ता, डॉक्टर फ़िरोज़ अहमद, मिंटु अखौरी सिंह, डॉक्टर अशोक कुमार आदि मौजूद थे।    आई एम ए ने शनिवार को साकची आई एम ए भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलोपैथ चिकित्सकों ने मायोक्सपैथी का विरोध किया है, वहीं 11/12/2020 को शहर के सभी निजी-सरकारी अस्पतालों को बंद करने की घोषणा की है। मायोक्सपैथी के तहत आयूर्वेद, यूनानी व होमियोपैथी चिकित्सकों को सर्जरी करने का अधिकार दिया है, जो दुखद है। नेशनल मेडिकल काउंसिल ने आयुष चिकित्सकों को सभी तरह की सर्जरी करने का अधिकार दिया है। इससे ऐलोपैथी चिकित्सकों मेँ काफ़ी रोष है। इसके ख़िलाफ़ 11 दिसंबर को देश भर में ओपीडी, निजी क्लिनिक, पैथोलॉजी लैब, रेडियोलोजी सेंटर बंद रखने का निर्णय लिया गया है।सिर्फ एमरजेंसी सेवा कोविड केयर सेंटर खुले रहेंगे, ताकि मरीजों को किसी तरह की परेशानी नहीं उठाना पड़े।]      ये ऐलोपैथिक चिकित्सक, ख़ुद को "तीसमार खां" बताने वाले दरअसल "हिप्पोक्रेट्स" की औलाद हैं।ये जो हिप्पोक्रेट्स था , उसका एक ही तर्क था-  "अगर आपको कोई भी शारीरीक विकार हो गया है तो उसका कारण यह है कि आपका "रक्त दूषित" हो गया है।" इस तर्क के कारण हज़ारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। आपको बता दें कि अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन भी इस हिप्पोक्रेट्स सिद्धांत के शिकार हुए और अपनी जान गंवाई। इशुनियश, क्लाउडियस इत्यादि हिप्पोक्रेट्स सिद्धांत के शिकार हुए।    उसने तो सिर्फ "रक्त" को ही निकालने की बात कही थी, मगर आजकल के ये हिप्पोक्रेट्स की औलादों ने तो सारी हदें पार कर दी। बस, उनका एक ही मत है-"कुछ भी है, काटकर निकाल दो। किडनी, लीवर, अपेंडिक्स, बच्चादानी, घुटने,  सब कुछ काटकर निकाल दो। अरे इन मुर्खों के मुरख को कौन समझाए कि अगर ये सारे अंग हमारे शरीर में व्यर्थ ही हैं तो क्या भगवान ही बेवक़ूफ़ था जो फ़ालतू के इस तरह के अंग बनाये।     ये महानुभव ऐलोपैथिक चिकित्सक बतायें कि पिछले ढाई सौ साल के इतिहास में तुमने लोगों को, समाज को क्या दिया? सुन लो ऐलोपैथिक चिकित्सको ! तुम्हारे पास लोगों को, समाज को देने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज़ है,और वो चीज़ है-"दर्द"।इससे तुम सब अच्छी तरह सहमत हो, मगर हिम्मत नहीं है कि सार्वजनिक तौर पर यह बात स्वीकार कर सको, क्योंकि तुम्हारी पोल खुल जाएगी। अपना इतिहास पढ़ो, उसमें ढूंढो कि कोई एक भी डायबिटीज़, हाई बीपी, हार्टअटैक व ब्लाकेज इत्यादि का रोगी तुम्हारी अंग्रेज़ी दवा का सेवन करने के दस, बीस, पचास साल तक लगातार सेवन करके भी ठीक हुआ क्या?    तुम ऐलोपैथिक चिकित्सकों को चैलेंज करता हूँ कि ऐसा एक भी सबूत दिखा दो।     इसे छोड़ो, सर्जरी की बात बताता हूं। हिन्दुस्तान का एक बादशाह था,उसका नाम "हैदर अली" था। बात 17575-80 ई. की है। उसके राज्य पर एक अंग्रेज़ "जेनरल कूट" हमेशा हमला किया करता था, लेकिन हर बार प्राजित हो जाता था। एकबार फिर उसने हैदर अली पर हमला किया और हार गया। गिरफ्तार हुआ और बादशाह के दरबार में पेश किया गया। वो उठा और अपनी तलवार से उसकी नाक काट दी,जबकि वो चाहते तो उसकी गर्दन उड़ा सकते थे, मगर ऐसा नहीं किया।एक घोड़ा दिया और कटी नाक उसके हाथ में थमाकर बोला कि भाग जा।नाक कटना बहुत बड़ी बात होती है। भागते-भागते एक गाँव से गुज़र रहा था तो एक आदमी ने उसे रोककर कटी नाक के बारे में पूछा तो उसे बताया कि पत्थर से कट गया, मगर उस देहाती ने सच बताया कि तुम्हारी नाक तलवार से कटी हुई है। मेरे गांव में एक आदमी है जो तुम्हारी नाक जोड़ देगा। जेनरल कूट उसके पास गया और मात्र तीन साढ़े तीन घंटे में उस नाई जाति के 21-22 साल के यूवक उसकी नाक जोड़ दी, उसी विधा को आज तुम माडर्न साइंस का दंभ भरने वालो प्लास्टिक सर्जरी या नैनो सर्जरी कहते हो जिसके लिए एक पैसा नहीं लिया। पंद्रह दिनों तक अपने घर में रखा और जाते हुए उसने आयूर्वेदिक दवा का लेप दिया और कहा कि तीन महीने तक इस लेप को लगाया करना। जेनरल कूट ने ये घटना अपनी डायरी में लिखी और ब्रिटिश संसद में सबको दिखाते हुए अपनी ये घटना सुनाई, जिसे देखकर कोई भी अंग्रेज़ मानने को तैयार नहीं था।फिर उसने अपने चंद डॉक्टर दोस्तों को भारत लेकर आया और यहां के विभिन्न स्थानों में घूमकर भारतीय शल्य चिकित्सक से सर्जरी सीखा।वापस जाकर इंग्लैंड में "फेलो आफ रोयाल सोसायटी" की  स्थापना की।और तुम ऐलोपैथिक चिकित्सको वहां से "एफ आर एस एच" की सर्टीफिकेट मंगवाकर अपने बोर्ड पर "एफ आर एस एच" दर्शाते हो और लोगों को भ्रमित करने का कार्य करते हो,धिक्कार है तुम और तुम्हारी काली करतूतों पर। हमारा देश सैंकड़ों साल तक अंग्रेजों की ग़ुलामी में रहा और हमारी संस्कृति, स्वास्थ्य, शिक्षा यानी सबकुछ बरबाद कर दिया, लूट कर सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत देश को कंगाल कर दिया।हमारे गुरुकुलों को तबाह कर दिया। और अपनी सुविधा के अनुसार ऐलोपैथिक दवा का चलन भारत में शुरू किया, बस यही तेरे ऐलोपैथिक चिकित्सा का इतिहास है।     और हां, जिस "एम बी बी एस" की डिग्री पर तुम इतराते हो ना, वो भी बकवास है। इसका फुल फार्म बताओगे - "बैचलर ऑफ मेडिसिन ऐंड बैचलर ऑफ सर्जरी"। लेकिन इसका शार्ट फार्म तो "बी एम बी एस" होना चाहिये। एक और डिग्री है तुम्हारी - "एम डी"। कोई इसका फुल फार्म पूछे तो तुम कहोगे - "डॉक्टर आफ मेडिसिन"। क्या ये सही है? असल में तो इसका फुल फार्म "मार्केटिंग आफ ड्रग्स" होना चाहिये। वाक़ई तुम ऐलोपैथिक चिकित्सक, किसी बीमारी का ईलाज नहीं करते, बल्कि "दवाओं की मार्केटिंग" ही करते हो, और ऐसी दवाएं लिखते हो जिसमें लंबा कमीशन मिलता हो।अपने दिल पर हाथ रखो और अंरात्मा की आवाज़ सुनो, डूब मरो तुम सब।    रामायण तो पढ़े ही होगे। जब रावण से युद्ध हुआ जिसमें लक्ष्मण मुर्छित हो गए तो हनुमानजी ने कौनसा "ऐलोपैथिक औषधि" हिमालय पर्वत से लाए थे, बताओ ज़रा। मेरे कहने का सार यह है कि भारत में आयूर्वेद का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है, इसे नकारा नहीं जा सकता।तुम्हारे कहने से सच्चाई थोड़े ही बदल जाएगी।वो तो भला हो अंग्रेज़ हुकूमत का जिसने अपने शासनकाल में  आयूर्वेद को बरबाद कर दिया।अंग्रेज़ तो चले गए मगर उसकी आत्मा यहां के नेताओं में समा गयी, जो अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत को भारत में बढ़ावा देते चले गये।वरना तुम्हारी औक़ात आयूर्वेद और यूनानी के आगे कुछ भी नहीं है।     मैं चैलेंज करता हूँ। आजतक तुम लोग लीवर की बीमारी में आयूर्वेद ही इस्तेमाल करते हो। कोई एक भी डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज का पेशेंट ठीक हुआ हो तो बताओ?     तुम्हें तो सिर्फ काटकर निकालना आता है क्योंकि लाखों रुपए मिलते हैं। और चाहते हो कि किसी की बीमारी कभी भी ठीक ही न हो और जीवन भर ऐलोपैथिक दवाओं का सेवन करते हुए तुम्हारे परमानेंट कस्टमर बने रहें, हर महीने तुम्हारे पास फीस देते रहें।अंजाम क्या होता है शुगर के मरीज़ों का- आंखों की रोशनी जाती है, किडनी फेल होती है या पैर कटवाना पड़ता है।     उसी आयूर्वेद से यूनानी चिकित्सा पद्धति का उद्भव हुआ है। दोनों में भाषा और तरीकों के सिवाय कोई फर्क़ नहीं है।होम्योपैथिक के जनक डॉक्टर हैनिमन तो स्व्यं ही "एम बी बी एस" यानी ऐलोपैथिक चिकित्सक थे। #HAKEEMMDABURIZWAN  #UNANIPHYSICIAN  Spl in #LIFESTYLEDISEASES  #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND  contact                              what's App 9334518872                    9334518872 8651274288                    8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/



Last updated date 12/12/2020

आयूष चिकित्सकों का घोर अपम

125:- "DISEASE FREE WORLD"       -:आयुष चिकित्सकों का भीषण अपमान:- आज दिनांक 8/122/2020 के दैनिक भास्कर के पृष्ठ संख्या 2 भर एक ख़बर आई, पूरी ख़बर से आप भी रूबरू होंगे तो अच्छा रहेगा। पूरी ख़बर नीचे पढ़ें:-    [आयुष चिकित्सक सर्जरी के लिए अयोग्य-डा संतोष।     आई एम ए के संयुक्त सचिव डॉक्टर संतोष गुप्ता ने कहा- इससे आयुष चिकित्सकों को बढ़ावा मिलेगा व असली चिकित्सकों की बदनामी होगी।शरीर के अंदरूनी हिस्सों की जानकारी आयुष चिकित्सकों को नहीं है।इस अधिकार के तहत आयुष चिकित्सकों को जनरल सर्जरी, ई एन टी, नेत्र, हड्डी, डेंटल सहित अन्य सर्जरी करेंगे। यह फ़ैसला संस्थाओं में पिछले दरवाज़े से इंट्री का प्रयास है। उन्होंने आयुष चिकित्सकों को सर्जरी के लिए अयोग्य बताया है मौक़े पर आई एम ए सचिव डॉक्टर मृत्युंजय सिंह, संयुक्त सचिव डॉक्टर संतोष गुप्ता, डॉक्टर फ़िरोज़ अहमद, मिंटु अखौरी सिंह, डॉक्टर अशोक कुमार आदि मौजूद थे।    आई एम ए ने शनिवार को साकची आई एम ए भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलोपैथ चिकित्सकों ने मायोक्सपैथी का विरोध किया है, वहीं 11/12/2020 को शहर के सभी निजी-सरकारी अस्पतालों को बंद करने की घोषणा की है। मायोक्सपैथी के तहत आयूर्वेद, यूनानी व होमियोपैथी चिकित्सकों को सर्जरी करने का अधिकार दिया है, जो दुखद है। नेशनल मेडिकल काउंसिल ने आयुष चिकित्सकों को सभी तरह की सर्जरी करने का अधिकार दिया है। इससे ऐलोपैथी चिकित्सकों मेँ काफ़ी रोष है। इसके ख़िलाफ़ 11 दिसंबर को देश भर में ओपीडी, निजी क्लिनिक, पैथोलॉजी लैब, रेडियोलोजी सेंटर बंद रखने का निर्णय लिया गया है।सिर्फ एमरजेंसी सेवा कोविड केयर सेंटर खुले रहेंगे, ताकि मरीजों को किसी तरह की परेशानी नहीं उठाना पड़े।]      ये ऐलोपैथिक चिकित्सक, ख़ुद को "तीसमार खां" बताने वाले दरअसल "हिप्पोक्रेट्स" की औलाद हैं।ये जो हिप्पोक्रेट्स था , उसका एक ही तर्क था-  "अगर आपको कोई भी शारीरीक विकार हो गया है तो उसका कारण यह है कि आपका "रक्त दूषित" हो गया है।" इस तर्क के कारण हज़ारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। आपको बता दें कि अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन भी इस हिप्पोक्रेट्स सिद्धांत के शिकार हुए और अपनी जान गंवाई। इशुनियश, क्लाउडियस इत्यादि हिप्पोक्रेट्स सिद्धांत के शिकार हुए।    उसने तो सिर्फ "रक्त" को ही निकालने की बात कही थी, मगर आजकल के ये हिप्पोक्रेट्स की औलादों ने तो सारी हदें पार कर दी। बस, उनका एक ही मत है-"कुछ भी है, काटकर निकाल दो। किडनी, लीवर, अपेंडिक्स, बच्चादानी, घुटने,  सब कुछ काटकर निकाल दो। अरे इन मुर्खों के मुरख को कौन समझाए कि अगर ये सारे अंग हमारे शरीर में व्यर्थ ही हैं तो क्या भगवान ही बेवक़ूफ़ था जो फ़ालतू के इस तरह के अंग बनाये।     ये महानुभव ऐलोपैथिक चिकित्सक बतायें कि पिछले ढाई सौ साल के इतिहास में तुमने लोगों को, समाज को क्या दिया? सुन लो ऐलोपैथिक चिकित्सको ! तुम्हारे पास लोगों को, समाज को देने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज़ है,और वो चीज़ है-"दर्द"।इससे तुम सब अच्छी तरह सहमत हो, मगर हिम्मत नहीं है कि सार्वजनिक तौर पर यह बात स्वीकार कर सको, क्योंकि तुम्हारी पोल खुल जाएगी। अपना इतिहास पढ़ो, उसमें ढूंढो कि कोई एक भी डायबिटीज़, हाई बीपी, हार्टअटैक व ब्लाकेज इत्यादि का रोगी तुम्हारी अंग्रेज़ी दवा का सेवन करने के दस, बीस, पचास साल तक लगातार सेवन करके भी ठीक हुआ क्या?    तुम ऐलोपैथिक चिकित्सकों को चैलेंज करता हूँ कि ऐसा एक भी सबूत दिखा दो।     इसे छोड़ो, सर्जरी की बात बताता हूं। हिन्दुस्तान का एक बादशाह था,उसका नाम "हैदर अली" था। बात 17575-80 ई. की है। उसके राज्य पर एक अंग्रेज़ "जेनरल कूट" हमेशा हमला किया करता था, लेकिन हर बार प्राजित हो जाता था। एकबार फिर उसने हैदर अली पर हमला किया और हार गया। गिरफ्तार हुआ और बादशाह के दरबार में पेश किया गया। वो उठा और अपनी तलवार से उसकी नाक काट दी,जबकि वो चाहते तो उसकी गर्दन उड़ा सकते थे, मगर ऐसा नहीं किया।एक घोड़ा दिया और कटी नाक उसके हाथ में थमाकर बोला कि भाग जा।नाक कटना बहुत बड़ी बात होती है। भागते-भागते एक गाँव से गुज़र रहा था तो एक आदमी ने उसे रोककर कटी नाक के बारे में पूछा तो उसे बताया कि पत्थर से कट गया, मगर उस देहाती ने सच बताया कि तुम्हारी नाक तलवार से कटी हुई है। मेरे गांव में एक आदमी है जो तुम्हारी नाक जोड़ देगा। जेनरल कूट उसके पास गया और मात्र तीन साढ़े तीन घंटे में उस नाई जाति के 21-22 साल के यूवक उसकी नाक जोड़ दी, उसी विधा को आज तुम माडर्न साइंस का दंभ भरने वालो प्लास्टिक सर्जरी या नैनो सर्जरी कहते हो जिसके लिए एक पैसा नहीं लिया। पंद्रह दिनों तक अपने घर में रखा और जाते हुए उसने आयूर्वेदिक दवा का लेप दिया और कहा कि तीन महीने तक इस लेप को लगाया करना। जेनरल कूट ने ये घटना अपनी डायरी में लिखी और ब्रिटिश संसद में सबको दिखाते हुए अपनी ये घटना सुनाई, जिसे देखकर कोई भी अंग्रेज़ मानने को तैयार नहीं था।फिर उसने अपने चंद डॉक्टर दोस्तों को भारत लेकर आया और यहां के विभिन्न स्थानों में घूमकर भारतीय शल्य चिकित्सक से सर्जरी सीखा।वापस जाकर इंग्लैंड में "फेलो आफ रोयाल सोसायटी" की  स्थापना की।और तुम ऐलोपैथिक चिकित्सको वहां से "एफ आर एस एच" की सर्टीफिकेट मंगवाकर अपने बोर्ड पर "एफ आर एस एच" दर्शाते हो और लोगों को भ्रमित करने का कार्य करते हो,धिक्कार है तुम और तुम्हारी काली करतूतों पर। हमारा देश सैंकड़ों साल तक अंग्रेजों की ग़ुलामी में रहा और हमारी संस्कृति, स्वास्थ्य, शिक्षा यानी सबकुछ बरबाद कर दिया, लूट कर सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत देश को कंगाल कर दिया।हमारे गुरुकुलों को तबाह कर दिया। और अपनी सुविधा के अनुसार ऐलोपैथिक दवा का चलन भारत में शुरू किया, बस यही तेरे ऐलोपैथिक चिकित्सा का इतिहास है।     और हां, जिस "एम बी बी एस" की डिग्री पर तुम इतराते हो ना, वो भी बकवास है। इसका फुल फार्म बताओगे - "बैचलर ऑफ मेडिसिन ऐंड बैचलर ऑफ सर्जरी"। लेकिन इसका शार्ट फार्म तो "बी एम बी एस" होना चाहिये। एक और डिग्री है तुम्हारी - "एम डी"। कोई इसका फुल फार्म पूछे तो तुम कहोगे - "डॉक्टर आफ मेडिसिन"। क्या ये सही है? असल में तो इसका फुल फार्म "मार्केटिंग आफ ड्रग्स" होना चाहिये। वाक़ई तुम ऐलोपैथिक चिकित्सक, किसी बीमारी का ईलाज नहीं करते, बल्कि "दवाओं की मार्केटिंग" ही करते हो, और ऐसी दवाएं लिखते हो जिसमें लंबा कमीशन मिलता हो।अपने दिल पर हाथ रखो और अंरात्मा की आवाज़ सुनो, डूब मरो तुम सब।    रामायण तो पढ़े ही होगे। जब रावण से युद्ध हुआ जिसमें लक्ष्मण मुर्छित हो गए तो हनुमानजी ने कौनसा "ऐलोपैथिक औषधि" हिमालय पर्वत से लाए थे, बताओ ज़रा। मेरे कहने का सार यह है कि भारत में आयूर्वेद का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है, इसे नकारा नहीं जा सकता।तुम्हारे कहने से सच्चाई थोड़े ही बदल जाएगी।वो तो भला हो अंग्रेज़ हुकूमत का जिसने अपने शासनकाल में  आयूर्वेद को बरबाद कर दिया।अंग्रेज़ तो चले गए मगर उसकी आत्मा यहां के नेताओं में समा गयी, जो अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत को भारत में बढ़ावा देते चले गये।वरना तुम्हारी औक़ात आयूर्वेद और यूनानी के आगे कुछ भी नहीं है।     मैं चैलेंज करता हूँ। आजतक तुम लोग लीवर की बीमारी में आयूर्वेद ही इस्तेमाल करते हो। कोई एक भी डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज का पेशेंट ठीक हुआ हो तो बताओ?     तुम्हें तो सिर्फ काटकर निकालना आता है क्योंकि लाखों रुपए मिलते हैं। और चाहते हो कि किसी की बीमारी कभी भी ठीक ही न हो और जीवन भर ऐलोपैथिक दवाओं का सेवन करते हुए तुम्हारे परमानेंट कस्टमर बने रहें, हर महीने तुम्हारे पास फीस देते रहें।अंजाम क्या होता है शुगर के मरीज़ों का- आंखों की रोशनी जाती है, किडनी फेल होती है या पैर कटवाना पड़ता है।     उसी आयूर्वेद से यूनानी चिकित्सा पद्धति का उद्भव हुआ है। दोनों में भाषा और तरीकों के सिवाय कोई फर्क़ नहीं है।होम्योपैथिक के जनक डॉक्टर हैनिमन तो स्व्यं ही "एम बी बी एस" यानी ऐलोपैथिक चिकित्सक थे। #HAKEEMMDABURIZWAN  #UNANIPHYSICIAN  Spl in #LIFESTYLEDISEASES  #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND  contact                              what's App 9334518872                    9334518872 8651274288                    8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/



Last updated date 12/12/2020

لندن پہنچا HEALTH IN BOX

[12/10, 10:38 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK:! السلام علیکم محترم حکیم صاحب ! آپ انگلینڈ ہیلتھ ان بوکس والی دوائی بھیجتے ہیں؟ [12/10, 11:07 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: بہت معذرت ہندی مجھے پڑھنی نہیں آتی. [12/10, 11:08 PM] HAKEEM MD AB RIZWAN: کوئی بات نہیں، اردو میں لکھوں گا۔ " ہیلتھ ان باکس" انگلینڈ بھیج سکتا ہوں [12/10, 11:09 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: آپ کہاں سے ہیں۔ براہ کرم فون کریں- کبھی بھی تاکہ تفصیل سے بتا سکوں- [12/10, 11:09 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: ابھی کر لوں؟ [12/10, 11:10 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: Ji [13/10, 6:24 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK:! السلام علیکم محترمی آپ کے پاس Western union کی کوئی برانچ ہے؟ میرے لیے وسٹر یونین کے ذریعہ رقم بھیجنا آسان ہے- [13/10, 6:30 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: !وعلیکم السلام ورحمتہ اللہ وبرکاتہ جی بہت ہے، ہمارے آس پاس کئی کیفے ہیں جو ویسٹرن یونین کے برانچ چلاتے ہیں- [13/10, 6:38 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: آپ کو ID کی ضرورت ہوگی وسٹرن یونین سے رقم وصول کرنے کے لیے اور مجھے آپ کے آئی ڈی پر جو نام ہے اسکی ضرورت ہوگی- [13/10, 6:42 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: آپکو اپنے ادھار کارڈ کی کاپی بھیج رہا ہوں۔ وہی یہاں پر ویسٹرن یونین آفس میں دکھانا ہوتا ہے۔ [13/10, 6:45 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK:- جی بہتر [13/10, 10:29 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: میرا نام اور ایڈریس Name : Fazal Rasool Address : 03 colenso road bolton, Greater Manchester BL2 6DA [14/10, 1:02 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: !السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ الحمدللہ، ابھی ابھی اسپیڈ پوسٹ کردیا۔ کل -/ 2290 +12000=14290 روپیہ لگا۔ یعنی آپ مجھے بقایا رقم ٹرانسفر کرنے کی زحمت کریں۔ والسلام۔ [14/10, 1:37 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK:! وعلیکم السلام ورحمۃ اللہ بہت نوازش بقیہ رقم ٹرانسفر کر دیتا ہوں اور اندازاً کتنے دن لگیں گے پہنچے میں؟ [14/10, 2:15 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: جزاک اللہ خیرا لگ بھگ ایک ہفتے یا پہلے یا بعد۔ [14/10, 9:35 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: حضرت یہ میرے لیے ہے یا جنرل پوسٹ ہے؟ [14/10, 9:55 PM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: . السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ. یہ آپ کے لئے ہی ہے ،دوا کے ہر پیکٹ میں ایسا پیپر ملیگا لیکن وہ ہندی میں ہے۔ تو میں نے اردو میں لکھ بھیجا تاکہ دقت نہ ہو آپکو۔ اب آپ اسی طریقے پر صبح سے رات تک عمل کریں گے۔ دوا کا کورس مکمل ہونے کے بعد بھی۔ ویسے آپ کہاں کے رہنے والے ہیں؟ [14/10, 10:15 PM] HIB FAZAL RASOOL MANCHESTER UK: وعلیکم السلام ورحمۃ اللہ و برکاتہ۔ بہت شکریہ! میرا تعلق پاکستان لاہور سے ہے یہاں قریب گیارہ سال سے ہوں. یہ سب دوا شروع کرنے کے ساتھ کرنا ہے؟ نیبو پانی سے خوراک کی نالی میں جلن میں کافی اضافہ ہو جاتا ہے کاڑھے میں تلسی کے پتے یہاں نہیں ملیں گے، کھانا گائے کے گھی میں پکتا ہے جو خود گھر میں بنایا جاتا ہے اور دودھ صرف چائے میں استعمال کرتا ہوں اور وہ بھی دن میں ایک یا دو مرتبہ اور دھوپ یہاں پر نہیں نکلتی سخت سردی اور تقریباً ہر وقت بادل اور بارش اسی لیے پسینہ نہیں آتا شاید یہ بھی ایک وجہ ہے یہاں بیماریوں کی اور ترش اور کھٹی چیزوں سے خوراک کی نالی میں جلن میں کافی اضافہ ہو جاتا ہے. دودھ یہاں پر گائے کا ملتا ہے اور غالباً جو دودھ بڑھانے کے لئے ٹیکہ لگایا جاتا ہے وہ ادھر نہیں لگتا خالص دودھ ملتا ہے بچوں کو وہی دیتے ہیں شاید یہی وجہ ہے منع کرنے کی. گڑ، پھل اور سبزیاں مل جاتی ہیں اور یہاں پر نمک آئیوڈین کے بغیر والا مل جاتا ہے. دھوپ نہ ہونے کی وجہ سے یہاں وٹامن ڈی کی کمی بہت عام ہے اور عام طور پر جن چیزوں میں سے وٹامن ڈی حاصل کیا جاتا ہے جیسے دودھ وغیرہ ان چیزوں میں یہاں پر قدرتی طور پر وٹامن ڈی بہت کم ہوتا ہے جسکی وجہ سے ڈاکٹر بچوں اور بڑوں سب کو وٹامن ڈی کی گولیاں کھانے کا کہتے ہیں اگر مناسب سمجھیں تو کچھ اس بارے میں بھی مشورہ سے نوازیں [15/10, 8:13 AM] HAKEEM MD ABU RIZWAN: السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ قدرتی طور پر دہوپ سے حاصل ہونے والی وٹامن ڈی کا کوئی الٹرنیٹ یا بدل نہیں۔ ہاں ، اس کمی کو پھلوں و سبزیوں سے ہی پوری کرنے کی کوشش کریں- جہاں تک ہوسکے ان دیے گئے چارٹ کو ہی اپنی زندگی کا حصہ بنانے کی سوچیں۔ فیکٹری پروڈکٹ، اینیمل پروڈکٹ، بیکری پروڈکٹ، ریفائنڈ آیل، آیوڈائذڈ نمک، کو گھر سے باہر نکالنے کی کوشش کریں-۔



Last updated date 15/10/2020

LIFESTYLE DISEASES - 100% REVERSIBLE

जिस किसी हकीम, वैध या ऐलोपैथिक डॉक्टर को यही नहीं पता कि किसी बीमारी के होने का "कारण" क्या है, तो वो ईलाज कैसे कर सकता है? इस पोस्ट को ग़ौर से पढ़ें........। "LIFESTYLE DISEASES 100% REVERSIBLE" "Please Read This Post Very Carefully And Share To All Your Friends:- Niche likhi kuchh la-ilaaj bimariyan jisko hamlog "LIFESTYLE DISEASES" ke naam se jaante hain,is tarah ki sari bimariyon ka mukammal ilaaj mumkin hai,wo bhi sirf 1 hi medicine se.Kyunki sari bimariyan "GLUCOSE+INSULIN" ki gadbadi ki wajah se hi wajood me aati hain,body part's k hisab uska naam diya jata hai. GLUCOSE,INSULIN ke bich me jabtak taalmel sahi hai,ham aap sehatmand hain.Yahi sabse badi sachayi hai jo hamse chhupayi gayi hai badi-badi "pharmaceutical company" ki taraf se,taki wo apna BUSINESS chala saken.Hamen daraya gaya hamesha,isi ko "DISEASES MONGERING" yani "BHAI KA VYAPAAR" kahte hain. DIABETES HIGH BP CHOLESTEROL THYROID ANY TYPES OF VIRAL DISEASES DENGUE H1N1 SWINE-FLUE CHIKANGUNIA HIV-AIDS etc. sabki HAQEEQAT ab duniya k samne aa chuki hain,jisko hamlog "LIFE STYLE DISEASE" ke naam se jaante hain. "ZARURAT HAI SIRF AWAAM, JANTA, SAMAAJ, SOCIETY, LOGON K JAAGNE KI." AAGE AAIYE,IS AWAAMI SAMAAJI BEDAARI CAMPAIGN ka hissa baniye.


3 MONTHS-DIABETES HIGH CHOLESTEROL, INTESTINAL DISORDER,THYROID HIGH BP 3-6 MONTH-ARTHRITIS,KIDNEY DYSFUNC- TION,OBESITY(5 kg/month),LIVER DISOR- DER, HEART DISEASES. 6 MONTHS-ASTHMA 9 MONTHS-SKIN DISORDER, ADVANCE STAGE OF CANCER.


Jo 1 UNANI MEDICINE main deta hun,Jo beaten main batata hun,wo sabse alag hota hai.Logon ko bilkul ajuba lagta hai,kyunki ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEO PATHIC walon ne itna propaganda phailaya huwa hai ki isko sunne,samajhne ko koi taiyar nahi, 3 to 4 hrs lagte hain Logon ko samajhane,batane me.Sara kacha chittha kholkar jabtak nahin batata tabtak Logon ko yaqeen nahin hota.Aap chahen to main kahin bhi,kisi bhi platform par,hazaron Logon k darmiyan sabit karke dikha sakta hun. DIABETES and others LIFESTYLE DISEASES Ki ALLOPATHIC medicines 1st day se hi chhut jati hai,phir hamesha k liye "REVERSE" ho jati hai. 10000% GHALAT! aajtak logon ko pharma- ceutical companies, ALLOPATHIC UNANI, AYURVEDIC & HOMEO PATHIC COMPANIES & DOCTORS HAKEEM, VAIDYA bewaqoof banati rahi hain, company ke AGENTS ki tarah kaam karte hain,magar ab bas! DIABETES ya kisi bhi LIFESTYLE bimariyon k hone ke karan ko nazar andaz kiya jata raha,taki ye,and is tarah ki tamam bimariyon me zindagi bhar medicines khilate rahen, permanent customers banakar luten. jo medicine deta hun wo lene se pahle din se hi asar dikhata hai, ALLOPATHIC,UNANI AYURVEDIC HOMEOPATHIC MEDICINES chhodna padta hai,hamesha k liye.3 months k baad ye MERI UNANI MEDICINES bhi band.INSHA ALLAH ! FIRST YOU understand ME AND THEN CALL ME ON MY PHONE NUMBER 8651274288 FOR FURTHER QUERIES. **"Aapko ya aapke kisi apnon ko koi problem ho to likhe huwe ADDRESS par zarur aakar mil sakte hain."** * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| ........................... 1:- ACCOUNT DETAILS IDBI SAKCHI BRANCH , JAMSHEDPUR MOHAMMAD ABU RIZWAN A/C NO 0883104000001038 IFSC CODE IBKL0000883 2:- CANARA BANK BRANCH DR M A RIZWAN DIAGONAL ROAD BISTUPUR JAMSHEDPUR. A/C NO 0324101031398 IFSC CODE CNRB0000324 .......................... HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES

Last updated date 30/09/2020

सेंधा नमक

सेंधा नमक भारत से कैसे गायब कर दिया गया? शरीर के लिए BEST ALKALIZER है।आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ? आइये आज मैं आपको बताता हूं कि नमक कितने प्रकार होते हैं। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक (ROCK SALT) जिसे "नमक लाहौरी" कहा जाता है। सेंधा नमक बनता नहीं है, पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘नमक लाहौरी’ आदि आदि नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ और सुरंगे है । वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है। यह ह्रदय के लिये उत्तम, ठंडी तासीर वाला, पचने में हल्का है । इससे पाचक रस बढ़ता हैं। तो आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकलें। काला नमक या सेंधा नमक प्रयोग करे, क्योंकि ये प्रकृति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है। भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था, विदेशी कंपनीयां भारत में नमक के व्यापार में आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही अंग्रेज़ी शासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है। हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियों ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ ! अब समझिए खेल क्या था ? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत में एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ , आयोडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आओडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है,आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गईं । और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो बिकता था । उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है। सेंधा नमक का भाव एकाएक महीने भर के अंदर 4 गुना क्यों हो जाता है? महीने भर के अंदर सेंधा नमक 15 रुपए किलो से 60 रुपए किलो होने का कारण भारत सरकार ने सेंधा नमक पर 70% टैक्स लगा दिया, सिर्फ इसलिए कि इसकी पहुंच साधारण वर्ग से दूर रहें, एक तरफ लोकल - वोकल की बात करने वाले देश के सबसे बड़े राष्ट्र भक्त से भी यह सवाल है ऐसी क्या मजबूरी थी कि एकाएक सेंधा नमक का रेट 4 गुना कर दिया गया। दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले BAN कर दिया। अमेरिका में नहीं है जर्मनी में नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क में नहीं , डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आओडीन युक्त नमक खिलाया , (1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए। जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया । उनके वैज्ञानिकों ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होंने बैन लगाया। और शुरू के दिनो में जब हमारे देश में ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ तो इस देश के बेशर्म नेताओं ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक भारत मे बिक नहीं सकता । वो तो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया। आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था, सब सेंधा नमक ही खाते थे । सेंधा नमक के फ़ायदे:-


सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप के अलावा बहुत आरे गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है । क्योंकि ये अम्लीय नहीं बल्कि क्षारीय (ALKALINE) है। क्षारीय चीज जब अम्ल में मिलती है तो वो न्यूट्रल हो जाता है और रक्त में अम्लता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं । ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि ग़ैर मुस्लिम उपवास ,व्रत मे सेंधा नमक ही खाते है। तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ? सेंधा नमक शरीर में 97 पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्त्वों की कमी पूरी नहीं होने के कारण ही लकवे (PARALYSIS) का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है। सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में भी बताया गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि ये वात, पित्त और कफ को दूर करता है। यह पाचन में सहायक होता है, और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं, यूनानी और आयुर्वेदिक औषधियों में भी प्रयोग किया जाता है। समुद्री नमक के भयंकर नुकसान :-


ये जो समुद्री नमक है यूनानी और आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप में बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है। अब आयोडीन भी दो तरह का होता है। एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है । दूसरा होता है INDUSTRIAL IODINE जो बहुत ही ख़तरनाक है। तो, समुद्री नमक जो पहले से ही ख़तरनाक है उसमें कंपनियां अतिरिक्त INDUSTRIAL IODINE डाल कर पूरे देश को बेच रही हैं। जिससे बहुत सी गंभीर बीमारियां हम लोगो को आ रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है। आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक उच्च रक्तचाप (HIGH BP ) ,डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनती हैं । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (ACIDIC) होता है । जिससे रक्त की अम्लता बढ़ती है और रक्त की अम्लता बढ़ने से 48 तरह के रोग आते है । ये नमक पानी में कभी पूरी तरह नहीं घुलता है, हीरे (DIAMOND ) की तरह चमकता रहता है। इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है । ये नमक नपुंसकता और लकवा (PARALYSIS ) का बहुत बड़ा कारण है। समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है ! और बीमारियां जरूर साथ मे मिल जाती हैं ! रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नहीं है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए TRICALCIUM PHOSPHATE, MAGNESIUM CARBONATE, SODIUM ALUMINO SILICATE जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते हैं। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं, जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना बढ़ जाती है, और आक्सीजन जाने में परेशानी होती है। जोड़ो का दर्द और गठिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है। निवेदन : हज़ारों साल पुरानी यूनानी चिकित्सा पद्धति में भोजन में सेंधा नमक ही इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था जो स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए। आप आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये ! सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आयोडीन हर नमक मे होता है। सेंधा नमक में भी आयोडीन होता है, बस फर्क इतना है कि इस सेंधा नमक मे प्रकृति के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आयोडीन होता है। इसके इलावा आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 29/09/2020

लाइफस्टाइल डीज़ीज़ 100% रिवर्सिबल है

जिस किसी हकीम, वैध या ऐलोपैथिक डॉक्टर को यही नहीं पता कि किसी बीमारी के होने का "कारण" क्या है, तो वो ईलाज कैसे कर सकता है? इस पोस्ट को ग़ौर से पढ़ें........। "LIFESTYLE DISEASES 100% REVERSIBLE" "Please Read This Post Very Carefully And Share To All Your Friends:- Niche likhi kuchh la-ilaaj bimariyan jisko hamlog "LIFESTYLE DISEASES" ke naam se jaante hain,is tarah ki sari bimariyon ka mukammal ilaaj mumkin hai,wo bhi sirf 1 hi medicine se.Kyunki sari bimariyan "GLUCOSE+INSULIN" ki gadbadi ki wajah se hi wajood me aati hain,body part's k hisab uska naam diya jata hai. GLUCOSE,INSULIN ke bich me jabtak taalmel sahi hai,ham aap sehatmand hain.Yahi sabse badi sachayi hai jo hamse chhupayi gayi hai badi-badi "pharmaceutical company" ki taraf se,taki wo apna BUSINESS chala saken.Hamen daraya gaya hamesha,isi ko "DISEASES MONGERING" yani "BHAI KA VYAPAAR" kahte hain. DIABETES HIGH BP CHOLESTEROL THYROID ANY TYPES OF VIRAL DISEASES DENGUE H1N1 SWINE-FLUE CHIKANGUNIA HIV-AIDS etc. sabki HAQEEQAT ab duniya k samne aa chuki hain,jisko hamlog "LIFE STYLE DISEASE" ke naam se jaante hain. "ZARURAT HAI SIRF AWAAM, JANTA, SAMAAJ, SOCIETY, LOGON K JAAGNE KI." AAGE AAIYE,IS AWAAMI SAMAAJI BEDAARI CAMPAIGN ka hissa baniye. 3 MONTHS-DIABETES HIGH CHOLESTEROL, INTESTINAL DISORDER,THYROID HIGH BP 3-6 MONTH-ARTHRITIS,KIDNEY DYSFUNC- TION,OBESITY(5 kg/month),LIVER DISOR- DER, HEART DISEASES. 6 MONTHS-ASTHMA 9 MONTHS-SKIN DISORDER, ADVANCE STAGE OF CANCER.


Jo 1 UNANI MEDICINE main deta hun,Jo beaten main batata hun,wo sabse alag hota hai.Logon ko bilkul ajuba lagta hai,kyunki ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEO PATHIC walon ne itna propaganda phailaya huwa hai ki isko sunne,samajhne ko koi taiyar nahi, 3 to 4 hrs lagte hain Logon ko samajhane,batane me.Sara kacha chittha kholkar jabtak nahin batata tabtak Logon ko yaqeen nahin hota.Aap chahen to main kahin bhi,kisi bhi platform par,hazaron Logon k darmiyan sabit karke dikha sakta hun. DIABETES and others LIFESTYLE DISEASES Ki ALLOPATHIC medicines 1st day se hi chhut jati hai,phir hamesha k liye "REVERSE" ho jati hai. 10000% GHALAT! aajtak logon ko pharma- ceutical companies, ALLOPATHIC UNANI, AYURVEDIC & HOMEO PATHIC COMPANIES & DOCTORS HAKEEM, VAIDYA bewaqoof banati rahi hain, company ke AGENTS ki tarah kaam karte hain,magar ab bas! DIABETES ya kisi bhi LIFESTYLE bimariyon k hone ke karan ko nazar andaz kiya jata raha,taki ye,and is tarah ki tamam bimariyon me zindagi bhar medicines khilate rahen, permanent customers banakar luten. jo medicine deta hun wo lene se pahle din se hi asar dikhata hai, ALLOPATHIC,UNANI AYURVEDIC HOMEOPATHIC MEDICINES chhodna padta hai,hamesha k liye.3 months k baad ye MERI UNANI MEDICINES bhi band.INSHA ALLAH ! FIRST YOU understand ME AND THEN CALL ME ON MY PHONE NUMBER 8651274288 FOR FURTHER QUERIES.


**"Aapko ya aapke kisi apnon ko koi problem ho to likhe huwe ADDRESS par zarur aakar mil sakte hain."** * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 23/09/2020

Abdominal Disorders

The common symptom for abdominal present is trouble swallowing, gastrointestinal hemorrhage or metastases (mainly in the liver). I, Hakim Md Abu Rizwan, Unani Remedies for Abdominal Disorder Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It.


Our unani remedies have been successfully used in treating Abdominal Disorder Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®. I will be able to stop this medicine after four months of use and will be able to live a healthy life.


We will give you the Abdominal Disorder and UNANI MEDICINE. Please contact me:- HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND INDIA cont no 933418872 8651274288 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN Email umrcjamshedpur1966@gmail.com Website https://umrc.co.in/

Last updated date 29/08/2020


ریفائنڈ آئل کیسے تیار کیا جاتا ہے ؟


"ریفائنڈ تیل کیسے تیار کیا جاتا ہے؟ اگر ہندوستان میں کوئی بھی ایسی چیز ہے جس میں سب سے زیادہ اموات ہوں ، تو اس "ریفائنڈ تیل کہی جاتی ہے۔ کیرالہ آیورویدک یونیورسٹی ریسرچ سینٹر کے مطابق ، "ریفائنڈ تیل" ہر سال 20 لاکھ افراد کی ہلاکت کا سبب بنتا ہے۔ "ریفائنڈ تیل ڈی این اے کو ، آر این اے کو نقصان پہنچانے والی ، دل کا دورہ ، دل کی رکاوٹ ، دماغ کو نقصان ، فالج، شکر (ذیابیطس) ، بلڈ پریشر ، نامردی، کینسر ، ہڈیوں کا کمزور ہونا ، جوڑوں کا درد ، کمر میں درد ، گردے کو نقصان ، جگر کے نقصان کا سبب بنتا ہے۔ کولیسٹرول ، آنکھوں کی روشنی کم ہونا ، لیکوروریا ، بانجھ پن ، ڈھیر ، جلد کی بیماری وغیرہ ہزاروں بیماریوں کی سب سے بڑی وجہ ہیں۔ "ریفائنڈ تیل " کیسے بنائے جاتے ہیں؟ تیل کو چھلکے ہوئے بیجوں کے ساتھ نکالا جاتا ہے ، اس طریقے سے ، تیل میں جو بھی نقائص آتا ہے ، وہ صاف کرکے اس کو بہتر بنایا جاتا ہے تاکہ تیل کا ذائقہ ، بو اور بے رنگ ہوسکے۔ دھلائی: - پانی ، نمک ، کاسٹک سوڈا ، گندھک ، پوٹاشیم ، تیزاب اور دیگر مضر تیزاب دھونے کے ل. استعمال ہوتے ہیں ، تاکہ نقائص ختم ہوجائیں۔ یہ بنانے کے لئے استعمال کیا جاتا ہے یہ تیل تیزاب کی وجہ سے زہر آلود ہوگیا ہے۔ تشخیص: - تیل کے ساتھ کاسٹک یا صابن ملا کر 180 ° F پر گرم کیا جاتا ہے۔ جس کی وجہ سے اس تیل کے تمام غذائی عنصر ختم ہوجاتے ہیں۔ بلیچنگ: اس طریقہ کار میں ، تیل کا رنگ اور شامل کیمیکل 130 P F پر گرم کیا جاتا ہے جو P O P (پلاسٹر آف پیرس ، جو مکانات بنانے کے لئے استعمال ہوتا ہے) کا استعمال کرتے ہیں! ہائیڈروجنسیشن: - کسی ٹینک میں تیل کے ساتھ نکول اور ہائیڈروجن کا ملاوٹ ہل جاتا ہے۔ ان سارے عمل میں ، تیل کو 7-8 بار گرم اور ٹھنڈا کیا جاتا ہے ، جس سے تیل میں "پولیمر" تشکیل پاتا ہے ، جو "نظام انہضام" کو خطرہ بناتا ہے ، اور کھانے کی کم ہضم عمل کا سبب بنتا ہے۔ نکیل: - کیٹالسٹ میٹل (آئرن) کی ایک قسم ہے جس سے ہمارے جسم کے ریپریٹری نظام ، زندہ ، سکین ، میٹابولزم ، ڈی این اے ، آر این اے کو شدید نقصان ہوتا ہے۔ "ریفائنڈ کرکے تیل کے تمام عناصر کو ختم کر دیا جاتا ہے اور تیزاب (کیمیائی) شامل کیا جاتا ہے ، اس سے اندرونی اعضاء کو نقصان ہوتا ہے۔ گندا نالیوں کا پانی پیجئے ، کچھ نہیں ہوگا ، کیونکہ ہمارے جسم میں قوت مدافعت ان بیکٹیریا سے لڑتی ہے اور اسے ختم کردیتی ہے ، لیکن "ریفائنڈ تیل کھانے والا شخص وقت سے پہلے ہی مرنا یقینی ہے ۔ہمارا جسم کروڑوں سیل (خلیوں) پر مشتمل ہوتا ہے۔ بنا ہوا ، پرانے CELLS جسم کو زندہ رکھنے کے لئے نئے CELLS سے REPLACE کرتا ہے ، جسم نئے CELLS (خلیات) بنانے کے لئے خون کا استعمال کرتا ہے ، اگر "ریفائنڈ تیل استعمال کریں تو خون میں TOXINS کی مقدار بڑھ جاتی ہے۔ ، اور جسم کو نئے خلیے بنانے میں رکاوٹیں آتی ہیں ، اس کے بعد بہت ساری قسم کی بیماریوں جیسے - کینسر ، ذیابیطس ، دل کا دورہ ، بچ PROے کی دشواریوں ، الرجیوں ، اسٹومک السر ، پریشر ، امپوتینس ، آرتھرائٹس ، ڈپریشن ، ہائی بلڈ پریشر وغیرہ۔ ہو جائے گا. "ریفائنڈ تیل بنانے کے عمل سے تیل بہت مہنگا ہوجاتا ہے ، لہذا اس میں "پام آئل" شامل کیا جاتا ہے! (کھجور کا تیل خود ہی میٹھا زہر ہے) گورنمنٹ آرڈر: - ہمارے ملک کی پالیسی امریکی حکومت کے کہنے پر چلتی ہے۔ امریکہ کے پام آئل کو بیچنے کے لئے "،" منموہن حکومت "نے ایک آرڈیننس لاگو کیا جس میں یہ کہا گیا ہے کہ ہر تیل کمپنیوں کو پام آئل کو 40٪ خوردنی تیل میں شامل کرنا ہے ، بصورت دیگر لائسنس منسوخ ہوجائے گا۔اس سے امریکہ کو بہت فائدہ ہوا۔ اس کی وجہ سے ، لوگ زیادہ بیمار ہونا شروع ہوگئے ، دل کا دورہ پڑنے کے امکانات ٪ 99بڑھ گئے ، پھر دوائیں بھی امریکہ سے آنے لگیں ، دل میں لگنے والی STENTS دو لاکھ روپے میں فروخت ہوتی ہے ، یعنی امریکہ کے دونوں ہاتھوں میں لڈو :- "پام آئل" اور اس کی "دوائیں" بھی۔ اب بہت ساری معروف کمپنیاں ، یہاں تک کہ "پام آئل" سے بھی کم سستا ، نے کار سے کالا تیل (جسے آپ صرف کار سروس کے پاس چھوڑ دیتے ہیں) ، جو صاف اور خوردنی تیل میں بھی شامل کیا جاتا ہے ، کئی بار اخبارات میں اس کے پکڑے جانے کی اطلاعات آتی ہیں سویابین دال ہے ، تیل نہیں۔ دالیں :- مونگ ، چنے ، سویا بین اور ہر طرح کی دالیں۔ تیلہن :-سرسوں ، مونگ پھلی ، ناریل ، بادام وغیرہ شامل ہیں۔ لہذا ، سویا بین کا تیل خالص پام آئل ہے۔ سویابین کا استعمال پام آئل کو بہتر بنانے کے لئے کیا جاتا ہے۔ سویا بین کی ایک خصوصیت یہ ہے کہ یہ ہر ایک مائع کو جذب کرتا ہے ، پام آئل مکمل طور پر کالی اور الکترو کی مانند ہوتا ہے ۔اس میں سویا بین ڈال دیا جاتا ہے تاکہ سویا بین کا بیج پام کے تیل کی نرمی کو جذب کرے ، اور پھر سویا بین گھسائی کرنے والی جگہ لے جا تا ہے ، جو چکنائی مادہ "تیل" اور "آٹے" کو الگ کرتا ہے ، سویا مانگوڈی آٹے سے بنی ہوتی ہے! اگر آپ چاہیں تو ، سویا بین کو کسی بھی تیل نکالنے والے کے پاس لے جائیں اور اس سے تیل نکالنے کو کہیں۔ یہاں تک کہ ایک لاکھ روپے ادا کرنےکے بھی تیل نہیں نکالے گا ، کیوں کہ سویا بین کا آٹا بنتا ہے ، تیل نہیں! سورج مکھی ، چاول کی بھوسی (چارہ) وغیرہ کا تیل "ریفائنڈ کیے بغیر نہیں نکالا جاسکتا ، لہذا یہ زہریلا ہے! "خوش قسمتی" کا مطلب ہے آپ اور آپ کے اہل خانہ کا "مستقبل"۔ "سفولا" ، یعنی سانپ کے بچے کو "سپولا" کہا جاتا ہے۔ 5 سال کھانے کے بعد جسم کو زہر کردیا گیا "سپولا" (سانپ کاٹنے والا) 10 سال بعد "سانپ" بن گیا ہے۔ * موت کے 15 سال بعد ، یعنی "سفولا" اب "ڈریگن" بن گیا ہے اور وہ آپ کو نگل لے گا۔ غلط کھانوں کی وجہ سے قبل از وقت موت واقع ہوجاتی ہے۔ دماغ ، دولت اور روح کی تسکین کے لئے صرف کچی گھانی ، تل ، سرسوں ، مونگ پھلی ، ناریل ، بادام وغیرہ کا استعمال کریں۔ "کچے گھانی" کا نکالا ہوا تیل ہی استعمال کریں گے! آج کل سبھی کمپنیاں اپنی مصنوعات پر کچی گھانی تیل لکھتی ہیں ، جو سراسر غلط ہے ، سراسر دھوکہ ہے۔ کچی گھانی کا مطلب لکڑی ، مارٹر اور لکڑی سے بنا ہوا کولہو ہونا چاہئے ۔اس میں لوہے کا رگڑ نہیں ہونا چاہئے۔ اسے "کچی گھانی" کہا جاتا ہے ، جسے بیل چلاتے ہیں۔ آج کل موٹر بیل کی جگہ لائی گئی ہے! لیکن موٹر بیل کے بہ نسبت تیز دوڑتی ہے! لوہے کی بڑی مشینیں جن کے سلنڈر انتہائی تیز رفتار سے چلتے ہیں ، تیل کے تمام غذائیت پسند عناصر کو ختم کردیتے ہیں ، اور وہ لکھتے ہیں - "کچی گھانی"۔ نوٹ:- اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد ، اپنے خیالات کا اظہار کریں ، مجھے اچھا لگے گا۔ نیز ، اپنے دائرے میں مزید شیئر کریں۔ * میرے پاس صرف ایک دوا ®HEALTH IN BOX ہے ، جو پاؤڈر کی شکل میں ہے۔ اللہ کا شکر ہے کہ اس ایک ہی دوا سے تمام اقسام کے بیماریوں کا علاج بآسانی کیا جاتا ہے اور ہر اس بیماری کا علاج کلی طور پر هو جاتا ہے جسکے لیے ڈاکٹر حضرات اعلان کر دیا کرتے ہیں کہ تا حیات انگریزی دواؤں کے استعمال سے ہی زندہ رہ سکتے ہیں۔ مگر آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ میری اس دوا سے ہر قسم کی لاعلاج اور لائف سٹائل ڈیزیزیز ہمیشہ کے لیے REVERSE هو جاتی ہیں اور D 3 یعنی (ڈیزیز، ڈرگس اور ڈاکٹر) سے ہمیشہ کے لیے چھٹکارا۔ صبح اور شام 4 سے 4 گرام کاڑھی بنائیں اور استعمال کریں۔ کسی بھی بیماری میں کم از کم چار ماہ۔ حکیم محمد ابو رضوان (بی یو ایم ایس (آنرس یونانی فزیسیئن



Last updated date 09/10/2020

میڈیکل سائنس اور ڈاکٹر کی فضیلت

آج یکم صفر المظفر 1442ھ مطابق 18/ستمبر 2020 مسجد نبوی شریف میں فضیلة الشيخ ڈاکٹر صلاح البدیر/حفظہ اللہ نے "میڈیکل سائنس اور ڈاکٹر کی فضیلت " عنوان پر جمعہ کا خطاب فرمایا، آپ نے ابتداء میں میڈیکل سائنس کی اہمیت پر روشنی ڈالتے ہوئے فرمایا:- " بے شک میڈیکل سائنس سب سے زیادہ نفع بخش اور سب سے زیادہ بااثر علم ہے، اس فن میں مہارت عزت و شرف کی بات ہے، بغیر مہارت کے یہ پیشہ مشکل ترین وادیوں کی طرح ہے جہاں تک رسائی نہایت دشوار ہے! میڈیکل سائنس کا طالب علم مسلسل محنت کے ذریعے درجہ بدرجہ آگے بڑھتا ہے یہاں تک کہ وہ اس کے اعلی ترین مرتبے پر فائز ہوجاتا ہے کہ جہاں تک صرف صبر کے ساتھ مسلسل جدوجہد کرنے والا انسان ہی پہنچ سکتا ہے"۔ چنانچہ روایت میں ہے کہ ابن ماسویہ نامی طبیب نے جب نبی کریم ﷺ کی یہ حدیث پڑھی: " کسی انسان نے پیٹ سے برا کوئی برتن نہیں بھرا، انسان کے لئے چند لقمے ہی کافی ہیں جن سے اس کی پیٹ سیدھی رہے، لیکن اگر بہت ضروری ہو تو پیٹ کا ایک تہائی کھانا کے لئے، ایک تہائی پانی کے لئے اور ایک تہائی سانس کے لئے رکھے" تو انہوں نے کہا: اگر انسان ان باتوں پر عمل کرلے تو وہ تمام بیماریوں اور امراض سے محفوظ رہے گا اور تمام شفاخانے اور دواخانے بند ہوجائیں گے. پھر آپ حفظہ اللہ نے ذکر کیا کہ: مسلمانوں کو ایسے نیم حکیم کی تصدیق سے بچنا چاہئے جو سوشل میڈیا کے ذریعے طبی تجاویز نشر کرتے ہیں اور لوگوں کے درمیان وہم اور ڈر پھیلاکر اور ان زندگیوں سے کھلواڑ کرکے اپنی تجارت چمکاتے ہیں اور لوگوں کے جسم وصحت کو یقینی طور پر نقصان پہنچاتے ہیں۔ نیز امام شافعی رحمہ اللہ ارشاد فرماتے ہیں: " علم کی دو قسمیں ہیں: دین کے فقہ کا علم اور علم طب یعنی میڈیکل سائنس"۔ پھر آپ نے مسلمانوں کو ڈاکٹروں کی اہمیت و قدر کرنے کی اہمیت دلاتے ہوئے فرمایا: ڈاکٹروں کے مقام ومرتبے کا خیال رکھیں، نرسوں کی قدر کریں، ان کی کوششوں اور قربانیوں پر ان کا شکر ادا کریں، یہی وہ لوگ ہیں جو دوسروں کو موت کے پنجوں سے اور کورونا وبا کی سے محفوظ رکھنے کے لئے کسی شکوہ اور تھکاوٹ کے بغیر مضبوط ڈھال بن جاتے ہیں۔ نیز دوران خطبہ آپ نے ذکر کیا: علاج کرانا مستحب ہے لیکن اگر علاج نہ کرانے سے ہلاکت کا خوف ہو تو پھر علاج کرانا واجب ہے۔ تند خو اور سنگ دل ڈاکٹر جب تیزوتند ہوا کی مانند مریض کے سامنے سے گزرتا ہے جس سے اس کی امیدیں ٹوٹ جاتی ہیں اور جو ڈاکٹر کسی تمہید اور نرمی کے بغیر مریض کو اس کے مرض سے ڈراتا ہے تو وہ مزید مٹی پلید کردیتا ہے اور بیماری میں مزید اضافہ کردیتا ہے۔ نیم حکیم اور جھولا چھاپ ڈاکٹر جسے علم طب میں مہارت نہیں ہے اس کے لئے آپریشن کرنا اور اس پیشے کو اپنانا جائز نہیں ہے، پھر بھی اگر وہ پریکٹس کرتا ہے تو وہ گنہگار، مجرم اور ظالم ہوگا اور اپنی غلطیوں کا ذمہ دار ہوگا۔ مریضوں کا استحصال کرنا جیسے ایسے ٹیسٹ اور چیک اپ کروانا جن کی ضرورت نہ ہو بلکہ ان کا مقصد محض تجارت اور لوگوں کے مال پر ڈاکہ ڈالنا ہو تو یہ سراسر حرام ہے، کیا ہی بری مالداری ہے جو مریضوں اور لاچاروں کے درد کی تجارت پر قائم ہو۔ پھر آپ حفظہ اللہ نے لوگوں کو متنبہ کرتے ہوئے فرمایا: میڈیکل سائنس کے ایسے دجالوں سے بچیں جو پرمٹ کے بغیر مشکوک کلینک کھول کر مریضوں کو بلاتے ہیں اور کسی مخصوص بیماری کے علاج کا دعوی کرکے جعلی مصنوعات فروخت کرتے ہیں۔ نیز آپ نے ذکر کیا: مخلوقات کو اللہ آزمائشوں میں مبتلا کرتا ہے چنانچہ کہا گیا ہے: "جب تک تم اس دنیا میں باحیات رہو تو اللہ کے قضاء وقدر سے آزمائشوں میں مبتلا کئے جانے پر حیرت کا اظہار نہ کیا کرو"۔ لہذا تم ایسے نہ ہو جاؤ کہ جسے پریشانی پہنچتی ہے تو وہ خوفزدہ ہوجاتا ہے، رونے پیٹنے لگتا ہے، اپنا دل چھوٹا کرلیتا ہے اور اللہ کی رحمت سے مایوس ہوجاتا ہے بلکہ آپ لوگ اللہ کے رسول ﷺ کے اس قول کو برابر یاد رکھیں کہ جس میں آپ فرماتے ہیں: "بندہ جب اللہ تعالی کے یہاں اس مقام پر فائز ہوجاتا ہے جہاں تک وہ اپنے اعمال کے ذریعے نہیں پہنچ سکتا تو اللہ تعالی اسے جسمانی، مالی یا اولاد کی آزمائش میں مبتلا کرکے پھر اسے صبر کی طاقت دیتا ہے تاکہ وہ اللہ تعالی کے پاس اپنے مرتبے پر فائز ہوسکے"۔ (رواه أبو داؤد) بعض سلف کا قول ہے: "اگر دنیا کی مصیبتیں نہ ہوتیں تو ہم قیامت کے دن بطور مفلس حاضر ہوتے"۔ نیز اسی طرح قیس بن عباد رحمہ اللہ فرماتے ہیں: " تکلیف کی گھڑیاں ہمارے گناہوں کی گھڑیاں ختم کردیتی ہیں" اور مومن سزا پانے میں جلدبازی طلب نہیں کرتا ہے بلکہ وہ اللہ سے عافیت کا طلبگار ہوتا ہے، چنانچہ حضرت انس رضی اللہ عنہ سے روایت ہیکہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مسلمانوں میں سے ایک مریض کی عیادت فرمائی کہ جو مرض کی وجہ (گل کر کمزور ہوکر) ایک چوزے کی شکل میں ہوگیا تھا (یعنی بالکل کمزور ہوگیا تھا اور بدن میں صرف ہڈیوں کا ڈھانچہ بچا تھا) تو آپ ﷺ نے اس سے پوچھا: کہ تم کس چیز کی دعا کررہے تھے یا تم نے اللہ سے کچھ خود سے ہی مانگا تھا؟ اس نے جواب دیا: ہاں! میں کہتا تھا: رب العالمین! مجھے جو سزا آخرت میں دینے والا ہے تو وہ سزا دنیا ہی میں مجھے جلدی دے دے، تو آپ ﷺ نے فرمایا: اللہ کی پناہ! تم اس کی (برداشت کرنے کی) طاقت نہیں رکھتے! تم نے اللہ سے ایسا کیوں نہیں کہا؟ اے اللہ! مجھے اس دنیا میں نیکی عطا فرما اور آخرت میں بھی نیکی عطا کر اور جہنم کے عذاب سے بچا! پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس مریض کی شفایابی کے لئے بارگاہ ذو الجلال میں دعا مانگی تو اللہ تعالی نے اسے شفایابی عطا فرمادی! (أخرجه مسلم) آخر میں شیخ حفظہ اللہ نے پیارے حبیب صلی اللہ علیہ وسلم پر کثرت سے درود وسلام بھیجنے کی اہمیت ذکر کی نیز حکام مملکہ، سرحد کی نگرانی پر مامور سیکورٹی فورسز اور مسلمانان عالم کیلئے امن وسلامتی کی دعا کرتے ہوئے اپنے خطبہ جمعہ کا اختتام کیا! اللہ رب العالمین سے دعا ہیکہ اے اللہ! ہمیں صحت وتندرستی جیسی عظیم انعامات خداوندی کی اہمیت سمجھنے کی توفیق عطا فرما! نیز میڈیکل سائنس اور ان سے منسلک افراد بشمول طلبہ و اساتذہ واطباء ونرس کی قدر کرنے کی توفیق عطا فرما! آمین! تقبل یا رب العالمین! دعاگو: ابو تحسین خان مدینہ منورہ



Last updated date 09/10/2020

दूसरे के फ़ायदे से आपको क्या फ़ायदा ?

अस्सलाम अलैकुम ! जनाब रहमत अली साहब। दूसरे के फायदे से आपको क्या फायदा। आपको फायदा हो जाना चाहिए,बस। लंबी लिस्ट भी बिल्कुल दे सकता हूँ, मगर ये तिब्बी उसूल के खिलाफ होगा। एक हकीम का सीना क़ब्रिस्तान होता है जिसमें मरीज़ों के "राज़" दफ़न होते हैं। लेकिन आपको क्यों यक़ीन नहीं हो रहा? क्या अल्लाह पर यक़ीन नहीं, ये तो हमारे डॉक्टरों व दवा कंपनियों की मिली-भगत है जिनकी दादागिरी ये चाहती है कि आप हमेशा जीवनभर उनकी दवाएँ खा खाकर उनके "कस्टमर "बने रहें। अल्लाह ने हर बीमारी के साथ शिफा भी रखी है हमारे लिए,फिर क्यों और कैसे कोई बीमारी लाईलाज हो सकती है। किसी बीमारी केलिए क्यों ज़िन्दगी भर दवा खाया जाए। इतनी सी बात आपलोगों की समझ में नहीं आती, और सबूत माँगते हैं, ठीक होनवालों की लिस्ट माँगते हैं, तब भी आपलोगों को यक़ीन नहीं आएगा, फिर भी कहेंगे कि नाम पता व फोन नं तो आप भी हज़ारों बता सकते हैं। इस तरह की बातें आपलोगों के दिमाग़ में आती कैसे है, कैसे आपलोगों ने उन हाई फाई डॉक्टरों की बातों पर यक़ीन कर के शांतिपूर्वक जीवन भर दवा खाना क़बूल कर लिया।हाई फाई फार्मासियुटीकल कंपनियों की चपेट में सारी दुनिया आ चुकी है।जिसमें अधिकतर "अमेरिकी कंपनीज़" हैं, जो अमेरिका में बैठकर हमारा BP, BLOOD SUGAR LEVEL, CHOLESTEROL LEVEL का फैसला करे और हमारा IMA (INDIAN MEDICAL ASSOCIATION) उसे हमारा HEALTH GUIDELINE कहकर, यक़ीन दिलाकर हमपर लागू करदे और हम बख़ुशी क़बूल करलें। याद रखिए, दुनिया में कुछ लोग ये चाहते हैं कि आप हमेशा बीमार रहें, वो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी 15% तक घट जाए।


उन्हें हमारी सेहत की नहीं, हमारी बीमारी की चिंता है। अगर ब्लड शूगर, बी पी, कोलेस्टेरोल, थाईराईड, किडनी, हार्ट वग़ैरह की समस्याएँ उनके ईलाज से ठीक होने लगे तो फिर "उनकी काली कमाई" रुक सकती है। आपलोग समझ ही नहीं पा रहे कि ये "उनकी कितनी भयंकर और शातिराना साज़िश" है।PHARMACEUTICAL COMPANIES की लॉबी बड़ी ही मज़बूत है, आप उनके काले कारनामें जब जानेंगे तो दांतों तले ऊँगलियाँ दबाएँगे ही नहीं, बल्कि ग़ुस्से में आप अपनी ऊँगली चबा जाएँगे। बस इतना जान लीजिए कि हर बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है, ईनसान बिल्कुल सेहतमंद रह सकता है,बग़ैर किसी बीमारी व दवा के लंबी उम्र तक सेहतमंद रह सकता है।


उस वक़्त केलिए बस इतना करना होगा हर किसी को कि अपनी "लाईफ स्टाईल" में एकदम से तब्दीली लाना होगा। आज की सारी बीमारियाँ "लाईफ स्टाईल" बीमारियाँ हैं। " ख़ुद को बदलिए,हालात ख़ुद- बख़ुद बदल जाएँगे।" आपका शुभ चिंतक HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU)

Last updated date 30/09/2020

अजीब दुनिया

ये दुनिया भी अजीब है,और लोग तो उससे भी ज़्यादा अजीब हैं, उनकी सोच भी अजीब,उनके कारनामे भी अजीब ही हैं। पता नहीं लोगों को क्या हो गया है कि अंग्रेज़ी दवा और ऐलोपैथिक डॉक्टर के ग़ुलाम हो गये हैं।या, यूँ कहें कि फार्मासियूटिकल कंपनियों ने लोगों को "हिप्नाटाईज़" कर दिया है।अंग्रेज़ी दवाओं के सेवन करने से भला कोई बीमारी ठीक हो पा रही है क्या?मगर कुछ भी हो जाए, एक रोग की दवा खाते-खाते दूसरी तीसरी बीमारी जुटती जाए, उस "तोहफे" को बड़ी ही दीलेरी से क़बूल करते जाएँगे।लोगों की मति मारी गयी है, या सोचने समझने की सलाहियत नहीं रही, कि हमारे लिए क्या अच्छा, क्या बुरा है? ग़ज़ब की सहन शक्ति है लोगों में! किसी ने देखा,सुना या जाना कि इस धरती का कोई एक ईन्सान भी डायबिटीज़,हाई बी पी, कोलेस्ट्रौल, थाई-राईड, हार्ट प्रॉब्लम्स,किडनी प्राब्लम्स,मेन्टल प्रॉब्लम्स आदि रोगों केलिए "ऐलोपैथिक दवा" का सालों साल सेवन करके सेहतमंद हुआ भी है? आज साईंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि कोई भी इन्सान स्वस्थ नहीं।हाँ!स्वस्थ वही है जो या तो कभी डॉक्टर के पास नहीं गया, या लैबोरेट्री में नहीं गया। आए दिन नये-नये सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पीटल खुल रहे हैं, एक से एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर, हद तो ये हो गयी है कि दायीं व बायीं आँख के भी अलग-अलग डॉक्टर मिलने लग जायेंगे।मगर न तो बीमारी थमने का नाम ले रही है और न ही मरीज़ों की क़तारें कम होने का नाम ले रही हैं।लोगों की सारी उम्मीदें उन लाईसेंसी मर्डरर (ऐलो पैथिक डॉक्टर) व अंग्रेज़ी दवाओं पर टिकी हैं।हालाँकि स्थिति इतनी भयावह है कि उनको हमारी "सेहत" की नहीं बल्कि हमारी "बीमारी" की ही चिंता है।उन्हें यही लगता है कि सारे लोग हमेशा बीमार रहें और मेरे "चैम्बर" के सामने खड़े रहें,लोग ऊँची फीस देकर उनकी तिजोरियाँ भरते रहें।आपकी ज़िन्दगी भर की कमाई स्वाहा,घर गिरवी,क़र्ज़ के बोझ तले दबकर भी उनकी जेबें भरने के बाद भी एक ईन्सान की ज़िन्दगी का इतना भयावह और क्रूर अंत,कि ईन्सानियत भी शर्मसार है। कब समझेंगे लोग?जिसे हम इस धरती का भग्वान् मान रहे,वो मेरी ज़िन्दगी को नरक बनाने पर तुला है।


हमारे शरीर का "मेकानिज़म" और "नेचर" को समझ लिया जाए तो रोग व बीमारी का "कारण" जानकर ईलाज करना बेहद आसान व सरल है।लेकिन यही नहीं पता तो ईलाज क्या और कैसे मुमकिन है?ऐलोपैथिक कंपनियाँ, डॉक्टर्स पैथोलोजिकल लैब्स की लॉबी इतनी मज़बूत है कि "उसके" हर "फैसले" को दुनिया भर के लोग मानने को विवश हैं। मेरी साधारण सी बात भी लोगों की समझ में नहीं आ रही कि "ईन्सुलीन व ग्लूकोज़" के बीच "तालमेल" बिगड़ने से ही कोई भी रोग उत्पन्न हो जाती है।और जब ये पता हो गया तो करने को सिर्फ एक ही काम रह गया ना- "ईन्सुलीन व ग्लूकोज़"के बीच "तालमेल" दुबारा से बहाल कर दिया जाए। एक ईमानदार और समाज सेवक "हकीम" के नाते मैं बस इतना ही कर रहा हूँ।फिर क्या-बीमारी चाहे कैसी भी हो,बिल्कुल ठीक होना भी यही चाहिए कि बीमार हुए,दवा खायें और कुछ दिनों या महीनों में बिल्कुल सेहतमंद हो जाएँ। * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी।मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं,या मेरे Whatsapp no 9334518872 पर जाएं।उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे और देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियुटीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |


* मेरे पास दवा केवल एक ही है,जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| .......................... HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Specialist in LIFESTYLE DISEASES

Last updated date 30/09/2020

लाइफस्टाइल डीज़ीज़ और ईलाज

अस्सलाम अलैकुम _ _ _ _ ! (नोट:- मेरे इस पोस्ट को ध्यान से पढ़कर ठंढे दिल से शांतिपूर्वक मनन कर के अपनी स्वास्थ्य के ऊपर विचार कर सकते है| ये आपको सोचना है कि क्या आप भी निरोग जीवन जी सकते है?) "PLEASE SHARE THIS POST to reach more and more people's, friends, relatives and others who is suffering from DIABETESE, HIGH BP, HEART PROBLEM, KIDNEY FAILURE, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAIN, MENTAL, PARKINSONS, ALZHIMER, DISEASES, PILES, CHOLESTEROL, THYROID, OBESITY, PSORIASIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS, SINUSITIS" etc. which is 100% "REVERSE" forever within few month's from only one Medicine ie. "HEALTH IN BOX ™" a unique UNANI MEDICINE made by myself. हमारे यहाँ ताज़ा यूनानी जड़ी-बूटियों से तैयार दवाओं से पुराने जटिल, असाध्य और हर उस बीमारी का मुकम्मल ईलाज किया जाता है जिसके बारे में आपको कह दिया गया कि *लाईलाज* है, या *जीवन-भर* दवा का सेवन करना ही पड़ेगा, जैसे :-


1- ब्लड शूगर या डायबिटीज 2- किडनी फेल्योर, किडनी पथरी, डायलिसिस, पेशाब की कमी या ज़्यादती व जलन, प्रोस्टेट ग्लैण्ड का बढ़ना या घटना| 3- गाल ब्लैडर की पथरी 4- दिल से सम्बन्धित रोग, उच्च रक्त चाप, हाथ-पैर में कपकपी, झिनझिनी, जलन| 5- लीवर की खराबी, गैस्ट्रिक, बवासीर| 6- चर्म रोग जैसे सोरियासिस, दाद, एक्जीमा, सफेद दाग| 7- स्त्री-गुप्त जैसे रोग जैसे बाण्झपन, मासिकधर्म गड़बडी, लिकोरिया, फाईब्राइड, ओवैरियन सिस्ट(PCOD / PCOS)| 8- पुरुष-गुप्त रोग जैसे मर्दाना कमजोरी, धात आना, वीर्य का पतलापन| 9- हड्डी व जोड़ रोग, गठिया-वात् और 10- मानसिक रोग|


DEAR DIABETESE (ब्लड शूगर) PATIENTS ध्यान से पढ़ लँ और जरुर सम्पर्क करे :- आप सभी ब्लड शूगर मरीजो केलिए अच्छी खबर है| अगर आप डायबिटीज़ रोग से ग्रस्त है, त्रस्त है, जिन्दगी से आजिज़ आ चुके है तो अब आपको चिन्ता की कोई बात नहीं| क्योंकि, अगर आपको अंग्रेज़ी दवा से फ़ायदा न मिल रहा है तो कोई बात नहीं, और सच मानिए ऐलोपैथ दवा से उलटा असर होता ही है, यानि मर्ज़ बढ़ता गया जूं-जूं दवा की| ब्लड शूगर चाहे जितना भी पुराना हो, आपको केवल मेरा *डाइट प्लान* और एक ही *यूनानी दवा* (HEALTH IN BOX) का सेवन करना पड़ेगा| शत प्रतिशत् परिणाम अवश्य मिलेगा, पहले ही सप्ताह में परिणाम मिलेगा| 1_3 वर्ष के डायबिटीक मरिज को तो तीसरे-चौथे दिन ही परिणाम मिलेगा| वो अंग्रेज़ी दवा छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे| 10 वर्ष के भुग्तभोगी तीसरे सप्ताह में अपने परिणाम अवश्य देख पायेंगे| मेरी खुद की बनाई दवा और कुछ *डाइट प्लान* का अनुसरण करके, सख्ती से अमल करके आप न केवल डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारी से हमेशा केलिए छुटकारा पाईएगा, बल्कि कई दूसरी जटिल बीमारियों जैसे - हड्डो व जोड़ रोग, किडनी फेल्योर, डायलिसीस, दिल की बीमारी, कोलेस्ट्रौल, थाईराइड और इन जैसी बीमारियो से हमेशा हमेशा केलिए छुटकारा पा सकते है| एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात नोट कर लिजीए :- *आज़दी से पहले हमलोग अंग्रेज़ी हुकूमत के गुलाम थे, और आज़ाद हुए तो *अंग्रेज़ी दवा* के गुलाम बन कर रह गये|* इसलिए आपसे अनुरोध है कि ऊपर लिखी बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते है तो अवश्य सम्पर्क करें और *दवा रहित जीवन* की ख़ुशहाल पारी की शुरुआत करें| अब से अंग्रेजी दवा का इस्तेमाल मत करना बल्की हमेशा यूनानी दवा का ही इस्तेमाल किया करें| क्योंकि इसी यूनानी दवा में हर बीमारी का मुकम्मल ईलाज मौजूद है| यूनानी दवा का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है| अगर फ़ायदा न हो तो नुक़सान भी बिल्कल नहीं होगा| कैसी भी बीमारी क्यों न हो, बड़ी से बड़ी बीमारी, जटिल व पेचीदा, पुरानी से पुरानी बिमारी। यानी हर किस्म की बीमारी केलिए ये यूनानी दवा बेहद कारगर होते है| इसलिये याद रखिए, कि किसी भी ऐसी बीमारी में आप अगर मुब्तला हो गये हों जिसको ऐलोपैथ वाले उसके लाईलाज या कभी भी ठीक न होने का ठप्पा लगा दिया हो तो आप से नम्र निवेदन है कि बिल्कल निराश न हों| आप उन ऐलोपैथ वालों की सारी बातों को एक बुरे सपने की तरह भूल जाईए| चुपचाप एक समझदार ईन्सान की तरह, एक बेहतरीन और क़ाबिल, डिग्रीधारी हकीम( जिसकी डिग्री देखिये कि *बी यू एम एस* ही हो|) से मिलिए। एकबार जाकर उससे मिलिये, और अपनी व्यथा, दु:ख और सारी तकलीफ़ उसे बताईए| वहाँ वो आपका बेहतर ईलाज करेंगे| एक बात जो आपको अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि आप उस हकीम के पास तब पहुचे हैं जब आपकी बीमारी या तो काफी पुरानी हो चुकी है या जटिल सूरत ईख़्तियार कर चुकी है, तो इस परिस्थिति में हकीम साहब का उपचार काफी लम्बा चलने वाला है| यूनानी पैथी में जब कोई हकीम आपका ईलाज करता है तो वो सारी दवाये खुद से बनाकर देगा| अगर ऐसा नहीं हो तो आप अवश्य ही किसी *झोलाछाप हकीम* के पास चले गये हो| आजकल लोग ब्राण्ड ढूंढते है| यही यूनानी दवा निर्माताओ की असीम कृपा से हमारे आसपास कुकुरमुत्ते और कीड़े मकोड़ों जैसे *झोलाछाप हकीम* हकीम पैदा हो गये| जिसके कारण इस पैथी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है|क्योंकि ये जाहिल झोलाछाप जो ख़ुद को विशेष माहिर हकीम मानते हुए लोगों को अपनी लच्छेदार और ख़ुशामदाना बातों से अपने जाल में फांसते और रोग ठीक करने की गारण्टी देकर मनमाना मोटी रकम ये कहकर लेते है कि वो खुद से सभी दवा बनाकर देंगे| और फिर किसी यूनानी कम्पनी की दवा लाकर पैकिंग बदलकर आपको थमा देते है| आप किसी भी हकीम के पास चले जाएँ वो आपको जवारिश या माजून या इतरीफ़ल ही बना कर देगा ।बेचारा मरीज़ मरता क्या न करे उसको बड़े ही अक़ीदे और भारोसे के साथ खाना शुरू करता है। 1 2 3 4 माह खाने के बावजुद बीमारी ठीक नहीं हो पाती, जानते हैं क्यों ? मैं बाताता हूँ आपको। किसी भी जवारिश, माजून या इतरीफ़ल बनाने के लिए कई तरह की दवाओं को मिलाकर पहले उसका powder बानाया जाता है , फिर उसमें 3 गुना क़वाम (जो गुड़ , चीनी या मिश्री का होता है ) मिलाया जाता है ।इस तरह अगर 100 ग्राम दवा का माजून , जवारिश या इतरीफ़ल 400 ग्राम बनकर तैयार होता है ।यहीं पर ये हकीम या UNANI दवा कंपनी बेवकूफ बनाने का खेल खेलते हैं। अब देखिये, कैसे बेवकूफ बनते हैं आपलोग ! दवा जो आपको चाहिए वो तो 100 ग्राम चुरण ही है, ज़िसका खुराक मेरे हिसाब से 5-5 ग्राम ( यानि 1 दिन में 10 ग्राम ) 10 दिन का ही है। लेकिन इसी 10 दिन की दवा को माजून जवारिश या इतरीफ़ल बनाकार 40 दिनो का किया गया। मतलब ये कि 10 दिन की दवा आप 40 दिन में खा रहे हैं ।ऐसे में आपको असल ख़ुराक का चौथाई हिस्सा दिया जा रहा है ।इस तरह तो बीमारी कभी भी ठीक नहीं होनेवाली है ।जैसे कि आपकी खुराक 10 रोटी की हो और 2 रोटी ही खाने को दिया जाए । हकीम जालीनुस ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में सिर्फ एक जवारिश "जवारिश जालीनुस" बना पाया । लेकिन आज के हमारे क़ाबिल हकीम हज़रात सैंकड़ों माजून जवारिश वगैरह बना कर रख छोड़े हैं और UNANI कंपनी वाले उन नुसखों को लेकर अजब ग़ज़ब दावे वाली लेवल लगा कर बाजार में बेच रहे हैं। अजीब बात ये है कि दवाओं का मिज़ाज का कोई लिहाज किये बिना ये दवायें हर तरह के मर्ज में हर किसी को इस्तेमाल कराये जाते हैं। जबकी इंसानी मिज़ाज 4 तरह के होते हैं, और दवाओं के मिज़ाज भी 4 ही तरह के होते हैं ।अब अगर गर्म मिज़ाज आदमी को गर्म तासीर वाली दवा ( जो किसी ब्रांड का भी है ) दी जाए तो क्या फ़ायेदा करेगा ? आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कोई भी हकीम ऐसा नहीं मिलता जो ख़ुद से दवा बनाते हो ।यही वजह है की आजकल झोलाछाप हाकीमों की चांदी हो गयी है। और बेचारे भोले-भाले मरीज़ ठगी का शिकार हो रहे हैं ।ऊपर से सभी दवा कंपनी वाले अपने product की पुस्तिका भी देते हैं जिसमे लच्छेदार भाषा में अजब ग़ज़ब बातें दवाओं के बारे में बाताये जाते हैं ।भ्रामक और भड़कीले भाषा का ऐसा प्रयोग होता है कि पूछिये मत।उसे पढ़कर झोलाछाप खुद को माहिर हकीम समझते हैं।और अपनी इन्हीं आधी-अधुरी जानकारी के बल बूते भोली-भाली जनता को लूटने का धन्धा शुरू करके अपनी जेब गर्म करके मालामाल बनते हैं। और इस UNANI चिकित्सा पद्धति को बादनाम करने पर आमादा रहते है| आपका शुमचिन्तक HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS HONS(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 22/09/2020

एलोपैथी ड्रग माफिया

ऐसी कई ALLOPATHIC MEDICINES हैं जिससे हमारे शरीर में ग्लूकोज़ बढ़ता है। ये हमारे शरीर में INSULIN की कमी होने से पैदा होती है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुछ खास ALLOPTHIC MEDICINES के असर से DIABETES होती है। इन दवाइयों में मुख्यत: ANTI-DEPRESSANTS, SLEEPING PILLS, COUGH SYRUP तथा बच्चों को ADHD (अतिसक्रियता) के लिए दी जाने वाली दवाईयां शामिल हैं। इन ALLOPATHIC MEDICINE'S के अत्यधिक सेवन से शरीर में INSULIN की कमी हो जाती है और व्यक्ति को DIABETES यानी HYPERGLYCEMIA हो जाता है।जिसका इलाज करवाने के नाम पर जीवन भर ऐलोपैथिक दवाओं का सेवन करते रहने की सलाह दी जाती है। और अंजाम तो आप जानते ही हैं:- आंखों की रोशनी जाएगी, KIDNEY फेल होगा या LOWER LIMB काटने की नौबत आएगी। यानी ऐलोपैथिक डॉक्टर्स के लिए उनका हर मरीज़ एक "BEARER CHEQUE" है।कमाई ही कमाई........!    बच्चों को जन्म से ही अनेकों प्रकार के VACCINES लगाई जाती हैं। कुछ VACCINE लोगों को किसी एक बीमारी के इलाज के लिए लगाई जाती हैं,परन्तु कुछ VACCINE ऐसी हैं जो या तो बेअसर हो चुकी है या फिर VIRUSES को फैलने में मदद करती हैं। जैसे कि FLUE VIRUS की VACCINE इसका उदाहरण है। बच्चों को दिए जाने वाली वैक्सीन DTAP केवल B. PERTUSSIS से लड़ने के लिए बनाई गई है जो कि बेहद ही मामूली बीमारी है। परन्तु DTAP की ये वैक्सीन फेफड़ों के इंफेक्शन को आमंत्रित करती है जो दीर्घकाल में व्यक्ति की IMMUNITY POWER को ही कमजोर कर देती हैं।    हर गांठ या ट्यूमर (TUMOR) हमेशा CANCER ही नहीं होता।यूं तो CANCER स्त्री-पुरूष दोनों में किसी को भी हो सकता है लेकिन BREAST CANCER की पहचान करने में अधिकांश डॉक्टर गलती कर जाते हैं। सामान्यत: BREAST पर हुई किसी भी TUMOR को CANCER की पहचान मान कर उसका उपचार किया जाता है जो कि बहुत से मामलों में छोटे-मोटे फोड़े फुंसी ही निकलते हैं। उदाहरण के तौर पर हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जॉली ने मात्र इस संदेह पर अपने ब्रेस्ट ऑपरेशन करके हटवा दिए थे कि उनके शरीर में कैन्सर पैदा करने वाला जीन पाया गया था।    ALLOPATHIC MEDICINE'S कैंसर पैदा करती हैं। HIGH BP की दवाईयों से CANCER होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि BP घटाने की दवाईयां शरीर में CALCIUM CHANNEL BLOCKER की संख्या बढ़ा देता है जिससे शरीर में CELLS के मरने की दर बढ़ जाती है और फलस्वरूप CELLS बेकार होकर गांठ बनाने में लग जाती हैं और यही गांठ या TUMOR आगे चलकर CANCER का रूप ले लेती हैं, हालांकि यह गांठें तो सिर्फ गांठ ही होती हैं।जब इसकी BIOPSY की जाती है तब ये CANCER बन ही जाती हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि TUMOR को CANCER बनाने में डॉक्टरों का अहम रोल होता है।     HEART ATTACK तथा BLOOD CLOT बनने से रोकने के लिए दी जाने वाली दवाई ASPIRIN से शरीर में INTERNAL BLEEDING का ख़तरा लगभग 100 गुणा बढ़ जाता है। इससे शरीर के INTERNAL ORGANS कमजोर होकर उनमें BLEEDING शुरू हो जाती है। एक सर्वे में पाया गया कि ASPIRIN लेने वाले PATIENTS में से लगभग 10,000 लोगों को INTERNAL BLEEDING का सामना करना पड़ा।     X-RAY से CANCER होता है।


आजकल हर छोटी-छोटी बात पर डॉक्टर X-RAY करवाने लग गए हैं। क्या आप जानते हैं कि X-RAY करवाने के दौरान निकलने वाली घातक RADIOACTIVE  किरणें CANCER पैदा करती हैं। एक मामूली X-RAY करवाने में शरीर को हुई हानि की भरपाई करने में कम से कम एक वर्ष का समय लगता है। ऐसे में यदि किसी को एक से अधिक बार X-RAY करवाना पड़े तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।     सीने में जलन की दवाई INTESTINAL ULCER और CANCER साथ लाती है। अक्सर खान-पान या हवा-पानी में बदलाव होने से व्यक्ति को पेट की बीमारियां हो जाती है। इनमें से एक सीने में जलन का होना भी है जिसके लिए डॉक्टर्स जो दवाईयां देते हैं  उससे आंतों में ULCER होने की संभावना बढ़ जाती है।साथ ही साथ हड्डियों का क्षरण होना, शरीर में VITAMIN B12 को ABSORB करने की क्षमता कम हो जाती है।सबसे दु:खद बात तब होती है जब इनमें से कुछ दवाईयां बीमारी को दूर तो नहीं करती परन्तु SIDE EFFECTS अवश्य लाती हैं।     MEDICINES और LABORATORY TEST से डॉक्टर्स को मोटा कमीशन मिलता है।यह अब छिपी बात नहीं रही कि डॉक्टरों की कमाई का एक मोटा हिस्सा दवाईयों के कमीशन से आता है। यहीं नहीं,डॉक्टर किसी खास LABORATORY में ही TEST के लिए भेजते हैं जहां से  उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है। कमीशनखोरी की इस आदत के चलते डॉक्टर अक्सर जरूरत से ज्यादा TEST  करवाते हैं और MEDICINES भी दे देते हैं।   INFLUENZA सही करने के लिए कोई दवाई नहीं है।ये VIRAL DISEASES में आता है। इतना तरक़्क़ी करने के बावजूद MEDICAL SCIENCE इस बात का कोई कारण नहीं ढूंढ पाया है कि ऐसा क्यों होता है और ना ही इसका कोई कारगर इलाज ढूंढ पाया है। डॉक्टर जुकाम होने पर एंटीबॉयोटिक्स लेने की सलाह देते हैं।परन्तु कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि जुकाम के लिए दवा लेने से 7 दिनों में और दवा न लेने से एक सप्ताह में अपने आप ही सही हो जाता है। जुकाम पर आपके दवाई लेने का कोई असर नहीं होता है, हां आपके शरीर को ANTIBIOTICS के SIDE EFFECTS ज़रूर झेलने पड़ते हैं।    ANTIBIOTICS से LIVER को नुकसान होता है। MEDICAL SCIENCE की सबसे अद्भुत खोज के रूप में सराही गई दवाएं ANTIBIOTICS हैं। एंटीबॉयोटिक्स का भयावह रूप में व्यक्ति के LIVER को DAMAGE करती है। यदि लंबे समय तक ANTIBIOTICS का प्रयोग किया जाए तो व्यक्ति की KIDNEY तथा LIVER बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और उनका ऑपरेशन करना पड़ सकता है।          डाक्टर्स खुद यूनानी मेडिसींस दवाओं से अपना और अपने परिवार का इलाज करवाते हैं।क्योंकि उन्हें पता है कि यूनानी दवाओं के साइड इफ़ेक्ट नही हैं और इससे रोग भी जड़ से समाप्त होते हैं।


BYPASS SURGERY जो कि HEART ATTACK(दिल का दौरा) के रोगियों के लिए बताई जाती हैं, वो डाक्टर खुद अपने लिए कभी नही सोचते क्योंकि एक तो यह स्थाई इलाज नही है।दूसरा इससे दौरा फिर से पड़ने के मौके कम नहीं होते।खुद पर ऐसी समस्या आने पर डाक्टर घिया (लौकी) का रस या अर्जुन की छाल का काढ़ा बना कर पीते हैं या रोज प्राणायाम और योग करते हैं। नोट:-    इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |          * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|    * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है।    * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER, HIV AIDS & TUMOUR के लिए) है।    * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 21/09/2020

Liver Treatment

It is a slowly and gradually progressing disease in which healthy liver tissue is replaced with scar tissue, hence preventing the liver from proper functioning. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Liver Disorders Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It.


Our unani remedies have been successfully used in treating Liver Disorders Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation.


We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime.

Last updated date 26/08/2020


चूना

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू ! *चूना 70 प्रकार की बीमारियों को ठीक कर देता है* गेहुँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी *पीलिया ठीक हो जाता है।* चूना *नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है -* अगर किसी के शुक्राणु नही बनता, उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़-साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे। जिन माताओं के शरीर में अन्डे नहीं बनते उन्हें भी इस चूने का सेवन करना चाहिए। # *डायबिटीज़ या* #शुगर :- रोज़ सुबह ख़ाली पेट एक गिलास पानी में एक छोटे चने के बराबर चुना मिलाकर पीने से डायबिटीज़ या शुगर जड़ से ख़त्म हो जाती हैं। ( समय समय पर जाँच करवाते रहें, वरना शुगर का लेवल माइनस भी हो सकता है।) विद्यार्थीयों के लिए चूना बहुत अच्छा है जो *#लम्बाई बढाता है* - गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला कर खाना चाहिए। दही नही है तो दाल में मिला कर या पानी में मिला कर लिया जा सकता है - इससे लम्बाई बढ़ने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छी होती है । *जिन बच्चों की बुद्धि कम है, ऐसे मंदबुद्धि बच्चों के लिए सबसे अच्छी दवा है* चूना। जो बच्चे बुद्धि से कम हैं, दिमाग़ देर में काम करता है, देर में सोचते हैं, हर चीज उनकी स्लो है, उन सभी बच्चों को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे। स्त्रियों को अपने *#मासिक_धर्म* के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना। मेनोपौज़ की सभी समस्याओं के लिए गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन दाल में, लस्सी में, या पानी में घोल के पीना चाहिए। ओस्टीओपोरोसिस होने की संभावना भी इसके बाद नहीं रहती। जब कोई स्त्री # *गर्भावस्था* में है तो चूना रोज खाना चाहिए, क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है। और चूना *केल्शियम* का सबसे बड़ा भंडार है। गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर। ये मिलाकर रोज पिलाइए, नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे - पहला, माँ को बच्चे के जन्म के समय कोई तकलीफ़ नहीं होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगी। दूसरा, बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट-पुष्ट और तंदुरुस्त होगा। तीसरा, वो बच्चा ज़िन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया। और चौथा, सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत *Intelligent* और *Brilliant* होता है उसका *IQ* बहुत अच्छा होता है। चूना #घुटने_क_दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है। एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis, वो चुने से ठीक होता है। कई बार हमारे रीढ़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमें दूरी बढ़ जाती है, Gap आ जाता है जिसे ये चूना ही ठीक करता है। रीढ़ की हड्डी की सब बीमारियाँ चूने से ठीक होती है। अगर हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है। इसके लिए चूने का सेवन सुबह खाली पेट करे। अगर मुंह में #ठंडा_गरम पानी लगता है तो चूना खाने से बिलकुल ठीक हो जाता है। मुंह में अगर छाले हो गए हैं तो चूने का पानी पीने से तुरन्त ठीक हो जाता है। शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए। एनीमिया है, या खून की कमी है तो उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना। गन्ने के रस में , या संतरे के रस में , नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में डाल कर चूना लें, अनार के रस में चूना पीने से खून बहुत बढता है, बहुत जल्दी खून बनता है। एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट लें। *भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार हैं, और वे महर्षि वाग्भट के अनुयायी हैं।* लेकिन, पान बिना तम्बाखू , सुपारी और कत्थे के लें। तम्बाखू ज़हर है और चूना अमृत है, कत्था कैन्सर करता है। पान में सौंठ , इलायची , लौंग , केसर , सौंफ , गुलकंद , चूना , कसा हुआ नारियल आदि डाल कर खाएं। अगर घुटने में घिसाव आ गया हो और डॉक्टर कहे कि घुटना बदल दो तो भी जरुरत नहीं, बल्कि चूना खाते रहिये। और हरसिंगार ( पारिजातक या प्राजक्ता ) के पत्ते का काढ़ा पीजिये , घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे। *चूना खाइए पर चूना लगाइए मत।* *चूना लगाने के लिए नहीं है, खाने के लिए है।* -: *आवश्यक सूचना* :- आपके सामने दो आप्शन्स हैं- 1: *ऐलोपैथिक दवा खाते हुए ज़िंदा रहने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना।* 2: _HEALTH IN BOX_ युनिक यूनानी दवा का प्रयोग कर कुछ महीनों में अपनी लाइफस्टाइल बीमारियों जैसे:- *मोटापा, डायबिटीज़, हाई बीपी, हृदय रोग, कैंसर, किडनी फेल्योर,* *डायलिसिस, माइग्रेन, आर्थराइटिस, लीवर व अमाशय रोग* इत्यादि से हमेशा के लिए छुटकारा पाना। फ़ैसला आपको करना है और आज ही करना है। _HEALTH IN BOX_ के लिए संपर्क करें:- *हकीम मो अबू रिज़वान* बीयूएमएस आनर्स(बीयू) *यूनानी चिकित्सक* _स्पेशलिस्ट इन लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़_ यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर जमशेदपुर झारखंड मोबाइल 9334518872 8651274288 यूट्यूब *HAKEEM MD ABU RIZWAN* वेबसाइट *umrc.co.In*



Last updated date 11/03/2022

चूना

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू ! *चूना 70 प्रकार की बीमारियों को ठीक कर देता है* गेहुँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी *पीलिया ठीक हो जाता है।* चूना *नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है -* अगर किसी के शुक्राणु नही बनता, उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़-साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे। जिन माताओं के शरीर में अन्डे नहीं बनते उन्हें भी इस चूने का सेवन करना चाहिए। # *डायबिटीज़ या* #शुगर :- रोज़ सुबह ख़ाली पेट एक गिलास पानी में एक छोटे चने के बराबर चुना मिलाकर पीने से डायबिटीज़ या शुगर जड़ से ख़त्म हो जाती हैं। ( समय समय पर जाँच करवाते रहें, वरना शुगर का लेवल माइनस भी हो सकता है।) विद्यार्थीयों के लिए चूना बहुत अच्छा है जो *#लम्बाई बढाता है* - गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला कर खाना चाहिए। दही नही है तो दाल में मिला कर या पानी में मिला कर लिया जा सकता है - इससे लम्बाई बढ़ने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छी होती है । *जिन बच्चों की बुद्धि कम है, ऐसे मंदबुद्धि बच्चों के लिए सबसे अच्छी दवा है* चूना। जो बच्चे बुद्धि से कम हैं, दिमाग़ देर में काम करता है, देर में सोचते हैं, हर चीज उनकी स्लो है, उन सभी बच्चों को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे। स्त्रियों को अपने *#मासिक_धर्म* के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना। मेनोपौज़ की सभी समस्याओं के लिए गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन दाल में, लस्सी में, या पानी में घोल के पीना चाहिए। ओस्टीओपोरोसिस होने की संभावना भी इसके बाद नहीं रहती। जब कोई स्त्री # *गर्भावस्था* में है तो चूना रोज खाना चाहिए, क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है। और चूना *केल्शियम* का सबसे बड़ा भंडार है। गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर। ये मिलाकर रोज पिलाइए, नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे - पहला, माँ को बच्चे के जन्म के समय कोई तकलीफ़ नहीं होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगी। दूसरा, बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट-पुष्ट और तंदुरुस्त होगा। तीसरा, वो बच्चा ज़िन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया। और चौथा, सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत *Intelligent* और *Brilliant* होता है उसका *IQ* बहुत अच्छा होता है। चूना #घुटने_क_दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है। एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis, वो चुने से ठीक होता है। कई बार हमारे रीढ़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमें दूरी बढ़ जाती है, Gap आ जाता है जिसे ये चूना ही ठीक करता है। रीढ़ की हड्डी की सब बीमारियाँ चूने से ठीक होती है। अगर हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है। इसके लिए चूने का सेवन सुबह खाली पेट करे। अगर मुंह में #ठंडा_गरम पानी लगता है तो चूना खाने से बिलकुल ठीक हो जाता है। मुंह में अगर छाले हो गए हैं तो चूने का पानी पीने से तुरन्त ठीक हो जाता है। शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए। एनीमिया है, या खून की कमी है तो उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना। गन्ने के रस में , या संतरे के रस में , नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में डाल कर चूना लें, अनार के रस में चूना पीने से खून बहुत बढता है, बहुत जल्दी खून बनता है। एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट लें। *भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार हैं, और वे महर्षि वाग्भट के अनुयायी हैं।* लेकिन, पान बिना तम्बाखू , सुपारी और कत्थे के लें। तम्बाखू ज़हर है और चूना अमृत है, कत्था कैन्सर करता है। पान में सौंठ , इलायची , लौंग , केसर , सौंफ , गुलकंद , चूना , कसा हुआ नारियल आदि डाल कर खाएं। अगर घुटने में घिसाव आ गया हो और डॉक्टर कहे कि घुटना बदल दो तो भी जरुरत नहीं, बल्कि चूना खाते रहिये। और हरसिंगार ( पारिजातक या प्राजक्ता ) के पत्ते का काढ़ा पीजिये , घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे। *चूना खाइए पर चूना लगाइए मत।* *चूना लगाने के लिए नहीं है, खाने के लिए है।* -: *आवश्यक सूचना* :- आपके सामने दो आप्शन्स हैं- 1: *ऐलोपैथिक दवा खाते हुए ज़िंदा रहने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना।* 2: _HEALTH IN BOX_ युनिक यूनानी दवा का प्रयोग कर कुछ महीनों में अपनी लाइफस्टाइल बीमारियों जैसे:- *मोटापा, डायबिटीज़, हाई बीपी, हृदय रोग, कैंसर, किडनी फेल्योर,* *डायलिसिस, माइग्रेन, आर्थराइटिस, लीवर व अमाशय रोग* इत्यादि से हमेशा के लिए छुटकारा पाना। फ़ैसला आपको करना है और आज ही करना है। _HEALTH IN BOX_ के लिए संपर्क करें:- *हकीम मो अबू रिज़वान* बीयूएमएस आनर्स(बीयू) *यूनानी चिकित्सक* _स्पेशलिस्ट इन लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़_ यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर जमशेदपुर झारखंड मोबाइल 9334518872 8651274288 यूट्यूब *HAKEEM MD ABU RIZWAN* वेबसाइट *umrc.co.In*



Last updated date 11/03/2022

معصوم بچوں پر نشانہ

بڑی دوا ساز کمپنیوں کا قابلِ مذمت عمل"  "مرض کا ایجاد"‌ صرف نوجوانوں پر ھی اثر  نہیں ڈالتا ہے بلکہ یہ آپ کے بچوں پر بھی اثرانداز ہوتا ھے۔     ایک کتاب:- Born With A Junk Food Deficiency Flax, Quacks & Hacks Pump The Public Health  - بڑی بڑی دواساز کمپنیوں کی قلعی کھولتے ہوئے انکے راز بتاتی ھیکہ کس طرح انکی سازش کے تحت کی سب سے کمزور کڑی،انکے "معصوم بچے" جال میں پھنسایے جاتے ھیں۔Ultranet کے مطابق،        "Child psychologist"  جو کبھی معمولی سی مہارت مانی جاتی تھی، آج فارما انڈسٹریز کے لئے ایک اہم اور منافع بخش کاروبار اور بازار بن چکا ھے۔ شیزوفرینیا (schizophrenia) جیسے مرض سے لیکر چڑچڑے پن اور تنک مزاجی تک ،دوا کمپنیوں کے پاس ہر ایک بچے کیلئے کوئی نہ کوئی "گولی یا دوایی" ھے۔ یہ سب ایک اچھی مارکیٹنگ کا ھی نتیجہ ھیکہ اس کا ایک چھوٹا سا بچہ تک "منی بم" میں تبدیل ہوگیا ہے، لیکن یہ ھوا کیسے؟ میڈیکل ریپرزین ٹیٹو Mr Zen Olsen کہتے ہیں کہ یہ بہت ہی آسان ھے-: "بچوں کو اسکولوں میں چھوٹی موٹی تکلیفوں کیلیے میڈیکل روم میں دواییں لینے کیلئے دباؤ ڈالا جاتا ھے۔گھروں میں دواییں لینے کے لئے ان پر والدین اور گارجین کابھی دباؤ ہوتا ھے۔وھیں اسپتال جانے پر ڈاکٹر بھی ان پر دواییں لینے کو لیکر ذھنی دباؤ ڈالتے ہیں۔اسطرح سے بچے ایک "مہذب مریض" بن جاتے ہیں۔یعنی وہ دوا کمپنیوں کے Long Life Customer بن جاتے ہیں۔ بمطابق Zen :- "جو بچے شروع میں ADHD یا BIPOLAR یا  کسی دوسرے ذھنی امراض کی دواییں لیتے ہیں ،اور بعد میں ٹھیک ھو جاتے ھیں۔وہ بہت ہی سلیقے سے اپنی زندگی گزارتے ہیں،لیکن ان بچوں میں بھی تا حیات ان ذھنی امراض کو لیکر ایک زبردست خوف و ھراس ستاتا رھتا ھے،جو انکے ذھنی، سماجی اور جذباتی ترقی پر بھی حاوی ہو جاتا ھے۔ایسا اسلیے ہوتا ہے کیونکہ بچپن میں لی گئی ادویات کا "سایڈ ایفکٹ" انکی زندگی کے ہر پہلو پر انداز ہوتا ہے۔"    ایک تازہ ترین تحقیق کے مطابق : - "بچوں کو دی جانے والی "Allergy" اور "Asthma" کی ادویات سے انکے ذھنی طور پر کمزور ھو جانے کا خطرہ بڑھ جاتا ہے۔جن بچوں کے ذھنی مریض ھونے کا پتہ چلتا ہے، وہ نہ صرف ھمیشہ کے لئے مریض، بلکہ مہنگے مریض بھی ھو جاتے ھیں۔انکی دواؤں کا ماھانہ خرچ دس ہزار یا اس سے بھی زیادہ ھو سکتا ھے۔فارما انڈسٹریز کو بیشک گورنمنٹ اور دوسرے لوگوں کی مدد مل رھی ھے۔گورنمنٹ کے ذریعہ چلائی گئی Campaigning جیسے : Polio Campaign, نوزائیدہ بچوں کی Vaccinations، الگ الگ ضروری Clinical Test وغیرہ ان فارما کمپنیوں کا کام نہایت ہی آسان کر دیتے ہیں۔ یہ ایک شرمناک واقعہ ہے کہ زیادہ تر ماھر نفسیات صلاح لکھنے میں اتنے مشغول رہتے ہیں کہ انہیں اپنی جانکاری اپڈیٹ کرنے کی بھی ضرورت محسوس نہیں ہوتی۔حال ہی میں "BMC Psychiatry" میں شایع ھونے والی ایک ریسرچ میں پایا گیا کہ بیشتر مہلک ذھنی امراض کے شکار نوجوان لڑکیوں و لڑکوں میں Vitamin D کا فقدان ہے ۔ یہ کوئی حیرت انگیز بات نہیں ھے۔ کیونکہ Vitamin D ذہنی نشوو نما کیلیے از حد ضروری ہے۔اس ریسرچ کے مطابق :- " Vitamin D کی کمی نوجوان لڑکے و لڑکیوں کے ذہنی مریض ہونے کے امکانات کو چار گنا بڑھا دیتا ھے۔"اس ریسرچ کے مطابق :- Mental Health Clinic میں مقیم بچوں میں Vitamin D کی مقدار نہایت ہی خطرناک حد تک کم پایی گیی۔نوجوان لڑکیوں میں اسکی مقدار محض 2ng/ml اور لڑکوں میں  10ng/ml پائی گئی۔اسکا Normal Range 30-74ng/ml ھے۔کوئی بھی بچہ جو Abnormal Mental & Behaviour symptoms دکھارھا ھے، اسے اپنا Vitamin-D Level چیک کروانا چاھیے۔ یہ ایک اسٹینڈرڈ ٹسٹ ہونا چاہئے لیکن ڈاکٹروں اور ماہرین نفسیات کے ذریعہ اسے نظرانداز کیا جارہا ھے۔ کیی تحقیقاتی مطالعے نے یہ ثابت کیا ھے کہ وٹامن   D کی کمی کو دور کرنے کے بعد کیی ذھنی امراض میں سدھار آگیا۔        نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔



Last updated date 30/09/2020

ڈاکٹرز MASS MURDERER

(اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد یقینی طور پر       ”MATHEMATICS OF DISEASES“  سمجھ میں آ جاٸیگا۔اور آپ یہ جان کر حیران ھوں گے کہ کیسے آپکو ”دو دونی آٹھ“ کے اس مکڑ جال میں ھمیشہ کیلٸے پھنسا دیا جاتا ھے۔)     میں آپ کو 1975 کے اس زمانےمیں لےجاتا ھوں جہاں دنیا کی ٹاپ 10 کمپنیوں میں سے دوسرے نمبر کی کمپنی MERCK کی بات کریں گے۔اس کمپنی کے CEO کا نام تھا ”HENRY GODSON“ ۔جس کا کہنا تھا: ”ان کے دل میں ایک ہی تکلیف ھے کہ دنیا میں صرف ”مریض“ ھی ان کی کمپنی کی تیار کردہ پروڈکٹ کا استعمال کر پاتے ھیں“۔”وہ اس دن کا خواب دیکھ رھے تھےجب وہ دنیا کے تمام صحت مند طبقے کو بھی اپنی پروڈکٹس بیچ سکیں گے“۔ اسکا مطلب یہ ھوا کہ وہ چاھتےتھے: ”ساری دنیا بیمار پڑ جاٸے یا بیمار نہ بھی ہڑے، پھر بھی ان کے پروڈکٹس ضرور بکیں“۔جیسے کہ: ”چیونگم“۔ دنیا میں ھر انسان اسے چبانا پسند کرتا ھے، چاھے وہ چھوٹا ھو یا بڑا بیمار ھویا صحت مند۔اسی طرح دنیا کی سبھی دوا کمپنیاں یہی چاھتی ھیں کہ: ”انکی دواٸیں دنیا کے سبھی لوگ بار بار لیں۔“ یہ ثابت کرنے کے لٸےآپ کچھ مثالیں دیکھٸے:    فرض کیجٸے، کہ آپ کو نیند نہیں آرہی ھے۔بھلے ھی اسکا سبب کچھ بھی ھو۔لیکن آپ نیند لانے والی دوا کھا لیتے ھیں۔آپ لگاتار اسی عمل کو جاری رکھتے ھیں،اورکچھ عرصہ بعد نوبت یہ آجاتی ھیکہ آپ کو نیند کی دوا کھاٸے بغیر نیند آنی ھی بند ھو جاتی ھے۔ اسی طرح، اگر آپ کو depression ھے تو کچھ دن تک ”ڈپریشن“ کی دوا کھانے کا اثر ایسا ھوگا کہ آپ ان ”گولیوں“ کو نہ کھانے پر خود کو ”ڈپریشن“ سے گھرا پاٸیں گے۔ایسا لگے گا کہ آپ کی زندگی میں کوٸی کمی سی ھے۔ اسی طرح، اگر آپ کو ڈاٸبٹیز کی شکایت نہیں ھے اور پھر بھی آپ ”ڈاٸبٹیز“ کنٹرول کرنے کیلٸے دوا لیتے ھیں تو کچھ ھی دنوں میں آپ اس پر منحصر ھو جاٸیں گے۔ یہ سب ”کورے قصے“ نہیں ھیں۔ GLAXO SMITHKLINE نام کی ایک بڑی دواساز کمپنی ڈاکٹروں کو مسلسل 20 سالوں تک رشوت دیتی رہی، تاکہ انکی دواٸیں زیادہ سے زیادہ صحت مند لوگوں کو دی جاٸیں۔شاید وہ جانتے تھے کہ اگر ان کی دواٸیں صحت مند لوگوں کو بھی دی جاٸیں گی تو کچھ ھی دنوں میں بہت سے لوگ ان پر منحصر ھو جاٸیں گے۔ان کی دواٸیوں کے بغیر لوگوں کا کام نہیں چلے گا۔ پورے 20 سال بعد ان کی یہ ”ناپاک سازش“ بے نقاب ھوتی ھے اور 20 جولاٸی  2010 میں لوگوں کو اس بات کا پتہ چلتا ھے۔اسوجہ سے اس کمپنی کو 16,000 کروڑ روپیہ سے بھی زیادہ کا جرمانہ دینا پڑا۔سوال یہ پیدا ھوتا ھے کہ کیا صرف جرمانہ بھر دینے سے ھی وہ اس ”اخلاقی جرم“ سے بَری ھو گٸے،جو انھوں نے انسانی برادری کے خلاف کیا تھا؟ صرف یہی ایک مثال نہیں ھے، جب دوا کمپنیوں نے اپنا۔منافع کمانے کے مقصد کو سب سے آگے رکھتے ھوٸے باقی دوسری چیزوں و ذمہ داریوں کو بالاٸے طاق رکھ دیا ھو۔ان کا کسی کی بھی”صحت“سے کوٸی لینا دینا نہیں ھے۔ وہ صرف بیماریوں کو بڑھاوا دینا چاھتے ھیں۔ وہ چاھتے ھیں کہ زیادہ سے زیادہ لوگ بیمار پڑیں اور تاعمر بیماری کی چپیٹ میں مبتلا رھیں۔اسی میں تو ان کا منافع اور فاٸدہ ھے، کمپنیاں چلیں گی تو وہ مالا مال ھوں گے۔میں مثال کے طور پر کچھ مرض کے متعلق بتاتا ھوں:-  *  DIABETES:-  1997 تک یہ مانا جاتا تھا کہ ”فاسٹنگ بلڈ شوگر“ 140mg/dl ھے تو آپ DIABETIC ھو سکتے ھیں۔لیکن 1997 میں ڈبلیو ایچ اور (world health organisation) نے اسے revise کرنےکے لٸے ایک کمیٹی بناٸی، جس کا نام:-  "Expert Committee On Diagnosis & Classification Of Diabetes“ رکھا۔اس کمیٹی نے یہ رپورٹ دی کہ اسے 140mg/dl سے کچھ کم کر دیا جاٸے، اور اس کے بعد اسے 126mg/dl کر دیا گیا۔اس کا مطلب یہ ھوا کہ راتوں رات لاکھوں کروڑوں افراد جو کل تک Diabetes کے مریض نہیں تھے،اگلی صبح کااخبار پڑھتے ھی Diabetes کے مریض بن گٸے۔کل ملا کر دنیا کے 14 فیصدی لوگ جو Diabetic نہیں تھے وہ Diabetes کے گھیرے میں آ گٸے۔ غورطلب ھے کہ WHO نے17 لوگوں کی جو Expert committee بناٸی تھی انمیں سے 16 لوگ Diabetes کی دواٸیاں بنانے والی کمپنیوں کے ایجنٹ، مشیر اور ترجمان تھے اور ان میں سے کٸی تو انکے ساٸنسداں بھی تھے، جنہیں باقاعدہ کمپنی کی جانب سےاجرت دی جاتی تھی۔ان کمپنیوں کے نام درج ذیل ھیں:- Aventis pharmaceuticals Bristol-Myors Sqibb Eli Lilly GlaxoSmithkline  Novartis Merck Pfizer.  اب سوچا گیا کہ Fasting sugar126mg/dl سے کم ھے، تو ان کو گھیرے میں کیسے لایا جاٸے؟ تب ایک Term لانچ کیا گیا اور اس کا نام دیا گیا: ”pre-diabetic“ یعنی ”ڈاٸبیٹیز“ سے پہلا Step، اور یہ کہا گیا کہ ڈاٸبیٹیز سے پہلے Fasting Blood Sugar اگر 126mg/dl سے کم ھے تو اسے pre-diabetic کہیں گے۔ یعنی اب کچھ اور لوگ اس گھیرے میں آ گٸے۔ یعنی کل تک جو لوگ Diabetic نہیں تھے اب وہ Prediabetic term کے حساب سے  Diabetic ھو گٸے۔  * HYPERTENSION:-   ایسا ھی کچھ”ھاٸیپرٹنشن“کے ساتھ بھی ھوا۔ 1977میں ھی WHO نے ایک Panel بنایا جس کے مکھیا "DR ALBERTO JAIN CHETTI تھے۔ان کی مدد سے 11 لوگوں کی کمیٹی تشکیل دی گٸی-جس کا کام تھا 1997 تک Systolic Hyper tension کی حد کو 160mmhg سےگھٹا کر 140mmhg کر دیا جاٸے اور Diastolic Hypertension جو 100mmhg تھا اسے 90mmhg کر دیا جاٸے۔ یعنی راتوں رات 35 فی صد لوگ جو کل تک Hypertension کے شکار نہیں تھے، آج اچانک Hypertension کے مریض بن گٸے۔ اس ”کارخیر“ کو انجام دینے والے ان 11 لوگوں کے بارے میں پتہ کیا گیا تو معلوم ھوا کہ ان میں سے 9 لوگ یا تو Hypertension کی دواٸی بنانے والی کمپنی کے ترجمان مشیر ساٸنسداں ھیں یا کسی نہ کسی شکل میں اس سے جڑے ھیں۔ THE JOURNAL OF AMERICAN ASSOCIATION کے ذریعہ یہ رپورٹ جاری کی گٸی ھے۔) اب سوال یہ پیدا ھوا کہ جنکا بلڈ پریشر 140 mmhg سے کم ھے، انہیں گھیرے میں کیسے لیں؟ تب اسی کمیٹٕی نے ایک نٸے Term کو یہ نام دیا: ”PRE-HYPERTENSION“۔ یہ طے کیا گیا کہ جن کا سسٹولک بلڈپریشر 120mmhg سے اوپر ھے اور ڈاٸسٹولک بلڈپریشر 80mmhg سے اوپر ھے، انہیں ”PRE-HYPERTENSION“ کہہ دیں گے۔ایسا ھونے کے بعد CIEATAL TIMES نیوز پیپر کے مطابق : ”دنیا کی آدھی سے زیادہ آبادی یا تو HYPERTENSION کا شکار ھو گٸی یا پھر PRE-HYPERTENSION کے گھیرے میں آگٸی“۔    *   CHOLESTEROL :-    ٹھیک اسی طرح اب ھم CHOLESTEROL کی بات کرتے ھیں۔ 1998 تک کولسٹرول 240 hg/dl سے اوپر چلے جانے سے ھائی کولسٹرول مانا جاتا تھا۔ لیکن 1998 میں ”WHO" نے ” TEXAS CORONARY  ATHEROSCLEROSIS  STUDY" نام سے ایک پینل بنایا، جس کا کام تھا کہ CHOLESTEROL LEVEL کےطریقے و ضابطے کو نٸے سرے سے پیش کیاجاٸے۔    اسی سال 1998میں کولسٹرول لیول کے طریقے و ضابطے کو 200hg/dl کر دیا گیا اور یہ اعلان کر دیا گیا کہ جن لوگوں کا کولسٹرول لیول 200hgdl سے اوپر ھے، وہ ھاٸی کولسٹرول کا شکار مانے جاٸیں گے۔ %56 لوگ جو اب تک صحت مند تھے، ضابطہ بدلتے ھی ھاٸی کولسٹرول کے مریض بن گٸے۔ *   OSTEOPIROSIS:-    اسی طرح OSTEOPOROSIS کامعاملہ ھے۔ 2003 میں WHO نے نیا PANEL ”نیشنل آسٹیوپوروسس فاٶنڈیشن“ (NATIONAL OSTEO POROSIS FOUNDATION) بٹھایا۔ اس پینل کو بھی آسٹیوپروسس کے ضابطوں پر نٸے سرے سے غور و خوز کرنے کو کہا گیا۔ 2003 سے قبل 2.5- سے کم T-SCORE والے کو آسٹیوپوروسس کامریض بتایا جاتا تھا، لیکن 2003 میں اس پینل نےT-SCORE کا لیول گھٹا کر 2.5- سے گھٹا کر 2.0- کر دیا جس سےتقریباً %85 دیگر لوگ بھی آسٹیوپوروسس کےگھیرے میں آگٸے۔ اس طرح اکثر و بیشتر امراض کی آخری حد کو کم کر دیا گیا تاکہ کثیر تعداد میں لوگ مریض بن جاٸیں۔اور بتانے کی قطعی ضرورت نہیں کہ مریضوں سے صرف اسپتالوں، فارما سیوٹیکل کمپنیوں و ان سے جڑے افراد کو ھی فاٸدہ ھوتا ھے۔ اب آگے دیکھیٸے کہ امراض کی گاٸڈ لاٸن کیسے بنتی ھے؟ 1948 میں UNO نے WHO کی بنیاد رکھی۔ جس کا کام تھا دنیا میں ھیلتھ سے جڑے اداروں و ضابطوں کو قاٸم کرنا اور انہیں ایک بہتر حالات تک پہنچانا۔ دنیا میں جن جن امراض سے زیادہ لوگ مررھے ھیں، WHO ان پر رسرچ کرتی ھے۔ پھر کچھ چنندہ میڈیکل یونیورسٹی جیسے: آکسفورڈیونیورسٹی ھارورڈیونیورسٹی ٹورنٹو یونیورسٹی کیمبرج یونیورسٹی  وغیرہ سے DATA & FEEDBACK لیتی ھے کہ کون سی بیماری زیادہ ”جان لیوا“ ثابت ھو رھی ھے۔اور اسی کےمطابق ”پینل“ بنایا جاتا ھے۔ اکثر یہ ”پینل“      PHARMACEUTICAL COMPANIES کے ذریعہ SPONSORED ھوتی ھیں۔ یعنی کہ ”پینل“ کے ممبران PHARMA COMPANY کے ھی EMPLOYEES ھوتے ھیں۔ اسکا مطلب یہ ھے کہ ”پینل کے ذریعہ تیار کردہ GUIDE LINES چاھے وہ ”ھاٸپرٹینشن“ کی ھوں یا ”کولسٹرول“ کی یا پھر ”آسٹیوپوروسس“ کی، وہ ھمیشہ دوا کمپنیوں کےحق میں ھی ھوتی ھیں۔ ایک بار گاٸڈ لاٸنس بن جانے کے بعد انہیں ڈاکٹر تک پہنچانے کا کام ”پوسٹ مین“ بننے کا کام ”دوا کمپنیوں“ کے ”میڈیکل ایجنٹ“ کرتے ھیں۔ یا آٸے دن منعقد ھونے والی ”میڈیکل کانفرنس“ کے ذریعہ دنیا بھر میں مشتہر کیا جاتا ھے۔ اور پھر ڈاکٹر انہیں ”مریضوں“ تک یعنی آپ تک پہنچاتے ھیں۔    ڈاکٹروں اور ورلڈھیلتھ آرگناٸزیشن (WHO) کے بیچ ھوتی ھیں”دواکمپنیاں“۔اور کمپنیوں کا واحد ”مقصد“ ھوتاھے- ”منافع کمانا“۔اگر آپ چاھتے ھیں کہ آپ کو اصلیت پتہ چلے تو:- ”ڈاکٹروں، دوا کمپنیوں و نٸی گاٸڈ لاٸنوں“ کو بیچ سے ھٹا کر قابل اعتماد یونیورسٹیز سے سیدھا جڑنے کی کوشش کریں۔ *کسی بیماری کو تیار کر کے کیسے بڑھاوا دیا جاتا ھے؟*    دواساز کمپنیوں کا ”ڈاکٹروں“ سے”تعلق“:-    *دواساز کمپنیاں ڈاکٹروں کو اپنا صلاح کار یا ترجمان کے طور پر بلاتی ھیں۔    * ڈاکٹروں کے ریسرچ پیپرس کو یہ دواساز کمپنیاں ھی اسپانسر کرتی ھیں۔اسکی اشاعت میں پیش۔پیش رھتی ھیں۔    *ڈاکٹروں کے ذریعہ دواساز کمپنیوں کو                             صلاح:-   * نٸی دواٶں کے استعمال میں انکی مدد کرتے ھیں۔   *مارکیٹنگ کے معاملے میں انہیں صلاح دیتے ھیں۔   *دیگر ماھرین بھی انہیں دواٶں کی لاٶنچنگ میں تعاون کرتے ھیں۔ اور FDA سے ان نٸی دواٶں کی منظوری لینے کیلٸے بھی کمپنیوں کا تعاون کرتے ھیں۔   *کچھ ڈاکٹروں کا ”پیسہ“ بھی اِن کمپنیوں میں لگا ھوتا ھے۔ اسلٸے وہ بھی وقتاً فوقتاً انہیں صلاح اور تعاون دیتے رہتے ھیں۔    "بیماریوں کو متعارف کرنا“:-   * دو اساز کمپنیاں ایک میٹنگ آرگناٸز کرتی ھیں، جہاں ”ماھرین“ امراض کی”نیا تعارف“ دینے کیلٸے تیار ھوتے ھیں۔   * پرانے امراض کو پھر سےجدید پیراٸے میں متعارف کیا جاتا ھے اور ماھرین ان کے علاج کیلٸے نٸی گاٸڈ لاٸنس تحریر کرتے ھیں۔جن کے توسط سے دیگر ڈاکٹروں کو ذہن نشیں کرایا جاتا ھے کہ زیادہ سے زیادہ دواٶں کا استعمال کیسے کیا جانا چاھٸے؟     * کسی بھی ”مرض“ کو مشتھر کرنا:   * گاٸڈ لاٸنس لکھنے والوں سمیت کمپنی کے ماھرین بھی ڈاکٹروں کو”مرض“سے متعلق نیا تعارف و دیگر نٸی معلومات فراھم کراتے ھیں۔ (تمام شد)       نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔         ...........................            HAKEEM MD ABU RIZWAN                              BUMS,hons.(BU)



Last updated date 30/09/2020

کوکھ سے قبر تک

تاریخ شاھد ھے کہ دنیا کے امیر ترین لوگ بھی اکثر بیماریوں کی چپیٹ میں آنے کے کچھ دنوں بعد ھی جان گنوا بیٹھتے ہیں۔انکی بے شمار دولت بھی انکی جان نہیں بچا پاتی۔ بیماری کے لئے نہ کوئی أمیر ھے اور نہ کوئی غریب،نہ کوئی بڑا ھے نہ چھوٹا۔بیماری مذھب کا بھی بھید بھاؤ نہیں کرتی،یہاں تک کہ بڑے سے بڑا اسپتال اور اسمیں رکھی گئی قیمتی مشینیں بھی کسی مریض کی جان نہیں بچا سکتیں۔ WHO کی رپورٹ کے مطابق ترقی پزیر ممالک میں دس فیصد اموات کی وجہ اسپتال کی غلطیوں اور دواؤں کی سایڈ افیکٹ یعنی (IATROGENIC) ھوتی ھیں۔    ساینس کہتا ھے کہ جب کوئی مریض موت کے دھانے پر ہوتا ھے تب موت کے چند منٹ قبل تک اس کے جسم کی لگ بھگ 50 ٹریلین خلیوں (CELLS) میں سے صرف ایک فیصد خلیے ھی ایسی ہوتی ھیں جو اس انسان کو موت کی جانب کھینچتی ھیں،جبکہ 99 فیصد خلیے آخری لمحات تک جینا چاھتی ھیں۔اسکا مطلب یہ ھے کہ زندگی کی یہ جنگ جیتی جا سکتی ھے اور اپنے لئے یہ کام صرف اور صرف آپ ھی کر سکتے ھیں کیونکہ آپ ھی خود سے جڑے ھیں اور ان سبھی 50 ٹریلین خلیوں سے آپ کا سیدھا تعلق ھے۔یہی نہیں،بلکہ ان کا کنٹرول بھی آپ ھی کے پاس ھے۔مریض چاھے کینسر کے چوتھے اسٹیج پر ھو یا ڈایبٹیز کی ایڈوانس اسٹیج ت، کھوئی صحت پھر سے واپس پایی جا سکتی ھے۔یہ ایک ایسا SCIENTIFIC SECRET KNOWLEDGE ھے جس کی مدد سے کسی بھی بیماری کو تین سے چھ مہینے میں دور کیا جا سکتا ھے۔اسے "UNIVERSAL LAWS OF RE-BALANCING کے نام سے جانا جاتا ھے۔دنیا میں سات (SEVEN) ایسی CIVILIZATIONS ھیں جہاں اکثر لوگ اپنا 100واں جنم دن مناتے ھیں،وہ بھی بغیر کسی مرض کے۔ان مقاماتِ پر ,DIABETES CARDIOVASCULAR DISEASE, CANCER, & MIGRAINE جیسی بیماریاں شاذونادر ھی دیکھنے کو ملتی ھیں،اس لئے وھاں میڈیکل اسٹورس، ھاسپٹل، اور ڈاکٹر بھی نہ کے برابر ھی دیکھنے کو ملتے ھیں۔ان ساتوں CIVILIZATIONS میں ایک چیز COMMON ھے، اور وہ یہ ھے کہ جانے انجانے میں ھی وہ سب "UNIVERSAL LAWS OF RE-BALANCING" بر عمل پیرا ھیں۔    جب اس ایک طریقہ پر عمل کرنے والے اسی سرزمین کے وہ سات CIVILIZATIONS صحت مند زندگی اور لمبی عمر (100-110سال) تک، بنا کسی بیماری، دوا، یا ڈاکٹر و ہاسپٹل کا چکر لگایے زندہ رہ سکتے ھیں تو ھم آپ کیوں نہیں۔میری مانیے،اور آپ اپنی "طرز زندگی" بدلنے کی کوشش کیجیے۔ یقین جانئے کہ بہت جلد آپ کو یہ محسوس ہوگا کہ آپ اور آپ کی فیملی صرف ایک "لایف اسٹایل"کو بدل دینے بھر سے ھی ھر فرد اپنے آپ کو پہلے سے بہتر صحت کا مالک ہوگا۔پھر آپ 3D's یعنی ڈاکٹر (DOCTOR) ، ڈرگس (DRUGS) ، ڈیزیز (DISEASE) سے کوسوں دور ھوں گے۔    بیمار رھتے ہویے ڈاکٹر کی دوا کھا کھا کر زندہ رھنے کی کوشش کرنا ۔۔۔۔۔بھی کوئی زندگی ھے۔ایک عمر گزرنے کے بعد زندگی کے آخری ادوار میں بیمار رھتے ہویے مرنے کی تیاری کیا جائے،کیوں؟صحتمند رھتے ہویے لحد تک کا سفر مکمل ھو،کیا حرج ھے۔



Last updated date 30/09/2020

HEALTH IN BOX

My Dear friends,    The above mentioned UNANI MEDICINE "HEALTH IN BOX" is a unique product made by myself, for all kinds of LIFESTYLE diseases like: OBESITY, DIABETES, HIGH BP, HEART PROBLEM, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, KIDNEY FAILURE, ARTHRITIS, MIGRAINE, PSORIASIS, CANCER, CHOLESTEROL, THYROID, and others.   Why i say that a SINGLE UNANI MEDICINE is useful for all kinds of LIFESTYLE DISEASES?


  Understand this:- Imbalance of "GLUCOSE" & "INSULIN" in my body is totally responsible for any kind of DISEASES. so, it is very simple matter.If you have any queries, please contact me anytime.


So i request you to taking this UNANI MEDICINE for reverse your lifestyle DISEASES forever, for which, your DOCTOR say "you must take the ALLOPATHIC MEDICINE life long."    No, never, your life is very COSTLY, don't ignore it.

Last updated date 30/09/2020

रसोई घर - सेहत घर

+यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर+ * अपने #रसोईघर से इन सभी को बाहर निकालें:- रिफाइंड तेल, आयोडीन युक्त नमक, चीनी, एनीमल फुड जैसे- #दूध व दूध से बनी चीजें, #मांस, #मछली, #अंडा, #डेयरी प्रोडक्ट्स और #फैक्ट्री प्रोडक्ट। आने वाली नस्लें #बीमारी, #डॉक्टर और #दवा से दूर रहेंगी, ईन्शा अल्लाह। * "1947 से पहले देश #अंग्रेजों का ग़ुलाम था, #आज़ादी के बाद हम भारतीय अंग्रेज़ी दवाओं के ग़ुलाम हो गए हैं।" इसलिए फेंक दीजिए अंग्रेज़ी दवाओं को जिसे बरसों से भोजन की तरह इस्तेमाल करके स्वस्थ तो नहीं होते, बल्कि दुखदाई जीवन जीते हुए #दर्दनाक मौत की ओर बढ़ रहे हैं। *  #बीमारीअनेक, #समाधानएक सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ जैसे:- #मोटापा, #हाई बीपी, #हृदय रोग, #कैंसर, #डायबिटीज़, #कोलेस्ट्रॉल, #थायरॉइड, #किडनी फेलियर, #लीवर व अमाशय रोग, #आर्थराइटिस, #माइग्रेन, #आस्थमा, #चर्म रोग इत्यादि के लिए केवल एक ही दवा-----


  #HEALTH IN BOX® HAKEEM MD ABU RIZWAN         BUMS hons.(BU)       UNANI PHYSICIAN


(Specialist in LIFESTYLE DISEASES) contact         8651274288 & 9334518872 what's app   8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube: HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 21/09/2020

Osteo Treatments

Osteoarthritis (OA) is a chronic condition of the joints in which the cartilage cushioning the ends of the bones gradually loses its elasticity and wears away.


Without the protective cartilage, the bones begin to rub against each other, causing stiffness, inflammation, and loss of movement. Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Osteo-Arthritis Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Arthritis Problems permanently. He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation.


We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine.

Last updated date 26/08/2020


حکیم صاحب کے کارنامے


السلام علیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ ایک ماہرحکیم صاحب نے پتھری کو بنانے اور پگھلانے اور باہر نکالنے کا ایسا بیان فرمایا،بہت خوب۔    اسی رواجی ذہن نے لوگوں کو نئی کاوش،نئ ریسرچ اور نئ سوچ کو بڑھنے سے روک رکھا ہے۔ افسوس صد افسوس کہ آج یہی وجہ ہے کہ طب یونانی ہی نہیں،سبھی پیتھی کا یہی حال ہے۔ دماغ میں ایک ہی بات ہے کہ کس طرح آن کے آن میں مریض کی جیب ڈھیلی کیسے کر سکتے ہیں۔     اسی لئے میں کہتا ہوں کہ جس کسی حکیم، ویدھ یا ڈاکٹر کو کسی بھی بیماری کے سبب کا پتہ ہی نہ ہو تو وہ اس کا علاج کیوں اور کیسے کر سکتا ہے؟    سائنس اتنی ترقی کر گئی ہے کہ آج ہم 12،500 امراض کے درمیان زندہ رہنے کی کوشش کر رہے ہیں۔  لفظ "صحت" صرف کتاب کے پنوں میں پڑھنے کو ملتا ہے۔ علاج کے نام پر "امراض" کا "علاج" نہیں بلکہ "امراض" کے "بچاؤ" کی فکر کرتے ہیں، مریض کا مرض قائم رہے، تاکہ ہماری آمدنی چلتی رہے،یعنی ایک مریض ہمارے لئے ایک  BEARER CHAQUE بن کر رہ گیا ہے۔   ہم کر بھی کیا سکتے ہیں،ہمیں تعلیم ہی ایسی ملی ہے۔ایک ہزار پیج کی کتاب میں 995 صفحہ صرف بیماری کے بارے میں پڑھنے کو ملا،علاج کیلئے صرف پانچ صفحہ۔    ایک سازش کے تحت یہ سب کچھ ہو رہا ہے۔کچھ لوگ چاہتے ہیں کہ دنیا کی آبادی 15 فیصد کم ہو جائے۔ وہ روز نئ نئ بیماریوں کی کھوج میں لگے ہیں۔لوگ پریشان ہیں۔سوپر اسپیشلٹی ہسپتال اور ایک سے بڑھکر ایک الگ الگ امراض کے ماہرین کی لمبی قطاریں اور انکے چیمبر کے آگے مریضوں کی لمبی لمبی قطاریں۔۔۔۔۔۔کیا سین ہے بھائی۔    انسان کو بیمار بنائے رکھنے کا عجب ماجرا دیکھنے کو ملتا ہے۔ایک بار کسی بیماری میں مبتلا ہو گئے تو سودی نظام کی طرح بیماری کے چنگل سے نکلنا ناممکن ہے،جیسے کہ سودی کاروباری کے چنگل سے کسی قرضدار کا۔آج یہی وجہ ہے کہ ہر مرنے والے کے گھر جاتے ہیں تو ایک ہی بات سننے کو ملتا ہے کہ وہ فلاں مرض میں کافی لمبے عرصے سے مبتلا تھے،ایک سے ایک بڑے بڑے ڈاکٹر کے زیر علاج رہے ۔بالآخر موت ہو گئی۔فطری موت شاذونادر ہی سننے کو ملتا ہے۔    حقیقتاً ایسا نہیں ہے۔سچائی تو یہ ہے کہ علاج بہت ہی آسان ہے۔اتنا کہ کسی حکیم، ڈاکٹر یا ویدھ کی ضرورت ہے ہی نہیں۔مرض چاہے جتنی بھی بڑی ہو،اس سب کا سبب تو ایک ہی ہوتا ہے۔ اور جب ہر مرض کی وجہ ایک ہی ہے تو طریق علاج بھی ایک اور دوا بھی ایک۔    "سبب ایک ہی ہے" یہی بات کسی حکیم، ویدھ یا ڈاکٹر کو نہیں پتہ۔ یہیں سے سارا کھیل شروع ہوتا ہے۔ بڑی لمبی داستان ہے ان فارماسیوٹیکل کمپنیوں کی، جنکی سازش کامیاب ہو چکی ،لوگ انکے جال میں بری طرح سے پھنس گئے ہیں۔ آج ہر گھر میں ایک نہ ایک مریض مل جائے گا، ہر گھر میں دوا کا چھوٹا سا اسٹور بھی ملے گا۔ नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |          * सारी बिमारियों की सिर्फ और सिर्फ एक ही "वजह" है_ "GLUCOSE और INSULIN का IMBALANCE होना।"        * मेरे पास दवा केवल "एक" ही है,क्योंकि सभी बिमिरियों की वजह "एक" ही है,जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|   NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCE CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS).    * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|



Last updated date 30/09/2020

अब इनको कैसे समझाऊं

अब इनको कैसे समझाया जाए कि गुर्दे की पथरी का आपरेशन मत करवाएं।मेरी यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" से निकल जाएगा, और फैट भी बर्न हो जाएगा और बिल्कुल स्लिम हो जाएंगे।रमज़ान का मौक़ा है ,और नौ मई को गुर्दे की पथरी का आपरेशन करवाने की तैयारी में हैं।सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा कि रमज़ान का रोज़ा रखने से बच जाएंगे, डाक्टर का सर्टिफिकेट जो मिल जाएगा।एकबार तो मुझसे इन्होंने मेरी दवा "HEALTH IN BOX" ले भी लिया, मगर इनकी बदनसीबी देखिये कि तक़रीबन दो माह बाद मेरी दवा "HEALTH IN BOX" मुझे लौटा दी।     "HEALTH IN BOX" रजिस्टर्ड दवा है,ट्रेड मार्क लाईसेंस मिला हुआ है।शायद दुनिया की पहली ऐसी दवा है जिससे सिर से लेकर पैर तक की सारी बीमारियां हमेशा के लिए रिवर्स हो जाती हैं।      आप सवाल उठा सकते हैं कि ऐसा क्यों?      क्योंकि, हमारे शरीर में जितनी भी बीमारियां होती हैं, उन सबका सिर्फ और सिर्फ एक ही "कारण" है---- "ईन्सुलीन और ग्लूकोज़ का आपसी तालमेल बिगड़ जाना।"इस बिगड़े हुए "तालमेल" को सुलझा देने भर से ही हमारे शरीर की सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।      आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये दवा "HEALTH IN BOX" किसी एक PARTICULAR बीमारी पर काम नहीं करती, बल्कि पूरे सिस्टम पर काम करती है।और आपके शरीर में अगर विभिन्न प्रकार की परेशानियां होंगी तो सबकी दुरूस्तगी इसी एक दवा से हो जाती है।


 इस दवा से कोई भी आदमी किसी भी बीमारी का ईलाज(चाहे बड़ी से बड़ी बीमारी कैंसर और या कोई भी लाईफस्टाइल डीज़ीज़ ही क्यों न हो, या कोई ऐसी लाईलाज बीमारी हो ,जिसके लिए डॉक्टर ने कह दिया हो कि ज़िन्दगी भर दवा खाना ही पड़ेगा।) आसानी से कर सकता है, उसे सिर्फ मुझसे इसके मेकानिज़्म को समझना होगा।   मेकानिज़्म को समझिए:-भोजन के रूप में हम कुछ भी खाते हैं तो वो "ग्लूकोज़" ही बनता है जो हमारे लिए शारिरिक "एनर्जी" का मुख्य स्रोत है।लेकिन इस "ग्लूकोज़" से हमें "एनर्जी" तभी मिलेगी, जब ये "ग्लूकोज़" हमारी हर कोशिका (CELL) में प्रवेश करे।कोशिकाओं के द्वार बन्द रहते हैं, जिसे खोलने के लिए एक "चाभी" की ज़रूरत होती है।उस चाभी का नाम है-"ईन्सुलीन"।    ईन्सुलीन एक प्रोटीन है जो "पैनक्रियाज़" में बनता है।जबतक इन दोनों (ग्लूकोज़ और ईन्सुलीन) के बीच तालमेल बना रहे, हम बिल्कुल स्वस्थ्य और सेहतमन्द होते हैं।लेकिन आजकल की लाईफस्टाइल और खान पान के कारण "पैनक्रियाज़" में बनने वाला "ईन्सुलीन" ही प्रभावित होता है।     इसके बाद ही सारी गड़बड़ी सामने आने लगती हैं।लम्बी प्रक्रिया केबाद हमारी खून की नलिकाओं में "कचरे" का जमाव शुरू होता है।जिसे "साफ" करने केलिए "ऐलोपैथिक" यूनानी" होमियोपैथिक" वग़ैरह में इतनी तरक़्क़ी और नयी नयी रिसर्च के बाद भी कोई "दवा" नहीं आई।हां,साईंस ने इतनी तरक़्क़ी ज़रूर कर ली है कि आज हर घर में "बीमारी" और "बीमार आदमी" मौजूद है। खून की नलिकाओं का कचरा साफ करना ही किसी भी बीमारी का कामयाब ईलाज है।


  अब आप एक बात बताईए, आपके घर की नाली जाम हो जाए तो आप क्या करेंगे?ज़ाहिर है,उसी नाली ही को साफ करना ज़रूरी समझेंगे, न कि जब भी नाली जाम हो , नयी नाली बनायें।     मैं अपने सभी दोस्तों को इस बात केलिए आमंत्रित करता हूँ कि आप आगे आएं।अपने आसपास, दोस्त रिश्तादार को पुराने से पुराने रोग से छुटकारा दिलाने में मदद करें।आपके लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया भी बन सकता है।भलाई करेंगे तो सवाब भी मिलेगा और पैसा भी मिलेगा। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |          * सारी बिमारियों की सिर्फ और सिर्फ एक ही "वजह" है_ "GLUCOSE और INSULIN का IMBALANCE होना।"        * मेरे पास दवा केवल "एक" ही है,क्योंकि सभी बिमिरियों की वजह "एक" ही है,जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|   NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCE CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS).    * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 30/09/2020

डायलिसिस जानदार किडनी को बेजान बना देता है

DIALYSIS में अस्पताल का खर्च मात्र 250/- से 350/- ₹ तक आता है।लेकिन आपसे एक दिन की DIALYSIS के लिए 2500/- से 4500/- तक वसूला जाता है,वो भी बड़े प्यार से परमानेंट कस्टमर बनाकर।दिन तारीख भी निर्धारित कर दी जाती है,सप्ताह में दो तीन दिन। आपका जो DIALYSIS हो रहा होता है,उस DIALYSIS तक आपको पहुंचाया गया है DIABETES, HIGH BP, PAIN KILLER, CHOLESTEROL इत्यादि की दवा खिला खिला कर। DIALYSIS शुरु होने पर बचा खुचा किडनी भी बिल्कुल बेकार हो जाता है।इसे आप एक उदाहरण से समझिए- आजतक आप काम धंधा करके मेहनत से कमा रहे हों और कल कोई आपसे कहदे कि आपको काम धंधा नहीं करना,न ही कहीं जाने की ज़रुरत है।हर माह आपको पूरी पूरी रक़म घर बैठे मिल जाया करेगी।कुछ महीने या साल के बाद आप एक अपाहिज ईन्सान बनकर रह जाएंगे।DIALYSIS के बाद आपकी किडनी का यही हाल कराया जाता है।अब जबकि किडनी का काम मशीन करने लगा तो किडनी को आराम मिल गया।तभी तो इतनी पाबंदी से DIALYSIS कराते रहने केलिये कहा जाता है। आज से सौ साल का ही इतिहास उठाकर देखिए कि कोई एक DIABETES का मरीज़ अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुये दस,बीस या पचीस बरस के बाद भी सेहतमंद हो गया क्या,या उसने दवा लेना बिल्कुल बंद कर दिया क्या।ऐसा आजतक हुआ ही नहीं। तो फिर ये DIALYSIS क्यों,और जब DIABETES का ईलाज चल रहा हो,वो भी लगातार। DIABETES की ऐलोपैथिक ईलाज का नतीजा कहिए या अंजाम - "आंखों की रौशनी ग़ायब," "किडनी फेल" और "पैरों का कटना"। दरहक़ीक़त ईशवर ने हम इन्सानों को नेचुरल चीज़ों से बनाया है।हमारे रोग को नेचुरल चीज़ें ही ठीक कर सकती हैं।केमीकल केलिए मानव शरीर COMPATIBLE नहीं है।अंग्रेज़ी दवाएं CHEMICAL होती हैं जो हमारे शरीर में "आतंकवादी" की तरह तोड़ फोड़ करते हुए आक्रामक और हिंसक तरीक़े से घुसता है।जिसके कारण कई प्रकार के दुषप्रभाव और दुषपरिणाम हमें झेलने पड़ते हैं।इसे ही "SIDE EFFECTS" कहते हैं। सबसे अहम सवाल ये है कि अंग्रेज़ी दवा की आयु है ही कितनी?तो,उसके पहले भी जब ईन्सान बीमार पड़ता ही था,और ईलाज भी होता था,और केवल जड़ी बूटियों से ही होता था,जो नेचुरल चीज़ें हैं। तो फिर अब और समय मत गंवायें,और जितना जल्द मुमकिन हो अंग्रेज़ी दवाओं को बाय बाय कहदें।


वैसे आपकी जानकारी केलिए बता दूं कि DIABETES का ईलाज जब शुरू होता है और दवा लेना आरम्भ करते हैं तो कुछ महीने या कुछ साल बाद तोहफे के तौर पर CHOLESTEROL और HIGH BLOOD PRESSURE की दवा मिल ही जाती है। DIABETES की अंग्रेज़ी दवा के सेवन का परिणाम यही सामने आता है कि 50℅ रोगी का किडनी फेल हो जाता है।20% से 25% रोगियों की आंखों की रौशनी चली जाती है,यानि अंधा हो जाता है।और 15℅ से 20% रोगियों का पैर काटना पड़ जाता है। आप सोचिए,ये कैसा ईलाज है।कैसी अंधेर नगरी है।हमारे समाज में तो डाक्टरों को भगवान का दर्जा प्राप्त है।लेकिन ये कौन सा रूप है उनका कि "मर्ज़ बढ़ता गया जूं जूं दवा की"। मेरा मानना है कि जब DIABETES का ईलाज करते करते मरीज़ की किडनी फेल हो जाती है,आंखों की रौशनी चली जाती है या पैर काटने की नौबत आ जाती है तो फिर ऐसे ईलाज का क्या मतलब।किसी भी बीमारी के ईलाज का मतलब तो यही होना चाहिए कि दवा खाएं और बीमारी बिल्कुल ठीक,न कि जीवन भर दवा खाते रहें। असल में बात ऐसी है कि कुछ लोगों को आपके बीमार रहने से फायदा है।ये सारा मामला केवल कारोबार और उससे होने वाले मुनाफे से जूड़ा है।अब जबकि आपकी बीमारी कुछ लोगों केलिए कारोबार बन जाए तो वो क्यों ऐसा चाहेंगे कि आप ईलाज कराओ और स्वस्थ हो जाओ। अव्वल तो ये कि सबसे बड़ी सच्चाई आपसे छुपाई गयी है-"DIABETES और HIGH BLOOD PRESSURE अपने आप में कोई बीमारी है ही नहीं।ये किसी बीमारी का केवल "लक्षण" भर है।दूसरी बात ये कि किसी भी डाक्टर,हकीम वैध को किसी भी बीमारी का "कारण" ही नहीं पता तो ईलाज कैसे करेंगे।यहां तो अंधेरे में ही तीर चलाई जाती है,"लगा तो तीर,नहीं तो तुक्का"। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |


* मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| ........................... BANK ACCOUNT DETAILS DR M A RIZWAN CANARA BANK BRANCH DIAGONAL ROAD BISTUPUR JAMSHEDPUR JHARKHAND SB A/C NO 0324101031398 IFSC CODE CNRB0000324

Last updated date 22/09/2020

ڈائلیسس جاندار کڈنی کو بے جان کر دیتا ہے

اسپتالوں میں "ڈائلیسس" کا خرچ بہ مشکل  -/250 روپے سے -/350 روپے تک آتا ہے اور آپ سے ایک دن کا چارج -/2500 روپیہ سے -/4500 روپیہ تک وصول کیا جاتا ہے۔وہ بھی بڑے پیار سے پرمانینٹ کسٹمر بناکر۔دن و تاریخ بھی مقرر کر دیجاتی ہےکہ ہفتے میں دو دن یا تین دن بلا ناغہ DIALYSIS کرانا ہی ہے۔    آپکا جو DIALYSIS ہورہا ہوتا ہے، اس مقام تک آپکو پہنچایا گیا ہے DIABETES کی انگریزی دوا کھلا کھلاکر۔ ایک بار  DIALYSIS شروع ہونے کے بعد بچا کھچا KIDNEY بھی کچھ مہینوں بعد بالکل مردہ ہو چکا ہوتا ہے۔اسے آپ ایک مثال سے سمجھیں۔فرض کیلئے کہ آج تک آپ کام دھندہ کرکے محنت کرکے کما رہے ہوں اور کل کوئی آپ سے کہہ دے کہ اب آپکو کہیں جانے اور محنت کرنے کی قطعی ضرورت نہیں۔ہر ماہ آپکو پوری پوری رقم گھر پر ہی پہنچ جایا کریگی۔کچھ ماہ یا سال کے بعد آپ بالکل مفلوج ہو ہی جائینگے۔DIALYSIS کے بعد آپ کی KIDNEY کا یہی حال کرادیا جاتا ہے۔اب جبکہ KIDNEY کا کام مشین کرنے لگے تو  بیچارہ KIDNEY کو آرام مل گیا۔تبھی تو اتنی پابندی سے DIALYSIS کراتے رھنے کی صلاح دی جاتی ھے۔اور تب KIDNEY  کی بچی کھچی طاقت بھی بالکل ختم۔   آج سے سو سال پہلے کی ہی تواریخ اٹھا کر دیکھ لیں کہ کوئی ایک DIABETES کا مریض انگریزی دوا کا لگاتار استعمال کرنے کے دس سال،بیس سال بعد بھی روبہ صحت ہوپایاہو۔اور اس نے دوا لینا بالکل بند کردیاہو۔لیکن آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ ایسا تو کوئی معجزہ ھوا ہی نہیں۔   تو پھر یہ اتنا تام جھام کے ساتھ DIALYSIS کیوں؟ اور جب DIABETES کا علاج شروع سے ہی مسلسل چل رہاہو۔اصل میں DIABETES کی ایلوپیتھک دوائیں ہی اسکی ذمہ دار ہیں۔بالآخر DIABETES کا ایک مریض DIALYSIS تک پہنچنے میں کامیاب ہوگیا۔اور KIDNEY فیل ہو گیا۔   درحقیقت اللہ تعالی نے ہم انسانوں کو نیچرل چیزو ں سے بنایا ہے اور بیمار ہونے کی صورت میں ہمارے امراض بھی نیچرل چیزو ں سے ہی کلی طور ہر ٹھیک ہو سکتی ہیں۔کیمیکل کیلئے یہ ہمارا جسم COMPATIBLE نہیں یے۔انگریزی دوائیں CHEMICAL ہوتی ہیں جو ہمارے جسم میں "آتنکوادی یا دہشت گرد" کی طرح توڑ پھوڑ کرتے ہوئےایک خطرناک حملہ آور کی طرح داخل ہوتا ہے۔جسکے سبب کئی اقسام کے سائیڈ افیکٹ ہمیں بھگتنے پڑتے ہیں۔ انگریزی دوائیں ہماری SIGNALLING SYSTEM  کو بلاک کر دیتی ہیں اور ہمیں محسوس ہوتا ہے کہ مرض میں افاقہ ہورہا ہے۔مطلب "صحتمندی کا دھوکا"۔    سب سے اہم سوال یہ ھیکہ "ALLOPATHIC MEDICINES" کی عمر ہے ہی کتنی،پچاس سال،ساٹھ سال؟تو اس سے قبل بھی جب انسان بیمار پڑتا ہی تھا،علاج بھی ہوتا ہی تھااور اسوقت صرف اور صرف نیچرل چیزوں ، یعنی جڑی بوٹیوں سے ہی علاج ہوتا تھا۔تو پھر آج اور اب کیوں نہیں؟تو پھر اب اور وقت ضائع مت کیجئے،اور جتنا جلد ممکن ہو سکے ،انگریزی دوا سے قطع تعلق کرلیجئے۔ھمیشہ کیلئے بائی بائی کہہ دیں۔    ویسے آپ کی اطلاع کیلئے بتادوں کہ DIABETES کے لئے جب علاج شروع ہوتا ہے اور آپ دوائیں لینا شروع کرتے ہیں تو کچھ مہینوں بعد بطور تحفہ CHOLESTEROL اور HIGH BLOOD PRESSURE  کی دوا بھی آپ کو مل جاتی ہے۔    انگریزی دوا کے لگاتار استعمال کرنے کا ہی نتیجہ ہے کہ DIABETES  کے %50  مریضوں کی KIDNEY خراب ہو جاتی ہے،بالآخر  DIALYSIS  اور پھر KIDNEY TRANSPLANTS  کی ہدایت دی جاتی ہے۔%20 سے %25 DIABETES  کے مریضوں کی آنکھوں کی بینائی چلی جاتی ہے۔اتنا ہی نہیں،تقریبا %15 سے %20 DIABETES کے مریضوں کے پیر کاٹنے پڑ جاتے ہیں۔     ذرا سوچئے،اول تو DIABETES کوئی بیماری ہے ہی نہیں،اوپر سے اسکے علاج کا اتنا "دردناک" انجام ! یہ کیسا علاج،کیسی اندھیر نگری ہے بھائی۔آج میڈیکل سائنس اتنا ترقی کرگیا ہیکہ کوئی بھی انسان "صحت مند" ہے ہی نہیں۔ہمارے سماج میں ڈاکٹرس کو "بھگوان" کا درجہ حاصل ہے۔لیکن یہ ان بھگوان روپی ڈاکٹرس کا کون سا روپ ہے کہ جنکو ہماری صحت کی بجائے ہماری "بیماری" کو بچانے اور بڑھانے کی فکر رہتی ہے۔یعنی "مرض بڑھتاگیا، جوں جوں دوا کی"۔    میرا ماننا ہیکہ جب DIABETES جیسی بیماری (جو اصل میں بیماری ہے ہی نہیں) کا علاج کرتے کرتے مریضوں کی آنکھوں کی بینائی چلی جاتی ہے،کڈنی فیل ہو جاتی ہے، DIALYSIS اور KIDNEY TRANSPLANTS  کی نوبت آ ہی جاتی ہے،اور پیر کاٹنے ہی پڑتے ہیں تو پھر ایسے علاج کا کیا مطلب؟کسی بھی بیماری کا علاج تو ایسا ہونا چاھئے کہ دوا کھائیں اور صحت مند ہو جائیں۔نا کہ کسی بیماری پر "لاعلاج" کا ٹھپہ یا لیبل لگاکر تاحیات دوا کھلا کھلا کر نئی نئی بیماری اسکے جسم میں پیدا کرتے جائیں۔اخیر وقت تک ایک ایسا انسان اچھا خاصہ "میڈیکل اسٹور" بن کر رہ جاتا ہے۔     اصل سچائی یہ ہیکہ دنیا کے چند لوگ آپکو ھمیشہ بیمار رکھنا چاہتے ہیں۔آپکی بیماری کی وجہ سے ان چند لوگوں کو انکے کار و بار میں قدرے بہتر منافع ہوتا ہے۔مطلب، یہ سارا کھیل صرف بزنس سے جڑا ہوتا ہے۔اب جبکہ آپ کی بیماری کچھ افراد کیلئے کار و بار بن جائے تو وہ کیوں چاہیں گے کہ آپ بیمار نہ پڑو اور اگر بیمار ہو بھی جاو تو علاج کے بعد صحت مند ہو جاو۔    اول تو یہ کہ سب سے بڑی سچائی آپ سے چھپائی گئی ہے۔ "DIABETES  اور HIGH BLOOD PRESSURE" اپنے آپ میں کوئی بیماری ہے ہی نہیں،بلکہ یہ کسی بیماری کی علامت ہے۔دوئم یہ کہ کسی ڈاکٹرس، حکیم اور وید  کو کسی بھی مرض کا "سبب" ہی نہیں معلوم ہے تو علاج کیسے کریں گے؟ یہاں تو اندھیرے میں تیر چلائی جاتی ہے۔"لگا تو تیر ، نہیں تو تکا".            نوٹ:اس پوسٹ کو پڑھنے کے بعد اپنے جذبات اور خیالات کا اظہار کرنا نہ بھولیں،مجھے اچھا لگے گا۔اور ساتھ ہی اس پوسٹ کو اپنے فرینڈ سرکل میں ضرور شیئر کریں۔    * میرے پاس ہر مرض کیلئے دوا صرف ایک ہی ہے،جو پاوڈر کی شکل میں ہے۔جس کا نام ®HEALTH IN BOX  ہے۔یہ کھانے کی دوا نہیں ہے،بلکہ کاڑھا یا جوشاندہ بناکر گرم گرم صبح اور شام خالی پیٹ پینا ہوتا ہے۔   * ایک پیکٹ ایک ماہ کیلئے (250  گرام) ہے۔اور 4-4 گرام ہی  صبح شام  استعمال کرنا ہے،یعنی کاڑھا یا جوشاندہ بناکر پینا ہے    * کسی بھی مرض کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت صرف   -/3000 روپیہ ہی ہے۔جبکہ CANCER اور TUMOUR کیلئے ایک ماہ کی دوا کی قیمت -/6000 روپیہ ہے۔    * ہندوستان یا ہندوستان کے باہر کہیں بھی بذریعہ اسپیڈ پوسٹ یا کوریئر دوا بھیجی جاتی ہے، جسکا چارج ادا کرنا ھوگا اور دوا کی کل رقم مع پوسٹیج چارج میرے بینک اکاونٹ میں پیشگی بھیجنا ضروری ہے۔ساتھ ہی اپنا پوسٹل ایڈریس پن کوڈ اور موبائل نمبرضرور ارسال کریں،تاکہ آپ کی دوا آپ تک پہنچنے میں دقت نہ ہو۔           ...........................            HAKEEM MD ABU RIZWAN                              BUMS,hons.(BU) +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND. CONTACT NO   8651274288 WHAT'S APP     9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com



Last updated date 22/09/2020

Kideny Failure

Hakim Mo Abu Rizwan Unani Remedies for Kidney Failure Treatment , Prepare the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Heart Problems permanently.


Unani medicine is an ancient system of medicine which advocates the treatment of chronic disease with drugs of natural origin


He is confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation. We have been trying to make our life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®. With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®. I will be able to stop this medicine after four months of use and will be able to live a healthy life.

Last updated date 26/08/2020


हार्ट अटैक - एक रिपोर्ट

"हार्ट अटैक- एक रिपोर्ट" हृदयाघात की दहलीज पर देश का हर चौथा युवा, प्रतिदिन हो रही 800 से ज्यादा युवाओं की मौत। करीब 20 करोड़ युवा उच्च रक्तचाप के मरीज, इनकी उम्र 30 वर्ष से कम। हर साल होने वाली कुल मौतों में 19 फीसदी हृदयरोग से संबंधित होती हैं। हृदयाघात आने के चार से पांच घंटे के भीतर उपचार मिलना बहुत जरूरी। एक अटैक आने के बाद 60 फीसदी तक प्रभावित होती है दिल की क्षमता:-


अव्यवस्थित जीवनशैली, तनाव, प्रदूषण आदि कारणों के चलते आज देश का हर चौथा युवा हृदयाघात की दहलीज पर खड़ा है। इनमें आधे से ज्यादा युवा तो अपने रोग के बारे में जानते तक नहीं। बाकी जानकर भी अंजान हो जाते हैं। यही वजह है कि मात्र 10 फीसदी युवा रोगी उपचार के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं। यह जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान (आईसीएमआर) की हाल ही में आई एक रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के प्रत्येक चार में से एक युवा को उच्च रक्तचाप की शिकायत है। यदि ज्यादा दिन तक इसका उपचार नहीं कराया जाए तो हृदय पर बुरा असर पड़ता है। क्षमता से करीब तीन गुना दबाव होने के कारण हृदय की पंपिंग प्रभावित हो जाती है और मरीज हृदयाघात की चपेट में आ जाता है। इसी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार भी देश के 100 जिलों में उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए निशुल्क जांच आदि राष्ट्रीय कार्यक्रम भी शुरू कर चुकी है। भारत में छह घंटे बाद हो पाता है हृदयाघात का उपचार:- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आए दिन ऐसे मामले पहुंच रहे हैं। एम्स के हृदय रोग विभाग के वरिष्ठ डॉ. अंबुज राय बताते हैं कि हृदयरोग और हृदयाघात के कम उम्र में काफी मामले देखने को मिल रहे हैं। इन मरीजों को बचा पाने में डॉक्टरों के आगे सबसे बड़ी चुनौती गोल्डन ऑवर है। विदेशों में हृदयाघात के करीब 2 घंटे के भीतर उपचार मिल जाता है, जबकि भारत में ये करीब 6 घंटे के बाद होता है। यही वजह है, देश में सालाना 30 लाख हृदयाघात के मामलों में से कुछ ही फीसदी को डॉक्टर बचा पाते हैं। मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित आईसीएमआर के एक और अध्ययन के अनुसार, 1990 से 2016 के बीच भारत में हृदयाघात से होने वाली मौत में कई गुना वृद्धि हुई है। इनमें 50 फीसदी से ज्यादा की मौत समय से पहले हुई है। करीब 22.9 फीसदी ग्रामीण और 32.5 फीसदी शहरी क्षेत्रों में मौत हो रही हैं। 1990 में करीब ढाई करोड़ लोग हृदय रोग ग्रस्त थे, जिनकी संख्या अब छह करोड़ से भी ज्यादा है। एम्स के अनुसार, करीब 25 फीसदी सालाना मौत 25 से 65 वर्ष की आयु के बीच हो रही हैं। बीच में ही दवा छोड़ देने से पड़ता है खतरनाक असर:- एम्स के डॉ. अंबुज राय बताते हैं कि उच्च रक्तचाप के अलावा मधुमेह, अनियंत्रित जीवनशैली, नशा आदि हृदय को बीमार कर रहा है, लेकिन ऐसे मरीज बीच में ही दवाएं छोड़ देते हैं। एम्स में हर दिन ऐसे कई मरीज आते हैं, जो पूरा उपचार नहीं लेते हैं, जबकि इन मरीजों में हृदयाघात या हृदय रोग दोहरी गति से हावी होता है। आंकड़ों पर एक नजर:-


करीब 20 करोड़ युवा उच्च रक्तचाप के मरीज, इनकी उम्र 30 वर्ष से कम। पिछले एक वर्ष में सरकार 1.5 करोड़ युवाओं में उच्च रक्तचाप, 1.3 करोड़ की हो चुकी स्क्रीनिंग। हृदयाघात आने के चार से पांच घंटे के भीतर उपचार मिलना जरूरी, अन्यथा दवाएं बेअसर। 19 फीसदी सालाना मौत भारत में हृदयरोग से जुड़ी। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के अनुसार दुनिया में 1.71 करोड़ लोगों की हो रही मौत। हर मरीज को आहार, व्यायाम और सात्विक जीवन का मूल मंत्र देता है एम्स। एक बार अटैक आने के बाद 60 फीसदी तक दिल की क्षमता हो जाती है प्रभावित। हृदयरोगी क्या करें:- भोजन के साथ अदरक, लौंग, लहसुन, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, लौंग, तेजपत्ता, सेंधा नमक का उपयोग करें। तनाव मुक्त व प्रसन्नचित्त रहें और योग, ध्यान तथा प्राणायाम करें, प्रतिदिन पैदल भी चलें। कम खाएं और एक समय में 80 ग्राम/80 एमएल केलोरिक भोजन से अधिक न लें। ट्रेडमिल पर चलें तो कोशिश करें कि आपका हार्ट रेट 80 हो। क्या न करें:- चावल, दही, कढ़ी, गोभी, मटर, मूली, उड़द की दाल आदि जैसे शरीर में कफ बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज करें। मांस, मदिरा, धूम्रपान, अत्यधिक चाय, कॉफी, फास्ट फूड, जंकफूड,  डिब्बाबंद भोजन, खोया, मलाई, मक्खन तथा अंडे की जर्दी, नारियल के तेल, आइसक्रीम आदि के प्रयोग से बचें। अधपचे भोजन से आमाशय में सड़न पैदा होती है, जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। एक चैलेंज:- जिस किसी को भी हार्ट ब्लाकेज जैसी समस्याओं या कोई भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़, मोटापा, कैंसर, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, अर्थराइटिस, सोरियासिस, आंत व जिगर संबंधित रोग, अस्थमा इत्यादि तकलीफ़ हो गई है उनके लिए मैंने काफ़ी रिसर्च करके एक युनिक यूनानी दवा तैयार की है जिसके सेवन से सिर्फ चार या छः या नौ महीने में उपरोक्त सभी प्रकार के रोग हमेशा केलिए रिवर्स हो जाती हैं। उस दवा का नाम है :- "HEALTH IN BOX ®" जिस दिन से इसे लेना शुरू करेंगे उसी दिन से आपकी तमाम अंग्रेज़ी दवाओं को छोड़ने केलिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसका कोर्स पूरा करने के पश्चात् आप बिल्कुल सेहतमंद जिंदगी गुज़ार सकते हैं, बिना किसी दवा के। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ JAMSHEDPUR JHARKHAND Contact 9334518872 & 8651274288 What's App 9334518872 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN Website https://umrc.co.in/

Last updated date 19/10/2020

HEART ATTACK AND CHOLESTEROL

पूरी दुनिया में HEART ATTACK से होने वाली कुल मौतों में सबसे ज्यादा भारतीय होते हैं|अगर 100 लोग पूरी दुनिया में HEART ATTACK से मरते हैं तो उनमें 60 लोग भारतवर्ष के होते हैं,यानि 40% पूरी दुनिया के,जबकि 60% भारतीय| आम धारणा है कि HIGH BLOOD PRESSURE के कारण STROKES & HEART ATTACK आता है,जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है|STROKES & HEART ATTACK के कारण HIGH BLOOD PRESSURE बढ़ता है|HIGH BP व DIABETES अपने आप में कोई बीमारी नहीं है।यूनानी पैथी में तो DIABETES को "उम्मुल अमराज़" (समस्त रोगों की मां,जननी) बताया गया है।ये नोट करने वाली बात है और इसे समझने की ज़रूरत है। CHOLESTEROL की दवा को 'X' CATEGORY की श्रेणी में रखा गया है|इसके प्रयोग से 11% तक मर्दों में नामर्दी की शिकायत हो जाती है,कुंवारी लड़कियों में बाँझपन और शादीशुदा स्त्रियों में BREAST & UTERINE CANCER, होता है|इसके बावजूद हमारे ALLOPATHIC DOCTOR बेधड़क CHOLESTROL कम करने की दवा देते हैं,जबकि उनको ये सब पता होता है कि कोलेस्ट्रौल हमारी ज़िंदगी है।| अब तो ये ट्रैण्ड चल पड़ा है कि कोई भी 35-40 साल का ईन्सान उनके पास ईलाज केलिए जाए तो बिना कुछ सोचे CHOLESTEROL की दवा थमा देते हैं|वो जानते हैं कि इसके सेवन से आने वाले समय में HIGH BP और DIABETES ईत्यादि के रोगी बनेंगे ही,और इस तरह वो उनका PERMANENT CUSTOMER बन जाता है|इसे DISEASE MONGERING कहा जाता है| CHOLESTEROL की दवा का नाम STATIN है,इसका INVENTOR का नाम DR ENDO था| कुछ समय बाद इसपर बैन लगा दिया गया था,क्यूंकी आगे चलकर DR ENDO के दो साथियों ने रीसर्च में पाया था कि STATIN के इस्तेमाल से CANCER की बीमारी होती है|लेकिन इन दोनों ने फिर कुछ साल बाद एक रिसर्च पेपर दुनिया के सामने लाया और उस आधार पर उनहें NOBEL PRIZE से नवाजा गया,लेकिन उस पेपर में CANCER का कोई जिक्र नहीं था| DR ENDO का स्वयं का CHOLESTEROL बढ़ा तो जो खुद इस दवा का अविष्कारक था,STATIN खाने से साफ मना कर दिया। लेकिन फिर भी हमारे DOCTOR अपने मरीज़ को धड़ल्ले से खिलाते जा रहे हैं| कमोबेश यही हाल DIABETES और HIGH BP की दवाओं का है| DIABETES HIGH BP CHOLESTEROL इत्यादि की दवायें खिला खिला कर ये हमारे ALLOPATHIC DOCTOR गरीब बेबस लाचार मरीज़ों को हमेशा केलिए बीमार बनाकर रखते हैं,और उनका आर्थिक दोहन करते हैं|DISEASE MONGERING का ये खेल PHARMACEUTICAL COMPANIES के साये तले खूब धड़ल्ले से दिन दूनी रात चोगुनी रफ्तार से फल फूल रहा है| जाग जाईए,मेरे प्यारे!अपनी गाढ़ी कमाई और कीमती जिन्दगी यूँ बरबाद मत करिए|इन अंग्रेजी दवाओं के चक्रव्यूह से निकल जाईए|इस तरह की सारी बीमारियों को बगैर दवा के बिल्कुल ठीक क्या जा सकता है|यकीन न आए तो एकबार मुझसे मिलकर अपनी तसल्ली कर लें| 1947 के पहले देश अंग्रेजी हुकूमत का गुलाम था,आजादी के बाद हम देशवासी अंग्रेजी दवा का गुलाम बन गये|


NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS). अपना "पोस्टल एड्रेस पिन कोड नं के साथ" भेजें। अगले दिन ही आपकी दवा स्पीड पोस्ट से भेज दी जाएगी। .............................. 1:- ACCOUNT DETAILS IDBI SAKCHI BRANCH , JAMSHEDPUR MOHAMMAD ABU RIZWAN A/C NO 0883104000001038 IFSC CODE IBKL0000883


2:- CANARA BANK BRANCH DR M A RIZWAN DIAGONAL ROAD BISTUPUR JAMSHEDPUR. A/C NO 0324101031398 IFSC CODE CNRB0000324 .......................... HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES

Last updated date 30/09/2020

हृदय रोग

याद रखिये कि भारत मैं सबसे ज्यादा मौतें कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।आप खुद अपने ही घर में ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे। अमेरिका की कईं बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में दिल के रोगियों (HEART PATIENTS) को अरबों की दवाई बेच रही हैं ! अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर कहेगा ANGIOPLASTY (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ। इस ऑपरेशन में डॉक्टर दिल की नली में एक SPRING डालते हैं, जिसे STENT कहते हैं। यह STENT अमेरिका में बनता है और इसका COST OF PRODUCTION सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है। इसी STENT को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है और आपको लूटा जाता है। डॉक्टरों को लाखों रूपए का COMMISSION मिलता है। इसलिए वो आपसे बार-बार कहता है कि ANGIOPLASTY करवाओ। CHOLESTEROL, BP, HEART ATTACK आने की मुख्य वजह है, ANGIOPLASTY ऑपरेशन।


यह कभी किसी का सफल नहीं होता। क्यूँकी डॉक्टर, जो SPRING दिल की नली मे डालता है वह बिलकुल PEN की SPRING की तरह होती है।कुछ ही महीनो में उस SPRING की दोनों साइडों पर आगे व पीछे BLOCKAGE (CHOLESTEROL व FAT) जमा होना शुरू हो जाता है। इसके बाद फिर आता है दूसरा HEART ATTACK ( हार्ट अटैक ) डॉक्टर कहता हें फिर से ANGIOPLASTY करवाओ। आपके लाखो रूपए लुटता है और आपकी जिंदगी इसी में निकल जाती हैं। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|


NAME OF MEDICINE:- HEALTH IN BOX® PRICE :- ₹ 3000/- for ONE MONTH (EXCEPT CANCER TUMOUR & HIV-AIDS). PRICE :- 6000/- for ONE MONTH (CANCER TUMOUR HIV-AIDS). * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है| HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 28/09/2020

हृदय रोग - एक बहुत बड़ी साज़िश !

96:- "DISEASE FREE WORLD" "हृदय रोग" - एक बहुत बड़ी साज़िश !    "इन्सान वही सुनना चाहता है जो वह सुनना पसंद करता है,बाक़ी बातों को वह अनसुना कर देता है।"    ठीक वैसे ही जैसे सैंकड़ों वर्षों तक कहा जाता था कि, " सुर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है।" जब कॉपरनिकस ने 1543 ई में  "DE REVOLUTIONIBUS ORBIUM COELESTIUM" प्रकाशित किया,और कहा कि- "पृथ्वी सुर्य के चारों ओर चक्कर काटती है।" तो उन पर चारों ओर से व्यंग बाण छोड़े गये। उनका तर्क तात्कालिक दृष्टिकोणों के आधार पर रद्द कर दिया गया। उन्हें बहुत से लोगों के कोप का शिकार होना पड़ा। उनके सारे तर्क खोखले क़रार दिए गये। बाद में उसी जानकारी को पूरी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। यह सर्वविदित हो चुका है कि पृथ्वी सुरज के चारों ओर गर्दिश करती है।    उसी तरह कुछ सच्चाई है जिसे हम स्वीकार नहीं कर पाते। उसे भी हमारे समाज (मुनाफा कमाने की इच्छा रखने वालों) द्वारा नामंज़ूर करने की कोशिश की जाती है।       हमारे देश में मरीजों का शोषण हमेशा होता रहा है। कई बार बीमारी का ऐसा रूप पेश किया जाता है कि आप डर के मारे सही निर्णय नहीं कर सकते। खास कर लाइफ स्टाइल डीजीज (LIFESTYLE DISEASE) जैसे:- मधुमेह,हृदय रोग, रक्तचाप, दमा, कॉलेस्ट्रॉल आदि का।    हमें ह्रदय रोगों की चिकित्सा में एक अहम बदलाव की ज़रुरत है,जो बिना चीर-फाड़ के की जाने वाली चिकित्सा की ओर ले जाती हो।


अगर आप अपनी रोज़ ली जाने वाली डायबिटीज की दवा, हाई बीपी या कालेस्ट्रौल कम करने की दवा लेने वाले हैं, या फिर इन्सुलिन का इंजेक्शन लेने वाले हैं। या डाक्टर के चैम्बर में हैं और ऐन्जियोग्राफी, ऐन्जियो प्लास्टी या बाईपास सर्जरी के लिए किसी फार्म पर हस्ताक्षर करने ही जा रहे हैं तो ज़रा रुकिए !    और अपना कीमती समय और व्यस्तता के बावजूद  इस लेख को शुरू से अंत तक अनमने अटपटे ढंग से ही एक बार पढ़ने के आप जरूर मनन करेंगे ।  आप उस "इंडस्ट्री" की आप के मन में बनाई गई आदर-भाव, और इज़्ज़त की तस्वीर निगाह से बिल्कुल नहीं देख पाएंगे। आपको एहसास होगा कि आप की मौजूदा सेहत एक ऐसे "मकड़ जाल" में फंस गई है जिसे "कल इन्डस्ट्री" ने सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने "मुनाफे" के लिए फैला रखा है।    ह्रदय रोग विशेषज्ञ व सर्जन, इंटरवेंशनल कार्डियो लॉजिस्ट (जो ऐन्जीयोग्राफी करके स्टेंट लगाते हैं), विगत कई वर्षों से मुनाफा कमाने के लिए ह्रदय रोगियों  का …...। ये एक ऐसा "कड़वा सच" है जिससे आप इनकार नहीं कर सकते। वो ये नहीं बताते कि "ह्रदय रोग" कैसे होता है या "ब्लाकेज" रोकने के उपाय क्या हैं, या रोग की गंभीरता को कम करने या उसको खत्म करने के लिए क्या कुछ कर सकते हैं ? उनके पास जाने वाले इन "बदनसीब रोगियों के दिल का तो ऑपरेशन ही कर देते हैं या उन्हें एंटी अन्जाइनल मेडीसीन पर डाल देते हैं। शायद यही वजह है कि "दिल की बिमारियों" और "हार्ट अटैक" से मरने वालों की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी ही हो रही है। हालांकि,आज हर शहर में जगह-जगह हार्ट हास्पिटल" भी बन रहे हैं। लेकिन हालत यह है कि आज पूरी दुनिया में ह्रदय रोग से मरने वाले ज्यादातर भारतीय ही होते हैं। अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे देश में मरीजों की चिकित्सा का संयंत्र कितना नीचे गिर गया है।      हर साल मार्च के महीने में (27 - 29 मार्च या 17 - 19 मार्च) 3 दिवसीय सम्मेलन कैलिफोर्निया शहर में आयोजित किया जाता है। इस सम्मेलन में दुनिया भर के "ह्रदय रोग विशेषज्ञ" हिस्सा लेते हैं। उनकी मौज-मस्ती,सैर सपाटा,शापिंग इत्यादि का सारा व्यय फार्मास्युटिकल कंपनियां करती है।     ज़रा सोचिए,इन ह्रदय रोग विशेषज्ञों की क्या जरूरत रह गयी?    डायबिटीज़ रोगी का भी तकरीबन यही हाल है। डायबिटीज़ के मरीज़ नियमित दवा खाने और इन्सुलिन का इंजेक्शन लेने के बावजूद ठीक नहीं हो सकते हैं।     ज़रा ग़ौर किजिए,ऐसी दवा-इलाज का क्या फ़ायदा?


 "ब्लाकेज के कारणों के बारे में मरीजों को जानकारी की कमी ही उन मुनाफाखोर के लिए वरदान साबित हुआ है।"    यही एकमात्र रहस्य है। लोग "हार्ट अटैक" या "मौत" की फ़िक्र करते हैं। आम आदमी को यह नहीं पता कि थोड़ी सी सावधानी, जानकारी उन्हें हो तो हार्ट अटैक,ब्लाकेज की वृद्धि को रोका जा सकता है, लेकिन ये बताने वाला कोई नहीं,डॉक्टर साहब भी नहीं बताते। इसके ठीक उल्टा, जब मरीज़ "हार्ट अस्पताल" में सर्जन के पास पहुंचता है तो "इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट" और "हार्ट सर्जन" (जो बाईपास सर्जरी करते हैं), उनके सामने एक ख़ौफनाक और डरावनी तस्वीर पेश करते हैं कि, "बस उन्हें एक ही मिनट में हार्ट अटैक होने वाला है। इसी ख़ौफ की वजह से कई मरीज़ और उनके रिशतेदार हार्ट सर्जरी की इजाज़त दे देते हैं।"    फिर क्या, आपकी ज़िन्दगी भर की सारी जमा पूंजी उन नाम-निहाद डाक्टरों की झोली में चली जाती है, या यूं कहिए कि, "50 साल की कमाई सिर्फ 50 दिन के भीतर आप गंवा देते हैं।"आम तौर पर "कल माफिया" इसी तरह काम करता है।    आप सभी इस बात को जानते हैं कि प्रायः हर क्लिनिक का अपना दवाखाना होता है। आप अमुक साहब का दवा अमुक औषधालय से ही खरीदने को मजबूर कर दिये जाते हैं अन्यथा आपका इलाज बंद। आखिर ऐसा क्यों? सिर्फ मुनाफे के लिए।  HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 28/09/2020

हिप्पोक्रेटिस ऐलोपैथ का जनक

  माडर्न मेडिकल साइंस, अंग्रेज़ी या ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का जनक HIPPOCRATES को माना जाता है। उसका सिद्धांत था-"जब भी शरीर में कोई बीमारी आती है तो उसका एकमात्र कारण है- रक्त का प्रदुषित होना।


यानी, आपको कोई रोग हो गया है तो रक्त प्रदुषित हो गया है, और ये तब तक ठीक नहीं होगा जब तक दुषित रक्त न निकाला जाए। HIPPOCRATES के इस सिद्धांत ने यूरोप, ग्रीक के भूतकाल में हज़ारों राजा महाराजाओं की जानें ले ली हैं। जैसे अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन, ऐशुनियस, मैगास्थनीज, क्लाउडियस इत्यादि अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति HIPPOCRATES के इस सिद्धांत के शिकार हो गए। प्राचीन काल में तो चिकित्सक इस सिद्धांत पर आधारित ईलाज करते और केवल प्रदुषित रक्त ही निकाल देना काफी समझते थे, हालांकि उस क्रिया में जान ही निकल जाती थी। बचता कोई नहीं था, क्योंकि वो तो केवल रक्त निकालना जानते थे, रक्त बनाना नहीं जानते थे।


"यानी वो तो यहीं तक सीमित थे। लेकिन बधाई के पात्र हैं इस नए दौर के ये क़ाबिल/क़ातिल डॉक्टर्स जिनकी आम धारणा यह बन गई है कि कुछ भी हो "काट" कर निकाल दो। किडनी काट कर निकाल दो, गाल ब्लैडर काटकर निकाल दो, कुछ भी हो बस काट काट कर निकाल दो। गर्भाशय, अपेंडिक्स इत्यादि काट काट कर निकाल दो। और बड़े ही विनम्र भाव से कहते हैं कि ये आपके शरीर में "फालतू" था। अगर ये अंग हमारे शरीर में फालतू था तो ईश्वर ने इसको "बनाने की इतनी बड़ी ग़लती" क्यों कर दी?

Last updated date 21/09/2020

हिप्पोक्रेटिस ऐलोपैथ का जनक

  माडर्न मेडिकल साइंस, अंग्रेज़ी या ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का जनक HIPPOCRATES को माना जाता है। उसका सिद्धांत था-"जब भी शरीर में कोई बीमारी आती है तो उसका एकमात्र कारण है- रक्त का प्रदुषित होना।


यानी, आपको कोई रोग हो गया है तो रक्त प्रदुषित हो गया है, और ये तब तक ठीक नहीं होगा जब तक दुषित रक्त न निकाला जाए। HIPPOCRATES के इस सिद्धांत ने यूरोप, ग्रीक के भूतकाल में हज़ारों राजा महाराजाओं की जानें ले ली हैं। जैसे अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन, ऐशुनियस, मैगास्थनीज, क्लाउडियस इत्यादि अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति HIPPOCRATES के इस सिद्धांत के शिकार हो गए। प्राचीन काल में तो चिकित्सक इस सिद्धांत पर आधारित ईलाज करते और केवल प्रदुषित रक्त ही निकाल देना काफी समझते थे, हालांकि उस क्रिया में जान ही निकल जाती थी। बचता कोई नहीं था, क्योंकि वो तो केवल रक्त निकालना जानते थे, रक्त बनाना नहीं जानते थे।


"यानी वो तो यहीं तक सीमित थे। लेकिन बधाई के पात्र हैं इस नए दौर के ये क़ाबिल/क़ातिल डॉक्टर्स जिनकी आम धारणा यह बन गई है कि कुछ भी हो "काट" कर निकाल दो। किडनी काट कर निकाल दो, गाल ब्लैडर काटकर निकाल दो, कुछ भी हो बस काट काट कर निकाल दो। गर्भाशय, अपेंडिक्स इत्यादि काट काट कर निकाल दो। और बड़े ही विनम्र भाव से कहते हैं कि ये आपके शरीर में "फालतू" था। अगर ये अंग हमारे शरीर में फालतू था तो ईश्वर ने इसको "बनाने की इतनी बड़ी ग़लती" क्यों कर दी?

Last updated date 21/09/2020

पशु-पक्षियों को हार्ट अटैक क्यों नहीं आते ?

किसी भी चिड़िया को डायबिटीज नहीं होती। किसी भी बन्दर को हार्ट अटैक नहीं आता । कोई भी जानवर न तो आयोडीन नमक खाता है और न ब्रश करता है, फिर भी किसी को थायराइड नहीं होता और न दांत खराब होता है । बन्दर शरीर संरचना में मनुष्य के सबसे नजदीक है, बस बंदर और आप में यही फर्क है कि बंदर के पूँछ है आप के नहीं है, बाकी सब कुछ समान है। तो फिर बंदर को कभी भी हार्ट अटैक, डायबिटीज , high BP , क्यों नहीं होता है? एक पुरानी कहावत है बंदर कभी बीमार नहीं होता और यदि बीमार होगा तो जिंदा नहीं बचेगा मर जाएगा! बंदर बीमार क्यों नहीं होता? एक बड़ा गहरा रिसर्च किया गया कि बंदर को बीमार बनाओ। तो वैज्ञानिकों ने तरह - तरह के virus और बैक्टीरिया बंदर के शरीर में डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी और माध्यम से । वैज्ञानिक परेशान, 15 साल असफल रहे , लेकिन बंदर को कुछ नहीं हुआ । आपको बता देता हूँ कि बंदर का जो RH factor है वह सबसे आदर्श है । कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है, तो वह बंदर के ही RH Factor से तुलना करता है , वह डॉक्टर आपको बताता नहीं, यह अलग बात है।


उसका कारण यह है कि, उसे कोई बीमारी आ ही नहीं सकती । उसके ब्लड में कभी कॉलेस्टेरॉल नहीं बढ़ता , कभी ट्रायग्लेसराइड नहीं बढ़ती , न ही उसे कभी डायबिटीज होती है । शुगर को कितनी भी बाहर से उसके शरीर में इंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं । तो वैज्ञानिकों को समझ में आया कि यही चक्कर है , कि बंदर सबेरे-सबेरे ही भरपेट खाता है। जो आदमी नहीं खा पाता है , इसीलिए उसको सारी बीमारियां होती है। सूर्य निकलते ही सारी चिड़िया , सारे जानवर खाना खाते हैं। जब से मनुष्य इस ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर के चक्कर में फंसा तबसे मनुष्य ज्यादा बीमार रहने लगा है । प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवाग ने अपने सभी मरींजों से कहा कि *सुबह सुबह भरपेट खाओ।*


उनके मरीज बताते है कि:- जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तबसे उन्हें डायबिटीज यानि शुगर कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घुटनों का दर्द कम हो गया , किसी का कमर का दर्द कम हो गया गैस बनाना बंद हो गई, पेट मे जलन होना बंद हो गया ,नींद अच्छी आने लगी,वगैरह-वगैरह। और यह बात बागभट्ट जी ने 3500 साल पहले कहा, कि सुबह का किया हुआ भोजन सबसे अच्छा है । सुबह सूरज निकलने से ढाई घंटे तक यानि 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भरपेट भोजन हो जाना चाहिए* । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे । यह नाश्ता का प्रचलन हिंदुस्तानी नहीं है , यह अंग्रेजो की देन है , और रात्रि का भोजन सूर्य अस्त होने से आधा घंटा पहले कर लें । तभी बीमारियों से बचेंगे । सुबह सूर्य निकलने से ढाई घंटे तक हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र होती है । हमारी जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य से है ।हमारी जठराग्नि सबसे अधिक तीव्र स्नान के बाद होती है । स्नान के बाद पित्त बढ़ता है , इसलिए सुबह स्नान करके भोजन कर लें । तथा एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच ४ से ८ घंटे का अंतराल रखें बीच में कुछ न खाएं, और दिन डूबने के बाद बिल्कुल न खायें। चूंकि यह पक्षियों और जंगली जानवरों की दिनचर्या में सम्मिलित है, अत: वे अमूमन बीमार नहीं होते। स्वस्थ रहे, स्वस्थ रखे,"यूनानी" अपनाएं, निरोग जीवन जिएं।

Last updated date 21/09/2020

इन्सान वही सुनना चाहता है जो उसको पसंद है

41:-"DISEASE FREE WORLD" "ईन्सान वही सुनना चाहता है जो उसको सुनने की चाहत होती है, बाक़ी बातों को वह अनसुना कर देता है।"ठीक वैसे ही जैसे सैंकड़ों वर्षों तक कहा जाता था कि,"सुर्य पृथ्वी चारों ओर चक्कर लगाता है। "जब कॉपरनिकस ने 1543 ई में "DE REVOLUTIONIBUS ORBIUM COELESTIUM" प्रकाशित की और कहा कि "पृथ्वी सुर्य के चारों ओर चक्कर काटती है।" तो उन पर चारों ओर से व्यंगबाण छोड़े गये।उनका तर्क साईंटीफिक और धार्मिक दृष्टिकोणों के आधार पर रद्द कर दिया गया।उन्हें बहुत से लोगों के कोप का शिकार होना पड़ा।उनके सारे तर्क खोखले क़रार दिए गये। उसी तरह जो सच्चाई मैं आपके सामने समय समय पर उजागर करने की कोशिश कर रहा हूं,उसे भी हमारे समाज (मुनाफा कमाने की इच्छा रखने वालों) द्वारा नामनज़ूर करने की कोशिश की जायेगी। हार्ट सर्जन और कार्डियोलौजिस्ट द्वारा मरीजों के शोषण का बहुत ही विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है।हमें ह्रदय रोगों की चिकित्सा में एक अहम बदलाव की ज़रुरत है,जो बिना चीर फाड़ के की जाने वाली चिकित्सा की ओर ले जाती हो। ''आपको कोई लाईलाज असाध्य बीमारी या अन्य पुरानी तकलीफ व परेशानी रहती है तो अवश्य संपर्क करें|''


"पोस्ट को ध्यान से पढें,फिर आपको मुझसे कुछ भी विचार-विमर्श या पूछताछ करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी|नीचे दिए पते पर पहुँच कर अपना मुकम्मल ईलाज करा लें|सदा सुखी व स्वस्थ्य जीवन का आनंद लेते रहें|" नीचे लिखी कुछ लाईलाज बीमारियाँ जिसको हमलोग LIFESTYLE DISEASE के नाम से जानते हैं और इस तरह की सारी बीमारियों का मुकम्मल ईलाज 100% मुमकिन है,वो भी सिर्फ यूनानी मेडिसीन "HEALTH IN BOX" से, जो मैंने बरसों की मेहनत, रिसर्च और अथक प्रयास से केवल आपके लिए एक अनमोल तोहफ़ा। क्योंकि सारी बीमारियाँ GLUCOSE और INSULIN की गड़बड़ी की वजह से ही वजूद में आती हैं,मगर शरीर के विभिन्न अंगों के हिसाब से उसका नाम दे दिया जाता है|लेकिन सारे रोग DIABETES की बदली हुई शक्ल व रुप ही हैं|GLUCOSE और INSULIN के बीच में जब तक तालमेल सही है,हम सेहतमंद और स्वस्थ्य हैं| यही सबसे बड़ी सच्चाई है जिसे सैंकडों वर्षों से हमसे छुपाई गई बड़ी-बड़ी PHARMACEUTICALS COMPANIES की ओर से,ताकि वो अपना धंधा चला सकें|हमें डराया गया है हमेशा,जिसे DISEASE MONGERING यानि भय का व्यापार कहते हैं और इसका फायदा हम सब को उल्लू बनाकर उठाया जाता रहा है ! “DIABETES HIGH BP CHOLESTEROL THYROID ANY TYPES OF VIRAL DISEASES DENGUE H1N1 SWINE FLUE CHIKANGUNIA HIV AIDS" वगैरह बीमारियों की सारी हकीकत अब दुनिया के सामने आ चुकी है,जिसको हमलोग LIFESTYLE DISEASE के नाम से जानते हैं|और मैं अपनी इस बात को किसी भी मंच पर सबके सामने साबित कर सकता हूँ कि तमाम बीमारियाँ बिल्कुल पूरी तरह हमेशा केलिए REVERSE हो जाती हैं,जिसके लिए जीवनभर ALLOPATHIC MEDICINES खिलाया जाता है यानी जीवनभर बीमार रखा जाता है|ज़रुरत है सिर्फ और सिर्फ अवाम जनता समाज,सोसाईटी और लोगों के जागने की|आगे आईए!इस अवामी-समाजी बेदारी अभियान का हिस्सा बनिए जिसे "DISEASE FREE WORLD" नाम रखा है| तमाम बीमारियाँ एक निश्चित समय में बिल्कुल REVERSE हो जाती हैं| DEAR FRIEND ! जो दवा मैं देता हूँ,जो बातें मैं बताता हूँ,वो UNANI MEDICINE सबसे अलग होता है|लोगों को बिल्कुल अजूबा लगता है,कयूँकी ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC वालों ने इतना प्रोपगैण्डा फैलाया हुआ है कि लोग इसको सुनने समझने को ही तैयार नहीं|3-4 घंटे लगते हैं ये इस साजिश यानि CONSPIRACY को समझाने बताने में|सारा कच्चा चिट्ठा खोलकर जबतक नहीं बताता तबतक लोगों को यकीन नहीं होता| DIABETES और अन्य सभी किस्म की बीमारियों यानि LIFESTYLE DISEASES की ALLOPATHIC MEDICINES पहले दिन से ही छूट जाती है,फिर हमेशा के लिए| और भविष्य में कभी उसकी ज़रुरत भी नहीं|आजतक लोगों को PHARMACEUTICALS COMPANIES ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC COMPANIES & DOCTORS HAKEEM VAIDYA बेवकूफ बनाती रही हैं जो कम्पनियों के एजेन्ट की तरह काम करते हैं|मगर अब बस ! DIABETES या किसी भी LIFESTYLE DISEASE के होने के कारण को नज़र अंदाज़ किया किया जाता रहा है ताकि ये और इस तरह की तमाम बीमारियों में जिन्दगी भर ALLOPATHIC MEDICINES खिलाते रहें PERMANENT CUSTOMER बनाकर लूटते रहें| मैं जो केवल एक MEDICINE हर बीमारी केलिए देता हूँ,उसको लेना शुरु करने के दिन से ही अपना असर दिखाता है|ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC MEDICINES छोड़ना पड़ता है हमेशा केलिए|तीन माह के बाद ये मेरी UNANI MEDICINE भी बन्द हो जाती है|ईन्शा अल्लाह | **Aapko ya aapke kisi apnon ko koi problem ho to likhe huwe ADDRESS par zarur aakar mil sakte hain.** नोट:-


इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें|मुझे अच्छा लगेगा|साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * दवा केवल पावडर की शक्ल में है|4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * भारत में कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का ईन्तजाम है|इसके लिए अलग से कोई चार्ज नहीं लिया जाता है। धन्यवाद ! * نوٹ:- * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं या मेरे Whats app पर जाएं।जहां उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे। और, देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियु- टीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं। HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 20/09/2020

Heart Problem

I Preparing the herbal medicine formulations to treat It. Our unani remedies have been successfully used in treating Heart Problems permanently. I'm confident that the medicine would treat major and minor cardiac problems without side effects or any need of operation.


I have been trying to make your life healthy with the resources set by nature, one of this Unani medicine called HEALTH IN BOX®.


With this one herbal medicine, all lifestyle diseases are always REVERSE. That is, every disease in which doctors fail and tell you to eat allopathic medicine for a lifetime, on the contrary, the first stop of allopathic medicine became part of your life for many years as soon as I started taking my medicine HEALTH IN BOX®. I will be able to stop this medicine after four months of use and will be able to live a healthy life. We will give you the Heart Problems Treatment. In Unani medicine, conditions are often treated with herbal formulas containing a variety of natural substances.

Last updated date 26/08/2020


क्यों ख़तरनाक है कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना

CHOLESTEROL एक चिपचिपा पदार्थ होता है, जो हमारे शरीर में बनता है। PLAQUE जमा होने से धमनियां संकरी हो जाती हैं।ज्यादा तेल और घी से बने आहार खाने से बढ़ता है कोलेस्ट्रॉल।   CHOLESTEROL एक चिपचिपा पदार्थ होता है, जो हमारे शरीर में बनता है। अगर शरीर में CHOLESTEROL की मात्रा बढ़ जाती है, तो एक क्रिया होती है, जिसे ATHEROSCLEROSIS कहते हैं। इससे CHOLESTEROL धमनियों में PLAQUE के रूप में जमा होने लगता है, जिससे धमनियां संकरी हो जाती हैं। धमनियों के संकरे होने के कारण कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं। खतरनाक स्तर होने पर इससे हार्ट अटैक भी हो सकता है,और व्यक्ति की जान भी जा सकती है। आइए आपको बताते हैं क्यों खतरनाक होता है शरीर में CHOLESTEROL का बढ़ना।


 CHOLESTEROLबनने के तीन प्रमुख कारण हैं:-    1) अधिक तेल युक्त आहार लेना मसलन फ्रेंच फ्राइज़, फ्राइड चिकन आदि।     2) POLY UNSATURATED FATTY ACID का अधिकता में सेवन करना जो कि वानस्पतिक तेल में मिलता है।     3)  इसके अलावा सिगरेट पीने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।    धमनियां हो जाती हैं सख्त:-हमारा BLOOD धमनियों (रक्तवाहिकाओं) में बहता है,और इसी के सहारे शरीर के सभी अंगों तक पहुंचता है। धमनियों के अंदरूनी हिस्से में लाइनिंग होती है, जिसे ENDOTHELIUM कहा जाता है, जो नाजुक और नर्म होती है। लेकिन CHOLESTEROL के कारण यह सख्त होने लगती हैं। सिर्फ CHOLESTEROL ही नहीं, HIGH BP या चोट लगने के कारण भी धमनियों पर बुरा असर पड़ता है।    हार्ट अटैक का खतरा:- CHOLESTEROL बढ़ने के कारण धमनियों में जमा होने वाले PLAQUE के कारण सबसे ज्यादा खतरा HEART और BRAIN को होता है। CHOLESTEROL के कारण इन दो महत्वपूर्ण अंगों तक ठीक से खून नहीं पहुंच पाता है, जिससे व्यक्ति के लिए जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है। CHOLESTEROL के बढ़ने से मुख्य रूप से HEART की बीमारियों और STROKE का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर आपको सीने में दर्द महसूस हो, बेचैनी हो या दिल बहुत जोर-जोर से धड़कने लगे, तो ये CHOLESTEROL के बढ़े होने के संकेत हो सकते हैं।    स्ट्रोक हो सकता है:-धमनियों में PLAQUE के कारण BRAIN तक OXYGEN पहुंचने और BLOOD CIRCULATION में दिक्कतें आती हैं। नतीजतन STROKE होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। BRAIN को प्रभावित करने वाला STROKE रक्त वाहिकाओं में रुकावट या रक्त वाहिका फट जाने की वजह से हो सकता है। HIGH CHOLESTEROL के  कारण ESCHAEMIC STROKE के जोखिम बढ़ सकते हैं। इसलिए सुनिश्चित करें कि धमनियों में रक्त के CLOTTING न जम सकें। इसे नजरअंदाज करना आपके लिए जानलेवा साबित हो सकता हैI इसलिए ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सक से जांच करवाएं और अपना CHOLESTEROL मैनेज करें। पाचनतंत्र भी होता है प्रभावित।


  कोलेस्ट्रोल पित्त में असंतुलन बना देता है जिससे कि पित्त में पथरी होने का खतरा बढ़ जाता है। नेशनल डाइजेस्टिव डीजीज इन्फोर्मेशन क्लियरिंगहाउस के मुताबिक 80 फीसदी गैलस्टोन कोलेस्ट्रोल स्टोन ही होते हैं।   पैरों की समस्याएं:-यदि कोलेस्ट्रोल बढ़ जाए तो पैरों में संवेदनशून्यता आ सकती है। जिससे हमें सहज चलने फिरने में दिक्कतें महससू होने लगती हैं। कोलेस्ट्रॉल शरीर में रक्त के प्रवाह में बाधा बनता है इसलिए कोलेस्ट्रॉल बढ़ने पर अक्सर शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन युक्त खून नहीं पहुंच पाता है, जिससे उस अंग में झुनझुनी या सिहरन जैसा महसूस होने लगता है। अक्सर हाथ-पैर को दबाकर लेटने या बैठने से भी नसों में रक्त का प्रवाह जब कम हो जाता है, तब भी आप ऐसी झुनझुनी या सिहरन महसूस कर सकते हैं मगर यदि ये बिना कारण हो, तो समझें आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ गया है। अपना कोलेस्ट्रॉल लेवल तुरंत चेक करवाएं। कोलेस्ट्रॉल आपके रक्त में पाया जाने वाला एक मोम जैसा पदार्थ है। स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण के लिए कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है! उच्च स्तर के कोलेस्ट्रॉल से आपके हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। कोलेस्ट्रॉल आपके रक्त में पाया जाने वाला एक मोम जैसा पदार्थ है। आपके शरीर को स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण के लिए कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है, लेकिन उच्च स्तर के कोलेस्ट्रॉल से आपके हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के साथ, आप अपने रक्त वाहिकाओं में वसायुक्त तह (deposits) विकसित कर सकते हैं। आखिरकार, ये तह बढ़ते हैं, जिससे आपकी धमनियों में पर्याप्त रक्त का प्रवाह मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी वे तह अचानक टूट सकते हैं और एक थक्का बना सकते हैं जो दिल का दौरा या स्ट्रोक का कारण बनता है।    उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्‍या विरासत में मिल सकता है, लेकिन यह अक्सर अस्वास्थ्यकर जीवन शैली विकल्पों का परिणाम होता है, जो इसे रोकने और इलाज योग्य बनाता है। एक स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और कभी-कभी दवा उच्च कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद कर सकती है। उच्‍च कोलेस्‍ट्रॉल की समस्‍या के कारण कई हैं, जैसे: खराब खानपान, मोटापा, एक्‍सरसाइज की कमी, स्‍मोकिंग, डायबिटीज और उम्र के साथ यह समस्‍या बढ़ती है।  कोलेस्‍ट्रॉल के प्रकार :- कोलेस्ट्रॉल आपके रक्त के माध्यम से, प्रोटीन से जुड़ा होता है। प्रोटीन और कोलेस्ट्रॉल के इस संयोजन को लिपोप्रोटीन कहा जाता है। कोलेस्ट्रॉल के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो लिपोप्रोटीन के आधार पर होता है।    कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल): एलडीएल, या "खराब" कोलेस्ट्रॉल, आपके पूरे शरीर में कोलेस्ट्रॉल के कणों को स्थानांतरित करता है। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल आपकी धमनियों की दीवारों में बनाता है, जिससे वे कठोर और संकीर्ण हो जाते हैं। उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल): एचडीएल, या "अच्छा" कोलेस्ट्रॉल, अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल उठाता है और इसे आपके लिवर में वापस ले जाता है। उच्‍च कोलेस्‍ट्रॉल से होने वाली समस्‍याएं:- उच्च कोलेस्ट्रॉल आपके धमनियों (एथेरोस्क्लेरोसिस) की दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल और अन्य तह (deposits) के खतरनाक संचय का कारण बन सकता है। ये तह आपकी धमनियों के माध्यम से रक्त के प्रवाह को कम कर सकते हैं, जिससे कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं,  जैसे,छाती में दर्द। यदि रक्त (कोरोनरी धमनियों) से आपके दिल की आपूर्ति करने वाली धमनियां प्रभावित होती हैं, तो आपको सीने में दर्द (एनजाइना) और कोरोनरी धमनी की बीमारी के अन्य लक्षण हो सकते हैं।   हृदयाघात्:-- अगर प्‍लेक फट जाता है तो उसमें खून का थक्‍का जम जाता है जिससे रक्‍त का बहाव कम हो जाता है। यदि आपके दिल के हिस्से में रक्त प्रवाह रुक जाता है, तो आपको दिल का दौरा पड़ सकता है।    स्ट्रोक:-यह दिल के दौरे के समान होता है, स्ट्रोक तब होता है जब रक्त का थक्का आपके मस्तिष्क के हिस्से में रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध करता है।

Last updated date 30/09/2020

इंसान वही सुनना चाहता है जो उसको पसंद है

 "ईन्सान वही सुनना चाहता है जो उसको सुनने की चाहत होती है, बाक़ी बातों को वह अनसुना कर देता है।"ठीक वैसे ही जैसे सैंकड़ों वर्षों तक कहा जाता था कि,"सुर्य पृथ्वी चारों ओर चक्कर लगाता है। "जब कॉपरनिकस ने 1543 ई में "DE REVOLUTIONIBUS ORBIUM COELESTIUM" प्रकाशित की और कहा कि "पृथ्वी सुर्य के चारों ओर चक्कर काटती है।" तो उन पर चारों ओर से व्यंगबाण छोड़े गये।उनका तर्क साईंटीफिक और धार्मिक दृष्टिकोणों के आधार पर रद्द कर दिया गया।उन्हें बहुत से लोगों के कोप का शिकार होना पड़ा।उनके सारे तर्क खोखले क़रार दिए गये। उसी तरह जो सच्चाई मैं आपके सामने समय समय पर उजागर करने की कोशिश कर रहा हूं,उसे भी हमारे समाज (मुनाफा कमाने की इच्छा रखने वालों) द्वारा नामनज़ूर करने की कोशिश की जायेगी। हार्ट सर्जन और कार्डियोलौजिस्ट द्वारा मरीजों के शोषण का बहुत ही विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है।हमें ह्रदय रोगों की चिकित्सा में एक अहम बदलाव की ज़रुरत है,जो बिना चीर फाड़ के की जाने वाली चिकित्सा की ओर ले जाती हो। ''आपको कोई लाईलाज असाध्य बीमारी या अन्य पुरानी तकलीफ व परेशानी रहती है तो अवश्य संपर्क करें|''


"पोस्ट को ध्यान से पढें,फिर आपको मुझसे कुछ भी विचार-विमर्श या पूछताछ करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी|नीचे दिए पते पर पहुँच कर अपना मुकम्मल ईलाज करा लें|सदा सुखी व स्वस्थ्य जीवन का आनंद लेते रहें|" नीचे लिखी कुछ लाईलाज बीमारियाँ जिसको हमलोग LIFESTYLE DISEASE के नाम से जानते हैं और इस तरह की सारी बीमारियों का मुकम्मल ईलाज 100% मुमकिन है,वो भी सिर्फ यूनानी मेडिसीन "HEALTH IN BOX" से, जो मैंने बरसों की मेहनत, रिसर्च और अथक प्रयास से केवल आपके लिए एक अनमोल तोहफ़ा। क्योंकि सारी बीमारियाँ GLUCOSE और INSULIN की गड़बड़ी की वजह से ही वजूद में आती हैं,मगर शरीर के विभिन्न अंगों के हिसाब से उसका नाम दे दिया जाता है|लेकिन सारे रोग DIABETES की बदली हुई शक्ल व रुप ही हैं|GLUCOSE और INSULIN के बीच में जब तक तालमेल सही है,हम सेहतमंद और स्वस्थ्य हैं| यही सबसे बड़ी सच्चाई है जिसे सैंकडों वर्षों से हमसे छुपाई गई बड़ी-बड़ी PHARMACEUTICALS COMPANIES की ओर से,ताकि वो अपना धंधा चला सकें|हमें डराया गया है हमेशा,जिसे DISEASE MONGERING यानि भय का व्यापार कहते हैं और इसका फायदा हम सब को उल्लू बनाकर उठाया जाता रहा है ! “DIABETES HIGH BP CHOLESTEROL THYROID ANY TYPES OF VIRAL DISEASES DENGUE H1N1 SWINE FLUE CHIKANGUNIA HIV AIDS" वगैरह बीमारियों की सारी हकीकत अब दुनिया के सामने आ चुकी है,जिसको हमलोग LIFESTYLE DISEASE के नाम से जानते हैं|और मैं अपनी इस बात को किसी भी मंच पर सबके सामने साबित कर सकता हूँ कि तमाम बीमारियाँ बिल्कुल पूरी तरह हमेशा केलिए REVERSE हो जाती हैं,जिसके लिए जीवनभर ALLOPATHIC MEDICINES खिलाया जाता है यानी जीवनभर बीमार रखा जाता है|ज़रुरत है सिर्फ और सिर्फ अवाम जनता समाज,सोसाईटी और लोगों के जागने की|आगे आईए!इस अवामी-समाजी बेदारी अभियान का हिस्सा बनिए जिसे "DISEASE FREE WORLD" नाम रखा है| तमाम बीमारियाँ एक निश्चित समय में बिल्कुल REVERSE हो जाती हैं| DEAR FRIEND ! जो दवा मैं देता हूँ,जो बातें मैं बताता हूँ,वो UNANI MEDICINE सबसे अलग होता है|लोगों को बिल्कुल अजूबा लगता है,कयूँकी ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC वालों ने इतना प्रोपगैण्डा फैलाया हुआ है कि लोग इसको सुनने समझने को ही तैयार नहीं|3-4 घंटे लगते हैं ये इस साजिश यानि CONSPIRACY को समझाने बताने में|सारा कच्चा चिट्ठा खोलकर जबतक नहीं बताता तबतक लोगों को यकीन नहीं होता| DIABETES और अन्य सभी किस्म की बीमारियों यानि LIFESTYLE DISEASES की ALLOPATHIC MEDICINES पहले दिन से ही छूट जाती है,फिर हमेशा के लिए| और भविष्य में कभी उसकी ज़रुरत भी नहीं|आजतक लोगों को PHARMACEUTICALS COMPANIES ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC COMPANIES & DOCTORS HAKEEM VAIDYA बेवकूफ बनाती रही हैं जो कम्पनियों के एजेन्ट की तरह काम करते हैं|मगर अब बस ! DIABETES या किसी भी LIFESTYLE DISEASE के होने के कारण को नज़र अंदाज़ किया किया जाता रहा है ताकि ये और इस तरह की तमाम बीमारियों में जिन्दगी भर ALLOPATHIC MEDICINES खिलाते रहें PERMANENT CUSTOMER बनाकर लूटते रहें| मैं जो केवल एक MEDICINE हर बीमारी केलिए देता हूँ,उसको लेना शुरु करने के दिन से ही अपना असर दिखाता है|


ALLOPATHIC UNANI AYURVEDIC & HOMEOPATHIC MEDICINES छोड़ना पड़ता है हमेशा केलिए|तीन माह के बाद ये मेरी UNANI MEDICINE भी बन्द हो जाती है|ईन्शा अल्लाह | **Aapko ya aapke kisi apnon ko koi problem ho to likhe huwe ADDRESS par zarur aakar mil sakte hain.** नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें|मुझे अच्छा लगेगा|साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * दवा केवल पावडर की शक्ल में है|4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * भारत में कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का ईन्तजाम है|इसके लिए अलग से कोई चार्ज नहीं लिया जाता है। धन्यवाद ! * نوٹ:- * इसी तरह के पोस्ट जो मोडर्न साइंस की पोल खोलने वाली होंगी,मेरे फेसबुक टाईमलाईन पर जाएं या मेरे Whats app पर जाएं।जहां उर्दू,हिन्दी और अंग्रेजी में ढेर सारे पोस्ट पढ़कर सच्चाई से रूबरू होंगे। और, देखेंगे कि कैसे ये फार्मासियु- टीकल कंपनियां बेवकूफ बनाकर जनता को कंगाल बना रही हैं।

Last updated date 30/09/2020

रिफाइंड ऑयल से हजारों गुना ज़्यादा अच्छा नाली का बदबूदार पानी

सबसे ज़्यादा मौतें देने वाला भारत में कोई है तो वो REFINED OIL है।केरल आयुर्वेदिक युनिवर्सिटी आफ रिसर्च सेन्टर के अनुसार, हर वर्ष 20 लाख लोगों की मौतों का कारण बन गया है-"रिफाइंड तेल"। रिफाइंड तेल से DNA डैमेज, RNA नष्ट, , हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, ब्रेन डैमेज, लकवा शुगर (डाईबिटीज), ब्लड प्रेशर, नपुंसकता कैंसर, हड्डियों का कमजोर हो जाना, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द, किडनी डैमेज, लीवर खराब, कोलेस्ट्रोल, आंखों रोशनी कम होना, प्रदर रोग, बांझपन, पाइल्स, त्वचा रोग आदि हजारों रोगों का प्रमुख कारण है। रिफाइंड तेल बनता कैसे हैं? बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है, इस विधि में जो भी IMPURITIES तेल में आती है, उन्हें साफ करने और तेल को स्वाद, गंध व रंगहीन करने के लिए रिफाइंड किया जाता है WASHING:- वाशिंग करने के लिए पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किए जाते हैं, ताकि IMPURITIES बाहर हो जाएं |इस प्रक्रिया में तारकोल की तरह गाढ़ा वेस्टेज (WASTAGE) निकलता है जो कि टायर बनाने में काम आता है। यह तेल ऐसिड के कारण ज़हर बन गया है। NEUTRALISATION:- तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है।


जिससे इस तेल के सभी पौस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं। BLEACHING:-इस विधी में P O P (प्लास्टर ऑफ पेरिस, जो मकान बनाने में काम आता है) का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130 °F पर गर्म करके साफ किया जाता है! HYDROGENATION:- एक टैंक में तेल के साथ निकोल और हाइड्रोजन को मिक्स करके हिलाया जाता है। इन सारी प्रक्रियाओं में तेल को 7-8 बार गर्म व ठंडा किया जाता है, जिससे तेल में "पालीमर्स" बन जाते हैं, उससे "पाचन प्रणाली" को खतरा होता है, और भोजन न पचने से सारी बिमारियां होती हैं। NICKEL:-एक प्रकार का CATALYST METAL (लोहा होता है) जो हमारे शरीर के RESPIRATORY SYSTEM, LIVER, SKIN, METABOLISM, DNA, RNA को भंयकर नुकसान पहुंचाता है। रिफाइंड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं और ऐसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुंचाता है। गंदी नाली का पानी पी लें, उससे कुछ भी नहीं होगा, क्योंकि हमारे शरीर में प्रति रोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लड़कर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाइंड तेल खाने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होना निश्चित।हमारा शरीर करोड़ों CELLS (कोशिकाओं) से मिलकर बना है, शरीर को जीवित रखने के लिए पुराने CELLS नऐ CELLS से REPLACE होते रहते हैं, नये CELLS (कोशिकाओं) बनाने के लिए शरीर खुन का उपयोग करता है, यदि हम रिफाइंड तेल का उपयोग करते हैं तो खुन मे TOXINS की मात्रा बढ़ जाती है, और शरीर को नए सेल बनाने में रुकावटें आती हैं, तो कई प्रकार की बीमारियां जैसे- CANCER, DIABETES, HEART ATTACK, KIDNEY PROBLEMS, ALLERGIES, STOMACH ULCER, PREMATURE AGING, IMPOTENCE, ARTHRITIS, DEPRESSION, HIGH BLOOD PRESSURE आदि हजारों बिमारियां होगी। रिफाइंड तेल बनाने की प्रक्रिया से तेल बहुत ही मंहगा हो जाता है, तो इसमे "पाम आयल" मिलाया जाता है! (पाम आयल स्वयं एक धीमी ज़हर है) सरकार का आदेश:-हमारे देश की पॉलिसी अमरिकी सरकार के इशारे पर चलती है। अमरीका का पाम आयल खपाने के लिए, "मनमोहन सरकार" ने एक अध्यादेश लागू किया कि प्रत्येक तेल कंपनियों को 40% खाद्य तेलों में पाम आयल मिलाना अनिवार्य है, नहीं तो लाईसेंस रद्द कर दिया जाएगा।इससे अमेरिका को बहुत फायदा हुआ।पाम आयल के कारण लोग अधिक बिमार पड़ने लगे, हार्ट अटैक की संभावना 99%बढ गई, तो दवाईयां भी अमेरिका की आने लगी, हार्ट मे लगने वाली स्प्रिंग(पेन की स्प्रिंग से भी छोटा सा छल्ला) दो लाख रुपये की बिकती हैं,यानी कि अमेरिका के दोनो हाथों में लड्डू, "पाम आयल" भी उनका और "दवाइयां" भी उनकी।


अब तो कई नामी कंपनियों ने "पाम आयल" से भी सस्ता,गाड़ी में से निकाला काला आयल (जिसे आप गाडी सर्विस करने वाले के पास ही छोड आते हैं),वह भी रिफाईन्ड कर के खाद्य तेल में मिलाया जाता है, अनेक बार अखबारों में पकड़े जाने की खबरें आती है। सोयाबीन एक दलहन हैं, तिलहन नहीं। दलहन में- मुंग, मोठ, चना, सोयाबीन, व सभी प्रकार की दालें आदि होती है। तिलहन में- तिल, सरसों, मुमफली, नारियल, बादाम आदि आती है। अतः सोयाबीन तेल,प्योर पाम आयल ही होता है। पाम आयल को रिफाईनड बनाने के लिए सोयाबीन का उपयोग किया जाता है। सोयाबीन की एक खासियत होती है कि यह प्रत्येक तरल पदार्थों को सोख लेता है, पाम आयल एक दम काला और गाढ़ा होता है।उसमें साबुत सोयाबीन डाल दिया जाता है जिससे सोयाबीन बीज उस पाम आयल की चिकनाई को सोख लेता है,और फिर सोयाबीन की पिसाई होती है,जिससे चिकना पदार्थ तेल" तथा "आटा" अलग अलग हो जाता है, आटा से सोया मंगोड़ी बनाई जाती है! आप चाहें तो किसी भी तेल निकालने वाले के पास सोयाबीन ले जा कर, उससे तेल निकालने के लिए कहें। मेहनताना एक लाख रुपये भी देने पर तेल नही निकालेगा, क्योंकि सोयाबीन का आटा बनता है, तेल नही! सूरजमुखी, चावल की भूसी (चारा) आदि के तेल रिफाईन्ड के बिना नहीं निकाला जा सकता है, अतः ये जहरीले ही है! "फॉर्च्यून" अर्थात आप के और आप के परिवार के "फ्यूचर" का अंत करने वाला है। "सफोला",अर्थात सांप के बच्चे को "सफोला" कहते हैं। 5 वर्ष खाने के बाद शरीर जहरीला 10 वर्ष के बाद "सफोला" (सांप का बच्चा अब "सांप" बन गया है. *15 साल बाद मृत्यु,यानी कि "सफोला" अब "अजगर" बन गया है और वह अब आप को निगल जायगा। गलत खान पान के कारण, अकाल मृत्यु हो जाती है।तन मन धन और आत्मा की तृप्ति के लिए सिर्फ कच्ची घाणी का तेल, तिल, सरसों, मुंगफली, नारियल, बादाम आदि का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए।पौस्टीक और शरीर को निरोग रखने वाला सिर्फ "कच्ची घाणी" का निकाला हुआ तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए! आज कल सभी कम्पनियां अपने प्रोडक्ट पर कच्ची घाणी का तेल ही लिखती हैं, जो बिल्कुल झूठ है, सरासर धोखा है।कच्ची घाणी का मतलब है लकड़ी की बनी हुई, ओखली और लकडी का ही मुसल होना चाहिए।लोहे का घर्षण नहीं होना चाहिए।इसे कहते हैं-"कच्ची घाणी", जिसको बैल के द्वारा चलाया जाता हो। आजकल बैल की जगह मोटर लगा दी गई है! लेकिन मोटर भी बैल की गती जितनी ही चले! लोहे की बड़ी बड़ी मशिनें जिनका बेलन लाखों की गती से चलता है जिससे तेल के सभी पौस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे लिखते हैं- "कच्ची घाणी"। नोट:- इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें | * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है| * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है। * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR के लिए) है। * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी स्पीड पोस्ट या कूरियर के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|

Last updated date 22/09/2020

कोलेस्ट्रॉल - मौत का सबसे बड़ा कारण ?

लाख टके का सवाल यह है कि जब तक किसी "डॉक्टर" , "हकीम" या "वैध" को यही नहीं मालूम कि कोई बीमारी कैसे होती है या किस कारण से होती है , तो कोई "डॉक्टर" , "हकीम" या "वैध" किसी मामूली से मामूली या बड़ी से बड़ी बीमारी का ईलाज कैसे कर पाएगा?ऐसे में वो ईलाज तो करेगा ही , मगर सिर्फ अंधेरे में तीर चलाएगा, "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का"। चिंतन का समय है.........कि...........जब सभी बीमारियों की वजह GLUCOSE और INSULIN का आपसी तालमेल गड़बड़ होना ही है।तो फिर क्या वजह है कि सभी बीमारियों केलिए "एक ही दवा" काफ़ी क्यों नहीं? इस MECHANISM को समझना जरूरी है। मेरा मतलब है कि GLUCOSE और INSULIN के बीच जो असामान्य स्थिति हमारे शरीर के भीतर उत्पन्न हो चुकी है, जिसके कारण कोई "रोग" सामने आया है।"रोग"के पीछे न पड़कर, "रोग" के "कारण" यानी "जड़" को दुरुस्त कर देने भर से ही कोई भी ईन्सान अपनी बड़ी से बड़ी बीमारी से कुछ दिनों या महीनों में छुटकारा पा सकता है। याद रखिये कि भारत मैं सबसे ज्यादा मौतें कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।


आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे। अमेरिका की कईं बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में दिल के रोगियों (HEART PATIENTS) को अरबों की दवाई बेच रही हैं !लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर कहेगा ANGIOPLASTY (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ।इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में एक SPRING डालते हैं,जिसे STENT कहते हैं।यह STENT अमेरिका में बनता है और इसका COST OF PRODUCTION सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है।इसी STENT को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है और आपको लूटा जाता है।डॉक्टरों को लाखों रूपए का COMMISSION मिलता है।


इसलिए वो आपसे बार-बार कहता है कि ANGIOPLASTY करवाओ। CHOLESTEROL, BP, HEART ATTACK आने की मुख्य वजह है, ANGIOPLASTY ऑपरेशन।यह कभी किसी का सफल नहीं होता।क्यूँकी डॉक्टर, जो SPRING दिल की नली मे डालता है वह बिलकुल PEN की SPRING की तरह होती है।कुछ ही महीनो में उस SPRING की दोनों साइडों पर आगे व पीछे BLOCKAGE (CHOLESTEROL व FAT) जमा होना शुरू हो जाता है।इसके बाद फिर आता है दूसरा HEART ATTACK ( हार्ट अटैक )डॉक्टर कहता हें फिर से ANGIOPLASTY करवाओ।आपके लाखो रूपए लुटता है और आपकी जिंदगी इसी में निकल जाती हैं।

Last updated date 21/09/2020

High Cholesterol

Heart attacks and strokes are common outcomes of ASCVD caused by cholesterol build-up in the arteries.


Its risk factors include a person’s age, sex, race, smoking and diabetes status, blood pressure, and blood cholesterol levels


. We felt this focus on atherosclerotic risk was the best way to determine who would benefit from cholesterol lowering therapy, be it lifestyle changes and/or statin use, because it focused on the whole person – as opposed to one piece of the puzzle. In other words, whether your cholesterol is too high for you depends on your other risk factors. This 360° view is intended to help people prepare for a heart healthy life, which includes controlling blood cholesterol (a quick look at Life’s Simple Seven provides the other six guidelines that aid a healthy and happy heart.

Last updated date 26/08/2020


HEALTH IN BOX

*यूनानी मेडीसींस रिसर्च सेंटर* UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE *(An ISO 1900:2015 certified company)* *UDYAM-BR-03-0004688* *क्या आप एक अच्छे रोज़गार की तलाश में हैं?* इलाज करने के इच्छुक लोगों के लिए खुशखबरी! यूनानी चिकित्सा पद्धति से *इलाज करना बहुत ही आसान* है, बस आपको एक वाक्य में बताऊं तो कह सकते हैं कि, " *अपने शरीर को जान लीजिए और भोजन को पहचान लीजिए।"* अगर आप उपरोक्त वाक्य समझ लेंगे तो मैं कहूंगा कि आप अपने शरीर के 85% रोगों का इलाज आप स्वयं कर सकते हैं, साथ ही दूसरे लोगों का भी सफलतापूर्वक इलाज कर सकेंगे। प्रिय मित्रो ! *दस से पंद्रह दिन में ही एक चिकित्सक बन जाएंगे।* इसके लिए मैं *आपको सहयोग दूंगा।* बाक़ी के 15% जटिल रोग में बहुत ही कम बीमारियां आती हैं। आपको अपने शरीर के बारे में जान लेना जरूरी है,बस। *HEALTH IN BOX ™* एक यूनीक यूनानी औषधि है। यह दवा जीवन शैली की सभी बीमारियों को ठीक कर सकती हैं। जैसे: - मधुमेह, कैंसर, मोटापा, फाइब्रॉएड, सिस्ट, ट्यूमर, हार्ट ब्लॉकेज, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, किडनी फेल्योर, डायलिसिस, लीवर और पेट की समस्याएं, उच्च रक्त चाप, पुरुष और महिला यौन समस्या, माइग्रेन, हड्डियों और जोड़ों की समस्याएं एवं अन्य सभी प्रकार के जटिल व लाइलाज रोग। इस सबका एक ही इलाज है। बीमारी जो भी हो, दवा सिर्फ *HEALTH IN BOX ™* इस दवा से कोई भी आदमी किसी भी मरीज़ का इलाज कर सकता है। कुछ मत करो, बस इस मरीज को यह दवा दे दो। मज़े की बात यह है कि आप चाहें तो इस दवा से किसी भी मरीज़ का इलाज कर सकते हैं। अगर आप तैयार हैं तो हमसे संपर्क करें। मैं आपको बताना चाहता हूं कि मुझे उन लोगों का समर्थन और सहायता करने के लिए एक मंच बनाने की आवश्यकता महसूस हुई जो हकीम, डॉक्टर, वैध या हिकमत की लाइन से देश और राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं, वैसे लाइलाज रोगियों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने की जिज्ञासा रखते हुए सेवा करना चाहते हैं। मेरी अनूठी यूनानी दवा *HEALTH IN BOX ™* उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का प्रयास करें। इस दवा से अपने आसपास के बीमार लोगों का इलाज करें और अपनी आमदनी बढ़ाएं। आवश्यक जानकारी के लिए मुझसे संपर्क करें। आपको हर संभव मदद दी जाएगी। हकीम मो अबू रिज़वान बीयूएमएस आनर्स (बीयू) यूनानी चिकित्सक स्पेशलिस्ट इन लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ 9334518872 8651274288 यूट्यूब HAKEEM MD ABU RIZWAN वेबसाइट https://umrc.co.in ईमेल umrcjamshedpur1966@gmail.com



Last updated date 15/05/2022

अगर आप बरसों से......

अगर आप बरसों से कैंसर,  डायबिटीज, हाई बीपी, हार्ट, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिस आर्डर, इत्यादि लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पिड़ित हैं और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है।    केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक यूनानी दवा "HEALTH IN BOX" का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाएगी।फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।   * अंग्रेज़ी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल करवाकर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है।


डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है।    * बी पी लो करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है, और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है।    * कोलेस्ट्रॉल कम करने की दव STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है।     सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है।    फैसला आपको ही करना है, और आज ही। एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/


Last updated date 23/09/2020

रोग अनेक - समाधान एक

 मेरा लिखा हुआ पोस्ट ध्यान से पढ़ें, मेरा वीडियो देखने के लिए YOUTUBE CHANNEL पर जाएं, टाइप करें:- #HAKEEMMDABURIZWAN और देखें , जिसमें इलाज की बिल्कुल ऐसी नयी-नयी चौंकाने वाली जानकारी प्राप्त करेंगे, जो कभी कोई बड़े से बड़ा डॉक्टर,हकीम वैध आपको नहीं बताएगा।


इलाज कोई खेल तमाशा नहीं है। बीमारी चाहे जो भी हो, सभी रोगों का कारण एक ही है-GLUCOSE & INSULIN का IMBALANCE होना। इसे REBALANCE कर देने से ही कोई भी बीमारी हमेशा के लिए REVERSE हो जाती है।उस METHOD को #UNIVERSALLAWOFREBALANCING कहते हैं।जो केवल एक ही यूनानी दवा से किया जाता है। मैं ने ही यह दवा बनाई है। आप किसी भी प्रकार की बीमारियों का इलाज इस एक यूनानी दवा से करेंगे तो आप की बरसों से चलती आ रही अंग्रेजी दवाएं भी बन्द हो जाएंगी और बीमारी भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। किसी भी वायरल डीज़ीज़ या लाइफस्टाइल डीज़ीज़ का ईलाज हमारी बनाई एक दवा- #HEALTHINBOX® से शत् प्रतिशत मुमकिन है।


जो देसी व यूनानी जड़ी-बूटियों बनाया गया है।हर ऐसी बीमारी जैसे मोटापा, डायबिटीज़, हाई बीपी, कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, हृदय रोग, आर्थराइटिस, दमा, माइग्रेन, कैंसर, चर्म रोग, अमाशय और लीवर प्राब्लम, गठिया वगैरह के बारे में आपक डॉक्टर आपको ठप्पा लगा दें कि ज़िंदगी भर दवा खाते रहना होगा। तो वहीं पर इसके उल्ट मैं कहता हूं कि #HEALTHINBOX कम से कम चार महीने इस्तेमाल कर लें और जीवन भर केलिए बीमारी और ऐलोपैथिक दवा से दूर हो जाएं। एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/

Last updated date 21/09/2020

बीमारियां और उनका आसान इलाज

अगर आप नीचे लिखी बीमारियों में से किसी भी बीमारी से पीड़ीत हैं तो देर न करें बल्कि जल्द से जल्द मिलें और स्वस्थ हो जायें,यही मेरी कामना है| ये ख़बर अपने सभी जानने वालों,मिलने जुलने वालों,दोस्तों,रिश्तेदारों को बतादें| जन-जन तक ये सन्देश पहुँचा दें | "वादा कर लीजिए अपने आप से .. एक भी ईन्सान अब इस ALLOPATHIC MEDICINES से,और ALLOPATHIC DOCTORS के द्वारा नीचे लिखी बीमारियों से असमय घुट-घुट कर,तिल-तिल कर नहीं मरेगा|" TOTALLY REVERSE AND CURED PERMANENTLY FROM YOUR DISEASES FROM ONLY SINGLE "UNANI MEDICINE" MADE BY MYSELF. THOUSANDS OF MY PATIENTS WHO ARE TAKING THIS MEDICINE WITH SOME SPECIAL PRECAUTIONS FOR FEW MONTHS, AND THEY ARE TOTALLY FORGOTTEN HIS ALLOPATHIC MEDICINES AND NOW THEY ALIVE WITHOUT ANY MEDICINES. THAT MEANS THEY ARE FREE FROM HIS SICKNESS, ILLNESS. WHEN THEY ARE FREE FROM 3 D's :- DOCTOR'S, DRUG'S and DISEASES. THEN YOU CAN ALSO USE THE SAME AND STAY A HEALTHY LIFE.If you are chronic and since long long period a patient of the following diseases such as : DIABETES, HIGH BP, THYROID, HIGH CHOLESTEROL, ADVANCE STAGE CANCER, HEART PROBLEMS, LIVER DISORDER, KIDNEY DISEASE, DIALYSIS, ABDOMINAL DISORDER, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, MIGRAINE, MENTAL DISORDER, PARKINSON, ALZHYMER,OBESITY, SKIN DISORDERS, PSORIASIS. You don't worry now. If you want a DISEASE FREE LIFE, DRUGS FREE LIFE & DOCTORS FREE LIFE. I welcome you and invite you to come here and meet me for any kind of problem or DISEASE REVERSE.


NOTE :- 1- जिनलोगों को विशवास न हो कि ऐसा कैसे सम्भव होगा,तो उनसे नम्र निवेदन है कि मेरे साथ न जुडें,अन्यथा वो अपना समय ही नष्ट करेंगे| 2 - जो चाहते हैं कि उनकी इस तरह की सारी बीमारियां जड़ से समाप्त हो जाए,आज के बाद बिना डाक्टर, बिना दवा या निरोगी जीवन जीना है---।वही लोग मुझसे जुड़ सकते हैं, और फायदा उठाना चाहते हैं|उनका स्वागत है कि वे ऐसा सोच रहे हैं| आप लोगों को ये जानकर हैरानी होगी और ज्यादातर लोगों को मेरी बात ही हज़म नहीं होगी, जो राज़ या भेद यहाँ खोलने जा रहा हूँ ,बताने जा रहा हूँ| तो,ध्यान से पढ़िये और दिल थामकर सोचिएगा, फिर हर किसी को ईजाज़त होगी कि मुझसे कहीं भी,किसी भी प्लेटफार्म पर बात करे| RESEARCH से और मेरे तजुर्बे ने ये साबित कर दिया है कि नीचे लिखी सभी बीमारियां हमेशा केलिए REVERSE यानि बिल्कुल ठीक हो जाती हैं | Sach ko saabit karne ki koi zarurat nahin padti,haan,ye Rewaj se bilkul ulat hai to aaplogon ko at-pata lagega hi.Rewaj hai k bimar ho jao to DOCTORS k pas jao,lekin ye chalan kewal INSAANON me hi hai, ye baten aap tabhi samjhenge jab- bimari kyun kaise hoti hai,is mechanism ko samajhna bhi zaruri o aasan hai,log samajhna hi nahin chahte,jiska fayeda uthakar pharmaceutical company and DOCTORS aaplogon ka DOHAN karte aa rahe hain,maut k munh me dhakel rahe hain.Puri sachchayi janiyega. एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/


Last updated date 20/09/2020


डायबिटीज़ एक साज़िश


अस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह वह बरकातोहु ! *डायबिटीज़ - "बीमारी नहीं,फ़ार्मा कंपनियों की साज़िश"* आज भारत में 7.5 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरी मंशा सिर्फ एक ही है, और वो हैं आप! मुझे विश्वास है कि इस विधि से आप DIABETES से खुद को ठीक कर पाएंगे। तब आप लोगों की मदद करेंगे। जिससे वे फिर से स्वस्थ हो जाएं। स्वास्थ्य न केवल आपका अधिकार है बल्कि आपकी जिम्मेदारी भी है। आप सोच रहे होंगे कि, अगर यह तकनीक इतनी क्रांतिकारी है। फिर मैं यह क्यों नहीं जान रहा हूँ। डॉक्टर इस बारे में क्यों नहीं बताते ? इसे समझने के लिए आपको मेरे इन आँकड़ों का विश्लेषण करना होगा। पिछले *10 वर्षों में देश को DIABETES और उससे होने वाली बीमारियों के कारण 246 बिलियन डॉलर का महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है,* जो पिछले साल के राष्ट्रीय बजट से सिर्फ 70 बिलियन डॉलर कम है। यह बहुत बड़ी रक़म है, यह एक बड़ा उद्योग है। आपकी बीमारी से किसी का बहुत बड़ा लाभ होता है। वे नहीं चाहते कि आप बीमारियों से मुक्त हों, वे केवल यही चाहते हैं कि आप बीमारियों के गुलाम हों, दवाओं के गुलाम हों। इस *साजिश को समझने के लिए आपको खाद्य और औषधि तंत्र को समझना होगा* । कृपया ध्यान दें! जब आप कुछ खाते हैं तो वह अनाज, सब्जी, चपाती, करी और फल हो। भोजन मुंह से पेट तक जाता है, आंत में जाता है। आंत में, यह छोटे कणों में टूट जाता है। यह लीवर में जाता है, लीवर में पुनर्संसाधन होता है। रक्त संचार की सहायता से भोजन पूरे शरीर में वितरित हो जाता है। ताकि वह शरीर के हर कोशिका में जाए जिसकी मदद से वह ऊर्जा पैदा कर सके, जिसकी मदद से वह शरीर की मरम्मत कर सके। इसका उपयोग शरीर के विकास में किया जा सकता है, या कुछ अन्य चयापचय गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा सकता है, इस तरह शरीर काम करता है। इस प्रकार भोजन कोशिकाओं में जाता है। आपका शरीर भोजन के साथ कैसा व्यवहार करता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि खाना स्वीकार करने के लिए हर सेल को अपना दरवाजा खोलना होता है। कोशिका स्वयं को नहीं खोल सकते। इसके लिए उन्हें ब्लड सर्कुलेशन में ख़ास केमिकल की जरूरत होती है, वह है "इंसुलिन"। आप कह सकते हैं कि इंसुलिन एक कुंजी है, कोशिका के दरवाजे की चाबी। इसका मतलब है, अगर इंसुलिन है, तभी कोशिका का दरवाजा खोला जा सकता है। और उसके बाद ही भोजन को कोशिकाओं में पहुँचाया जाएगा। यानी उनके शरीर की इंसुलिन बनाने वाली फैक्ट्री ठीक से काम नहीं करती है। *इंसुलिन उत्पादन फैक्ट्री का नाम PANCREAS है* । अग्न्याशय पेट के पीछे, जिगर के पीछे अंदर है। यह शरीर का एक छोटा अंग है, एक बहुत छोटा अंग है। यदि अग्न्याशय ठीक से काम नहीं करता है, तो इंसुलिन नामक कुंजी का उत्पादन नहीं होगा। इस मामले में, शरीर में भोजन के पर्याप्त संचलन के बावजूद, सेल इसका उपयोग नहीं कर पाएगा। उसे कहते हैं- हाई ब्लड शुगर, जिसे डायबिटीज कहते हैं। आप इसे अपने घर पर एक रेफ्रिजरेटर के रूप में मानते हैं जिसका दरवाजा बंद है। खाना उसके अंदर है, लेकिन तुम्हारे पास चाबी नहीं है। *यानी मधुमेह।* आप डॉक्टर के पास जाओ, वह आपको एक दवा देगा, जिसे मेटामॉर्फिन कहा जाता है। मेटामॉर्फिन सीधे लीवर पर हमला करता है, यह लीवर को ब्लड शुगर को नियमित करने के लिए मजबूर करता है। लेकिन यह तरकीब ज्यादा दिन तक नहीं चलती। *कभी-कभी "मेटामॉर्फिन" लेने के बावजूद भी रोगी को आराम नहीं मिलता है* , डॉक्टर ने "मेटामॉर्फिन" के साथ एक और दवा डाली, जिसे "सल्फ़ोनिल्युरस" कहा जाता है। यह दवा अग्न्याशय पर काम करती है। *यह दवा अग्न्याशय को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए मजबूर करती है।* कभी-कभी, यह काम करता है। लेकिन उसके बाद दवाओं के बोझ के कारण अग्न्याशय पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, यानी शरीर इंसुलिन का उत्पादन बिल्कुल नहीं कर रहा है। अब, डॉक्टर कहेंगे, आपके शरीर ने *इंसुलिन का उत्पादन बंद कर दिया है।* इसका मतलब है कि *आपको दिन में कई बार इंसुलिन को अपने शरीर में इंजेक्ट करना होगा।* हर बार जब आप खाना खाएंगे तो आपको इंजेक्शन लगाना होगा। क्योंकि इंसुलिन बनाने वाली बॉडी की फैक्ट्री अब बंद हो गई है। यह यहीं नहीं रुकता क्योंकि वे अग्न्याशय क्षतिग्रस्त हैं। कुछ रोगी में अग्नाशय के कैंसर का खतरा होगा। लेकिन, दवा का एक और वर्ग है, *जिसे अल्फा - ग्लुकोसिडेस इनहिबिटर कहा जाता है।* यह दवा INTESTINE में काम करती है। यह दवा आंत को धीरे-धीरे कार्बोहाइड्रेट छोड़ने के लिए मजबूर करती है। लेकिन, इसके अपने साइड इफेक्ट होते हैं। इस वजह से अग्न्याशय पर अधिक भार पड़ता है। *कुछ समय बाद ट्यूमर, कोलन कैंसर जैसे रोगों की समस्या होती है।* फिर दवा का एक और वर्ग है, जिसे ग्लिटाज़ोन कहा जाता है! *GLITAZONES एक ही समय में शरीर की प्रत्येक कोशिका पर कार्य करता है।* ताकि इन्सुलिन के प्रति कोशिकाओं की संवेदनशीलता थोड़ी बढ़ जाए। लेकिन इस दवा के साथ समस्या यह है कि जो मरीज इन दवाओं को लेते हैं। कुछ वर्षों के बाद वे ब्लैडर कैंसर के रोगी बन जाते हैं। इसीलिए फ्रांस और जर्मनी सहित कई देशों ने GLITAZONES पर प्रतिबंध लगा दिया है। *भारत में लगभग 30 लाख रोगी GLITAZONES दवा लेते हैं।* मेरा मतलब है कि यदि आप कुछ लंबे समय तक मधुमेह की दवाओं पर हैं, तो वह किसी और गंभीर बीमारी के साथ समाप्त हो जाएगा। भारत में *15% जनसंख्या जो मधुमेह रोगी हैं वह नेत्रहीन हैं। लगभग 20% आबादी ने अपना अंग खो दिया है।* *50% से अधिक आबादी दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण वे किडनी फेल्योर के भी मरीज हैं।* *1947 तक हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी दवाओं के गुलाम हैं।* *हम सब मिलकर भारत को तीन डी - ड्रग्स, बीमारी और डॉक्टर से मुक्त करने में मदद कर सकते हैं।* BUT DON'T WORRY , डायबिटीज़ या किसी भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ को हमेशा केलिए बाय बाय कहने का समय आ गया है। अब ये डायबिटीज़ या उच्च रक्तचाप, कैंसर या हार्ट ब्लाकेज, किडनी फेलियर हो या कि डायलिसिस -- ऐसी *तमाम बिमारियां हमेशा केलिए "रिवर्स" (REVERSE) होंगी* और वो भी केवल एक युनिक यूनानी दवा *HEALTH IN BOX ™* से। तो देर किस बात की, लगे हाथ संपर्क करें:- *हकीम मो अबू रिज़वान* बीयूएमएस, आनर्स (बीयू) *यूनानी चिकित्सक* स्पेशलिस्ट इन लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर सोनबरसा रफ़ीगंज औरंगाबाद बिहार। 9334518872 8651274288 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in #unaniphysician #HEALTHINBOX #DIABETES #HEARTBLOCKAGES #DIALYSIS



Last updated date 08/08/2022

एक पैग़ाम

*🖋️ UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE* यूनानी मेडीसींस रिसर्च सेंटर *☄️ An ISO 9001: 2015 certified company* *( UDYAM-BR-03-0004688 )* ⭕ आपसे निवेदन है कि मेरे इस *"पैग़ाम"* को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करें । ▶️ अगर आप बरसों से कैंसर, डायबिटीज, हाई बी.पी., हार्ट ब्लाकेज, मोटापा, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल, दमा, गठियावात, सोरियासिस, किडनी फेल्योर, लीवर और ऐब्डोमिनल डिसआर्डर, डायलिसिस, इत्यादि *लाईफ स्टाईल डीज़ीज़ से पीड़ित हैं* और अंग्रेज़ी दवाओं का लगातार सेवन करने की लत लगी हुई है तो आज ही से आपकी सभी दवाएं छूट सकती है । *केवल चार से छ: माह के लिए मेरी एक युनिक यूनानी दवा* *HEALTH IN BOX™* का पाबन्दी से सेवन करेंगे तो आपकी बीमारी हमेशा के लिए "REVERSE" हो जाएगी । फिर भविष्य में कभी भी किसी दवा की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी । *इन शा अल्लाह ।* अंग्रेज़ी दवाओं के अंधा धुंध इस्तेमाल करवा कर ही आपको डायलिसिस तक धकेला जा रहा है । ☄️ डायबिटीज की दवाओं का ही नतीजा है । लोग अंधापन का शिकार हो रहे हैं, किडनी फेल हो रहा है । और लोवर लिम्ब काटने की नौबत आ रही है । ☄️ बी.पी. कम करनेवाली अंग्रेज़ी दवाओं से आपका दिल कमज़ोर हो रहा है । और नौबत हार्ट अटैक और लकवा तक पहुंच रहा है । ☄️ कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा STATIN से हार्ट ब्लाकेज, बांझपन और नामर्दी की शिकायत बहुत ही ज़्यादा बढ़ गई है। ⭕ सावधान रहें स्वस्थ रहें, और एक बार अवश्य विचार करें कि आपको सेहतमन्द रहकर जीना है या अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हुए ज़िन्दा रहने का असफल प्रयास करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना है । 🕹️ फैसला आपको ही करना है । और आज ही ! *📍 चीनी खाने से होनेवाले नुकसान* 📌 चीनी कभी न खाएं । चीनी में शरीर के काम आने वाला एक भी पोषक तत्व नहीं होता । चीनी का मीठापन SUCROSE के कारण होता है । जो कि शरीर में हज़म नहीं होता । अगर होता है तो बहुत मुश्किल से होता है । जिसके साथ इसे आप खाओगे उसे भी हज़म नहीं होने देता । जो मीठापन हमारे काम का है, वो FRUCTOSE होता है । सभी फलों में मीठापन FRUCTOSE के कारण होता है । चीनी तभी से भारत में आई है जब से अंगरेज आए हैं । 1868 में सबसे पहली चीनी की मिल लगीं । पहले इसे मुफ्त में बंटवाया गया । चीनी से मोटापा बढ़ता है । चीनी से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है । जिससे 103 बीमारियाँ आती हैं । चीनी छोड़ने के बाद घुटनों का दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द सब में आराम मिलेगा । माइग्रेन, सर्दी-जुकाम, नींद अच्छी आएगी । स्नोफिलिया, साइनस, जैसी बीमारियों में भी लाभ मिलने लगेगा । चीनी बनाने में पानी बहुत बर्बाद होता है। चीनी मिलों के कचरे से वातावरण बहुत प्रदुषित होता है । चीनी में सबसे ज्यादा सल्फर पाया जाता है । ⭕ जिसे हिन्दी में गंधक कहते हैं । जो कि पटाखे बनाने में काम आता है । ये सल्फर अंदर जानें के बाद बाहर नहीं निकलती । गुड़ में पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम आदि, जैसे सभी पोषक तत्व होते हैं । गुड़ बनाने के लिए बाहर से कुछ भी मिलाया नहीं जाता । भोजन के बाद थोड़ा गुड जरूर खायें । क्योंकि यह ख़ाना पचाने में बहुत मदद करता है । *⏺️ टूथ पेस्ट कैसे तैयार होता है ?* ⭕ हजरत एक महत्वपूर्ण बात कहना था । अगर आप बुरा न मानें तो मैं कहना चाहता हूं । कोई भी टूथ पेस्ट कैसे बनता है । इस पर शायद अब तक किसी ने शोध नहीं किया है । यदि आप, विद्वान और न्यायविद, मुफ्ती, सच्चाई जानते, तो कोई भी टूथ पेस्ट मुसलमानों के लिए बिल्कुल "हराम" होता । टूथपेस्ट बनाने के लिए दो मुख्य चीजों की जरूरत होती है। *⭕ 1) D.I. CALCIUM PHOSPHATE* *⭕ 2) SODIUM LOREN SULPHATE* ▶️ D.I. CALCIUM PHOSPHATE नामक रसायन प्राप्त करने के लिए केवल मृत जानवरों के हड्डियों के पाउडर का उपयोग किया जाता है । मरे हुए जानवरों की हड्डियों में वह कुत्ता, गधा, बैल, गाय, भैंस, सुअर किसी का भी हो सकता है । ▶️ दूसरा रसायन, SODIUM LOREN SULPHATE, झाग बनाने के लिए शैंपू में प्रयोग किया जाता है । और इन दोनों रसायनों के बिना कोई टूथपेस्ट बनाना असंभव है । ▶️ इसलिए इस उत्पाद को I.S.I. MARK नहीं मिलता है । ⏺️ क्योंकि यह सरकार की नजर में सबसे खराब गुणवत्ता वाला उत्पाद है । और आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों चीजों से "ओरल कैंसर" होता है । और आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले दस से पंद्रह सालों में "मुंह के कैंसर" के रोगियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है । वहीं दूसरी ओर दंत चिकित्सक की तो जैसे बाढ़ ही आ गई है । 👉🏻 यह मसूड़ों, और दांतों की बीमारियां उन दंत चिकित्सकों के लिए लॉटरी की तरह है । 👉🏻 यह महत्वपूर्ण बात आप विद्वानों के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचे तो बेहतर होगा । *HAKEEM MD. ABU RIZWAN* BUMS hons ( B U ) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE 📱*9334518872* *8651274288* 🕹️



Last updated date 11/04/2022

भारत में डायबिटीज़ से मरने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि

तेज़ अनुवांशिक गड़बड़ी और बदलती जीवनशैली के कारण भारत में मधुमेह से होने वाली मौतों में साल 2005 से 2015 के बीच 50 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और यह देश में मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण है, जो कि 2005 में 11वां सबसे बड़ा कारण था। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज (जीबीडी) के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। वहीं, मौत का सबसे बड़ा कारण हृदय रोग बना हुआ है, उसके बाद क्रॉनिक फेफड़े का रोग, ब्रेन हेमरेज, श्वसन तंत्र में संक्रमण, दस्त रोग और तपेदिक का नंबर है। जीबीडी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में तपेदिक से कुल 3,46,000 लाख लोगों की मौत हुई, जो सालभर में हुई कुल मौतों का 3.3 फीसदी है। इसमें साल 2009 से 2.7 फीसदी का इजाफा हुआ है।हर एक लाख की आबादी पर 26 लोगों की मौत डायबटीज से हो जाती है। मधुमेह विकलांगता का भी प्रमुख कारण है और 2.4 फीसदी लोग इसके कारण ही विकलांग हो जाते हैं। भारत में कुल 6.91 करोड़ लोग मधुमेह के शिकार हैं जो कि दुनिया में चीन के बाद दूसरा नंबर है।


चीन में कुल 10.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के डायबिटीज एटलस के मुताबिक भारत में मधुमेह से पीड़ित 3.6 करोड़ लोगों की जांच तक नहीं हुई है। देश के 20 से 79 साल की उम्र की आबादी का करीब 9 फीसदी मधुमेह से ग्रसित है। ये आंकड़े चिंताजनक है, क्योंकि मधुमेह एक क्रॉनिक रोग है, जो न केवल पैंक्रियाज की इंसुलिन निर्माण करने की क्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता, दृष्टि की हानि और न्यूरोपैथी या तंत्रिका तंत्र क्षति होती है जिसे पांव काटने तक की नौबत आ जाती है। 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा हो रही बीमारी:- अन्य देशों की तरह जहां ज्यादातर 60 साल के ऊपर के लोग ही मधुमेह के शिकार होते हैं। भारत में यह 40 से 59 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा पाया जाता है। इससे आबादी की उत्पादकता भी प्रभावित होती है। फोर्टिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डायबिटीज के मेटाबोलिक डिजिज एंड एंडोक्राइनोलॉजी के अध्यक्ष अनूप मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, "भारत में दुनिया से एक दशक पहले से ही मधुमेह फैला है। इससे उत्पादकता घटती है और जटिलताएं पैदा होती हैं। हमें मधुमेह से लड़ने के लिए पल्स पोलिया जैसा अभियान चलाने की जरूरत है, क्योंकि यह समस्या टीबी, एचआईवी और मलेरिया से भी बड़ी है।"


एक चैलेंज:- जिस किसी को भी #डायबिटीज़ या कोई भी #लाइफस्टाइल #डीज़ीज़ जैसे #उच्च रक्तचाप, #हृदय संबंधी प्राब्लम, #मोटापा, #कैंसर, #कोलेस्ट्रॉल, #थायराइड, #अर्थराइटिस, #सोरियासिस, #आंत व जिगर संबंधित रोग, #अस्थमा इत्यादि तकलीफ़ हो गई है उनके लिए मैंने काफ़ी रिसर्च करके एक युनिक यूनानी दवा तैयार की है जिसके सेवन से सिर्फ चार या छः या नौ महीने में उपरोक्त सभी प्रकार के रोग हमेशा केलिए रिवर्स हो जाती हैं। उस दवा का नाम है :- #HEALTH IN BOX ®" जिस दिन से इसे लेना शुरू करेंगे उसी दिन से आपकी तमाम अंग्रेज़ी दवाओं को छोड़ने केलिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसका कोर्स पूरा करने के पश्चात् आप बिल्कुल सेहतमंद जिंदगी गुज़ार सकते हैं, बिना किसी दवा के। इस दवा अबतक हज़ारों लोग इस तरह की लाइफस्टाइल डीज़ीज़ से मुक्त हो चुके हैं। आप भी आज़मा कर देख लें। #HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+

Last updated date 17/10/2020

मधुमेह के लक्षण

मधुमेह (Diabetes ) को तमाम बिमारियों का जनक माना गया है।तिब्बे यूनानी में डायबिटीज़ को "उम्मुल अमराज़" कहा गया है। मधुमेह होने के बाद शरीर को बहुत सी बीमारियाँ आसानी से घेर लेती है । 35 वर्ष के बाद तो नियमित रूप से लोगों में "चेक अप" कराने की होड़ लगी रहती है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए आपको बताता चलूं कि आज हमारा मेडिकल साइंस इतना तरक़्क़ी कर गया है कि "आज वही लोग सेहतमंद हैं जो कभी डॉक्टर के पास नहीं गए, या जिन्होंने कभी चेक अप नहीं कराया। वैसे बहुत से ऐसे शुरूआती लक्षण है जिनसे मधुमेह होने का संकेत मिलने लगता है। इसलिए शरीर पर इन लक्षणों के नज़र आते ही सावधान हो जाना चाहिए , अपने खान-पान का ध्यान रखे , और कुशल चिकित्सक के पास जाकर शीघ्र ही परामर्श करने की कोशिश भी नहीं करें, क्योंकि वो तो जीवन भर ऐलोपैथिक मेडिसिन पर रखकर आपको वहां तक पहुंचाने वाले हैं जहां ये भी याद नहीं रहेगा कि पहली बार किस बीमारी के लिए दवा शुरू किया था। अगर डायबिटीज़ के लक्षण दिखाई देने लगे तो पहली फुरसत में ही मुझसे संपर्क करें और मेरी ख़ुद की बनाई हुई यूनानी मेडिसींस "HEALTH IN BOX" मंगवाकर कम से कम चार महीने प्रयोग करें।आप पायेंगे कि ये लोग जिसके लिए जीवन भर ऐलोपैथिक दवा लेने वाले थे,इन चंद महीनों में ही इनकी डायबिटीज़ हमेशा के लिए REVERSE हो गई है। एलोपैथी ड्रग माफिया के द्वारा खींची गई आंकड़ों के अनुसार FASTING , PP और Hb1Ac तो केवल आपको TRAP करने के लिए भर है।स्थिर आंकड़ा तो केवल मृत शरीर में ही रह सकता है, जबकि आप तो ज़िंदा हैं। आपका शूगर लेवल कुछ भी हो सकता है। आंकड़ों पर कभी भी भरोसा न करें।आप केवल इन लक्षणों को देखकर ही समझ सकते हैं कि आपके शरीर में डायबिटीज़ का हमला होने वाला है:-


1. बार-बार पेशाब आना। 2. बहुत ज्यादा प्यास लगना। 3. बहुत पानी पीने के बाद भी गला सूखना। 4. खाना खाने के बाद भी बहुत भूख लगना। 5. मितली होना और कभी-कभी उल्टी होना। 6. हाथ-पैर में अकड़न और शरीर में झंझनाहट होना। 7. त्वचा में रूखापन आना। 8. चिड़चिड़ापन। 9. सिरदर्द। 10. शरीर का तापमान कम होना। 11. मांसपेशियों में दर्द। 12. वजन में कमी होना।


यदि आप थोड़ी सी सावधानी बरतें, अपने जीवनशैली , खान-पान की आदतों में सुधार करें तो इसपर अवश्य ही विजय प्राप्त कर सकते हैं। आपका शुभ चिंतक- HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN specialist in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 8651274288 & 9334518872 WHAT'S APP 9334518872 & 8651274288 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN

Last updated date 29/09/2020

ASPARTAME

ASPARTAME was invented by GD-SEARLE in 1965 and submitted for pre-marketing safety evaluation in early 1980s.


The studies conducted by GD-SEARLE to evaluate the potential carcinogenic risks of aspartame did not show any effect. Because of the great commercial diffusion of aspartame,in 1997 the RAMAZZINI INSTITUTE started a large EXPERIMENTS project on rodents to rest the carcinogenic effects of aspartame in our EXPERIMENTAL model with more sensitive characteristics, namely large number of Rats and Mice, observation until NATURAL death. Overall the project included the study of 2,270 Rats and 852 Mice starting the Treatment from prenatal life or in mature age and lasting all life.


ASPARTAME is a carcinogenic agent including a significant dose-related increased incidence of several types of malignant tumors and, among them, hematological neoplasias. Later this effects was confirmed tan EPIDEMIOLOGICAL study conducted by a group of the HARVARD UNIVERSITY. एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/

Last updated date 29/09/2020

DIABETES - A CONSPIRACY.......!

"Till 1947 , the country was slave to the ENGLISH MEN and, today it is slave to ENGLISH MEDICINES."     Nothing is the world can destroy your happiness, more than you trying to live with ILLNESSES,more than you trying to live with SICKNESS.In this world the most painful things to know keep trying to live with SICKNESS.It is possible that this time your mind is wandering in to so many thought. But still, this means there is some ray of hope at some corner of your mind that you wish your DIABETES can be cured. I want to tell you about one of the kind of REVOLUTIONARY LIFE STYLE method, with help of which, not only you will face yourself from the CLUTCHES of DIABETES.But you will be able to help people so that even they are able to cure the DIABETES. What are we required to do this? Are we supposed to take precautions? Are we required to be hungry? you are not required to be hungry stomach. Instead, you have to eat in plenty. Rather most of my DIABETIC PATIENTS.      Within the first week of applying this LIFE STYLE method, they are able to drink a glass of       " SUGARCANE JUICE", or if they like A DOZEN OF "BANANA",or may be A KG of  "MANGO".You have to eat in plenty.    Today in INDIA, 6.5 chores people are suffering from DIABETES.


My intention behind the writing of this post is only one, and that is you!     I believe that with this method you will be able to cure yourself from DIABETES. Then you will help people. So that they are healthy again. Health is not just your right it is your responsibility as well.      You must be thinking that, if this technique is so REVOLUTIONARY. Then why I am not knowing this! why do DOCTORS not tell about this? To understand this, you will have to analyse these data of mine, in the last 10 years the nation has suffered the significant loss of  $ 246 billion due to DIABETES & its resultant diseases, which is just  $ 70 billion lesser than last year national budget. It is the huge money, it is a big industries. your illness is someone's HUGE PROFIT! !!They do not want you to be FREE FROM ILLNESSES, they only wish you to be SLAVE to diseases, SLAVE to medicines.     To understand this CONSPIRACY, you need to understand the FOOD AND DRUG MECHANISMS. Focus please! when you eat something be it CEREAL, VEGETABLE, CHAPATI, CURRY & FRUIT. The food goes from mouth to stomach, it goes to the intestine.At intestine, it breaks down into small particles. It goes to LIVER, there is reprocessing in liver. with the help of blood circulation, the food gets distributed in whole body. So that it goes to every CELLS of the body with the help of which it may produce energy, with the help of which, it may repair body. It may be used in the body growth, or may use for some other metabolic activities, that's how the body works. That's how the food goes into CELLS. That how your body behave with the food. But the interesting things is that in order to accept food. Every CELLS has to open its door. CELLS cannot open themselves. For this, they require the special chemical in blood circulation. That is "INSULIN".You can say INSULIN is a key.      A key for the doorsof CELLS. It means, if INSULIN is there, only then the CELLS door can be opened. And only then food will be transported into the CELLS. Means, the INSULIN producing factory of their body does not function well. The INSULIN production factory is named as PANCREAS. PANCREAS is somewhere behind stomach, somewhere behind the liver, somewhere inside. You can see here, but it is a small organ of the body, a very small organ.If PANCREAS  does not function well, the key named INSULIN will not be produced. In the case, in spite of the enough circulation of food in the body, CELLS won't be able to utilise it. That is called - HIGH BLOOD SUGAR, that is called DIABETES. you consider it as a REFRIGERATOR at your home with its door locked. The food is inside it, but you don't have the key. That is DIABETES. You go to DOCTOR. He will give you a class of DRUG, called - METAMORPHINE. METAMORPHINE directly attacks liver, it force liver to regularise the BLOOD SUGAR. But this trick does not last for long.


After sometimes, in spite of taking METAMORPHINE, the patient does not get relief, DOCTOR added one more drug with METAMORPHINE, that is called SULFONILUREAS. This drug works on PANCREAS. This drug forces PANCREAS to produce more INSULIN. For sometimes, it works. But after that because of the burden of the MEDICINES, PANCREAS stop working altogether, that means the body is not producing INSULIN at all. Now, the DOCTOR will say, your body has stopped producing INSULIN. It means you need to inject INSULIN in your body several times in a day. You will have to inject every time you have food. Because the factory of the body to produce INSULIN is now shut down. It doesn't stop here since those PANCREAS are damaged .Few patients. In few will prone to PANCREATIC CANCER. But, there is another class of drug,that is called ALPHA-GLUCOSIDASE INHIBITOR. This drug works in INTESTINE. This drug forces intestine to release CARBOHYDRATES slowly. But, it has its own side effects. Because of this, the PANCREAS  are over-burdened.After sometime, there is the problem in the INTESTINE & COLON of such patients like TUMER , COLON CANCER.Then there is another class of drug,that is called GLITAZONES ! GLITAZONES works on every CELLS of the body at the same time. So that the CELLS sensitivity towards INSULIN to be raised a little.But the problem with this drug is that patients who take these drugs.After few years they endup becoming a BLADDER CANCER patient.    That why many countries has banned GLITAZONES including FRANCE & GERMANY. In INDIA near about 3 million patients take GLITAZONES drug. I mean if you are on a DIABETIC DRUGs for some long time, then that will be ending up with some another more serious illness. Tod,in INDIA 15% population who is DIABETIC is BLIND also. About 20% of the population  has lost their LIMBS. More than 50% of the population because of the side effects of the MEDICINES. They are also the KIDNEY FAILURE patients. Till 1947 , we were slave to the ENGLISH MEN and today we are slave to ENGLISH MEDICINES. Together we can help INDIA FREE FROM three D - DRUGS, DISEASE AND DOCTOR. एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/

Last updated date 28/09/2020

سچائی اور ایمانداری کا روزگار

*سچائی اور ایمانداری کا روزگار:- DISCOUNTS :- 1:- 5 - 9 Packet's = 20% , 2:- 10 - 19 Packet's = 25% , 3:- 20 - 49 Packet's = 30% & 4:- 50 - 100 Packet's = 40% HEALTH IN BOX® کا ایک پیکٹ ایک ماہ کے لیے ہے۔ ایک پیکٹ کی قیمت صرف تین ہزار روپے (-/3000) ہے۔ مکرمی السلام وعلیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ ! امید ہے کہ مزاج گرامی بخیر ہونگے۔ الحمدللہ! آپ میری مہم سے جڑکر مندرجہ ذیل طریقہ سے اپنی آمدنی حاصل کر سکتے ہیں:- میں حکیم محمد ابو رضوان (جمشیدپور جھارکھنڈ) 1993 سے کلی طور پر صرف اپنی تیار کردہ یونانی دواؤں سے اپنے نجی مطب (UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE)میں طبی خدمات انجام دیتا آ رہا ہوں۔ کافی عرصہ سے ریسرچ و تحقیق وغیرہ کا کام بھی چلتا رہا اور جس کا نتیجہ ہے پچھلے چند سالوں سے اب صرف اور صرف "ایک ہی دوا" ®HEALTH IN BOX سے تمام اقسام کے بیماریوں کا علاج کرنے لگا۔ نتیجہ خاطر خواہ۔ پھر کیا تھا، میرے پاس تو جتنے بھی مریض آتے ہیں ان سب کو صرف اور صرف یہی ایک دوا دیتا ہوں۔ حضرت ! میں نے دیکھا ہے کہ مساجد کے امام، مدرسے کے مدرسین، حفاظ کرام، مفتی کرام، قاری حضرات، علماء کرام وغیرہم اپنی قلیل آمدنی اور محدود وسائل کے سبب ہر وقت تنگدستی کا شکار رہتے ہیں۔ تو، کیوں نہ وہ اس کام کو کرکے اپنی آمدنی میں اضافہ کرنے کی کوشش کریں۔ آج کے دور میں بھی علاج اتنا آسان ہے کہ میری اس دوا " HEALTH IN BOX" سے کوئی بھی انسان کسی بھی بیمار کا بآسانی علاج کر سکتا ہے۔ تو پھر آپ کیوں نہیں؟ اس مصیبت کی گھڑی میں جہاں کروڑوں لوگوں کے روزگار چھن گئے، بالخصوص بیروزگار مسلم نوجوان آگے بڑھ کر میرے اس پیشکش کو گلے لگانے کی کوشش کریں۔ "HEALTH IN BOX®" مکمل طور پر یونانی میڈیسن ہے ۔اسکے تمام اجزاء یونانی مفردات پر مشتمل ہے۔ اس دوا کا استعمال ہر عمر، ہر قسم کے امراض کے علاج میں کیا جاتا ہے۔ رزلٹ ماشاءاللہ۔ دوا کی پرچی پر جتنے ضوابط درج ہیں انکو صد فیصد فالو کرنے والے کو ہی صد فیصد رزلٹ پانے کا متمنی رہنا چاہیے۔ یہ در اصل کسی بیماری کے علاج کی دوا نہیں ہے، بلکہ یہ کسی بھی بیماری کے ہونے کے "اسباب" پر کام کرتا ہے۔ آپ کو یہ جان کر حیرانی ہوگی کہ تمام بیماریوں کے اسباب صرف اور صرف ایک ہی ہیں، اور وہ ہے:- " گلوکوز اور انسولین کا تال میل گڑبڑ ہونا۔" یعنی GLUCOSE اور INSULIN جب IMBALANCE هو جاتا ہے تو ہمارے جسم میں کوئی بھی بیماری ہو جائے گی۔ اس IMBALANCE کو REBALANCE کرنے سے ہی کوئی بھی بیماری ہو وہ REVERSE ہو جائے گی ہمیشہ کے لیے۔ اس METHOD کو UNIVERSAL LAW OF REBALANCING کہا جاتا ہے۔ HEALTH IN BOX ® تمام اقسام کی لائف سٹائل ڈیزیزیز جیسے:-کینسر، ڈائبیٹیز، ہائی بی پی، موٹاپا، ہارٹ بلاکیج، لیور ایبڈامینل اور کڈنی پرابلم، ڈائلیسس، سورائسس، سیکس پرابلم، مینٹل ہیلتھ پرابلم، کولسٹرول، تھائیرائڈ پرابلم، ہڈیوں و جوڑوں کے درد، وغیرہ بیماریوں کے لئے استعمال کیا جاتا ہے۔ اکثروبیشتر امراض میں اس دوا کا رزلٹ پہلے ہی روز مل جاتا ہے اور بڑی بڑی بیماریاں جس کے بارے میں ڈاکٹر حضرات تاحیات انگریزی دواؤں کے استعمال کرتے رہنے کی تاکید کرتے ہیں، ہمیشہ کے لیے "REVERSE" ہو جاتی ہیں، اور انگریزی دواؤں سے ہمیشہ کے لیے چھٹکارا بھی مل جاتا ہے اور آپ زندگی بھر آپ صحت مند زندگی گزاریں گے۔ یعنی یہ دوا اول روز سے ہی کام کرنا شروع کر دیتاہے۔ انشاءاللہ۔ "آپ سے خصوصی اپیل ہے کہ آپ میری بات پر غور کریں اور اپنا ذریعہ معاش بنائیں۔"یعنی، آپ میرے مشورے پر عمل کرکے "حکمت" کا پیشہ اختیار کریں گے تو بہتر ہوگا اور سب سے بڑی بات یہ ہے کہ آپ جس منصب پر فائز ہیں وہاں اس کام کو بخوبی انجام دے سکتے ہیں۔ اور اچھا خاصا انکم کر سکتے ہیں۔ اس معاملے میں ہر قسم کا تعاون کرونگا۔ آپکا خیر اندیش HAKEEM MD ABU RIZWAN BUMS,hons. UNANI PHYSICIAN Spl in LIFESTYLE DISEASES +UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE+ SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND Contact 8651274288 what's App 9334518872 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website:- https://umrc.co.in



Last updated date 22/09/2020

डायबिटीज़- एक बड़ी साज़िश

आपका स्वागत है इस बीमार दुनिया में।आप सब किसी न किसी बीमारी में मुब्तला हैं।फिर या तो आप बरसों से डॉक्टर का चक्कर काट रहे हैं या उसके सुझाव पर सुबह से शाम तक अनगिनत दवाएं ले रहे हैं। आज का सबसे चर्चित बीमारी "डायबिटीज" ही तो है जो हमारे तिब्ब यूनानी चिकित्सा पद्धति में सिरे से बीमारी है ही नहीं।बल्कि यह किसी बीमारी का "लक्षण" ही तो है। आप मेरे इस पोस्ट को पढ़कर अपना ईरादा बदलने पर मजबूर हो जाएंगे, और ऐलोपैथिक दवा कभी भी नहीं लेंगे, ये मेरा दावा है।क्योंकि संसार के किसी भी हिस्से में आजतक ऐसा नहीं देखा गया कि दस,बीस, तीस या चालीस साल तक ऐलोपैथिक दवा का सेवन करने वाला "डायबिटीज" का रोगी स्वस्थ्य हो गया और दवाओं का सेवन बंद कर दिया। डायबिटीज के मेकानिज़्म को समझना जरूरी है।अगर अब भी न समझे तो ये फार्मास्युटिकल कंपनियां आगे भी आपको बीमारियों और दवाओं के बीच झूला झुलाती रहेंगी।क्योंकि, "डायबिटीज" यानि "ब्लड शुगर" ही सारे रोगों की जड़ है।तो,आइये मेकानिज़्म समझते हैं:- हम कुछ भी खाते हैं तो वो " ग्लूकोज़" ही बनता है जिससे हमें "एनर्जी" मिलती है।लेकिन, वो एनर्जी तभी मिलेगी जब ये "ग्लूकोज़" शरीर के हर "सेल" में जाए।ट्रक समान ब्लड "ग्लूकोज़ को लेकर भ्रमण करते हुए हर सेल के दरवाजे तक पहुंचता है,मगर सेल के अंदर दाखिल नहीं हो पाता, क्योंकि सेल का दरवाजा बंद रहता है। जिसे खोलने के लिए एक चाभी की ज़रूरत पड़ती है, जिसका नाम "ईन्सुलीन" है। ईन्सुलीन की प्रचूर मात्रा जबतक हमारे शरीर के भीतर मौजूद है तबतक ये मेकानिज़्म सुचारू ढंग से चलता रहता है। ड्रामा तो तब शुरू होता है जब ईन्सुलीन की कमी होने लगती है। अगर ग्लूकोज़ सेल का दरवाजा बंद होने की सूरत में सेल के अंदर दाखिल न हो पाया तो उसके दरवाजे पर ही BLOOD आर्ट्रीज़ के अंदर ग्लूकोज़ गिरा देता है।


जिससे उस जगह पर चिपचिपा पन होने लगता है,और फिर वहाँ INFLAMMATION हो जाता है और फिर वहां पर कोलेस्ट्रॉल, इन्ज़ाइम, वसा ,खनिज,लवण ईत्यादि चिपकने लगते हैं। और रक्त धमनियों के अंदर उन कचरों के जमाव की वजह से संकरा होने लगता है। ये सूरतहाल अधिक समय तक रहने पर सेल की बजाय खून में ही ग्लूकोज़ घूमता रहता है। खून की जांच करने पर पता चलता है कि आपका शूगर लेवल बहुत बढ़ गया है। डॉक्टर आपको दवा देकर ग्लूकोज़ का नम्बर घटाकर बोलता है कि आपका शूगर लेवल नार्मल आ गया है, मगर दवाएं हमेशा लेते रहें वरन शूगर बढ़ जाएगा। इनकी चालाकी देखिये कि दवा खिलाकर शूगर का नम्बर तो घटा दिया, मगर आप ही उनसे सवाल करें कि ब्लड शुगर का लेवल तो घट गया, लेकिन ब्लड वाला बढ़ा हुआ शूगर कहां चला गया? इस सवाल का जवाब उनके पास है ही नहीं।और, दूसरा ये कि आज मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है, मगर खून की नली में जमने वाले उस कचरे को साफ करनेवाली दवा आजतक नहीं ईजाद की जा सकी। वरना "डायबिटीज" से एक भी ईन्सान घुट घुटकर नहीं मरता, आंखों की रौशनी नहीं खोता, किसी की किडनी फेल नहीं होती, और गैंगरीन होने की स्थिति में किसी का पांव नहीं काटना पड़ता। इसी तरह के "कचरे" का जमाव किसी भी बीमारी का कारण बनता है।यानी सभी प्रकार के रोगों का एक मात्र कारण यही "कचरे" का जमाव है।ये "कचरा" ग्लूकोज़ और ईन्सुलीन के बीच का आपसी तालमेल गड़बड़ हो जाना है। अगर इस कचरे को साफ कर दिया जाए और ग्लूकोज़ व ईन्सुलीन के अनुपात को ठीक कर दिया जाए तो डायबिटीज ही नहीं,बल्कि हर प्रकार की बीमारियां हमेशा केलिए समाप्त हो जाएंगे। लेकिन ऐसाआजतक नहीं हो पाया,जबकि मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है। मैं ने एक दवा तैयार की है जो ये सारे काम करने में सक्षम है।


मुझे पता है,बीमारियों का कारण केवल "एक" है।इसलिए उस एक "कारण" को दुरुस्त कर देने से कोई भी रोग दुरुस्त हो जाता है। एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/

Last updated date 20/09/2020

एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का "नंगा" मगर "कड़वा" सच

Allopathic क्या है? आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान को एलोपैथी (Allopathy) या एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति (Allopathic medicine) कहते हैं। और इस चिकित्सा में जो दवाइयां उपयोग में आती हैं उनको "ऐलोपैथिक मेडिसिन" कहा जाता है। यह नाम होम्योपैथी (Homeopathy) के जन्मदाता सैमुअल हैनिमैन ने दिया था। जिनका यह नाम देने का आशय यह था कि प्रचलित चिकित्सा-पद्धति (अर्थात एलोपैथी) रोग के लक्षण के बजाय अन्य चीज की दवा करता है। (Allo = अन्य तथा pathy = पद्धति, विधि) स्वास्थ्य से जुड़ी कैसी भी समस्या हो, जब इलाज की बात आती है तो हम तुरंत एलोपैथी इलाज लेते हैं, ताकि इन दवाओं से तुरंत आराम मिल सके। एलोपैथी का बेहतर यूज क्या है? एक्यूट कंडीशन(Acute Conditions)- जहाँ तुरंत इलाज की जरूरत हो, हार्ट अटैक, सीवियर इन्फेक्शन, (Severe Infections) सर्जरी, (Surgery) एंजियोप्लास्टी (Angioplasty) वगैरह में यह काफी फायदेमंद है।जो बिल्कुल मिथ्या है। एलोपैथी के फायदे क्या हैं? तुरंत आराम, सर्जिकल ऑपरेशन के लिए ज्यादा बेहतर सुविधाएं, इंजेक्शन और एंटीबायोटिक्स की बड़ी रेंज मौजूद हैं। ये सबसे बड़ा झूठ है। एलोपैथी के नुकसान क्या हैं?


सिंथेटिक दवाएं, (Synthetic Medicines) एलर्जी, (Allergy) साइड इफेक्ट, (Side Effects) कई बीमारियों का परमानेंट हल नहीं, कई बीमारियों का ऑपरेशन के बिना इलाज नहीं हो सकता। ऐसा नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि इन्सान नेचर की पैदावार है और इसके भीतर की ख़राबी यानी रोगों को सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों बिल्कुल ठीक और सेहतमंद क्या जा सकता है। एलोपैथिक शब्द की परिभाषा रोचक है। वर्तमान समय में जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति डॉक्टरों के द्वारा अपनाई जाती है उसी संपूर्ण चिकित्सा पद्धति के लिए हम "एलोपैथी" शब्द का प्रयोग करते हैं। दरअसल एलोपैथिक या एलोपैथी शब्द प्रचलन में तब आया जब होम्योपैथी के जनक सैमुअल हैनीमैन ने होम्योपैथी के सिद्धांतों और अन्य चिकित्सा पद्धति के सिद्धांतों में भेद करने के लिए "एलोपैथी" शब्द का प्रयोग करना प्रारंभ किया। HOMEO (होम्यो) शब्द का अर्थ होता है "समान', तथा ALLO (एलो) शब्द का अर्थ होता है "असमान"। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति मुख्य रूप से लक्षणों का निवारण करने का काम करती है। इसी लिए यह विपरीत लक्षण पैदा करने वाली दवाई से शरीर में संतुलन पैदा करती है, जैसे यदि शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ रही है तो एलोपैथी में शुगर कम करने वाली दवाई दी जाएगी। इसके विपरीत होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर को जो कष्ट है उसका इलाज समान लक्षण पैदा करने वाली वस्तु से ही संभव है। उदाहरण के लिए यदि आपको किसी चीज से एलर्जी है तो होम्योपैथिक की दवाई उसी चीज से निर्मित की जाएगी लेकिन उसकी मात्रा बहुत ही कम होगी, जिससे कि आपका शरीर स्वयं ही अनुकूलन के द्वारा अपनी एलर्जी का इलाज कर ले। आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान को एलोपैथी या एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति कहते हैं। यह नाम होम्योपैथी के जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन ने दिया था जिनका यह नाम देने का आशय यह था कि प्रचलित चिकित्सा-पद्धति (अर्थात एलोपैथी) रोग के लक्षण के बजाय अन्य चीज की दवा करता है। (Allo = अन्य तथा pathy = पद्धति, विधि)। स्वास्थय से जुड़ी कोई भी समस्या हो, जब इलाज की बात आती है तो हम तुरंत एलॉपथी इलाज लेते हैं, ताकि इन दवाओं से तुरंत आराम मिल सके।सत्य भी यही है किसी भी बड़ी से बड़ी बीमारी में भी ऐलोपैथिक दवाओं के सेवन से सिर्फ और सिर्फ वक्ती तौर पर Relief (आराम) ही मिलता है, कोई भी व्यक्ति अपनी बीमारी से कभी छुटकारा नहीं पा सकता है। चिकित्सा की इस पद्यति के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुक्सान भी हैं।


एलोपैथी से लाभ:-  एलोपैथी चिकित्सा मनुष्य को तुरंत लाभ देती है। मनुष्य यह चाहता है की उसे कम से कम दर्द सहना पड़े, एलोपैथी चिकित्सा ऐसा करने में सफल रही है। एलोपैथी ने शल्य चिकित्सा में बहुत ही ज़्यादा सफलता हासिल की है। इनके जनक के सिद्धांत के अनुसार, "कुछ भी हो काट कर निकाल दो।" अब तो विज्ञान निरंतर इस और प्रयत्नशील है की जहाँ तक हो सके, शल्य चिकित्सा में कम से कम चीर - फाड़ हो। एलोपैथी से हानियां:- इस पद्धति का सबसे बड़ा दोष है, दवाइयों का साइड इफ्फेक्ट। एक तो दवाइया रोग को दबा देती है साथ ही वह किसी अन्य रोग को जन्म भी दे देती है। पेट से सम्बंधित जितने भी रोग है, डॉक्टर्स उनके लिए एंटीबायोटिक दवाईया देते है जो लाभ कम और नुक्सान ज्यादा करती है। इन दवाईयों का पेट पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की पाचन किर्या उलट-पुलट हो जाती है। यह बात सही है की एलॉपथी चिकित्सा वैज्ञानिक कसौटी पर खरी उतरी है इसलिए इसका प्रचार -प्रसार भी अधिक हो सका, परन्तु मेरे विचार से यह चिकित्सा पद्यति अपने आप में पूर्ण नहीं है। इस चिकित्सा पद्यति में औषधि से अधिक सिर्फ शल्य चिकित्सा सफल हो पायी है। आप तमाम महानुभावों से सादर अनुरोध है कि कोई भी बीमारी के उपचार हेतु एक बार अवश्य सोचिए कि कौन सी चिकित्सा पद्धति की सेवाएं ली जा सकती हैं। आप को मेरी सलाह है कि सबसे पहले तो आप अपने "डॉक्टर" ख़ुद ही बनें। अगर ये संभव नहीं है तो फिर अपने शरीर को जानिए कि उसे क्या तकलीफ़ हो रही है,वो ही सच बताएगा। और उसी की सुनिए।ज़रा सोचिए, आपको कोई बीमारी है, इसमें डॉक्टर का क्या दोष या ग़लती थी जो उसके पास चले गए। याद रखिए, आप नेचर की पैदावार हैं और कोई भी विकार या तकलीफ़ या बीमारी आपके शरीर में मौजूद है तो उसको केवल नेचुरल चीज़ों से ही इलाज करके "आराम" नहीं हमेशा केलिए "स्वस्थ" और "REVERSE" किया जा सकता है। ख़ुद को और नेचर को पहचान लीजिए,तो ये आपके बीच में भगवान रुपी राक्षसों और डाकुओं से सुरक्षित रहेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे। एक चैलेंज:- मैंने एक ही यूनानी दवा बनाई है जिसका नाम "HEALTH IN BOX®" है। इस एक दवा से सभी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ सदा के लिए REVERSE हो जाती हैं। क्योंकि सारी बीमारियां सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण से होती हैं। और वो कारण है:-"ग्लूकोज़" और "इन्सुलिन" का "इम्बैलेंस" होना।" तो सिर्फ इस "इम्बैलेंस" को "रिबैलेंस" कर देने भर से ही कोई भी बीमारी सदा केलिए रिवर्स हो जाती है। (इस विधि को "यूनिवर्सल ला आफ रीबैलेंसिंग" कहा जाता है।) यानी हर वो बीमारी जिसमें डॉक्टर फ़ेल हो जाते हैं और आपको ऐलोपैथिक दवा ज़िन्दगी भर खाने को बता दिया करते हैं, ठीक उसके उलट मेरी दवा "HEALTH IN BOX®" का सेवन शुरू करते ही सबसे पहले तो बरसों से आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बनी ऐलोपैथिक दवा बंद हो जाएगी और मेरी इस दवा को चार, छः या नौ महीने प्रयोग करने के बाद बंद करके स्वस्थ जीवन जीने के क़ाबिल हो जाएंगे। आपको बता दूं कि लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ जैसे OBESITY, HIGH BP, DIABETES, ASTHMA, CHOLESTEROL, THYROID, HEART PROBLEM, CANCER, LIVER & ABDOMINAL PROBLEM, MIGRAINE, PSORIASIS, SINUSITIS, ARTHRITIS, OSTEOARTHRITIS, OSTEOPOROSIS वग़ैरह लाईलाज बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस दवा की पैकिंग एक महीना केलिए 240 ग्राम होती है जिसकी क़ीमत मात्र ₹ 3000/- है। हिन्दुस्तान में हर जगह स्पीड पोस्ट से ये दवा भेजी जाती है। #HAKEEMMDABURIZWAN BUMS,hons.(BU) UNANI PHYSICIAN Spl in #LIFESTYLEDISEASES #UNANIMEDICINESRESEARCHCENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHAND CONTACT 9334518872 & 8651274288 WHAT'S APP 8651274288 & 9334518872 Email umrcjamshedpur1966@gmail.com YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in/

Last updated date 20/09/2020


डायबिटीज़ एक साज़िश

अस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह वह बरकातोहु ! *डायबिटीज़ - "बीमारी नहीं,फ़ार्मा कंपनियों की साज़िश"* आज भारत में 7.5 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरी मंशा सिर्फ एक ही है, और वो हैं आप! मुझे विश्वास है कि इस विधि से आप DIABETES से खुद को ठीक कर पाएंगे। तब आप लोगों की मदद करेंगे। जिससे वे फिर से स्वस्थ हो जाएं। स्वास्थ्य न केवल आपका अधिकार है बल्कि आपकी जिम्मेदारी भी है। आप सोच रहे होंगे कि, अगर यह तकनीक इतनी क्रांतिकारी है। फिर मैं यह क्यों नहीं जान रहा हूँ। डॉक्टर इस बारे में क्यों नहीं बताते ? इसे समझने के लिए आपको मेरे इन आँकड़ों का विश्लेषण करना होगा। पिछले *10 वर्षों में देश को DIABETES और उससे होने वाली बीमारियों के कारण 246 बिलियन डॉलर का महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है,* जो पिछले साल के राष्ट्रीय बजट से सिर्फ 70 बिलियन डॉलर कम है। यह बहुत बड़ी रक़म है, यह एक बड़ा उद्योग है। आपकी बीमारी से किसी का बहुत बड़ा लाभ होता है। वे नहीं चाहते कि आप बीमारियों से मुक्त हों, वे केवल यही चाहते हैं कि आप बीमारियों के गुलाम हों, दवाओं के गुलाम हों। इस *साजिश को समझने के लिए आपको खाद्य और औषधि तंत्र को समझना होगा* । कृपया ध्यान दें! जब आप कुछ खाते हैं तो वह अनाज, सब्जी, चपाती, करी और फल हो। भोजन मुंह से पेट तक जाता है, आंत में जाता है। आंत में, यह छोटे कणों में टूट जाता है। यह लीवर में जाता है, लीवर में पुनर्संसाधन होता है। रक्त संचार की सहायता से भोजन पूरे शरीर में वितरित हो जाता है। ताकि वह शरीर के हर कोशिका में जाए जिसकी मदद से वह ऊर्जा पैदा कर सके, जिसकी मदद से वह शरीर की मरम्मत कर सके। इसका उपयोग शरीर के विकास में किया जा सकता है, या कुछ अन्य चयापचय गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा सकता है, इस तरह शरीर काम करता है। इस प्रकार भोजन कोशिकाओं में जाता है। आपका शरीर भोजन के साथ कैसा व्यवहार करता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि खाना स्वीकार करने के लिए हर सेल को अपना दरवाजा खोलना होता है। कोशिका स्वयं को नहीं खोल सकते। इसके लिए उन्हें ब्लड सर्कुलेशन में ख़ास केमिकल की जरूरत होती है, वह है "इंसुलिन"। आप कह सकते हैं कि इंसुलिन एक कुंजी है, कोशिका के दरवाजे की चाबी। इसका मतलब है, अगर इंसुलिन है, तभी कोशिका का दरवाजा खोला जा सकता है। और उसके बाद ही भोजन को कोशिकाओं में पहुँचाया जाएगा। यानी उनके शरीर की इंसुलिन बनाने वाली फैक्ट्री ठीक से काम नहीं करती है। *इंसुलिन उत्पादन फैक्ट्री का नाम PANCREAS है* । अग्न्याशय पेट के पीछे, जिगर के पीछे अंदर है। यह शरीर का एक छोटा अंग है, एक बहुत छोटा अंग है। यदि अग्न्याशय ठीक से काम नहीं करता है, तो इंसुलिन नामक कुंजी का उत्पादन नहीं होगा। इस मामले में, शरीर में भोजन के पर्याप्त संचलन के बावजूद, सेल इसका उपयोग नहीं कर पाएगा। उसे कहते हैं- हाई ब्लड शुगर, जिसे डायबिटीज कहते हैं। आप इसे अपने घर पर एक रेफ्रिजरेटर के रूप में मानते हैं जिसका दरवाजा बंद है। खाना उसके अंदर है, लेकिन तुम्हारे पास चाबी नहीं है। *यानी मधुमेह।



* आप डॉक्टर के पास जाओ, वह आपको एक दवा देगा, जिसे मेटामॉर्फिन कहा जाता है। मेटामॉर्फिन सीधे लीवर पर हमला करता है, यह लीवर को ब्लड शुगर को नियमित करने के लिए मजबूर करता है। लेकिन यह तरकीब ज्यादा दिन तक नहीं चलती। *कभी-कभी "मेटामॉर्फिन" लेने के बावजूद भी रोगी को आराम नहीं मिलता है* , डॉक्टर ने "मेटामॉर्फिन" के साथ एक और दवा डाली, जिसे "सल्फ़ोनिल्युरस" कहा जाता है। यह दवा अग्न्याशय पर काम करती है। *यह दवा अग्न्याशय को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए मजबूर करती है।* कभी-कभी, यह काम करता है। लेकिन उसके बाद दवाओं के बोझ के कारण अग्न्याशय पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, यानी शरीर इंसुलिन का उत्पादन बिल्कुल नहीं कर रहा है। अब, डॉक्टर कहेंगे, आपके शरीर ने *इंसुलिन का उत्पादन बंद कर दिया है।* इसका मतलब है कि *आपको दिन में कई बार इंसुलिन को अपने शरीर में इंजेक्ट करना होगा।* हर बार जब आप खाना खाएंगे तो आपको इंजेक्शन लगाना होगा। क्योंकि इंसुलिन बनाने वाली बॉडी की फैक्ट्री अब बंद हो गई है। यह यहीं नहीं रुकता क्योंकि वे अग्न्याशय क्षतिग्रस्त हैं। कुछ रोगी में अग्नाशय के कैंसर का खतरा होगा। लेकिन, दवा का एक और वर्ग है, *जिसे अल्फा - ग्लुकोसिडेस इनहिबिटर कहा जाता है।* यह दवा INTESTINE में काम करती है। यह दवा आंत को धीरे-धीरे कार्बोहाइड्रेट छोड़ने के लिए मजबूर करती है। लेकिन, इसके अपने साइड इफेक्ट होते हैं। इस वजह से अग्न्याशय पर अधिक भार पड़ता है। *कुछ समय बाद ट्यूमर, कोलन कैंसर जैसे रोगों की समस्या होती है।* फिर दवा का एक और वर्ग है, जिसे ग्लिटाज़ोन कहा जाता है! *GLITAZONES एक ही समय में शरीर की प्रत्येक कोशिका पर कार्य करता है।* ताकि इन्सुलिन के प्रति कोशिकाओं की संवेदनशीलता थोड़ी बढ़ जाए। लेकिन इस दवा के साथ समस्या यह है कि जो मरीज इन दवाओं को लेते हैं। कुछ वर्षों के बाद वे ब्लैडर कैंसर के रोगी बन जाते हैं। इसीलिए फ्रांस और जर्मनी सहित कई देशों ने GLITAZONES पर प्रतिबंध लगा दिया है। *भारत में लगभग 30 लाख रोगी GLITAZONES दवा लेते हैं।* मेरा मतलब है कि यदि आप कुछ लंबे समय तक मधुमेह की दवाओं पर हैं, तो वह किसी और गंभीर बीमारी के साथ समाप्त हो जाएगा। भारत में *15% जनसंख्या जो मधुमेह रोगी हैं वह नेत्रहीन हैं। लगभग 20% आबादी ने अपना अंग खो दिया है।* *50% से अधिक आबादी दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण वे किडनी फेल्योर के भी मरीज हैं।* *1947 तक हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी दवाओं के गुलाम हैं।* *हम सब मिलकर भारत को तीन डी - ड्रग्स, बीमारी और डॉक्टर से मुक्त करने में मदद कर सकते हैं।* BUT DON'T WORRY , डायबिटीज़ या किसी भी लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ को हमेशा केलिए बाय बाय कहने का समय आ गया है। अब ये डायबिटीज़ या उच्च रक्तचाप, कैंसर या हार्ट ब्लाकेज, किडनी फेलियर हो या कि डायलिसिस -- ऐसी *तमाम बिमारियां हमेशा केलिए "रिवर्स" (REVERSE) होंगी* और वो भी केवल एक युनिक यूनानी दवा *HEALTH IN BOX ™* से। तो देर किस बात की, लगे हाथ संपर्क करें:- *हकीम मो अबू रिज़वान* बीयूएमएस, आनर्स (बीयू) *यूनानी चिकित्सक* स्पेशलिस्ट इन लाइफस्टाइल डीज़ीज़ेज़ यूनानी मेडिसींस रिसर्च सेंटर सोनबरसा रफ़ीगंज औरंगाबाद बिहार। 9334518872 8651274288 YouTube HAKEEM MD ABU RIZWAN website https://umrc.co.in #unaniphysician #HEALTHINBOX #DIABETES #HEARTBLOCKAGES #DIALYSIS